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Saturday, April 19, 2025

राशि ज्ञान...

आपने सुना होगा कि कई ज्ञानी लोग केवल मस्तक देख कर सत्य बता थे …


#लेखांक को पूरा पढ़े...


आप भी देख सकते है ये सत्य कैसे बताया जाता है, आइये जानते है , प्राचीन मुनियों ने ललाट पर सात रेखाएं बताई हैं।


इन रेखाओं तथा उनसे सम्बन्धित ग्रहों के नाम इस प्रकार हैं-


१. ललाट में केशों के निचले भाग की रेखा के स्वामी शनि हैं।


२. इस रेखा के नीचे जो दूसरी रेखा है, उसके स्वामी गुरु हैं।


३. तीसरी रेखा के स्वामी मंगल हैं।


४. चौथी रेखा के स्वामी सूर्य हैं।


५. पांचवीं रेखा के स्वामी शुक्र हैं।


६. छठी रेखा के स्वामी बुध हैं।


मस्तक की रेखाओं का प्रभाव


१. शनि रेखा


ललाट पर पायी जाने वाली शनि रेखा से जातक में - निश्चय भावना, समझ उदासीनता, दूरदर्शिता, गंभीरता खिन्नता, आदि बातों को जाना जाता है।


१. जिस जातक के ललाट पर दाहिनी ओर शनि रेखा से एक छोटी रेखा ऊपर की ओर जाय तो जातक को निकट भविष्य में कुछ परेशानियों का सामना करना होता है।


२. यदि शनि रेखा से एक छोटी रेखा बाई आंख के ऊपर की ओर जाये तो जातक की स्त्री झगड़ालू और चंचल प्रवृत्ति की होती है।


३. बाई आंख के ऊपर शनि रेखा से निकल कर एक छोटी रेखा बालों तक जाती है तो ऐसे जातक की स्त्री हस्तिनी जाति की होती है।


४. शनि रेखा पर दाहिनी आंख के ओर तीन छोटी रेखायें मिलकर का सामना होता है। ऊपर अंग्रेजी वर्णाक्षर ट की तरह हो तथा बाई का आकार बनायें तो जातक को अनेक तरह की परेशानियों


५. शनि रेखा केशों के समीप हो तथा अखण्ड हो साथ ही सीधी हो तो जातक की बौद्धिक क्षमता अच्छी होती है।


६. शनि रेखा टेढ़ी या खण्डित होने से जातक उदासीन, शिकायती एवं चिड़चिड़े स्वभाव का होता है।


७. शनि रेखाा पर नीचे की ओर त्रिभुज होने से वह जातक धर्म परिवर्तन करता है अथवा अन्य जाति में विवाह करता है।


८. शनि रेखा से आकर एक टेढ़ी रेखा गुरु रेखा को काटे तथा सूर्य रेखा के ऊपर से जाती हुई छोटी रेखा से पुनः गुरु रेखा कटने पर जातक को साधना के क्षेत्र में लाभ दिलाता है।


६. शनि रेखा बार-बार खण्डित हो, गुरु रेखा छोटी हो, मंगल रेखा दोषपूर्ण हो, सूर्य व चन्द्र रेखा अच्छी हो तो जातक को सामान्य कहा जायेगा साथ ही जातक का स्वभाव चंचल और यदा-कदा परेशानी का सामना होगा।


१०. शनि रेखा लम्बी सीधी और अखण्ड होने से जातक निश्चय भावना वाला, बौद्धिक विचार वाला, समझदार, दूरदर्शी और गम्भीर होता है।


११. शनि रेखा कई बार खण्डित हो, गुरु रेखा लम्बी तथा सीधी हो, मंगल रेखा बीच में कटी हो, सूर्य रेखा धनुषाकार हो, शुक्र रेखा बीच से कटी हो तो वह जातक सत्य भाषी सरल, विनम्र सबका प्रिय, नेता, आदि होता है।


१२. शनि और गुरु रेखा पर अर्ध चन्द्राकार का निशान हो तथा सूर्य या चन्द्र रेखा परस्पर मिली हो तो वह परम् सौभाग्यशाली माना जाता है।


१३. शनि रेखा बीच में कटी हो तथा टेढ़ी हो, गुरु रेखा बीच से टेढ़ी हो तथा दांये भाग में कटी हो, मंगल तथा सूर्य रेखा दांयी ओर सर्पाकार हो।


१४. शनि रेखा छोटी हो, गुरु रेखा बीच में खण्डित हो, मंगल रेखा लम्बी और टेढ़ी हो साथ ही एक ओर अधिक झुकी हो, शुक्र रेखा बीच से खण्डित हो साथ ही दायी ओर एक रेखा उसे काटती हो, तो ऐसा जातक अभिमानी, क्रोधी, मित्रों द्वारा तिरस्कृत, व्यभिचारी, कामातुर आदि अवगुणों वाला होता है।


१५. शनि रेखा गहरी तथा टेढ़ी हो, गुरु रेखा लम्बी हो तथा दोनों ओर झुकी हो, सूर्य रेखा बीच में खण्डित हो, तो जातक सुन्दर, सुखी, उदार, विद्वान, यशस्वी, धर्मात्मा तथा भाई बन्धुओं का सम्माननीय होता हैं।


१६. शनि और गुरु रेखा ऊपर की ओर चन्द्राकार हो, शनि रेखा छोटी हो, दोनों भौहें परस्पर मिली हों ऐसा जातक, धनी, असत्य भाषी, कामातुर और व्यभिचारी होता है।


१७. शनि रेखा धनुषाकार हो, युक्त हो, शुक्र रेखा बीच में कटी हो, वाला होता है। गुरु रेखा सर्पाकार हो, मंगल रेखा लम्बी हो, सूर्य रेखा शाखा वह जातक, पराक्रमी, लोभी, अशान्त तथा असफल जीवन


१८. शनि रेखा लम्बी हो, गुरु रेखा सर्पाकार हो, वह जातक अपनी पत्नी से भय और कष्ट पाता है।


१६. शनि रेखा सीधी हो तथा बीच में दो रेखाओं द्वारा काटी जाय, मंगल व गुरु रेखा बीच में खण्डित हो, ऐसे जातक की सम्पत्ति को खतरा होता है।


२०. दायीं आंख के ऊपर शनि रेखा पर ट का निशान होने से आर्थिक नुकसानों का सामना होता है।


२१. शनि रेखा पर ऊपर की ओर तथा शुक्र रेखा से नीचे की ओर जाती हुई दो-दो रेखायें होने से कर्ज लेना पड़ता है।


२२. शनि रेखा पर एक सर्पाकार एक आड़ी रेखा ऊपर की ओर जाये तो जातक की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।


२. गुरु रेखा


ललाट पर पायी जाने वाली गुरु रेखा से जातक में भक्ष्याभक्ष (खान-पान) ईमानदारी, नैतिकता, नियम-संयम, साफ-सफाई, भेद-भावन, आध्यात्म, आत्मचिंतन, ज्ञान, श्रद्धा, भक्ति, उपासना, आदि के बारे में जाना जाता है।


१. जिस जातक के ललाट पर गुरु रेखा पर नीची की ओर एक या दोनों ओर एक धुमावदार रेखा होगी तो जातक को स्वास्थ्य की परेशानी का संकेत देती है।


२. गुरु रेखा मध्य में नीचे की ओर ट आकार में घूमकर पुनः सीधी होकर आगे बढ़ जाये तो ऐसा जातक स्वतः के जीवन काल में अधिकाधिक धन खर्च करता है।


३. गुरु रेखा दो भागों में बंटने से जातक को आर्थिक संकटों का सामना होता है तथा उसके मन में अशान्ति होती है।


४. गुरु रेखा अखण्ड तथा स्पष्ट होने से जातक को ईमानदार, संयमी, ज्ञानी और उपासक बनाती है।


५. गुरु रेखा टेढ़ी हो, खण्डित हो तो जातक में अनियमितता तथा भक्ष्याभक्ष्य का भेद भाव नहीं होता।


६. गुरु रेखा के नीचे सूर्य रेखा के ऊपर यदि त्रिभुज का निशान बने तो जातक दैवीय शक्ति प्राप्त करता है।


७. सूर्य क्षेत्र के ऊपर गुरु रेखा को एक अन्य छोटी, सर्पाकार रेखा काटे तो जातक महान सिद्धि प्राप्त करता है। ऐसे जातक का गृहस्थ जीवन असफल होता है।


८. गुरु रेखा पर सूर्य रेखा की ओर एक वृत्त बने तो ऐसा जातक सांसारिक दुःखों का शिकार और भ्रमित होता है।


६. गुरु रेखा छोटी हो, मंगल रेखा गहरी हो शनि रेखा टेढ़ी एवं निचले भाग में टूटी हो सूर्य रेखा बीच से खण्डित और टेढी हो तो ऐसा जातक मूर्ख, उपद्रवी, ठग, मनमौजी, कठोर स्वभाव, तथा झगड़ालू होगा।


३. मंगल रेखा


ललाट पर पायी जाने वाली मंगल रेखा से जातक में साहस, कार्य-सफलता, कायरता, आक्रोश, राजसेवा आदि के बारे में जाना जाता है।


१. ललाट पर पायी जाने वाली मंगल रेखा यदि टुकड़ों में बंटी हुई अथवा खण्डित होगी तो जातक में साहस की कमी होगी एवं गुप्त शत्रु का सामना होगा।


२. जिस जातक के ललाट पर मंगल रेखा की शाखायें सूर्य रेखा की ओर जाती है अथवा सूर्य रेखा को काटती हैं तो जातक को आर्थिक परेशानी का सामना करना होता है।


३. यदि मंगल रेखा ललाट के मध्य में हो तथा छोटी हो तो ऐसे जातक को भी आर्थिक परेशानी का सामाना करना होता है।


४. यदि मंगल रेखा से सूर्य रेखा की ओर एक सीधी शाखा एवं एक वक्री शाखा जाती है तो जातक को शीघ्र ही अच्छी नौकरी या नये व्यवसाय की ओर उन्मुख करती है और लाभ दिलाती है।


५. मंगल रेखा लम्बी और निर्दोष हो तथा मोटी हो तो जातक को बलवान, सैनिक, साहसिक प्रवृत्ति का बनाती है। खण्डित मंगल रेखा से व्यक्ति झगड़ालू एवं क्रोधी स्वभाव का होता है।


६. मंगल रेखा सर्पाकार हो साथ ही शनि रेखा सर्पाकार हो एवं दोनों के मध्य में वज्र का निशान हो, ऐसे जातक का मस्तिष्क प्रभावित होता है तथा वह निराश होकर आत्म हत्या को आतुर होता है।


७. मंगल रेखा टेढ़ी हो, खण्डित हो, दोषपूर्ण हो, तो वह जातक अधिकांश कार्यों में असफल रहता है एवं उसके कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है।


८. सीधी व स्पष्ट मंगल रेखा होने से जातक सभी कार्यों में सफल होता है क्योंकि उसमें साहस की अधिकता होती है।


६. मंगल एवं शनि रेखा बीच में टूटी हो, गुरु रेखा दोनों के बीच में झुकी हो तो ऐसा जातक धनी, दूरदर्शी एवं सौभाग्यशाली होता है यदि शनि और गुरु रेखा खण्डित होकर आपस में मिलेंगी तो अशुभ है ऐसी स्थिति में जातक स्वयं अपना जीवन बरबाद करता है।


१०. यदि मंगल रेखा चन्द्र रेखा की ओर झुकी हो और उस पर मस्सा हो, शनि रेखा लम्बी एवं गहरी हो गुरु रेखा छोटी हो ऐसे जातक कठोर एवं हिंसक हृदय के स्वामी होते हैं।


११. मंगल रेखा छोटी हो गुरु रेखा टेढ़ी हो शनि रेखा सीधी हो तो जातक भाग्यशाली होता है।


१२. मंगल रेखा बीच में टूटी हो सूर्य रेखा लम्बी हो तो जातक धनी, दानी, दयालु एवं बुद्धिमान होता है


४. सूर्य रेखा


ललाट पर पायी जाने वाली सूर्य रेखा से जातक में धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, सम्मान, प्रलोभन, खर्चीला स्वभाव, बौद्धिक क्षमता आदि के बारे में जाना जाता है। सूर्य रेखा लम्बी एवं निर्दोश होना शुभ माना जाता है। चेहरा विज्ञान में सूर्य रेखा देखकर जातक के जीवन में धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, सम्मान, प्रलोभन, कार्य, खर्चीला, स्वभाव, बौद्धिक क्षमता आदि के बारे में जाना जा सकता है ये रेखा दाहिनी आंख के भैंह के ऊपर पायी जाती है। कभी-कभी इस रेखा की लम्बाई अधिक होने से चन्द्र रेखा में मिल जाती है तथा अधिक छोटी होने पर चन्द्र रेखा से दूर रहती है।


१. जिस जातक के ललाट पर सूर्य रेखा स्पष्ट एवं पूर्ण हो तो ऐसे जातक धन सम्पत्ति से सम्पन्न होते हैं तथा इनकी बौद्धिक क्षमता अच्छी होती है। यदि सूर्य रेखा दोषी हो,


खण्डित हो तो जातक में लोभ की भावना बढ़ जाती है वह अधिक लालची और स्वार्थी बन जाता है इस रेखा के अभाव में व्यक्ति ऐश्वर्य और सम्मान से वंचित रह जाता है।


२. ललाट पर सूर्य रेखा कुछ गोलायी में हो तो जातक स्पष्ट बोलने वाला तथा कार्यों को सोच विचार कर करने वाला होता है और कार्यों में सफलता भी प्राप्त करता है।


३. सूर्य रेखा दोष पूर्ण या खण्डित होने से व्यक्ति में कंजूसी की भावना बढ़ जाती है तथा बौद्धिक क्षमता को भी प्रभाव पड़ता है।


४. जिस जातक के ललाट पर शनि क्षेत्र में अर्धचन्द्राकार कई रेखायें होंगी, साथ ही गुरु एवं मंगल रेखा लम्बी एवं सर्पाकार होगी। ऐसे जातक दुःखी, भयभीत, चिंतित एवं चंचल हृदय के स्वामी होते हैं। ऐसे जातक को पानी से सावधान रहना चाहिए क्योंकि शनि क्षेत्र में चन्द्राकार कई रेखा होने से जल द्वारा हानि होती है।


५. शनि रेखा अपने निचले भाग में टूटी हुई हो तथा सीधी हो। गुरु रेखा पर बाई ओर धनुषाकार चिन्ह हो। मंगल रेखा शाखायुक्त हो। सूर्य रेखा सर्पाकार हो। शुक्र रेखा अपने ऊपरी भाग में गहरी तथा बीच में कटी हो तो ऐसे जातक गुणवान, विद्वान, दानी, धर्मात्मा, उपदेशक, यशस्वी तथा यात्रा प्रेमी होते हैं।


६. शनि रेखा गहरी हो गुरु रेखा छोटी मंगल रेखा गहरी तथा पतली हो। सूर्य रेखा झुकी हो एवं दो रेखाओं से कटी हो, तो वह जातक कामी, क्रोधी, कलहप्रिय, झगड़ालू एवं हथियार से चोट खाता है।


५. चन्द्र रेखा


ललाट पर पायी जाने वाली चन्द्र रेखा से जातक में कल्पना, विचार शक्ति, यात्रा, प्रेम, बौद्धिक चंचलता, मनोभावना, आदि के बारे में जाना जाता है।


१. चन्द्र रेखा उत्तम तथा पूर्ण होने से जातक में कल्पनाशीलता, देशाटन भावना, तथा बौद्धिक चंचलता की वृद्धि होती है।


२. चन्द्र रेखा दोषपूर्ण अथवा खण्डित होने से जातक की बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करके उसे मंद बुद्धि वाला बनाती हैं चन्द्र रेखा खण्डित होने से जातक सत्यवादी नहीं होता है तथा देशाटन में बाधायें आती है।


३. यदि जातक के ललाट पर चन्द रेखा का अभाव हो तथा ललाट पर एक ही रेखा हो और वह धनुषाकार हो, तो जातक में यात्रा करने की भावना अधिक पायी जाती है। ऐसे जातक का स्वभाव अच्छा नहीं होता तथा बुरे कार्यों की चेष्टा करता है ऐसे जातक का अधम स्वभाव माना जाता हैं।


४. स्पष्ट तथा गोलायी युक्त चन्द्र रेखा जातक में अच्छे विचार उत्पन्न करती है तथा यात्रायें अधिक करवाती है। ऐसे जातक की विचार शक्ति और प्रेम भावना अच्छी होती है।


५. ललाट पर चन्द्र रेखा का अभाव हो तथा अन्य रेखायें छोटी-छोटी होने से जातक में अच्छे बुरे दोनों गुण पाये जाते हैं तथा ऐसे जातक दीर्घायु नहीं होते हैं।


६. शुक्र रेखा


ललाट पर पायी जाने वाली शुक्र रेखा से जातक में-स्त्री सुख, सम्पन्नता, सुख, सच्चा प्रेम, दाम्पत्य जीवन, विपरीत लिंग की ओर आकर्षण, आदि के बारे में जाना जाता है।


१. शुक्र रेखा अखण्ड व स्पष्ट होने से स्त्री सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक अच्छे प्रेम के स्वामी होते हैं। ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।


२. शुक्र रेखा दोषपूर्ण या खण्डित होने से जातक का दाम्पत्य जीवन अधिक सुखी नहीं होता तथा ऐसे जातक दिखावटी प्रेम करता है।


३. यदि ललाट में चार रेखायें हो तथा शुक्र और शनि रेखा किसी अन्य छोटी रेखा द्वारा कटती हो तो वह जातक बुद्धिमान सच्चरित्र और सरल स्वभाव का होता है।


४. शुक्र रेखा से कई छोटी रेखायें चन्द्र रेखा की ओर जाने से जातक की आर्थिक स्थिति खराब होती है तथा कर्जा लेना पड़ता है।


६. शुक्र रेखा


ललाट पर पायी जाने वाली शुक्र रेखा से जातक में-स्त्री सुख, सम्पन्नता, सुख, सच्चा प्रेम, दाम्पत्य जीवन, विपरीत लिंग की ओर आकर्षण, आदि के बारे में जाना जाता है।


१. शुक्र रेखा अखण्ड व स्पष्ट होने से स्त्री सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक अच्छे प्रेम के स्वामी होते हैं। ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।


२. शुक्र रेखा दोषपूर्ण या खण्डित होने से जातक का दाम्पत्य जीवन अधिक सुखी नहीं होता तथा ऐसे जातक दिखावटी प्रेम करता है।


३. यदि ललाट में चार रेखायें हो तथा शुक्र और शनि रेखा किसी अन्य छोटी रेखा द्वारा कटती हो तो वह जातक बुद्धिमान सच्चरित्र और सरल स्वभाव का होता है।


४. शुक्र रेखा से कई छोटी रेखायें चन्द्र रेखा की ओर जाने से जातक की आर्थिक स्थिति खराब होती है तथा कर्जा लेना पड़ता है।


ललाट एवं ललाट रेखायें


सामान्य भाषा में सिर के अग्र भाग को ललाट कहते हैं। ललाट की आकृति और उस पर पायी जाने वाली रेखाओं के संबंध में अनेक ग्रन्थों में वर्णित है। ललाट व रेखाओं से जातक की बौद्धिक क्षमता, ज्ञान, विचार, साहस, व्यवहार आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।


निःस्वा विषम भालेन दुःखिता ज्वर जर्जराः ।


परकर्म करा नित्यं प्राप्यन्ते वध वन्धनम ।।


(सामुद्रिक शास्त्र)


जिस जातक का ललाट नीचा हो, अविकसित हो, ऐसा जातक जीवन में ज्वर से पीड़ित होता है तथा निम्न कोटि का कार्य करने वाला होता है एवं जीवन में सफलता और सम्मान से वंचित होता है।


ललाटेनार्थं चन्द्रेण भवन्ति पृथ्वीश्वराः । विपुलेन ललाटेन महानरपतिः स्मृतः ।।


श्लेक्ष्णेन तु ललाटेन नरो धर्मरस्तथा।


(भविष्यपुराण)


जिस जातक का ललाट अर्ध चन्द्राकार होता है तथा उन्नत एवं फैला होता है, वह जातक भूमि और सम्पत्ति का स्वामी होता है तथा ऐसे जातक सुखी होते हैं। यदि ऐसे जातक का ललाट चिकनाई युक्त होवे तो जातक में धर्म कार्य करने की रुचि बढ़ जाती है। जिस जातक के ललाट पर हंसते समय भौंहों के बीच दो खड़ी रेखा स्पष्ट हो जाय तो ऐसे जातक अच्छे गुणों से सम्पन्न होते हैं तथा सुख भोगते हैं जिस जातक का ललाट बहुत नीचा हो साथ ही ललाट में नसें उभरी हों तो ऐसे जातक दुःखी, और पापी होते हैं। जिस जातक के ललाट में त्रिशूल वज्र या धनुष का चिन्ह हो तो ऐसे जातक को उच्च पदों वाली स्त्रियां पसंद करती हैं। जिस जातक के ललाट पर नीली नसों के उभरने से तिलक जैसा चिन्ह प्रतीत हो तथा साथ ही ललाट का आकार अर्धचन्द्र सा हो तो जातक सुखी और धनवान होता है। जिस जातक की ललाट रेखायें न दिखती हों तथा ढलवा और चिकना हो परन्तु उत्तेजना के समय ये नसें दिखती हों, ऐसा जातक अति बुद्धिमान जातक होता है। जिस जातक का ललाट नीचा हो तथा रुखा हो, ऐसे जातक हिंसक प्रवृति एवं क्रूर कर्म करने वाले होते हैं। ऐसे जातक सुख से वंचित होते हैं तथा संघर्षमय जीवन बिताते हैं। जिस जातक का ललाट नाक के बराबर ऊँचा तथा नाक की लम्बाई से दुगुना चौड़ा तथा कनपटी विकसित हो तो ऐसे जातक श्रेष्ठ माने गये हैं।


ललाट पर ग्रहों के चिन्ह तथा स्थान


१ . सूर्य इसका चिन्ह मध्य बिन्दु युक्त वृत्त का चिन्ह होता है। इसका स्थान दाहिने नेत्र में रहता है।


२. चन्द्र धनुष के आकार का इसका चिन्ह होता है। बाएं नेत्र में इसका निवास होता है।


३. मंगल तीन शाखाओं वाला मंगल का चिन्ह सिर के ऊपरी भाग पर दिखाई देता है।


४. बुध एक खड़ी रेखा पर तिरछी रेखा जैसा चिन्ह बुध का होता है। यह मुंह पर वास करता है।


५. गुरु दो के समान चिन्ह गुरु का होता है। इसका निवास दाहिने कान पर होता है।


६. शुक्र धन के चिन्ह के चारों ओर गोलाकार हो ऐसा चिन्ह शुक्र का होता है यह भौहों के बीच में होता है।


७. शनि ईकार के समान इसका चिन्ह होता है इसका निवास बाएं कान पर रहता है।


ललाट रेखा फल


ऊपर ललाट पर सात रेखाओं का वर्णन पीछे की पंक्तियों में किया जा चुका है। अधिक सूक्ष्मता से विचार करने पर ज्ञात होता है कि दाहिने नेत्र के ऊपरी भाग में छोटी-सी रेखा होती है, वह सूर्य की रेखा कहलाती है। इसी प्रकार बाएं नेत्र के ऊपरी भाग में चन्द्र की रेखा मानी जाती है। भौंहों के बीच में शुक्र की रेखा तथा नासिका के अग्रभाग में विद्वान् लोग बुध की रेखा मानते हैं।


१. यदि गुरु रेखा में शाखाएं निकलती हों, तो वह व्यक्ति असत्य भाषी तथा दुष्ट होता है। २. यदि गुरु और मंगल की रेखाएं बीच में टूटी हुई हों, तो उसके पास निरन्तर धन का अभाव रहता है।


३. यदि शनि व मंगल की रेखाएं टूटी हुई हों तथा गुरु की रेखा नीचे की तरफ झुकी हुई हो, तो वह सौभाग्यशाली एवं धनवान होता है।


४. यदि शनि और गुरु की रेखाएं धनुष के आकार की हों, तो वह व्यक्ति दुष्ट स्वभाव वाला होता है।


५. यदि शनि की रेखा बहुत अधिक गहरी और झुकी हुई हो, तो वह हत्यारा होता है।


६. यदि शनि रेखा बहुत अधिक लम्बी और गहरी हो, तो पर-स्त्री से सम्पर्क होता है।


७. शनि रेखा टेढ़ी होने से व्यसनी बनाती है।


८. यदि मंगल रेखा सर्पाकार हो, तो वह हत्यारा होता है।


६. यदि ललाट में चार रेखाएं हों, तो वह सच्चरित्र तथा बुद्धिमान होता है।


१०. यदि गुरू की रेखा सर्पाकार हो, तो वह व्यक्ति लोभी होता है।


११. जिसके ललाट में तीन रेखाएं सीधी, सरल और स्पष्ट हों, वह व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है।


१२. यदि गुरु और शनि की रेखाएं परस्पर मिल गई हों तो उसकी मृत्यु फांसी से होती है। १३. जिसके ललाट में बहुत अधिक रेखाएं टूटी-फूटी हों, तो वह व्यक्ति दुर्भाग्यशाली


एवं रोगी होता है।


१४. यदि शनि की रेखा टेढ़ी हो, तो वह व्यसनी होता है।


१५. यदि सूर्य रेखा छोटी और शुक्र रेखा लम्बी हो तो वह व्यक्ति सच्चरित्र चतुर और


सौभाग्यशाली होता है।


१६. यदि सूर्य की रेखा धनुष के आकार की और शुक्र की रेखा बीच में से कटी हुई हो, तो वह नम्र रसज्ञ और धनी होता है।


१७. यदि शनि और गुरु की रेखाएं ऊपरी भाग में अर्द्ध चन्द्राकार हों, तो वह व्यक्ति बहुत अधिक सौभाग्यशाली होता है।


१८. यदि ललाट में सर्प के आकृति की एक ही रेखा हो, तो वह बलवान होता है।


१६. यदि दोनों भौंहों के बीच में त्रिशूल का चिन्ह होता है तो जातक का अंग-भंग होता है।


२०. यदि सूर्य रेखा बीच में कटी हुई हो तो वह क्रोधी, कामी तथा झगड़ालू होता है।


२१. यदि शनि रेखा लम्बी हो तथा मंगल की रेखा सर्पाकार हो, तो वह धर्मात्मा, दयालु और उच्च


समाज में रहने वाला होता है।


२२. यदि शनि और गुरु की रेखा सर्पाकार हो, तो वह धूर्त स्वभाव वाला होता है। यदि सर्पाकार गुरु की रेखा शनि रेखा के पास पहुँचे हो तो वह कलहप्रिय होता है।


२३. यदि गुरु की रेखा लम्बी और लचीली हो, तो वह सुन्दर और सौभाग्यशाली माना जाता है। २४. यदि मंगल की रेखा झुकी हुई हो तथा शुक्र रेखा दाहिनी ओर कटी हुई हो, तो वह अभिमानी, क्रोधी तथा पर-स्त्री-सेवी होता है।


२५. यदि शनि तथा गुरु की रेखाएं धनुष के आकार की हो तो वह व्यक्ति पराक्रमी होता है।


२६. यदि शनि रेखा गहरी हो तथा दोनों भौंहों के बीच में अधिक बाल हो, तो वह एक से अधिक


१७. यदि शनि और गुरु की रेखाएं ऊपरी भाग में अर्द्ध चन्द्राकार हों, तो वह व्यक्ति बहुत अधिक सौभाग्यशाली होता है।


१८. यदि ललाट में सर्प के आकृति की एक ही रेखा हो, तो वह बलवान होता है।


१६. यदि दोनों भौंहों के बीच में त्रिशूल का चिन्ह होता है तो जातक का अंग-भंग होता है।


२०. यदि सूर्य रेखा बीच में कटी हुई हो तो वह क्रोधी, कामी तथा झगड़ालू होता है।


२१. यदि शनि रेखा लम्बी हो तथा मंगल की रेखा सर्पाकार हो, तो वह धर्मात्मा, दयालु और उच्च समाज में रहने वाला होता है।


२२. यदि शनि और गुरु की रेखा सर्पाकार हो, तो वह धूर्त स्वभाव वाला होता है। यदि सर्पाकार


गुरु की रेखा शनि रेखा के पास पहुँचे हो तो वह कलहप्रिय होता है।


२३. यदि गुरु की रेखा लम्बी और लचीली हो, तो वह सुन्दर और सौभाग्यशाली माना जाता है। २४. यदि मंगल की रेखा झुकी हुई हो तथा शुक्र रेखा दाहिनी ओर कटी हुई हो, तो वह अभिमानी, क्रोधी तथा पर-स्त्री-सेवी होता है।


२५. यदि शनि तथा गुरु की रेखाएं धनुष के आकार की हो तो वह व्यक्ति पराक्रमी होता है। २६. यदि शनि रेखा गहरी हो तथा दोनों भौंहों के बीच में अधिक बाल हो, तो वह एक से अधिक विवाह का इच्छुक तथा सम्पत्तिशाली होता है।


२७. यदि शनि रेखा पतली और गुरु रेखा मोटी तथा लम्बी हो, तो वह व्यक्ति घातक होता है।

Saturday, January 14, 2023

तीन प्रकार की आत्माएं...


 तीन प्रकार की आत्माएं 

दुनिया में अगर हम सारी आत्माओं को विभाजित करें, तो वे तीन तरह के मालूम पड़ेंगे।

एक तो अत्यंत निकृष्ट, अत्यंत हीन चित्त के लोग; एक अत्यंत उच्च, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत पवित्र किस्म के लोग; और फिर बीच की एक भीड़ जो दोनों का तालमेल है, जो बुरे और भले को मेल - मिलाकर चलती है।


निकृष्टतम आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में और श्रेष्ठ आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में। बीच की आत्माओं को जरा भी देर नहीं लगती। यहां, मरे नहीं, वहां, नई यात्रा शुरू हो गई।


उसका कारण यह है कि साधारण, मीडियाकर मध्य की जो आत्माएं हैं, उनके योग्य गर्भ सदा उपलब्ध रहते हैं।


मैं आपको कहना चाहूंगा कि जैसे ही आदमी मरता है, मरते ही उसके सामने सैकड़ों लोग संभोग करते हुए, सैकड़ों जोड़े दिखाई पड़ते हैं। और जिस जोड़े के प्रति वह आकर्षित हो जाता है वहां, वह गर्भ में प्रवेश कर जाता है।


लेकिन बहुत श्रेष्ठ आत्माएं साधारण गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकतीं। उनके लिए असाधारण गर्भ की जरूरत है, जहॉं असाधारण संभावनाएं व्यक्तित्व की मिल सकें। तो श्रेष्ठ आत्माओं को रुक जाना पड़ता है।


निकृष्ट आत्माओं को भी रुक जाना पडता है, क्योंकि उनके योग्य भी गर्भ नहीं मिलता। क्योंकि उनके योग्य मतलब अत्यंत अयोग्य गर्भ मिलना चाहिए वह भी साधारण नहीं।


निकृष्ट आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम प्रेत, भूत कहते हैं। और श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम देवता कहते हैं।




महाभारत" के नौ सार- सूत्र :-


1. संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे- कौरव


2. आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अधर्म के साथ हो तो, आपकी विद्या, अस्त्र-शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा - कर्ण


3. संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे- अश्वत्थामा


4. कभी किसी को ऐसा वचन मत दो कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े - भीष्म पितामह


5. संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है - दुर्योधन


6. अंध व्यक्ति- अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी विनाश की ओर ले जाती है - धृतराष्ट्र


7. यदि व्यक्ति के पास विद्या, विवेक से बँधी हो तो विजय अवश्य मिलती है - अर्जुन


8. हर कार्य में छल, कपट, व प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते - शकुनि


9. यदि आप नीति, धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे, तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती - युधिष्ठिर


Sunday, December 4, 2022

कालिदास से प्रेणा

 कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.

स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।


कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।

पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

.

(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)


कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)


कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।

.

स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)


कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

.

स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)


वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)

माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

शिक्षा :-

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।

दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....

अन्न के कण को

"और"

आनंद के क्षण को...

(साभार)🚩🙏🇮🇳

हमार प्राचीन धनुष

 हमारे_प्राचीन_धनुष


कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक मैसेज प्रसारित हो रहा है जिसमें महर्षि दधिची की अस्थियों से तीन धनुष पिनाक, शांर्डग्य (शारंग) और गांडिव के बनने की बात कही जा रही है.

इस भ्रामक पोस्ट को पढ़कर ही विचार आया कि हमारे पौराणिक आयुधों पर लिखा जाए.


महर्षि दधिची की अस्थियों से केवल #वज्र का निर्माण हुआ था जिसे देवराज इंद्र को दिया गया था.

#पिनाक, #शांर्डग्य और #गाण्डीव का निर्माण समाधिस्थ #महर्षि_कण्व की मूर्धा पर उगे बांस से हुआ भगवान विश्वकर्मा ने किया था. जिन्हे क्रमशः आदिधनुर्धर महादेव, पालनकर्ता भगवान विष्णु और सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा को अर्पण किया गया. कालांतर में यह तीनों धनुष अलग अलग योद्धाओं द्वारा प्रयोग किये गए. 


सोशल मीडिया पर प्रसारित उस लेख में भीमपुत्र #घटोत्कच का वध कर्ण द्वारा इंद्र से प्राप्त वज्र से होना बताया गया है, जो कि असत्य है.

दानवीर कर्ण ने इंद्रदेव की आराधना कर उनसे #अमोघ_अस्त्र प्राप्त किया था ना कि वज्र.

घटोत्कच के वध का प्रसंग पढ़ने पर जानकारी मिलती है कि घटोत्कच जब कौरव सेना का संहार कर रहा था तब दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने इसी अमोघ अस्त्र से घटोत्कच का वध किया था.


सोशल मीडिया पर ऐसे भ्रामक लेख प्रसारित होना कोई नई बात नहीं है. कुछ अज्ञानी अथवा अल्पज्ञानी लोग आधी अधूरी बातें पढ़कर आधी बात मन से जोड़कर लेख लिख देते हैं. कर्ण के अमोघ अस्त्र, कर्ण के धनुष विजय और इंद्रदेव के वज्र तीनों का संबंध देवराज इंद्र से था, शायद इसी की आधी अधूरी जानकारी के साथ वह लेख तैय्यार कर दिया गया.

वज्र #शस्त्र श्रेणी का आयुध है जबकि धनुष से #अस्त्र श्रेणी के आयुध छोड़े जाते हैं. इन दोनों में सामान्य सा अंतर है अस्त्र किसी यंत्र के द्वारा चलाए जाते हैं जैसे धनुष से बाण चलाया जाता है. जबकि शस्त्र को तलवार की तरह हाथ में पकड़कर या हाथ से फेंककर वार किया जाता है. 


इस लेख में हमारे दिव्य धनुषों के बार में लिखता हूँ, किस योद्धा के पास कौनसा धनुष था. 


1:- भगवान #शिव:- पिनाक धनुष शिव जी को अर्पित किया गया था. पिनाक को अजगव भी कहा गया है. शिव जी के पास और भी कई धनुष थे. त्रिपुरांतक धनुष से उन्होंने मयासुर द्वारा बनाए त्रिपुर को नष्ट किया था. शिव जी के पास रुद्र नामक एक और धनुष का उल्लेख मिलता है जिसे बाद में भगवान बलराम ने प्राप्त किया था. 


2:- भगवान विष्णु:- शांर्डग्य (शारंग) धनुष विष्णु जी को अर्पित किया गया था जिसे उन्होंने धारण किया. इसे शर्ख के नाम से भी जाना गया. यह धनुष भगवान परशुराम और योगेश्वर श्री कृष्ण ने प्राप्त किया था. 


3:- भगवान ब्रह्मा :- भगवान ब्रह्मा को गांडिव धनुष अर्पित किया गया था. जिसे अग्निदेव, दैत्यराज वृषपर्वा और अंत में सव्यसांची अर्जुन ने प्राप्त किया. 


4:- भगवान परशुराम :- भगवान परशुराम के पास अनेक धनुष थे. उन्होंने अपने गुरु महादेव से पिनाक, भगवान विष्णु से शांर्डग्य (शारंग) और देवराज इंद्र से विजय नामक धनुष प्राप्त किया था. यह विजय धनुष उन्होंने अपने शिष्य कर्ण को दिया था. 


5:- प्रभु श्री #राम:- भगवान राम जिस धनुष को धारण करते थे उसका नाम कोदण्ड था. रामचरित मानस में प्रभु के धनुष को सारंग भी कहा गया है, परंतु वह धनुष शब्द का पर्यायवाची शब्द सारंग है ना कि विष्णु जी का धनुष शांर्डग्य. 


6:- लंकापति रावण:- रावण के पास पौलत्स्य नामक धनुष था. जिसे द्वापर युग में घटोत्कच ने प्राप्त किया था. एक समय पर रावण ने शिव जी से पिनाक भी प्राप्त किया था, परंतु उसे धारण नहीं कर पाया. 


7:- श्री कृष्ण :- योगेश्वर श्री कृष्ण का मुख्य आयुध सुदर्शन चक्र था परंतु उन्होंने भी शांर्डग्य (शारंग) धनुष को धारण किया था. 


8:- भगवान बलराम:- बल दऊ के धनुष का नाम रुद्र था जो उन्होने भगवान शिव से प्राप्त किया था. 


9:- भगवान कार्तिकेय :- इन्होंने अपने पिता भगवान शिव के धनुष #पिनाक को धारण किया था. 


10:- देवराज इंद्र:- इंद्रदेव ने विजय नामक धनुष को धारण किया जिसे उन्होंने भगवान परशुराम जी को दे दिया. 


11:- कामदेव:- कामदेव ने ईख (गन्ने) की छड़ी पर मधुमक्खी के तार से बनी प्रत्यंचा से तैय्यार पुष्पधनु नामक धनुष को धारण किया था. 


12:- युधिष्ठिर :- युधिष्ठिर जी ने महेंद्र नामक धनुष को धारण किया था. 


13:- भीम:- भीमसेन ने वायुदेव से प्राप्त वायव्य धनुष को धारण किया था. 


14:- कौन्तेय #अर्जुन:- अर्जुन ने ब्रह्मा जी के धनुष गांडिव को धारण किया था. जिसे उसने खांडवप्रस्थ में मयदानव से प्राप्त किया था. 


15:- नकुल:- नकुल ने भगवान विष्णु से प्राप्त वैष्णव धनुष को धारण किया था. 


16:- सहदेव:- सहदेव ने अश्विनी कुमारों से प्राप्त अश्विनी नामक धनुष को धारण किया था. 


17:- #कर्ण:- कर्ण ने अपने गुरु भगवान #परशुराम से देवराज इंद्र का विजय धनुष प्राप्त किया था. इंद्रदेव की उपासना कर कर्ण ने अमोघास्त्र भी प्राप्त किया था. 


18:- #अभिमन्यु:- अभिमन्यु ने अपने गुरु और मामा भगवान बलराम से भगवान शिव का धनुष रुद्र प्राप्त किया था. 


19:- घटोत्कच :- घटोत्कच ने लंकापति #रावण का धनुष पौलत्स्य प्राप्त किया. 


(उप पाण्डव:- पाण्डवों और द्रौपदी से उत्पन्न पुत्रों को उप पाण्डव कहा गया) 

20:- प्रतिविंध्य:- युधिष्ठिर के इस पुत्र ने रौद्र नामक धनुष का प्रयोग किया. 


21:- सूतसोम:- भीमसेन के इस पुत्र ने आग्नेय नामक धनुष प्राप्त किया. 


22:- श्रुतकर्मा:- #अर्जुन के इस पुत्र ने कावेरी नामक धनुष का प्रयोग किया.

 

23:- शतनिक:- नकुल के इस पुत्र को यम्या नामक #धनुष प्राप्त हुआ. 


24:- श्रुतसेन:- #सहदेव के पुत्र ने गिरिषा नामक धनुष का प्रयोग किया. 


कुरुवंश के कुल गुरु

25:- द्रोणाचार्य :- आचार्य द्रोण ने महर्षि अंगिरस से प्राप्त आंगिरस धनुष का प्रयोग किया. 



चक्रव्यूह में अभिमन्यु क्यों मारा गया था

आप केवल इतना भर जानते हैं कि चक्रव्यूह में अभिमन्यु मारा गया था या फिर कौरव महाबलियों ने उसे घेर कर मार दिया था?


तो_फिर_आप_रुकिये ..


 #श्रीकृष्ण जिसके #गुरु हों और जो स्वंय #केशव ही का #भांजा भी हो। उसके शौर्य को फिर आधा ही जानते हैं आप तब। कुछ तथ्यों से आप वंचित हैं। क्योंकि उस लड़ाई में #अभिमन्यु ने जिन वीरपुत्र योद्धाओं को मार कर वीरगति पाई थी उनको भी जान लीजिये ..


●#दुर्योधन का पुत्र #लक्ष्मण

●कर्ण का छोटा पुत्र. 

●अश्मका का बेटा

●शल्या का छोटा भाई

●शल्या के पुत्र रुक्मरथ

● दृघलोचन Drighalochana

● कुंडवेधी Kundavedhi

● सुषेण Sushena

● वसत्य Vasatiya

● क्रथा और कई योद्धा ...


और ये तब था जब ... उस चक्रव्यूह को जिसे अभिमन्यु को भेदना था ..उसके प्रत्येक द्वार - पहले से लेकर सातवें पर योद्धाओं को देखिये -


१) #अश्वथामा

२) #दुर्योधन

३)#द्रोणाचार्य

4) #कर्ण

५) #कृपाचार्य

६) #दुशासन

7) #शाल्व (दुशासन के पुत्र)


अभिमन्यु के प्रवेश के बाद ही #जयद्रथ ने प्रथम प्रवेशद्वार पर #पांडवों के प्रवेश को रोक दिया था।


चक्रव्यूह जो कि #कुरुक्षेत्र के सबसे खतरनाक युद्ध तंत्र में से एक था। वह चक्रव्यू जिसको भेदना असंभव था..


#द्वापरयुग में केवल 7 लोग ही जानते थे:


●कृष्णा

●अर्जुन

●भीष्म

●द्रोणाचार्य

●कर्ण

●अश्वत्थामा

●प्रद्युम्न


#अभिमन्यु केवल उसमें प्रवेश करना जानता था

चक्रव्यूह को #घूर्णन_मृत्यु_चक्र (rotating death wheel) भी कहा जाता था ..


यह पृथ्वी की तरह घूमता था, साथ ही हर परत के चारों ओर घूमता था। इस कारण से, निकास द्वार हर समय एक अलग दिशा में मुड़ता था, जो दुश्मन को भ्रमित करता था।


आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि #संगीत या #शंख ध्वनि के अनुसार, चक्रव्यूह के सैनिक अपनी स्थिति बदल सकते थे। कोई भी #कमांडर या #सिपाही स्वेच्छा में अपनी स्थिति नहीं बदल सकता था...द्रोण रचित चक्रव्यूह एक घूमते हुए चक्र #कुंडली की तरह था, अगर कोई योद्धा इस व्यूह के खुले हुए हिस्से में घुसता था तो मारे गए सैनिक की जगह तुरंत ही दूसरा अधिक शक्तिशाली सैनिक आ जाता था, सैनिकों की पंक्ति लगातार घूमती रहती थी और बाहरी सभी चक्र शक्तिशाली होते रहते थे।


इसलिए चक्रव्यूह में प्रवेश आसान था पर बाहर निकलने के लिए #योद्धा को व्यूह की किसी भी समय तात्कालिक स्थिति की जानकारी होना आवश्यक था और इसके लिए व्यूह के हर चक्र के एक योद्धा की स्थिति उसे याद रखनी पड़ती थी।


 माना जाता है कि चक्रव्यूह का गठन दुश्मन को #मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना तोड़ देता था कि दुश्मन के हजारों सैनिक एक पल में मर जाते थे।


यह अकल्पनीय है कि यह रणनीति सदियों पहले "वैज्ञानिक रूप से" गठित की गई थी।



देवता शराब नहीं पीते थे

 देवता शराब नहीं पीते थे। 

सोमरस सोम के पौधे से प्राप्त रस था ये पौधा आज लगभग विलुप्त है, 


शराब पीने को सुरापान कहा जाता था, सुरापान असुर करते थे, ऋग्वेद में सुरापान को घृणा के तौर पर देखा गया है। 


टीवी सीरियल्स ने भगवान इंद्र को अप्सराओं से घिरा दिखाया जाता है और वो सब सोमरस पीते रहते हैं, जिसे सामान्य जनता शराब समझती है। 


सोमरस, सोम नाम की जड़ीबूटी थी जिसमें दूध और दही मिलाकर ग्रहण किया जाता था, इससे व्यक्ति बलशाली और बुद्धिमान बनता था। 


जब यज्ञ होते थे तो सबसे पहले अग्नि को आहुति सोमरस से दी जाती थी। 


ऋग्वेद में सोमरस पान के लिए अग्नि और इंद्र का सैकड़ों बार आह्वान किया गया है। 


आप जिस इंद्र देवता को सोचकर अपने मन में टीवी सीरियल की छवि बनाते हैं वास्तव में  वैसा कुछ नहीं था। 


जब वेदों की रचना की गयी तो अग्नि देवता, इंद्र देवता, रुद्र देवता आदि इन्हीं सब का महत्व लिखा गया है। 


मन में वहम मत पालिये... 


कहीं पढ़ रहा था, किसी ने पोस्ट किया था कि देवता भी सोमरस पीते थे तो हम भी पीयेंगे तो अचानक मन में आया तो लिख दिया। 


आज का चरणामृत/पंचामृत सोमरस की तर्ज पर ही बनाया जाता है बस प्रकृति ने सोम जड़ीबूटी हमसे छीन ली। 


तो एक बात दिमाग में बैठा लीजिये, सोमरस नशा करने की चीज नहीं थी।


आपको सोमरस का गलत अर्थ पता है अगर आप उसे शराब समझते हैं।

शराब को शराब कहिए सोमरस नहीं। 

सोमरस का अपमान मत करिए, #सोमरस उस समय का #चरणामृत/पंचामृत था। 

भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था

 भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?


उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से। चूल्हे की राख का रासायनिक संगठन है ही कुछ ऐसा ।

आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। इस राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, वे पौधों में भी उपलब्ध होते हैं। इसके सभी Major तथा Minor Elements पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से। इसमें सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium.


इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium तथा Nitrogen. कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है ।

राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph क्षमता ९.० से १३.५ तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है।


जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का विनाश । आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है। मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है ।

मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है । जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटैण्ट का काम करती है ।


इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आ जाती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फैक्शन के लिए एक एकोफ़्रेंडली विकल्प है...

जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमैंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है। सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। इसलिए सनातन अपनाइए स्वस्थ रहिये ।


आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर धूनी की राख मलते हैं जो कि उन्हें शुद्ध रखती है साथ ही साथ भीषण ठंडक से भी बचाये रखती है ।



एक बार विचार अवश्य करें

 एक बार विचार अवश्य करें

#ब्राहमणो_ने_समाज_को_तोडा_नही_अपितु_जोडा_है


ब्राहमण ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खडे हरिजन को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि हरिजन स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हेपर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगे।


इस तरह सबसे पहले उन्हें जोड़ा गया जिन्हें आज दलित कहा जाता है को .....


★ धोबन के द्वारा दिये गये जल से से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा...


★ कुम्हार द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा...


★ मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तो से पत्तल दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोडा कि इन्ही के बनाए गये पत्तल दोनीयो से देवताओ के पुजन सम्पन्न होगे...


★ कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए थोड़ा कि इन्ही के द्वारा दिये गये जल से देवताओ के पुजन होगें...


★ बिश्वकर्मा जो लकडी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन चौकी पर ही बैठ कर बर बधू देवताओ का पुजन करेंगे ...


★ फिर वह हिन्दु जो किन्ही कारणो से मुसलमान वन गये थे उन्हे जोडते हुये कहा कि इनके द्वारा सिले गये वस्त्रो जोड़े जामे को ही पहन कर विवाह सम्पन्न होगें...


★ फिर मुसलमान की स्त्री को यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा पहनायी गयी चुणिया ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी...


★ धारीकार जो डाल और मौरी जो दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है को यह कहते हुये जोड़ा की इनके द्वारा बनाये गये उपहारो के बिना देवताओ का आशीर्बाद नही मिल सकता


इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर की महिलाये मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है

और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी...,


ब्राहमणो का कहॉ दोष है....हॉ ब्राहमणो का दोष यही रहा है कि इन्होने अपने उपर लगाये गये निराधार आरोपो का कभी खन्डन नही किया....???


जो ब्राहमणो के अपमान का कारण बन गया इस तरह जब #समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राहमण नाई से पुछता था कि क्या सभी वर्गो की उपस्थिति हो गयी है?


★ नाई के हॉ कहने के बाद ही ब्राहमण मंगल पाठ प्रारम्भ करता था।


ब्राहमणो द्वारा जोड़ने की क्रिया छोड़ा हम लोगो ने और दोष ब्राहमणो पर लगा दिया।


ब्राहमणो को यदि अपना खोया हुआ वह सम्मान प्राप्त करना है तो इन बेकार वक्ताओ के वक्तव्यो पर रोक लगानी होगी ।


देश मे फैले हुये इन साधुओ और ब्रहामण विरोधी ताकतों का विरोध करना होगा जो अपनी अग्यानता को छिपाने के लिये वेद और ब्राहमण की निन्दा करतेे हुये पुर्ण भैतिकता का आनन्द ले रहे है।


महावीर हनुमान जी का बल

 ⚘️⚘ ️महावीर हनुमान जी का बल ⚘️⚘️


शत्रु की आधी शक्ति खींच लेने वाला बाली हनुमान जी से कैसे और क्यों पराजित हो गया?


बाली किष्किंधा का राजा था, वह इंद्र के धर्म पुत्र, वृषराज के जैविक पुत्र, सुग्रीव के बड़े भाई और अंगद के पिता अौर अप्सरा तारा के पति थे, बाली को वरदान प्राप्त था कि जिससे भी वह युद्ध करेगा उसकी आधी शक्ति बाली में समाहित हो जाएगी, बाली इतना बलशाली था कि उसने दुदम्भी नामक राक्षस और उसके भाई का वध कर दिया था, बाली ने लंकापति रावण को अपनी कांख में दबा कर पृथ्वी परिक्रमा की थी, यहां तक कि प्रभु श्री राम ने भी वृक्ष की आड़ लेकर बाली का वध किया था|


बाली का हनुमान जी से हुआ था युद्ध!


बात एक समय की है, बाली अपने बल के घमंड में चूर हो कर नगरों और जंगलो से होता हुआ किष्किंधा जा रहा था और सबको ललकार रहा था "है कोई जो मुझसे युद्ध कर सके है कोई जिसने मां का दूध पिया हो जो मुझसे युद्ध कर सके" पास में ही हनुमान जी प्रभु श्री राम का ध्यान लगाए थे, बाली के चिल्लाने से उनके ध्यान में विध्न पड़ रहा था, उन्होंने बाली से कहा "हे वानरराज आप अत्यंत बलशाली है, आपको कोई नही हरा सकता लेकिन आप इस तरह चिल्ला क्यों रहे है?"


यह सुन कर अहंकार में डूबा हुआ बाली भड़क गया और हनुमान जी को चुनौती देते हुए कहा कि "तू जिसकी पूजा कर रहा है वह भी मुझे नही हरा सकता|"


राम जी का अपमान होता देख हनुमान जी को क्रोध आ गया और उन्होंने बाली की चुनौती स्वीकार कर ली और  निश्चित हुआ कि अगले दिन सूर्योदय होते ही वे दोनों युद्ध करेंगे, अगले दिन हनुमान जी जैसे ही युद्ध के लिए निकले वैसे ही ब्रम्हा जी प्रकट हो गए और हनुमान जी को समझाने लगे कि वे बाली से युद्ध न करें किंतु हनुमान जी ने कहा कि "मैं युद्ध अवश्य करूँगा, क्योंकि बाली ने मेरे प्रभु श्री राम जी को चुनौती दी है|"


यह सुन कर ब्रम्हा जी ने कहा कि ठीक है हनुमान युद्ध के लिए जाओ परंतु अपनी शक्ति का मात्र दसवाँ हिस्सा ही ले कर जाओ, हनुमान जी ने कहा ठीक है फिर हनुमान जी अपनी शक्ति का दसवाँ हिस्सा ले कर बाली से युद्ध करने पहुँच गए, बाली के सामने जाते ही हनुमान जी की आधी शक्ति बाली में समाने लगी तो बाली को अपने अंदर अथाह शक्ति संचार का आभास हुआ, उसे लगा कि उसकी नसें फटने को है, शरीर मे भीषण दबाव का अनुभव होने लगा, उसी समय ब्रम्हा जी प्रकट हुए और बाली से कहा कि "यदि अपने प्राण बचाना चाहते हो तो तत्क्षण हनुमान से हजार कोस दूर भाग जाओ अन्यथा  तुम्हारा शरीर फट जाएगा|"


यह सुनते ही बाली वहाँ से हजार कोस दूर भाग गया तब उसे राहत मिली, उसने इसका कारण ब्रम्हा जी से पूछा तो ब्रम्हा जी ने बताया "यूं तो तुम बहुत शक्तिशाली हो लेकिन तुम्हारा शरीर हनुमान जी की शक्ति का एक छोटा सा हिस्सा भी नही सम्हाल पा रहा है, तुम्हे बता दूं कि हनुमान अपनी शक्ति का केवल दसवाँ हिस्सा ही ले कर तुमसे युद्ध करने आये थे, सोचो यदि सम्पूर्ण भाग ले कर आते तो तुम्हारा क्या होता|"


यह सुन कर बाली चकित रह गया और हनुमान जी को दंडवत प्रणाम कर के बोला कि "इतना अथाह बल होते हुए भी आप कितना शांत रहते है और सदा राम भजन में खोए रहते है, मैं कितना बड़ा मूर्ख था जो आपको ललकार बैठा, मैं तो आपकी शक्ति के एक बाल के बराबर भी नही मुझे क्षमा कर दीजिए|"


रामायण में वर्णित मुख्य स्थान

 रामायण में वर्णित मुख्य स्थान:-


1 तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी, यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की|

 

2 श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था, यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था, श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है|

 

3 कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे|

 

4 प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे, कुछ महीने पहले तक प्रयाग को इलाहाबाद कहा जाता था|

 

5 चित्रकूट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट, चित्रकूट वह स्थान है जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते है, तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है, भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते है|

 

6 सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था, हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था|

 

7 दंडकारण्य : चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए, असल में यहीं था उनका वनवास, इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था, दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल है| दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था, इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम, गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे, स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे, ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है|

 

8 पंचवटी नासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए, यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है, यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी, राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी, वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है|

 

9 सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था, जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है, जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है, इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया, रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था, इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी|

 

10 पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है, रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते है, पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है, मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था, हालांकि कुछ मानते है कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था, इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी, इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है, यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है|

 

11 तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए, तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए|

 

12 शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में, जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे, रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है, शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा, 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है, इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है, केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है|

 

13 ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े, यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया, ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था, ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है, पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है, इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे|

 

14 कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े, तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है, कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है, यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया, लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया|

 

15 रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है, रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है, महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी, रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है|

 

16 धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो, उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया, धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है, धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है, धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है|

 

इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है, इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है, धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है|

 

17 'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था, 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते है, यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते है जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है|

 

श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित #रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है, आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि #रामायण में वर्णित किए गए है|



सनातन धर्म के 13 सुत्र

 . 🕉️  सनातन धर्म के 13 सुत्र 🚩

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      1️⃣.प्रश्न :- तुम कौन हो...?          

                उत्तर :- भारतीय / आर्य ।

      2️⃣. प्रश्न :- तुम्हारा धर्म क्या है...?            

               उत्तर :- सत्य सनातन वैदिक धर्म ।

      3️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म ग्रंथ क्या है...?   

               उत्तर :- चार वेद, चार उपवेद, चार ब्राह्मण ग्रंथ, छ: वेदांग, ग्यारह उपनिषद, छ: दर्शन शास्त्र, मनुस्मृति, बाल्मिक रामायण, व्यास कृत महाभारत, ऋगवेदादिभाष्यभूमिका।

      4️⃣. प्रश्न:- तुम्हारे ईश्वर का मुख्य नाम क्या है ...?

            उत्तर :- ईश्वर का मुख्य नाम ओ३म् है !

      5️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का चिन्ह क्या है...?

              उत्तर :- चौटी और जनेऊ है।

      6️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म की प्रथम आज्ञा क्या है...?

             उत्तर :- सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।

      आचारस्य प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः॥

   अर्थात सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय ( स्वयं को धर्म पुस्तकों अनुसार पढने में ) में आलस्य मत करो। अपने श्रेष्ठ कर्मों से साधक को कभी मन नहीं चुराना चाहिए।

      7️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का मूलमंत्र क्या है...?

             उत्तर :- वेदों का मूल मंत्र गायत्री हैं।

             ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं 

    भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

   भावार्थ :- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

      8️⃣. प्रश्न :- तुम्हरी जीवन यात्रा क्या है...?

               उत्तर :- योग से मोक्ष तक पहुँचना ।  

      9️⃣ प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का कर्म क्या है....?

              उत्तर :- ऋषियों ने ये बोध कराने हेतु पाँच महायज्ञों का विधान किया।

      १. ब्रह्मयज्ञ = सन्ध्या व वेद स्वाध्याय ।

      २. देवयज्ञ = अग्निहोत्र ।

      ३. पितृयज्ञ = माता-पिता की सेवा ।

      ४. अतिथियज्ञ = घर आए विद्वानों की सेवा ।

      ५. बलिवैश्वदेव यज्ञ = सहयोगी प्राणियों पशु आदि की सेवा।

      🔟. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का सिद्धांत क्या है...?

           उत्तर :- वसुधैव कुटुम्बकम्‌'। सारी पृथ्वी एक कुटुंब/परिवार के समान।” तथा विश्व का कल्याण हो !

      1️⃣1️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म के लक्षण क्या है...?

             उत्तर :- दस लक्षण हैं।....

   धर्ति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचम् इन्द्रियनिग्रह        

      धीविर्द्दया सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।   

   १.धृति सुख, दुःख , हानि, लाभ, मान, अपमान मे धैर्य रखना!

   २.क्षमा- शरीर मे सामर्थ्य होने पर भी बुराई का प्रतिकार न करना या बदला न लेना क्षमा है।

   ३.दम-मन मे अच्छी बातो का चिंतन करना बुरी बातों को दबाना हटाना !

   ४.अस्तेय-बिना दूसरे की आज्ञा के कोई वस्तु न लेना चोरी न करना !

   ५.शौच-शरीर की आत्मिक और शारीरिक शुद्धि रखना!

   ६-इन्द्रियनिग्रह हाथ, पांव, आंख, मुख, नाक आदिको अच्छे कार्यो मे लगाना।इन्द्रियों को संयम में रखना।

   ७.धी-बुद्धि बढाने हेतू प्रयत्न करना!

   ८.विद्या-ईश्वर द्वारा बनाये गए प्रत्येक पदार्थ का ज्ञान प्राप्त करना तथा उनसे उपयोग लेना!

   ९.सत्य-जो हम जानते है उसको वैसा ही अपने द्वारा कहना मानना सत्य कहलाता है। हमेशा सत्य ही बोलना।

   १०.अक्रोध-इच्छा से उत्पन्न क्रोध !

      1️⃣2️⃣.प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का उदेश्य क्या है।

             उत्तर :- कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है - विश्व को आर्य ( श्रेष्ठ /उत्तम) बनाते चलो।

      1️⃣3️⃣. प्रश्न:- तुम्हारी धार्मिक नीति क्या है !

          उत्तर :- अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l" अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है।

   धर्म की जय हो,

       अधर्म का नाश हो,

          प्राणियों मे सद्भावना हो, 

              विश्व का कल्याण हो---

                   ~~~हर हर महादेव~~~

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कुछ हिन्दू मंत्र जिसे हमें अवश्य पढ़ना चाहिए

 और कुछ भले ना जानते हो परंतु ये 14 मंत्र जो....हर हिंदू को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए,


1. महादेव

          ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, 

           सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,

           उर्वारुकमिव बन्धनान्,

           मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!


2. श्री गणेश

              वक्रतुंड महाकाय, 

              सूर्य कोटि समप्रभ 

              निर्विघ्नम कुरू मे देव,

              सर्वकार्येषु सर्वदा !!


3. श्री हरि विष्णु

           मङ्गलम् भगवान विष्णुः,

           मङ्गलम् गरुणध्वजः।

           मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः,

           मङ्गलाय तनो हरिः॥


4. श्री ब्रह्मा जी

             ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा,

              नमस्ते परमात्ने ।

              निर्गुणाय नमस्तुभ्यं,

              सदुयाय नमो नम:।।


5. श्री कृष्ण

               वसुदेवसुतं देवं,

               कंसचाणूरमर्दनम्।

               देवकी परमानन्दं,

               कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।


6. श्री राम

              श्री रामाय रामभद्राय,

               रामचन्द्राय वेधसे ।

               रघुनाथाय नाथाय,

               सीताया पतये नमः !


7. मां दुर्गा

            ॐ जयंती मंगला काली,

            भद्रकाली कपालिनी ।

            दुर्गा क्षमा शिवा धात्री,

            स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।


8. मां महालक्ष्मी

            ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,

            धन धान्यः सुतान्वितः ।

            मनुष्यो मत्प्रसादेन,

            भविष्यति न संशयःॐ ।


9. मां सरस्वती

            ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं,

             वरदे कामरूपिणि।

             विद्यारम्भं करिष्यामि,

             सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।


10. मां महाकाली

             ॐ क्रीं क्रीं क्रीं,

             हलीं ह्रीं खं स्फोटय,

             क्रीं क्रीं क्रीं फट !!


11. हनुमान जी

          मनोजवं मारुततुल्यवेगं,

          जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

          वातात्मजं वानरयूथमुख्यं,

          श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥


12. श्री शनि देव

             ॐ नीलांजनसमाभासं,

              रविपुत्रं यमाग्रजम ।

              छायामार्तण्डसम्भूतं, 

              तं नमामि शनैश्चरम् ||


13. श्री कार्तिकेय 

        ॐ शारवाना-भावाया नम:,

         ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा ,

         वल्लीईकल्याणा सुंदरा।

          देवसेना मन: कांता,

          कार्तिकेया नामोस्तुते ।


14. श्री काल भैरव

          ॐ ह्रीं वां बटुकाये,


*15 मंत्र जो हर हिंदू को सीखना चाहिए।* 👇👇👇


1. *श्री महादेव जी*

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!


2. *श्री गणेश जी*


वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ 

निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा!!


3. *श्री हरी विष्णु जी*


मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥


4. *श्री ब्रह्मा जी*


ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा नमस्ते परमात्ने।

निर्गुणाय नमस्तुभ्यं सदुयाय नमो नम:।।


5. *श्री कृष्ण जी*


वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।।


6. *श्री राम जी*


श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः !


7. *मां दुर्गा जी*


ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते


8. *मां महालक्ष्मी जी*


ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।


9. *मां सरस्वती*


ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।


10. *मां महाकाली*


ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हलीं ह्रीं खं स्फोटय क्रीं 

क्रीं क्रीं फट !!


11. *श्री हनुमान जी*


मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥


12. *श्री शनिदेव जी*


ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||


13. *श्री कार्तिकेय*


ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते


14. *काल भैरव*


ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा


15. *गायत्री मंत्र*


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟

          क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये,

          कुरु कुरु बटुकाये,

          ह्रीं बटुकाये स्वाहा।


 खुद भी सीखे और परिवार / बच्चों को भी सिखाये। और जिन्हें याद हैं बहुत अच्छा । किसी भी तरह याद करें सुबह शाम घर पर करें।

विज्ञान नहीं मानेगा, पर यह हैं आठ चिरंजीवी हैं

 विज्ञान नहीं मानेगा, पर यह हैं आठ चिरंजीवी हैं,,,,,,


हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आओ जानते हैं कि हिंदू धर्म अनुसार कौन से हैं यह सात जीवित महामानव।


अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।

कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।

जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।


अर्थात इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।


प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है।


१. हनुमान - कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं और हनुमानजी भी इन अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। अजर-अमर का अर्थ है कि जिसे ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा शक्ति का स्रोत माना गया है क्योंकि वे चीरयुवा हैं।


२. कृपाचार्य- महाभारत के अनुसार कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने भी पांडवों के विरुद्ध कौरवों का साथ दिया था।


३. अश्वथामा- ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।


अश्वथाम के संबंध में प्रचलित मान्यता... मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक किला है। इसे असीरगढ़ का किला कहते हैं। इस किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।


४. ऋषि मार्कण्डेय- भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए।


५. विभीषण- राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया।


६. राजा बलि- शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे।


७. ऋषि व्यास- ऋषि भी अष्ट चिरंजीवी हैँ और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना भी की थी। महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही की गई है। इन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।


८. परशुराम- भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था। 


परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना फरसा (एक हथियार) दिया था। इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे।

गीता जयंती विशेष

 गीता जयंती विशेष 

हिंदू धर्म मे चार वेद हैं और इन चारों वेद का सार गीता में है। यही कारण है कि गीता को हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र धर्मग्रंथ माना गया है। माना जाता है कि गीता को स्पर्श करने के बाद इंसान झूठ नहीं बोलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में खड़े होकर गीता का ज्ञान दिया था और श्रीकृष्ण और अजुर्न संवाद के नाम से ही इसे जाना जाता है। भले ही गीता का ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था, लेकिन अर्जुन के माध्यम से ही उन्होंने संपूर्ण जगत को यह ज्ञान दिया था।

श्रीकृष्ण के गुरु घोर अंगिरस थे दिया था और उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सर्वप्रथम गीता का उपदेश दिया था और इसी उपदेश को भगवान ने अर्जुन को दिया था। गीता द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के समय रणभूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा कही गई थी, लेकिन इस वचनामृत की प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है। हममे से बहुत लोग गीता के बारे में केवल इतना ही जानते हैं कि ये एक धर्म ग्रंथ है

गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म से जुड़ी कई ऐसे बातें बताई गईं है जो मनुष्य के लिए हर युग में महत्वपूर्ण हैं। गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है। गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकास क्रम, हिन्दू संदेशवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म-कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी-देवता, उपासना, प्रार्थना, यम-नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्वजन्म, प्रारब्ध, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है। गीता का मुख्य ज्ञान श्रेष्ठ मानव बनना, ईश्वर को समझना और मोक्ष की प्राप्ति है।

गीता में लिखा है, क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क मरता है तो मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है और उसका पतन शुरू हो जाता है। इस आधार पर कई ज्ञान और बुद्धि को खोलने वाली बातें लिखी हैं।

Tuesday, November 15, 2022

ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर क्या है

 ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर क्या है


ऋषि वैदिक परंपरा से लिया गया शब्द है जिसे श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने वाले लोगों के लिए प्रयोग किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वैसे व्यक्ति जो अपने विशिष्ट और विलक्षण एकाग्रता के बल पर वैदिक परंपरा का अध्ययन किये और विलक्षण शब्दों के दर्शन किये और उनके गूढ़ अर्थों को जाना और प्राणी मात्र के कल्याण हेतु उस ज्ञान को लिखकर प्रकट किये ऋषि कहलाये। ऋषियों के लिए इसी लिए कहा गया है "ऋषि: तु मन्त्र द्रष्टारा : न तु कर्तार : अर्थात ऋषि मंत्र को देखने वाले हैं न कि उस मन्त्र की रचना करने वाले। हालाँकि कुछ स्थानों पर ऋषियों को वैदिक ऋचाओं की रचना करने वाले के रूप में भी व्यक्त किया गया है। 


ऋषि शब्द का अर्थ


ऋषि शब्द "ऋष" मूल से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ देखना होता है। इसके अतिरिक्त ऋषियों के प्रकाशित कृत्य को आर्ष कहा जाता है जो इसी मूल शब्द की उत्पत्ति है। दृष्टि यानि नज़र भी ऋष से ही उत्पन्न हुआ है। प्राचीन ऋषियों को युग द्रष्टा माना जाता था और माना जाता था कि वे अपने आत्मज्ञान का दर्शन कर लिए हैं। ऋषियों के सम्बन्ध में मान्यता थी कि वे अपने योग से परमात्मा को उपलब्ध हो जाते थे और जड़ के साथ साथ चैतन्य को भी देखने में समर्थ होते थे। वे भौतिक पदार्थ के साथ साथ उसके पीछे छिपी ऊर्जा को भी देखने में सक्षम होते थे। 


ऋषियों के प्रकार


ऋषि वैदिक संस्कृत भाषा से उत्पन्न शब्द माना जाता है। अतः यह शब्द वैदिक परंपरा का बोध कराता है जिसमे एक ऋषि को सर्वोच्च माना जाता है अर्थात ऋषि का स्थान तपस्वी और योगी से श्रेष्ठ होता है। अमरसिंहा द्वारा संकलित प्रसिद्ध संस्कृत समानार्थी शब्दकोष के अनुसार ऋषि सात प्रकार के होते हैं ब्रह्मऋषि, देवर्षि, महर्षि, परमऋषि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि। 


सप्त ऋषि


पुराणों में सप्त ऋषियों का केतु, पुलह, पुलत्स्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ठ और भृगु का वर्णन है। इसी तरह अन्य स्थान पर सप्त ऋषियों की एक अन्य सूचि मिलती है जिसमे अत्रि, भृगु, कौत्स, वशिष्ठ, गौतम, कश्यप और अंगिरस तथा दूसरी में कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भरद्वाज को सप्त ऋषि कहा गया है। 


मुनि किसे कहते हैं


मुनि भी एक तरह के ऋषि ही होते थे किन्तु उनमें राग द्वेष का आभाव होता था। भगवत गीता में मुनियों के बारे में कहा गया

Saturday, November 5, 2022

महाभारत

 

पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -
1. युधिष्ठिर    2. भीम    3. अर्जुन
4. नकुल।      5. सहदेव

( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )

यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन
की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।

वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..
कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -
1. दुर्योधन      2. दुःशासन   3. दुःसह
4. दुःशल        5. जलसंघ    6. सम
7. सह            8. विंद         9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष       11. सुबाहु।   12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण।   14. दुर्मुख     15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण     17. शल       18. सत्वान
19. सुलोचन   20. चित्र       21. उपचित्र
22. चित्राक्ष     23. चारुचित्र 24. शरासन
25. दुर्मद।       26. दुर्विगाह  27. विवित्सु
28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द।        32. उपनन्द   33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा    35. सुवर्मा    36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु   38. महाबाहु  39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग  42. भीमबल
43. बालाकि    44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण       47. कुण्डधर  48. महोदर
49. चित्रायुध   50. निषंगी     51. पाशी
52. वृन्दारक   53. दृढ़वर्मा    54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति  56. अनूदर    57. दढ़संघ 58. जरासंघ   59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा   62. उग्रसेन     63. सेनानी
64. दुष्पराजय        65. अपराजित 
66. कुण्डशायी        67. विशालाक्ष
68. दुराधर   69. दृढ़हस्त    70. सुहस्त
71. वातवेग  72. सुवर्च    73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी   75. नागदत्त 76. उग्रशायी
77. कवचि    78. क्रथन। 79. कुण्डी 
80. भीमविक्र 81. धनुर्धर  82. वीरबाहु
83. अलोलुप  84. अभय  85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय    87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी।     89. विरवि
90. चित्रकुण्डल    91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि    93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान     95. दीर्घबाहु
96. सुजात।         97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी        99. विरज
100. युयुत्सु

( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,
जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )

"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-

ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई। 

ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।

ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी 

ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है। 

ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा 
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85 
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद

अधूरा ज्ञान खतरना होता है।

33 करोड नहीँ  33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।

कोटि = प्रकार। 
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,

कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।

हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...

कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-

12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!

8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।

11 प्रकार है :- 
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।

एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।

कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी 

अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है
तो इस जानकारी को अधिक से अधिक
लोगो तक पहुचाएं। ।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
१ हिन्दु हाेने के नाते जानना ज़रूरी है

This is very good information for all of us ... जय श्रीकृष्ण ...

अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाएँ ......

अपनी भारत की संस्कृति 
को पहचाने.
ज्यादा से ज्यादा
लोगो तक पहुचाये. 
खासकर अपने बच्चो को बताए 
क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा...

📜😇  दो पक्ष-

कृष्ण पक्ष , 
शुक्ल पक्ष !

📜😇  तीन ऋण -

देव ऋण , 
पितृ ऋण , 
ऋषि ऋण !

📜😇   चार युग -

सतयुग , 
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग , 
कलियुग !

📜😇  चार धाम -

द्वारिका , 
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी , 
रामेश्वरम धाम !

📜😇   चारपीठ -

शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम ) 
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) , 
शृंगेरीपीठ !

📜😇 चार वेद-

ऋग्वेद , 
अथर्वेद , 
यजुर्वेद , 
सामवेद !

📜😇  चार आश्रम -

ब्रह्मचर्य , 
गृहस्थ , 
वानप्रस्थ , 
संन्यास !

📜😇 चार अंतःकरण -

मन , 
बुद्धि , 
चित्त , 
अहंकार !

📜😇  पञ्च गव्य -

गाय का घी , 
दूध , 
दही ,
गोमूत्र , 
गोबर !

📜😇  पञ्च देव -

गणेश , 
विष्णु , 
शिव , 
देवी ,
सूर्य !

📜😇 पंच तत्त्व -

पृथ्वी ,
जल , 
अग्नि , 
वायु , 
आकाश !

📜😇  छह दर्शन -

वैशेषिक , 
न्याय , 
सांख्य ,
योग , 
पूर्व मिसांसा , 
दक्षिण मिसांसा !

📜😇  सप्त ऋषि -

विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज , 
गौतम , 
अत्री , 
वशिष्ठ और कश्यप! 

📜😇  सप्त पुरी -

अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी , 
माया पुरी ( हरिद्वार ) , 
काशी ,
कांची 
( शिन कांची - विष्णु कांची ) , 
अवंतिका और 
द्वारिका पुरी !

📜😊  आठ योग - 

यम , 
नियम , 
आसन ,
प्राणायाम , 
प्रत्याहार , 
धारणा , 
ध्यान एवं 
समािध !

📜😇 आठ लक्ष्मी -

आग्घ , 
विद्या , 
सौभाग्य ,
अमृत , 
काम , 
सत्य , 
भोग ,एवं 
योग लक्ष्मी !

📜😇 नव दुर्गा --

शैल पुत्री , 
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा , 
कुष्मांडा , 
स्कंदमाता , 
कात्यायिनी ,
कालरात्रि , 
महागौरी एवं 
सिद्धिदात्री !

📜😇   दस दिशाएं -

पूर्व , 
पश्चिम , 
उत्तर , 
दक्षिण ,
ईशान , 
नैऋत्य , 
वायव्य , 
अग्नि 
आकाश एवं 
पाताल !

📜😇  मुख्य ११ अवतार -

 मत्स्य , 
कच्छप , 
वराह ,
नरसिंह , 
वामन , 
परशुराम ,
श्री राम , 
कृष्ण , 
बलराम , 
बुद्ध , 
एवं कल्कि !

📜😇 बारह मास - 

चैत्र , 
वैशाख , 
ज्येष्ठ ,
अषाढ , 
श्रावण , 
भाद्रपद , 
अश्विन , 
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष , 
पौष , 
माघ , 
फागुन !

📜😇  बारह राशी - 

मेष , 
वृषभ , 
मिथुन ,
कर्क , 
सिंह , 
कन्या , 
तुला , 
वृश्चिक , 
धनु , 
मकर , 
कुंभ , 
मीन!

📜😇 बारह ज्योतिर्लिंग - 

सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल , 
ओमकारेश्वर , 
बैजनाथ , 
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ , 
त्र्यंबकेश्वर , 
केदारनाथ , 
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !

📜😇 पंद्रह तिथियाँ - 

प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी , 
पंचमी , 
षष्ठी , 
सप्तमी , 
अष्टमी , 
नवमी ,
दशमी , 
एकादशी , 
द्वादशी , 
त्रयोदशी , 
चतुर्दशी , 
पूर्णिमा , 
अमावास्या !

📜😇 स्मृतियां - 

मनु , 
विष्णु , 
अत्री , 
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना , 
अंगीरा , 
यम , 
आपस्तम्ब , 
सर्वत ,
कात्यायन , 
ब्रहस्पति , 
पराशर , 
व्यास , 
शांख्य ,
लिखित , 
दक्ष , 
शातातप , 
वशिष्ठ !

******************* ***

इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी संस्कृति का ज्ञान हो।

घृणा और हिन् भावना

 झुकने की आदत डालो कोशिशे होती चली जायेगी...दोस्तों आज मैं बात करूँगा हिन् भावना और घृणा करने वाले वय्क्ति के बारे में और जानगे की हमें इससे लाभ है या हानि...चलिये आगे चलते हैं...


दोस्तों जब मानव अपना मानवता खो देता है तब पैदा होती हैं घृणा और हिन् भावना जैसी बीमारी...जिसका भोगी खुद इंसान को ही भुगतना पड़ता है...हम इंसान उन सारी समस्याओ से छुट-करा पा सकते है...जैसे आर्थिक,सामाजिक,पारिवारिक,व्यपारीक...मगर मेरे दोस्त शारीरिक समस्याए नहीं टाली जाती वो स्वयम् ही झेलना पड़ता है...जिसका कारण होता है इंसान का केवल हिन् भावना और घृणा...इस लिए की मेरे दोस्त ये बात राम ने अपने छोटे भर्ता लक्ष्मण से कहा था सबरी के घर बेर खाते समय...अगर आप बदलना चाहते है तो सबसे पहले अपनी सोंच और नजरिया को बदलिए आपको बदलने की जरुरत नहीं पड़ेगी...


हमें पाने की इक्षा तो उन्हें भी है क्या करे जाहिर करने में शर्म जो आता है...पर अफ़सोस इस बात का करते है की हमने बेवफाई करके जिंदगी में बहुत बड़ी भूल कर दी...सायद उसी का ये खूबसूरत सजा है...अब उनको समझ में आता है किस्मत बदले या ना बदले पर वो लोग किस्मत खुद बनाते है जो खुद को सही तरीके से बदलना जानते है...


Don't try to be like me...since i hate from it...i keep best wish for all who those having the greatest graceful for one other, your glorious choice must be to be superior to me...


वो लोग गुनहगार होते जिनके पैर काँटों पे पड़ते हैं...कांटे बेकसूर होते हैं दोस्त खता हम करते है वो  तो बेचारा अपनी जगह पे था चल कर तो हम खुद गए थे...This is my best for my wish...क्षमता और रूचि की limitation आपके सोंच पे भी निर्भर करता है...चुकी मेरे दोस्त सोंच की कोई अवधि नहीं होती...हम जो सोंचगे वो हो ना हो  हो भी जाए...नहीं हुआ तो कोई बात नहीं...करने का तजुर्बा जो मिला...


Have a lovely night to you all FB Friends...

इंसान की भावना

चलिये आज हम जानते है भगवान... इंसान की भावना और मन को कैसे परखता है...


एक वय्क्ति था वो भगवान प्रति अती आदर्स, आदरणीय और पूजनीय था । एक दिन भगवान उसके पूजा और आरती को देख बहुत प्रसन और आकर्षीत हुये और  ऋषिमुनि के भेस में उसके सामने प्रकट हुये...बोले...बोलो सेवक तुम्हे क्या चाहिए या तुम्हारी इक्षा क्या है...वय्क्ति खुश होते हुए कहा हे प्रभु मेरा पूरा घर हिरे और मोती, सोना और चाँदी से परीपूर्ण कर दे...भगवान ने आशीर्वाद दिया पूर्ण होगा सेवक...और चल दिए...फिर दूसरे दिन भगवान ने भिखारी के रूप में उसके घर आये...और उस वय्क्ति से कहा...मुझे कुछ खाने और पिने के दे दो...उस वय्क्ति ने उत्तर में ये कहा...घर में फूटी भांग धतूर तक नहीं है तो आपको कँहा से खिलाऊ और पिलाऊँ...इसके समक्ष भगवान ने उत्तर दिया...जो तुम कह रहे हो वो संच हो और इतना कह कर चले गए...ओ आदमी जब घर में आया तो पाया की सारा जगह भांग और धतूरा ही था...इस लिए मेरे दोस्त हिन् भावना और पापी मन कभी भी सकून और सुख भरी जिंदगी नहीं जी सकता...


If you might not be positive then at least be quite...whatever you decide to do make sure...will it make you happy...? Experience is the name everyone gives to their mistakes...friends everyone wannas to change the world but no one thinks of changing himself...


जो आपको तकलीफ में पड़े देखकर रो पड़े...उस से ज्यादा आपके लिए Perfect कोई और नही हो सकता...शिक्षित और ज्ञानी ही जीवन का आनंद लेते है...ज़्यादा समझदार व्यक्ति को हमेशा उलझे हुऐ ही देखा है मैंने...सफलता 1 दिन में नही मिलती मगर...ठान लो तो 1 न 1 दिन जरूर मिलती है 


दिल के सच्चे लोग कुछ एहसास लिखते है...मामूली शब्द ही सही पर कुछ खास और लाजबाब लिखते है ...

जी भर के चाहने वालों का भी एक दिन जी भर जाता है मेरे दोस्त...ज़माना कुछ भी कहे,उसका एहतेराम/एतवार कभी मत करना...जिसे ज़मीर ना माने,वैसे जमीर को कभी सलाम भी मत करना...


शुभ संध्या मित्रो...आपलोगों का हर सपना पूरा हो जिसे आप सभी दिल से चाहते हैं...यही है मेरे दिल तमन्ना और खोइस...

इंसान का कोई दुश्मन होता है

 It's special to those public who suppose themselves they are the best...


WHAT HE SAID LORD KRISHNA, THE TOTAL CONCEPT WE SEEMS IN ALL RELIGIOUU. THAT IS THE GREATNESS OF '"BHAGHAVATGEETA"


इंसान का कोई दुश्मन होता है

तो वो है,उसका मन...जिस इंसान ने मन को वश में कर लिया...वो इंसान महान बनकर...ईश दुनिया मे, अपनी अच्छी छवि से पहचाना जाता है...अर्थात यदि हमें अपने सपने को  जीना है ,तो प्रबल इच्छाशक्ति...दृढ़ निश्चय व निश्छल भाव से  कठिन परिश्रम करना होगा...


अगर लोग जरूरत पर ही

आपको याद करते है तो उन्हें गलत मत समझिये क्योंकि मेरे दोस्त...आप जिन्दगी की वो किरण हैं जो उन्हें सिर्फ अन्धेरों में ही दिखाई देती है....कड़वी बाते जो लोग आपसे आपके प्रति करते है तो बुरा मत मानना बल्कि उनको आदर और सम्मान पूर्वक इज्जत देना...क्यंकि मेरे दोस्त ये वो बाते होती है जो आप से नहीं हो सकता उसे आपसे करवा के दिखती है...


एक अच्छा शिक्षक वही होता है जिसके अंदर के एक छात्र होने का छबि कभी नहीं मरता हो...जितना मन से पवित्र रहोगे उतना ही भगवान के करीब रहोगे और भगवान की कृपा तुम्हारे करीब...क्यूंकि मेरे दोस्त सदैव भगवान का वास् पवित्रता में ही होता है


Have a gorgeous night & gleaming dream... Friends

अभिमानी थे भीष्मपितामा

अभिमानी थे भीष्मपितामा और अहंकारी थे गुरु द्रोणाचार्य...कैसे...आइए आज मैं बताता हूँ...जब गुरु द्रोणा जी ने एकलबेए से अपनी नाम की उपाधि के वास्ते उसका अंगूठा मागे थे ये उनका अहंकार था जिसके वजह से... जिसको उन्हों ने वेद और शात्र का ज्ञान दिया या बहुत मानते थे...दोस्त वही शिष्य उनके जीवन का अंत किया...ये है अहंकार का अंजाम...अब चलिये भीष्मपितामा के पास...इन्होंने अपने पिता मोह के पक्ष में एक ऐसा सपत ले लिया जो उनको नहीं लेना चाहिये था...हस्तिनापुर के साम्राज्य और जायजाद का विभाजन न करने की सोंच...जिसके वजह से जो पोता उनका सबसे अजीज हुआ करता था...उसने ही उनको अपनी बाण से मुरक्षित किया था...ये है अभिमान का दृस्य...ईमानदारी से बेहतर कोई और दूसरी निति नहीं होती मेरे दोस्त...


Caste is not a physical object like a wall of bricks or a line of barbed wire which prevents the Hindus from co-mingling and which has...therefore, to be pulled down...Caste is a notion...it is a state of the mind...An ideal society should be mobile...should be full of channels for conveying a change taking place in one part to other parts...In an ideal society...there should be many interests consciously communicated and shared...


अपने आप को पढे...आप से बेहतर अभी तक न ही कोई किताब लिखी गई है और न ही कोई लिख सकता है...इस लिए स्वम को समझे...समस्याओ के समाधान के बारे में नहीं सोंचना पड़ेगा...परिवर्तन से घबराना और परिश्रम और प्रयत्न से कतराना कायरता की सबसे बड़ी पहचान होती है...तिनके को सहारे की जरुरत नहीं होती...डर की फिकर नाव को होता...डर आपको तभी डरा सकता है जब गलत हो...परंतु यदि आप सही है तो वो डर आपके डर से है भाग जायेगा...


आप ये जान कर हैरान रह जायँगे...बहुत सूंदर,अति सूंदर और अति उत्तम में जमी आसमा का फर्क है...दोस्त इन जैसे शब्दों को समझने के लीये हर एक इंसान को हर एक वय्क्ति के प्रति अच्छी feelings & imagination रखनी पड़ती है...तब कही जाकर इन सब वस्तुओ का आनंद लेने में हम सफल होते है...दोस्त now & always remember it Best efforts Better thinking....


शुभ शंध्या दोस्तों...