मेरे लिए मेरी दुनिया तेरी यादें है...
दोस्त तुम्हारा तो पता नहीं मगर मेरा,दिल बहुत तरसता है तुमसे बात करने के लिए...दिल से आज भी दुआ निकलती है उसके लिए,जिसने मुझे दिल से निकाल दिया दोस्त...मैं बिछड़ कर तुझसे इसलिये भी नहीं रोया,कि तेरे बाद मेरे इन आंसुओं को सहारा कौन देता दोस्त...एक जख़्म ऐसा भी मिला जिंदगी में,किसी ने जान भी ले ली और जिंदा भी छोड़ दिया दोस्त...कुछ इस तरह से हमारी बातें कम हो गई ,कैसे हो पर शुरू और ठीक हूं पर खत्म हो गई दोस्त...हम दोनो को हम जैसे बहुत मिलेंगे,बस हम दोनो को हम दोनो कभी नहीं मिलेगें दोस्त...झूठ बोलते थे फिर भी दिल के सच्चे थे हम,ये उन दिनो की बात है जब बच्चे थे हम दोस्त...बहुत कुछ ही नहीं सब कुछ खोया है मैने,बस थोड़ा सा तेरा प्यार पाने के लिए दोस्त...सुकून देता है मुझे तेरा हर एहसास,मेरे लिए मेरी दुनिया तेरी यादें है दोस्त...सिसकियां लेता है वजूद मेरा, कुछ इस कदर नोच खा गई यादें तेरी दोस्त...वक्त के साथ घाव भर तो जाते हैं,लेकिन हादसे का शोर उम्र भर पीछा करता है दोस्त...आज भी मेरा दिल रोता है,जब जब तेरी बेवफ़ाई का अहसास होता है दोस्त...कुछ दर्द हमें अकेले ही झेलने होते हैं,जिंदगी का एकान्त बांटने कोई नहीं आता है दोस्त...तुमने देखे होंगे हजारों ख्वाब,हमने हर ख्वाब में सिर्फ तुमको देखा है दोस्त...मुझे थम जाना था बस तुम पर ही,किसी और बेहतर की तलाश नहीं थी मुझे दोस्त...फैसला करना था तुमने तो तमाम उम्र के लिए फासला कर लिया दोस्त...सारी दुनियाँ से मुलाक़ात एक तरफ,तेरे साथ बैठना और तुझे देखना एक तरफ दोस्त...इश्क़ वो लोग भी करते है दोस्त,जिनकी मुलाकातें कभी नही होती...उदास हूं तन्हा हूं अकेला हूं, शायद इसलिए अभी तक जिंदा हूं दोस्त...न जाने क्या सोंचकर फरेब किया उसने, जिंदगी समझ कर जिसके साथ खड़े थे हम दोस्त...जमाने लगते हैं सुबह होने में,जिन्हें रात को नींद नही आती दोस्त...जो रुला सकते हैं,वो हकीकत में भुला भी सकते हैं दोस्त...वो इश्क ही क्या जो किसी के चेहरे से हो,मज़ा तो तब है मोहब्बत किसी की बातों से हो दोस्त...एक उम्र में आकर समझ आया,क़ी क्यूँ लोग अकेले रहना पसंद करते हैं दोस्त...हमारे पास सिर्फ तुम्हारी यादें हैं,जिंदगी उन्हें मुबारक जिनके पास तुम हो दोस्त...रिश्ता चाहे जो भी हो, उसका पासवर्ड सिर्फ भरोसा होता है दोस्त...जिसके दम से थी रौनक मेरी तहरीरों में,वही एक शख़्स नहीं था मेरे हाथ की लकीरों में दोस्त...तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है,झुका हुवा हर सख्श बेचारा नहीं होता दोस्त...जलील होने के बाद समझ आता है,जज्बात की कोई अहमियत नहीं होती दोस्त...राज