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Wednesday, February 24, 2021
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #कुछ_वर्गों_के_लिए_विशेष_उपबंध
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#कुछ_वर्गों_के_लिए_विशेष_उपबंध
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, एंग्लो– इंडियन और पिछड़ी जातियों के हितों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 330 से 342 में विशेष प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 330 और 332 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण के बारे में है। अनुच्छेद 330 लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में ऐसी जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या वहां की जनसंख्या के आधार पर होगी।
इसी प्रकार, अनुच्छेद 332 में प्रत्येक राज्य के विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान है। संविधान के 58वें संशोधन अधिनियम 1987 ने संविधान के अनुच्छेद 332 में संशोधन किया। यह अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में "अनुसूचित जनजातियों" के लिए सीटों के आरक्षण के बारे में है।
#संविधान (79वां संशोधन) अधिनियम 1999 :
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं और वे निर्वाचन क्षेत्र के सभी मतदाताओं द्वारा चुने गए हैं। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई अलग मतदाता नहीं हैं। अनुच्छेद 325 में सामान्य मतादाता सूची का स्पष्ट प्रावधान है। इसका अर्थ है कि अनुसूचित जाति और जनजाति का कोई सदस्य चुनाव लड़ सकता है और आरक्षित सीट के अलावा सीट प्राप्त कर सकता है।
अनुच्छेद 335 इस बात को स्पष्ट करता है कि केंद्र या किसी राज्य के मामलों से संबंधित सेवाओं और पदों पर नियुक्ति में प्रशासन की दक्षता को बनाए रखते हुए अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के दावों पर ध्यान दिया जाएगा।
#राष्ट्रीय_अनुसूचित_जाति_और_अनुसूचित
#जनजाति_आयोग :
संविधान (65वां संशोधन) अधिनियम, 1990, ने संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन किया है। संशोधित अनुच्छेद 338 में विशेष अधिकारी की जगह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की बात करता है।
#आयोग_का_गठनः आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यश्र और पांच अन्य सदस्य होंगे। आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
#आयोग_के_कार्य :
▪️संविधान के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों से संबंधित सभी मामलों और किसी भी अन्य कानून या किसी भी अन्य सरकार की जांच और निगरानी करना और ऐसे अधिकारों की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करना।
▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों के हनन के संबंध में विशेष शिकायतों की जांच करना।
▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में हिस्सा लेना और सलाह देना और केंद्र और किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
▪️उन सुरक्षा अधिकारों के बारे में राष्ट्रपति को सालाना रिपोर्ट देना (जब भी जब आयोग को सही लगे)।
▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की रक्षा, कल्याण और सामाजिक आर्थिक विकास के लिए उन अधिकारों और अन्य उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के लिए सिफारिशें करना।
▪️अनुच्छेद 338 में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रपति द्वारा विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है। इस विशेष अधिकारी को इन श्रेणियों को दिए गए अधिकारों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और राष्ट्रपति के निर्देश के अनुसार इन पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट देना।
राष्ट्रपति को ऐसी सभी रिपोर्टों को संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। राष्ट्रपति कभी भी और संविधान के लागू होने के दस वर्ष बाद समाप्ति पर, राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण पर प्रशासन की रिपोर्ट हेतु एक आयोग का गठन कर सकते हैं। केंद्र सरकार के पास राज्य में अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए अनुसूची में निर्धारित दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के लिए राज्य को निर्देश देने का अधिकार है।
#अनुच्छेद_366(2) के अनुसार एंग्लो– इंडियन का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जिसके पिता या उसके कोई भी पुरुष पूर्वज पुरुष पक्ष का हो या यूरोपीय वंश का, लेकिन जो भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर अधिवासित हो या ऐसे राज्य क्षेत्र में उसका जन्म हुआ हो और जिसके माता– पिता भारत में रहते थे और यहां अस्थायी उद्देश्य के लिए नहीं आए थे, एंग्लो– इंडियन कहलाता है।
#अनुच्छेद_340 (1)–पिछड़ा वर्ग, राष्ट्रपति को भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों की स्थितियों की जांच करने के लिए उपयुक्त व्यक्तियों से बने आयोग के गठन का अधिकार है।
#भाषाई_अल्पसंख्यक :
भाषाई अल्पसंख्यक लोगों का वह वर्ग है जिनकी मातृभाषा राज्य के अधिकांश हिस्सों या कुछ हिस्सों में बोली जाने वाली भाषा से अलग होती है। अनुच्छेद 350– ए, भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों की शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर उनकी मातृभाषा में निर्देश देने के लिए सुविधा प्रदान करता है।
अनुच्छेद 347, प्रशासन में बहुसंख्यक भाषा के उपयोग की बात कहता है।
अनुच्छेद 350, प्रत्येक व्यक्ति को केंद्र या राज्य इस्तेमाल की जाने वाली किसी भी भाषा में केंद्र या राज्य के किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी के खिलाफ किसी भी प्रकार के शिकायत के निवारण के लिए अभ्यावेदन जमा करने का अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 350–बी, भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान करता है। इस संविधान के तहत भाषाई अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और उनकी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित समयावधि पर उनको देना, इस विशेष अधिकारी का काम होता है।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#भारत_में_पंचायती_राज_व्यवस्था
पंचायत भारतीय समाज की बुनियादी व्यवस्थाओं में से एक रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं, महात्मा गांधी ने भी पंचायतों और ग्राम गणराज्यों की वकालत की थी। स्वतंत्रता के बाद से, समय– समय पर भारत में पंचायतों के कई प्रावधान किए गए और 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ इसको अंतिम रूप प्राप्त हुआ था.
वर्तमान में हमारे देश में 2.51 लाख पंचायतें हैं, जिनमें 2.39 लाख ग्राम पंचायतें, 6904 ब्लॉक पंचायतें और 589 जिला पंचायतें शामिल हैं. देश में 29 लाख से अधिक पंचायत प्रतिनिधि हैं. भारत में पंचायती राज की स्थापना 24 अप्रैल 1992 से मानी जाती है.
अधिनियम का उद्देश्य पंचायती राज की तीन– स्तरीय व्यवस्था प्रदान करना है, इसमें शामिल हैं–
▪️ग्राम– स्तरीय पंचायत
▪️प्रखंड (ब्लॉक)– स्तरीय पंचायत
▪️जिला– स्तरीय पंचायत
#73वें_संशोधन_अधिनियम_की_विशेषताएं :
▪️ग्राम सभा गांव के स्तर पर उन शक्तियों का उपयोग कर सकती है और वैसे काम कर सकती है जैसा कि राज्य विधान मंडल को कानून दिया जा सकता है।
▪️प्रावधानों के अनुरुप ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तरों पर पंचायतों का गठन प्रत्येक राज्य में किया जाएगा।
▪️एक राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का गठन बीस लाख से अधिक की आबादी वाले स्थान पर नहीं किया जा सकता।
▪️पंचायत की सभी सीटों को पंचायत क्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों से भरा जाएगा, इसके लिए, प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी और आवंटित सीटों की संख्या के बीच का अनुपात, साध्य हो, और सभी पंचायत क्षेत्र में समान हो।
▪️राज्य का विधानमंडल, कानून द्वारा, पंचायतों में ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर या जिन राज्यों में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत नहीं हैं वहां, जिला स्तर के पंचायतों में, पंचायतों के अध्यक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
#अनुसूचित_जाति_और_अनुसूचित_जनजाति_के
#लिए_सीटों_का_आरक्षण :
अनुच्छेद 243 डी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों को आरक्षित किए जाने की सुविधा देता है। प्रत्येक पंचायत में, सीटों का आरक्षण वहां की आबादी के अनुपात में होगा। अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या कुल आरक्षित सीटों के एक– तिहाई से कम नहीं होगी।
महिलाओं के लिए आरक्षण– अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक –तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं होनी चाहिए। इसे प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरा जाएगा और महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा।
अध्यक्षों के कार्यलयों में आरक्षण– गांव या किसी भी अन्य स्तर पर पंचायचों में अध्यक्षों के कार्यालयों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण राज्य विधान–मंडल में, कानून के अनुसार ही होगा।
#सदस्यों_की_अयोग्यता :
किसी व्यक्ति को पंचायत की सदस्यता के अयोग्य करार दिया जाएगा, अगर उसे संबंधित राज्य का विधानमंडल अयोग्य कर देता है या चुनावी उद्देश्यों के लिए कुछ समय के लिए कानून अयोग्य घोषित कर देता है; और अगर उसे इस प्रकार राज्य के विधानमंडल द्वारा कानून बनाकर अयोग्य घोषित किया गया हो तो।
#पंचायत_की_शक्तियां_अधिकार_और_जिम्मेदारियां :
राज्य विधानमंडलों के पास विधायी शक्तियां हैं जिनका उपयोग कर वे पंचायतों को स्व– शासन की संस्थाओं के तौर पर काम करने के लिए सक्षम बनाने हेतु उन्हें शक्तियां और अधिकार प्रदान कर सकते हैं। उन्हें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बनाने और उनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
#कर_लगाने_और_वित्तीय_संसाधनों_का_अधिकार :
एक राज्य, कानून द्वारा, पंचायत को कर लगाने और उचित करों, शुल्कों, टोल, फीस आदि को जमा करने का अधिकार प्रदान कर सकता है। यह राज्य सरकार द्वारा एकत्र किए गए विभिन्न शुल्कों, करों आदि को पंचायत को आवंटित भी कर सकता है। राज्य की संचित निधि से पंचायतों को अनुदान सहायता दी जा सकती है।
#पंचायत_वित्त_आयोग :
संविधान के लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही (73वां संशोधन अधिनियम, 1992), पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा और उस पर राज्यपाल को सिफारिशें भेजने के लिए, एक वित्त आयोग का गठन किया गया था।
#भारत_में_शहरी_स्थानीय_निकाय :
समकालीन समय में, जैसे की शहरीकरण हुआ है और वर्तमान में, इसका तेजी से विकास हो रहा है, शहरी शासन की आवश्यकता अनिवार्य है जो ब्रिटिश काल से धीरे– धीरे विकसित हो रहा है और स्वतंत्रता के बाद इसने आधुनिक आकार ले लिया है। 1992 के 74वें संशोधन अधिनियम के साथ, शहरी स्थानीय प्रशासन व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई।
#74_वें_संशोधन_अधिनियम_की_मुख्य_विशेषताएं :
▪️प्रत्येक राज्य में इनका गठन किया जाना चाहिए–
• नगर पंचायत
• छोटे शहरी क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद
• बड़े शहरी क्षेत्र के लिए नगरनिगम
▪️नगरपालिका की सभी सीटों को वार्ड के रूप में जाने जाने वाले नगरपालिका प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन में चुने गए व्यक्तियों से भरा जाएगा।
▪️राज्य का विधान– मंडल, विधि द्वारा, नगरपालिका प्रशासन में विशेष जानकारी या अनुभव वाले व्यक्तियों को; लोकसभा के सदस्यों और राज्य के विधान सभा के सदस्यों, राज्य के परिषद और विधानपरिषद के सदस्यों को नगरपालिका प्रतिनिधित्व प्रदान करता है; समितियों के अध्यक्ष
▪️वार्ड समिति का गठन
▪️प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जातियों औऱ अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित होंगी।
▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों की एक– तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं की जाएंगी।
▪️राज्य, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को स्व– शासन वाले संस्थानों के तौर पर काम करने में सक्षम बनने हेतु अनिवार्य शक्तियां और अधिकार दे सकता है।
▪️राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को कर लगाने और ऐसे करों, शुल्कों, टोल और फीस को उचित तरीके से एकत्र करने को प्राधिकृत कर सकता है।
▪️प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर जिला नियोजन समिति का गठन किया जाएगा ताकि पंचायतों और जिलों की नजरपालिकाओं द्वारा तैयार योजनाओं को लागू किया जा सके और समग्र रूप से जिले के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार कर सके।
▪️राज्य विधान– मंडल, विधि द्वारा महानगर योजना समितियों के गठन के संबंध में प्रावधान कर सकता है।
#शहरी_स्थानीय_निकायों_के_प्रकार :
1. नगर निगम
2. नगरपालिका
3. अधिसूचित क्षेत्र समिति
4. शहर क्षेत्र समिति (टाउन एरिया कमेटी)
5. छावनी बोर्ड
6. टाउशिप
7. पोर्ट ट्रस्ट
8. विशेष प्रयोजन एजेंसी
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने की दिशा में एक बहुत ही बड़ा कदम है. इस कदम से ऐसा लगता है कि देश के हर गाँव/जिले का अपना एक मुख्यमंत्री है जो कि अपने लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए काम करता है.
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#संविधान_संशोधन_की_संपूर्ण_लिस्ट
◾पहला सविंधान संशोधन अधिनियम, 1951
▪️इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता, एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने संबंधी कुछ व्यावहारिक कठिनाईयों को दूर करने का प्रयास किया गया।
▪️भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर इसमें उचित प्रतिबंध की व्यवस्था की गई, इस संसोधन द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया, जिसमें उल्लेखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायलय के न्याययिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्गत परीखा नहीं की जा सकती
▪️संविधान में नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया और अनुच्छेद 15,19,31,85,87,176,361,342,372 और 376 को संशोधित किया गया।
◾दूसरा संविधान संशोधन अधिनियम, 1952
▪️अनुच्छेद 81 को संशोधित करके लोकसभा के एक सदस्य के निर्वाचन के लिए 7/12 लाख मतदाताओं की सीमा निर्धारित की गई और लोकसभा के लिए सदस्यों की संख्या 500 निश्चित की गई।
◾तीसरा संविधान संशोधन अधिनियम, 1954
▪️राज्य सूची के कुछ विषय समवर्ती सूची में शामिल किये गये। इसके अंतर्गत सातवीं अनुसूची को समवर्ती सूची की तैंतीसवीं प्रविष्टि के स्थान पर खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा, कच्चा कपास, जूट आदि को रखा गया, जिसके उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर सरकार उस पर नियंत्रण लगा सकती है।
◾चौथा संविधान संशोधन अधिनियम, 1955
▪️व्यक्तिगत संपत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थिति में, न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती।
▪️सम्पति के अधिकार संबंध अनुच्छेद-31, 9वीं अनुसूची में तथा अनुच्छेद 305 को संशोधित किया गया।
◾छठा संविधान संशोधन अधिनियम, 1956
▪️सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशो की संख्या में वृद्धि की गई तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने की आज्ञा दी गई।
▪️इस संशोधन द्वारा सातवीं अनुसूची के संघ सुची में परिवर्तन कर अंतर्राज्यीय बिक्री कर के अंतर्गत कुछ वस्तुओं पर केन्द्र को कर लगाने का अधिकार दिया गया।
◾7वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1956
▪️यह संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट को तथा राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1965 को लागू करने के लिये किया गया था।
▪️द्वितीय तथा सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया।
राज्यों के चार वर्गों की समाप्ति (भाग-क, भाग-ख, भाग-ग और भाग-घ) की गई और इनके स्थान पर 14 राज्यों एवं 6 संघ शासित प्रदेशों को स्वीकृति दी गई।
▪️उच्च न्यायालयों के न्यायक्षेत्र का विस्तार संघशासित प्रदेशों तक किया गया।
▪️दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक कॉमन (उभय) उच्च न्यायालय की स्थापना की व्यवस्था (प्रावधान) की गई।
▪️उच्च न्यायालय में अतिरिक्त एवं कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई।
◾8वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1959
▪️इसके अंतर्गत केन्द्र एवं राज्यों के निम्न सदनों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ऑग्ल-भारतीय समुदायों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों को दस वर्ष अर्थात 1970 ई. तक बढ़ा दिया गया।
◾9वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1960
▪️भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच हुए समझौतों के अनुसरण में पाकिस्तान को कतिपय राज्य क्षेत्रों का हस्तांतरण करने की दृष्टि से यह संशोधन किया गया।
▪️इस समझौते के पश्चात् संघ ने इस मामले को उच्चतम न्यायालय के पास भेजा। न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 3 के तहत किसी राज्य के भू-क्षेत्र को घटाने की संसद की शक्ति भारत के किसी भू-भाग को किसी दूसरे देश को सौंपने के मामले पर लागू नहीं होती।
▪️अतः किसी भारतीय भू-भाग को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करके ही किसी विदेशी राज्य को सौपा जा सकता है।
▪️पश्चिम बंगाल में स्थित बेरूबारी संघराज्य क्षेत्र को भारत-पाक समझौते (1958) के तहत पाकिस्तान को सौंप दिया गया।
◾10वां संविधान संशाोधन अधिनियम, 1960
▪️दादर और नागर हवेली के क्षेत्र को भारतीय क्षेत्र में सम्मिलत कर उसे केंद्र शासित प्रदेश में शामिल कर लिया गया।
◾11वाँ संशोधन अधिनियम, 1961
▪️उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रक्रिया में बदलाव किए गए- इसमें संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय निर्वाचक मंडल की व्यवस्था की गई।
▪️राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त निर्वाचक मंडल में रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
◾12वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962
▪️गोवा, दमन और दीव को एक संघ शासित प्रदेश के रूप में संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया।
◾13वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962
▪️नागालैण्ड को भारतीय संघ के 16 वें राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई।
◾14वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962
▪️पाण्डिचेरी के नाम से केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। लोकसभा मे संघ शासित प्रदेशों के स्थानों की संख्या 20 से बढ़ाकर 25 कर दी गई।
◾15वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1963
▪️उच्च न्यायलयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 60 से 62 वर्ष कर दी गयी।
◾17वाँ संशोधन अधिनियम, 1964
▪️यदि भूमि का बाज़ार मूल्य बतौर मुआवजा न दिया जाए तो व्यक्तिगत हितों के लिये भू- अधिग्रहण प्रतिबंधित कर दिया गया।
▪️नौवीं अनुसूची में 44 अतिरिक्त अधिनियमों की बढ़ोतरी की गई (जोड़ा गया)।
◾18वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1966
▪️पंजाब का पुनर्गठन किया तथा हरियाणा नामक नया राज्य बनाया गया। यह प्रावधान किया गया कि ‘ राज्य शब्द में संघ शासित प्रदेश भी सम्मिलत होंगे।
▪️इसमें यह स्पष्ट किया गया कि संसद की नये राज्य के निर्माण की शक्ति का अर्थ यह भी है (या इसमें निहित है) कि संसद किसी दूसरे राज्य या संघशासित प्रदेश के किसी भाग को किसी दूसरे राज्य या संघशासित प्रदेश के साथ जोड़कर नया राज्य बना सकती है।
◾19वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1966
▪️यह व्यवस्था की गई की ससंद तथा विधानमंडलों के चुनावों से संबंधित विवादों की सुनवाई निर्वाचन आयोग के न्यायालय में होगी। इस संशोधन द्वारा निर्वाचन आयोग के कर्तव्यो को स्पष्ट किया गया।
▪️इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया एवं उच्च न्यायालयों को चुनाव-याचिकाएँ सुनने का अधिकार दिया गया।
◾20वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1966
▪️इसके अंतर्गत अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुद जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान की गई।
◾21वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1967
▪️सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
◾22वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1969
▪️असम राज्य के अंतर्गत ‘मेघालय‘ का सृजन किया गया ।
◾23वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1969
▪️इसके अंतर्गत विधान पालिकाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं ऑग्ल-भारतीय समुदाय के लागों का मनोनयन और दस वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया।
◾24वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971
▪️संसद को यह शक्ति दी गई कि वह अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन कर मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है।
▪️संविधान संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति को मंजूरी (अपनी स्वीकृति) देने के लिये बाध्य कर दिया गया।
◾25वाँ संशोधन अधिनियम, 1971
▪️संपत्ति के मौलिक अधिकार में कटौती की गई।
▪️यह भी व्यवस्था की गई कि अनुच्छेद 39 (ख)या (ग) में वर्णित नीति-निर्देशक तत्वों को प्रभावी करने के लिये बनाए गये किसी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वह अनुच्छेद 14, 19 और 31 द्वारा मौलिक अधिकारों के संदर्भ में दी गई गारंटी का उल्लंघन करता है।
◾26वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971
▪️भूतपूर्व रियासतों के शासकों के विशेष उपाधियों एवं ‘प्रिवीपर्स‘ को समाप्त कर दिया गया।
◾27वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971
▪️इसके अंतर्गत मिजोरम एवं अरूणाचल प्रदेश को केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया गया।
◾29वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1972
▪️इसके अंतर्गत केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम 1969 तथा केरल के भू-सुधार अधिनियम 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके।
◾31वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1973
▪️वर्ष 1971 की जनगणना के तहत भारत की जनसंख्या में वृद्धि दर्ज की गई।
▪️लोकसभा में निर्वाचित सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई।
◾32वां संशोधन 1974
▪️संसद एवं विधान पालिकाओं के सदस्य द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे।
◾34वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1974
▪️विभिन्न राज्यों द्वारा पारित किए गए 20 भूमि सुधार कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में सम्मिलत करके उन्हें संरक्षण प्रदान किया गया।
◾35वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1974
▪️सिक्किम को सह-संयुक्त राज्य का दर्जा दिया गया। संविधान में दसवीं अनुसूची को शामिल किया गया।
◾36वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975
▪️सिक्किम को भारतीय संघ के 22वें राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई।
◾37वां संशोधन 1975
▪️इसके तहत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राजयपाल एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया।
◾39वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975
▪️राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्ययक्ष के निर्वाचन को न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर कर दिया गया।
◾41वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1976
▪️राज्य के लोकसेवा आयोगों के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 वर्ष तथा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष निश्चित की गई।
◾42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1976
▪️यह संविधान संशोधन अब तक किए गए संविधान संशोधनों में सबसे व्यापक संशोधन है। इसे लघु संविधान कहा गया है।
▪️यह संविधान संशोधन स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए किया गया था।
▪️इस संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘प्रभुत्वसंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य‘ शब्दों के स्थान पर ‘ प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य‘ शब्द और ‘राष्ट्र की एकता‘ शब्दों के स्थान राष्ट्र की एकता और अखंडता शब्द रखे गए।
▪️इस अधिनियम के द्वारा लोकसभा और राज्य की विधानसभाओें का कार्यकाल 5 वर्ष कर दिया गया।
▪️इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-356 को संशोधित करके किसी भी राज्य में राष्ट्रपति द्वारा प्रशासन की अवधि, एक समय में एक वर्ष से घटाकर 6 महीने कर दी गई।
◾44वाँ सविधान संशोधन 1978
▪️संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार की जगह अब केवल कानूनी अधिकार बना दिया गया।
▪️इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागु करने के लिए आंतरिक अशांति के स्थान पर सैन्य विद्रोह का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया, जिससे उनका दुरुपयोग न हो.
▪️लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई.
▪️उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल करने की अधिकारिता प्रदान की गई।
◾49वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1984
▪️इस संशोधन द्वारा त्रिपुरा राज्य की स्वायत्तशासी जिला परिषद् को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई। तथा अनुच्छेद 244 एवं पांचवी एवं छठी अनुसूची में संशोधन किया गया।
◾50वां संशोधन 1984
▪️इसके द्वारा अनुच्छेद 33 में संशोधन कर सैन्य सेवाओं की पूरक सेवाओं में कार्य करने वालों के लिए आवश्यक सूचनाएं एकत्रित करने, देश की संपत्ति की रक्षा करने और कानून तथा व्यवस्था से संबंधित दायित्व भी दिए गए. साथ ही, इस सेवाओं द्वारा उचित कर्तव्यपालन हेतु संसद को कानून बनाने के अधिकार भी दिए गए।
◾51वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1984
▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-330 को संशोधित करके नागालैण्ड, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसुचित जनजातियों के लिए संसद में तथा अनुच्छेद 332 में संशोधन करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में स्थान आरक्षित किए गए।
◾52वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1985
▪️इस संशोधन के द्वारा राजनितिक दल बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया।
▪️इसके अंतर्गत संसद या विधान मंडलों के उन सदस्यों को आयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, जो इस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिन्ह पर उन्होंने चुनाव लड़ा था, पर यदि किसी दल की संसदीय पार्टी के एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी। दल बदल विरोधी इन प्रावधानों को संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया।
▪️इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद- 101, 102, 190, 191 का संशोधन किया गया। दल बदल कानून बनाकर संविधान की 10वीं अनुसूची जोड़ी गई।
◾53वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1986
▪️इसके अंतर्गत अनुच्छेद 371 में खंड 'जी' जोड़कर मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
मिजोरम विधानसभा की न्यूनतम सदस्य संख्या 40 तय की गई।
◾55वाँ संविधान संशोधन अधिनिमय, 1986
▪️अरूणाचल प्रदेश ( नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी- नेफा) का पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
◾56वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1987
▪️गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करके, दमन और दीव को पृथक केंद्रशासित प्रदेश के रूप में स्थापित कर दिया गया। इस संशोधन द्वारा गोवा राज्य की विधान सभा में 30 (तीस) सदस्यों की संख्या को निर्धारित किया गया।
◾57वां संशोधन 1987
▪️इसके अंतर्गत अनुसचित जनजातियों के आरक्षण के संबंध में मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं अरुणाचल प्रदेश की विधान सभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया।
◾58वां संशोधन 1987
▪️इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया।
◾59वाँ संविधान संशोधन अधिनिमय, 1988
▪️अनुच्छेद-356 का संशोधन करके यह नियम बनाया गया कि आपात की अवधि 6-6 महीने करके तीन वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है।
◾60वां संशोधन 1988
▪️इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कर दी गई।
◾61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1989
▪️अनुच्छेद-326 में संशोधन करके मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
◾65वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1990
▪️अनुच्छेद-338 को संशोधित करके अनुसूचति जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गई।
◾66वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1990
▪️भूमि सुधार से संबंधित राज्य सरकारों के कानूनों को संविधान की नौंवी अनुसूची में सम्मिलत करके न्यायिक समीक्षा के क्षेत्र से बाहर कर दिया गया।
◾69वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1991
▪️दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधान सभा और मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में इसे विशेष दर्जा प्रदान कर दिया गया।
◾70वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992
▪️इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 54 और 368 को संशोधित करके दिल्ली और पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधान सभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्मित निर्वाचक मंडल में शामिल कर लिया गया।
◾71वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992
▪️संविधान की आठवीं अनुसूची में कोंकणी, मणिपुरी, और नेपाली भाषा को शामिल कर लिया गया।
◾73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992
▪️संविधान में एक नया भाग-9 तथा ग्यारहवी अनुसूची को जोड़ा गया।
▪️पंचायती राज व्यव्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया।
▪️इस अधिनियम में पंचायतों के गठन, संरचना निर्वाचन सदस्यों की अर्हताएं, पंचायतों के अधिकार एवं शक्तियों तथा उत्तरदायित्वों का प्रावधान हैं।
◾74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992
▪️संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग- 9(ए) तथा 12वीं अनुसूची जोड़ी गई थी।
▪️नगरीय स्वायत्त संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
▪️इस अधिनियम के अधीन नगरपालिकाओं की संरचना, गठन, सदस्यों की योग्यता, निर्वाचन, नगर पंचायतों के अधिकार एवं शक्तियों तथा उत्तरदायित्वों के संबंध में उपबंध स्थापित किए गए।
◾76वां संशोधन 1994
▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया है।
◾78वां संशोधन 1995
▪️इसके द्वारा नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधार विधियों को समाविष्ट किया गया है. इस प्रकार नवीं अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गई है।
◾79वां संशोधन 1999
▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 तक के लिए बढ़ा दी गई है.
▪️इस संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केंद्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29 % हिस्सा मिलेगा।
◾81वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2000
▪️इस संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से यह नियम बनाया गया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गयी 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का बढ़ाया जा सकेगा।
▪️अब सरकार अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए आरक्षित रिक्त पदों को भरने के लिए 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की व्यवस्था कर सकेगी।
◾82वां संशोधन 2000
▪️इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों से आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्ताकों में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है।
◾83वां संशोधन 2000
▪️इस संशोधन द्वारा पंचायती राज सस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है. अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति न होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है।
◾84वां संशोधन 2001
▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा लोक सभा तथा विधान सभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2016 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है।
◾85वां संशोधन 2001
▪️सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था।
◾86वां संशोधन 2002
▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान जोड़ा गया है. इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है।
◾87वां संशोधन 2003
▪️इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 81, 82, 170 में संशोधन कर, परिसीमन में संख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है।
◾88वां संशोधन 2003
▪️सेवाओं पर कर का प्रावधान।
▪️अनुच्छेद 268 क जोड़ा गया।
◾89वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003
▪️इस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया।
▪️अब इनके नाम क्रमशः ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग‘ अनुच्छेद-338 एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग‘ अनुच्छेद 338-ए होंगे।
◾90वां संशोधन 2003
▪️असम विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरक़रार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा।
◾91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003
▪️इस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को निश्चित कर दिया गया।
▪️दल बदल व्यवस्था में संशोधन, केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता, केंद्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोक सभा तथा विधान सभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत होगा (जहां सदन की सदस्य संख्या 40-50 है, वहां अधिकतम 12 होगी)
◾92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003
▪️संविधान की आठवीं अनुसूची मेुं चार अन्य भाषायें जोड़ी गई। ये भाषायें हैं- बोड़ो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली
◾93वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,2005
▪️राज्यों को विशेष एवं पिछड़े वर्गो, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण करने हेतु विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान की गई।
◾94वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2006
▪️बिहार को एक जनजातीय मंत्री की नियुक्ति करने की बाध्यता से मुक्त करते हुए इस प्रावधान को अब झारखण्ड एवं छत्तीसगढ के लिए भी लागू कर दिया गया। इन राज्यों के साथ यह म.प्र. एवं ओडिशा में (अनुच्छेद-164ए) प्रभावी हो गया।
◾95वां संशोधन 2010
▪️इसके अंतर्गत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए स्थानों के लिए आरक्षण ( अनुच्छेद 334) की समय-सीमा 60 वर्ष से बढ़ा कर 70 वर्ष कर दिया गया।
▪️इसके अलावा आंग्ल-भारतीयों के नाम निर्देशन के प्रावधान को 2020 तक ( 10 वर्षो के लिए) लागू कर दिया गया।
◾96वां संशोधन 2011
▪️इसके तहत 8वी अनुसूची में उल्लेखित भाषाओं में "उड़िया" का नाम बदल कर "ओड़िया" कर दिया गया।
◾97वां संशोधन 2011
▪️इस संविधान संशोधन में हर नागरिक को कोऑपरेटिव सोसाइटी (सहकारी समितियाँ) के गठन का अधिकार दिया गया और इसमें संविधान के भाग 9 में भाग 9ख जोड़ा गया।
▪️संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 19(1)(ग) में "सहकारी समितियाँ" शब्द जोड़ा गया।
◾98वां संशोधन 2012
▪️इसके अंतर्गत अनुच्छेद 371 में कर्नाटक राज्य के हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के विकास के लिए एक अलग परिषद बनाने का प्रावधान किया गया, तथा इस क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों में जन्म या निवास के आधार पर आरक्षण का प्रावधान राष्ट्रपति राज्यपाल को दिया गया।
◾99वां संशोधन 2014
▪️इस विधेयक का उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त कर इसका स्थान ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ देना था।
▪️नोट : सर्वोच्च न्यायालय के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ के गठन संबंधित "99वां संविधान संशोधन 2014" और ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को असंवैधानिक एवं शून्य घोषित करते हुए रद्द कर दिया।
◾100 वां संविधान संशोधन
▪️2015 को भारत और बांग्लादेश के बीच हुई भू-सीमा संधि के लिए 100वां संशोधन किया गया।
▪️दोनों देशों ने आपसी सहमति से कुछ भू-भागों का आदान-प्रदान किया।
▪️समझौते के तहत बांग्लादेश से भारत में शामिल लोगों को भारतीय नागरिकता भी दी गई।
◾101वां संशोधन 2016
▪️जी.एस. टी व्यवस्था लागू करने हेतु।
▪️संविधान में अनुच्छेद 256(अ) अंतः स्थापित किया गया।
▪️इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 270 में निर्धारित किया गया कि केंद्र द्वारा संग्रहित जी.एस. टी को केंद्र व राज्यो के मध्य बांटा जाएगा।
◾102वां संशोधन 2018
▪️इस संशोधन के द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (OBC) को संवैधानिक का दर्जा प्रदान किया गया।
▪️अनुच्छेद 338(ख) जोड़ा गया।
◾103वां संशोधन अधिनियम 2019
(124वां संविधान संशोधन विधेयक) सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण
▪️9 जनवरी, 2019 को राज्य सभा द्वारा 124 वां सविधान संशोधन विधेयक, 2019 को पारित करने के साथ ही संसद द्वारा इसे पारित किया गया।
▪️इससे पूर्व 8 जनवरी, 2019 को लोक सभा ने इस विधेयक को पारित कर दिया था।
▪️7 जनवरी, 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उच्च जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के क्षेत्र में 10 प्रतिशत आरक्षण को स्वीकृति प्रदान की गई।
▪️यह विधेयक भारतीय संविधान के अनु. 15 और 16 में संशोधन प्रस्तावित करता है।
▪️यह पहला अवसर है जब गैर जाति, गैर-धर्म आधारित आरक्षण प्रदान किए जाने का प्रस्ताव किया गया है।
▪️इस आरक्षण प्रस्ताव के लागू होने के पश्चात आरक्षण कोटा वर्तमान 50 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाएगा।
▪️उल्लेखनीय है कि इस संविधान संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया गया है।
◾104वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019
(125वां संविधान संशोधन विधेयक) : केंद्र सरकार ने संसद में 125वां संवैधानिक संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया है, इसका उद्देश्य उत्तर-पूर्वी भारत में 10 स्वायत्त परिषदों की वित्तीय तथा कार्यकारी शक्तियों में वृद्धि करना है।
* संशोधन विधेयक की विशेषताएं :
इस संशोधन विधेयक से असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के लगभग 1 करोड़ जनजातीय लोग प्रभावित होंगे, इस विधेयक के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं :
▪️असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए अनुच्छेद 280 में संशोधन किया जाएगा, इससे स्वायत्त परिषद् अधिक विकास के कार्य कर सकेंगीं।
▪️मौजूदा स्वायत्त जिला परिषदों का नाम बदलकर स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद् किया जाएगा क्योंकि इन परिषदों का क्षेत्राधिकार एक जिले से अधिक होगा।
▪️असम में कारबी आंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद् तथा दिमा हसाओ स्वायत्त परिषद् के क्षेत्राधिकार में 30 अन्य विषयों को शामिल किया जायेगा।
▪️निम्न स्तर पर भी लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए निर्वाचित ग्रामीण म्युनिसिपल परिषद् के लिए भी संशोधन प्रस्तावित है।
▪️संशोधन के द्वारा ग्रामीण परिषदों को आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय इत्यादि कार्य के लिए शक्तियां दी जायेंगी। यह शक्तियां कृषि, भूमि सुधार, सिंचाई जल प्रबंधन, पशु पालन, ग्रामीण विद्युतीकरण, छोटे स्तर के उद्योग तथा सामाजिक वानिकी इत्यादि कार्य के लिए दी जायेंगी।
◾104वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 (126वां संविधान संशोधन विधेयक) :
▪️12 दिसंबर, 2019 को राज्य सभा में भारतीय संविधान का 126वां संविधान संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया गया।
▪️लोक सभा द्वारा यह विधेयक इससे पूर्व पारित किया जा चुका है।
▪️यह भारतीय संविधान का 104वां संशोधन है।
▪️इस विधेयक के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया है।
▪️इस विधेयक के तहत लोक सभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष और बढ़ाया गया है।
▪️इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए लोक सभा और राज्य विधानसभाओं में 25 जनवरी, 2030 तक सीटों का आरक्षण बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
▪️पूर्व में इस आरक्षण की समय सीमा 25 जनवरी, 2020 तक थी।
▪️इस संविधान संशोधन विधेयक द्वारा संसद में एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रदत्त आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है।
▪️आरक्षण के तहत एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 सदस्य लोक सभा में प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#संविधान_संशोधन
संशोधन एक राष्ट्र या राज्य के लिखित संविधान के पाठ में औपचारिक परिवर्तन को दर्शाता है। संविधान के संशोधन अत्यधिक जीवन की वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने के लिए संविधान को संशोधित करने और मार्गदर्शन करने के लिए आवश्यक है। संविधान में संशोधन कई प्रकार से किया जाता है नामतः साधारण बहुमत, विशेष बहुमत तथा बहाली कम से कम आधे राज्यों द्वारा| अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन, भारतीय संविधान की एक मूल संशोधन प्रक्रिया है।
#संविधान_का_संशोधन :
संविधान का संशोधन कुछ प्रावधानों को बदलने या दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ बाहरी सुविधाओं को अद्यतन करने का तात्पर्य है। संवैधानिक संशोधन का प्रावधान संविधान की वास्तविकता और दैनिक आवश्यकताओं का प्रतिबिंबित प्रदर्शित करने के लिए आवश्यक है।
#संविधान_संशोधन_की_आवश्यकता :
संविधान में संशोधन के लिए आवश्यकता पर निम्न प्रकार से बल दिया जा सकता है-
▪️यदि संशोधन का कोई प्रावधान नहीं दिया गया हो, लोग और नेता कुछ अतिरिक्त संवैधानिक अर्थों का पालन करते हैं जैसे क्रान्ति, हिंसा तथा इसी तरह संविधान में घुल जाते हैं।
▪️संविधान में संशोधन के प्रावधान को इस दृष्टिकोण के साथ बनाया गया कि भविष्य में संविधान को लागू करने में कठिनाइयाँ न आयें।
▪️यह इसलिए भी आवश्यक है कि संविधान लागू होंने के समय में हुई कमियों को ठीक करना।
▪️आदर्श, प्राथमिकताएं और लोगों की दृष्टि पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती हैं। इन को शामिल करने के लिए, संशोधन वांछनीय है।
#संविधान_में_संशोधन_के_लिए_प्रक्रिया :
संविधान में संशोधन कई प्रकार से किया जाता है नामतः साधारण बहुमत, विशेष बहुमत तथा कम से कम आधे राज्यों द्वारा समर्थन| अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन, भारतीय संविधान की एक मूल संशोधन प्रक्रिया है, जिसकी प्रक्रिया निम्न रूप से वर्णित की जा सकती है-
▪️यह संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है।
▪️इसे राज्य विधायिका में पेश नहीं किया जा सकता।
▪️बिल एक मंत्री या एक निजी सदस्य के द्वारा पेश किया जा सकता है।
▪️संसद के किसी भी सदन में विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
▪️बिल अलग-अलग सदनों द्वारा पारित होना चाहिए।
▪️यह विशेष बहुमत (वर्तमान सदस्यों और मतदान के 2/3 और कुल संख्या का कम से कम 50%) द्वारा पारित होना चाहिए।
▪️राज्य के कम से कम आधे से अनुसमर्थन भारतीय संविधान के किसी भी संघीय सुविधा में संशोधन के मामले में जरूरी है।
▪️सभी उपरोक्त कदम के बाद, बिल राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जहां उसके पास हस्ताक्षर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। हालांकि, राष्ट्रपति के लिए बिल पर कारवाई करने के लिए समय अवधि निश्चित नहीं की गई है।
▪️जब एक बार राष्ट्रपति अपनी सहमति दे देता है, तो बिल एक अधिनियम बन जाता है।
#संशोधन_के_प्रकार :
संविधान के अनुच्छेद 368 के दायरे में, भारत के संविधान में संशोधन के दो प्रकार के होते हैं।
▪️केवल संसद का विशेष बहुमत।
▪️एक साधारण बहुमत से राज्यों के आधे के अनुसमर्थन के साथ-साथ संसद का. विशेष बहुमत।
#संविधान_के_संशोधन_की_आलोचनाएं :
संविधान के संशोधन की आलोचनाएं निम्न हैं:
▪️भारत के पास कोई भी स्थायी संवैधानिक संशोधन समिति नहीं है जैसे कई अन्य देशों के पास है तथा सभी प्रयास अपेक्षाकृत निष्कपट और अनुभवहीन संसद द्वारा किया जाते हैं।
▪️राज्य विधायिका के पास विधान परिषद के गठन या उन्मूलन के आरम्भ करने की शक्ति होने के अलावा, संशोधन प्रक्रिया की शुरुआत के लिए कोई भी अन्य गुंजाइश नहीं है। यह भारतीय संविधान को एकाधिकार के केंद्र के साथ साथ राज्यों के लिए द्र्ढ़ बनाता है।
▪️संसद के दोनों सदनों का अस्तित्व संवैधानिक संशोधन अधिनियम को पारित करने के लिए असहमति के कारण कठिनाई उत्पन्न करता है।
▪️सामान्य विधायी कार्य और संवैधानिक संशोधन कार्य के बीच शायद ही कोई फर्क होगा।
▪️राज्य विधायिका की पुष्टि करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है
▪️अपनी सहमति देने के लिए राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा नहीं है
भारतीय संविधान के संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया का वर्णन करते हुए के.सी. व्हेयरे ने ठीक ही कहा है कि संविधान में संशोधन लचीलापन और कठोरता के बीच एक अच्छा संतुलन बनाता है। इसके अलावा, ग्रानविले ऑस्टिन, भारतीय संविधान की एक प्रसिद्ध विद्वान ने कहा, "संशोधन की प्रक्रिया ने संविधान को सबसे चतुराई से ग्रहण कर उसके पहलुओं को अपने आप ही साबित कर दिया है। यद्यपि यह जटिल लगता है, यह महज विविध है। "
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#माउंटबेटन_योजना
#भारत_का_विभाजन_एवं_स्वतंत्रता [ 1947 ]
लॉर्ड माउंटबेटन, भारत के विभाजन और सत्ता के त्वरित हस्तांतरण के लिए भारत आये। प्रारम्भ में यह सत्ता हस्तांतरण विभाजित भारत की भारतीय सरकारों को डोमिनियन के दर्जे के रूप में दी जानी थीं। 3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी योजना प्रस्तुत की जिसमे भारत की राजनीतिक समस्या को हल करने के विभिन्न चरणों की रुपरेखा प्रस्तुत की गयी थी। प्रारम्भ में यह सत्ता हस्तांतरण विभाजित भारत की भारतीय सरकारों को डोमिनियन के दर्जे के रूप में दी जानी थीं।
#माउंटबेटन_योजना :
▪️भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया जायेगा।
▪️बंगाल और पंजाब का विभाजन किया जायेगा और उत्तर पूर्वी सीमा प्रान्त और असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया जायेगा।
▪️पाकिस्तान के लिए संविधान निर्माण हेतु एक पृथक संविधान सभा का गठन किया जायेगा।
▪️रियासतों को यह छूट होगी कि वे या तो पाकिस्तान या भारत में सम्मिलित हो जाये या फिर खुद को स्वतंत्र घोषित कर दें।
▪️भारत और पाकिस्तान को सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन नियत किया गया।
ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 को जुलाई 1947 में पारित कर दिया। इसमें ही वे प्रमुख प्रावधान शामिल थे जिन्हें माउंटबेटन योजना द्वारा आगे बढ़ाया गया था।
#विभाजन_और_स्वतंत्रता :
▪️सभी राजनीतिक दलों ने माउंटबेटन योजना को स्वीकार कर लिया।
▪️सर रेडक्लिफ की अध्यक्षता में दो आयोगों का ब्रिटिश सरकार ने गठन किया जिनका कार्य विभाजन की देख-रेख और नए गठित होने वाले राष्ट्रों की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को निर्धारित करना था।
▪️स्वतंत्रता के समय भारत में 562 छोटी और बड़ी रियासतें थीं।
▪️भारत के प्रथम गृहमंत्री बल्लभभाई पटेल ने इस सन्दर्भ में कठोर नीति का पालन किया। 15 अगस्त 1947 तक जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ व हैदराबाद जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर सभी रियासतों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे| गोवा पर पुर्तगालियों और पुदुचेरी पर फ्रांसीसियों का अधिकार था।
#भारत_विभाजन_के_कारण :
#मुसलामानों_की_धार्मिक_कट्टरता
अंग्रेजों का सिद्धांत ही था फूट डालो और शासन करो. भारत-विभाजन के पीछे मुसलामानों की धार्मिक कट्टरता काफी दोषी है. उनमें शिक्षा का अभाव था और आधुनिक विचारधारा के प्रति वे उदासीन थे. वे धर्म को विशेष महत्त्व देते थे. मुसलामानों में यह भावना प्रचारित कर दी गई की भारत जैसे हिन्दू बहुसंख्यक राष्ट्र में मुसलामानों के स्वार्थ की रक्षा संभव नहीं है और उनका कल्याण एक पृथक् राष्ट्र के निर्माण से ही हो सकता है. यद्यपि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने का प्रयास किया लेकिन मुहम्मद अली जिन्ना लीग की नीति में परिवर्तन के लिए तनिक भी तैयार नहीं हुए.
#साम्प्रदायिकता_को_अंग्रेजों_का_प्रोत्साहन
ब्रिटिश शासकों ने भारत में साम्प्रदायिकता के प्रोत्साहन में कोई कसर नहीं छोड़ी. 1857 के विद्रोह के बाद अँगरेज़ मुसलामानों को संरक्षण देकर फूट डालने का कार्य किया क्योंकि वे अनुभाव करने लगे कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के बाद तो भारत पर उनका शासन करना मुश्किल हो जायेगा. उन्होंने अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलामानों को आरक्षण दिया और राष्ट्रीय आंदोलं को कमजोर बनाया. 1909 में मुस्लिमों को अलग प्रतिनिधित्व देना ही भारत-विभाजन की पृष्ठभूमि बनी.
#कांग्रेस_की_तुष्टीकरण_की_राजनीति
कांग्रेस ने प्रारम्भ से ही मुसलामानों को संतुष्ट करने की नीति अपनाकर उनका मन काफी बाधा दिया था जिसका परिणाम यह हुआ कि वे अलग राष्ट्र की मांग करने लगे. कांग्रेस की यह तुष्टीकरण की नीति उनकी भयंकर भूल थी. लखनऊ समझौते के अनुसार मुसलामानों को उनकी जनसँख्या के आधार पर पृथक् प्रतिनिधित्व दिया गया. फिर 1932 के साम्प्रदायिक निर्णय के विषय में कांग्रेस ने अस्पृश्य जातियों के अलग हो जाने के भय से जिस दुर्बलता का परिचय दिया उससे मुसलामानों का मनोबल काफी बढ़ा. स्वतंत्र भारत में मुस्लिमों का क्या भविष्य होगा, उसके सम्बन्ध में कांग्रेस कोई स्पष्ट निर्णय नहीं ले सकी और दूसरी ओर जिन्ना का एक ही नारा था कि “हिन्दू और मुसलमान दो पृथक् राष्ट्र हैं“.
#तत्कालीन_परिस्थितियाँ
भारत की तत्कालीन परिस्थतियाँ भी भारत विभाजन के लिए उत्तरदाई थीं. भारत छोड़ो आन्दोलन तथा विश्वयुद्ध से उत्पन्न स्थिति, अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग को शामिल करना तथा कांग्रेस और लीग के बीच मतभेद भारत के विभाजन का कारण बनी. अंग्रेजों ने जैसे ही भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की, दंगे प्रारंभ हो गए. भयानक खूनखराबे से बचने के लिए विभाजन को स्वीकार करना ही पड़ा.
#निष्कर्ष :
माउंटबेटन योजना, केवल भारत के विभाजन को कार्यरूप देने के लिए ही नहीं थी बल्कि पाकिस्तान की मांग द्वारा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक तंत्र की स्थापना की। यह तय किया कि पाकिस्तान में शामिल होने वाले क्षेत्रों का निर्णय विधान सभा के प्रतिनिधियों द्वारा किया जायेगा या फिर जनमत-संग्रह द्वारा साथ ही कैबिनेट मिशन के अनुरूप एक ही संविधान सभा होगी या फिर नए गठित राष्ट्र के लिए अलग से संविधान सभा बनायी जाएगी। अतः हम कह सकते है कि माउंटबेटन योजना का मुख्य उद्देश्य भारत का विभाजन और सत्ता का त्वरित हस्तांतरण था। प्रारम्भ में यह सत्ता हस्तांतरण विभाजित भारत की भारतीय सरकारों को डोमिनियन के दर्जे के रूप में दी जानी थीं।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#केंद्रीय_सतर्कता_आयोग
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) एक शीर्ष भारतीय निकाय है जिसकी स्थापना 1964 में केंद्र सरकार के तहत सरकारी भ्रष्टाचार की पहचान व सतर्कता निगरानी करने के लिए और केंद्र सरकार की संस्थाओं में योजना बनाने, क्रियान्वित करने तथा उनकी सतर्कता की समीक्षा करने में विभिन्न अधिकारियों को सलाह देने के लिए की गयी थी। इसे एक स्वायत्त निकाय का दर्जा प्राप्त है।
#सेवा_शर्तें_और_सतर्कता_आयुक्त_की_नियुक्ति :
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। इस पद का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। केंद्रीय सर्तकता आयुक्त को दुर्व्यवहार के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा तभी निलंबित या हटाया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की जांच के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गयी हो।
#कार्य :
आयोग मुख्य रूप से एक सलाहकारी निकाय है और इसके पास कोई न्यायिक अधिकार नहीं हैं। यह भ्रष्टाचार, दुराचार, ईमानदारी की कमी या सरकारी कर्मचारियों की ओर से कदाचार या दुष्कर्म या कुछ अन्य प्रकार से संबंधित शिकायतों पर विचार विमर्श करता है।
यह सरकारी कर्मचारियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने की मंजूरी का विस्तार नहीं कर सकता है। एक सीमित दायरे के अलावा इसके पास जांच या भ्रष्टाचार की शिकायतों की तहकीकात करने के लिए कोई तंत्र नहीं होता है।
आयोग शिकायत की जांच स्वयं करने के लिए अधिकृत नहीं है, इसकी जांच करने के लिए इसे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) या संबंधित मंत्रालय या जांच विभाग के पास भेजना होता है। हालांकि, मुख्य तकनीकी परीक्षक संस्था इससे जुड़ी हुयी है। जो ठेकेदारों, अनुबंधों और मास्टर रोल्स के बिलों की जाँच सहित लोक निर्माण की तकनीकी परीक्षा का आयोजन करता है।
#आयोग_निम्नलिखित_मामलों_में_कार्रवाई_करने
#की_सलाह_दे_सकता_है :
▪️केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा की गयी जांच रिपोर्ट जिसमें कमीशन या अन्य द्वारा इसे भेजे गये विभागीय कार्रवाई या अभियोजन के मामले शामिल होते हैं।
▪️आयोग द्वारा निर्दिष्ट मामलों में अनुशासनात्क कार्रवाई के मामले में शामिल मंत्रालय या विभाग की रिपोर्ट।
▪️सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सांविधिक निगमों आदि से सीधे प्राप्त हुए मामले।
आयोग को गृह मंत्रालय के सामने अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इस रिपोर्ट में वह मामले होते हैं जिसमें उसकी सिफारिशों को स्वीकार कर इन पर सक्षम अधिकारियों द्वारा कार्यवाही की जाती है।
संविधान से संबंधित प्रावधानों, अधिकार क्षेत्र, बिजली और आयोग के कार्यों के साथ कार्यवाही करने के लिए लंबे समय से चली आ रही एक अधिनियम के गठन की मांग को अंतत: एक अधिनियम पारित करके गठित कर दिया गया था। उक्त अधिनियम को केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम,2003 के रूप में नामित किया गया।
#केंद्रीय_सतर्कता_आयोग_के_कार्य_और_शक्तियां :
▪️यह 1988 भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत कथित अपराधों की जांच से संबधित दिल्ली विशेष पुलिस की स्थापना द्वारा कामकाज और अभ्यास अधीक्षण की जांच के लिए प्रतिबद्ध है।
▪️दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1964 की (1946 का 25) की धारा 4 की उप-धारा (1) के तहत यह जिम्मेदारी का निर्वहन करने के उद्देश्य के लिए विशेष दिल्ली पुलिस की स्थापना का निर्देश देती है।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#भारत_का_संवैधानिक_विकास
1600 ई. में लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया गया।
▪️मुगल शासक जहांगीर के काल में दो अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से भारत आए -
1. 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस जहांगीर के दरबार में आया। और सूरत में एक फैक्ट्री स्थापित की।
2. 1615 में सर टॉमस रो भारत आया।
अजमेर में जहांगीर से मिला और व्यापार की अनुमति प्राप्त की।
▪️1764 के बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने बंगाल पर शिकंजा कस लिया।
▪️अंग्रेजों ने व्यापार की शुरुआत बंगाल से की थी तथा बंगाल से ही गवर्नरों की नियुक्ति करना शुरू किया।
बंगाल का पहला गवर्नर लॉर्ड क्लाइव था।
अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए जो भारतीय संविधान के विकास में सहायक बनें।
#रेगुलेटिंग_एक्ट [1773 ] :
▪️इस एक्ट के माध्यम से कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित किया गया।
▪️बंगाल का शासन गवर्नर जनरल तथा चार सदस्यीय परिषद में निहित किया गया। इस परिषद में निर्णय बहुमत द्वारा लिए जाने की भी व्यवस्था की गयी।
▪️गवर्नर जनरल - वारेन हेस्टिंग्स
▪️सदस्य - क्लैवरिंग, मॉनसन, बरवैल तथा फ्रांसिस
इन सभी का कार्यकाल पांच वर्ष का था तथा निदेशक बोर्ड की सिफारिश पर केवल ब्रिटिश समाट द्वारा ही इन्हें हटाया जा सकता था।
▪️मद्रास तथा बम्बई प्रेसीडेंसियों को बंगाल प्रेसीडेन्सी के अधीन कर दिया गया तथा बंगाल के गवर्नर जनरल को तीनों प्रेसीडेन्सियों का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बना।
▪️इस अधिनियम द्वारा कलकत्ता (बंगाल) में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी।
▪️इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश थे।
▪️प्रथम मुख्य न्यायाधीश - सर एलिजा इम्पे
▪️ तीन अन्य न्यायाधीश - चैंबर्स, लिमेंस्टर, हाइड
▪️कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया।
#एक्ट_ऑफ_सैटलमेंट :
रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1781 में एक संशोधित अधिनियम पारित किया जिसे एक्ट ऑफ सैटलमेंट कहते है।
#1784_ई_का_पिट्स_इंडिया_एक्ट :
इस एक्ट से संबंधित विधेयक ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री पिट द यंगर ने संसद में प्रस्तुत किया।
▪️इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों को अलग-अलग कर दिया।
• व्यापारिक कार्यों का नियंत्रण - कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा
• राजनीतिक कार्यों का नियंत्रण - बोर्ड ऑफ कंट्रोल द्वारा
▪️गवर्नर की कार्यकारी परिषद में सदस्यों की संख्या घटाकर 4 से 3 कर दी गई।
▪️बोर्ड ऑफ कंट्रोल ब्रिटिश की संसदीय समिति थी। इसमें 6 सदस्य होते थे, जिनमें दो ब्रिटिश मंत्री होते हैं। (अर्थात ब्रिटिश मंत्रिमंडल के सदस्य कंपनी पर प्रत्यक्ष रूप से अधिकार रखने लगे और कंपनी के नियम बनाने लगे)
▪️भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया।
#विशेष_अधिनियम [ 1786 ] :
गवर्नर जनरल कॉर्नवालिस को वीटो पावर दिया गया।
#नोट - पिट्स इंडिया एक्ट विवाद को लेकर प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ की गठबंधन सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा। यह भारत का एकमात्र अधिनियम है, जिसके विवाद में ब्रिटेन की सरकार गिरी।
▪️पिट्स इंडिया एक्ट के विरोध में इस्तीफा देकर जब वारेन हेस्टिंग्स 1785 में इंग्लैंड पहुंचा तो बर्क द्वारा उसके ऊपर महाभियोग लगाया गया।
▪️वारेन हेस्टिंग्स एकमात्र गवर्नर जनरल/वायसराय थे, जिन पर इंग्लैंड लौटने के बाद महाभियोग चलाया गया।
#1793_ई_का_चार्टर_अधिनियम :
▪️कंपनी के कर्मचारियों तथा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों को भारतीय राजस्व से वेतन की व्यवस्था की गई।
▪️सभी गवर्नर जनरल के लिए वीटो पावर दिया गया।
#1813_ई_का_चार्टर_अधिनियम :
▪️ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया।
▪️परंतु कंपनी को चाय व चीन के साथ व्यापार में एकाधिकार दिया गया।
▪️कंपनी भारत में शिक्षा के विकास के लिए प्रतिवर्ष 1 लाख रुपए खर्च करेगी।
▪️ईसाई मिशनरीज भारत में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं।
▪️इस अधिनियम द्वारा कुछ सीमाओं के अधीन ब्रिटेन के आम नागरिकों को भारत के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान की गई।
#1833_ई_का_चार्टर_अधिनियम :
▪️कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए।
▪️कंपनी ने भारत में शासन स्थापित करना अपना उद्देश्य बनाया। अर्थात कंपनी पूर्णतया एक राजनीतिक इकाई बन गई।
▪️बंगाल के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया।
▪️भारत का प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक बना।
▪️गवर्नर जनरल की परिषद में एक विधि सदस्य जोड़ा गया। (कुल सदस्य 3+1 =4)
▪️विधि सदस्य को मतदान का अधिकार नहीं था।
▪️दास प्रथा को समाप्त किया जाएगा। (1843 में एलनबरो ने समाप्त की)
▪️किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
▪️मद्रास और बॉम्बे के गवर्नरों की कानून बनाने की शक्तियां समाप्त कर दी गई।
#नोट - प्रथम विधि सदस्य लॉर्ड मैकाले को नियुक्त किया गया।
▪️साथ ही भारतीय कानूनों का वर्गीकरण करके लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में विधि आयोग का गठन किया गया।
▪️लॉर्ड मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा का जनक कहा जाता है।
#1853_ई_का_चार्टर_अधिनियम :
▪️कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स में सदस्यों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई।
▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में विधि सदस्य को स्थाई कर दिया गया।
▪️कार्यकारी परिषद के विधायी कार्यों को प्रशासनिक कार्यों से पृथक करने की व्यवस्था की गयी।
▪️कानून निर्माण में सहायता हेतु गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में 6 नए सदस्य लिए जाएंगे।
यहां से भारत की संसद का इतिहास प्रारंभ होता है।
▪️उच्च पदों (सिविल सेवकों) के लिए लिखित परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। (यहां से ICS लिखित परीक्षा का इतिहास प्रारंभ होता है)
▪️1854 में मैकाले समिति बनाई गई, जो सिविल सेवाओं से संबंधित थी।
#नोट - 1854 में प्रस्तुत चार्ल्स वुड डिस्पैच को भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।
▪️1864 में सत्येंद्र नाथ टैगोर प्रथम भारतीय आईसीएस बने।
#1858_ई_का_भारत_शासन_अधिनियम :
▪️1857 के विद्रोह के कारण कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया तथा भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन (महारानी) के हाथों में चला गया।
▪️1858 से 1947 तक ताज का शासन रहा।
▪️भारत के शासन को अच्छा बनाने के कारण इस अधिनियम को अच्छा अधिनियम तथा ताज (Crown) का अधिनियम भी कहा जाता है।
▪️कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल को समाप्त कर दिया गया।
▪️गवर्नर जनरल का पदनाम बदलकर वायसराय कर दिया गया। (ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि)
भारत का प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग बना।
▪️वायसराय की सहायता के लिए भारत सचिव पद सृजित किया गया। यह ब्रिटिश कैबिनेट का मंत्री होता था।
▪️प्रथम भारत सचिव चार्ल्स वुड बना।
▪️भारत सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यीय भारत परिषद का गठन किया गया।
#नोट - भारत का अंतिम गवर्नर जनरल + प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग था।
▪️भारत का अंतिम गवर्नर सी राजगोपालाचारी था।
#1861_ई_का_भारत_परिषद_अधिनियम :
▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद 5वां सदस्य जोडा गया।
▪️विभागीय प्रणाली (मंत्रिमंडलीय व्यवस्था Portfolio system) की शुरुआत की गई।
▪️वायसराय को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई।
▪️मुंबई व मद्रास प्रेसिडेंसियों को पुन: विधायी शक्तियां प्रदान कर भारत में विकेंद्रीकरण की शुरुआत की गई।
▪️1773 के रेगुलेटिंग एक्ट में केंद्रीयकरण की शुरुआत की गई थी।
▪️कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।
▪️कार्यकारी परिषद के अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई। ये सदस्य कुलीन भारतीय होते थे, परंतु यह अनिवार्य नहीं था।
▪️न्यूनतम सदस्य - 6
▪️अधिकतम सदस्य -12
#नोट - 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।
#1892_ई_का_भारत_परिषद_अधिनियम
▪️वायसराय की कार्यकारी परिषद में 1 सदस्य और बढ़ा दिया गया।
▪️अतिरिक्त सदस्यों की संख्या भी बढ़ाई गई।
न्यूनतम 10 और अधिकतम 16
▪️अतिरिक्त सदस्यों का अप्रत्यक्ष निर्वाचन व्यापार बोर्ड के सदस्यों, नगर निगम तथा सीनेट द्वारा करवाया जाता था, परंतु चुनाव शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया। (अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत)
▪️अतिरिक्त सदस्यों को प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। ये बजट पर बहस कर सकते थे।
#1909_ई_का_भारत_परिषद्_अधिनियम :
▪️इस अधिनियम को मार्ले-मिन्टो सुधार भी कहते हैं।
उस समय लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत सचिव और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे।
▪️इस अधिनियम के द्वारा भारत में पहली बार जाति, धर्म व भाषा के आधार पर अलग निर्वाचन क्षेत्र निश्चित किए गए अर्थात इस अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली या पृथक निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत की गई।
▪️सबसे पहले इस प्रणाली में मुसलमानों को शामिल किया गया है। अर्थात मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे।
▪️लॉर्ड मिंटो को भारतीय सांप्रदायिकता का जनक कहा जाता है।
▪️भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले की सिफारिशों को इस अधिनियम में जगह दी गई।
▪️अतिरिक्त सदस्यों को विधायी परिषद में पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
▪️भारतीयों को वायसराय की कार्यकारी परिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया।
▪️सत्येंद्र नाथ सिन्हा वायसराय की कार्यपरिषद का प्रथम भारतीय सदस्य बना।
#1919_ई_का_भारत_शासन_अधिनियम :
▪️इस अधिनियम को मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं।
▪️इस अधिनियम के द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करके सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपियों को इसमें शामिल किया गया।
▪️महिलाओं को मताधिकार दिया गया।
▪️केंद्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की।
1. राज्य परिषद (वर्तमान में राज्यसभा)
2. केंद्रीय विधान सभा (वर्तमान में लोकसभा)
▪️प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की गई।
▪️प्रांतीय विषयों को आरक्षित तथा हस्तांतरित दो भागों में बांटा गया
▪️संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के गठन का प्रावधान किया गया।
▪️यूपीएससी का गठन ली आयोग की सिफारिश पर 1926 में किया गया।
▪️यूपीएससी का प्रथम अध्यक्ष - रॉस बार्कर
▪️केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया।
#नोट - द्वैध शासन का जनक लियो कार्टिस को माना जाता है।
▪️मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड घोषणा पत्र - 1917
▪️मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार - 1919
#साइमन_कमीशन_1927 :
▪️1919 के अधिनियम की जांच हेतु 7 सदस्यीय साइमन कमीशन का गठन किया गया।
▪️इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। इस कारण सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया।
#नोट - साइमन कमीशन के गठन के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बाल्डवीन तथा भारत सचिव बर्कन हेड थे।
बर्कन हेड ने कहा कि भारतीय संविधान बनाने में सक्षम नहीं है।
#नेहरू_रिपोर्ट_1928 :
▪️बर्कन हेड की चुनौती को स्वीकार करते हुए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय सर्वदलीय संविधान निर्मात्री समिति का गठन किया गया। जिसने अगस्त 1928 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
▪️नेहरू रिपोर्ट से असंतुष्ट होकर मोहम्मद अली जिन्ना ने 1929 में अपनी 14 मांगे प्रस्तुत की, जिन्हें जिन्ना का 14 सूत्रीय फार्मूला कहा जाता है।
◾साइमन कमीशन के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए गए।
▪️सांप्रदायिक अवार्ड या कम्युनल अवार्ड
▪️ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 में पृथक निर्वाचन व्यवस्था को दलितों के लिए विस्तारित किया।
▪️दलितों के लिए प्रांतीय विधान मंडलों में 71 सुरक्षित स्थान प्रदान किए गए।
#पूना_पैक्ट_सितंबर_1932 :
दलितों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था के कारण गांधी जी ने पुणे की यरवदा जेल में अनशन प्रारंभ कर दिया।
सितंबर 1932 में महात्मा गांधी व भीमराव अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ, जिसे पूना समझौता कहा जाता है।
इसके तहत -
▪️कांग्रेस ने दलितों को प्रांतीय विधानमंडलों में 147/148 सुरक्षित सीटें देने का वादा किया।
▪️केंद्रीय विधानमंडलों में दलितों को 18% सुरक्षित सीटें दिए जाने की घोषणा की।
#भारत_सरकार_अधिनियम (1935) :
▪️यह अधिनियम साइमन कमीशन की सिफारिश पर बनाया गया था।
▪️इस अधिनियम में 321 अनुच्छेद, 10 अनुसूचियां और 14 भाग थे।
▪️वर्तमान भारतीय संविधान में इस अधिनियम का लगभग 60% भाग लिया गया है। अतः इसे लघु संविधान या मिनी संविधान भी कहते हैं।
▪️पहली बार अखिल भारतीय संघ की स्थापना के प्रयास किए गए। यह 11 ब्रिटिश प्रांतों और 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों एवं देशी रियासतों से मिलकर बनना था। परंतु रियासतों ने इंकार कर दिया।
▪️प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर उन्हें स्वायत्तता दी गई।
▪️केंद्र में द्वैध शासन की शुरुआत की गई।
▪️केंद्र और राज्यों के बीच पहली बार शक्तियों का विभाजन किया गया।
▪️संघ सूची - 59 विषय - केंद्र
▪️राज्य सूची - 54 विषय - राज्य
▪️समवर्ती सूची - 36 विषय - दोनों कानून बना सकते थे।
▪️अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दी गई।
▪️सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का और अधिक विस्तार करके इसमें महिलाओं, दलित जातियों और मजदूर वर्ग को भी शामिल किया।
▪️भारत शासन अधिनियम 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया गया।
▪️भारत में मुद्रा के नियंत्रण एवं साख विस्तार हेतु 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
▪️संघीय न्यायालय की स्थापना - 1937
▪️बर्मा को भारत से अलग किया गया - 1937
#नोट - एटली ने 1935 के अधिनियम को अविश्वास का प्रतीक कहा।
▪️जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिनियम को दासता का घोषणा पत्र कहा।
▪️पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1935 के अधिनियम के बारे में कहा कि यह अधिनियम बाहर से देखने पर जनतंत्रीय शासन व्यवस्था लगता है, लेकिन अंदर से एकदम खोखला है।
▪️पंडित मदन मोहन मालवीय को महामना भी कहते हैं।
▪️क्रिप्स मिशन - 1942
▪️वेवेल योजना - 1945
▪️कैबिनेट मिशन योजना - 1946
▪️माउंटबेटन योजना - 3 जून 1947
#1947_ई_का_भारतीय_स्वतंत्रता_अधिनियम :
4 जुलाई 1947 को भारत का स्वतंत्रता विधेयक ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली के द्वारा ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया, जो 18 जुलाई 1947 को पारित हो गया।
▪️14-15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत, पाकिस्तान व भारत नामक दो राष्ट्रों के रूप में आजाद हो गया।
▪️वायसराय का पद समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर गवर्नर जनरल का पद सृजित किया गया।
▪️स्वतंत्र भारत के प्रथम व अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन थे।
▪️भारत सचिव के पद को समाप्त कर दिया गया।
▪️नए संविधान के निर्माण तक 1935 के अधिनियम के अनुसार शासन हुआ।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#अंतरिम_सरकार
2 सितम्बर 1946, को नवनिर्वाचित संविधान सभा ने भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया जो कि 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में बनी रही।अंतरिम सरकार की कार्यकारी शाखा का कार्य वायसराय की कार्यकारी परिषद करती थी जिसकी अध्यक्षता वायसराय द्वारा की जाती थी| इसमें कांग्रेस द्वारा नामित 3 मुस्लिम सदस्यों सहित कुल 12 सदस्य शामिल थे। भारत में ब्रिटिशों के आने के बाद यह प्रथम अवसर था जब भारत की सरकार भारतीयों के हाथों में थी। 26 अक्टूबर को लीग द्वारा नामित 5 सदस्य इसमें शामिल हुए और इन नए सदस्यों के लिए स्थान बनाने के लिए कांग्रेस द्वारा नियुक्त सदस्यों में हेर-फेर किया गया (दो सीटें पहले से ही खाली थीं इसके अलावा शरत बोस, सैय्यद अली जहीर व सर शफात अहमद खान ने त्यागपत्र दे दिया)। सरकार के सभी चौदह सदस्यों के विभाग निम्नलिखित थे-
#अंतरिम_सरकार_के_सदस्य -
▪️पंडित जवाहर लाल नेहरु - कार्यकारी परिषद् के उपाध्यक्ष,विदेश विभाग, राष्ट्रमंडल से सम्बंधित मामले
▪️वल्लभभाई पटेल - गृह, सुचना एवं प्रसारण
▪️बलदेव सिंह - रक्षा
▪️डॉ.जॉन - उद्योग एवं आपूर्ति
▪️सी.राजगोपालाचारी - शिक्षा
▪️सी.एच.भाभा - कार्य, खनन एवं शक्ति
▪️राजेंद्र प्रसाद -खाद्य एवं कृषि
▪️आसफ अली - रेलवे
▪️जगजीवन राम - श्रम
▪️लियाकत अली - वित्त
▪️टी.टी.चुंदरीगर - वाणिज्य
▪️अब्दुल रब नश्तर - संचार
▪️गजान्फर अली खान - स्वास्थ्य
▪️जोगेंद्र नाथ मंडल - विधि
#निष्कर्ष -
अगस्त 1946 में कांग्रेस ने अंतरिम सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया ताकि ब्रिटिश सरकार के लिए सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके। अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर 1946 से कार्य करना आरम्भ किया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राज्य_वित्त_आयोग
अनुच्छेद 280 के तहत, केंद्र के वित्त आयोग की तर्ज पर 1993 से भारत के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग की स्थापना की गयी थी जिसका उद्देश्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना और इसके लिए निम्न रूपों में सिफारिश करना होता है -
▪️राज्य द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल और फीस की विशुद्ध आय का पंचायतों तथा राज्य के बीच आवंटन करना जिसे दोनों के मध्य विभाजित किया जा सकता है। और पंचायत के विभिन्न स्तरों पर खर्च या आवंटित किया जा सकता है।
▪️पंचायतों को कितने कर, शुल्क, टोल और फीस सौंपी जा सकती है, का निर्धारण करना।
▪️पंचायतों को अनुदान सहायता।
#राज्य_वित्त_आयोग_के_कार्य :
राज्य वित्त आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं:-
▪️राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करना।
▪️राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज्य संस्थाओं की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न कदम उठाना।
▪️राज्य की संचित निधि से राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों को धन आवंटित करना।
▪️वित्तीय मुद्दों के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना।
▪️केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान की जानी वाली धनराशि का सदुपयोग करना।
▪️राज्य सरकार द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल, और अधिशुल्कों का राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज संस्थाओं की बीच आवंटन करना।
▪️कर, टोल, शुल्क, और फीस, जिसे राज्य में विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों द्वारा लगाया जा सकता है, का निर्धारण करना।
▪️संविधान के अनुच्छेद 243-I का संबंध वित्त आयोग है जो पंचायतों के विशेष मूल्यांकन के लिए वित्तीय स्थिति समीक्षा करता है। भारत में पंचायती राज संस्था की अवधारणा और आकांक्षा को उपयोग में लाने के लिए राज्य वित्त आयोग की भूमिका बहुत महत्तवपूर्ण है। यदि पर्याप्त स्वायत्तता और अधिकार के साथ अंतिम रैंक के अधिकारी तक वित्त आसानी या सावधानी से उपलब्ध होता है तो सत्ता के अंतरण को महसूस किया जा सकता है। इन पहलुओं के मद्देनजर राज्य वित्त आयोग की भूमिका को देखा जा सकता है।
#सकारात्मक_पक्ष :
▪️लोकतंत्र के विचार को बढ़ाबा देना।
▪️सरकार और शासन के वृहद विकासवादी पहलू।
▪️स्थानीय लोगों और स्थानीय नेताओं का सशक्तिकरण।
▪️दूरस्थ क्षेत्रों के लिए धनराशि का सही मात्रा और समय पर पहुंचना।
#नकारात्मक_पक्ष :
▪️राज्य अपने वित्तीय अधिकारों का प्रय़ोग करने में अनिच्छुक रहे हैं।
▪️राज्य वित्त आयोग स्वायत्तता में बहुत अधिक हस्तक्षेप और अतिक्रमण का कार्य कर रहा है।
▪️राज्यों के पास स्वंय के खर्चे के लिए पर्याप्त धन नहीं है जिस वजह से धन राशि को साझा करने के कारण मामूली धनराशि का राज्य सरकार द्वारा हमेशा विरोध किया जाता है।
▪️अभी तक राज्य वित्त आयोग के विचार को सच्ची भावना में लागू नहीं किया जा सका है।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#संविधान_सभा
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर पहली बार, वर्ष 1936 में एक संविधान सभा की मांग की थी. यह विचार एम.एन. रॉय के दिमाग की उपज था. ब्रिटिश सरकार ने 1940 के 'अगस्त प्रस्ताव' में कांग्रेस की इस बात को माना था. अंततः वर्ष 1942 में 'क्रिप्स प्रस्ताव' के तहत कांग्रेस की इस मांग को स्वीकार कर लिया गया.
संविधान सभा के गठन हेतु ब्रिटिश सरकार की ओर से 24 मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली आया।
कैबिनेट मिशन में 3 सदस्य थे पैट्रिक लॉरेंस, सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए बी एलेग्जेंडर। कैबिनेट मिशन ने अपनी रिपोर्ट 16 मई 1946 को पेश की।
कैबिनेट मिशन द्वारा संविधान सभा में कुल 389 सदस्य संख्या निर्धारित की गई।
▪️प्रांतीय विधान मंडलों में निर्वाचित – 293
▪️देशी रियासतों से मनोनीत – 93
▪️कमिश्नर क्षेत्रों से – 4 (अजमेर-मेरवाड़ा, बलूचिस्तान,कुर्ग, दिल्ली )
संविधान सभा के निर्माण हेतु जुलाई 1946 हुए चुनाव में प्रांतीय विधान मंडलों में निर्वाचित 293 सदस्यों में से कांग्रेस को 208 मुस्लिम लीग को 73 विभिन्न पार्टियों को 7 एवं स्वतंत्र एवं निर्दलीय प्रत्याशियों को 8 सीटें मिली ।
चुनाव में मुस्लिम लीग को अल्पमत मिलने के कारण मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाया जिसमें उन्होंने भारत के विभिन्न भागों में सुनियोजित तरीके से दंगे फैलाए गए।
#संविधान_सभा_की_प्रथम_बैठक :
संविधान सभा की प्रथम बैठक दिल्ली में 9 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें 207 सदस्यों ने भाग लिया एवं सभा के अस्थाई अध्यक्ष के रूप में सच्चिदानंद सिन्हा को चुना गया। जे बी कृपलानी तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे जिन्होंने डॉ सच्चिदानंद सिन्हा का नाम अध्यक्ष पद के लिए नाम प्रस्तावित किया एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे अनुमोदित किया संविधान सभा के प्रथम अधिवक्ता डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे।
#संविधान_सभा_की_दूसरी_बैठक :
संविधान सभा की दूसरी बैठक 11 दिसंबर 1946 को हुई इसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया।
#संविधान_सभा_की_तीसरी_बैठक :
संविधान सभा की तीसरी बैठक 13 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया और इसी के साथ संविधान का संविधान के निर्माण का कार्य शुरू हुआ । संविधान सभा के उपाध्यक्ष एच सी मुखर्जी थे।
#संविधान_निर्माण_हेतु_विभिन्न_समितियों_का_गठन :
संविधान के निर्माण हेतु विभिन्न समितियों का गठन किया गया जो कि निम्न प्रकार है-
▪️संघ शक्ति समिति - पंडित जवाहरलाल नेहरु
▪️मौलिक अधिकार समिति - सरदार वल्लभ भाई पटेल
▪️संघ संविधान समिति - जवाहर लाल नेहरू
▪️झंडा समिति - जे बी कृपलानी
▪️कार्य संचालन समिति - के एम मुंशी
▪️तदर्थ समिति - एस वर्धा
▪️प्रांतीय संविधान समिति - सरदार वल्लभ भाई पटेल
▪️प्रारूप समिति - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर
▪️राष्ट्रध्वज संबंधी तदर्थ समिति - डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद
प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ जिनका अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को बनाया गया जिनका संविधान सभा में चयन पश्चिम बंगाल से हुआ था। इस समिति में 7 सदस्य थे। प्रारूप समिति के उपाध्यक्ष के एम मुंशी थे। प्रारूप समिति की पहली बैठक 30 अगस्त 1947 को हुई। संविधान के प्रारूप पर 114 दिन बहस हुई।
भारत के विभाजन के पश्चात संविधान सभा में सदस्यों की संख्या 299 रह गई। 229 सदस्य भारतीय प्रांतों से 70 सदस्य देशी रियासतों से थे ।राजस्थान से कुल 12 सदस्य सम्मिलित थे। संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा के कुल 12 अधिवेशन एवं संविधान का तीन बार वाचन किया गया।
▪️प्रथम वाचन 4 नवंबर 1948 से 9 नवंबर 1948 तक ( प्रथम वाचक डॉ राधाकृष्णन थे ).
▪️द्वितीय वाचन 15 नवंबर 1948 से 17 अक्टूबर 1949 तक.
▪️तृतीय वाचन 17 नवंबर 1949 से 26 नवंबर 1949 तक.
संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई जिसमें संविधान सभा के कुल 284 सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए । इस दिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया संविधान सभा में कुल 12 महिलाओं ने भाग लिया लेकिन 8 महिलाओं ने ही संविधान पर हस्ताक्षर किए ।महिला समूह की अध्यक्ष श्रीमती हंसा मेहता थी।
संविधान सभा ने संविधान का निर्माण 26 नवंबर 1949 ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को पूरा किया और इसी दिन इसे आत्मार्पित, अधिनियमित एवं अंगीकृत किया गया एवं इस दिन संविधान के 15 अनुच्छेद तुरंत प्रभाव से लागू कर दिए गए । इसी कारण से 26 नवंबर को विधि दिवस मनाया जाता है।
संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ जिसमें भारतीय संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा एवम इसमें 63,96,729 रुपए खर्च हुए।
संपूर्ण संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और इसी दिन को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाता है और प्रथम गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को मनाया गया गणतंत्र शब्द फ्रांस से लिया गया।
राज्य_सूचना_आयोग
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राज्य_सूचना_आयोग
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, राज्य स्तर पर राज्य सूचना आयोग के निर्माण की अनुमति प्रदान करता है।
#राज्य_सूचना_आयोग_की_संरचना :
राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और दस राज्य सूचना आयुक्तों होते हैं। जिनकी नियुक्ति एक समिति की सिफारिश के बाद राज्यपाल द्वारा की जाती है। इस समिति का अध्यक्ष, राज्य का मुख्यमंत्री होता है तथा इसमें राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री द्वारा नामित राज्य का एक कैबिनेट मंत्री शामिल होता है। इस पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठतम् व्यक्ति होना चाहिए और उसके पास लाभ का कोई अन्य पद नहीं होना चाहिए तथा वह किसी भी राजनीतिक दल के साथ या किसी भी व्यापार या किसी पेशे से नहीं जुड़ा हुआ होना चाहिए।
#कार्यकाल_और_सेवा :
राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के पास 5 साल की अवधि या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक अपने पद पर बने रह सकते हैं। वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।
#राज्य_सूचना_आयोग_की_शक्तियां_और_कार्य :
▪️आयोग इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्व्यन से संबंधित अपनी वार्षिक रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है। राज्य सरकार, राज्य विधानसभा के पटल पर इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करती है।
▪️यदि कोई उचित आधार मिलता है तो राज्य सूचना आयोग किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।
▪️आयोग के पास लोक प्राधिकरण द्वारा अपने निर्णय के अनुपालन को सुरक्षित करने का अधिकार है।
▪️यह आयोग का कर्तव्य है कि किसी भी व्यक्ति से प्राप्त एक शिकायत की पूछताछ करे।
▪️एक शिकायत की जांच के दौरान आयोग ऐसे किसी भी रिकार्ड की जांच कर सकता है जो लोक प्राधिकरण के नियंत्रण में है और इस तरह के रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर रोका नहीं जा सकता है।
जांच करते समय आयोग के पास निम्नलिखित मामलों के संबंध में सिविल न्यायालय की शक्ति है:
▪️दस्तावेजों की पड़ताल और निरीक्षण की आवश्यकता होती है।
▪️गवाहों, या द्स्तावेजों और अन्य किसी मामलों का, जिसका निर्धारण किया जा सकता है, की पूछताछ के लिए सम्मन जारी करना।
▪️लोगों को बुलाना और या उन्हें उपस्थिति होने के लिए कहना तथा उन्हें सही मौखिक या लिखित सबूतों का प्रपत्र देना व दस्तावेजों या चीजों को उनके सम्मुख प्रस्तुत करना।
▪️शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना।
▪️किसी भी अदालत या कार्यालय से कोई भी सार्वजनिक रिकार्ड प्राप्त करने के लिए प्रार्थन करना।
▪️जब एक लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं करता है तब आयोग इसके पालन को सुनिश्चत करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश कर सकता है।
#मूल्यांकन :
केंद्र की तरह, इन आयोगों के पास भी बकाया मामलों का बोझ बढता जा रहा है। कम स्टाफ और रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं होने के कारण बकाया मामलों में बढोत्तरी होते जा रही है। अक्टूबर 2014 में, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा अपीले और शिकायतें लंबित थी। लेकिन, इस तरह के उदाहरण भी हैं जहां कोई भी बकाया मामला नहीं है जैसे- मिजोरम, सिक्किम और त्रिपुरा के पास कोई भी मामला लंबित नहीं है। जानकारी देने के लिए आयोग के पास सीमित शक्तियां हैं और विसंगतियों को देखने के बावजूद भी वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है।
हालांकि, राज्य सूचना आयोग सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इस प्रकार ये भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, उत्पीड़न और अधिकार के दुरुपयोग से निपटने में मदद कर रहे हैं।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#कैबिनेट_मिशन_योजना [ 16 मई 1946 ]
द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गया था और इंगलैंड ने पहले आश्वासन दे रखा था कि युद्ध में विजयी होने के बाद वह भारत को स्वशासन का अधिकार दे देगा. इस युद्ध के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार की स्थिति स्वयं दयनीय हो गयी थी और अब भारतीय साम्राज्य पर नियंत्रण रखना सरल नहीं रह गया था. बार-बार पुलिस, सेना, कर्मचारी और श्रमिकों का विद्रोह हो रहा था. अधिक दिनों तक भारतीय साम्राज्य को सुरक्षित रख पाना इंगलैंड के लिए असंभव होता जा रहा था. भारत की राजनीति परिस्थिति का अध्ययन करने और समस्या का निदान खोजने के लिए ब्रिटिश संसद ने एक प्रतिनिधिमंडल मार्च, 1946 को भेजा. इस प्रतिनिधिमंडल ने लॉर्ड वेवेल तथा भारतीय नेताओं से मिलकर एक योजना तैयार की जिसे "कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य था भारत में पूर्ण स्वराज्य लाना. इसने भारत के लिए एक नया संविधान तथा एक अस्थाई सरकार की स्थापना का लक्ष्य रखा था.
महात्मा गाँधी के विचारानुसार "तत्कालीन परिस्थतियों में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत यह सर्वोत्तम प्रलेख था." लेकिन इस योजना का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसमें केंद्र सरकार को काफी दुर्बल रखा गया था और प्रांत को अपना निजी संविधान बनाने का अधिकार था. क्रिप्स मिशन की तरह ही कैबिनेट मिशन भी न तो पूरी तरह स्वीकृत की जा सकती थी और न ही अस्वीकृत.
#कैबिनेट_मिशन_योजना_की_मुख्य_बातें :
▪️ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों को मिलाकर एक भारतीय संघ का निर्माण किया जायेगा. भारतीय संघ के अधीन परराष्ट्र नीति, प्रतिरक्षा और संचार व्यवस्था रहेगी, जिसके लिए आवश्यक धन भी संघ को ही जुटाना होगा.
▪️संघ की एक कार्पालिका और विधानमंडल होगा जिसमें ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. अन्य सभी विषय सरकार के अधीन होंगे.
▪️प्रान्तों को यह अधिकार दिया गया कि वे अलग शासन सबंधी समूह बनाएँ. भारत के विभिन्न प्रान्तों को तीन समूहों में बाँटा गया –
• मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बिहार और उड़ीसा
• उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब और सिंध
• बंगाल और असम. प्रत्येक समूह को अधिकार दिया गया कि वह अपने विषय के सम्बन्ध में निर्णय लें और शेष विषय प्रांतीय मंत्रमंडल को सौंप दें.
▪️देशी राज्यों के द्वारा जो विषय संघ को नहीं सौंपे जायेंगे उन पर देशी राज्यों का ही अधिकार होगा.
▪️संविधान के निर्माण के बाद ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों को सार्वभौम संप्रभुता का अधिकार हस्तांतरित कर देगी. भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा उससे अलग रहने का निर्णय देशी राज्य स्वयं करेंगे.
▪️योजना के कार्यान्वित होने के दस वर्ष पश्चात् या प्रत्येक दस वर्ष पर प्रांतीय विधानमंडल बहुमत द्वारा संविधान की धाराओं पर पुनर्विचार कर सकता है.
#संविधान_के_निर्माण_से_सम्बंधित_निम्नलिखित
#बातें_कैबिनेट_मिशन_में_निहित_थीं :
▪️प्रति दस लाख की जनसँख्या पर एक सदस्य का निर्वाचन होगा.
▪️प्रान्तों के संविधानसभा में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर दिया जायेगा.
▪️अल्पसंख्यक वर्गों को आबादी से अधिक स्थान देने की प्रथा समाप्त हो जाएगी.
▪️रियासतों को भी जनसंख्या के आधार पर ही प्रतिनिधित्व दिया जायेगा.
▪️संविधानसभा की बैठक दिल्ली में होगी और प्रारम्भिक बैठक में अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों का चुनाव कर लिया जायेगा.
▪️प्रान्तों के लिए अलग संविधान की व्यवस्था भी योजना के अंतर्गत थी. प्रत्येक समूह अपने संविधान के सम्बन्ध में तथा संघ में रहने का निर्णय करेगा.
▪️केंद्र में एक अस्थायी सरकार की स्थापना होगी और उसमें भारत के सभी प्रमुख दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा. केन्द्रीय शासन के सभी विभाग इन प्रतिनिधियों के अधीन रहेंगे तथा वायसराय इनकी अध्यक्षता करेगा.
▪️इंगलैंड भारत को सत्ता सौंप देगा. इस सिलसिले में जो मामले उत्पन्न हों उन्हें तय करने के लिए भारत और इंगलैंड के बीच एक संधि होगी.
अंततः 14 जून, 1946 को कांग्रेस और मुस्लीम लीग दोनों ने इस योजना को स्वीकृत दे दी. हिन्दू महासभा तथा साम्यवादी दल ने इसकी कटु आलोचना की. अंतरिम सरकार की स्थापना के प्रश्न पर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में मतभेद हो गया. मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह कांग्रेस के बिना ही अंतरिम सरकार का निर्माण कर लेगी लेकिन वायसराय ने लीग के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
1946 के चुनाव में निर्वाचन के लिए निर्धारित कुल 102 स्थानों में कांग्रेस को 59 स्थान प्राप्त हुए थे और मुस्लिम लीग को मात्र 30 स्थान प्राप्त हुए. मुस्लिम लीग को इस चुनाव परिणाम से घोर निराशा हुई. 8 अगस्त, 1946 को कांग्रेस की कार्य समिति ने प्रस्ताव पारित कर अंतरिम सरकार बनाने की योजना स्वीकार कर ली. अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर, 1946 को अपना कार्यभार संभाल लिया और पंडित नेहरु इसके प्रधानमंत्री बने. आगे चलकर वायसराय की सलाह पर मुस्लिम लीग ने अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल होना स्वीकार कर लिया, लेकिन सरकार को सहयोग देने के बदले यह हमेशा उसके कार्य में अड़ंगा डालती रही. कैबिनेट मिशन ने भारत के विभाजन का मार्ग तैयार कर दिया था.
#निष्कर्ष :
कैबिनेट मिशन का प्रमुख उद्देश्य भारत में सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के तरीकों को खोजना ओर संविधान का निर्माण करने वाले तंत्र के बारे में सुझाव देना था। अंतरिम सरकार का गठन करना भी इसका एक प्रमुख उद्देश्य था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#केंद्रीय_सूचना_आयोग
सूचना के अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना 2005 में भारत सरकार द्वारा की गयी थी। केंद्रीय सूचना आयोग शासन की प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो लोकतंत्र के लिए जरूरी है। इस तरह की पारदर्शिता भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, उत्पीड़न और दुरुपयोग या अधिकार के दुरुपयोग की जांच करने के लिए आवश्यक है।
#केंद्रीय_सूचना_आयोग_की_संरचना :
केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त और दस से अधिक सूचना आयुक्त होते हैं। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति की सिफारिश के बाद की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री के अलावा, लोक सभा में नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री शामिल रहते हैं।
उक्त सदस्य एक ऐसा व्यक्ति होने चाहिए जिन्हें सार्वजनिक जीवन में ख्याति प्राप्त हो। इसके साथ-साथ उनके कानून की जानकारी, प्रबंधन, पत्रकारिता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, प्रशासन व शासन, मास मीडिया और सामाजिक सेवा का अनुभव होना चाहिए।
उक्त सदस्य किसी भी राज्य या संघ शासित प्रदेश की विधान सभा का सदस्य नहीं होने चाहिए। वह किसी भी राजनीतिक दल या किसी भी व्यवसाय के साथ जुड़ा नहीं होने चाहिए तथा उसके पास कोई लाभ का पद नहीं होना चाहिए या उनके पास कोई अन्य लाभ का पेशा नहीं होना चाहिए।
#केंद्रीय_सूचना_आयोग_के_कार्य_और_शक्तियां :
केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य और शक्तियां निम्नलिखित हैं-
▪️यदि किसी मामले में कोई उचित आधार होता है तो आयोग किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।
▪️आयोग के पास लोक प्राधिकरण द्वारा अपने फैसले के अनुपालन को सुरक्षित करने की शक्ति है।
▪️यदि लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है तो आयोग उन कदमों को उठाने की सिफारिश कर सकता है जो इस तरह के समानता को बढ़ावा देने के लिए लिये जाने चाहिए।
▪️यदि किसी भी व्यक्ति द्वारा शिकायत प्राप्त होती है यह आयोग का कर्तव्य है कि वह उस प्राप्त शिकायत की पूछताछ करे।
1. निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर कौन अपनी अनुरोधित जानकारी का जवाब प्राप्त नहीं कर सका है।
2. वह यह तय करता है कि दी गई जानकारी, अधूरी, भ्रामक या गलत है और प्राप्त जानकारी किसी अन्य मामले से संबंधित है।
3. एक जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति के अभाव में कौन व्यक्ति एक सूचना अनुरोध प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हो पाया है।
4. वह यह तय करता है कि शुल्क के रूप में ली जा रही फीस अनुचित है।
5. किसने उस जानकारी देने से मना कर दिया था जिसका अनुरोध किया गया था।
▪️एक शिकायत की जांच के दौरान आयोग उस किसी भी रिकार्ड की जांच कर सकता है जो किसी भी लोक प्राधिकरण के नियंत्रण में है और इस तरह के रिकॉर्ड पर किसी भी आधार पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। दूसरे शब्दों में जांच के दौरान सभी सार्वजनिक विवरणों को जांच के लिए आयोग के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।
▪️जांच होने के दौरान, आयोग के पास एक सामान्य अदालत की शक्तियां हैं।
▪️आयोग को इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के आधार पर केंद्र सरकार को एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है। केंद्र सरकार को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करना होता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) इसलिए पारित किया गया था ताकि मांगी जा रही जानकारी बहुत सरल, आसान, समयबद्ध और सुगम हो सके जो इस कानून को सफल शक्तिशाली और प्रभावी बनाता है। जानकारी देने के लिए आयोग के पास केवल सीमित शक्तियां हैं और यदि कोई विसंगतियां पायी भी जाती हैं आयोग के पास कार्रवाई करने तक का अधिकार नहीं है। आयोग के पास कम कर्मचारी हैं और इसके पास बहुत सारे मामलों का बोझ है। आयोग में समय पर रिक्त पदों नहीं भरे जा रहे हैं। इन कारणों की वजह से आयोग के पास विशाल मात्रा में पिछला कार्य बकाया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम केवल सरकारी संस्थानों पर लागू होता है और यह निजी उद्यमों पर लागू नहीं होता है। यहां तक कि कुछ सार्वजनिक संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं आना चाहती हैं। जैसे- भारतीय क्रिके़ट बोर्ड (बीसीसीआई)। यहां तक कि राजनीतिक दल अपने धन के बारे में जानकारी देने तथा अन्य गतिविधियों को जनता के साथ साझा करने की अनिच्छुक रही हैं।
#निष्कर्ष :
इसलिए, आयोग में रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाना चाहिए। आयोग को कुशलता से चलाने के लिए आयोग के पास जरूरी लोगों की संख्या हो, इसके लिए एक महत्वपूर्ण समीक्षा जरूर होनी चाहिए। सभी सार्वजनिक संस्थानों को आरटीआई अधिनियम के तहत जनता के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। लोगों को राजनैतिक दलों से जानकारी लेनी चाहिए ताकि वो और अधिक जिम्मेदार बन सके और उनके वित्त पोषण के स्रोत और अधिक पारदर्शी हो सके। इसे चुनावों में काले धन के उपयोग की भी जांच करनी चाहिए। इसके अलावा, उन निजी कंपनियों को भी इस अधिनियम के दायरे में आना चाहिए जो सार्वजनिक कार्यों में शामिल हैं।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#बेवेल_योजना_और_शिमला_समझौता
14 जून 1945 में लार्ड वेवेल द्वारा भारत की वैधानिक समस्या के समाधान के लिए शिमला सम्मेलन में जो योजना प्रस्तुत की गई उसे ही वेवेल योजना के नाम से जाना जाता है
▪️अक्टूबर 1943 में लार्ड लिनलिथगो के स्थान पर लार्ड बिस्काउंट वेवल पर वायसराय और गवर्नर जनरल नियुक्त किए गए।
▪️इस समय भारत की स्थिति तनावपूर्ण थी उन्होंने भारतीय संवैधानिक गतिरोध दूर करने की दिशा में प्रयास प्रारंभ किया।
▪️सर्वप्रथम भारत छोड़ो आंदोलन के समय गिरफ्तार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य को रिहा किया गया
मार्च 1945 में वायसराय इंग्लैंड गए और वहां ब्रिटिश सरकार से भारतीय मामलों पर चर्चा की।
▪️14 जून 1945 को उन्होंने अपने विचार विमर्श के परिणामों से जनता को एक रेडियो प्रसारण द्वारा अवगत करवाया।
▪️भारत राज्य सचिव लार्ड एमरी ने कॉमंस सभा में इसी प्रकार का वक्तव्य दिया और यह कहा कि मार्च 1942 का प्रस्ताव पूर्णरूपेण फिर भी उपस्थित था।
▪️वायसराय और भारत सचिव दोनों के विचार और मनोभाव. समान थे।
▪️भारत के विद्यमान राजनीतिक गतिरोध को दूर करना ,भारत को उसके पूर्ण स्वशासन के लक्ष्य को आगे बढ़ाना और संवैधानिक समझौता प्राप्त करना था।
वेवेल योजना के प्रमुख प्रावधान निम्न प्रकार थे
#वेवेल_योजना_के_मुख्य_बिंदु :
▪️वॉयस राय की कार्यकारिणी परिषद का पुर्नगठन किया जाएगा, परिषद में वायसराय और कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय होंगे।
▪️प्रतिरक्षा को छोड़कर समस्त भाग भारतीय को दिए जाएंगे।
▪️कार्यकारिणी में मुसलमान सदस्य की संख्या सवर्ण हिंदुओं के बराबर होगी।
▪️कार्यकारिणी परिषद एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगा,इसे देश का शासन तब तक चलाना है जब तक कि एक नए स्थाई सविधान पर आम सहमति नहीं बन जाती है, गवर्नर जनरल बिना कारण निशेषाधिकार का प्रयोग नहीं करेगा।
▪️कांग्रेस के नेता रिहा किए जाएंगे और शीघृ शिमला में एक सम्मेलन बुलाया जाएगा।
▪️युद्ध समाप्त होने के बाद भारतीय स्वयं ही अपना संविधान बनाएंगे।
▪️भारत में ग्रेट ब्रिटेन के वाणिज्य और अन्य हितों की देखभाल के लिए एक उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी।
▪️ब्रिटिश सरकार का अंतिम उद्देश्य भारत संघ का निर्माण करके भारत में स्वशासन की स्थापना करना है।
▪️हिंदू और मुसलमान समुदाय के अतिरिक्त भारत के अन्य समुदायों जेसे दलित सिक्ख पारसी आदि को भी उचित प्रतिनिधित्व जाएगा।
#शिमला_समझौता :
भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवेल द्वारा 25 जून 1945 में भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों का एक सम्मेलन शिमला में आयोजित किया गया था इस सम्मेलन को ही शिमला सम्मेलन के नाम से जाना जाता है
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारत की वैधानिक समस्या को सुलझाना था।
▪️शिमला सम्मेलन के आयोजन से जनता में ऊंची ऊंची आशाएं बंद गई।
▪️शिमला सम्मेलन 25 जून 1945 से प्रारंभ हुआ जिसे 3 दिन की बातचीत के पश्चात स्थगित कर दिया गया।
▪️यह सम्मेलन वायसराय लार्ड बिस्काउंट वेवेल ने बुलाया था जिसमें 21 नेताओं को आमंत्रित किया था
सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख नेता थे जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना ,अबुल कलाम आजाद ,सरदार वल्लभभाई पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खॉ तारा सिंह और इस्माइल खान थे।
▪️इस सम्मेलन में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अबुल कलाम आजाद ने किया था।
▪️गांधीजी ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया था यद्यपि वे शिमला में उपस्थित रहे।
▪️मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में मोहम्मद अली जिन्ना ने भाग लिया था।
▪️11 जुलाई को मोहम्मद अली जिन्ना वेवेल से मिले और इस बात पर बल दिया कि मुस्लिम लीग को ही समस्त मुसलमानों का प्रतिनिधित्व माना जाए और वॉइस राय की सूची में मुस्लिम लीग से बाहर का कोई मुसलमान नहीं होना चाहिए।
▪️अर्थात अर्थात मोहम्मद अली जिन्ना ने इस सम्मेलन में शर्त रखी कि वॉइस राय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्ति हेतु मुस्लिमों सदस्यों का चयन वह स्वयं करेगी।
#वेवेल_योजना_की_असफलता_के_कारण_व #प्रतिक्रिया :
▪️अबुल कलाम आज़ाद ने शिमला सम्मेलन की असफलता को भारत के राजनीतिक इतिहास में एक जल विभाजक की संज्ञा दी।
▪️वेवेल योजना का असफल होने का मुख्य कारण मुस्लिम लीग का अपनी शर्तों पर अडना और स्वयं वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य चुनाव करना।
▪️इस सफलता के लिए वेवेल और जिन्ना आंशिक रूप से उत्तरदायी थे।
▪️जैसा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने समाचार पत्र सम्मेलन में कहा “यह वैवेल योजना हमारे लिए एक फंदा था इससे हम लोग मारे जाते।
▪️प्रस्तावित कार्यकारिणी में हमारी संख्या 1/3 रह जाती क्योंकि अन्य अल्पसंख्यक वर्ग, अनुसूचित जातियां सिक्ख, ईसाइयों के प्रतिनिधि होने थे।
▪️सबसे महत्वपूर्ण यह बात थी की पंजाब से मलिक खिजर हयात खॉ जो संघर्ष दल के थे और मुस्लिम लीगी नहीं थे वेवेल उन्हें रखने पर हठ करते थे।
▪️कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद में इस गतिरोध का उत्तरदायित्व मोहम्मद अली जिन्ना को दिया।
▪️कुछ हग तक वेवेल योजना की असफलता का उत्तरदायित्व वेवेल पर भी था उन्हें भारतीय नेताओं से सलाह करके अपनी परिषद की रचना करनी चाहिए थी
▪️सम्भवत:कुछ परिवर्तनों के साथ कांग्रेसी नेता उस सूची को स्वीकार कर लेते हैं।
▪️दूसरे मुस्लिम लीग को इस योजना को कार्य करने की और उन्नति के मार्ग में रूकावट डालने की अनुमति नही देनी चाहिए।
▪️आरंभ में वेवल ने कांग्रेस अध्यक्ष को इस बात का विश्वास दिलाया गया की किसी भी दल को इस योजना में जानबूझकर बाधा डालने की अनुमति नहीं दी जाएगी लेकिन उस समय ऐसा कुछ नहीं हुआ।
▪️लेकिन शिमला सम्मेलन का एक परिणाम यह हुआ कि मोहम्मद अली जिन्ना की स्थिति और भी सुदृढ हो गई जिस का दृश्य 1945- 46 के चुनाव में स्पष्ट दिखाई देता है।
▪️कुछ आलोचकों का विचार है कि शिमला सम्मेलन चर्चिल की सरकार पर लेबर पार्टी की संभावित विजय अथवा रूस के दबाव के कारण हुआ है जैसा की क्रिप्स शिष्टमंडल अमेरिका के दबाव के कारण था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राज्य_मानवाधिकार_आयोग
मानव संरक्षण अधिकार अधिनियम (1993), के आधार पर राज्य स्तर पर राज्य मानवाधिकार आयोग बना है। एक राज्य मानवाधिकार आयोग भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची और समवर्ती सूची के अंतर्गत शामिल विषयों से संबंधित मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर सकता है।
#संरचना :
मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2006 में एक अध्यक्ष के साथ तीन सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष, उच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। इसके अन्य सदस्य होने चाहिए,
▪️जिला न्यायाधीश के रूप में कम से कम सात साल के अनुभव के साथ राज्य में उच्च न्यायालय का सेवारत या सेनानिवृत न्यायाधीश या जिला न्यायाधीश।
▪️एक व्यक्ति के पास मानव अधिकारों से संबंधित व्यावहारिक अनुभव या ज्ञान होना चाहिए।
राज्य का राज्यपाल समिति के सिफ़ारिश से जिसमें मुख्यमंत्री प्रमुख के रूप में, विधान सभा के स्पीकर, गृह राज्य मंत्री और विधान सभा में विपक्ष के नेता शामिल होते हैं अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। अध्यक्ष और विधान परिषद के विपक्ष के नेता भी समिति के सदस्य हो सकते हैं, यदि राज्य में विधान परिषद हो।
आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है या जब तक वे 70 वर्ष की आयु प्राप्त कर लें, जो भी पहले हो| उनके कार्यकाल के पूरा होने के बाद, वे राज्य सरकार या केंद्र सरकार के अधीन आगे रोजगार के पात्र नहीं होते हैं। हालांकि, अध्यक्ष या सदस्य एक और कार्यकाल के लिए योग्य होते हैं (यदि वे 70 वर्ष की तय आयु सीमा के भीतर हों)।
#आयोग_के_कार्य :
मानव अधिकार अधिनियम, 1993 के संरक्षण के अनुसार नीचे दिए गए राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य हैं :
▪️आयोग के समक्ष पीड़ित द्वारा स्वतः संज्ञान या याचिका पर पूछताछ करना या किसी भी व्यक्ति का मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत करना या एक लोक सेवक द्वारा इस तरह के उल्लंघन की रोकथाम में लापरवाही करना।
▪️इस तरह के कोर्ट के अनुमोदन के साथ एक न्यायालय के समक्ष मानव अधिकारों के उल्लंघन के किसी भी आरोप से जुड़े किसी भी कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
▪️राज्य सरकार के नियंत्रण में किसी भी जेल या अन्य संस्था का दौरा करना और कैदियों के रहने वाली जगह को रहने लायक बनाने के लिए सम्बंधित लोगों को निर्देश देना।
▪️तत्समय प्रभाव के लिए संविधान के तहत मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए दिये गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना तथा उसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफ़ारिश करना।
▪️मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान का जिम्मा लेना व उसे बढ़ावा देना।
▪️समाज के विभिन्न वर्गों के बीच में मानव अधिकारों की साक्षरता को फैलाना और इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना।
▪️मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों और संस्थाओं के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
▪️इस तरह के अन्य कार्य की ज़िम्मेदारी लेना करना जिससे मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए विचार किया जा सके।
#आयोग_के_अधिकार :
▪️आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने का अधिकार निहित है।
▪️आयोग के पास सिविल अदालत के सभी अधिकार होते हैं और इसकी कार्यवाही में एक न्यायिक प्रतिष्ठा होती है।
▪️यह राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के अधीनस्थ से जानकारी या रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कह सकता हैं।
आयोग के पास तत्समय प्रभाव के लिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी विशेषाधिकार के अधीन जो किसी भी कानून के तहत हो, पूछताछ करने का अधिकार है, सार्थक मसलों पर पूछताछ से संबन्धित मसलों पर जानकारी पेश करने का अधिकार है| इसके होने के एक वर्ष के भीतर आयोग इस मामले पर गौर कर सकता है।
#विवेचना :
राज्य मानवाधिकार आयोग के सीमित अधिकार होते हैं और इसकी कार्यप्रकृति केवल सलाहकार की है| आयोग के पास मानव अधिकारों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करने का अधिकार नहीं होता है| यहां तक की पीड़ित को आर्थिक राहत के साथ यह किसी भी प्रकार की राहत प्रदान नहीं कर सकता।
राज्य मानवाधिकार आयोग की सिफ़ारिशें राज्य सरकार या प्राधिकारी पर बाध्य नहीं हैं, लेकिन आयोग को एक महीने के भीतर उसकी सिफारिश पर की गई कार्रवाई के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
#निष्कर्ष :
राज्य मानवाधिकार आयोग को अपने अधिकार बढ़ाने की आवश्यकता है। इसे पीड़ितों को न्याय दिलवाने में विभिन्न तरीकों से बढ़ाया जा सकता है। आयोग के पास पीड़ित को आर्थिक राहत के साथ साथ अंतरिम और तत्काल राहत प्रदान करने का अधिकार होना चाहिए। आयोग के पास मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वालों को दंडित करने का अधिकार भी होना चाहिए, जो भविष्य में इस तरह के कार्यों को करने में निवारक के रूप में काम कर सकें| आयोग की कार्यप्रणाली में राज्य सरकार का हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए क्योंकि यह आयोग के कामकाज को प्रभावित कर सकता है|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#राजगोपालाचारी_फार्मूला [ 1944 ]
राजगोपालाचारी द्वारा कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए 10 जुलाई 1944 को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, जिसे राजगोपालाचारी फार्मूला के नाम से जाना जाता है । यह फार्मूला अप्रत्यक्ष रूप से पृथक पाकिस्तान की अवधारणा पर आधारित प्रस्ताव था।
#राजगोपालाचारी_फार्मूला_की_मुख्य_विशेषताएं :
इस प्रस्ताव की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार थीं-
▪️मुस्लिम लीग, भारतीय स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे।
▪️प्रांतो में अस्थायी सरकारों की स्थापना के कार्य में मुस्लिम लीग, कांग्रेस के साथ सहयोग करे।
▪️युद्ध की समाप्ति के उपरान्त एक कमीशन द्वारा उत्तर-पूर्वी तथा उत्तर पश्चिमी भारत में उन क्षेत्रों को निर्धारित किया जाय जिसमें मुसलमान स्पष्ट बहुमत में है. उन क्षेत्रों में जनमत सर्वैक्षण कराया जाय तथा उसके आधार पर यह निश्चित किया जाय कि वे भारत से पृथक होना चाहते है या नही ।
▪️देश की विभाजन की स्थिति में आवश्यक विषयों-प्रतिरक्षा, वाणिज्य, संचार तथा आवागमन इत्यादि के संबंध में दोनों राष्ट्रों के मध्य कोई संयुक्त समझौता किया जाये।
▪️यह बातें उसी स्थिति में स्वीकृति होंगी, जब ब्रिटेन भारत को पूरी तरह से स्वतंत्र घोषित कर देगा ।
▪️इस प्रस्ताव को भी मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया । हिन्दू नेताओं ने भी तीब्र आलोचना की।
#जिन्ना_द्वारा_राजगोपालाचारी_योजना_को
#अस्वीकार_करने_के_कारण-
▪️इस योजना में मुसलमानों को अपूर्ण, अंगहीन तथा दीमक लगा हुआ पाकिस्तान दिया गया, क्योंकि वह तो संपूर्ण बंगाल, असम, सिंध, पंजाब और उत्तरी-पश्चिमी प्रांत व बलूचिस्तान चाहता था।
▪️इसमें जनमत संग्रह में गैर मुसलमानों को भी भाग लेने की अनुमति दे दी गई थी, जबकि जिन्ना केवल मुसलमानों को मताधिकार देना चाहता था।
▪️इसमें प्रतिरक्षा, संचार और आवागमन के साधनों के संबंध में संयुक्त व्यवस्था का प्रस्ताव था, जिसे जिन्ना मानने को तैयार नहीं था।
अतः इन सभी बातों को लेकर सी.आर.फार्मूले के संबंध में वार्ता असफल रही।
#निष्कर्ष
राजगोपालाचारी फार्मूले की मूल संकल्पना द्विराष्ट्र सिद्धांत और ब्रिटिशों से भारत की स्वतंत्रता को लेकर मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलग अलग विचारों के कारण पैदा हुए मतभेदों को सुलझाने की थी।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राष्ट्रीय_अनुसूचित_जनजाति_आयोग
संविधान के अनुच्छेद 338A में यह उल्लेख किया गया है कि अनुसूचित जनजातियों के लिए एक आयोग होगा जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के नाम से जाना जाएगा। आयोग का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के तहत अनुसूचित जनजातियों को उपलब्ध कराए गये सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करे। हालांकि, आयोग के विभिन्न कार्य और शक्तियां हैं जिनका उल्लेख संविधान में किया गया है।
#राष्ट्रीय_अनुसूचित_जनजाति_आयोग :
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 366 (25) उन समुदायों को अनुसूचित जनजाति के लिए सदर्भित करता है जिनका निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार किया गया है। यह अनुच्छेद कहता है कि केवल वो समुदाय जिन्हें एक आरंभिक सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से या एक संसदीय संशोधन अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा घोषित किया गया है उन्हें ही अनुसूचित जनजाति माना जाएगा।
अनुच्छेद 338A में इस बात का उल्लेख है कि अनुसूचित जनजातियों के लिए लिए एक आयोग होगा जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के रूप में जाना जाएगा।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्यालय के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल कार्यालय में कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष का होता है। आयोग के अध्यक्ष को एक केंद्रीय मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है और उपाध्यक्ष को एक राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है। आयोग के अन्य सदस्यों को भारत सरकार के एक सचिव का रैंक प्राप्त होता है।
#संवैधानिक_प्रावधान :
#संविधान_के_अनुसार:
▪️अनुसूचित जनजातियों के लिए लिए एक आयोग होगा जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के रूप में जाना जाएगा।
▪️आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और मुहर सहित एक अधिपत्र के माध्यम से की जाएगी।
▪️आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति रहेगी।
हालांकि, केंद्र और प्रत्येक राज्य सरकारें उन प्रमुख सभी नीतिगत मामलों पर आयोग से परामर्श करेंगे जो अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करते हैं।
उदाहरण के लिए, भारत की अनुसूचित जनजातियां गोंड, आंध्र प्रदेश में भील, अरुणाचल प्रदेश में अपातनी व अदि जैसी जनजातियां हैं।
आयोग की शक्तियों और कार्यों का उल्लेख निम्नवत किया जा रहा है:
#शक्तियां :
▪️किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी करना और उपस्थित होने के लिए बुलाना तथा पूछताछ करना;
▪️किसी भी दस्तावेजों की खोज करना और प्रस्तुत करना;
▪️हलफनामों पर सबूत प्राप्त करना
▪️किसी भी न्यायालय अथवा कार्यालय से कोई भी सार्वजनिक रिकॉर्ड या उसकी प्रति की मांग करना;
▪️गवाहों और दस्तावेजों की जांच के लिए मुद्दे को आयोग के पास भेजना; और
▪️राष्ट्रपति शासन द्वारा, निर्धारित किसी भी मामले का निर्धारण करना।
#आयोग_के_कार्य :
▪️संविधान के तहत अनुसूचित जनजातियों को उपलब्ध कराए गये सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और उन पर नजर रखना या अन्य किसी कानून के तहत कुछ समय के लिए लागू करना या भारत सरकार के किसी भी आदेश और सुरक्षा उपायों की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करना;
▪️अनुसूचित जनजातियों के लिए बनायी जाने वाली सामाजिक आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में हिस्सा लेना और सलाह देना तथा केंद्र तथा किसी भी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना;
▪️केंद्र या किसी राज्य द्वारा बनाये गये सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन और अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के अन्य उपायों की रिपोर्ट तैयार करना जिसके लिए इन्हें प्रभावी बनाने की सिफारिश की गयी है;
▪️राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट, और संसद द्वारा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास और उन्नति से संबंधित अन्य कार्यों के लिए बनाये गये कानूनों को लागू कर इनका निर्वहन करना
▪️उन उपायों का निर्माण करना जिससे वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों को लघु वन उपज से संबंधित स्वामित्व अधिकार देने की जरूरत हेतु कदम उठाना।
▪️खनिज संसाधन, जल संसाधनों आदि पर कानून के अनुसार आदिवासी समुदायों के अधिकारों से संबंधित नियम तय करने के लिए और अधिक कदम उठाना।
▪️जनजातियों के विकास तथा व्यावहारिक आजीविका की रणनीतियां बनाने के लिए और अधिक कदम उठाना।
▪️विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित आदिवासी समूहों के लिए राहत और पुनर्वास उपायों की क्षमता में सुधार करने के लिए कदम उठाना।
▪️अपनी भूमि या जगह से जनजातीय लोगों के अलगाव को रोकने और प्रभावी ढंग से उन लोगों का पुर्नवासन करना और उनमें पहले से ही निहित अलगाव की भावना को दूर करने के लिए कदम उठाना।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#देसाई_लियाकत_प्रस्ताव [ 1945 ]
महात्मा गाँधी ये मान चुके थे कि जब तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग देश के भविष्य या अंतरिम सरकार के गठन को लेकर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँच जाती तब तक ब्रिटिश शासक देश को स्वतंत्रता प्रदान नहीं करेंगे। इसीलिए महात्मा गांधी ने भूलाभाई जीवनजी देसाई को मुस्लिम लीग के नेताओं को संतुष्ट करने और 1942-1945 के राजनीतिक गतिरोध को दूर करने का एक और प्रयास करने का निर्देश किया।
देसाई, केंद्रीय सभा में कांग्रेस के नेता और लियाकत अली (मुस्लिम लीग के नेता) के मित्र होने के नाते,ने लियाकत अली से मुलाकात कर जनवरी 1945 में केंद्र में अंतरिम सरकार के गठन से सम्बंधित एक प्रस्ताव सौंपा| देसाई की घोषणा के बाद, लियाकत अली ने समझौते को प्रकाशित किया,जिसके प्रमुख बिंदु निम्न थे-
▪️दोनों द्वारा केन्द्रीय कार्यपालिका में समान संख्या में लोगों को नामित करना।
▪️अल्पसंख्यकों, विशेषकर अनुसूचित जाति और सिखों, का प्रतिनिधितित्व।
▪️सरकार का गठन करना जोकि उस समय प्रचलित भारत शासन अधिनियम, 1935 के ढ़ांचे के अनुसार कार्य करती।
#निष्कर्ष
महात्मा गांधी ने भूलाभाई जीवनजी देसाई को मुस्लिम लीग के नेताओं को संतुष्ट करने और राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए एक प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया लेकिन इस प्रस्ताव को न तो कांग्रेस ने और न ही लीग ने औपचारिक रूप से अनुमोदित किया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राष्ट्रीय_मानवाधिकार_आयोग
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत में मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार सांविधिक निकाय है। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कहता है कि आयोग " संविधान या अंतरराष्ट्रीय संविदा द्वारा व्यक्ति को दिए गए जीवन, आजादी, समानता और मर्यादा से संबंधित अधिकारों" का रक्षक है।
#एनएचआरसी_की_संरचना :
एनएचआरसी में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं। अध्यक्ष को भारत का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। अन्य सदस्य होने चाहिए–
▪️एक सदस्य, भारत के सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश या भूतपूर्व न्यायाधीश।
▪️एक सदस्य, उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या भूतपूर्व न्यायाधीश।
▪️दो ऐसे सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी जिन्हें मानवाधिकार संबंधित मामलों की जानकारी हो या वे इस क्षेत्र में व्यावहारिक अनुभव रखते हों।
इन सदस्यों के अलावा, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग पदेन सदस्य के तौर पर काम करते हैं।
राष्ट्रपति छह सदस्यी समिति की अनुशंसा के आधार पर एनएचआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करते हैं। छह सदस्यी समिति में निम्नलिखित लोग होते हैं–
▪️प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
▪️गृह मंत्री
▪️लोकसभा अध्यक्ष
▪️लोकसभा में विपक्ष के नेता
▪️राज्यसभा के उपाध्यक्ष
▪️राज्यसभा में विपक्ष के नेता
सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की नियुक्ति, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद ही की जा सकती है।
#एनएचआरसी_के_कार्य :
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अनुसार, एनएचआरसी के कार्य इस प्रकार है–
▪️मानवाधिकारों के उल्लंघन या किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे उल्लंघन की रोकथाम में लापरवाही के खिलाफ किसी पीड़ित या किसी व्यक्ति द्वारा दायर याचिका की या स्वप्रेरणा से पूछताछ करना।
▪️किसी न्यायालय के समक्ष न्यायालय की अनुमति के साथ मानवाधिकारों के उल्लंघन के किसी भी मामले की सुनवाई में हस्तक्षेप।
▪️कैदियों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए किसी भी जेल या नदरबंद स्थान की यात्रा करना और उस पर अनुशंसाएं देना।
▪️मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों या तत्कालीन प्रवृत्त किसी कानून के संविधान के तहत की समीक्षा करना और उसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।
▪️मानवाधिकारों के उपयोग को रोकने वाले आतंकवादी कृत्यों समेत कारकों की समीक्षा करना और उपयुक्त उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करना।
▪️मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे बढ़ावा देना।
▪️समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकार साक्षरता फैलाना और इन अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देना।
▪️मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले गैर– सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
▪️मानवाधिकारों के लिए अनिवार्य समझे जा सकने वाले अन्य कार्यों को करना।
#एनएचआरसी_की_कार्यप्रणाली :
▪️आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है।
▪️आयोग को अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति दी गई है।
▪️इसे नागरिक अदालत के सभी अधिकार प्राप्त हैं और इसकी कार्यवाही का चरित्र न्यायिक है।
▪️यह केंद्रीय या किसी भी राज्य सरकारी या किसी अन्य अधीनस्थ प्राधिकरण से सूचना की मांग या रिपोर्ट की मांग कर सकता है।
हालांकि, मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जांच के लिए आयोग के पास अपने खुद के कर्मचारी हैं। इसे अपने उद्देश्य के लिए किसी भी अधिकारीया केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार की जांच एजेंसी की सेवा लेने का अधिकार दिया गया है। आयोग मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सूचना के लिए विभिन्न एनजीओ के साथ सहयोग भी करता है।
आयोग घटना के एक वर्ष के भीतर उस पर गौर कर सकता है।
आयोग जांच के दौरान या उसके पूरा हो जाने के बाद निम्नलिखित में से कोई भी कदम उठा सकता हैः
▪️यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को मुआवजा या क्षतिपूर्ति देने की सिफारिश कर सकता है।
▪️यह अभियोजन पक्ष के लिए या दोषी लोक सेवक के खिलाफ कार्यवाही शुरु करने के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश भेज सकता है।
▪️यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को तत्काल अंतरिम राहत प्रदान करने की सिफारिश कर सकता है।
▪️यह अनिवार्य निर्देशों, आदेशों या रिट्स के लिए सुप्रीम कोर्ट या संबंधित उच्च न्यायालय में जा सकता है।
पीड़ितों को न्याय दिलाने हेतु एनएचआरसी को अधिक प्रभावी बनाने के लिए, इसकी प्रभावकारिता और दक्षता को बढ़ाने के लिए, इसे दी गई शक्तियों को बढ़ाया जा सकता है। आयोग को अंतरिम और तात्कालिक राहत जिसमें पीड़ित को मौद्रिक राहत दिया जाना भी शामिल है, की शक्ति प्रदान की जानी चाहिए। इसके अलावा, मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की शक्ति भी आयोग के पास होनी चाहिए, यह भविष्य में मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों के लिए निवारक के रूप में कार्य कर सकता है। आयोग के कार्य में सरकार और अन्य प्राधिकरणों का हस्तक्षेप न्यूनतम होना चाहिए, क्योंकि ऐसा होने से आयोग का काम प्रभावित हो सकता है। इसलिए, एनएचआरसी को सशस्त्र बलों के सदस्यों द्वारा मानवाधिकारों से संबंधित मामलों की जांच कराने की शक्ति दी जानी चाहिए।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#सुभाषचन्द्र_बोस_और_आजाद_हिन्द_फौज
गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुये भारत को आजाद कराने के लिये अनेक देशभक्तों ने अपने-अपने तरीकों से भारत को आजाद कराने की कोशिश की। किसी ने क्रान्ति के मार्ग को अपनाया तो किसी ने अहिंसा और शान्ति के मार्ग को, पर दोनों मार्गों के समर्थकों के संयुक्त प्रयासों से ही भारत की आजादी का मार्ग निर्धारित हुआ।
भारत की आजादी के लिये संघर्ष करते हुये अनेक क्रान्तिकारी भारतीय शहीद हुये। ऐसे ही महान क्रान्तिकारी, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे सुभाष चन्द्र बोस। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने कार्यों से अंग्रेजी सरकार के छक्के छुड़ा दिये। इन्होंने अपने देश को आजाद कराने के लिये की गयी क्रान्तिकारी गतिविधियों से ब्रिटिश भारत सरकार को इतना ज्यादा आंतकित कर दिया कि वो बस इन्हें भारत से दूर रखने के बहाने खोजती रहती, फिर भी इन्होंने देश की आजादी के लिये देश के बाहर से ही संघर्ष जारी रखा और वो भारतीय इतिहास में पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुये जिसने ब्रिटिश भारत सरकार के खिलाफ देश से बाहर रहते हुये सेना संगठित की और सरकार को सीधे युद्ध की चुनौती दी और युद्ध किया। इनके महान कार्यों के कारण लोग इन्हें ‘नेताजी’ कहते थे।
#सुभाष_चन्द्र_बोस_से_सम्बन्धित_प्रमुख_तथ्य :
▪️पूरा नाम– सुभाष चन्द्र बोस
▪️अन्य नाम- नेताजी
▪️जन्म– 23 जनवरी 1897
▪️जन्म स्थान– कटक, उड़ीसा
▪️माता-पिता– प्रभावती, जानकीनाथ बोस (प्रसिद्ध वकील)
▪️पत्नी– ऐमिली शिंकल
▪️बच्चे– इकलौती पुत्री अनीता बोस
▪️अन्य करीबी सम्बन्धी– शरत् चन्द्र बोस (बड़े भाई), विभावती (भाभी), शिशिर कुमार बोस (भतीजा)
▪️शिक्षा– मैट्रिक (1912-13), इंटरमिडिएट (1915), बी. ए. आनर्स (1919), भारतीय प्रशासनिक सेवा (1920-21)
▪️विद्यालय– रेवेंशॉव कॉलेजिएट (1909-13), प्रेजिडेंसी कॉलेज (1915), स्कॉटिश चर्च कॉलेज (1919), केंब्रिज विश्वविद्यालय (1920-21)
▪️संगठन– आजाद हिन्द फौज, आल इंडिया नेशनल ब्लाक फॉर्वड, स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार
▪️उपलब्धी– आई.सी.एस. बनने वाले प्रथम भारतीय, दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष, भारत को स्वतंत्र कराने के संघर्ष में 11 बार जेल की एतिहासिक यात्रा, भारतीय स्वतंत्रता के लिये अन्तिम सांस तक प्रयास करते हुये शहीद हुये।
▪️मृत्यु– 18 अगस्त 1945 (विवादित)
▪️मृत्यु का कारण– विमान दुर्घटना
▪️मृत्यु स्थान– ताइहोकू, ताइवान
#आजाद_हिन्द_फौज :
आजाद हिन्द फौज का गठन 1942 में किया गया था। 28-30 मार्च, 1942 को टोक्यो में रह रहे भारतीय रासबिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज के गठन पर विचार के लिए सम्मेलन बुलाया। कैप्टन मोहन सिंह, रासबिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल के सहयोग से इण्डियन नेशनल आर्मी का गठन किया गया। आजाद हिन्द फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम मोहन सिंह के मन में आया था। इसी बीच विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की गई, जिसका प्रथम सम्मेलन जून 1942, को बैंकाक में हुआ।
आजाद हिन्द फौज की प्रथम डिवीजन का गठन 1 दिसम्बर, 1942 को मोहन सिंह के अधीन हुआ। इसमें लगभग 16,300 सैनिक थे। कालान्तर में जापान ने 60,000 युद्ध बंदियों को आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए छोड़ दिया। जापानी सरकार और मोहन सिंह के अधीन भारतीय सैनिकों के बीच आजाद हिन्द फौज की भूमिका के संबध में विवाद उत्पन्न हो जाने के कारण मोहन सिंह एवं निरंजन सिंह गिल को गिरफ्तार कर लिया गया। आजाद हिन्द फौज का दूसरा चरण तब प्रारम्भ हुआ, जब सुभाषचन्द्र बोस सिंगापुर गये।
सुभाषचन्द्र बोस ने 1941 में बर्लिन में इंडियन लीग की स्थापना की, किन्तु जब जर्मनी ने उन्हें रूस के विरुद्ध प्रयुक्त करने का प्रयास किया, तब कठिनाई उत्पन्न हो गई और बोस ने दक्षिण पूर्व एशिया जाने का निश्चय किया। जुलाई, 1943 में सुभाषचन्द्र बोस पनडुब्बी द्वारा जर्मनी से जापानी नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुँचे। वहाँ उन्होंने दिल्ली चलो का प्रसिद्ध नारा दिया। 4 जुलाई, 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज एवं इंडियन लीग की कमान को संभाला। आजाद हिन्द फौज के सिपाही सुभाषचन्द्र बोस को नेताजी कहते थे। बोस ने अपने अनुयायियों को जय हिन्द का नारा दिया। उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की।
सुभाषचन्द्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे। वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया। आजाद हिन्द फौज के प्रतीक चिह्न के लिए एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। कदम कदम बढाए जा, खुशी के गीत गाए जा इस संगठन का वह गीत था, जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे।
जापानी सैनिकों के साथ तथाकथित आजाद हिन्द फौज रंगून (यांगून) से होती हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च 1944 को कोहिमा और इम्फाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुँच गई। जर्मनी, जापान तथा उनके समर्थक देशों द्वारा आजाद हिन्द सरकार को मान्यता प्रदान की गई। इसके पश्चात नेताजी बोस ने सिंगापुर एवं रंगून में आजाद हिन्द फौज का मुख्यालय बनाया। पहली बार सुभाषचन्द्र बोस द्वारा ही गाँधी जी के लिए राष्ट्रपिता शब्द का प्रयोग किया गया। जुलाई, 1944 को सुभाषचन्द्र बोस ने रेडियों पर गाँधी जी को संबोधित करते हुए कहा भारत की स्वाधीनता का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं। इसके अतिरिक्त फौज की बिग्रेड को नाम भी दिये गए महात्मा गाँधी ब्रिगेड,अबुल कलाम आजाद ब्रिगेड, जवाहरलाल नेहरू ब्रिगेड तथा सुभाषचन्द्र बोस ब्रिगेड। सुभाषचन्द्र बोस ब्रिगेड के सेनापति शाहनवाज खाँ थे।
सुभाषचन्द्र बोस ने सैनिकों का आहवान करते हुए कहा तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा। फरवरी से जून, 1944 ई. के मध्य आजाद हिन्द फौज की तीन ब्रिगेडों ने जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा एवं बर्मा से युद्ध लड़ा, परन्तु दुर्भाग्यवश दूसरे विश्व युद्ध में जापान की सेनाओं के मात खाने के साथ ही आजाद हिन्द फौज को भी पराजय का सामना करना पड़ा। आजाद हिन्द फौज के सैनिक एवं अधिकारियों को अंग्रेजों ने 1945 में गिरफ्तार कर लिया। साथ ही एक हवाई दुर्घटना में सुभाषचन्द्र बोस की भी 18 अगस्त, 1945 ई. को मृत्यु हो गई। हालांकि हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु अभी भी संदेह के घेरे में हैं। बोस की मृत्यु का किसी को विश्वास ही नहीं हुआ।
आजाद हिन्द फौज के गिरफ्तार सैनिकों एवं अधिकारियों पर अंग्रेज सरकार ने दिल्ली के लाल किले में नवम्बर, 1945 को मुकदमा चलाया। इस मुकदमें के मुख्य अभियुक्त कर्नल सहगल, कर्नल ढिल्लों एवं मेजर शाहवाज खाँ पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। इनके पक्ष में सर तेजबहादुर सप्रु, जवाहरलाल नेहरू, भूला भाई देसाई और के.एन. काटजू ने दलीलें दी। लेकिन फिर भी इन तीनों की फांसी को सजा सुनाई गयी। इस निर्णय के खिलाफ पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई, नारे लगाये गये लाल किले को तोड़ दो, आजाद हिन्द फौज को छोड़ दो। विवश होकर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी मृत्युदण्ड की सजा को माफ कर दिया।
#विश्लेषण :
यह जरुर है कि आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिक देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत थे पर वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सके. इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थतियाँ जिम्मेदार थीं. जापान ने प्रारंभ से ही आजाद हिन्द फ़ौज को स्वतंत्र रूप से काम करने नहीं दिया. धन की कमी तो थी ही, आजाद हिंदी फ़ौज के सैनिकों के पास अच्छे हथियार भी नहीं थे. फिर भी इस फ़ौज के प्रयासों का प्रभाव पूरे देश पर पड़ा और देशप्रेम की लहर पूरे भारतवर्ष पर दौड़ पड़ी.
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #राज्य_लोक_सेवा_आयोग
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राज्य_लोक_सेवा_आयोग
भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोग की स्थापना की जिसे राज्य लोक सेवा आयोग के रूप में जाना जाता है तथा भारत के संविधान ने इसे स्वायत्त निकायों के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया है|
#संरचना :
एक राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) में एक अध्यक्ष और राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए गए अन्य सदस्य शामिल होते हैं। नियुक्त सदस्यों में से आधे सदस्यों को भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के तहत कार्यालय में कम से कम दस साल के लिए कार्यरत होना चाहिए| संविधान ने आयोग के सामर्थ्य को स्पष्ट रूप से नहीं बताया है| राज्यपाल के पास सदस्यों की संख्या के साथ साथ आयोग के कर्मचारियों और उनकी सेवा की शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार होता है।
राज्यपाल SPSC के सदस्यों में से किसी एक को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकते हैं यदि :
▪️आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाये; या
▪️आयोग का अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण या किसी अन्य कारण से अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो।
इस तरह का सदस्य एक कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जब तक किसी व्यक्ति को कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने के लिए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त ना किया जाये या जब तक अध्यक्ष पुनः अपना कार्य आरंभ ना कर दे, जैसी भी स्थिति हो|
#कार्यकाल :
SPSC का अध्यक्ष और सदस्य छह साल की अवधि के लिए या जब तक वे 62 वर्ष की आयु प्राप्त न कर लें, जो भी पहले हो, कार्यरत रहते हैं| SPSC के सदस्य राज्यपाल को संबोधित करते हुए कार्यकाल की अवधि के बीच में अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं|
#कर्तव्य_और_कार्य :
SPSC के कर्तव्य और कार्य निम्न प्रकार से हैं:
1. यह राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है।
2. नीचे दिये गए मामलों पर SPSC से विचार-विमर्श किया जाता है:
▪️सिविल सेवाओं व सिविल पदों की भर्ती की प्रक्रियाओं से संबन्धित सभी मामले|
▪️सिविल सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियों और एक सेवा से दूसरे में पदोन्नतियों व स्थानांतरण और इस तरह की नियुक्तियों, पदोन्नति या स्थानांतरण के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए नियमों का पालन करना|
▪️एक नागरिक की हैसियत से भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक मामले जिसमें इन मामलों से संबन्धित स्मृति पत्र या याचिकाएं शामिल हों|
▪️अपने आधिकारिक कर्तव्य के निष्पादन में या किए गए कार्यों के खिलाफ किए गए कानूनी कार्यवाही के बचाव में एक सिविल सेवक द्वारा किए गए किसी भी प्रकार के खर्च पर दावा करना|
▪️भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति घायल होने पर पेंशन के हक़ के लिए दावा कर सकता है और किसी भी हक़ के लिए राशि से संबन्धित कोई भी प्रश्न कर सकता है|
▪️कार्मिक प्रबंधन से संबन्धित कोई भी मामले।
▪️यह राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य की सालाना वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता हैं|
राज्य विधायिका राज्य की सेवाओं से संबंधित SPSC को अतिरिक्त कार्य प्रदान कर सकती है। SPSC के कार्य का विस्तार निगमित निकाय की कार्मिक प्रणाली के द्वारा या कानून द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या इसके तहत कोई भी सार्वजनिक संस्था द्वारा किया जा सकता है|
SPSC की वार्षिक रिपोर्ट उनके प्रदर्शन के बारे में बताते हुए राज्यपाल को सौंपी जाती है| उसके बाद राज्यपाल इस रिपोर्ट को राज्य विधानमण्डल के समक्ष मामलों को समझाते हुए ज्ञापन के साथ रखता है|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#क्रिप्स_मिशन [ 1942 ]
क्रिप्स मिशन को 1942 ई० में ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजा गया था। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने मजदूर नेता सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स को 1942 ई० में भारत भेजा था। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का पूर्ण सहयोग प्राप्त करना था।
इसमें ऐसे बहुत से प्रस्ताव थे जो भारत की एकता अखंडता के विरुद्ध थे। इसलिए सभी लोगों ने इसका बहिष्कार कर दिया और यह मिशन असफल हो गया। भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, मुस्लिम लीग और दूसरे दलों ने भी इस मिशन का बहिष्कार कर दिया था।
#क्रिप्स_मिशन_क्यों_भेजा_गया_था?
उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। ब्रिटेन को दक्षिण पूर्व एशिया में हार का सामना करना पड़ रहा था। मित्र राष्ट्र (अमेरिका, चीन और सोवियत संघ) चाहते थे कि भारत द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन प्राप्त करें और उसकी मदद करें। भारत ने इस शर्त पर ब्रिटेन को समर्थन दिया था कि युद्ध के उपरांत भारत को पूर्ण आज़ादी दे दी जाए और ठोस उत्तरदायी शासन का हस्तांतरण तुरंत कर दिया जाए।
#क्रिप्स_मिशन_के_मुख्य_प्रावधान :
▪️डोमिनियन राज्य के दर्जे के साथ भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी। यह भारतीय संघ राष्ट्रमंडल देशों, संयुक्त राष्ट्र संघ, अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों एवं संस्थाओं से अपने संबंध स्वतंत्र रूप से बना सकेगा।
▪️भारत के लोग आज़ाद होने पर स्वयं अपना संविधान का निर्माण कर सकेंगे।
▪️आज़ाद भारत के संविधान निर्मात्री सभा के गठन के लिए एक ठोस योजना बनाई जाएगी।
▪️भारत के विभिन्न प्रांत अपने अलग संविधान बना सकेंगे (बहुत से लोग इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि इससे भारत का विभाजन सुनिश्चित हो जाता)।
▪️भारत के पास राष्ट्रमंडल से अलग होने का अधिकार होगा।
▪️स्वतंत्र भारत के प्रशासन की बागडोर भारतीयों के हाथ में दी जाएगी।
#क्रिप्स_मिशन_क्यों_असफल_हुआ?
क्रिप्स मिशन द्वारा भारतीयों को लुभाने के लिए अनेक आकर्षक प्रस्ताव दिए गए थे, उसके बावजूद भी यह असफल रहा। भारतीयों को यह नही कर पाया। देश की जनता के बड़े वर्ग ने इसे स्वीकृति नहीं दी। कई राजनीतिक दल और समूहों ने इसका विरोध किया।
#कांग्रेस_पार्टी_ने_निम्न_आधार_पर_इसका
#विरोध_किया :
▪️भारत को पूर्ण स्वतंत्रता के स्थान पर डोमिनियन राज्य का दर्जा दिया गया था जो स्वीकार्य नहीं था।
▪️देश की रियासतों के प्रतिनिधियों के लिए निर्वाचन (वोट द्वारा चयन) के स्थान पर मनोनयन (इच्छा अनुसार चयन) की व्यवस्था रखी गई थी जो उचित नहीं थी।
▪️क्रिप्स मिशन में भारत के दूसरे प्रांतों को पृथक संविधान बनाने की व्यवस्था की गई थी जिसका छिपा हुआ लक्ष्य भारत को टुकड़ों में विभाजित करना था। यह प्रस्ताव भारत की राष्ट्रीय एकता के सिद्धांत के विरुद्ध था। इस प्रस्ताव में भारत के दूसरे प्रांत भारतीय संघ से पृथक भी हो सकते थे। ये सभी प्रस्ताव अनुचित और अस्वीकार्य थे।
▪️इस मिशन में अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद सत्ता के त्वरित हस्तांतरण की योजना नहीं सम्मिलित थी. राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि आज़ाद भारत के प्रशासन की बागडोर भारतीयों के हाथ में हो, पर इसे स्पष्ट रूप से क्रिप्स मिशन में नहीं बताया गया था। इसलिए यह मिशन संदेहास्पद और अस्पष्ट था।
▪️इस मिशन में यह प्रस्ताव दिया गया था कि भारत के आज़ाद होने के बाद भी गवर्नर जनरल सर्वोच्च माना जाएगा।
#मुस्लिम_लीग_ने_निम्न_आधार_पर_इसका
#विरोध_किया :
▪️मुस्लिम लीग ने “एकल भारतीय संघ” की व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया।
▪️मुस्लिम लीग ने पृथक पाकिस्तान की मांग को स्वीकार नहीं किया।
▪️3स्वतंत्र भारत के दिए जिस संविधान निर्मात्री परिषद के गठन की बात की गई थी उसे भी मुस्लिम लीग ने स्वीकार नहीं किया।
▪️मुस्लिम लीग राज्यों के पृथक संविधान बनाने के पक्ष में भी नहीं था।
#अन्य_दलों_ने_निम्न_आधार_पर_इसका_बहिष्कार #किया :
▪️भारत के अन्य दल चाहते थे कि एकल भारतीय संघ की स्थापना हो। भारत के दूसरे प्रांतों को संघ से अलग होने का अधिकार ना दिया जाए। इसलिए उन्होंने क्रिप्स मिशन का बहिष्कार कर दिया।
▪️बहुत से लोगों का मानना था कि इस तरह धीरे-धीरे भारत के तमाम प्रांत इस नियम का फायदा उठाकर अलग हो जाएंगे और देश कमजोर हो जाएगा।
▪️हिंदू महासभा ने भी क्रिप्स मिशन का बहिष्कार इसी आधार पर किया था।
▪️क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव पर दलित लोग सोच रहे थे कि एकल भारतीय संघ स्थापित होने के बाद बहुसंख्यक हिंदू उन पर हावी हो सकते हैं और दलितों को हिंदुओं (विशेष रूप से उच्च जातियों) की कृपा पर जीवन जीना होगा।
▪️सिख समुदाय ने क्रिप्स मिशन का बहिष्कार किया क्योंकि उन्हें लगता था कि पंजाब राज्य उनसे छिन जाएगा।
▪️क्रिप्स मिशन को लेकर ब्रिटिश सरकार स्वयं ईमानदार नहीं दिखाई दे रही थी। पहले क्रिप्स मिशन द्वारा कहा गया कि स्वतंत्र भारत घोषित होने पर “मंत्रिमंडल का गठन” और “राष्ट्रीय सरकार” की स्थापना की जाएगी। पर बाद में ब्रिटिश सरकार अपने ही कथन से मुकर गई और कहने लगी कि उसका आशय केवल कार्यकारिणी परिषद का विस्तार करना था।
▪️क्रिप्स मिशन में भारत के दूसरे प्रांतों को विलय या पृथक होने का विकल्प दिया गया था। पर इस प्रस्ताव को विधान मंडल में पारित होने के लिए 60% सदस्यों के मत चाहिए थे।
#ब्रिटिश_सरकार_की_वास्तविक_मंशा :
ब्रिटिश सरकार स्वयं चाहती थी कि क्रिप्स मिशन सफल ना हो। वह भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण नहीं करना चाहती थी। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, विदेश मंत्री एमरी, वायसराय लिनलिथगो, और कमांडर इन चीफ वेवेल स्वयं चाहते थे कि क्रिप्स मिशन असफल हो जाए। वायसराय के वीटो के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं और स्टैफोर्ड क्रिप्स के बीच बातचीत टूट गई और क्रिप्स मिशन असफल हो गया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#भारत_छोड़ो_आंदोलन
क्रिप्स मिशन के भारत आगमन से भारतीयों को काफी उम्मीदें थीं, किन्तु जब क्रिप्स मिशन खाली हाथ गया तो भारतीयों को अत्यन्त निराशा हुई। अत: 5 जुलाई, 1942 को ‘हरिजन’ नामक पत्रिका में गाँधीजी ने उद्घोष किया कि- ‘‘अंग्रेजो भारत छोड़ो। भारत को जापान के लिए मत छोड़ों, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ा जाय। महात्मा गांधीजी का यह अन्तिम आन्दोलन था जो सन् 1942 में चलाया गया था।
#भारत_छोड़ो_आंदोलन_के_कारण :
▪️क्रिप्स मिशन से निराशा- भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई थी कि क्रिप्स मिशन अंग्रेजों की एक चाल थी जो भारतीयों को धोखे में रखने के लिए चली गई थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण उसे वापस बुला लिया गया था।
▪️बर्मा में भारतीयों पर अत्याचार- बर्मा में भारतीयों के साथ किये गए दुव्र्यवहार से भारतीयों के मन में आन्दोलन प्रारम्भ करने की तीव्र भावना जागृत हुई।
▪️द्वितीय विश्व युद्ध के लक्ष्य के घोषणा- ब्रिटिश सरकार भारतीयों को भी द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाई में सम्मिलित कर चुकी थी, परन्तु अपना स्पष्ट लक्ष्य घोषित नहीं कर रही थी।
▪️आर्थिक दुर्दशा- अंग्रेजी सरकार की नीतियों से भारत की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब हो गई थी और दिनों-दिन स्थिति बदतर होती जा रही थी।
▪️जापानी आक्रमण का भय- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना रंगून तक पहुंच चुकी थी, लगता था कि वे भारत पर भी आक्रमण करेंगी।
#भारत_छोडो_आंदोलन_का_निर्णय :
14 जुलाई, 1942 मे बर्मा में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में ‘भारत छोड़़ो प्रस्ताव’ पारित किया गया। 6 और 7 अगस्त, 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक हुई। गाँधीजी ने देश में ‘भारत छोड़़ो आन्दोलन’ चलाने की आवश्यकता पर बल दिया। गाँधीजी ने नारा दिया- ‘‘इस क्षण तुम में से हर एक को अपने को स्वतन्त्र पुरुष अथवा स्त्री समझना चाहिए और ऐसे आचरण करना चाहिए मानों स्वतन्त्र हो। मैं पूर्ण स्वतन्त्रता से कम किसी चीज से सन्तुष्ट नहीं हो सकता। हम करेंगे अथवा मरेंगे। या तो हम भारत को स्वतंत्र करके रहेंगे या उसके पय्रत्न में प्राण दे देगें।’’, ‘‘करो या मरो।’’
#भारत_छोड़ो_आंदोलन_का_आरम्भ_और_प्रगति :
8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त की रात को गांधीजी सहित कांग्रेस के समस्त बड़े नेता बन्दी बना लिए गये। गाँधीजी के गिरफ्तार होने के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने एकसूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया और जनता को ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में सम्मिलित होने के लिए आव्हान किया। जनता के लिए निम्न कार्यक्रय तय किए गये-
▪️आन्दोलन में किसी प्रकार की हिंसात्मक कार्यवाही न की जाए।
▪️नमक कानून को भंग किया जाए तथा सरकार को किसी भी प्रकार का कर न दिया जाए। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के प्रति दुव्र्यवहार का विरोध।
▪️सरकार विरोधी हड़तालें, प्रदर्शन तथा सार्वजनिक सभाएं करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया जाए।
▪️मूल्यों में असाधारण वृद्धि, आवश्यक वस्तु उपलब्ध न होने के विरोध में।
▪️पूर्वी बंगाल में आतंक शासन के खिलाफ।
#भारत_छोड़ो_आंदोलन_की_विफलता_के_मुख्य #कारण :
▪️आन्दोलन की न तो सुनियोजित तैयारी की गई थी और न ही उसकी रूपरेखा स्पष्ट थी, न ही उसका स्वरूप.जनसाधारण को यह ज्ञात नहीं था कि आखिर उन्हें करना क्या है?
▪️सरकार का दमन-चक्र बहुत कठोर था और क्रान्ति को दबाने के लिए पुलिस राज्य की स्थापना कर दी गयी थी, फिर गांधीजी के विचार स्पष्ट नहीं थे।
▪️भारत में कई वर्गो ने आन्दोलन का विरोध किया।
▪️कांग्रेस के नेता भी मानसिक रूप से व्यापक आन्दोलन चलाने की स्थिति में नहीं थे ।
▪️आन्दोलन अब अहिंसक नहीं रह गया था। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरूद्ध सशक्त अभियान था ।
#भारत_छोडो_आंदोलन_के_महत्व_तथा_परिणाम :
▪️ब्रिटिश सरकार ने हजारों भारतीय आन्दोलनकारियों को बन्दी बना लिया तथा बहुतों को दमन का शिकार होकर मृत्यु का वरण करना पड़ा।
▪️अंतर्राष्ट्रीय जनमत को इंग्लैण्ड के विरूद्ध जागृत किया। चीन और अमेरिका चाहते थे कि अंग्रेज भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र कर दें।
▪️इस आंदोलन ने जनता में अंग्रेजों के विरूद्ध अपार उत्साह तथा जागृति उत्पन्न की।
▪️इस आन्दोलन में जमींदार, युवा, मजदूर, किसान और महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। यहां तक कि पुलिस व प्रशासन के निचले वर्ग के कर्मचारियों ने आंदोलनकारियों को अप्रत्यक्ष सहायता दी एवं आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति दिखाई।
▪️भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति मुस्लिम लीग ने उपेक्षा बरती, इस आंदोलन के प्रति लीग में कोर्इ उत्साह नहीं था। कांग्रेस विरोधी होने के कारण लीग का महत्व अंग्रेजों की दृष्टि में बढ़ गया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#संघ_लोक_सेवा_आयोग
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 315 संघों व राज्यों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर लोक सेवकों की नियुक्ति करता है। संघ लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक निकाय है। संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य सदस्य शामिल होते हैं। आयोग का अध्यक्ष व सदस्य छह साल की अवधि के लिए (राष्ट्रपति द्वारा चयनित) या 65 वर्ष की आयु पाने तक, जो भी पहले हो, कार्यरत रहते हैं।
#संघ_लोक_सेवा_आयोग_की_संरचना :
अनुच्छेद 316 सदस्यों के पद की नियुक्ति और कार्यकाल से संबंध रखता है संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य सदस्य शामिल होते हैं। आयोग के नियुक्त सदस्यों में से आधे सदस्यों को भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के तहत कार्यालय में कम से कम दस साल के लिए कार्यरत होना चाहिए।
राष्ट्रपति आयोग के सदस्यों में से एक सदस्य को एक कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकता है यदि :
▪️आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाये।
▪️आयोग का अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण या किसी अन्य कारण से अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो।
इस तरह का सदस्य एक कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जब तक किसी व्यक्ति को कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने के लिए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाये या जब तक अध्यक्ष पुनः अपना कार्य आरंभ ना कर दे, जैस भी मामला हो।
#कार्यकाल :
आयोग का अध्यक्ष व सदस्य छह साल की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु पाने तक, जो भी पहले हो, कार्यरत रहते हैं| सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए अवधि के बीच में इस्तीफा दे सकते हैं| उन्हें संविधान में दी गई प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा भी हटाया जा सकता है।
#कर्तव्य_और_कार्य :
संघ लोक सेवा आयोग के कर्तव्य और कार्य निम्नलिखित वर्णित हैं:
1. यह संघ की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है, जिसमें केंद्र शासित प्रदेशों की अखिल भारतीय सेवाएँ, केंद्रीय सेवाएँ, और सार्वजनिक सेवाएँ शामिल हैं।
2. यह किसी भी सेवा के लिए संयुक्त भर्ती तैयार करने और परिचालन योजनाओं में राज्यों को सहायता करता है जिसके लिए विशेष योग्यता रखने वाले उम्मीदवारों की आवश्यकता होती है, जिसके लिए दो या उससे अधिक राज्यों द्वारा अनुरोध किया गया हो।
3. निम्नलिखित मामलों पर इनसे विचार-विमर्श किया जाता है:
▪️सभी मामले सिविल सेवाओं तथा सिविल पदों की नियुक्ति के तरीके से संबन्धित।
▪️सिविल सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियों करने में और एक सेवा से दूसरे में स्थानांतरण तथा पदोन्नति और इस तरह की नियुक्तियों, स्थानान्तरण और पदोन्नति के लिए उम्मीदवारों की उपयुक्तता पर सिद्धांतों का अनुसरण करना।
▪️एक नागरिक की हैसियत से भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक मामले जिसमें इन मामलों से संबन्धित स्मारक या याचिकाएं शामिल हों।
▪️अपने आधिकारिक कर्तव्य के निष्पादन में या किए गए कृत्यों का उसके खिलाफ स्थापित कानूनी कार्यवाही की रक्षा करने में एक सिविल सेवक द्वारा उठाए गए खर्च का किसी भी प्रकार का दावा करना।
▪️भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति घायल होने पर पेंशन के हक़ के लिए दावा कर सकता है और किसी भी हक़ के लिए राशि से संबन्धित कोई भी प्रश्न कर सकता है।
▪️कार्मिक प्रबंधन से संबंधित कोई भी मामला राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित।
▪️कमीशन राष्ट्रपति के समक्ष आयोग द्वारा किए गए कार्य की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
हालांकि, संसद संघ की सेवाओं से संबंधित अतिरिक्त कार्य यूपीएससी को प्रदान कर सकती है। यूपीएससी के कार्य का विस्तार निगमित निकाय की कार्मिक प्रणाली के द्वारा या कानून द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या इसके तहत कोई भी सार्वजनिक संस्था द्वारा किया जा सकता है।
संघ लोक सेवा आयोग के प्रदर्शन से संबन्धित वार्षिक रिपोर्ट को राष्ट्रपति के समक्ष पेश किया जाता है| इसके बाद राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में ज्ञापन के साथ प्रस्तुत करता है जिसमें यह बताया गया होता है कि कहाँ पर आयोग की सलाह को नहीं स्वीकार किया गया और इस गैर स्वीकृति के पीछे का कारण क्या है।
#संघ_लोक_सेवा_आयोग_की_भूमिका_विश्लेषण :
संघ लोक सेवा आयोग केंद्रीय भर्ती एजेंसी है। यह प्रतिभा प्रणाली को बनाए रखने और पदों के लिए सबसे उपयुक्त लोगों को आगे लाने के लिए उत्तरदायी है। यह परीक्षा आयोजित करता है और ग्रुप ए एव ग्रुप बी में अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं में कर्मियों की नियुक्ति के लिए सरकार को अपनी सिफ़ारिश भेजता है| यूपीएससी की भूमिका स्वभाव से सलाहकार की होती है और सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होती है| हालांकि, सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है, यदि, वह आयोग की सलाह को खारिज कर दे।
इसके अलावा, यूपीएससी का संबंध परीक्षा प्रक्रिया से है और ना की सेवाओं के वर्गीकरण, कैडर प्रबंधन, प्रशिक्षण, सेवा शर्तों आदि के साथ संबंध रखता है| इन मामलों को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा नियंत्रित किया जाता है| सरकार पदोन्नति और अनुशासनात्मक मामलों पर संघ लोक सेवा आयोग से सलाह लेती है।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#केंद्रीय_प्रशासनिक_अधिकरण [ कैट ]
संविधान का भाग XIV-क अधिकरण प्रदान करता है। प्रावधान को 1976 के 42 वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से जोड़ा गया। अनुच्छेद 323 क और 323 ख क्रमश: अन्य मामलों से संबंधित प्रशासनिक न्यायाधिकरण अथवा अधिकरण प्रदान करता हैं।
अनुच्छेद 323-क के तहत, नियुक्ति और संघ के या किसी राज्य अथवा स्थानीय मामलों या फिर भारत सरकार के स्वामित्व या सरकार द्वारा नियंत्रित किसी भी निगम और सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थाओं के संबंध में सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की सेवा शर्तों से संबंधित विवादों और शिकायतों पर अधिनिर्णय करने के लिए संसद के पास प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना करने का अधिकार है।
संसद द्वारा 1985 में पारित प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना के लिए केंद्र सरकार को अधिकृत करता है।
#केंद्रीय_प्रशासनिक_न्यायाधिकरण (कैट) :
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की प्रमुख पीठ (प्रिंसिपल बेंच) दिल्ली में स्थित है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्यों में अतिरिक्त पीठें भी हैं। वर्तमान में 17 नियमित पीठ (बैंचे) और 4 सर्किट बेंच हैं। कैट के पास निम्नलिखित सेवा क्षेत्र के मामलों में अधिकार है:
▪️अखिल भारतीय सेवा का कोई भी एक सदस्य
संघ के किसी भी सिविल सेवा या संघ के तहत किसी भी सिविल पद पर नियुक्त एक व्यक्ति।
▪️रक्षा सेवाओं में नियुक्त कोई भी नागरिक या रक्षा से जुड़ा कोई भी एक पद।
▪️हालांकि, रक्षा बलों के सदस्य, अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट और संसद के सचिवालय के स्टाफ कर्मचारी कैट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।
▪️कैट में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। न्यायिक और प्रशासनिक क्षेत्रों से कैट के सदस्यों की नियुक्ति होती है। सेवा की अवधि 5 साल या अध्यक्ष और उपाध्यक्ष अध्यक्ष के लिए 65 वर्ष और सदस्यों के लिए 62 वर्ष जो भी पहले हो, तक होती है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कैट का कोई भी अन्य सदस्य अपने कार्यकाल के बीच में ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है।
#कैट_की_कार्यप्रणाली :
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की संहिता में निर्धारित प्रक्रिया के लिए कैट बाध्य नहीं है, लेकिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। एक अधिकरण के पास उसी प्रकार की शक्तियां होती हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की संहिता के तहत एक सिविल कोर्ट के पास होती हैं। एक व्यक्ति अधिकरण में आवेदन कानूनी सहायता के माध्यम से या फिर स्वंय हाजिर होकर कर सकता है।
एक न्यायाधिकरण अथवा अधिकरण के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में तो अपील की जा सकती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में नहीं। चंद्र कुमार मामले (1997) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अधिकरण के आदेश के खिलाफ सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की जा सकती है और इसके लिए पीड़ित व्यक्ति को पहले संबंधित उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) से संपर्क करना चाहिए।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#अगस्त_प्रस्ताव
भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने 8 अगस्त 1940 को शिमला से एक वक्तव्य जारी किया, जिसे अगस्त प्रस्ताव कहा गया|यह प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा ब्रिटेन से भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को लेकर पूछे गए सवाल के जबाव में लाया गया था|
#अगस्त_प्रस्ताव_के_प्रावधान
▪️सलाहकारी युद्ध परिषद् की स्थापना
▪️युद्ध के पश्चात भारत के संविधान निर्माण के लिए प्रतिनिधिक भारतीय निकाय की स्थापना करना
▪️वायसराय की कार्यकारी परिषद् का तत्काल विस्तार
▪️अल्पसंख्यकों को यह आश्वासन दिया गया कि ब्रिटिश सरकार,शासन के किसी ऐसे तंत्र को सत्ता नहीं सौंपेगी जिसके प्राधिकार को भारतीय राष्ट्रीय जीवन के किसी बड़े और शक्तिशाली तबके द्वारा स्वीकार न किया गया हो
यह प्रथम अवसर था जब भारतीयों के संविधान निर्माण के अधिकार को स्वीकार किया गया और कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन को सहमति प्रदान की| कांग्रेस ने अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया| जवाहर लाल नेहरु ने कहा कि डोमिनियन दर्जे का सिद्धांत अब मृतप्राय हो चुका है| गाँधी ने कहा कि इस घोषणा नेराष्ट्रवादियों और ब्रिटिश शासकों के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है| मुस्लिम लीग इसमें दिए गए वीटो अधिकार के चलते खुश थी और उसने कहा कि राजनीतिक गतिरोध को दूर करने का एकमात्र उपाय विभाजन है| कांग्रेस द्वारा प्रस्तुत की गयी मांगों को स्वीकार न करने से व्याप्त व्यापक असंतोष के सन्दर्भ में गाँधी ने वर्धा में हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में अपनी व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा को शुरू करने की योजना को प्रस्तुत किया|
#निष्कर्ष
यह भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो के द्वारा जारी किया गया औपचारिक वक्तव्य था,जिसने संविधान निर्माण प्रक्रिया की नींव रखी और कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन को सहमति प्रदान की|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राष्ट्रीय_भारत_परिवर्तन_संस्था [ नीति आयोग ]
1 जनवरी 2015 को योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग का गठन किया गया था। यह भारत सरकार को सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों पर परामर्श निकाय या एक "थिंक टैंक" के तौर पर अपनी सेवाएं देगा।
#नीति_आयोग_की_संरचना :
नीति आयोग में निम्नलिखित शामिल हैं–
1. भारत का प्रधानमंत्री, पदेन अध्यक्ष।
2. शासी परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नर शामिल हैं।
3. क्षेत्रीय परिषद का संचालन विशेष मुद्दों के समाधान के लिए किया जाएगा और एक से अधिक राज्य या क्षेत्र को प्रभावित करने वाली आकस्मिकताओं पर प्रधानमंत्री गौर करेंगे। इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नर शामिल होंगे।
4. प्रासंगिक विषयों में ज्ञान रखने वाले विद्वानों, विशेषज्ञों और काम करने वाले लोगों को प्रधानमंत्री विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर नामित करेंगे।
5. अध्यक्ष के तौर पर प्रधानमंत्री के अलावा पूर्ण– कालिक संगठनात्मक ढांचे में शामिल होगें–
▪️प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त उपाध्यक्ष।
▪️पूर्णकालिक सदस्य।
▪️पदेन क्षमता में अग्रणी विश्वविद्यालयों अनुसंधान संगठनों और अन्य प्रासंगिक संस्थानों से अधिकतम दो अंश–कालिक (पार्ट–टाइम) सदस्य।
▪️पदेन सदस्यों के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा केंद्रीय मंत्रीपरिषद से अधिकतम 4 सदस्यों को नामित किया जाना है।
▪️निश्चित अवधि के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा की जाएगी। यह अधिकारी भारत सरकार में सचिव रैंक के अधिकारी में से होंगे।
▪️सचिवालय (आवश्यक मानकर)।
#नीति_आयोग_के_उद्देश्य :
नीति आयोग के मुख्य उद्देश्यों का नीचे वर्णन किया जा रहा है–
▪️राष्ट्रीय उद्देश्यों के आलोक में राज्यों की सक्रिए भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों का साझा दृष्टिकोण विकसित करना।
▪️सतत आधार पर राज्यों के साथ संरचित समर्थन पहलों और प्रणालियों के माध्यम से सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना, मजबूत राज्य ही मजबूत देश का निर्माण कर सकता है, इसे मान्यता प्रदान करना।
▪️ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए प्रणाली विकसित करना और सरकार के उच्च स्तर पर उत्तरोत्तर इसका पालन करना।
▪️यह सुनिश्चित करना की राष्ट्रीय सुरक्षा के हित आर्थिक रणनीति और नीति में निहित है।
▪️हमारे समाज के उन वर्गों पर विशेष ध्यान देना जिनको आर्थिक प्रगति से पर्याप्त लाभ नहीं हुआ है।
▪️रणनीतिक एवं दीर्ध कालिक नीति एवं कार्यक्रम और पहलों की रूपरेखाएं तैयार करना और उनकी प्रगति एवं प्रभावकारिता पर नजर रखना।
▪️सलाह देना और मुख्य हितधारकों एवं समान विचारधारा वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक के साथ– साथ शैक्षणिक एवं नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को बढ़ावा देना।
▪️कार्यक्रमों और पहलों के कार्यान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी के उन्नयन और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#भारतीय_निर्वाचन_आयोग
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में संसद, राज्य विधानमंडल के साथ साथ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों के अधीक्षण,निर्देशन और निर्वाचन नामावलियों की तैयारी पर नियंत्रण रखने के लिए निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है | अतः निर्वाचन आयोग केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर होने वाले चुनावों के लिए उत्तरदायी है.
#चुनाव_आयोग_की_संरचना :
वर्तमान में भारत के निर्वाचन आयोग में 3 आयुक्त काम कर रहे हैं जिनमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा हैं जबकि चुनाव आयुक्त के पद पर राजीव कुमार और सुशील चंद्रा हैं.
संविधान में निर्वाचन आयोग की संरचना से सम्बंधित निम्न प्रावधान शामिल किया गये हैं-
▪️निर्वाचन आयोग एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उसके अन्य निर्वाचन आयुक्तों से,यदि कोई हों,जितने समय समय पर राष्ट्रपति नियत करे,मिलाकर बनता है|
▪️मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी |
▪️यदि एक से अधिक निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किये जाते है तो ऐसी स्थिति में मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप कार्य करेंगें |
▪️निर्वाचन आयोग से सलाह लेने के बाद राष्ट्रपति उतनी संख्या में प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति भी कर सकता है जितने की निर्वाचन आयोग को सहायता देने के लिए आवश्यक हों |
▪️निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्तों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होगीं जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा तय करे |
हालाँकि,मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है लेकिन उसकी शक्तियां अन्य निर्वाचन आयुक्तों के समान ही होती हैं|आयोग द्वारा सभी मसलों पर बहुमत से निर्णय लिया जाते है| मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य दो निर्वाचन आयुक्त समान वेतन,भत्ते व अन्य सुविधाएँ प्राप्त करते हैं।
#कार्यकाल :
मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य निर्वाचन आयुक्त छह वर्ष या 65 साल की आयु,जो भी पहले हो,प्राप्त करने तक अपने पद बने रहते है| वे किसी भी समय राष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा अपना पद छोड़ सकते हैं| राष्ट्रपति किसी भी निर्वाचन आयुक्त को संविधान में वर्णित प्रक्रिया द्वारा ही उसके पद से हटा सकता है|
#शक्तियां_एवं_कार्य :
निर्वाचन आयोग की शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं-
▪️यह परिसीमन आयोग अधिनियम के अनुरूप निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करता है
▪️यह निर्वाचक नामावलियों को तैयार करता है और समय समय पर उनमें सुधार करता है|यह सभी योग्य मतदाताओं को पंजीकृत करता है|
▪️यह चुनावों कार्यक्रम निर्धारित करता है और उसे अधिसूचित करता है
▪️यह चुनाव हेतु प्रत्याशियों के नामांकन स्वीकार करता है उनकी जाँच करता है
▪️यह राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उन्हें चुनाव चिन्ह प्रदान करता है
▪️यह चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किये गए प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय दलों का दर्जा प्रदान करता है
▪️यह राजनीतिक दलों की पहचान और चुनाव चिन्ह से सम्बंधित विवादों में न्यायालय की भूमिका निभाता है
▪️यह निर्वाचन व्यवस्था से सम्बंधित विवादों की जाँच के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करता है|
▪️यह राजनीतिक दलों को दूरदर्शन व रेडियो पर अपनी नीतियों व कार्यक्रमों के प्रचार के लिए समय सीमा का निर्धारण करता है |
▪️यह सुनिश्चित करता है कि आदर्श आचार संहिता का सभी दलों व प्रत्याशियों द्वारा पालन किया जाये |
▪️यह संसद सदस्यों की अयोग्यता से सम्बंधित मामलों में राष्ट्रपति को सलाह प्रदान करता है |
▪️यह राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता से सम्बंधित मामलों में राज्य के राज्यपाल को सलाह प्रदान करता है |
▪️यह राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास चुनाव को सम्पन्न कराने के लिए जरुरी स्टाफ को उपलब्ध करने के लिए निवेदन करता है |
▪️यह चुनाव कार्यप्रणाली का सर्वेक्षण करता है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को संपन्न कराना सुनिश्चित करता है |
▪️यह अनियमितता व दुरूपयोग के आधार पर किसी निर्वाचन क्षेत्र के मतदान को रद्द कर सकता है |
▪️यह राष्ट्रपति को इस सम्बन्ध में सलाह देता है कि किसी राज्य में चुनाव कराये जा सकते है या नहीं|
तीन निर्वाचन आयुक्तों के अलावा निर्वाचक आयुक्तों को सहायता प्रदान करने के लिए उप-निर्वाचन आयुक्त भी होते है| इन अधिकारियों की नियुक्ति निर्वाचन आयोग द्वारा निश्चित कार्यकाल के साथ सिविल सेवकों में से की जाती है| इनकी सहायता आयोग के सचिवालय में सेवारत सचिव,संयुक्त सचिव,उप सचिव,अपर सचिव द्वारा की जाती है|
मुख्य निर्वाचन आयुक्त, राज्य सरकार से सलाह करने के बाद, राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करता है| जिलाधिकारी जिला स्तर पर मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है| मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं और वही निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए अधिष्ठाता की नियुक्ति करता है|
अतः निर्वाचन आयोग भारत की निर्वाचन प्रणाली की निगरानी करने वाली संस्था है| राजनीतिक दलों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने आयकर का भुगतान करें| यह कदम चुनावों में पैसे और ताकत के प्रयोग को कम करने के लिए उठाया गया था|
अब यह जरुरी कर दिया गया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक शपथ पत्र जमा करना होगा जिसमे उसके खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों व संपत्ति से सम्बंधित जानकारी शामिल होगी| इस कदम का लाभ यह हुआ कि मतदाताओं को प्रत्याशियों से सम्बंधित जानकारी हासिल हो सकी है|
#राजनीतिक_दलों_को_मान्यता_प्रदान_करना :
यह राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उन्हें चुनाव चिन्ह प्रदान करता है|यह चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किये गए प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय दलों का दर्जा प्रदान करता है|
निर्वाचन आयोग प्रत्येक राष्ट्रीय राजनीतिक दल को एक विशेष चिन्ह आवंटित करती है,जिसे वह राजनीतिक दल पूरे देश में प्रयोग कर सकता है| इसी तरह प्रत्येक राज्य स्तरीय दल को एक चिन्ह आवंटित किया जाता है,जिसे वह पूरे राज्य में प्रयोग कर सकता है| इन चिन्हों को आरक्षित चिन्ह कहा जाता है,जिन्हें कोई अन्य दल या प्रत्याशी प्रयोग नहीं कर सकता है.
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#व्यक्तिगत_सत्याग्रह [ 1940 ]
व्यक्तिगत सत्याग्रह राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा सन 1940 में प्रारम्भ किया गया था। इस सत्याग्रह कि सबसे बड़ी बात यह थी कि इसमें महात्मा गाँधी द्वारा चुना हुआ सत्याग्रही पूर्व निर्धारित स्थान पर भाषण देकर अपनी गिरफ्तारी देता था। अपने भाषण से पूर्व सत्याग्रही अपने सत्याग्रह की सूचना ज़िला मजिस्ट्रेट को भी देता था।
#शुरुआत
3 सितम्बर, सन 1939 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा की कि भारत भी द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित है। वायसराय ने इस घोषणा से पूर्व किसी भी राजनीतिक दल से परामर्श नहीं किया। इससे कांग्रेस असंतुष्ट हो गई। महात्मा गाँधी ने भी ब्रिटिश सरकार की युद्धनीति का विरोध करने के लिए सन 1940 में अहिंसात्मक 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' आरम्भ किया।
#प्रथम_सत्याग्रही
11 अक्टूबर, 1940 को गाँधीजी द्वारा 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' के प्रथम सत्याग्रही के तौर पर विनोबा भावे को चुना गया। प्रसिद्धि की चाहत से दूर विनोबा भावे इस सत्याग्रह के कारण बेहद मशहूर हो गए। उनको गाँव-गाँव में युद्ध विरोधी तक़रीरें करते हुए आगे बढते चले जाना था। ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को विनोबा को गिरफ्तार किया गया।
#द्वितीय_सत्याग्रही
5 जनवरी 1941 को जवाहर लाल नेहरू ने पुनः यह सत्याग्रह प्रारंभ किया। व्यक्तिगत सत्याग्रह के दूसरे सत्याग्रही जवाहरलाल नेहरु थे। इस आंदोलन के दूसरे चरण में 20000 से अधिक सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी हुई इसमें राजगोपालाचारी, अरुणा आसफ
अली ,सरोजिनी नायडू भी थे।
व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन को दिल्ली चलो आंदोलन भी कहा गया।
#व्यक्तिगत_सत्याग्रह_के_उद्देश्य
• यह प्रदर्शित करना की राष्ट्रवादियों का धैर्य उनकी कमजोरी के कारण नहीं है।
• जन भावना को अभिव्यक्त करना अर्थात यह बताना कि जनता युद्ध में रूचि नहीं रखती है और वह नाजीबाद तथा दोहरी निरंकुशता, जिसके द्वारा भारत पर शासन किया जा रहा है, के बीच कोई भेद नहीं मानती है।
• कांग्रेस की मांगों को शांतिपूर्ण ढ़ंग से मानने के लिए सरकार को एक और मौका प्रदान करना।
इसमें सत्याग्रही की मांग युद्ध-विरोधी घोषणा के माध्यम से युद्ध का विरोध करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने की थी।यदि सत्याग्रही को सरकार द्वारा गिरफ्तार नहीं किया जाता है तो वह गांवों से होते हुए दिल्ली की ओर मार्च करेगा (“दिल्ली चलो आन्दोलन)। व्यक्तिगत सत्याग्रह का केंद्रबिंदु अहिंसा था जिसे सत्याग्रहियों के चयन द्वारा ही पाया जा सकता था।आचार्य विनोबा भावे, पंडित जवाहर लाल नेहरु और ब्रह्म दत्त क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय चयनित सत्याग्रही थे।
#निष्कर्ष
अतः स्वतंत्रता को समर्पित व्यक्तिगत सत्याग्रह अगस्त प्रस्ताव का परिणाम था और यह आन्दोलन केवल स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए ही नहीं था बल्कि इसमें अभिव्यक्ति के अधिकार को भी दृढ़तापूर्वक प्रस्तुत किया गया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#कांग्रेस_का_त्रिपुरी_संकट [ 1939 ]
3 सितंबर,1939 को द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी (हिटलर) द्वारा पौलैण्ड पर आक्रमण करने के बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी पर आक्रमण कर दिया।
तत्कालीन भारतीय वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने भारतीयों की अनुमति के बिना यह घोषणा कर दी कि भारत भी जर्मनी के विरुद्ध ब्रिटेन के साथ युद्ध में शामिल है। कांग्रेस कार्यसमिति ने सरकार से युद्ध के उद्देश्यों को स्पष्ट करने की मांग की, परंतु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वायसराय ने भारतीयों के सामने युद्ध के बाद औपनिवेशिक स्वराज का पुराना वायदा दुहराया।
कांग्रेस शासित प्रदेशों के मंत्रियों ने कांग्रेस कार्य समिति की अनुमति के बाद 15 नवंबर,1939 को मंत्रिमंडलों से त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेसी मंत्रियों के त्यागपत्र के बाद मुस्लिम लीग ने दलित नेता भीमराव अंबेडकर के साथ 22 दिसंबर,1939 को मुक्ति दिवस मनाया।
#त्रिपुरी_संकट :
▪️1938 में हरिपुरा अधिवेशन के वार्षिक अधिवेशन के लिए सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।
▪️हरिपुरा में कांग्रेस अधिवेशन के समय सुभाष बोस ने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय योजना समिति की स्थापना की जिसके सदस्यों में बिङला,लाला श्रीराम, विश्वरैया शामिल थे।
▪️1939 के त्रिपुरी कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस दूसरी बार अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बने।वे गांधी के पसंद के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या को परास्त कर दूसरी बार अध्यक्ष चुन लिये गये।
▪️गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को अपनी हार बताया।
▪️चुनाव के बाद अधिवेशन में पारित प्रस्ताव द्वारा अध्यक्ष को गांधी जी की इच्छानुसार कार्य समिति के सदस्य नियुक्त करने को कहा गया, लेकिन गांधी ने कोई भी नाम सुझाने से इंकार कर दिया।
▪️अन्ततः सुभाषचंद्र बोस ने अप्रैल,1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सुभाष चंद्र बोस की जगह नया कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया।
▪️3 मई,1939 को सुभाष चंद्र बोस ने फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की। अगस्त 1939 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तथा बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से सुभाष को हटा दिया गया – साथ ही कांग्रेस के सभी पदों से उन्हें तीन वर्षों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।
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