Wednesday, February 24, 2021

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #कुछ_वर्गों_के_लिए_विशेष_उपबंध

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #कुछ_वर्गों_के_लिए_विशेष_उपबंध अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, एंग्लो– इंडियन और पिछड़ी जातियों के हितों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 330 से 342 में विशेष प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 330 और 332 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण के बारे में है। अनुच्छेद 330 लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में ऐसी जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या वहां की जनसंख्या के आधार पर होगी। इसी प्रकार, अनुच्छेद 332 में प्रत्येक राज्य के विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान है। संविधान के 58वें संशोधन अधिनियम 1987 ने संविधान के अनुच्छेद 332 में संशोधन किया। यह अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में "अनुसूचित जनजातियों" के लिए सीटों के आरक्षण के बारे में है। #संविधान (79वां संशोधन) अधिनियम 1999 : अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं और वे निर्वाचन क्षेत्र के सभी मतदाताओं द्वारा चुने गए हैं। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई अलग मतदाता नहीं हैं। अनुच्छेद 325 में सामान्य मतादाता सूची का स्पष्ट प्रावधान है। इसका अर्थ है कि अनुसूचित जाति और जनजाति का कोई सदस्य चुनाव लड़ सकता है और आरक्षित सीट के अलावा सीट प्राप्त कर सकता है। अनुच्छेद 335 इस बात को स्पष्ट करता है कि केंद्र या किसी राज्य के मामलों से संबंधित सेवाओं और पदों पर नियुक्ति में प्रशासन की दक्षता को बनाए रखते हुए अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के दावों पर ध्यान दिया जाएगा। #राष्ट्रीय_अनुसूचित_जाति_और_अनुसूचित #जनजाति_आयोग : संविधान (65वां संशोधन) अधिनियम, 1990, ने संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन किया है। संशोधित अनुच्छेद 338 में विशेष अधिकारी की जगह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की बात करता है। #आयोग_का_गठनः आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यश्र और पांच अन्य सदस्य होंगे। आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। #आयोग_के_कार्य : ▪️संविधान के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों से संबंधित सभी मामलों और किसी भी अन्य कानून या किसी भी अन्य सरकार की जांच और निगरानी करना और ऐसे अधिकारों की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करना। ▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों के हनन के संबंध में विशेष शिकायतों की जांच करना। ▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में हिस्सा लेना और सलाह देना और केंद्र और किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना। ▪️उन सुरक्षा अधिकारों के बारे में राष्ट्रपति को सालाना रिपोर्ट देना (जब भी जब आयोग को सही लगे)। ▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की रक्षा, कल्याण और सामाजिक आर्थिक विकास के लिए उन अधिकारों और अन्य उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के लिए सिफारिशें करना। ▪️अनुच्छेद 338 में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रपति द्वारा विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है। इस विशेष अधिकारी को इन श्रेणियों को दिए गए अधिकारों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और राष्ट्रपति के निर्देश के अनुसार इन पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट देना। राष्ट्रपति को ऐसी सभी रिपोर्टों को संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। राष्ट्रपति कभी भी और संविधान के लागू होने के दस वर्ष बाद समाप्ति पर, राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण पर प्रशासन की रिपोर्ट हेतु एक आयोग का गठन कर सकते हैं। केंद्र सरकार के पास राज्य में अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए अनुसूची में निर्धारित दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के लिए राज्य को निर्देश देने का अधिकार है। #अनुच्छेद_366(2) के अनुसार एंग्लो– इंडियन का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जिसके पिता या उसके कोई भी पुरुष पूर्वज पुरुष पक्ष का हो या यूरोपीय वंश का, लेकिन जो भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर अधिवासित हो या ऐसे राज्य क्षेत्र में उसका जन्म हुआ हो और जिसके माता– पिता भारत में रहते थे और यहां अस्थायी उद्देश्य के लिए नहीं आए थे, एंग्लो– इंडियन कहलाता है। #अनुच्छेद_340 (1)–पिछड़ा वर्ग, राष्ट्रपति को भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों की स्थितियों की जांच करने के लिए उपयुक्त व्यक्तियों से बने आयोग के गठन का अधिकार है। #भाषाई_अल्पसंख्यक : भाषाई अल्पसंख्यक लोगों का वह वर्ग है जिनकी मातृभाषा राज्य के अधिकांश हिस्सों या कुछ हिस्सों में बोली जाने वाली भाषा से अलग होती है। अनुच्छेद 350– ए, भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों की शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर उनकी मातृभाषा में निर्देश देने के लिए सुविधा प्रदान करता है। अनुच्छेद 347, प्रशासन में बहुसंख्यक भाषा के उपयोग की बात कहता है। अनुच्छेद 350, प्रत्येक व्यक्ति को केंद्र या राज्य इस्तेमाल की जाने वाली किसी भी भाषा में केंद्र या राज्य के किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी के खिलाफ किसी भी प्रकार के शिकायत के निवारण के लिए अभ्यावेदन जमा करने का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 350–बी, भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान करता है। इस संविधान के तहत भाषाई अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और उनकी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित समयावधि पर उनको देना, इस विशेष अधिकारी का काम होता है। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #भारत_में_पंचायती_राज_व्यवस्था पंचायत भारतीय समाज की बुनियादी व्यवस्थाओं में से एक रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं, महात्मा गांधी ने भी पंचायतों और ग्राम गणराज्यों की वकालत की थी। स्वतंत्रता के बाद से, समय– समय पर भारत में पंचायतों के कई प्रावधान किए गए और 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ इसको अंतिम रूप प्राप्त हुआ था. वर्तमान में हमारे देश में 2.51 लाख पंचायतें हैं, जिनमें 2.39 लाख ग्राम पंचायतें, 6904 ब्लॉक पंचायतें और 589 जिला पंचायतें शामिल हैं. देश में 29 लाख से अधिक पंचायत प्रतिनिधि हैं. भारत में पंचायती राज की स्थापना 24 अप्रैल 1992 से मानी जाती है. अधिनियम का उद्देश्य पंचायती राज की तीन– स्तरीय व्यवस्था प्रदान करना है, इसमें शामिल हैं– ▪️ग्राम– स्तरीय पंचायत ▪️प्रखंड (ब्लॉक)– स्तरीय पंचायत ▪️जिला– स्तरीय पंचायत #73वें_संशोधन_अधिनियम_की_विशेषताएं : ▪️ग्राम सभा गांव के स्तर पर उन शक्तियों का उपयोग कर सकती है और वैसे काम कर सकती है जैसा कि राज्य विधान मंडल को कानून दिया जा सकता है। ▪️प्रावधानों के अनुरुप ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तरों पर पंचायतों का गठन प्रत्येक राज्य में किया जाएगा। ▪️एक राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का गठन बीस लाख से अधिक की आबादी वाले स्थान पर नहीं किया जा सकता। ▪️पंचायत की सभी सीटों को पंचायत क्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों से भरा जाएगा, इसके लिए, प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी और आवंटित सीटों की संख्या के बीच का अनुपात, साध्य हो, और सभी पंचायत क्षेत्र में समान हो। ▪️राज्य का विधानमंडल, कानून द्वारा, पंचायतों में ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर या जिन राज्यों में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत नहीं हैं वहां, जिला स्तर के पंचायतों में, पंचायतों के अध्यक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता है। #अनुसूचित_जाति_और_अनुसूचित_जनजाति_के #लिए_सीटों_का_आरक्षण : अनुच्छेद 243 डी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों को आरक्षित किए जाने की सुविधा देता है। प्रत्येक पंचायत में, सीटों का आरक्षण वहां की आबादी के अनुपात में होगा। अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या कुल आरक्षित सीटों के एक– तिहाई से कम नहीं होगी। महिलाओं के लिए आरक्षण– अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक –तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं होनी चाहिए। इसे प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरा जाएगा और महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा। अध्यक्षों के कार्यलयों में आरक्षण– गांव या किसी भी अन्य स्तर पर पंचायचों में अध्यक्षों के कार्यालयों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण राज्य विधान–मंडल में, कानून के अनुसार ही होगा। #सदस्यों_की_अयोग्यता : किसी व्यक्ति को पंचायत की सदस्यता के अयोग्य करार दिया जाएगा, अगर उसे संबंधित राज्य का विधानमंडल अयोग्य कर देता है या चुनावी उद्देश्यों के लिए कुछ समय के लिए कानून अयोग्य घोषित कर देता है; और अगर उसे इस प्रकार राज्य के विधानमंडल द्वारा कानून बनाकर अयोग्य घोषित किया गया हो तो। #पंचायत_की_शक्तियां_अधिकार_और_जिम्मेदारियां : राज्य विधानमंडलों के पास विधायी शक्तियां हैं जिनका उपयोग कर वे पंचायतों को स्व– शासन की संस्थाओं के तौर पर काम करने के लिए सक्षम बनाने हेतु उन्हें शक्तियां और अधिकार प्रदान कर सकते हैं। उन्हें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बनाने और उनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। #कर_लगाने_और_वित्तीय_संसाधनों_का_अधिकार : एक राज्य, कानून द्वारा, पंचायत को कर लगाने और उचित करों, शुल्कों, टोल, फीस आदि को जमा करने का अधिकार प्रदान कर सकता है। यह राज्य सरकार द्वारा एकत्र किए गए विभिन्न शुल्कों, करों आदि को पंचायत को आवंटित भी कर सकता है। राज्य की संचित निधि से पंचायतों को अनुदान सहायता दी जा सकती है। #पंचायत_वित्त_आयोग : संविधान के लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही (73वां संशोधन अधिनियम, 1992), पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा और उस पर राज्यपाल को सिफारिशें भेजने के लिए, एक वित्त आयोग का गठन किया गया था। #भारत_में_शहरी_स्थानीय_निकाय : समकालीन समय में, जैसे की शहरीकरण हुआ है और वर्तमान में, इसका तेजी से विकास हो रहा है, शहरी शासन की आवश्यकता अनिवार्य है जो ब्रिटिश काल से धीरे– धीरे विकसित हो रहा है और स्वतंत्रता के बाद इसने आधुनिक आकार ले लिया है। 1992 के 74वें संशोधन अधिनियम के साथ, शहरी स्थानीय प्रशासन व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई। #74_वें_संशोधन_अधिनियम_की_मुख्य_विशेषताएं : ▪️प्रत्येक राज्य में इनका गठन किया जाना चाहिए– • नगर पंचायत • छोटे शहरी क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद • बड़े शहरी क्षेत्र के लिए नगरनिगम ▪️नगरपालिका की सभी सीटों को वार्ड के रूप में जाने जाने वाले नगरपालिका प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन में चुने गए व्यक्तियों से भरा जाएगा। ▪️राज्य का विधान– मंडल, विधि द्वारा, नगरपालिका प्रशासन में विशेष जानकारी या अनुभव वाले व्यक्तियों को; लोकसभा के सदस्यों और राज्य के विधान सभा के सदस्यों, राज्य के परिषद और विधानपरिषद के सदस्यों को नगरपालिका प्रतिनिधित्व प्रदान करता है; समितियों के अध्यक्ष ▪️वार्ड समिति का गठन ▪️प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जातियों औऱ अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित होंगी। ▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों की एक– तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं की जाएंगी। ▪️राज्य, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को स्व– शासन वाले संस्थानों के तौर पर काम करने में सक्षम बनने हेतु अनिवार्य शक्तियां और अधिकार दे सकता है। ▪️राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं को कर लगाने और ऐसे करों, शुल्कों, टोल और फीस को उचित तरीके से एकत्र करने को प्राधिकृत कर सकता है। ▪️प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर जिला नियोजन समिति का गठन किया जाएगा ताकि पंचायतों और जिलों की नजरपालिकाओं द्वारा तैयार योजनाओं को लागू किया जा सके और समग्र रूप से जिले के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार कर सके। ▪️राज्य विधान– मंडल, विधि द्वारा महानगर योजना समितियों के गठन के संबंध में प्रावधान कर सकता है। #शहरी_स्थानीय_निकायों_के_प्रकार : 1. नगर निगम 2. नगरपालिका 3. अधिसूचित क्षेत्र समिति 4. शहर क्षेत्र समिति (टाउन एरिया कमेटी) 5. छावनी बोर्ड 6. टाउशिप 7. पोर्ट ट्रस्ट 8. विशेष प्रयोजन एजेंसी भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने की दिशा में एक बहुत ही बड़ा कदम है. इस कदम से ऐसा लगता है कि देश के हर गाँव/जिले का अपना एक मुख्यमंत्री है जो कि अपने लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए काम करता है. [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_संशोधन_की_संपूर्ण_लिस्ट ◾पहला सविंधान संशोधन अधिनियम, 1951 ▪️इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता, एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने संबंधी कुछ व्यावहारिक कठिनाईयों को दूर करने का प्रयास किया गया। ▪️भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर इसमें उचित प्रतिबंध की व्यवस्था की गई, इस संसोधन द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया, जिसमें उल्लेखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायलय के न्याययिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्गत परीखा नहीं की जा सकती ▪️संविधान में नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया और अनुच्छेद 15,19,31,85,87,176,361,342,372 और 376 को संशोधित किया गया। ◾दूसरा संविधान संशोधन अधिनियम, 1952 ▪️अनुच्छेद 81 को संशोधित करके लोकसभा के एक सदस्य के निर्वाचन के लिए 7/12 लाख मतदाताओं की सीमा निर्धारित की गई और लोकसभा के लिए सदस्यों की संख्या 500 निश्चित की गई। ◾तीसरा संविधान संशोधन अधिनियम, 1954 ▪️राज्य सूची के कुछ विषय समवर्ती सूची में शामिल किये गये। इसके अंतर्गत सातवीं अनुसूची को समवर्ती सूची की तैंतीसवीं प्रविष्टि के स्थान पर खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा, कच्चा कपास, जूट आदि को रखा गया, जिसके उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर सरकार उस पर नियंत्रण लगा सकती है। ◾चौथा संविधान संशोधन अधिनियम, 1955 ▪️व्यक्तिगत संपत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थिति में, न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती। ▪️सम्पति के अधिकार संबंध अनुच्छेद-31, 9वीं अनुसूची में तथा अनुच्छेद 305 को संशोधित किया गया। ◾छठा संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 ▪️सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशो की संख्या में वृद्धि की गई तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने की आज्ञा दी गई। ▪️इस संशोधन द्वारा सातवीं अनुसूची के संघ सुची में परिवर्तन कर अंतर्राज्यीय बिक्री कर के अंतर्गत कुछ वस्तुओं पर केन्द्र को कर लगाने का अधिकार दिया गया। ◾7वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 ▪️यह संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट को तथा राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1965 को लागू करने के लिये किया गया था। ▪️द्वितीय तथा सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया। राज्यों के चार वर्गों की समाप्ति (भाग-क, भाग-ख, भाग-ग और भाग-घ) की गई और इनके स्थान पर 14 राज्यों एवं 6 संघ शासित प्रदेशों को स्वीकृति दी गई। ▪️उच्च न्यायालयों के न्यायक्षेत्र का विस्तार संघशासित प्रदेशों तक किया गया। ▪️दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक कॉमन (उभय) उच्च न्यायालय की स्थापना की व्यवस्था (प्रावधान) की गई। ▪️उच्च न्यायालय में अतिरिक्त एवं कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई। ◾8वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1959 ▪️इसके अंतर्गत केन्द्र एवं राज्यों के निम्न सदनों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ऑग्ल-भारतीय समुदायों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों को दस वर्ष अर्थात 1970 ई. तक बढ़ा दिया गया। ◾9वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1960 ▪️भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच हुए समझौतों के अनुसरण में पाकिस्तान को कतिपय राज्य क्षेत्रों का हस्तांतरण करने की दृष्टि से यह संशोधन किया गया। ▪️इस समझौते के पश्चात् संघ ने इस मामले को उच्चतम न्यायालय के पास भेजा। न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 3 के तहत किसी राज्य के भू-क्षेत्र को घटाने की संसद की शक्ति भारत के किसी भू-भाग को किसी दूसरे देश को सौंपने के मामले पर लागू नहीं होती। ▪️अतः किसी भारतीय भू-भाग को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करके ही किसी विदेशी राज्य को सौपा जा सकता है। ▪️पश्चिम बंगाल में स्थित बेरूबारी संघराज्य क्षेत्र को भारत-पाक समझौते (1958) के तहत पाकिस्तान को सौंप दिया गया। ◾10वां संविधान संशाोधन अधिनियम, 1960 ▪️दादर और नागर हवेली के क्षेत्र को भारतीय क्षेत्र में सम्मिलत कर उसे केंद्र शासित प्रदेश में शामिल कर लिया गया। ◾11वाँ संशोधन अधिनियम, 1961 ▪️उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रक्रिया में बदलाव किए गए- इसमें संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय निर्वाचक मंडल की व्यवस्था की गई। ▪️राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त निर्वाचक मंडल में रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती। ◾12वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 ▪️गोवा, दमन और दीव को एक संघ शासित प्रदेश के रूप में संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया। ◾13वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 ▪️नागालैण्ड को भारतीय संघ के 16 वें राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई। ◾14वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 ▪️पाण्डिचेरी के नाम से केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। लोकसभा मे संघ शासित प्रदेशों के स्थानों की संख्या 20 से बढ़ाकर 25 कर दी गई। ◾15वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1963 ▪️उच्च न्यायलयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 60 से 62 वर्ष कर दी गयी। ◾17वाँ संशोधन अधिनियम, 1964 ▪️यदि भूमि का बाज़ार मूल्य बतौर मुआवजा न दिया जाए तो व्यक्तिगत हितों के लिये भू- अधिग्रहण प्रतिबंधित कर दिया गया। ▪️नौवीं अनुसूची में 44 अतिरिक्त अधिनियमों की बढ़ोतरी की गई (जोड़ा गया)। ◾18वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1966 ▪️पंजाब का पुनर्गठन किया तथा हरियाणा नामक नया राज्य बनाया गया। यह प्रावधान किया गया कि ‘ राज्य शब्द में संघ शासित प्रदेश भी सम्मिलत होंगे। ▪️इसमें यह स्पष्ट किया गया कि संसद की नये राज्य के निर्माण की शक्ति का अर्थ यह भी है (या इसमें निहित है) कि संसद किसी दूसरे राज्य या संघशासित प्रदेश के किसी भाग को किसी दूसरे राज्य या संघशासित प्रदेश के साथ जोड़कर नया राज्य बना सकती है। ◾19वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1966 ▪️यह व्यवस्था की गई की ससंद तथा विधानमंडलों के चुनावों से संबंधित विवादों की सुनवाई निर्वाचन आयोग के न्यायालय में होगी। इस संशोधन द्वारा निर्वाचन आयोग के कर्तव्यो को स्पष्ट किया गया। ▪️इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया एवं उच्च न्यायालयों को चुनाव-याचिकाएँ सुनने का अधिकार दिया गया। ◾20वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1966 ▪️इसके अंतर्गत अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुद जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान की गई। ◾21वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1967 ▪️सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। ◾22वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 ▪️असम राज्य के अंतर्गत ‘मेघालय‘ का सृजन किया गया । ◾23वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 ▪️इसके अंतर्गत विधान पालिकाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं ऑग्ल-भारतीय समुदाय के लागों का मनोनयन और दस वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया। ◾24वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 ▪️संसद को यह शक्ति दी गई कि वह अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन कर मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है। ▪️संविधान संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति को मंजूरी (अपनी स्वीकृति) देने के लिये बाध्य कर दिया गया। ◾25वाँ संशोधन अधिनियम, 1971 ▪️संपत्ति के मौलिक अधिकार में कटौती की गई। ▪️यह भी व्यवस्था की गई कि अनुच्छेद 39 (ख)या (ग) में वर्णित नीति-निर्देशक तत्वों को प्रभावी करने के लिये बनाए गये किसी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वह अनुच्छेद 14, 19 और 31 द्वारा मौलिक अधिकारों के संदर्भ में दी गई गारंटी का उल्लंघन करता है। ◾26वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 ▪️भूतपूर्व रियासतों के शासकों के विशेष उपाधियों एवं ‘प्रिवीपर्स‘ को समाप्त कर दिया गया। ◾27वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 ▪️इसके अंतर्गत मिजोरम एवं अरूणाचल प्रदेश को केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया गया। ◾29वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1972 ▪️इसके अंतर्गत केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम 1969 तथा केरल के भू-सुधार अधिनियम 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके। ◾31वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1973 ▪️वर्ष 1971 की जनगणना के तहत भारत की जनसंख्या में वृद्धि दर्ज की गई। ▪️लोकसभा में निर्वाचित सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई। ◾32वां संशोधन 1974 ▪️संसद एवं विधान पालिकाओं के सदस्य द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे। ◾34वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1974 ▪️विभिन्न राज्यों द्वारा पारित किए गए 20 भूमि सुधार कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में सम्मिलत करके उन्हें संरक्षण प्रदान किया गया। ◾35वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1974 ▪️सिक्किम को सह-संयुक्त राज्य का दर्जा दिया गया। संविधान में दसवीं अनुसूची को शामिल किया गया। ◾36वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 ▪️सिक्किम को भारतीय संघ के 22वें राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई। ◾37वां संशोधन 1975 ▪️इसके तहत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राजयपाल एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया। ◾39वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 ▪️राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्ययक्ष के निर्वाचन को न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर कर दिया गया। ◾41वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 ▪️राज्य के लोकसेवा आयोगों के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 वर्ष तथा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष निश्चित की गई। ◾42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 ▪️यह संविधान संशोधन अब तक किए गए संविधान संशोधनों में सबसे व्यापक संशोधन है। इसे लघु संविधान कहा गया है। ▪️यह संविधान संशोधन स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए किया गया था। ▪️इस संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘प्रभुत्वसंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य‘ शब्दों के स्थान पर ‘ प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य‘ शब्द और ‘राष्ट्र की एकता‘ शब्दों के स्थान राष्ट्र की एकता और अखंडता शब्द रखे गए। ▪️इस अधिनियम के द्वारा लोकसभा और राज्य की विधानसभाओें का कार्यकाल 5 वर्ष कर दिया गया। ▪️इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-356 को संशोधित करके किसी भी राज्य में राष्ट्रपति द्वारा प्रशासन की अवधि, एक समय में एक वर्ष से घटाकर 6 महीने कर दी गई। ◾44वाँ सविधान संशोधन 1978 ▪️संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार की जगह अब केवल कानूनी अधिकार बना दिया गया। ▪️इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागु करने के लिए आंतरिक अशांति के स्थान पर सैन्य विद्रोह का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया, जिससे उनका दुरुपयोग न हो. ▪️लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई. ▪️उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल करने की अधिकारिता प्रदान की गई। ◾49वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1984 ▪️इस संशोधन द्वारा त्रिपुरा राज्य की स्वायत्तशासी जिला परिषद् को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई। तथा अनुच्छेद 244 एवं पांचवी एवं छठी अनुसूची में संशोधन किया गया। ◾50वां संशोधन 1984 ▪️इसके द्वारा अनुच्छेद 33 में संशोधन कर सैन्य सेवाओं की पूरक सेवाओं में कार्य करने वालों के लिए आवश्यक सूचनाएं एकत्रित करने, देश की संपत्ति की रक्षा करने और कानून तथा व्यवस्था से संबंधित दायित्व भी दिए गए. साथ ही, इस सेवाओं द्वारा उचित कर्तव्यपालन हेतु संसद को कानून बनाने के अधिकार भी दिए गए। ◾51वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1984 ▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-330 को संशोधित करके नागालैण्ड, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसुचित जनजातियों के लिए संसद में तथा अनुच्छेद 332 में संशोधन करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में स्थान आरक्षित किए गए। ◾52वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 ▪️इस संशोधन के द्वारा राजनितिक दल बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया। ▪️इसके अंतर्गत संसद या विधान मंडलों के उन सदस्यों को आयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, जो इस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिन्ह पर उन्होंने चुनाव लड़ा था, पर यदि किसी दल की संसदीय पार्टी के एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी। दल बदल विरोधी इन प्रावधानों को संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया। ▪️इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद- 101, 102, 190, 191 का संशोधन किया गया। दल बदल कानून बनाकर संविधान की 10वीं अनुसूची जोड़ी गई। ◾53वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1986 ▪️इसके अंतर्गत अनुच्छेद 371 में खंड 'जी' जोड़कर मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। मिजोरम विधानसभा की न्यूनतम सदस्य संख्या 40 तय की गई। ◾55वाँ संविधान संशोधन अधिनिमय, 1986 ▪️अरूणाचल प्रदेश ( नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी- नेफा) का पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। ◾56वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1987 ▪️गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करके, दमन और दीव को पृथक केंद्रशासित प्रदेश के रूप में स्थापित कर दिया गया। इस संशोधन द्वारा गोवा राज्य की विधान सभा में 30 (तीस) सदस्यों की संख्या को निर्धारित किया गया। ◾57वां संशोधन 1987 ▪️इसके अंतर्गत अनुसचित जनजातियों के आरक्षण के संबंध में मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं अरुणाचल प्रदेश की विधान सभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया। ◾58वां संशोधन 1987 ▪️इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया। ◾59वाँ संविधान संशोधन अधिनिमय, 1988 ▪️अनुच्छेद-356 का संशोधन करके यह नियम बनाया गया कि आपात की अवधि 6-6 महीने करके तीन वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है। ◾60वां संशोधन 1988 ▪️इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कर दी गई। ◾61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 ▪️अनुच्छेद-326 में संशोधन करके मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। ◾65वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1990 ▪️अनुच्छेद-338 को संशोधित करके अनुसूचति जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गई। ◾66वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1990 ▪️भूमि सुधार से संबंधित राज्य सरकारों के कानूनों को संविधान की नौंवी अनुसूची में सम्मिलत करके न्यायिक समीक्षा के क्षेत्र से बाहर कर दिया गया। ◾69वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 ▪️दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधान सभा और मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में इसे विशेष दर्जा प्रदान कर दिया गया। ◾70वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ▪️इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 54 और 368 को संशोधित करके दिल्ली और पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधान सभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्मित निर्वाचक मंडल में शामिल कर लिया गया। ◾71वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ▪️संविधान की आठवीं अनुसूची में कोंकणी, मणिपुरी, और नेपाली भाषा को शामिल कर लिया गया। ◾73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ▪️संविधान में एक नया भाग-9 तथा ग्यारहवी अनुसूची को जोड़ा गया। ▪️पंचायती राज व्यव्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया। ▪️इस अधिनियम में पंचायतों के गठन, संरचना निर्वाचन सदस्यों की अर्हताएं, पंचायतों के अधिकार एवं शक्तियों तथा उत्तरदायित्वों का प्रावधान हैं। ◾74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ▪️संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग- 9(ए) तथा 12वीं अनुसूची जोड़ी गई थी। ▪️नगरीय स्वायत्त संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया। ▪️इस अधिनियम के अधीन नगरपालिकाओं की संरचना, गठन, सदस्यों की योग्यता, निर्वाचन, नगर पंचायतों के अधिकार एवं शक्तियों तथा उत्तरदायित्वों के संबंध में उपबंध स्थापित किए गए। ◾76वां संशोधन 1994 ▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया है। ◾78वां संशोधन 1995 ▪️इसके द्वारा नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधार विधियों को समाविष्ट किया गया है. इस प्रकार नवीं अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गई है। ◾79वां संशोधन 1999 ▪️अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 तक के लिए बढ़ा दी गई है. ▪️इस संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केंद्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29 % हिस्सा मिलेगा। ◾81वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 ▪️इस संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से यह नियम बनाया गया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गयी 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का बढ़ाया जा सकेगा। ▪️अब सरकार अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए आरक्षित रिक्त पदों को भरने के लिए 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की व्यवस्था कर सकेगी। ◾82वां संशोधन 2000 ▪️इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों से आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्ताकों में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है। ◾83वां संशोधन 2000 ▪️इस संशोधन द्वारा पंचायती राज सस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है. अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति न होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है। ◾84वां संशोधन 2001 ▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा लोक सभा तथा विधान सभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2016 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है। ◾85वां संशोधन 2001 ▪️सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था। ◾86वां संशोधन 2002 ▪️इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान जोड़ा गया है. इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है। ◾87वां संशोधन 2003 ▪️इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 81, 82, 170 में संशोधन कर, परिसीमन में संख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है। ◾88वां संशोधन 2003 ▪️सेवाओं पर कर का प्रावधान। ▪️अनुच्छेद 268 क जोड़ा गया। ◾89वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ▪️इस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया। ▪️अब इनके नाम क्रमशः ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग‘ अनुच्छेद-338 एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग‘ अनुच्छेद 338-ए होंगे। ◾90वां संशोधन 2003 ▪️असम विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरक़रार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा। ◾91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ▪️इस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को निश्चित कर दिया गया। ▪️दल बदल व्यवस्था में संशोधन, केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता, केंद्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोक सभा तथा विधान सभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत होगा (जहां सदन की सदस्य संख्या 40-50 है, वहां अधिकतम 12 होगी) ◾92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ▪️संविधान की आठवीं अनुसूची मेुं चार अन्य भाषायें जोड़ी गई। ये भाषायें हैं- बोड़ो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली ◾93वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,2005 ▪️राज्यों को विशेष एवं पिछड़े वर्गो, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण करने हेतु विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान की गई। ◾94वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2006 ▪️बिहार को एक जनजातीय मंत्री की नियुक्ति करने की बाध्यता से मुक्त करते हुए इस प्रावधान को अब झारखण्ड एवं छत्तीसगढ के लिए भी लागू कर दिया गया। इन राज्यों के साथ यह म.प्र. एवं ओडिशा में (अनुच्छेद-164ए) प्रभावी हो गया। ◾95वां संशोधन 2010 ▪️इसके अंतर्गत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए स्थानों के लिए आरक्षण ( अनुच्छेद 334) की समय-सीमा 60 वर्ष से बढ़ा कर 70 वर्ष कर दिया गया। ▪️इसके अलावा आंग्ल-भारतीयों के नाम निर्देशन के प्रावधान को 2020 तक ( 10 वर्षो के लिए) लागू कर दिया गया। ◾96वां संशोधन 2011 ▪️इसके तहत 8वी अनुसूची में उल्लेखित भाषाओं में "उड़िया" का नाम बदल कर "ओड़िया" कर दिया गया। ◾97वां संशोधन 2011 ▪️इस संविधान संशोधन में हर नागरिक को कोऑपरेटिव सोसाइटी (सहकारी समितियाँ) के गठन का अधिकार दिया गया और इसमें संविधान के भाग 9 में भाग 9ख जोड़ा गया। ▪️संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 19(1)(ग) में "सहकारी समितियाँ" शब्द जोड़ा गया। ◾98वां संशोधन 2012 ▪️इसके अंतर्गत अनुच्छेद 371 में कर्नाटक राज्य के हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के विकास के लिए एक अलग परिषद बनाने का प्रावधान किया गया, तथा इस क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों में जन्म या निवास के आधार पर आरक्षण का प्रावधान राष्ट्रपति राज्यपाल को दिया गया। ◾99वां संशोधन 2014 ▪️इस विधेयक का उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त कर इसका स्थान ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ देना था। ▪️नोट : सर्वोच्च न्यायालय के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ के गठन संबंधित "99वां संविधान संशोधन 2014" और ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को असंवैधानिक एवं शून्य घोषित करते हुए रद्द कर दिया। ◾100 वां संविधान संशोधन ▪️2015 को भारत और बांग्लादेश के बीच हुई भू-सीमा संधि के लिए 100वां संशोधन किया गया। ▪️दोनों देशों ने आपसी सहमति से कुछ भू-भागों का आदान-प्रदान किया। ▪️समझौते के तहत बांग्लादेश से भारत में शामिल लोगों को भारतीय नागरिकता भी दी गई। ◾101वां संशोधन 2016 ▪️जी.एस. टी व्यवस्था लागू करने हेतु। ▪️संविधान में अनुच्छेद 256(अ) अंतः स्थापित किया गया। ▪️इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 270 में निर्धारित किया गया कि केंद्र द्वारा संग्रहित जी.एस. टी को केंद्र व राज्यो के मध्य बांटा जाएगा। ◾102वां संशोधन 2018 ▪️इस संशोधन के द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (OBC) को संवैधानिक का दर्जा प्रदान किया गया। ▪️अनुच्छेद 338(ख) जोड़ा गया। ◾103वां संशोधन अधिनियम 2019 (124वां संविधान संशोधन विधेयक) सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण ▪️9 जनवरी, 2019 को राज्य सभा द्वारा 124 वां सविधान संशोधन विधेयक, 2019 को पारित करने के साथ ही संसद द्वारा इसे पारित किया गया। ▪️इससे पूर्व 8 जनवरी, 2019 को लोक सभा ने इस विधेयक को पारित कर दिया था। ▪️7 जनवरी, 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उच्च जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के क्षेत्र में 10 प्रतिशत आरक्षण को स्वीकृति प्रदान की गई। ▪️यह विधेयक भारतीय संविधान के अनु. 15 और 16 में संशोधन प्रस्तावित करता है। ▪️यह पहला अवसर है जब गैर जाति, गैर-धर्म आधारित आरक्षण प्रदान किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। ▪️इस आरक्षण प्रस्ताव के लागू होने के पश्चात आरक्षण कोटा वर्तमान 50 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाएगा। ▪️उल्लेखनीय है कि इस संविधान संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया गया है। ◾104वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 (125वां संविधान संशोधन विधेयक) : केंद्र सरकार ने संसद में 125वां संवैधानिक संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया है, इसका उद्देश्य उत्तर-पूर्वी भारत में 10 स्वायत्त परिषदों की वित्तीय तथा कार्यकारी शक्तियों में वृद्धि करना है। * संशोधन विधेयक की विशेषताएं : इस संशोधन विधेयक से असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के लगभग 1 करोड़ जनजातीय लोग प्रभावित होंगे, इस विधेयक के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं : ▪️असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए अनुच्छेद 280 में संशोधन किया जाएगा, इससे स्वायत्त परिषद् अधिक विकास के कार्य कर सकेंगीं। ▪️मौजूदा स्वायत्त जिला परिषदों का नाम बदलकर स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद् किया जाएगा क्योंकि इन परिषदों का क्षेत्राधिकार एक जिले से अधिक होगा। ▪️असम में कारबी आंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद् तथा दिमा हसाओ स्वायत्त परिषद् के क्षेत्राधिकार में 30 अन्य विषयों को शामिल किया जायेगा। ▪️निम्न स्तर पर भी लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए निर्वाचित ग्रामीण म्युनिसिपल परिषद् के लिए भी संशोधन प्रस्तावित है। ▪️संशोधन के द्वारा ग्रामीण परिषदों को आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय इत्यादि कार्य के लिए शक्तियां दी जायेंगी। यह शक्तियां कृषि, भूमि सुधार, सिंचाई जल प्रबंधन, पशु पालन, ग्रामीण विद्युतीकरण, छोटे स्तर के उद्योग तथा सामाजिक वानिकी इत्यादि कार्य के लिए दी जायेंगी। ◾104वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 (126वां संविधान संशोधन विधेयक) : ▪️12 दिसंबर, 2019 को राज्य सभा में भारतीय संविधान का 126वां संविधान संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया गया। ▪️लोक सभा द्वारा यह विधेयक इससे पूर्व पारित किया जा चुका है। ▪️यह भारतीय संविधान का 104वां संशोधन है। ▪️इस विधेयक के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया है। ▪️इस विधेयक के तहत लोक सभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष और बढ़ाया गया है। ▪️इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए लोक सभा और राज्य विधानसभाओं में 25 जनवरी, 2030 तक सीटों का आरक्षण बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। ▪️पूर्व में इस आरक्षण की समय सीमा 25 जनवरी, 2020 तक थी। ▪️इस संविधान संशोधन विधेयक द्वारा संसद में एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रदत्त आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है। ▪️आरक्षण के तहत एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 सदस्य लोक सभा में प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_संशोधन संशोधन एक राष्ट्र या राज्य के लिखित संविधान के पाठ में औपचारिक परिवर्तन को दर्शाता है। संविधान के संशोधन अत्यधिक जीवन की वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने के लिए संविधान को संशोधित करने और मार्गदर्शन करने के लिए आवश्यक है। संविधान में संशोधन कई प्रकार से किया जाता है नामतः साधारण बहुमत, विशेष बहुमत तथा बहाली कम से कम आधे राज्यों द्वारा| अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन, भारतीय संविधान की एक मूल संशोधन प्रक्रिया है। #संविधान_का_संशोधन : संविधान का संशोधन कुछ प्रावधानों को बदलने या दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ बाहरी सुविधाओं को अद्यतन करने का तात्पर्य है। संवैधानिक संशोधन का प्रावधान संविधान की वास्तविकता और दैनिक आवश्यकताओं का प्रतिबिंबित प्रदर्शित करने के लिए आवश्यक है। #संविधान_संशोधन_की_आवश्यकता : संविधान में संशोधन के लिए आवश्यकता पर निम्न प्रकार से बल दिया जा सकता है- ▪️यदि संशोधन का कोई प्रावधान नहीं दिया गया हो, लोग और नेता कुछ अतिरिक्त संवैधानिक अर्थों का पालन करते हैं जैसे क्रान्ति, हिंसा तथा इसी तरह संविधान में घुल जाते हैं। ▪️संविधान में संशोधन के प्रावधान को इस दृष्टिकोण के साथ बनाया गया कि भविष्य में संविधान को लागू करने में कठिनाइयाँ न आयें। ▪️यह इसलिए भी आवश्यक है कि संविधान लागू होंने के समय में हुई कमियों को ठीक करना। ▪️आदर्श, प्राथमिकताएं और लोगों की दृष्टि पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती हैं। इन को शामिल करने के लिए, संशोधन वांछनीय है। #संविधान_में_संशोधन_के_लिए_प्रक्रिया : संविधान में संशोधन कई प्रकार से किया जाता है नामतः साधारण बहुमत, विशेष बहुमत तथा कम से कम आधे राज्यों द्वारा समर्थन| अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन, भारतीय संविधान की एक मूल संशोधन प्रक्रिया है, जिसकी प्रक्रिया निम्न रूप से वर्णित की जा सकती है- ▪️यह संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है। ▪️इसे राज्य विधायिका में पेश नहीं किया जा सकता। ▪️बिल एक मंत्री या एक निजी सदस्य के द्वारा पेश किया जा सकता है। ▪️संसद के किसी भी सदन में विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। ▪️बिल अलग-अलग सदनों द्वारा पारित होना चाहिए। ▪️यह विशेष बहुमत (वर्तमान सदस्यों और मतदान के 2/3 और कुल संख्या का कम से कम 50%) द्वारा पारित होना चाहिए। ▪️राज्य के कम से कम आधे से अनुसमर्थन भारतीय संविधान के किसी भी संघीय सुविधा में संशोधन के मामले में जरूरी है। ▪️सभी उपरोक्त कदम के बाद, बिल राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जहां उसके पास हस्ताक्षर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। हालांकि, राष्ट्रपति के लिए बिल पर कारवाई करने के लिए समय अवधि निश्चित नहीं की गई है। ▪️जब एक बार राष्ट्रपति अपनी सहमति दे देता है, तो बिल एक अधिनियम बन जाता है। #संशोधन_के_प्रकार : संविधान के अनुच्छेद 368 के दायरे में, भारत के संविधान में संशोधन के दो प्रकार के होते हैं। ▪️केवल संसद का विशेष बहुमत। ▪️एक साधारण बहुमत से राज्यों के आधे के अनुसमर्थन के साथ-साथ संसद का. विशेष बहुमत। #संविधान_के_संशोधन_की_आलोचनाएं : संविधान के संशोधन की आलोचनाएं निम्न हैं: ▪️भारत के पास कोई भी स्थायी संवैधानिक संशोधन समिति नहीं है जैसे कई अन्य देशों के पास है तथा सभी प्रयास अपेक्षाकृत निष्कपट और अनुभवहीन संसद द्वारा किया जाते हैं। ▪️राज्य विधायिका के पास विधान परिषद के गठन या उन्मूलन के आरम्भ करने की शक्ति होने के अलावा, संशोधन प्रक्रिया की शुरुआत के लिए कोई भी अन्य गुंजाइश नहीं है। यह भारतीय संविधान को एकाधिकार के केंद्र के साथ साथ राज्यों के लिए द्र्ढ़ बनाता है। ▪️संसद के दोनों सदनों का अस्तित्व संवैधानिक संशोधन अधिनियम को पारित करने के लिए असहमति के कारण कठिनाई उत्पन्न करता है। ▪️सामान्य विधायी कार्य और संवैधानिक संशोधन कार्य के बीच शायद ही कोई फर्क होगा। ▪️राज्य विधायिका की पुष्टि करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है ▪️अपनी सहमति देने के लिए राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा नहीं है भारतीय संविधान के संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया का वर्णन करते हुए के.सी. व्हेयरे ने ठीक ही कहा है कि संविधान में संशोधन लचीलापन और कठोरता के बीच एक अच्छा संतुलन बनाता है। इसके अलावा, ग्रानविले ऑस्टिन, भारतीय संविधान की एक प्रसिद्ध विद्वान ने कहा, "संशोधन की प्रक्रिया ने संविधान को सबसे चतुराई से ग्रहण कर उसके पहलुओं को अपने आप ही साबित कर दिया है। यद्यपि यह जटिल लगता है, यह महज विविध है। " [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #माउंटबेटन_योजना #भारत_का_विभाजन_एवं_स्वतंत्रता [ 1947 ] लॉर्ड माउंटबेटन, भारत के विभाजन और सत्ता के त्वरित हस्तांतरण के लिए भारत आये। प्रारम्भ में यह सत्ता हस्तांतरण विभाजित भारत की भारतीय सरकारों को डोमिनियन के दर्जे के रूप में दी जानी थीं। 3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी योजना प्रस्तुत की जिसमे भारत की राजनीतिक समस्या को हल करने के विभिन्न चरणों की रुपरेखा प्रस्तुत की गयी थी। प्रारम्भ में यह सत्ता हस्तांतरण विभाजित भारत की भारतीय सरकारों को डोमिनियन के दर्जे के रूप में दी जानी थीं। #माउंटबेटन_योजना : ▪️भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया जायेगा। ▪️बंगाल और पंजाब का विभाजन किया जायेगा और उत्तर पूर्वी सीमा प्रान्त और असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया जायेगा। ▪️पाकिस्तान के लिए संविधान निर्माण हेतु एक पृथक संविधान सभा का गठन किया जायेगा। ▪️रियासतों को यह छूट होगी कि वे या तो पाकिस्तान या भारत में सम्मिलित हो जाये या फिर खुद को स्वतंत्र घोषित कर दें। ▪️भारत और पाकिस्तान को सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन नियत किया गया। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 को जुलाई 1947 में पारित कर दिया। इसमें ही वे प्रमुख प्रावधान शामिल थे जिन्हें माउंटबेटन योजना द्वारा आगे बढ़ाया गया था। #विभाजन_और_स्वतंत्रता : ▪️सभी राजनीतिक दलों ने माउंटबेटन योजना को स्वीकार कर लिया। ▪️सर रेडक्लिफ की अध्यक्षता में दो आयोगों का ब्रिटिश सरकार ने गठन किया जिनका कार्य विभाजन की देख-रेख और नए गठित होने वाले राष्ट्रों की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को निर्धारित करना था। ▪️स्वतंत्रता के समय भारत में 562 छोटी और बड़ी रियासतें थीं। ▪️भारत के प्रथम गृहमंत्री बल्लभभाई पटेल ने इस सन्दर्भ में कठोर नीति का पालन किया। 15 अगस्त 1947 तक जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ व हैदराबाद जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर सभी रियासतों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे| गोवा पर पुर्तगालियों और पुदुचेरी पर फ्रांसीसियों का अधिकार था। #भारत_विभाजन_के_कारण : #मुसलामानों_की_धार्मिक_कट्टरता अंग्रेजों का सिद्धांत ही था फूट डालो और शासन करो. भारत-विभाजन के पीछे मुसलामानों की धार्मिक कट्टरता काफी दोषी है. उनमें शिक्षा का अभाव था और आधुनिक विचारधारा के प्रति वे उदासीन थे. वे धर्म को विशेष महत्त्व देते थे. मुसलामानों में यह भावना प्रचारित कर दी गई की भारत जैसे हिन्दू बहुसंख्यक राष्ट्र में मुसलामानों के स्वार्थ की रक्षा संभव नहीं है और उनका कल्याण एक पृथक् राष्ट्र के निर्माण से ही हो सकता है. यद्यपि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने का प्रयास किया लेकिन मुहम्मद अली जिन्ना लीग की नीति में परिवर्तन के लिए तनिक भी तैयार नहीं हुए. #साम्प्रदायिकता_को_अंग्रेजों_का_प्रोत्साहन ब्रिटिश शासकों ने भारत में साम्प्रदायिकता के प्रोत्साहन में कोई कसर नहीं छोड़ी. 1857 के विद्रोह के बाद अँगरेज़ मुसलामानों को संरक्षण देकर फूट डालने का कार्य किया क्योंकि वे अनुभाव करने लगे कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के बाद तो भारत पर उनका शासन करना मुश्किल हो जायेगा. उन्होंने अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलामानों को आरक्षण दिया और राष्ट्रीय आंदोलं को कमजोर बनाया. 1909 में मुस्लिमों को अलग प्रतिनिधित्व देना ही भारत-विभाजन की पृष्ठभूमि बनी. #कांग्रेस_की_तुष्टीकरण_की_राजनीति कांग्रेस ने प्रारम्भ से ही मुसलामानों को संतुष्ट करने की नीति अपनाकर उनका मन काफी बाधा दिया था जिसका परिणाम यह हुआ कि वे अलग राष्ट्र की मांग करने लगे. कांग्रेस की यह तुष्टीकरण की नीति उनकी भयंकर भूल थी. लखनऊ समझौते के अनुसार मुसलामानों को उनकी जनसँख्या के आधार पर पृथक् प्रतिनिधित्व दिया गया. फिर 1932 के साम्प्रदायिक निर्णय के विषय में कांग्रेस ने अस्पृश्य जातियों के अलग हो जाने के भय से जिस दुर्बलता का परिचय दिया उससे मुसलामानों का मनोबल काफी बढ़ा. स्वतंत्र भारत में मुस्लिमों का क्या भविष्य होगा, उसके सम्बन्ध में कांग्रेस कोई स्पष्ट निर्णय नहीं ले सकी और दूसरी ओर जिन्ना का एक ही नारा था कि “हिन्दू और मुसलमान दो पृथक् राष्ट्र हैं“. #तत्कालीन_परिस्थितियाँ भारत की तत्कालीन परिस्थतियाँ भी भारत विभाजन के लिए उत्तरदाई थीं. भारत छोड़ो आन्दोलन तथा विश्वयुद्ध से उत्पन्न स्थिति, अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग को शामिल करना तथा कांग्रेस और लीग के बीच मतभेद भारत के विभाजन का कारण बनी. अंग्रेजों ने जैसे ही भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की, दंगे प्रारंभ हो गए. भयानक खूनखराबे से बचने के लिए विभाजन को स्वीकार करना ही पड़ा. #निष्कर्ष : माउंटबेटन योजना, केवल भारत के विभाजन को कार्यरूप देने के लिए ही नहीं थी बल्कि पाकिस्तान की मांग द्वारा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक तंत्र की स्थापना की। यह तय किया कि पाकिस्तान में शामिल होने वाले क्षेत्रों का निर्णय विधान सभा के प्रतिनिधियों द्वारा किया जायेगा या फिर जनमत-संग्रह द्वारा साथ ही कैबिनेट मिशन के अनुरूप एक ही संविधान सभा होगी या फिर नए गठित राष्ट्र के लिए अलग से संविधान सभा बनायी जाएगी। अतः हम कह सकते है कि माउंटबेटन योजना का मुख्य उद्देश्य भारत का विभाजन और सत्ता का त्वरित हस्तांतरण था। प्रारम्भ में यह सत्ता हस्तांतरण विभाजित भारत की भारतीय सरकारों को डोमिनियन के दर्जे के रूप में दी जानी थीं। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #केंद्रीय_सतर्कता_आयोग केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) एक शीर्ष भारतीय निकाय है जिसकी स्थापना 1964 में केंद्र सरकार के तहत सरकारी भ्रष्टाचार की पहचान व सतर्कता निगरानी करने के लिए और केंद्र सरकार की संस्थाओं में योजना बनाने, क्रियान्वित करने तथा उनकी सतर्कता की समीक्षा करने में विभिन्न अधिकारियों को सलाह देने के लिए की गयी थी। इसे एक स्वायत्त निकाय का दर्जा प्राप्त है। #सेवा_शर्तें_और_सतर्कता_आयुक्त_की_नियुक्ति : केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। इस पद का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। केंद्रीय सर्तकता आयुक्त को दुर्व्यवहार के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा तभी निलंबित या हटाया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की जांच के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गयी हो। #कार्य : आयोग मुख्य रूप से एक सलाहकारी निकाय है और इसके पास कोई न्यायिक अधिकार नहीं हैं। यह भ्रष्टाचार, दुराचार, ईमानदारी की कमी या सरकारी कर्मचारियों की ओर से कदाचार या दुष्कर्म या कुछ अन्य प्रकार से संबंधित शिकायतों पर विचार विमर्श करता है। यह सरकारी कर्मचारियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने की मंजूरी का विस्तार नहीं कर सकता है। एक सीमित दायरे के अलावा इसके पास जांच या भ्रष्टाचार की शिकायतों की तहकीकात करने के लिए कोई तंत्र नहीं होता है। आयोग शिकायत की जांच स्वयं करने के लिए अधिकृत नहीं है, इसकी जांच करने के लिए इसे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) या संबंधित मंत्रालय या जांच विभाग के पास भेजना होता है। हालांकि, मुख्य तकनीकी परीक्षक संस्था इससे जुड़ी हुयी है। जो ठेकेदारों, अनुबंधों और मास्टर रोल्स के बिलों की जाँच सहित लोक निर्माण की तकनीकी परीक्षा का आयोजन करता है। #आयोग_निम्नलिखित_मामलों_में_कार्रवाई_करने #की_सलाह_दे_सकता_है : ▪️केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा की गयी जांच रिपोर्ट जिसमें कमीशन या अन्य द्वारा इसे भेजे गये विभागीय कार्रवाई या अभियोजन के मामले शामिल होते हैं। ▪️आयोग द्वारा निर्दिष्ट मामलों में अनुशासनात्क कार्रवाई के मामले में शामिल मंत्रालय या विभाग की रिपोर्ट। ▪️सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सांविधिक निगमों आदि से सीधे प्राप्त हुए मामले। आयोग को गृह मंत्रालय के सामने अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इस रिपोर्ट में वह मामले होते हैं जिसमें उसकी सिफारिशों को स्वीकार कर इन पर सक्षम अधिकारियों द्वारा कार्यवाही की जाती है। संविधान से संबंधित प्रावधानों, अधिकार क्षेत्र, बिजली और आयोग के कार्यों के साथ कार्यवाही करने के लिए लंबे समय से चली आ रही एक अधिनियम के गठन की मांग को अंतत: एक अधिनियम पारित करके गठित कर दिया गया था। उक्त अधिनियम को केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम,2003 के रूप में नामित किया गया। #केंद्रीय_सतर्कता_आयोग_के_कार्य_और_शक्तियां : ▪️यह 1988 भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत कथित अपराधों की जांच से संबधित दिल्ली विशेष पुलिस की स्थापना द्वारा कामकाज और अभ्यास अधीक्षण की जांच के लिए प्रतिबद्ध है। ▪️दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1964 की (1946 का 25) की धारा 4 की उप-धारा (1) के तहत यह जिम्मेदारी का निर्वहन करने के उद्देश्य के लिए विशेष दिल्ली पुलिस की स्थापना का निर्देश देती है। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #भारत_का_संवैधानिक_विकास 1600 ई. में लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया गया। ▪️मुगल शासक जहांगीर के काल में दो अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से भारत आए - 1. 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस जहांगीर के दरबार में आया। और सूरत में एक फैक्ट्री स्थापित की। 2. 1615 में सर टॉमस रो भारत आया। अजमेर में जहांगीर से मिला और व्यापार की अनुमति प्राप्त की। ▪️1764 के बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने बंगाल पर शिकंजा कस लिया। ▪️अंग्रेजों ने व्यापार की शुरुआत बंगाल से की थी तथा बंगाल से ही गवर्नरों की नियुक्ति करना शुरू किया। बंगाल का पहला गवर्नर लॉर्ड क्लाइव था। अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए जो भारतीय संविधान के विकास में सहायक बनें। #रेगुलेटिंग_एक्ट [1773 ] : ▪️इस एक्ट के माध्यम से कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित किया गया। ▪️बंगाल का शासन गवर्नर जनरल तथा चार सदस्यीय परिषद में निहित किया गया। इस परिषद में निर्णय बहुमत द्वारा लिए जाने की भी व्यवस्था की गयी। ▪️गवर्नर जनरल - वारेन हेस्टिंग्स ▪️सदस्य - क्लैवरिंग, मॉनसन, बरवैल तथा फ्रांसिस इन सभी का कार्यकाल पांच वर्ष का था तथा निदेशक बोर्ड की सिफारिश पर केवल ब्रिटिश समाट द्वारा ही इन्हें हटाया जा सकता था। ▪️मद्रास तथा बम्बई प्रेसीडेंसियों को बंगाल प्रेसीडेन्सी के अधीन कर दिया गया तथा बंगाल के गवर्नर जनरल को तीनों प्रेसीडेन्सियों का गवर्नर जनरल बना दिया गया। वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बना। ▪️इस अधिनियम द्वारा कलकत्ता (बंगाल) में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी। ▪️इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश थे। ▪️प्रथम मुख्य न्यायाधीश - सर एलिजा इम्पे ▪️ तीन अन्य न्यायाधीश - चैंबर्स, लिमेंस्टर, हाइड ▪️कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया। #एक्ट_ऑफ_सैटलमेंट : रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1781 में एक संशोधित अधिनियम पारित किया जिसे एक्ट ऑफ सैटलमेंट कहते है। #1784_ई_का_पिट्स_इंडिया_एक्ट : इस एक्ट से संबंधित विधेयक ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री पिट द यंगर ने संसद में प्रस्तुत किया। ▪️इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों को अलग-अलग कर दिया। • व्यापारिक कार्यों का नियंत्रण - कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा • राजनीतिक कार्यों का नियंत्रण - बोर्ड ऑफ कंट्रोल द्वारा ▪️गवर्नर की कार्यकारी परिषद में सदस्यों की संख्या घटाकर 4 से 3 कर दी गई। ▪️बोर्ड ऑफ कंट्रोल ब्रिटिश की संसदीय समिति थी। इसमें 6 सदस्य होते थे, जिनमें दो ब्रिटिश मंत्री होते हैं। (अर्थात ब्रिटिश मंत्रिमंडल के सदस्य कंपनी पर प्रत्यक्ष रूप से अधिकार रखने लगे और कंपनी के नियम बनाने लगे) ▪️भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया। #विशेष_अधिनियम [ 1786 ] : गवर्नर जनरल कॉर्नवालिस को वीटो पावर दिया गया। #नोट - पिट्स इंडिया एक्ट विवाद को लेकर प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ की गठबंधन सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा। यह भारत का एकमात्र अधिनियम है, जिसके विवाद में ब्रिटेन की सरकार गिरी। ▪️पिट्स इंडिया एक्ट के विरोध में इस्तीफा देकर जब वारेन हेस्टिंग्स 1785 में इंग्लैंड पहुंचा तो बर्क द्वारा उसके ऊपर महाभियोग लगाया गया। ▪️वारेन हेस्टिंग्स एकमात्र गवर्नर जनरल/वायसराय थे, जिन पर इंग्लैंड लौटने के बाद महाभियोग चलाया गया। #1793_ई_का_चार्टर_अधिनियम : ▪️कंपनी के कर्मचारियों तथा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों को भारतीय राजस्व से वेतन की व्यवस्था की गई। ▪️सभी गवर्नर जनरल के लिए वीटो पावर दिया गया। #1813_ई_का_चार्टर_अधिनियम : ▪️ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। ▪️परंतु कंपनी को चाय व चीन के साथ व्यापार में एकाधिकार दिया गया। ▪️कंपनी भारत में शिक्षा के विकास के लिए प्रतिवर्ष 1 लाख रुपए खर्च करेगी। ▪️ईसाई मिशनरीज भारत में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। ▪️इस अधिनियम द्वारा कुछ सीमाओं के अधीन ब्रिटेन के आम नागरिकों को भारत के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान की गई। #1833_ई_का_चार्टर_अधिनियम : ▪️कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए। ▪️कंपनी ने भारत में शासन स्थापित करना अपना उद्देश्य बनाया। अर्थात कंपनी पूर्णतया एक राजनीतिक इकाई बन गई। ▪️बंगाल के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया। ▪️भारत का प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक बना। ▪️गवर्नर जनरल की परिषद में एक विधि सदस्य जोड़ा गया। (कुल सदस्य 3+1 =4) ▪️विधि सदस्य को मतदान का अधिकार नहीं था। ▪️दास प्रथा को समाप्त किया जाएगा। (1843 में एलनबरो ने समाप्त की) ▪️किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। ▪️मद्रास और बॉम्बे के गवर्नरों की कानून बनाने की शक्तियां समाप्त कर दी गई। #नोट - प्रथम विधि सदस्य लॉर्ड मैकाले को नियुक्त किया गया। ▪️साथ ही भारतीय कानूनों का वर्गीकरण करके लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में विधि आयोग का गठन किया गया। ▪️लॉर्ड मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा का जनक कहा जाता है। #1853_ई_का_चार्टर_अधिनियम : ▪️कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स में सदस्यों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई। ▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में विधि सदस्य को स्थाई कर दिया गया। ▪️कार्यकारी परिषद के विधायी कार्यों को प्रशासनिक कार्यों से पृथक करने की व्यवस्था की गयी। ▪️कानून निर्माण में सहायता हेतु गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में 6 नए सदस्य लिए जाएंगे। यहां से भारत की संसद का इतिहास प्रारंभ होता है। ▪️उच्च पदों (सिविल सेवकों) के लिए लिखित परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। (यहां से ICS लिखित परीक्षा का इतिहास प्रारंभ होता है) ▪️1854 में मैकाले समिति बनाई गई, जो सिविल सेवाओं से संबंधित थी। #नोट - 1854 में प्रस्तुत चार्ल्स वुड डिस्पैच को भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा कहा जाता है। ▪️1864 में सत्येंद्र नाथ टैगोर प्रथम भारतीय आईसीएस बने। #1858_ई_का_भारत_शासन_अधिनियम : ▪️1857 के विद्रोह के कारण कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया तथा भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन (महारानी) के हाथों में चला गया। ▪️1858 से 1947 तक ताज का शासन रहा। ▪️भारत के शासन को अच्छा बनाने के कारण इस अधिनियम को अच्छा अधिनियम तथा ताज (Crown) का अधिनियम भी कहा जाता है। ▪️कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल को समाप्त कर दिया गया। ▪️गवर्नर जनरल का पदनाम बदलकर वायसराय कर दिया गया। (ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि) भारत का प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग बना। ▪️वायसराय की सहायता के लिए भारत सचिव पद सृजित किया गया। यह ब्रिटिश कैबिनेट का मंत्री होता था। ▪️प्रथम भारत सचिव चार्ल्स वुड बना। ▪️भारत सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यीय भारत परिषद का गठन किया गया। #नोट - भारत का अंतिम गवर्नर जनरल + प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग था। ▪️भारत का अंतिम गवर्नर सी राजगोपालाचारी था। #1861_ई_का_भारत_परिषद_अधिनियम : ▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद 5वां सदस्य जोडा गया। ▪️विभागीय प्रणाली (मंत्रिमंडलीय व्यवस्था Portfolio system) की शुरुआत की गई। ▪️वायसराय को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई। ▪️मुंबई व मद्रास प्रेसिडेंसियों को पुन: विधायी शक्तियां प्रदान कर भारत में विकेंद्रीकरण की शुरुआत की गई। ▪️1773 के रेगुलेटिंग एक्ट में केंद्रीयकरण की शुरुआत की गई थी। ▪️कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई। ▪️कार्यकारी परिषद के अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई। ये सदस्य कुलीन भारतीय होते थे, परंतु यह अनिवार्य नहीं था। ▪️न्यूनतम सदस्य - 6 ▪️अधिकतम सदस्य -12 #नोट - 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया। #1892_ई_का_भारत_परिषद_अधिनियम ▪️वायसराय की कार्यकारी परिषद में 1 सदस्य और बढ़ा दिया गया। ▪️अतिरिक्त सदस्यों की संख्या भी बढ़ाई गई। न्यूनतम 10 और अधिकतम 16 ▪️अतिरिक्त सदस्यों का अप्रत्यक्ष निर्वाचन व्यापार बोर्ड के सदस्यों, नगर निगम तथा सीनेट द्वारा करवाया जाता था, परंतु चुनाव शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया। (अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत) ▪️अतिरिक्त सदस्यों को प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। ये बजट पर बहस कर सकते थे। #1909_ई_का_भारत_परिषद्_अधिनियम : ▪️इस अधिनियम को मार्ले-मिन्टो सुधार भी कहते हैं। उस समय लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत सचिव और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे। ▪️इस अधिनियम के द्वारा भारत में पहली बार जाति, धर्म व भाषा के आधार पर अलग निर्वाचन क्षेत्र निश्चित किए गए अर्थात इस अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली या पृथक निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत की गई। ▪️सबसे पहले इस प्रणाली में मुसलमानों को शामिल किया गया है। अर्थात मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। ▪️लॉर्ड मिंटो को भारतीय सांप्रदायिकता का जनक कहा जाता है। ▪️भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले की सिफारिशों को इस अधिनियम में जगह दी गई। ▪️अतिरिक्त सदस्यों को विधायी परिषद में पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। ▪️भारतीयों को वायसराय की कार्यकारी परिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया। ▪️सत्येंद्र नाथ सिन्हा वायसराय की कार्यपरिषद का प्रथम भारतीय सदस्य बना। #1919_ई_का_भारत_शासन_अधिनियम : ▪️इस अधिनियम को मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं। ▪️इस अधिनियम के द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करके सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपियों को इसमें शामिल किया गया। ▪️महिलाओं को मताधिकार दिया गया। ▪️केंद्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की। 1. राज्य परिषद (वर्तमान में राज्यसभा) 2. केंद्रीय विधान सभा (वर्तमान में लोकसभा) ▪️प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की गई। ▪️प्रांतीय विषयों को आरक्षित तथा हस्तांतरित दो भागों में बांटा गया‌ ▪️संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के गठन का प्रावधान किया गया। ▪️यूपीएससी का गठन ली आयोग की सिफारिश पर 1926 में किया गया। ▪️यूपीएससी का प्रथम अध्यक्ष - रॉस बार्कर ▪️केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया। #नोट - द्वैध शासन का जनक लियो कार्टिस को माना जाता है। ▪️मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड घोषणा पत्र - 1917 ▪️मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार - 1919 #साइमन_कमीशन_1927 : ▪️1919 के अधिनियम की जांच हेतु 7 सदस्यीय साइमन कमीशन का गठन किया गया। ▪️इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। इस कारण सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया। #नोट - साइमन कमीशन के गठन के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बाल्डवीन तथा भारत सचिव बर्कन हेड थे। बर्कन हेड ने कहा कि भारतीय संविधान बनाने में सक्षम नहीं है। #नेहरू_रिपोर्ट_1928 : ▪️बर्कन हेड की चुनौती को स्वीकार करते हुए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय सर्वदलीय संविधान निर्मात्री समिति का गठन किया गया। जिसने अगस्त 1928 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। ▪️नेहरू रिपोर्ट से असंतुष्ट होकर मोहम्मद अली जिन्ना ने 1929 में अपनी 14 मांगे प्रस्तुत की, जिन्हें जिन्ना का 14 सूत्रीय फार्मूला कहा जाता है। ◾साइमन कमीशन के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए गए। ▪️सांप्रदायिक अवार्ड या कम्युनल अवार्ड ▪️ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 में पृथक निर्वाचन व्यवस्था को दलितों के लिए विस्तारित किया। ▪️दलितों के लिए प्रांतीय विधान मंडलों में 71 सुरक्षित स्थान प्रदान किए गए। #पूना_पैक्ट_सितंबर_1932 : दलितों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था के कारण गांधी जी ने पुणे की यरवदा जेल में अनशन प्रारंभ कर दिया। सितंबर 1932 में महात्मा गांधी व भीमराव अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ, जिसे पूना समझौता कहा जाता है‌। इसके तहत - ▪️कांग्रेस ने दलितों को प्रांतीय विधानमंडलों में 147/148 सुरक्षित सीटें देने का वादा किया। ▪️केंद्रीय विधानमंडलों में दलितों को 18% सुरक्षित सीटें दिए जाने की घोषणा की। #भारत_सरकार_अधिनियम (1935) : ▪️यह अधिनियम साइमन कमीशन की सिफारिश पर बनाया गया था। ▪️इस अधिनियम में 321 अनुच्छेद, 10 अनुसूचियां और 14 भाग थे। ▪️वर्तमान भारतीय संविधान में इस अधिनियम का लगभग 60% भाग लिया गया है। अतः इसे लघु संविधान या मिनी संविधान भी कहते हैं। ▪️पहली बार अखिल भारतीय संघ की स्थापना के प्रयास किए गए। यह 11 ब्रिटिश प्रांतों और 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों एवं देशी रियासतों से मिलकर बनना था। परंतु रियासतों ने इंकार कर दिया। ▪️प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर उन्हें स्वायत्तता दी गई। ▪️केंद्र में द्वैध शासन की शुरुआत की गई। ▪️केंद्र और राज्यों के बीच पहली बार शक्तियों का विभाजन किया गया। ▪️संघ सूची - 59 विषय - केंद्र ▪️राज्य सूची - 54 विषय - राज्य ▪️समवर्ती सूची - 36 विषय - दोनों कानून बना सकते थे। ▪️अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दी गई। ▪️सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का और अधिक विस्तार करके इसमें महिलाओं, दलित जातियों और मजदूर वर्ग को भी शामिल किया। ▪️भारत शासन अधिनियम 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया गया। ▪️भारत में मुद्रा के नियंत्रण एवं साख विस्तार हेतु 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई। ▪️संघीय न्यायालय की स्थापना - 1937 ▪️बर्मा को भारत से अलग किया गया - 1937 #नोट - एटली ने 1935 के अधिनियम को अविश्वास का प्रतीक कहा। ▪️जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिनियम को दासता का घोषणा पत्र कहा। ▪️पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1935 के अधिनियम के बारे में कहा कि यह अधिनियम बाहर से देखने पर जनतंत्रीय शासन व्यवस्था लगता है, लेकिन अंदर से एकदम खोखला है। ▪️पंडित मदन मोहन मालवीय को महामना भी कहते हैं। ▪️क्रिप्स मिशन - 1942 ▪️वेवेल योजना - 1945 ▪️कैबिनेट मिशन योजना - 1946 ▪️माउंटबेटन योजना - 3 जून 1947 #1947_ई_का_भारतीय_स्वतंत्रता_अधिनियम : 4 जुलाई 1947 को भारत का स्वतंत्रता विधेयक ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली के द्वारा ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया, जो 18 जुलाई 1947 को पारित हो गया। ▪️14-15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत, पाकिस्तान व भारत नामक दो राष्ट्रों के रूप में आजाद हो गया। ▪️वायसराय का पद समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर गवर्नर जनरल का पद सृजित किया गया। ▪️स्वतंत्र भारत के प्रथम व अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन थे। ▪️भारत सचिव के पद को समाप्त कर दिया गया। ▪️नए संविधान के निर्माण तक 1935 के अधिनियम के अनुसार शासन हुआ। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #अंतरिम_सरकार 2 सितम्बर 1946, को नवनिर्वाचित संविधान सभा ने भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया जो कि 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में बनी रही।अंतरिम सरकार की कार्यकारी शाखा का कार्य वायसराय की कार्यकारी परिषद करती थी जिसकी अध्यक्षता वायसराय द्वारा की जाती थी| इसमें कांग्रेस द्वारा नामित 3 मुस्लिम सदस्यों सहित कुल 12 सदस्य शामिल थे। भारत में ब्रिटिशों के आने के बाद यह प्रथम अवसर था जब भारत की सरकार भारतीयों के हाथों में थी। 26 अक्टूबर को लीग द्वारा नामित 5 सदस्य इसमें शामिल हुए और इन नए सदस्यों के लिए स्थान बनाने के लिए कांग्रेस द्वारा नियुक्त सदस्यों में हेर-फेर किया गया (दो सीटें पहले से ही खाली थीं इसके अलावा शरत बोस, सैय्यद अली जहीर व सर शफात अहमद खान ने त्यागपत्र दे दिया)। सरकार के सभी चौदह सदस्यों के विभाग निम्नलिखित थे- #अंतरिम_सरकार_के_सदस्य - ▪️पंडित जवाहर लाल नेहरु - कार्यकारी परिषद् के उपाध्यक्ष,विदेश विभाग, राष्ट्रमंडल से सम्बंधित मामले ▪️वल्लभभाई पटेल - गृह, सुचना एवं प्रसारण ▪️बलदेव सिंह - रक्षा ▪️डॉ.जॉन - उद्योग एवं आपूर्ति ▪️सी.राजगोपालाचारी - शिक्षा ▪️सी.एच.भाभा - कार्य, खनन एवं शक्ति ▪️राजेंद्र प्रसाद -खाद्य एवं कृषि ▪️आसफ अली - रेलवे ▪️जगजीवन राम - श्रम ▪️लियाकत अली - वित्त ▪️टी.टी.चुंदरीगर - वाणिज्य ▪️अब्दुल रब नश्तर - संचार ▪️गजान्फर अली खान - स्वास्थ्य ▪️जोगेंद्र नाथ मंडल - विधि #निष्कर्ष - अगस्त 1946 में कांग्रेस ने अंतरिम सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया ताकि ब्रिटिश सरकार के लिए सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके। अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर 1946 से कार्य करना आरम्भ किया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #राज्य_वित्त_आयोग अनुच्छेद 280 के तहत, केंद्र के वित्त आयोग की तर्ज पर 1993 से भारत के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग की स्थापना की गयी थी जिसका उद्देश्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना और इसके लिए निम्न रूपों में सिफारिश करना होता है - ▪️राज्य द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल और फीस की विशुद्ध आय का पंचायतों तथा राज्य के बीच आवंटन करना जिसे दोनों के मध्य विभाजित किया जा सकता है। और पंचायत के विभिन्न स्तरों पर खर्च या आवंटित किया जा सकता है। ▪️पंचायतों को कितने कर, शुल्क, टोल और फीस सौंपी जा सकती है, का निर्धारण करना। ▪️पंचायतों को अनुदान सहायता। #राज्य_वित्त_आयोग_के_कार्य : राज्य वित्त आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं:- ▪️राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करना। ▪️राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज्य संस्थाओं की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न कदम उठाना। ▪️राज्य की संचित निधि से राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों को धन आवंटित करना। ▪️वित्तीय मुद्दों के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना। ▪️केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान की जानी वाली धनराशि का सदुपयोग करना। ▪️राज्य सरकार द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल, और अधिशुल्कों का राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज संस्थाओं की बीच आवंटन करना। ▪️कर, टोल, शुल्क, और फीस, जिसे राज्य में विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों द्वारा लगाया जा सकता है, का निर्धारण करना। ▪️संविधान के अनुच्छेद 243-I का संबंध वित्त आयोग है जो पंचायतों के विशेष मूल्यांकन के लिए वित्तीय स्थिति समीक्षा करता है। भारत में पंचायती राज संस्था की अवधारणा और आकांक्षा को उपयोग में लाने के लिए राज्य वित्त आयोग की भूमिका बहुत महत्तवपूर्ण है। यदि पर्याप्त स्वायत्तता और अधिकार के साथ अंतिम रैंक के अधिकारी तक वित्त आसानी या सावधानी से उपलब्ध होता है तो सत्ता के अंतरण को महसूस किया जा सकता है। इन पहलुओं के मद्देनजर राज्य वित्त आयोग की भूमिका को देखा जा सकता है। #सकारात्मक_पक्ष : ▪️लोकतंत्र के विचार को बढ़ाबा देना। ▪️सरकार और शासन के वृहद विकासवादी पहलू। ▪️स्थानीय लोगों और स्थानीय नेताओं का सशक्तिकरण। ▪️दूरस्थ क्षेत्रों के लिए धनराशि का सही मात्रा और समय पर पहुंचना। #नकारात्मक_पक्ष : ▪️राज्य अपने वित्तीय अधिकारों का प्रय़ोग करने में अनिच्छुक रहे हैं। ▪️राज्य वित्त आयोग स्वायत्तता में बहुत अधिक हस्तक्षेप और अतिक्रमण का कार्य कर रहा है। ▪️राज्यों के पास स्वंय के खर्चे के लिए पर्याप्त धन नहीं है जिस वजह से धन राशि को साझा करने के कारण मामूली धनराशि का राज्य सरकार द्वारा हमेशा विरोध किया जाता है। ▪️अभी तक राज्य वित्त आयोग के विचार को सच्ची भावना में लागू नहीं किया जा सका है। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #संविधान_सभा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर पहली बार, वर्ष 1936 में एक संविधान सभा की मांग की थी. यह विचार एम.एन. रॉय के दिमाग की उपज था. ब्रिटिश सरकार ने 1940 के 'अगस्त प्रस्ताव' में कांग्रेस की इस बात को माना था. अंततः वर्ष 1942 में 'क्रिप्स प्रस्ताव' के तहत कांग्रेस की इस मांग को स्वीकार कर लिया गया. संविधान सभा के गठन हेतु ब्रिटिश सरकार की ओर से 24 मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली आया। कैबिनेट मिशन में 3 सदस्य थे पैट्रिक लॉरेंस, सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए बी एलेग्जेंडर। कैबिनेट मिशन ने अपनी रिपोर्ट 16 मई 1946 को पेश की। कैबिनेट मिशन द्वारा संविधान सभा में कुल 389 सदस्य संख्या निर्धारित की गई। ▪️प्रांतीय विधान मंडलों में निर्वाचित – 293 ▪️देशी रियासतों से मनोनीत – 93 ▪️कमिश्नर क्षेत्रों से – 4 (अजमेर-मेरवाड़ा, बलूचिस्तान,कुर्ग, दिल्ली ) संविधान सभा के निर्माण हेतु जुलाई 1946 हुए चुनाव में प्रांतीय विधान मंडलों में निर्वाचित 293 सदस्यों में से कांग्रेस को 208 मुस्लिम लीग को 73 विभिन्न पार्टियों को 7 एवं स्वतंत्र एवं निर्दलीय प्रत्याशियों को 8 सीटें मिली । चुनाव में मुस्लिम लीग को अल्पमत मिलने के कारण मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाया जिसमें उन्होंने भारत के विभिन्न भागों में सुनियोजित तरीके से दंगे फैलाए गए। #संविधान_सभा_की_प्रथम_बैठक : संविधान सभा की प्रथम बैठक दिल्ली में 9 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें 207 सदस्यों ने भाग लिया एवं सभा के अस्थाई अध्यक्ष के रूप में सच्चिदानंद सिन्हा को चुना गया। जे बी कृपलानी तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे जिन्होंने डॉ सच्चिदानंद सिन्हा का नाम अध्यक्ष पद के लिए नाम प्रस्तावित किया एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे अनुमोदित किया संविधान सभा के प्रथम अधिवक्ता डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। #संविधान_सभा_की_दूसरी_बैठक : संविधान सभा की दूसरी बैठक 11 दिसंबर 1946 को हुई इसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया। #संविधान_सभा_की_तीसरी_बैठक : संविधान सभा की तीसरी बैठक 13 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया और इसी के साथ संविधान का संविधान के निर्माण का कार्य शुरू हुआ । संविधान सभा के उपाध्यक्ष एच सी मुखर्जी थे। #संविधान_निर्माण_हेतु_विभिन्न_समितियों_का_गठन : संविधान के निर्माण हेतु विभिन्न समितियों का गठन किया गया जो कि निम्न प्रकार है- ▪️संघ शक्ति समिति - पंडित जवाहरलाल नेहरु ▪️मौलिक अधिकार समिति - सरदार वल्लभ भाई पटेल ▪️संघ संविधान समिति - जवाहर लाल नेहरू ▪️झंडा समिति - जे बी कृपलानी ▪️कार्य संचालन समिति - के एम मुंशी ▪️तदर्थ समिति - एस वर्धा ▪️प्रांतीय संविधान समिति - सरदार वल्लभ भाई पटेल ▪️प्रारूप समिति - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ▪️राष्ट्रध्वज संबंधी तदर्थ समिति - डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ जिनका अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को बनाया गया जिनका संविधान सभा में चयन पश्चिम बंगाल से हुआ था। इस समिति में 7 सदस्य थे। प्रारूप समिति के उपाध्यक्ष के एम मुंशी थे। प्रारूप समिति की पहली बैठक 30 अगस्त 1947 को हुई। संविधान के प्रारूप पर 114 दिन बहस हुई। भारत के विभाजन के पश्चात संविधान सभा में सदस्यों की संख्या 299 रह गई। 229 सदस्य भारतीय प्रांतों से 70 सदस्य देशी रियासतों से थे ।राजस्थान से कुल 12 सदस्य सम्मिलित थे। संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा के कुल 12 अधिवेशन एवं संविधान का तीन बार वाचन किया गया। ▪️प्रथम वाचन 4 नवंबर 1948 से 9 नवंबर 1948 तक ( प्रथम वाचक डॉ राधाकृष्णन थे ). ▪️द्वितीय वाचन 15 नवंबर 1948 से 17 अक्टूबर 1949 तक. ▪️तृतीय वाचन 17 नवंबर 1949 से 26 नवंबर 1949 तक. संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई जिसमें संविधान सभा के कुल 284 सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए । इस दिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया संविधान सभा में कुल 12 महिलाओं ने भाग लिया लेकिन 8 महिलाओं ने ही संविधान पर हस्ताक्षर किए ।महिला समूह की अध्यक्ष श्रीमती हंसा मेहता थी। संविधान सभा ने संविधान का निर्माण 26 नवंबर 1949 ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को पूरा किया और इसी दिन इसे आत्मार्पित, अधिनियमित एवं अंगीकृत किया गया एवं इस दिन संविधान के 15 अनुच्छेद तुरंत प्रभाव से लागू कर दिए गए । इसी कारण से 26 नवंबर को विधि दिवस मनाया जाता है। संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ जिसमें भारतीय संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा एवम इसमें 63,96,729 रुपए खर्च हुए। संपूर्ण संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और इसी दिन को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाता है और प्रथम गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को मनाया गया गणतंत्र शब्द फ्रांस से लिया गया।

No comments:

Post a Comment