Wednesday, February 24, 2021

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #राज्य_लोक_सेवा_आयोग

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #राज्य_लोक_सेवा_आयोग भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोग की स्थापना की जिसे राज्य लोक सेवा आयोग के रूप में जाना जाता है तथा भारत के संविधान ने इसे स्वायत्त निकायों के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया है| #संरचना : एक राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) में एक अध्यक्ष और राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए गए अन्य सदस्य शामिल होते हैं। नियुक्त सदस्यों में से आधे सदस्यों को भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के तहत कार्यालय में कम से कम दस साल के लिए कार्यरत होना चाहिए| संविधान ने आयोग के सामर्थ्य को स्पष्ट रूप से नहीं बताया है| राज्यपाल के पास सदस्यों की संख्या के साथ साथ आयोग के कर्मचारियों और उनकी सेवा की शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार होता है। राज्यपाल SPSC के सदस्यों में से किसी एक को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकते हैं यदि : ▪️आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाये; या ▪️आयोग का अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण या किसी अन्य कारण से अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो। इस तरह का सदस्य एक कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जब तक किसी व्यक्ति को कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने के लिए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त ना किया जाये या जब तक अध्यक्ष पुनः अपना कार्य आरंभ ना कर दे, जैसी भी स्थिति हो| #कार्यकाल : SPSC का अध्यक्ष और सदस्य छह साल की अवधि के लिए या जब तक वे 62 वर्ष की आयु प्राप्त न कर लें, जो भी पहले हो, कार्यरत रहते हैं| SPSC के सदस्य राज्यपाल को संबोधित करते हुए कार्यकाल की अवधि के बीच में अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं| #कर्तव्य_और_कार्य : SPSC के कर्तव्य और कार्य निम्न प्रकार से हैं: 1. यह राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है। 2. नीचे दिये गए मामलों पर SPSC से विचार-विमर्श किया जाता है: ▪️सिविल सेवाओं व सिविल पदों की भर्ती की प्रक्रियाओं से संबन्धित सभी मामले| ▪️सिविल सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियों और एक सेवा से दूसरे में पदोन्नतियों व स्थानांतरण और इस तरह की नियुक्तियों, पदोन्नति या स्थानांतरण के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए नियमों का पालन करना| ▪️एक नागरिक की हैसियत से भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक मामले जिसमें इन मामलों से संबन्धित स्मृति पत्र या याचिकाएं शामिल हों| ▪️अपने आधिकारिक कर्तव्य के निष्पादन में या किए गए कार्यों के खिलाफ किए गए कानूनी कार्यवाही के बचाव में एक सिविल सेवक द्वारा किए गए किसी भी प्रकार के खर्च पर दावा करना| ▪️भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति घायल होने पर पेंशन के हक़ के लिए दावा कर सकता है और किसी भी हक़ के लिए राशि से संबन्धित कोई भी प्रश्न कर सकता है| ▪️कार्मिक प्रबंधन से संबन्धित कोई भी मामले। ▪️यह राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य की सालाना वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता हैं| राज्य विधायिका राज्य की सेवाओं से संबंधित SPSC को अतिरिक्त कार्य प्रदान कर सकती है। SPSC के कार्य का विस्तार निगमित निकाय की कार्मिक प्रणाली के द्वारा या कानून द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या इसके तहत कोई भी सार्वजनिक संस्था द्वारा किया जा सकता है| SPSC की वार्षिक रिपोर्ट उनके प्रदर्शन के बारे में बताते हुए राज्यपाल को सौंपी जाती है| उसके बाद राज्यपाल इस रिपोर्ट को राज्य विधानमण्डल के समक्ष मामलों को समझाते हुए ज्ञापन के साथ रखता है| [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #क्रिप्स_मिशन [ 1942 ] क्रिप्स मिशन को 1942 ई० में ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजा गया था। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने मजदूर नेता सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स को 1942 ई० में भारत भेजा था। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का पूर्ण सहयोग प्राप्त करना था। इसमें ऐसे बहुत से प्रस्ताव थे जो भारत की एकता अखंडता के विरुद्ध थे। इसलिए सभी लोगों ने इसका बहिष्कार कर दिया और यह मिशन असफल हो गया। भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, मुस्लिम लीग और दूसरे दलों ने भी इस मिशन का बहिष्कार कर दिया था। #क्रिप्स_मिशन_क्यों_भेजा_गया_था? उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। ब्रिटेन को दक्षिण पूर्व एशिया में हार का सामना करना पड़ रहा था। मित्र राष्ट्र (अमेरिका, चीन और सोवियत संघ) चाहते थे कि भारत द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन प्राप्त करें और उसकी मदद करें। भारत ने इस शर्त पर ब्रिटेन को समर्थन दिया था कि युद्ध के उपरांत भारत को पूर्ण आज़ादी दे दी जाए और ठोस उत्तरदायी शासन का हस्तांतरण तुरंत कर दिया जाए। #क्रिप्स_मिशन_के_मुख्य_प्रावधान : ▪️डोमिनियन राज्य के दर्जे के साथ भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी। यह भारतीय संघ राष्ट्रमंडल देशों, संयुक्त राष्ट्र संघ, अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों एवं संस्थाओं से अपने संबंध स्वतंत्र रूप से बना सकेगा। ▪️भारत के लोग आज़ाद होने पर स्वयं अपना संविधान का निर्माण कर सकेंगे। ▪️आज़ाद भारत के संविधान निर्मात्री सभा के गठन के लिए एक ठोस योजना बनाई जाएगी। ▪️भारत के विभिन्न प्रांत अपने अलग संविधान बना सकेंगे (बहुत से लोग इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि इससे भारत का विभाजन सुनिश्चित हो जाता)। ▪️भारत के पास राष्ट्रमंडल से अलग होने का अधिकार होगा। ▪️स्वतंत्र भारत के प्रशासन की बागडोर भारतीयों के हाथ में दी जाएगी। #क्रिप्स_मिशन_क्यों_असफल_हुआ? क्रिप्स मिशन द्वारा भारतीयों को लुभाने के लिए अनेक आकर्षक प्रस्ताव दिए गए थे, उसके बावजूद भी यह असफल रहा। भारतीयों को यह नही कर पाया। देश की जनता के बड़े वर्ग ने इसे स्वीकृति नहीं दी। कई राजनीतिक दल और समूहों ने इसका विरोध किया। #कांग्रेस_पार्टी_ने_निम्न_आधार_पर_इसका #विरोध_किया : ▪️भारत को पूर्ण स्वतंत्रता के स्थान पर डोमिनियन राज्य का दर्जा दिया गया था जो स्वीकार्य नहीं था। ▪️देश की रियासतों के प्रतिनिधियों के लिए निर्वाचन (वोट द्वारा चयन) के स्थान पर मनोनयन (इच्छा अनुसार चयन) की व्यवस्था रखी गई थी जो उचित नहीं थी। ▪️क्रिप्स मिशन में भारत के दूसरे प्रांतों को पृथक संविधान बनाने की व्यवस्था की गई थी जिसका छिपा हुआ लक्ष्य भारत को टुकड़ों में विभाजित करना था। यह प्रस्ताव भारत की राष्ट्रीय एकता के सिद्धांत के विरुद्ध था। इस प्रस्ताव में भारत के दूसरे प्रांत भारतीय संघ से पृथक भी हो सकते थे। ये सभी प्रस्ताव अनुचित और अस्वीकार्य थे। ▪️इस मिशन में अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद सत्ता के त्वरित हस्तांतरण की योजना नहीं सम्मिलित थी. राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि आज़ाद भारत के प्रशासन की बागडोर भारतीयों के हाथ में हो, पर इसे स्पष्ट रूप से क्रिप्स मिशन में नहीं बताया गया था। इसलिए यह मिशन संदेहास्पद और अस्पष्ट था। ▪️इस मिशन में यह प्रस्ताव दिया गया था कि भारत के आज़ाद होने के बाद भी गवर्नर जनरल सर्वोच्च माना जाएगा। #मुस्लिम_लीग_ने_निम्न_आधार_पर_इसका #विरोध_किया : ▪️मुस्लिम लीग ने “एकल भारतीय संघ” की व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया। ▪️मुस्लिम लीग ने पृथक पाकिस्तान की मांग को स्वीकार नहीं किया। ▪️3स्वतंत्र भारत के दिए जिस संविधान निर्मात्री परिषद के गठन की बात की गई थी उसे भी मुस्लिम लीग ने स्वीकार नहीं किया। ▪️मुस्लिम लीग राज्यों के पृथक संविधान बनाने के पक्ष में भी नहीं था। #अन्य_दलों_ने_निम्न_आधार_पर_इसका_बहिष्कार #किया : ▪️भारत के अन्य दल चाहते थे कि एकल भारतीय संघ की स्थापना हो। भारत के दूसरे प्रांतों को संघ से अलग होने का अधिकार ना दिया जाए। इसलिए उन्होंने क्रिप्स मिशन का बहिष्कार कर दिया। ▪️बहुत से लोगों का मानना था कि इस तरह धीरे-धीरे भारत के तमाम प्रांत इस नियम का फायदा उठाकर अलग हो जाएंगे और देश कमजोर हो जाएगा। ▪️हिंदू महासभा ने भी क्रिप्स मिशन का बहिष्कार इसी आधार पर किया था। ▪️क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव पर दलित लोग सोच रहे थे कि एकल भारतीय संघ स्थापित होने के बाद बहुसंख्यक हिंदू उन पर हावी हो सकते हैं और दलितों को हिंदुओं (विशेष रूप से उच्च जातियों) की कृपा पर जीवन जीना होगा। ▪️सिख समुदाय ने क्रिप्स मिशन का बहिष्कार किया क्योंकि उन्हें लगता था कि पंजाब राज्य उनसे छिन जाएगा। ▪️क्रिप्स मिशन को लेकर ब्रिटिश सरकार स्वयं ईमानदार नहीं दिखाई दे रही थी। पहले क्रिप्स मिशन द्वारा कहा गया कि स्वतंत्र भारत घोषित होने पर “मंत्रिमंडल का गठन” और “राष्ट्रीय सरकार” की स्थापना की जाएगी। पर बाद में ब्रिटिश सरकार अपने ही कथन से मुकर गई और कहने लगी कि उसका आशय केवल कार्यकारिणी परिषद का विस्तार करना था। ▪️क्रिप्स मिशन में भारत के दूसरे प्रांतों को विलय या पृथक होने का विकल्प दिया गया था। पर इस प्रस्ताव को विधान मंडल में पारित होने के लिए 60% सदस्यों के मत चाहिए थे। #ब्रिटिश_सरकार_की_वास्तविक_मंशा : ब्रिटिश सरकार स्वयं चाहती थी कि क्रिप्स मिशन सफल ना हो। वह भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण नहीं करना चाहती थी। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, विदेश मंत्री एमरी, वायसराय लिनलिथगो, और कमांडर इन चीफ वेवेल स्वयं चाहते थे कि क्रिप्स मिशन असफल हो जाए। वायसराय के वीटो के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं और स्टैफोर्ड क्रिप्स के बीच बातचीत टूट गई और क्रिप्स मिशन असफल हो गया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #भारत_छोड़ो_आंदोलन क्रिप्स मिशन के भारत आगमन से भारतीयों को काफी उम्मीदें थीं, किन्तु जब क्रिप्स मिशन खाली हाथ गया तो भारतीयों को अत्यन्त निराशा हुई। अत: 5 जुलाई, 1942 को ‘हरिजन’ नामक पत्रिका में गाँधीजी ने उद्घोष किया कि- ‘‘अंग्रेजो भारत छोड़ो। भारत को जापान के लिए मत छोड़ों, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ा जाय। महात्मा गांधीजी का यह अन्तिम आन्दोलन था जो सन् 1942 में चलाया गया था। #भारत_छोड़ो_आंदोलन_के_कारण : ▪️क्रिप्स मिशन से निराशा- भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई थी कि क्रिप्स मिशन अंग्रेजों की एक चाल थी जो भारतीयों को धोखे में रखने के लिए चली गई थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण उसे वापस बुला लिया गया था। ▪️बर्मा में भारतीयों पर अत्याचार- बर्मा में भारतीयों के साथ किये गए दुव्र्यवहार से भारतीयों के मन में आन्दोलन प्रारम्भ करने की तीव्र भावना जागृत हुई। ▪️द्वितीय विश्व युद्ध के लक्ष्य के घोषणा- ब्रिटिश सरकार भारतीयों को भी द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाई में सम्मिलित कर चुकी थी, परन्तु अपना स्पष्ट लक्ष्य घोषित नहीं कर रही थी। ▪️आर्थिक दुर्दशा- अंग्रेजी सरकार की नीतियों से भारत की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब हो गई थी और दिनों-दिन स्थिति बदतर होती जा रही थी। ▪️जापानी आक्रमण का भय- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना रंगून तक पहुंच चुकी थी, लगता था कि वे भारत पर भी आक्रमण करेंगी। #भारत_छोडो_आंदोलन_का_निर्णय : 14 जुलाई, 1942 मे बर्मा में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में ‘भारत छोड़़ो प्रस्ताव’ पारित किया गया। 6 और 7 अगस्त, 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक हुई। गाँधीजी ने देश में ‘भारत छोड़़ो आन्दोलन’ चलाने की आवश्यकता पर बल दिया। गाँधीजी ने नारा दिया- ‘‘इस क्षण तुम में से हर एक को अपने को स्वतन्त्र पुरुष अथवा स्त्री समझना चाहिए और ऐसे आचरण करना चाहिए मानों स्वतन्त्र हो। मैं पूर्ण स्वतन्त्रता से कम किसी चीज से सन्तुष्ट नहीं हो सकता। हम करेंगे अथवा मरेंगे। या तो हम भारत को स्वतंत्र करके रहेंगे या उसके पय्रत्न में प्राण दे देगें।’’, ‘‘करो या मरो।’’ #भारत_छोड़ो_आंदोलन_का_आरम्भ_और_प्रगति : 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त की रात को गांधीजी सहित कांग्रेस के समस्त बड़े नेता बन्दी बना लिए गये। गाँधीजी के गिरफ्तार होने के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने एकसूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया और जनता को ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में सम्मिलित होने के लिए आव्हान किया। जनता के लिए निम्न कार्यक्रय तय किए गये- ▪️आन्दोलन में किसी प्रकार की हिंसात्मक कार्यवाही न की जाए। ▪️नमक कानून को भंग किया जाए तथा सरकार को किसी भी प्रकार का कर न दिया जाए। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के प्रति दुव्र्यवहार का विरोध। ▪️सरकार विरोधी हड़तालें, प्रदर्शन तथा सार्वजनिक सभाएं करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया जाए। ▪️मूल्यों में असाधारण वृद्धि, आवश्यक वस्तु उपलब्ध न होने के विरोध में। ▪️पूर्वी बंगाल में आतंक शासन के खिलाफ। #भारत_छोड़ो_आंदोलन_की_विफलता_के_मुख्य #कारण : ▪️आन्दोलन की न तो सुनियोजित तैयारी की गई थी और न ही उसकी रूपरेखा स्पष्ट थी, न ही उसका स्वरूप.जनसाधारण को यह ज्ञात नहीं था कि आखिर उन्हें करना क्या है? ▪️सरकार का दमन-चक्र बहुत कठोर था और क्रान्ति को दबाने के लिए पुलिस राज्य की स्थापना कर दी गयी थी, फिर गांधीजी के विचार स्पष्ट नहीं थे। ▪️भारत में कई वर्गो ने आन्दोलन का विरोध किया। ▪️कांग्रेस के नेता भी मानसिक रूप से व्यापक आन्दोलन चलाने की स्थिति में नहीं थे । ▪️आन्दोलन अब अहिंसक नहीं रह गया था। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरूद्ध सशक्त अभियान था । #भारत_छोडो_आंदोलन_के_महत्व_तथा_परिणाम : ▪️ब्रिटिश सरकार ने हजारों भारतीय आन्दोलनकारियों को बन्दी बना लिया तथा बहुतों को दमन का शिकार होकर मृत्यु का वरण करना पड़ा। ▪️अंतर्राष्ट्रीय जनमत को इंग्लैण्ड के विरूद्ध जागृत किया। चीन और अमेरिका चाहते थे कि अंग्रेज भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र कर दें। ▪️इस आंदोलन ने जनता में अंग्रेजों के विरूद्ध अपार उत्साह तथा जागृति उत्पन्न की। ▪️इस आन्दोलन में जमींदार, युवा, मजदूर, किसान और महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। यहां तक कि पुलिस व प्रशासन के निचले वर्ग के कर्मचारियों ने आंदोलनकारियों को अप्रत्यक्ष सहायता दी एवं आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति दिखाई। ▪️भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति मुस्लिम लीग ने उपेक्षा बरती, इस आंदोलन के प्रति लीग में कोर्इ उत्साह नहीं था। कांग्रेस विरोधी होने के कारण लीग का महत्व अंग्रेजों की दृष्टि में बढ़ गया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संघ_लोक_सेवा_आयोग भारतीय संविधान का अनुच्छेद 315 संघों व राज्यों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर लोक सेवकों की नियुक्ति करता है। संघ लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक निकाय है। संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य सदस्य शामिल होते हैं। आयोग का अध्यक्ष व सदस्य छह साल की अवधि के लिए (राष्ट्रपति द्वारा चयनित) या 65 वर्ष की आयु पाने तक, जो भी पहले हो, कार्यरत रहते हैं। #संघ_लोक_सेवा_आयोग_की_संरचना : अनुच्छेद 316 सदस्यों के पद की नियुक्ति और कार्यकाल से संबंध रखता है संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य सदस्य शामिल होते हैं। आयोग के नियुक्त सदस्यों में से आधे सदस्यों को भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के तहत कार्यालय में कम से कम दस साल के लिए कार्यरत होना चाहिए। राष्ट्रपति आयोग के सदस्यों में से एक सदस्य को एक कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकता है यदि : ▪️आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाये। ▪️आयोग का अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण या किसी अन्य कारण से अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो। इस तरह का सदस्य एक कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जब तक किसी व्यक्ति को कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने के लिए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाये या जब तक अध्यक्ष पुनः अपना कार्य आरंभ ना कर दे, जैस भी मामला हो। #कार्यकाल : आयोग का अध्यक्ष व सदस्य छह साल की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु पाने तक, जो भी पहले हो, कार्यरत रहते हैं| सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए अवधि के बीच में इस्तीफा दे सकते हैं| उन्हें संविधान में दी गई प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा भी हटाया जा सकता है। #कर्तव्य_और_कार्य : संघ लोक सेवा आयोग के कर्तव्य और कार्य निम्नलिखित वर्णित हैं: 1. यह संघ की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है, जिसमें केंद्र शासित प्रदेशों की अखिल भारतीय सेवाएँ, केंद्रीय सेवाएँ, और सार्वजनिक सेवाएँ शामिल हैं। 2. यह किसी भी सेवा के लिए संयुक्त भर्ती तैयार करने और परिचालन योजनाओं में राज्यों को सहायता करता है जिसके लिए विशेष योग्यता रखने वाले उम्मीदवारों की आवश्यकता होती है, जिसके लिए दो या उससे अधिक राज्यों द्वारा अनुरोध किया गया हो। 3. निम्नलिखित मामलों पर इनसे विचार-विमर्श किया जाता है: ▪️सभी मामले सिविल सेवाओं तथा सिविल पदों की नियुक्ति के तरीके से संबन्धित। ▪️सिविल सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियों करने में और एक सेवा से दूसरे में स्थानांतरण तथा पदोन्नति और इस तरह की नियुक्तियों, स्थानान्तरण और पदोन्नति के लिए उम्मीदवारों की उपयुक्तता पर सिद्धांतों का अनुसरण करना। ▪️एक नागरिक की हैसियत से भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनात्मक मामले जिसमें इन मामलों से संबन्धित स्मारक या याचिकाएं शामिल हों। ▪️अपने आधिकारिक कर्तव्य के निष्पादन में या किए गए कृत्यों का उसके खिलाफ स्थापित कानूनी कार्यवाही की रक्षा करने में एक सिविल सेवक द्वारा उठाए गए खर्च का किसी भी प्रकार का दावा करना। ▪️भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति घायल होने पर पेंशन के हक़ के लिए दावा कर सकता है और किसी भी हक़ के लिए राशि से संबन्धित कोई भी प्रश्न कर सकता है। ▪️कार्मिक प्रबंधन से संबंधित कोई भी मामला राष्ट्रपति द्वारा संदर्भित। ▪️कमीशन राष्ट्रपति के समक्ष आयोग द्वारा किए गए कार्य की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। हालांकि, संसद संघ की सेवाओं से संबंधित अतिरिक्त कार्य यूपीएससी को प्रदान कर सकती है। यूपीएससी के कार्य का विस्तार निगमित निकाय की कार्मिक प्रणाली के द्वारा या कानून द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या इसके तहत कोई भी सार्वजनिक संस्था द्वारा किया जा सकता है। संघ लोक सेवा आयोग के प्रदर्शन से संबन्धित वार्षिक रिपोर्ट को राष्ट्रपति के समक्ष पेश किया जाता है| इसके बाद राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में ज्ञापन के साथ प्रस्तुत करता है जिसमें यह बताया गया होता है कि कहाँ पर आयोग की सलाह को नहीं स्वीकार किया गया और इस गैर स्वीकृति के पीछे का कारण क्या है। #संघ_लोक_सेवा_आयोग_की_भूमिका_विश्लेषण : संघ लोक सेवा आयोग केंद्रीय भर्ती एजेंसी है। यह प्रतिभा प्रणाली को बनाए रखने और पदों के लिए सबसे उपयुक्त लोगों को आगे लाने के लिए उत्तरदायी है। यह परीक्षा आयोजित करता है और ग्रुप ए एव ग्रुप बी में अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं में कर्मियों की नियुक्ति के लिए सरकार को अपनी सिफ़ारिश भेजता है| यूपीएससी की भूमिका स्वभाव से सलाहकार की होती है और सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होती है| हालांकि, सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है, यदि, वह आयोग की सलाह को खारिज कर दे। इसके अलावा, यूपीएससी का संबंध परीक्षा प्रक्रिया से है और ना की सेवाओं के वर्गीकरण, कैडर प्रबंधन, प्रशिक्षण, सेवा शर्तों आदि के साथ संबंध रखता है| इन मामलों को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा नियंत्रित किया जाता है| सरकार पदोन्नति और अनुशासनात्मक मामलों पर संघ लोक सेवा आयोग से सलाह लेती है। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #केंद्रीय_प्रशासनिक_अधिकरण [ कैट ] संविधान का भाग XIV-क अधिकरण प्रदान करता है। प्रावधान को 1976 के 42 वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से जोड़ा गया। अनुच्छेद 323 क और 323 ख क्रमश: अन्य मामलों से संबंधित प्रशासनिक न्यायाधिकरण अथवा अधिकरण प्रदान करता हैं। अनुच्छेद 323-क के तहत, नियुक्ति और संघ के या किसी राज्य अथवा स्थानीय मामलों या फिर भारत सरकार के स्वामित्व या सरकार द्वारा नियंत्रित किसी भी निगम और सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थाओं के संबंध में सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की सेवा शर्तों से संबंधित विवादों और शिकायतों पर अधिनिर्णय करने के लिए संसद के पास प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना करने का अधिकार है। संसद द्वारा 1985 में पारित प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना के लिए केंद्र सरकार को अधिकृत करता है। #केंद्रीय_प्रशासनिक_न्यायाधिकरण (कैट) : केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की प्रमुख पीठ (प्रिंसिपल बेंच) दिल्ली में स्थित है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्यों में अतिरिक्त पीठें भी हैं। वर्तमान में 17 नियमित पीठ (बैंचे) और 4 सर्किट बेंच हैं। कैट के पास निम्नलिखित सेवा क्षेत्र के मामलों में अधिकार है: ▪️अखिल भारतीय सेवा का कोई भी एक सदस्य संघ के किसी भी सिविल सेवा या संघ के तहत किसी भी सिविल पद पर नियुक्त एक व्यक्ति। ▪️रक्षा सेवाओं में नियुक्त कोई भी नागरिक या रक्षा से जुड़ा कोई भी एक पद। ▪️हालांकि, रक्षा बलों के सदस्य, अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट और संसद के सचिवालय के स्टाफ कर्मचारी कैट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं। ▪️कैट में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। न्यायिक और प्रशासनिक क्षेत्रों से कैट के सदस्यों की नियुक्ति होती है। सेवा की अवधि 5 साल या अध्यक्ष और उपाध्यक्ष अध्यक्ष के लिए 65 वर्ष और सदस्यों के लिए 62 वर्ष जो भी पहले हो, तक होती है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कैट का कोई भी अन्य सदस्य अपने कार्यकाल के बीच में ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है। #कैट_की_कार्यप्रणाली : सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की संहिता में निर्धारित प्रक्रिया के लिए कैट बाध्य नहीं है, लेकिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। एक अधिकरण के पास उसी प्रकार की शक्तियां होती हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की संहिता के तहत एक सिविल कोर्ट के पास होती हैं। एक व्यक्ति अधिकरण में आवेदन कानूनी सहायता के माध्यम से या फिर स्वंय हाजिर होकर कर सकता है। एक न्यायाधिकरण अथवा अधिकरण के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में तो अपील की जा सकती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में नहीं। चंद्र कुमार मामले (1997) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अधिकरण के आदेश के खिलाफ सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की जा सकती है और इसके लिए पीड़ित व्यक्ति को पहले संबंधित उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) से संपर्क करना चाहिए। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #अगस्त_प्रस्ताव भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने 8 अगस्त 1940 को शिमला से एक वक्तव्य जारी किया, जिसे अगस्त प्रस्ताव कहा गया|यह प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा ब्रिटेन से भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को लेकर पूछे गए सवाल के जबाव में लाया गया था| #अगस्त_प्रस्ताव_के_प्रावधान ▪️सलाहकारी युद्ध परिषद् की स्थापना ▪️युद्ध के पश्चात भारत के संविधान निर्माण के लिए प्रतिनिधिक भारतीय निकाय की स्थापना करना ▪️वायसराय की कार्यकारी परिषद् का तत्काल विस्तार ▪️अल्पसंख्यकों को यह आश्वासन दिया गया कि ब्रिटिश सरकार,शासन के किसी ऐसे तंत्र को सत्ता नहीं सौंपेगी जिसके प्राधिकार को भारतीय राष्ट्रीय जीवन के किसी बड़े और शक्तिशाली तबके द्वारा स्वीकार न किया गया हो यह प्रथम अवसर था जब भारतीयों के संविधान निर्माण के अधिकार को स्वीकार किया गया और कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन को सहमति प्रदान की| कांग्रेस ने अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया| जवाहर लाल नेहरु ने कहा कि डोमिनियन दर्जे का सिद्धांत अब मृतप्राय हो चुका है| गाँधी ने कहा कि इस घोषणा नेराष्ट्रवादियों और ब्रिटिश शासकों के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है| मुस्लिम लीग इसमें दिए गए वीटो अधिकार के चलते खुश थी और उसने कहा कि राजनीतिक गतिरोध को दूर करने का एकमात्र उपाय विभाजन है| कांग्रेस द्वारा प्रस्तुत की गयी मांगों को स्वीकार न करने से व्याप्त व्यापक असंतोष के सन्दर्भ में गाँधी ने वर्धा में हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में अपनी व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा को शुरू करने की योजना को प्रस्तुत किया| #निष्कर्ष यह भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो के द्वारा जारी किया गया औपचारिक वक्तव्य था,जिसने संविधान निर्माण प्रक्रिया की नींव रखी और कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन को सहमति प्रदान की| [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #राष्ट्रीय_भारत_परिवर्तन_संस्था [ नीति आयोग ] 1 जनवरी 2015 को योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग का गठन किया गया था। यह भारत सरकार को सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों पर परामर्श निकाय या एक "थिंक टैंक" के तौर पर अपनी सेवाएं देगा। #नीति_आयोग_की_संरचना : नीति आयोग में निम्नलिखित शामिल हैं– 1. भारत का प्रधानमंत्री, पदेन अध्यक्ष। 2. शासी परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नर शामिल हैं। 3. क्षेत्रीय परिषद का संचालन विशेष मुद्दों के समाधान के लिए किया जाएगा और एक से अधिक राज्य या क्षेत्र को प्रभावित करने वाली आकस्मिकताओं पर प्रधानमंत्री गौर करेंगे। इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नर शामिल होंगे। 4. प्रासंगिक विषयों में ज्ञान रखने वाले विद्वानों, विशेषज्ञों और काम करने वाले लोगों को प्रधानमंत्री विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर नामित करेंगे। 5. अध्यक्ष के तौर पर प्रधानमंत्री के अलावा पूर्ण– कालिक संगठनात्मक ढांचे में शामिल होगें– ▪️प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त उपाध्यक्ष। ▪️पूर्णकालिक सदस्य। ▪️पदेन क्षमता में अग्रणी विश्वविद्यालयों अनुसंधान संगठनों और अन्य प्रासंगिक संस्थानों से अधिकतम दो अंश–कालिक (पार्ट–टाइम) सदस्य। ▪️पदेन सदस्यों के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा केंद्रीय मंत्रीपरिषद से अधिकतम 4 सदस्यों को नामित किया जाना है। ▪️निश्चित अवधि के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा की जाएगी। यह अधिकारी भारत सरकार में सचिव रैंक के अधिकारी में से होंगे। ▪️सचिवालय (आवश्यक मानकर)। #नीति_आयोग_के_उद्देश्य : नीति आयोग के मुख्य उद्देश्यों का नीचे वर्णन किया जा रहा है– ▪️राष्ट्रीय उद्देश्यों के आलोक में राज्यों की सक्रिए भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों का साझा दृष्टिकोण विकसित करना। ▪️सतत आधार पर राज्यों के साथ संरचित समर्थन पहलों और प्रणालियों के माध्यम से सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना, मजबूत राज्य ही मजबूत देश का निर्माण कर सकता है, इसे मान्यता प्रदान करना। ▪️ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए प्रणाली विकसित करना और सरकार के उच्च स्तर पर उत्तरोत्तर इसका पालन करना। ▪️यह सुनिश्चित करना की राष्ट्रीय सुरक्षा के हित आर्थिक रणनीति और नीति में निहित है। ▪️हमारे समाज के उन वर्गों पर विशेष ध्यान देना जिनको आर्थिक प्रगति से पर्याप्त लाभ नहीं हुआ है। ▪️रणनीतिक एवं दीर्ध कालिक नीति एवं कार्यक्रम और पहलों की रूपरेखाएं तैयार करना और उनकी प्रगति एवं प्रभावकारिता पर नजर रखना। ▪️सलाह देना और मुख्य हितधारकों एवं समान विचारधारा वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक के साथ– साथ शैक्षणिक एवं नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को बढ़ावा देना। ▪️कार्यक्रमों और पहलों के कार्यान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी के उन्नयन और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #भारतीय_निर्वाचन_आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में संसद, राज्य विधानमंडल के साथ साथ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों के अधीक्षण,निर्देशन और निर्वाचन नामावलियों की तैयारी पर नियंत्रण रखने के लिए निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है | अतः निर्वाचन आयोग केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर होने वाले चुनावों के लिए उत्तरदायी है. #चुनाव_आयोग_की_संरचना : वर्तमान में भारत के निर्वाचन आयोग में 3 आयुक्त काम कर रहे हैं जिनमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा हैं जबकि चुनाव आयुक्त के पद पर राजीव कुमार और सुशील चंद्रा हैं. संविधान में निर्वाचन आयोग की संरचना से सम्बंधित निम्न प्रावधान शामिल किया गये हैं- ▪️निर्वाचन आयोग एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उसके अन्य निर्वाचन आयुक्तों से,यदि कोई हों,जितने समय समय पर राष्ट्रपति नियत करे,मिलाकर बनता है| ▪️मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी | ▪️यदि एक से अधिक निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किये जाते है तो ऐसी स्थिति में मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप कार्य करेंगें | ▪️निर्वाचन आयोग से सलाह लेने के बाद राष्ट्रपति उतनी संख्या में प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति भी कर सकता है जितने की निर्वाचन आयोग को सहायता देने के लिए आवश्यक हों | ▪️निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्तों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होगीं जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा तय करे | हालाँकि,मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है लेकिन उसकी शक्तियां अन्य निर्वाचन आयुक्तों के समान ही होती हैं|आयोग द्वारा सभी मसलों पर बहुमत से निर्णय लिया जाते है| मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य दो निर्वाचन आयुक्त समान वेतन,भत्ते व अन्य सुविधाएँ प्राप्त करते हैं। #कार्यकाल : मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य निर्वाचन आयुक्त छह वर्ष या 65 साल की आयु,जो भी पहले हो,प्राप्त करने तक अपने पद बने रहते है| वे किसी भी समय राष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा अपना पद छोड़ सकते हैं| राष्ट्रपति किसी भी निर्वाचन आयुक्त को संविधान में वर्णित प्रक्रिया द्वारा ही उसके पद से हटा सकता है| #शक्तियां_एवं_कार्य : निर्वाचन आयोग की शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं- ▪️यह परिसीमन आयोग अधिनियम के अनुरूप निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करता है ▪️यह निर्वाचक नामावलियों को तैयार करता है और समय समय पर उनमें सुधार करता है|यह सभी योग्य मतदाताओं को पंजीकृत करता है| ▪️यह चुनावों कार्यक्रम निर्धारित करता है और उसे अधिसूचित करता है ▪️यह चुनाव हेतु प्रत्याशियों के नामांकन स्वीकार करता है उनकी जाँच करता है ▪️यह राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उन्हें चुनाव चिन्ह प्रदान करता है ▪️यह चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किये गए प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय दलों का दर्जा प्रदान करता है ▪️यह राजनीतिक दलों की पहचान और चुनाव चिन्ह से सम्बंधित विवादों में न्यायालय की भूमिका निभाता है ▪️यह निर्वाचन व्यवस्था से सम्बंधित विवादों की जाँच के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करता है| ▪️यह राजनीतिक दलों को दूरदर्शन व रेडियो पर अपनी नीतियों व कार्यक्रमों के प्रचार के लिए समय सीमा का निर्धारण करता है | ▪️यह सुनिश्चित करता है कि आदर्श आचार संहिता का सभी दलों व प्रत्याशियों द्वारा पालन किया जाये | ▪️यह संसद सदस्यों की अयोग्यता से सम्बंधित मामलों में राष्ट्रपति को सलाह प्रदान करता है | ▪️यह राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता से सम्बंधित मामलों में राज्य के राज्यपाल को सलाह प्रदान करता है | ▪️यह राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास चुनाव को सम्पन्न कराने के लिए जरुरी स्टाफ को उपलब्ध करने के लिए निवेदन करता है | ▪️यह चुनाव कार्यप्रणाली का सर्वेक्षण करता है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को संपन्न कराना सुनिश्चित करता है | ▪️यह अनियमितता व दुरूपयोग के आधार पर किसी निर्वाचन क्षेत्र के मतदान को रद्द कर सकता है | ▪️यह राष्ट्रपति को इस सम्बन्ध में सलाह देता है कि किसी राज्य में चुनाव कराये जा सकते है या नहीं| तीन निर्वाचन आयुक्तों के अलावा निर्वाचक आयुक्तों को सहायता प्रदान करने के लिए उप-निर्वाचन आयुक्त भी होते है| इन अधिकारियों की नियुक्ति निर्वाचन आयोग द्वारा निश्चित कार्यकाल के साथ सिविल सेवकों में से की जाती है| इनकी सहायता आयोग के सचिवालय में सेवारत सचिव,संयुक्त सचिव,उप सचिव,अपर सचिव द्वारा की जाती है| मुख्य निर्वाचन आयुक्त, राज्य सरकार से सलाह करने के बाद, राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करता है| जिलाधिकारी जिला स्तर पर मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है| मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं और वही निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए अधिष्ठाता की नियुक्ति करता है| अतः निर्वाचन आयोग भारत की निर्वाचन प्रणाली की निगरानी करने वाली संस्था है| राजनीतिक दलों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने आयकर का भुगतान करें| यह कदम चुनावों में पैसे और ताकत के प्रयोग को कम करने के लिए उठाया गया था| अब यह जरुरी कर दिया गया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक शपथ पत्र जमा करना होगा जिसमे उसके खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों व संपत्ति से सम्बंधित जानकारी शामिल होगी| इस कदम का लाभ यह हुआ कि मतदाताओं को प्रत्याशियों से सम्बंधित जानकारी हासिल हो सकी है| #राजनीतिक_दलों_को_मान्यता_प्रदान_करना : यह राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उन्हें चुनाव चिन्ह प्रदान करता है|यह चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किये गए प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय दलों का दर्जा प्रदान करता है| निर्वाचन आयोग प्रत्येक राष्ट्रीय राजनीतिक दल को एक विशेष चिन्ह आवंटित करती है,जिसे वह राजनीतिक दल पूरे देश में प्रयोग कर सकता है| इसी तरह प्रत्येक राज्य स्तरीय दल को एक चिन्ह आवंटित किया जाता है,जिसे वह पूरे राज्य में प्रयोग कर सकता है| इन चिन्हों को आरक्षित चिन्ह कहा जाता है,जिन्हें कोई अन्य दल या प्रत्याशी प्रयोग नहीं कर सकता है. [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #व्यक्तिगत_सत्याग्रह [ 1940 ] व्यक्तिगत सत्याग्रह राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा सन 1940 में प्रारम्भ किया गया था। इस सत्याग्रह कि सबसे बड़ी बात यह थी कि इसमें महात्मा गाँधी द्वारा चुना हुआ सत्याग्रही पूर्व निर्धारित स्थान पर भाषण देकर अपनी गिरफ्तारी देता था। अपने भाषण से पूर्व सत्याग्रही अपने सत्याग्रह की सूचना ज़िला मजिस्ट्रेट को भी देता था। #शुरुआत 3 सितम्बर, सन 1939 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा की कि भारत भी द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित है। वायसराय ने इस घोषणा से पूर्व किसी भी राजनीतिक दल से परामर्श नहीं किया। इससे कांग्रेस असंतुष्ट हो गई। महात्मा गाँधी ने भी ब्रिटिश सरकार की युद्धनीति का विरोध करने के लिए सन 1940 में अहिंसात्मक 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' आरम्भ किया। #प्रथम_सत्याग्रही 11 अक्टूबर, 1940 को गाँधीजी द्वारा 'व्‍यक्तिगत सत्‍याग्रह' के प्रथम सत्‍याग्रही के तौर पर विनोबा भावे को चुना गया। प्रसिद्धि की चाहत से दूर विनोबा भावे इस सत्‍याग्रह के कारण बेहद मशहूर हो गए। उनको गाँव-गाँव में युद्ध विरोधी तक़रीरें करते हुए आगे बढते चले जाना था। ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को विनोबा को गिरफ्तार किया गया। #द्वितीय_सत्याग्रही 5 जनवरी 1941 को जवाहर लाल नेहरू ने पुनः यह सत्याग्रह प्रारंभ किया। व्यक्तिगत सत्याग्रह के दूसरे सत्याग्रही जवाहरलाल नेहरु थे। इस आंदोलन के दूसरे चरण में 20000 से अधिक सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी हुई इसमें राजगोपालाचारी, अरुणा आसफ अली ,सरोजिनी नायडू भी थे। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन को दिल्ली चलो आंदोलन भी कहा गया। #व्यक्तिगत_सत्याग्रह_के_उद्देश्य • यह प्रदर्शित करना की राष्ट्रवादियों का धैर्य उनकी कमजोरी के कारण नहीं है। • जन भावना को अभिव्यक्त करना अर्थात यह बताना कि जनता युद्ध में रूचि नहीं रखती है और वह नाजीबाद तथा दोहरी निरंकुशता, जिसके द्वारा भारत पर शासन किया जा रहा है, के बीच कोई भेद नहीं मानती है। • कांग्रेस की मांगों को शांतिपूर्ण ढ़ंग से मानने के लिए सरकार को एक और मौका प्रदान करना। इसमें सत्याग्रही की मांग युद्ध-विरोधी घोषणा के माध्यम से युद्ध का विरोध करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने की थी।यदि सत्याग्रही को सरकार द्वारा गिरफ्तार नहीं किया जाता है तो वह गांवों से होते हुए दिल्ली की ओर मार्च करेगा (“दिल्ली चलो आन्दोलन)। व्यक्तिगत सत्याग्रह का केंद्रबिंदु अहिंसा था जिसे सत्याग्रहियों के चयन द्वारा ही पाया जा सकता था।आचार्य विनोबा भावे, पंडित जवाहर लाल नेहरु और ब्रह्म दत्त क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय चयनित सत्याग्रही थे। #निष्कर्ष अतः स्वतंत्रता को समर्पित व्यक्तिगत सत्याग्रह अगस्त प्रस्ताव का परिणाम था और यह आन्दोलन केवल स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए ही नहीं था बल्कि इसमें अभिव्यक्ति के अधिकार को भी दृढ़तापूर्वक प्रस्तुत किया गया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #कांग्रेस_का_त्रिपुरी_संकट [ 1939 ] 3 सितंबर,1939 को द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी (हिटलर) द्वारा पौलैण्ड पर आक्रमण करने के बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन भारतीय वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने भारतीयों की अनुमति के बिना यह घोषणा कर दी कि भारत भी जर्मनी के विरुद्ध ब्रिटेन के साथ युद्ध में शामिल है। कांग्रेस कार्यसमिति ने सरकार से युद्ध के उद्देश्यों को स्पष्ट करने की मांग की, परंतु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वायसराय ने भारतीयों के सामने युद्ध के बाद औपनिवेशिक स्वराज का पुराना वायदा दुहराया। कांग्रेस शासित प्रदेशों के मंत्रियों ने कांग्रेस कार्य समिति की अनुमति के बाद 15 नवंबर,1939 को मंत्रिमंडलों से त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेसी मंत्रियों के त्यागपत्र के बाद मुस्लिम लीग ने दलित नेता भीमराव अंबेडकर के साथ 22 दिसंबर,1939 को मुक्ति दिवस मनाया। #त्रिपुरी_संकट : ▪️1938 में हरिपुरा अधिवेशन के वार्षिक अधिवेशन के लिए सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। ▪️हरिपुरा में कांग्रेस अधिवेशन के समय सुभाष बोस ने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय योजना समिति की स्थापना की जिसके सदस्यों में बिङला,लाला श्रीराम, विश्वरैया शामिल थे। ▪️1939 के त्रिपुरी कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस दूसरी बार अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बने।वे गांधी के पसंद के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या को परास्त कर दूसरी बार अध्यक्ष चुन लिये गये। ▪️गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को अपनी हार बताया। ▪️चुनाव के बाद अधिवेशन में पारित प्रस्ताव द्वारा अध्यक्ष को गांधी जी की इच्छानुसार कार्य समिति के सदस्य नियुक्त करने को कहा गया, लेकिन गांधी ने कोई भी नाम सुझाने से इंकार कर दिया। ▪️अन्ततः सुभाषचंद्र बोस ने अप्रैल,1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सुभाष चंद्र बोस की जगह नया कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। ▪️3 मई,1939 को सुभाष चंद्र बोस ने फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की। अगस्त 1939 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तथा बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से सुभाष को हटा दिया गया – साथ ही कांग्रेस के सभी पदों से उन्हें तीन वर्षों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।

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