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Wednesday, February 24, 2021
राज्य_सूचना_आयोग
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राज्य_सूचना_आयोग
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, राज्य स्तर पर राज्य सूचना आयोग के निर्माण की अनुमति प्रदान करता है।
#राज्य_सूचना_आयोग_की_संरचना :
राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और दस राज्य सूचना आयुक्तों होते हैं। जिनकी नियुक्ति एक समिति की सिफारिश के बाद राज्यपाल द्वारा की जाती है। इस समिति का अध्यक्ष, राज्य का मुख्यमंत्री होता है तथा इसमें राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री द्वारा नामित राज्य का एक कैबिनेट मंत्री शामिल होता है। इस पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठतम् व्यक्ति होना चाहिए और उसके पास लाभ का कोई अन्य पद नहीं होना चाहिए तथा वह किसी भी राजनीतिक दल के साथ या किसी भी व्यापार या किसी पेशे से नहीं जुड़ा हुआ होना चाहिए।
#कार्यकाल_और_सेवा :
राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के पास 5 साल की अवधि या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक अपने पद पर बने रह सकते हैं। वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।
#राज्य_सूचना_आयोग_की_शक्तियां_और_कार्य :
▪️आयोग इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्व्यन से संबंधित अपनी वार्षिक रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है। राज्य सरकार, राज्य विधानसभा के पटल पर इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करती है।
▪️यदि कोई उचित आधार मिलता है तो राज्य सूचना आयोग किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।
▪️आयोग के पास लोक प्राधिकरण द्वारा अपने निर्णय के अनुपालन को सुरक्षित करने का अधिकार है।
▪️यह आयोग का कर्तव्य है कि किसी भी व्यक्ति से प्राप्त एक शिकायत की पूछताछ करे।
▪️एक शिकायत की जांच के दौरान आयोग ऐसे किसी भी रिकार्ड की जांच कर सकता है जो लोक प्राधिकरण के नियंत्रण में है और इस तरह के रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर रोका नहीं जा सकता है।
जांच करते समय आयोग के पास निम्नलिखित मामलों के संबंध में सिविल न्यायालय की शक्ति है:
▪️दस्तावेजों की पड़ताल और निरीक्षण की आवश्यकता होती है।
▪️गवाहों, या द्स्तावेजों और अन्य किसी मामलों का, जिसका निर्धारण किया जा सकता है, की पूछताछ के लिए सम्मन जारी करना।
▪️लोगों को बुलाना और या उन्हें उपस्थिति होने के लिए कहना तथा उन्हें सही मौखिक या लिखित सबूतों का प्रपत्र देना व दस्तावेजों या चीजों को उनके सम्मुख प्रस्तुत करना।
▪️शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना।
▪️किसी भी अदालत या कार्यालय से कोई भी सार्वजनिक रिकार्ड प्राप्त करने के लिए प्रार्थन करना।
▪️जब एक लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं करता है तब आयोग इसके पालन को सुनिश्चत करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश कर सकता है।
#मूल्यांकन :
केंद्र की तरह, इन आयोगों के पास भी बकाया मामलों का बोझ बढता जा रहा है। कम स्टाफ और रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं होने के कारण बकाया मामलों में बढोत्तरी होते जा रही है। अक्टूबर 2014 में, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा अपीले और शिकायतें लंबित थी। लेकिन, इस तरह के उदाहरण भी हैं जहां कोई भी बकाया मामला नहीं है जैसे- मिजोरम, सिक्किम और त्रिपुरा के पास कोई भी मामला लंबित नहीं है। जानकारी देने के लिए आयोग के पास सीमित शक्तियां हैं और विसंगतियों को देखने के बावजूद भी वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है।
हालांकि, राज्य सूचना आयोग सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इस प्रकार ये भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, उत्पीड़न और अधिकार के दुरुपयोग से निपटने में मदद कर रहे हैं।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#कैबिनेट_मिशन_योजना [ 16 मई 1946 ]
द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गया था और इंगलैंड ने पहले आश्वासन दे रखा था कि युद्ध में विजयी होने के बाद वह भारत को स्वशासन का अधिकार दे देगा. इस युद्ध के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार की स्थिति स्वयं दयनीय हो गयी थी और अब भारतीय साम्राज्य पर नियंत्रण रखना सरल नहीं रह गया था. बार-बार पुलिस, सेना, कर्मचारी और श्रमिकों का विद्रोह हो रहा था. अधिक दिनों तक भारतीय साम्राज्य को सुरक्षित रख पाना इंगलैंड के लिए असंभव होता जा रहा था. भारत की राजनीति परिस्थिति का अध्ययन करने और समस्या का निदान खोजने के लिए ब्रिटिश संसद ने एक प्रतिनिधिमंडल मार्च, 1946 को भेजा. इस प्रतिनिधिमंडल ने लॉर्ड वेवेल तथा भारतीय नेताओं से मिलकर एक योजना तैयार की जिसे "कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य था भारत में पूर्ण स्वराज्य लाना. इसने भारत के लिए एक नया संविधान तथा एक अस्थाई सरकार की स्थापना का लक्ष्य रखा था.
महात्मा गाँधी के विचारानुसार "तत्कालीन परिस्थतियों में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत यह सर्वोत्तम प्रलेख था." लेकिन इस योजना का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसमें केंद्र सरकार को काफी दुर्बल रखा गया था और प्रांत को अपना निजी संविधान बनाने का अधिकार था. क्रिप्स मिशन की तरह ही कैबिनेट मिशन भी न तो पूरी तरह स्वीकृत की जा सकती थी और न ही अस्वीकृत.
#कैबिनेट_मिशन_योजना_की_मुख्य_बातें :
▪️ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों को मिलाकर एक भारतीय संघ का निर्माण किया जायेगा. भारतीय संघ के अधीन परराष्ट्र नीति, प्रतिरक्षा और संचार व्यवस्था रहेगी, जिसके लिए आवश्यक धन भी संघ को ही जुटाना होगा.
▪️संघ की एक कार्पालिका और विधानमंडल होगा जिसमें ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. अन्य सभी विषय सरकार के अधीन होंगे.
▪️प्रान्तों को यह अधिकार दिया गया कि वे अलग शासन सबंधी समूह बनाएँ. भारत के विभिन्न प्रान्तों को तीन समूहों में बाँटा गया –
• मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बिहार और उड़ीसा
• उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब और सिंध
• बंगाल और असम. प्रत्येक समूह को अधिकार दिया गया कि वह अपने विषय के सम्बन्ध में निर्णय लें और शेष विषय प्रांतीय मंत्रमंडल को सौंप दें.
▪️देशी राज्यों के द्वारा जो विषय संघ को नहीं सौंपे जायेंगे उन पर देशी राज्यों का ही अधिकार होगा.
▪️संविधान के निर्माण के बाद ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों को सार्वभौम संप्रभुता का अधिकार हस्तांतरित कर देगी. भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा उससे अलग रहने का निर्णय देशी राज्य स्वयं करेंगे.
▪️योजना के कार्यान्वित होने के दस वर्ष पश्चात् या प्रत्येक दस वर्ष पर प्रांतीय विधानमंडल बहुमत द्वारा संविधान की धाराओं पर पुनर्विचार कर सकता है.
#संविधान_के_निर्माण_से_सम्बंधित_निम्नलिखित
#बातें_कैबिनेट_मिशन_में_निहित_थीं :
▪️प्रति दस लाख की जनसँख्या पर एक सदस्य का निर्वाचन होगा.
▪️प्रान्तों के संविधानसभा में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर दिया जायेगा.
▪️अल्पसंख्यक वर्गों को आबादी से अधिक स्थान देने की प्रथा समाप्त हो जाएगी.
▪️रियासतों को भी जनसंख्या के आधार पर ही प्रतिनिधित्व दिया जायेगा.
▪️संविधानसभा की बैठक दिल्ली में होगी और प्रारम्भिक बैठक में अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों का चुनाव कर लिया जायेगा.
▪️प्रान्तों के लिए अलग संविधान की व्यवस्था भी योजना के अंतर्गत थी. प्रत्येक समूह अपने संविधान के सम्बन्ध में तथा संघ में रहने का निर्णय करेगा.
▪️केंद्र में एक अस्थायी सरकार की स्थापना होगी और उसमें भारत के सभी प्रमुख दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा. केन्द्रीय शासन के सभी विभाग इन प्रतिनिधियों के अधीन रहेंगे तथा वायसराय इनकी अध्यक्षता करेगा.
▪️इंगलैंड भारत को सत्ता सौंप देगा. इस सिलसिले में जो मामले उत्पन्न हों उन्हें तय करने के लिए भारत और इंगलैंड के बीच एक संधि होगी.
अंततः 14 जून, 1946 को कांग्रेस और मुस्लीम लीग दोनों ने इस योजना को स्वीकृत दे दी. हिन्दू महासभा तथा साम्यवादी दल ने इसकी कटु आलोचना की. अंतरिम सरकार की स्थापना के प्रश्न पर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में मतभेद हो गया. मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह कांग्रेस के बिना ही अंतरिम सरकार का निर्माण कर लेगी लेकिन वायसराय ने लीग के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
1946 के चुनाव में निर्वाचन के लिए निर्धारित कुल 102 स्थानों में कांग्रेस को 59 स्थान प्राप्त हुए थे और मुस्लिम लीग को मात्र 30 स्थान प्राप्त हुए. मुस्लिम लीग को इस चुनाव परिणाम से घोर निराशा हुई. 8 अगस्त, 1946 को कांग्रेस की कार्य समिति ने प्रस्ताव पारित कर अंतरिम सरकार बनाने की योजना स्वीकार कर ली. अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर, 1946 को अपना कार्यभार संभाल लिया और पंडित नेहरु इसके प्रधानमंत्री बने. आगे चलकर वायसराय की सलाह पर मुस्लिम लीग ने अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल होना स्वीकार कर लिया, लेकिन सरकार को सहयोग देने के बदले यह हमेशा उसके कार्य में अड़ंगा डालती रही. कैबिनेट मिशन ने भारत के विभाजन का मार्ग तैयार कर दिया था.
#निष्कर्ष :
कैबिनेट मिशन का प्रमुख उद्देश्य भारत में सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के तरीकों को खोजना ओर संविधान का निर्माण करने वाले तंत्र के बारे में सुझाव देना था। अंतरिम सरकार का गठन करना भी इसका एक प्रमुख उद्देश्य था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#केंद्रीय_सूचना_आयोग
सूचना के अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना 2005 में भारत सरकार द्वारा की गयी थी। केंद्रीय सूचना आयोग शासन की प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो लोकतंत्र के लिए जरूरी है। इस तरह की पारदर्शिता भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, उत्पीड़न और दुरुपयोग या अधिकार के दुरुपयोग की जांच करने के लिए आवश्यक है।
#केंद्रीय_सूचना_आयोग_की_संरचना :
केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त और दस से अधिक सूचना आयुक्त होते हैं। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति की सिफारिश के बाद की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री के अलावा, लोक सभा में नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री शामिल रहते हैं।
उक्त सदस्य एक ऐसा व्यक्ति होने चाहिए जिन्हें सार्वजनिक जीवन में ख्याति प्राप्त हो। इसके साथ-साथ उनके कानून की जानकारी, प्रबंधन, पत्रकारिता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, प्रशासन व शासन, मास मीडिया और सामाजिक सेवा का अनुभव होना चाहिए।
उक्त सदस्य किसी भी राज्य या संघ शासित प्रदेश की विधान सभा का सदस्य नहीं होने चाहिए। वह किसी भी राजनीतिक दल या किसी भी व्यवसाय के साथ जुड़ा नहीं होने चाहिए तथा उसके पास कोई लाभ का पद नहीं होना चाहिए या उनके पास कोई अन्य लाभ का पेशा नहीं होना चाहिए।
#केंद्रीय_सूचना_आयोग_के_कार्य_और_शक्तियां :
केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य और शक्तियां निम्नलिखित हैं-
▪️यदि किसी मामले में कोई उचित आधार होता है तो आयोग किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।
▪️आयोग के पास लोक प्राधिकरण द्वारा अपने फैसले के अनुपालन को सुरक्षित करने की शक्ति है।
▪️यदि लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है तो आयोग उन कदमों को उठाने की सिफारिश कर सकता है जो इस तरह के समानता को बढ़ावा देने के लिए लिये जाने चाहिए।
▪️यदि किसी भी व्यक्ति द्वारा शिकायत प्राप्त होती है यह आयोग का कर्तव्य है कि वह उस प्राप्त शिकायत की पूछताछ करे।
1. निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर कौन अपनी अनुरोधित जानकारी का जवाब प्राप्त नहीं कर सका है।
2. वह यह तय करता है कि दी गई जानकारी, अधूरी, भ्रामक या गलत है और प्राप्त जानकारी किसी अन्य मामले से संबंधित है।
3. एक जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति के अभाव में कौन व्यक्ति एक सूचना अनुरोध प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हो पाया है।
4. वह यह तय करता है कि शुल्क के रूप में ली जा रही फीस अनुचित है।
5. किसने उस जानकारी देने से मना कर दिया था जिसका अनुरोध किया गया था।
▪️एक शिकायत की जांच के दौरान आयोग उस किसी भी रिकार्ड की जांच कर सकता है जो किसी भी लोक प्राधिकरण के नियंत्रण में है और इस तरह के रिकॉर्ड पर किसी भी आधार पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। दूसरे शब्दों में जांच के दौरान सभी सार्वजनिक विवरणों को जांच के लिए आयोग के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।
▪️जांच होने के दौरान, आयोग के पास एक सामान्य अदालत की शक्तियां हैं।
▪️आयोग को इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के आधार पर केंद्र सरकार को एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है। केंद्र सरकार को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करना होता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) इसलिए पारित किया गया था ताकि मांगी जा रही जानकारी बहुत सरल, आसान, समयबद्ध और सुगम हो सके जो इस कानून को सफल शक्तिशाली और प्रभावी बनाता है। जानकारी देने के लिए आयोग के पास केवल सीमित शक्तियां हैं और यदि कोई विसंगतियां पायी भी जाती हैं आयोग के पास कार्रवाई करने तक का अधिकार नहीं है। आयोग के पास कम कर्मचारी हैं और इसके पास बहुत सारे मामलों का बोझ है। आयोग में समय पर रिक्त पदों नहीं भरे जा रहे हैं। इन कारणों की वजह से आयोग के पास विशाल मात्रा में पिछला कार्य बकाया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम केवल सरकारी संस्थानों पर लागू होता है और यह निजी उद्यमों पर लागू नहीं होता है। यहां तक कि कुछ सार्वजनिक संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं आना चाहती हैं। जैसे- भारतीय क्रिके़ट बोर्ड (बीसीसीआई)। यहां तक कि राजनीतिक दल अपने धन के बारे में जानकारी देने तथा अन्य गतिविधियों को जनता के साथ साझा करने की अनिच्छुक रही हैं।
#निष्कर्ष :
इसलिए, आयोग में रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाना चाहिए। आयोग को कुशलता से चलाने के लिए आयोग के पास जरूरी लोगों की संख्या हो, इसके लिए एक महत्वपूर्ण समीक्षा जरूर होनी चाहिए। सभी सार्वजनिक संस्थानों को आरटीआई अधिनियम के तहत जनता के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। लोगों को राजनैतिक दलों से जानकारी लेनी चाहिए ताकि वो और अधिक जिम्मेदार बन सके और उनके वित्त पोषण के स्रोत और अधिक पारदर्शी हो सके। इसे चुनावों में काले धन के उपयोग की भी जांच करनी चाहिए। इसके अलावा, उन निजी कंपनियों को भी इस अधिनियम के दायरे में आना चाहिए जो सार्वजनिक कार्यों में शामिल हैं।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#बेवेल_योजना_और_शिमला_समझौता
14 जून 1945 में लार्ड वेवेल द्वारा भारत की वैधानिक समस्या के समाधान के लिए शिमला सम्मेलन में जो योजना प्रस्तुत की गई उसे ही वेवेल योजना के नाम से जाना जाता है
▪️अक्टूबर 1943 में लार्ड लिनलिथगो के स्थान पर लार्ड बिस्काउंट वेवल पर वायसराय और गवर्नर जनरल नियुक्त किए गए।
▪️इस समय भारत की स्थिति तनावपूर्ण थी उन्होंने भारतीय संवैधानिक गतिरोध दूर करने की दिशा में प्रयास प्रारंभ किया।
▪️सर्वप्रथम भारत छोड़ो आंदोलन के समय गिरफ्तार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य को रिहा किया गया
मार्च 1945 में वायसराय इंग्लैंड गए और वहां ब्रिटिश सरकार से भारतीय मामलों पर चर्चा की।
▪️14 जून 1945 को उन्होंने अपने विचार विमर्श के परिणामों से जनता को एक रेडियो प्रसारण द्वारा अवगत करवाया।
▪️भारत राज्य सचिव लार्ड एमरी ने कॉमंस सभा में इसी प्रकार का वक्तव्य दिया और यह कहा कि मार्च 1942 का प्रस्ताव पूर्णरूपेण फिर भी उपस्थित था।
▪️वायसराय और भारत सचिव दोनों के विचार और मनोभाव. समान थे।
▪️भारत के विद्यमान राजनीतिक गतिरोध को दूर करना ,भारत को उसके पूर्ण स्वशासन के लक्ष्य को आगे बढ़ाना और संवैधानिक समझौता प्राप्त करना था।
वेवेल योजना के प्रमुख प्रावधान निम्न प्रकार थे
#वेवेल_योजना_के_मुख्य_बिंदु :
▪️वॉयस राय की कार्यकारिणी परिषद का पुर्नगठन किया जाएगा, परिषद में वायसराय और कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय होंगे।
▪️प्रतिरक्षा को छोड़कर समस्त भाग भारतीय को दिए जाएंगे।
▪️कार्यकारिणी में मुसलमान सदस्य की संख्या सवर्ण हिंदुओं के बराबर होगी।
▪️कार्यकारिणी परिषद एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगा,इसे देश का शासन तब तक चलाना है जब तक कि एक नए स्थाई सविधान पर आम सहमति नहीं बन जाती है, गवर्नर जनरल बिना कारण निशेषाधिकार का प्रयोग नहीं करेगा।
▪️कांग्रेस के नेता रिहा किए जाएंगे और शीघृ शिमला में एक सम्मेलन बुलाया जाएगा।
▪️युद्ध समाप्त होने के बाद भारतीय स्वयं ही अपना संविधान बनाएंगे।
▪️भारत में ग्रेट ब्रिटेन के वाणिज्य और अन्य हितों की देखभाल के लिए एक उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी।
▪️ब्रिटिश सरकार का अंतिम उद्देश्य भारत संघ का निर्माण करके भारत में स्वशासन की स्थापना करना है।
▪️हिंदू और मुसलमान समुदाय के अतिरिक्त भारत के अन्य समुदायों जेसे दलित सिक्ख पारसी आदि को भी उचित प्रतिनिधित्व जाएगा।
#शिमला_समझौता :
भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवेल द्वारा 25 जून 1945 में भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों का एक सम्मेलन शिमला में आयोजित किया गया था इस सम्मेलन को ही शिमला सम्मेलन के नाम से जाना जाता है
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारत की वैधानिक समस्या को सुलझाना था।
▪️शिमला सम्मेलन के आयोजन से जनता में ऊंची ऊंची आशाएं बंद गई।
▪️शिमला सम्मेलन 25 जून 1945 से प्रारंभ हुआ जिसे 3 दिन की बातचीत के पश्चात स्थगित कर दिया गया।
▪️यह सम्मेलन वायसराय लार्ड बिस्काउंट वेवेल ने बुलाया था जिसमें 21 नेताओं को आमंत्रित किया था
सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख नेता थे जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना ,अबुल कलाम आजाद ,सरदार वल्लभभाई पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खॉ तारा सिंह और इस्माइल खान थे।
▪️इस सम्मेलन में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अबुल कलाम आजाद ने किया था।
▪️गांधीजी ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया था यद्यपि वे शिमला में उपस्थित रहे।
▪️मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में मोहम्मद अली जिन्ना ने भाग लिया था।
▪️11 जुलाई को मोहम्मद अली जिन्ना वेवेल से मिले और इस बात पर बल दिया कि मुस्लिम लीग को ही समस्त मुसलमानों का प्रतिनिधित्व माना जाए और वॉइस राय की सूची में मुस्लिम लीग से बाहर का कोई मुसलमान नहीं होना चाहिए।
▪️अर्थात अर्थात मोहम्मद अली जिन्ना ने इस सम्मेलन में शर्त रखी कि वॉइस राय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्ति हेतु मुस्लिमों सदस्यों का चयन वह स्वयं करेगी।
#वेवेल_योजना_की_असफलता_के_कारण_व #प्रतिक्रिया :
▪️अबुल कलाम आज़ाद ने शिमला सम्मेलन की असफलता को भारत के राजनीतिक इतिहास में एक जल विभाजक की संज्ञा दी।
▪️वेवेल योजना का असफल होने का मुख्य कारण मुस्लिम लीग का अपनी शर्तों पर अडना और स्वयं वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य चुनाव करना।
▪️इस सफलता के लिए वेवेल और जिन्ना आंशिक रूप से उत्तरदायी थे।
▪️जैसा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने समाचार पत्र सम्मेलन में कहा “यह वैवेल योजना हमारे लिए एक फंदा था इससे हम लोग मारे जाते।
▪️प्रस्तावित कार्यकारिणी में हमारी संख्या 1/3 रह जाती क्योंकि अन्य अल्पसंख्यक वर्ग, अनुसूचित जातियां सिक्ख, ईसाइयों के प्रतिनिधि होने थे।
▪️सबसे महत्वपूर्ण यह बात थी की पंजाब से मलिक खिजर हयात खॉ जो संघर्ष दल के थे और मुस्लिम लीगी नहीं थे वेवेल उन्हें रखने पर हठ करते थे।
▪️कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद में इस गतिरोध का उत्तरदायित्व मोहम्मद अली जिन्ना को दिया।
▪️कुछ हग तक वेवेल योजना की असफलता का उत्तरदायित्व वेवेल पर भी था उन्हें भारतीय नेताओं से सलाह करके अपनी परिषद की रचना करनी चाहिए थी
▪️सम्भवत:कुछ परिवर्तनों के साथ कांग्रेसी नेता उस सूची को स्वीकार कर लेते हैं।
▪️दूसरे मुस्लिम लीग को इस योजना को कार्य करने की और उन्नति के मार्ग में रूकावट डालने की अनुमति नही देनी चाहिए।
▪️आरंभ में वेवल ने कांग्रेस अध्यक्ष को इस बात का विश्वास दिलाया गया की किसी भी दल को इस योजना में जानबूझकर बाधा डालने की अनुमति नहीं दी जाएगी लेकिन उस समय ऐसा कुछ नहीं हुआ।
▪️लेकिन शिमला सम्मेलन का एक परिणाम यह हुआ कि मोहम्मद अली जिन्ना की स्थिति और भी सुदृढ हो गई जिस का दृश्य 1945- 46 के चुनाव में स्पष्ट दिखाई देता है।
▪️कुछ आलोचकों का विचार है कि शिमला सम्मेलन चर्चिल की सरकार पर लेबर पार्टी की संभावित विजय अथवा रूस के दबाव के कारण हुआ है जैसा की क्रिप्स शिष्टमंडल अमेरिका के दबाव के कारण था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राज्य_मानवाधिकार_आयोग
मानव संरक्षण अधिकार अधिनियम (1993), के आधार पर राज्य स्तर पर राज्य मानवाधिकार आयोग बना है। एक राज्य मानवाधिकार आयोग भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची और समवर्ती सूची के अंतर्गत शामिल विषयों से संबंधित मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर सकता है।
#संरचना :
मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2006 में एक अध्यक्ष के साथ तीन सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष, उच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। इसके अन्य सदस्य होने चाहिए,
▪️जिला न्यायाधीश के रूप में कम से कम सात साल के अनुभव के साथ राज्य में उच्च न्यायालय का सेवारत या सेनानिवृत न्यायाधीश या जिला न्यायाधीश।
▪️एक व्यक्ति के पास मानव अधिकारों से संबंधित व्यावहारिक अनुभव या ज्ञान होना चाहिए।
राज्य का राज्यपाल समिति के सिफ़ारिश से जिसमें मुख्यमंत्री प्रमुख के रूप में, विधान सभा के स्पीकर, गृह राज्य मंत्री और विधान सभा में विपक्ष के नेता शामिल होते हैं अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। अध्यक्ष और विधान परिषद के विपक्ष के नेता भी समिति के सदस्य हो सकते हैं, यदि राज्य में विधान परिषद हो।
आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है या जब तक वे 70 वर्ष की आयु प्राप्त कर लें, जो भी पहले हो| उनके कार्यकाल के पूरा होने के बाद, वे राज्य सरकार या केंद्र सरकार के अधीन आगे रोजगार के पात्र नहीं होते हैं। हालांकि, अध्यक्ष या सदस्य एक और कार्यकाल के लिए योग्य होते हैं (यदि वे 70 वर्ष की तय आयु सीमा के भीतर हों)।
#आयोग_के_कार्य :
मानव अधिकार अधिनियम, 1993 के संरक्षण के अनुसार नीचे दिए गए राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य हैं :
▪️आयोग के समक्ष पीड़ित द्वारा स्वतः संज्ञान या याचिका पर पूछताछ करना या किसी भी व्यक्ति का मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत करना या एक लोक सेवक द्वारा इस तरह के उल्लंघन की रोकथाम में लापरवाही करना।
▪️इस तरह के कोर्ट के अनुमोदन के साथ एक न्यायालय के समक्ष मानव अधिकारों के उल्लंघन के किसी भी आरोप से जुड़े किसी भी कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
▪️राज्य सरकार के नियंत्रण में किसी भी जेल या अन्य संस्था का दौरा करना और कैदियों के रहने वाली जगह को रहने लायक बनाने के लिए सम्बंधित लोगों को निर्देश देना।
▪️तत्समय प्रभाव के लिए संविधान के तहत मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए दिये गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना तथा उसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफ़ारिश करना।
▪️मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान का जिम्मा लेना व उसे बढ़ावा देना।
▪️समाज के विभिन्न वर्गों के बीच में मानव अधिकारों की साक्षरता को फैलाना और इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना।
▪️मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों और संस्थाओं के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
▪️इस तरह के अन्य कार्य की ज़िम्मेदारी लेना करना जिससे मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए विचार किया जा सके।
#आयोग_के_अधिकार :
▪️आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने का अधिकार निहित है।
▪️आयोग के पास सिविल अदालत के सभी अधिकार होते हैं और इसकी कार्यवाही में एक न्यायिक प्रतिष्ठा होती है।
▪️यह राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के अधीनस्थ से जानकारी या रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कह सकता हैं।
आयोग के पास तत्समय प्रभाव के लिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी विशेषाधिकार के अधीन जो किसी भी कानून के तहत हो, पूछताछ करने का अधिकार है, सार्थक मसलों पर पूछताछ से संबन्धित मसलों पर जानकारी पेश करने का अधिकार है| इसके होने के एक वर्ष के भीतर आयोग इस मामले पर गौर कर सकता है।
#विवेचना :
राज्य मानवाधिकार आयोग के सीमित अधिकार होते हैं और इसकी कार्यप्रकृति केवल सलाहकार की है| आयोग के पास मानव अधिकारों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करने का अधिकार नहीं होता है| यहां तक की पीड़ित को आर्थिक राहत के साथ यह किसी भी प्रकार की राहत प्रदान नहीं कर सकता।
राज्य मानवाधिकार आयोग की सिफ़ारिशें राज्य सरकार या प्राधिकारी पर बाध्य नहीं हैं, लेकिन आयोग को एक महीने के भीतर उसकी सिफारिश पर की गई कार्रवाई के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
#निष्कर्ष :
राज्य मानवाधिकार आयोग को अपने अधिकार बढ़ाने की आवश्यकता है। इसे पीड़ितों को न्याय दिलवाने में विभिन्न तरीकों से बढ़ाया जा सकता है। आयोग के पास पीड़ित को आर्थिक राहत के साथ साथ अंतरिम और तत्काल राहत प्रदान करने का अधिकार होना चाहिए। आयोग के पास मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वालों को दंडित करने का अधिकार भी होना चाहिए, जो भविष्य में इस तरह के कार्यों को करने में निवारक के रूप में काम कर सकें| आयोग की कार्यप्रणाली में राज्य सरकार का हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए क्योंकि यह आयोग के कामकाज को प्रभावित कर सकता है|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#राजगोपालाचारी_फार्मूला [ 1944 ]
राजगोपालाचारी द्वारा कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए 10 जुलाई 1944 को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, जिसे राजगोपालाचारी फार्मूला के नाम से जाना जाता है । यह फार्मूला अप्रत्यक्ष रूप से पृथक पाकिस्तान की अवधारणा पर आधारित प्रस्ताव था।
#राजगोपालाचारी_फार्मूला_की_मुख्य_विशेषताएं :
इस प्रस्ताव की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार थीं-
▪️मुस्लिम लीग, भारतीय स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे।
▪️प्रांतो में अस्थायी सरकारों की स्थापना के कार्य में मुस्लिम लीग, कांग्रेस के साथ सहयोग करे।
▪️युद्ध की समाप्ति के उपरान्त एक कमीशन द्वारा उत्तर-पूर्वी तथा उत्तर पश्चिमी भारत में उन क्षेत्रों को निर्धारित किया जाय जिसमें मुसलमान स्पष्ट बहुमत में है. उन क्षेत्रों में जनमत सर्वैक्षण कराया जाय तथा उसके आधार पर यह निश्चित किया जाय कि वे भारत से पृथक होना चाहते है या नही ।
▪️देश की विभाजन की स्थिति में आवश्यक विषयों-प्रतिरक्षा, वाणिज्य, संचार तथा आवागमन इत्यादि के संबंध में दोनों राष्ट्रों के मध्य कोई संयुक्त समझौता किया जाये।
▪️यह बातें उसी स्थिति में स्वीकृति होंगी, जब ब्रिटेन भारत को पूरी तरह से स्वतंत्र घोषित कर देगा ।
▪️इस प्रस्ताव को भी मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया । हिन्दू नेताओं ने भी तीब्र आलोचना की।
#जिन्ना_द्वारा_राजगोपालाचारी_योजना_को
#अस्वीकार_करने_के_कारण-
▪️इस योजना में मुसलमानों को अपूर्ण, अंगहीन तथा दीमक लगा हुआ पाकिस्तान दिया गया, क्योंकि वह तो संपूर्ण बंगाल, असम, सिंध, पंजाब और उत्तरी-पश्चिमी प्रांत व बलूचिस्तान चाहता था।
▪️इसमें जनमत संग्रह में गैर मुसलमानों को भी भाग लेने की अनुमति दे दी गई थी, जबकि जिन्ना केवल मुसलमानों को मताधिकार देना चाहता था।
▪️इसमें प्रतिरक्षा, संचार और आवागमन के साधनों के संबंध में संयुक्त व्यवस्था का प्रस्ताव था, जिसे जिन्ना मानने को तैयार नहीं था।
अतः इन सभी बातों को लेकर सी.आर.फार्मूले के संबंध में वार्ता असफल रही।
#निष्कर्ष
राजगोपालाचारी फार्मूले की मूल संकल्पना द्विराष्ट्र सिद्धांत और ब्रिटिशों से भारत की स्वतंत्रता को लेकर मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलग अलग विचारों के कारण पैदा हुए मतभेदों को सुलझाने की थी।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राष्ट्रीय_अनुसूचित_जनजाति_आयोग
संविधान के अनुच्छेद 338A में यह उल्लेख किया गया है कि अनुसूचित जनजातियों के लिए एक आयोग होगा जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के नाम से जाना जाएगा। आयोग का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के तहत अनुसूचित जनजातियों को उपलब्ध कराए गये सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करे। हालांकि, आयोग के विभिन्न कार्य और शक्तियां हैं जिनका उल्लेख संविधान में किया गया है।
#राष्ट्रीय_अनुसूचित_जनजाति_आयोग :
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 366 (25) उन समुदायों को अनुसूचित जनजाति के लिए सदर्भित करता है जिनका निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार किया गया है। यह अनुच्छेद कहता है कि केवल वो समुदाय जिन्हें एक आरंभिक सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से या एक संसदीय संशोधन अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा घोषित किया गया है उन्हें ही अनुसूचित जनजाति माना जाएगा।
अनुच्छेद 338A में इस बात का उल्लेख है कि अनुसूचित जनजातियों के लिए लिए एक आयोग होगा जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के रूप में जाना जाएगा।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्यालय के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल कार्यालय में कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष का होता है। आयोग के अध्यक्ष को एक केंद्रीय मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है और उपाध्यक्ष को एक राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है। आयोग के अन्य सदस्यों को भारत सरकार के एक सचिव का रैंक प्राप्त होता है।
#संवैधानिक_प्रावधान :
#संविधान_के_अनुसार:
▪️अनुसूचित जनजातियों के लिए लिए एक आयोग होगा जिसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के रूप में जाना जाएगा।
▪️आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और मुहर सहित एक अधिपत्र के माध्यम से की जाएगी।
▪️आयोग के पास अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति रहेगी।
हालांकि, केंद्र और प्रत्येक राज्य सरकारें उन प्रमुख सभी नीतिगत मामलों पर आयोग से परामर्श करेंगे जो अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करते हैं।
उदाहरण के लिए, भारत की अनुसूचित जनजातियां गोंड, आंध्र प्रदेश में भील, अरुणाचल प्रदेश में अपातनी व अदि जैसी जनजातियां हैं।
आयोग की शक्तियों और कार्यों का उल्लेख निम्नवत किया जा रहा है:
#शक्तियां :
▪️किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी करना और उपस्थित होने के लिए बुलाना तथा पूछताछ करना;
▪️किसी भी दस्तावेजों की खोज करना और प्रस्तुत करना;
▪️हलफनामों पर सबूत प्राप्त करना
▪️किसी भी न्यायालय अथवा कार्यालय से कोई भी सार्वजनिक रिकॉर्ड या उसकी प्रति की मांग करना;
▪️गवाहों और दस्तावेजों की जांच के लिए मुद्दे को आयोग के पास भेजना; और
▪️राष्ट्रपति शासन द्वारा, निर्धारित किसी भी मामले का निर्धारण करना।
#आयोग_के_कार्य :
▪️संविधान के तहत अनुसूचित जनजातियों को उपलब्ध कराए गये सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच करना और उन पर नजर रखना या अन्य किसी कानून के तहत कुछ समय के लिए लागू करना या भारत सरकार के किसी भी आदेश और सुरक्षा उपायों की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करना;
▪️अनुसूचित जनजातियों के लिए बनायी जाने वाली सामाजिक आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में हिस्सा लेना और सलाह देना तथा केंद्र तथा किसी भी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना;
▪️केंद्र या किसी राज्य द्वारा बनाये गये सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन और अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के अन्य उपायों की रिपोर्ट तैयार करना जिसके लिए इन्हें प्रभावी बनाने की सिफारिश की गयी है;
▪️राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट, और संसद द्वारा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास और उन्नति से संबंधित अन्य कार्यों के लिए बनाये गये कानूनों को लागू कर इनका निर्वहन करना
▪️उन उपायों का निर्माण करना जिससे वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों को लघु वन उपज से संबंधित स्वामित्व अधिकार देने की जरूरत हेतु कदम उठाना।
▪️खनिज संसाधन, जल संसाधनों आदि पर कानून के अनुसार आदिवासी समुदायों के अधिकारों से संबंधित नियम तय करने के लिए और अधिक कदम उठाना।
▪️जनजातियों के विकास तथा व्यावहारिक आजीविका की रणनीतियां बनाने के लिए और अधिक कदम उठाना।
▪️विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित आदिवासी समूहों के लिए राहत और पुनर्वास उपायों की क्षमता में सुधार करने के लिए कदम उठाना।
▪️अपनी भूमि या जगह से जनजातीय लोगों के अलगाव को रोकने और प्रभावी ढंग से उन लोगों का पुर्नवासन करना और उनमें पहले से ही निहित अलगाव की भावना को दूर करने के लिए कदम उठाना।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#देसाई_लियाकत_प्रस्ताव [ 1945 ]
महात्मा गाँधी ये मान चुके थे कि जब तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग देश के भविष्य या अंतरिम सरकार के गठन को लेकर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँच जाती तब तक ब्रिटिश शासक देश को स्वतंत्रता प्रदान नहीं करेंगे। इसीलिए महात्मा गांधी ने भूलाभाई जीवनजी देसाई को मुस्लिम लीग के नेताओं को संतुष्ट करने और 1942-1945 के राजनीतिक गतिरोध को दूर करने का एक और प्रयास करने का निर्देश किया।
देसाई, केंद्रीय सभा में कांग्रेस के नेता और लियाकत अली (मुस्लिम लीग के नेता) के मित्र होने के नाते,ने लियाकत अली से मुलाकात कर जनवरी 1945 में केंद्र में अंतरिम सरकार के गठन से सम्बंधित एक प्रस्ताव सौंपा| देसाई की घोषणा के बाद, लियाकत अली ने समझौते को प्रकाशित किया,जिसके प्रमुख बिंदु निम्न थे-
▪️दोनों द्वारा केन्द्रीय कार्यपालिका में समान संख्या में लोगों को नामित करना।
▪️अल्पसंख्यकों, विशेषकर अनुसूचित जाति और सिखों, का प्रतिनिधितित्व।
▪️सरकार का गठन करना जोकि उस समय प्रचलित भारत शासन अधिनियम, 1935 के ढ़ांचे के अनुसार कार्य करती।
#निष्कर्ष
महात्मा गांधी ने भूलाभाई जीवनजी देसाई को मुस्लिम लीग के नेताओं को संतुष्ट करने और राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए एक प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया लेकिन इस प्रस्ताव को न तो कांग्रेस ने और न ही लीग ने औपचारिक रूप से अनुमोदित किया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#राष्ट्रीय_मानवाधिकार_आयोग
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत में मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार सांविधिक निकाय है। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कहता है कि आयोग " संविधान या अंतरराष्ट्रीय संविदा द्वारा व्यक्ति को दिए गए जीवन, आजादी, समानता और मर्यादा से संबंधित अधिकारों" का रक्षक है।
#एनएचआरसी_की_संरचना :
एनएचआरसी में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं। अध्यक्ष को भारत का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। अन्य सदस्य होने चाहिए–
▪️एक सदस्य, भारत के सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश या भूतपूर्व न्यायाधीश।
▪️एक सदस्य, उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या भूतपूर्व न्यायाधीश।
▪️दो ऐसे सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी जिन्हें मानवाधिकार संबंधित मामलों की जानकारी हो या वे इस क्षेत्र में व्यावहारिक अनुभव रखते हों।
इन सदस्यों के अलावा, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग पदेन सदस्य के तौर पर काम करते हैं।
राष्ट्रपति छह सदस्यी समिति की अनुशंसा के आधार पर एनएचआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करते हैं। छह सदस्यी समिति में निम्नलिखित लोग होते हैं–
▪️प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
▪️गृह मंत्री
▪️लोकसभा अध्यक्ष
▪️लोकसभा में विपक्ष के नेता
▪️राज्यसभा के उपाध्यक्ष
▪️राज्यसभा में विपक्ष के नेता
सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की नियुक्ति, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद ही की जा सकती है।
#एनएचआरसी_के_कार्य :
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अनुसार, एनएचआरसी के कार्य इस प्रकार है–
▪️मानवाधिकारों के उल्लंघन या किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे उल्लंघन की रोकथाम में लापरवाही के खिलाफ किसी पीड़ित या किसी व्यक्ति द्वारा दायर याचिका की या स्वप्रेरणा से पूछताछ करना।
▪️किसी न्यायालय के समक्ष न्यायालय की अनुमति के साथ मानवाधिकारों के उल्लंघन के किसी भी मामले की सुनवाई में हस्तक्षेप।
▪️कैदियों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए किसी भी जेल या नदरबंद स्थान की यात्रा करना और उस पर अनुशंसाएं देना।
▪️मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों या तत्कालीन प्रवृत्त किसी कानून के संविधान के तहत की समीक्षा करना और उसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।
▪️मानवाधिकारों के उपयोग को रोकने वाले आतंकवादी कृत्यों समेत कारकों की समीक्षा करना और उपयुक्त उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करना।
▪️मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे बढ़ावा देना।
▪️समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकार साक्षरता फैलाना और इन अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देना।
▪️मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले गैर– सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
▪️मानवाधिकारों के लिए अनिवार्य समझे जा सकने वाले अन्य कार्यों को करना।
#एनएचआरसी_की_कार्यप्रणाली :
▪️आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है।
▪️आयोग को अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति दी गई है।
▪️इसे नागरिक अदालत के सभी अधिकार प्राप्त हैं और इसकी कार्यवाही का चरित्र न्यायिक है।
▪️यह केंद्रीय या किसी भी राज्य सरकारी या किसी अन्य अधीनस्थ प्राधिकरण से सूचना की मांग या रिपोर्ट की मांग कर सकता है।
हालांकि, मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जांच के लिए आयोग के पास अपने खुद के कर्मचारी हैं। इसे अपने उद्देश्य के लिए किसी भी अधिकारीया केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार की जांच एजेंसी की सेवा लेने का अधिकार दिया गया है। आयोग मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सूचना के लिए विभिन्न एनजीओ के साथ सहयोग भी करता है।
आयोग घटना के एक वर्ष के भीतर उस पर गौर कर सकता है।
आयोग जांच के दौरान या उसके पूरा हो जाने के बाद निम्नलिखित में से कोई भी कदम उठा सकता हैः
▪️यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को मुआवजा या क्षतिपूर्ति देने की सिफारिश कर सकता है।
▪️यह अभियोजन पक्ष के लिए या दोषी लोक सेवक के खिलाफ कार्यवाही शुरु करने के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश भेज सकता है।
▪️यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को तत्काल अंतरिम राहत प्रदान करने की सिफारिश कर सकता है।
▪️यह अनिवार्य निर्देशों, आदेशों या रिट्स के लिए सुप्रीम कोर्ट या संबंधित उच्च न्यायालय में जा सकता है।
पीड़ितों को न्याय दिलाने हेतु एनएचआरसी को अधिक प्रभावी बनाने के लिए, इसकी प्रभावकारिता और दक्षता को बढ़ाने के लिए, इसे दी गई शक्तियों को बढ़ाया जा सकता है। आयोग को अंतरिम और तात्कालिक राहत जिसमें पीड़ित को मौद्रिक राहत दिया जाना भी शामिल है, की शक्ति प्रदान की जानी चाहिए। इसके अलावा, मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की शक्ति भी आयोग के पास होनी चाहिए, यह भविष्य में मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों के लिए निवारक के रूप में कार्य कर सकता है। आयोग के कार्य में सरकार और अन्य प्राधिकरणों का हस्तक्षेप न्यूनतम होना चाहिए, क्योंकि ऐसा होने से आयोग का काम प्रभावित हो सकता है। इसलिए, एनएचआरसी को सशस्त्र बलों के सदस्यों द्वारा मानवाधिकारों से संबंधित मामलों की जांच कराने की शक्ति दी जानी चाहिए।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#सुभाषचन्द्र_बोस_और_आजाद_हिन्द_फौज
गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुये भारत को आजाद कराने के लिये अनेक देशभक्तों ने अपने-अपने तरीकों से भारत को आजाद कराने की कोशिश की। किसी ने क्रान्ति के मार्ग को अपनाया तो किसी ने अहिंसा और शान्ति के मार्ग को, पर दोनों मार्गों के समर्थकों के संयुक्त प्रयासों से ही भारत की आजादी का मार्ग निर्धारित हुआ।
भारत की आजादी के लिये संघर्ष करते हुये अनेक क्रान्तिकारी भारतीय शहीद हुये। ऐसे ही महान क्रान्तिकारी, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे सुभाष चन्द्र बोस। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने कार्यों से अंग्रेजी सरकार के छक्के छुड़ा दिये। इन्होंने अपने देश को आजाद कराने के लिये की गयी क्रान्तिकारी गतिविधियों से ब्रिटिश भारत सरकार को इतना ज्यादा आंतकित कर दिया कि वो बस इन्हें भारत से दूर रखने के बहाने खोजती रहती, फिर भी इन्होंने देश की आजादी के लिये देश के बाहर से ही संघर्ष जारी रखा और वो भारतीय इतिहास में पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुये जिसने ब्रिटिश भारत सरकार के खिलाफ देश से बाहर रहते हुये सेना संगठित की और सरकार को सीधे युद्ध की चुनौती दी और युद्ध किया। इनके महान कार्यों के कारण लोग इन्हें ‘नेताजी’ कहते थे।
#सुभाष_चन्द्र_बोस_से_सम्बन्धित_प्रमुख_तथ्य :
▪️पूरा नाम– सुभाष चन्द्र बोस
▪️अन्य नाम- नेताजी
▪️जन्म– 23 जनवरी 1897
▪️जन्म स्थान– कटक, उड़ीसा
▪️माता-पिता– प्रभावती, जानकीनाथ बोस (प्रसिद्ध वकील)
▪️पत्नी– ऐमिली शिंकल
▪️बच्चे– इकलौती पुत्री अनीता बोस
▪️अन्य करीबी सम्बन्धी– शरत् चन्द्र बोस (बड़े भाई), विभावती (भाभी), शिशिर कुमार बोस (भतीजा)
▪️शिक्षा– मैट्रिक (1912-13), इंटरमिडिएट (1915), बी. ए. आनर्स (1919), भारतीय प्रशासनिक सेवा (1920-21)
▪️विद्यालय– रेवेंशॉव कॉलेजिएट (1909-13), प्रेजिडेंसी कॉलेज (1915), स्कॉटिश चर्च कॉलेज (1919), केंब्रिज विश्वविद्यालय (1920-21)
▪️संगठन– आजाद हिन्द फौज, आल इंडिया नेशनल ब्लाक फॉर्वड, स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार
▪️उपलब्धी– आई.सी.एस. बनने वाले प्रथम भारतीय, दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष, भारत को स्वतंत्र कराने के संघर्ष में 11 बार जेल की एतिहासिक यात्रा, भारतीय स्वतंत्रता के लिये अन्तिम सांस तक प्रयास करते हुये शहीद हुये।
▪️मृत्यु– 18 अगस्त 1945 (विवादित)
▪️मृत्यु का कारण– विमान दुर्घटना
▪️मृत्यु स्थान– ताइहोकू, ताइवान
#आजाद_हिन्द_फौज :
आजाद हिन्द फौज का गठन 1942 में किया गया था। 28-30 मार्च, 1942 को टोक्यो में रह रहे भारतीय रासबिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज के गठन पर विचार के लिए सम्मेलन बुलाया। कैप्टन मोहन सिंह, रासबिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल के सहयोग से इण्डियन नेशनल आर्मी का गठन किया गया। आजाद हिन्द फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम मोहन सिंह के मन में आया था। इसी बीच विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की गई, जिसका प्रथम सम्मेलन जून 1942, को बैंकाक में हुआ।
आजाद हिन्द फौज की प्रथम डिवीजन का गठन 1 दिसम्बर, 1942 को मोहन सिंह के अधीन हुआ। इसमें लगभग 16,300 सैनिक थे। कालान्तर में जापान ने 60,000 युद्ध बंदियों को आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए छोड़ दिया। जापानी सरकार और मोहन सिंह के अधीन भारतीय सैनिकों के बीच आजाद हिन्द फौज की भूमिका के संबध में विवाद उत्पन्न हो जाने के कारण मोहन सिंह एवं निरंजन सिंह गिल को गिरफ्तार कर लिया गया। आजाद हिन्द फौज का दूसरा चरण तब प्रारम्भ हुआ, जब सुभाषचन्द्र बोस सिंगापुर गये।
सुभाषचन्द्र बोस ने 1941 में बर्लिन में इंडियन लीग की स्थापना की, किन्तु जब जर्मनी ने उन्हें रूस के विरुद्ध प्रयुक्त करने का प्रयास किया, तब कठिनाई उत्पन्न हो गई और बोस ने दक्षिण पूर्व एशिया जाने का निश्चय किया। जुलाई, 1943 में सुभाषचन्द्र बोस पनडुब्बी द्वारा जर्मनी से जापानी नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुँचे। वहाँ उन्होंने दिल्ली चलो का प्रसिद्ध नारा दिया। 4 जुलाई, 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज एवं इंडियन लीग की कमान को संभाला। आजाद हिन्द फौज के सिपाही सुभाषचन्द्र बोस को नेताजी कहते थे। बोस ने अपने अनुयायियों को जय हिन्द का नारा दिया। उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की।
सुभाषचन्द्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे। वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया। आजाद हिन्द फौज के प्रतीक चिह्न के लिए एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। कदम कदम बढाए जा, खुशी के गीत गाए जा इस संगठन का वह गीत था, जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे।
जापानी सैनिकों के साथ तथाकथित आजाद हिन्द फौज रंगून (यांगून) से होती हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च 1944 को कोहिमा और इम्फाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुँच गई। जर्मनी, जापान तथा उनके समर्थक देशों द्वारा आजाद हिन्द सरकार को मान्यता प्रदान की गई। इसके पश्चात नेताजी बोस ने सिंगापुर एवं रंगून में आजाद हिन्द फौज का मुख्यालय बनाया। पहली बार सुभाषचन्द्र बोस द्वारा ही गाँधी जी के लिए राष्ट्रपिता शब्द का प्रयोग किया गया। जुलाई, 1944 को सुभाषचन्द्र बोस ने रेडियों पर गाँधी जी को संबोधित करते हुए कहा भारत की स्वाधीनता का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं। इसके अतिरिक्त फौज की बिग्रेड को नाम भी दिये गए महात्मा गाँधी ब्रिगेड,अबुल कलाम आजाद ब्रिगेड, जवाहरलाल नेहरू ब्रिगेड तथा सुभाषचन्द्र बोस ब्रिगेड। सुभाषचन्द्र बोस ब्रिगेड के सेनापति शाहनवाज खाँ थे।
सुभाषचन्द्र बोस ने सैनिकों का आहवान करते हुए कहा तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा। फरवरी से जून, 1944 ई. के मध्य आजाद हिन्द फौज की तीन ब्रिगेडों ने जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा एवं बर्मा से युद्ध लड़ा, परन्तु दुर्भाग्यवश दूसरे विश्व युद्ध में जापान की सेनाओं के मात खाने के साथ ही आजाद हिन्द फौज को भी पराजय का सामना करना पड़ा। आजाद हिन्द फौज के सैनिक एवं अधिकारियों को अंग्रेजों ने 1945 में गिरफ्तार कर लिया। साथ ही एक हवाई दुर्घटना में सुभाषचन्द्र बोस की भी 18 अगस्त, 1945 ई. को मृत्यु हो गई। हालांकि हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु अभी भी संदेह के घेरे में हैं। बोस की मृत्यु का किसी को विश्वास ही नहीं हुआ।
आजाद हिन्द फौज के गिरफ्तार सैनिकों एवं अधिकारियों पर अंग्रेज सरकार ने दिल्ली के लाल किले में नवम्बर, 1945 को मुकदमा चलाया। इस मुकदमें के मुख्य अभियुक्त कर्नल सहगल, कर्नल ढिल्लों एवं मेजर शाहवाज खाँ पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। इनके पक्ष में सर तेजबहादुर सप्रु, जवाहरलाल नेहरू, भूला भाई देसाई और के.एन. काटजू ने दलीलें दी। लेकिन फिर भी इन तीनों की फांसी को सजा सुनाई गयी। इस निर्णय के खिलाफ पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई, नारे लगाये गये लाल किले को तोड़ दो, आजाद हिन्द फौज को छोड़ दो। विवश होकर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी मृत्युदण्ड की सजा को माफ कर दिया।
#विश्लेषण :
यह जरुर है कि आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिक देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत थे पर वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सके. इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थतियाँ जिम्मेदार थीं. जापान ने प्रारंभ से ही आजाद हिन्द फ़ौज को स्वतंत्र रूप से काम करने नहीं दिया. धन की कमी तो थी ही, आजाद हिंदी फ़ौज के सैनिकों के पास अच्छे हथियार भी नहीं थे. फिर भी इस फ़ौज के प्रयासों का प्रभाव पूरे देश पर पड़ा और देशप्रेम की लहर पूरे भारतवर्ष पर दौड़ पड़ी.
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