Sunday, December 4, 2022

कालिदास से प्रेणा

 कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.

स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।


कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।

पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

.

(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)


कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)


कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।

.

स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)


कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

.

स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)


वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)

माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

शिक्षा :-

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।

दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....

अन्न के कण को

"और"

आनंद के क्षण को...

(साभार)🚩🙏🇮🇳

हमार प्राचीन धनुष

 हमारे_प्राचीन_धनुष


कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक मैसेज प्रसारित हो रहा है जिसमें महर्षि दधिची की अस्थियों से तीन धनुष पिनाक, शांर्डग्य (शारंग) और गांडिव के बनने की बात कही जा रही है.

इस भ्रामक पोस्ट को पढ़कर ही विचार आया कि हमारे पौराणिक आयुधों पर लिखा जाए.


महर्षि दधिची की अस्थियों से केवल #वज्र का निर्माण हुआ था जिसे देवराज इंद्र को दिया गया था.

#पिनाक, #शांर्डग्य और #गाण्डीव का निर्माण समाधिस्थ #महर्षि_कण्व की मूर्धा पर उगे बांस से हुआ भगवान विश्वकर्मा ने किया था. जिन्हे क्रमशः आदिधनुर्धर महादेव, पालनकर्ता भगवान विष्णु और सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा को अर्पण किया गया. कालांतर में यह तीनों धनुष अलग अलग योद्धाओं द्वारा प्रयोग किये गए. 


सोशल मीडिया पर प्रसारित उस लेख में भीमपुत्र #घटोत्कच का वध कर्ण द्वारा इंद्र से प्राप्त वज्र से होना बताया गया है, जो कि असत्य है.

दानवीर कर्ण ने इंद्रदेव की आराधना कर उनसे #अमोघ_अस्त्र प्राप्त किया था ना कि वज्र.

घटोत्कच के वध का प्रसंग पढ़ने पर जानकारी मिलती है कि घटोत्कच जब कौरव सेना का संहार कर रहा था तब दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने इसी अमोघ अस्त्र से घटोत्कच का वध किया था.


सोशल मीडिया पर ऐसे भ्रामक लेख प्रसारित होना कोई नई बात नहीं है. कुछ अज्ञानी अथवा अल्पज्ञानी लोग आधी अधूरी बातें पढ़कर आधी बात मन से जोड़कर लेख लिख देते हैं. कर्ण के अमोघ अस्त्र, कर्ण के धनुष विजय और इंद्रदेव के वज्र तीनों का संबंध देवराज इंद्र से था, शायद इसी की आधी अधूरी जानकारी के साथ वह लेख तैय्यार कर दिया गया.

वज्र #शस्त्र श्रेणी का आयुध है जबकि धनुष से #अस्त्र श्रेणी के आयुध छोड़े जाते हैं. इन दोनों में सामान्य सा अंतर है अस्त्र किसी यंत्र के द्वारा चलाए जाते हैं जैसे धनुष से बाण चलाया जाता है. जबकि शस्त्र को तलवार की तरह हाथ में पकड़कर या हाथ से फेंककर वार किया जाता है. 


इस लेख में हमारे दिव्य धनुषों के बार में लिखता हूँ, किस योद्धा के पास कौनसा धनुष था. 


1:- भगवान #शिव:- पिनाक धनुष शिव जी को अर्पित किया गया था. पिनाक को अजगव भी कहा गया है. शिव जी के पास और भी कई धनुष थे. त्रिपुरांतक धनुष से उन्होंने मयासुर द्वारा बनाए त्रिपुर को नष्ट किया था. शिव जी के पास रुद्र नामक एक और धनुष का उल्लेख मिलता है जिसे बाद में भगवान बलराम ने प्राप्त किया था. 


2:- भगवान विष्णु:- शांर्डग्य (शारंग) धनुष विष्णु जी को अर्पित किया गया था जिसे उन्होंने धारण किया. इसे शर्ख के नाम से भी जाना गया. यह धनुष भगवान परशुराम और योगेश्वर श्री कृष्ण ने प्राप्त किया था. 


3:- भगवान ब्रह्मा :- भगवान ब्रह्मा को गांडिव धनुष अर्पित किया गया था. जिसे अग्निदेव, दैत्यराज वृषपर्वा और अंत में सव्यसांची अर्जुन ने प्राप्त किया. 


4:- भगवान परशुराम :- भगवान परशुराम के पास अनेक धनुष थे. उन्होंने अपने गुरु महादेव से पिनाक, भगवान विष्णु से शांर्डग्य (शारंग) और देवराज इंद्र से विजय नामक धनुष प्राप्त किया था. यह विजय धनुष उन्होंने अपने शिष्य कर्ण को दिया था. 


5:- प्रभु श्री #राम:- भगवान राम जिस धनुष को धारण करते थे उसका नाम कोदण्ड था. रामचरित मानस में प्रभु के धनुष को सारंग भी कहा गया है, परंतु वह धनुष शब्द का पर्यायवाची शब्द सारंग है ना कि विष्णु जी का धनुष शांर्डग्य. 


6:- लंकापति रावण:- रावण के पास पौलत्स्य नामक धनुष था. जिसे द्वापर युग में घटोत्कच ने प्राप्त किया था. एक समय पर रावण ने शिव जी से पिनाक भी प्राप्त किया था, परंतु उसे धारण नहीं कर पाया. 


7:- श्री कृष्ण :- योगेश्वर श्री कृष्ण का मुख्य आयुध सुदर्शन चक्र था परंतु उन्होंने भी शांर्डग्य (शारंग) धनुष को धारण किया था. 


8:- भगवान बलराम:- बल दऊ के धनुष का नाम रुद्र था जो उन्होने भगवान शिव से प्राप्त किया था. 


9:- भगवान कार्तिकेय :- इन्होंने अपने पिता भगवान शिव के धनुष #पिनाक को धारण किया था. 


10:- देवराज इंद्र:- इंद्रदेव ने विजय नामक धनुष को धारण किया जिसे उन्होंने भगवान परशुराम जी को दे दिया. 


11:- कामदेव:- कामदेव ने ईख (गन्ने) की छड़ी पर मधुमक्खी के तार से बनी प्रत्यंचा से तैय्यार पुष्पधनु नामक धनुष को धारण किया था. 


12:- युधिष्ठिर :- युधिष्ठिर जी ने महेंद्र नामक धनुष को धारण किया था. 


13:- भीम:- भीमसेन ने वायुदेव से प्राप्त वायव्य धनुष को धारण किया था. 


14:- कौन्तेय #अर्जुन:- अर्जुन ने ब्रह्मा जी के धनुष गांडिव को धारण किया था. जिसे उसने खांडवप्रस्थ में मयदानव से प्राप्त किया था. 


15:- नकुल:- नकुल ने भगवान विष्णु से प्राप्त वैष्णव धनुष को धारण किया था. 


16:- सहदेव:- सहदेव ने अश्विनी कुमारों से प्राप्त अश्विनी नामक धनुष को धारण किया था. 


17:- #कर्ण:- कर्ण ने अपने गुरु भगवान #परशुराम से देवराज इंद्र का विजय धनुष प्राप्त किया था. इंद्रदेव की उपासना कर कर्ण ने अमोघास्त्र भी प्राप्त किया था. 


18:- #अभिमन्यु:- अभिमन्यु ने अपने गुरु और मामा भगवान बलराम से भगवान शिव का धनुष रुद्र प्राप्त किया था. 


19:- घटोत्कच :- घटोत्कच ने लंकापति #रावण का धनुष पौलत्स्य प्राप्त किया. 


(उप पाण्डव:- पाण्डवों और द्रौपदी से उत्पन्न पुत्रों को उप पाण्डव कहा गया) 

20:- प्रतिविंध्य:- युधिष्ठिर के इस पुत्र ने रौद्र नामक धनुष का प्रयोग किया. 


21:- सूतसोम:- भीमसेन के इस पुत्र ने आग्नेय नामक धनुष प्राप्त किया. 


22:- श्रुतकर्मा:- #अर्जुन के इस पुत्र ने कावेरी नामक धनुष का प्रयोग किया.

 

23:- शतनिक:- नकुल के इस पुत्र को यम्या नामक #धनुष प्राप्त हुआ. 


24:- श्रुतसेन:- #सहदेव के पुत्र ने गिरिषा नामक धनुष का प्रयोग किया. 


कुरुवंश के कुल गुरु

25:- द्रोणाचार्य :- आचार्य द्रोण ने महर्षि अंगिरस से प्राप्त आंगिरस धनुष का प्रयोग किया. 



चक्रव्यूह में अभिमन्यु क्यों मारा गया था

आप केवल इतना भर जानते हैं कि चक्रव्यूह में अभिमन्यु मारा गया था या फिर कौरव महाबलियों ने उसे घेर कर मार दिया था?


तो_फिर_आप_रुकिये ..


 #श्रीकृष्ण जिसके #गुरु हों और जो स्वंय #केशव ही का #भांजा भी हो। उसके शौर्य को फिर आधा ही जानते हैं आप तब। कुछ तथ्यों से आप वंचित हैं। क्योंकि उस लड़ाई में #अभिमन्यु ने जिन वीरपुत्र योद्धाओं को मार कर वीरगति पाई थी उनको भी जान लीजिये ..


●#दुर्योधन का पुत्र #लक्ष्मण

●कर्ण का छोटा पुत्र. 

●अश्मका का बेटा

●शल्या का छोटा भाई

●शल्या के पुत्र रुक्मरथ

● दृघलोचन Drighalochana

● कुंडवेधी Kundavedhi

● सुषेण Sushena

● वसत्य Vasatiya

● क्रथा और कई योद्धा ...


और ये तब था जब ... उस चक्रव्यूह को जिसे अभिमन्यु को भेदना था ..उसके प्रत्येक द्वार - पहले से लेकर सातवें पर योद्धाओं को देखिये -


१) #अश्वथामा

२) #दुर्योधन

३)#द्रोणाचार्य

4) #कर्ण

५) #कृपाचार्य

६) #दुशासन

7) #शाल्व (दुशासन के पुत्र)


अभिमन्यु के प्रवेश के बाद ही #जयद्रथ ने प्रथम प्रवेशद्वार पर #पांडवों के प्रवेश को रोक दिया था।


चक्रव्यूह जो कि #कुरुक्षेत्र के सबसे खतरनाक युद्ध तंत्र में से एक था। वह चक्रव्यू जिसको भेदना असंभव था..


#द्वापरयुग में केवल 7 लोग ही जानते थे:


●कृष्णा

●अर्जुन

●भीष्म

●द्रोणाचार्य

●कर्ण

●अश्वत्थामा

●प्रद्युम्न


#अभिमन्यु केवल उसमें प्रवेश करना जानता था

चक्रव्यूह को #घूर्णन_मृत्यु_चक्र (rotating death wheel) भी कहा जाता था ..


यह पृथ्वी की तरह घूमता था, साथ ही हर परत के चारों ओर घूमता था। इस कारण से, निकास द्वार हर समय एक अलग दिशा में मुड़ता था, जो दुश्मन को भ्रमित करता था।


आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि #संगीत या #शंख ध्वनि के अनुसार, चक्रव्यूह के सैनिक अपनी स्थिति बदल सकते थे। कोई भी #कमांडर या #सिपाही स्वेच्छा में अपनी स्थिति नहीं बदल सकता था...द्रोण रचित चक्रव्यूह एक घूमते हुए चक्र #कुंडली की तरह था, अगर कोई योद्धा इस व्यूह के खुले हुए हिस्से में घुसता था तो मारे गए सैनिक की जगह तुरंत ही दूसरा अधिक शक्तिशाली सैनिक आ जाता था, सैनिकों की पंक्ति लगातार घूमती रहती थी और बाहरी सभी चक्र शक्तिशाली होते रहते थे।


इसलिए चक्रव्यूह में प्रवेश आसान था पर बाहर निकलने के लिए #योद्धा को व्यूह की किसी भी समय तात्कालिक स्थिति की जानकारी होना आवश्यक था और इसके लिए व्यूह के हर चक्र के एक योद्धा की स्थिति उसे याद रखनी पड़ती थी।


 माना जाता है कि चक्रव्यूह का गठन दुश्मन को #मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना तोड़ देता था कि दुश्मन के हजारों सैनिक एक पल में मर जाते थे।


यह अकल्पनीय है कि यह रणनीति सदियों पहले "वैज्ञानिक रूप से" गठित की गई थी।



देवता शराब नहीं पीते थे

 देवता शराब नहीं पीते थे। 

सोमरस सोम के पौधे से प्राप्त रस था ये पौधा आज लगभग विलुप्त है, 


शराब पीने को सुरापान कहा जाता था, सुरापान असुर करते थे, ऋग्वेद में सुरापान को घृणा के तौर पर देखा गया है। 


टीवी सीरियल्स ने भगवान इंद्र को अप्सराओं से घिरा दिखाया जाता है और वो सब सोमरस पीते रहते हैं, जिसे सामान्य जनता शराब समझती है। 


सोमरस, सोम नाम की जड़ीबूटी थी जिसमें दूध और दही मिलाकर ग्रहण किया जाता था, इससे व्यक्ति बलशाली और बुद्धिमान बनता था। 


जब यज्ञ होते थे तो सबसे पहले अग्नि को आहुति सोमरस से दी जाती थी। 


ऋग्वेद में सोमरस पान के लिए अग्नि और इंद्र का सैकड़ों बार आह्वान किया गया है। 


आप जिस इंद्र देवता को सोचकर अपने मन में टीवी सीरियल की छवि बनाते हैं वास्तव में  वैसा कुछ नहीं था। 


जब वेदों की रचना की गयी तो अग्नि देवता, इंद्र देवता, रुद्र देवता आदि इन्हीं सब का महत्व लिखा गया है। 


मन में वहम मत पालिये... 


कहीं पढ़ रहा था, किसी ने पोस्ट किया था कि देवता भी सोमरस पीते थे तो हम भी पीयेंगे तो अचानक मन में आया तो लिख दिया। 


आज का चरणामृत/पंचामृत सोमरस की तर्ज पर ही बनाया जाता है बस प्रकृति ने सोम जड़ीबूटी हमसे छीन ली। 


तो एक बात दिमाग में बैठा लीजिये, सोमरस नशा करने की चीज नहीं थी।


आपको सोमरस का गलत अर्थ पता है अगर आप उसे शराब समझते हैं।

शराब को शराब कहिए सोमरस नहीं। 

सोमरस का अपमान मत करिए, #सोमरस उस समय का #चरणामृत/पंचामृत था। 

भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था

 भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?


उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से। चूल्हे की राख का रासायनिक संगठन है ही कुछ ऐसा ।

आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। इस राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, वे पौधों में भी उपलब्ध होते हैं। इसके सभी Major तथा Minor Elements पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से। इसमें सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium.


इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium तथा Nitrogen. कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है ।

राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph क्षमता ९.० से १३.५ तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है।


जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का विनाश । आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है। मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है ।

मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है । जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटैण्ट का काम करती है ।


इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आ जाती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फैक्शन के लिए एक एकोफ़्रेंडली विकल्प है...

जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमैंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है। सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। इसलिए सनातन अपनाइए स्वस्थ रहिये ।


आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर धूनी की राख मलते हैं जो कि उन्हें शुद्ध रखती है साथ ही साथ भीषण ठंडक से भी बचाये रखती है ।



एक बार विचार अवश्य करें

 एक बार विचार अवश्य करें

#ब्राहमणो_ने_समाज_को_तोडा_नही_अपितु_जोडा_है


ब्राहमण ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खडे हरिजन को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि हरिजन स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हेपर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगे।


इस तरह सबसे पहले उन्हें जोड़ा गया जिन्हें आज दलित कहा जाता है को .....


★ धोबन के द्वारा दिये गये जल से से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा...


★ कुम्हार द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा...


★ मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तो से पत्तल दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोडा कि इन्ही के बनाए गये पत्तल दोनीयो से देवताओ के पुजन सम्पन्न होगे...


★ कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए थोड़ा कि इन्ही के द्वारा दिये गये जल से देवताओ के पुजन होगें...


★ बिश्वकर्मा जो लकडी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन चौकी पर ही बैठ कर बर बधू देवताओ का पुजन करेंगे ...


★ फिर वह हिन्दु जो किन्ही कारणो से मुसलमान वन गये थे उन्हे जोडते हुये कहा कि इनके द्वारा सिले गये वस्त्रो जोड़े जामे को ही पहन कर विवाह सम्पन्न होगें...


★ फिर मुसलमान की स्त्री को यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा पहनायी गयी चुणिया ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी...


★ धारीकार जो डाल और मौरी जो दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है को यह कहते हुये जोड़ा की इनके द्वारा बनाये गये उपहारो के बिना देवताओ का आशीर्बाद नही मिल सकता


इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर की महिलाये मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है

और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी...,


ब्राहमणो का कहॉ दोष है....हॉ ब्राहमणो का दोष यही रहा है कि इन्होने अपने उपर लगाये गये निराधार आरोपो का कभी खन्डन नही किया....???


जो ब्राहमणो के अपमान का कारण बन गया इस तरह जब #समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राहमण नाई से पुछता था कि क्या सभी वर्गो की उपस्थिति हो गयी है?


★ नाई के हॉ कहने के बाद ही ब्राहमण मंगल पाठ प्रारम्भ करता था।


ब्राहमणो द्वारा जोड़ने की क्रिया छोड़ा हम लोगो ने और दोष ब्राहमणो पर लगा दिया।


ब्राहमणो को यदि अपना खोया हुआ वह सम्मान प्राप्त करना है तो इन बेकार वक्ताओ के वक्तव्यो पर रोक लगानी होगी ।


देश मे फैले हुये इन साधुओ और ब्रहामण विरोधी ताकतों का विरोध करना होगा जो अपनी अग्यानता को छिपाने के लिये वेद और ब्राहमण की निन्दा करतेे हुये पुर्ण भैतिकता का आनन्द ले रहे है।


महावीर हनुमान जी का बल

 ⚘️⚘ ️महावीर हनुमान जी का बल ⚘️⚘️


शत्रु की आधी शक्ति खींच लेने वाला बाली हनुमान जी से कैसे और क्यों पराजित हो गया?


बाली किष्किंधा का राजा था, वह इंद्र के धर्म पुत्र, वृषराज के जैविक पुत्र, सुग्रीव के बड़े भाई और अंगद के पिता अौर अप्सरा तारा के पति थे, बाली को वरदान प्राप्त था कि जिससे भी वह युद्ध करेगा उसकी आधी शक्ति बाली में समाहित हो जाएगी, बाली इतना बलशाली था कि उसने दुदम्भी नामक राक्षस और उसके भाई का वध कर दिया था, बाली ने लंकापति रावण को अपनी कांख में दबा कर पृथ्वी परिक्रमा की थी, यहां तक कि प्रभु श्री राम ने भी वृक्ष की आड़ लेकर बाली का वध किया था|


बाली का हनुमान जी से हुआ था युद्ध!


बात एक समय की है, बाली अपने बल के घमंड में चूर हो कर नगरों और जंगलो से होता हुआ किष्किंधा जा रहा था और सबको ललकार रहा था "है कोई जो मुझसे युद्ध कर सके है कोई जिसने मां का दूध पिया हो जो मुझसे युद्ध कर सके" पास में ही हनुमान जी प्रभु श्री राम का ध्यान लगाए थे, बाली के चिल्लाने से उनके ध्यान में विध्न पड़ रहा था, उन्होंने बाली से कहा "हे वानरराज आप अत्यंत बलशाली है, आपको कोई नही हरा सकता लेकिन आप इस तरह चिल्ला क्यों रहे है?"


यह सुन कर अहंकार में डूबा हुआ बाली भड़क गया और हनुमान जी को चुनौती देते हुए कहा कि "तू जिसकी पूजा कर रहा है वह भी मुझे नही हरा सकता|"


राम जी का अपमान होता देख हनुमान जी को क्रोध आ गया और उन्होंने बाली की चुनौती स्वीकार कर ली और  निश्चित हुआ कि अगले दिन सूर्योदय होते ही वे दोनों युद्ध करेंगे, अगले दिन हनुमान जी जैसे ही युद्ध के लिए निकले वैसे ही ब्रम्हा जी प्रकट हो गए और हनुमान जी को समझाने लगे कि वे बाली से युद्ध न करें किंतु हनुमान जी ने कहा कि "मैं युद्ध अवश्य करूँगा, क्योंकि बाली ने मेरे प्रभु श्री राम जी को चुनौती दी है|"


यह सुन कर ब्रम्हा जी ने कहा कि ठीक है हनुमान युद्ध के लिए जाओ परंतु अपनी शक्ति का मात्र दसवाँ हिस्सा ही ले कर जाओ, हनुमान जी ने कहा ठीक है फिर हनुमान जी अपनी शक्ति का दसवाँ हिस्सा ले कर बाली से युद्ध करने पहुँच गए, बाली के सामने जाते ही हनुमान जी की आधी शक्ति बाली में समाने लगी तो बाली को अपने अंदर अथाह शक्ति संचार का आभास हुआ, उसे लगा कि उसकी नसें फटने को है, शरीर मे भीषण दबाव का अनुभव होने लगा, उसी समय ब्रम्हा जी प्रकट हुए और बाली से कहा कि "यदि अपने प्राण बचाना चाहते हो तो तत्क्षण हनुमान से हजार कोस दूर भाग जाओ अन्यथा  तुम्हारा शरीर फट जाएगा|"


यह सुनते ही बाली वहाँ से हजार कोस दूर भाग गया तब उसे राहत मिली, उसने इसका कारण ब्रम्हा जी से पूछा तो ब्रम्हा जी ने बताया "यूं तो तुम बहुत शक्तिशाली हो लेकिन तुम्हारा शरीर हनुमान जी की शक्ति का एक छोटा सा हिस्सा भी नही सम्हाल पा रहा है, तुम्हे बता दूं कि हनुमान अपनी शक्ति का केवल दसवाँ हिस्सा ही ले कर तुमसे युद्ध करने आये थे, सोचो यदि सम्पूर्ण भाग ले कर आते तो तुम्हारा क्या होता|"


यह सुन कर बाली चकित रह गया और हनुमान जी को दंडवत प्रणाम कर के बोला कि "इतना अथाह बल होते हुए भी आप कितना शांत रहते है और सदा राम भजन में खोए रहते है, मैं कितना बड़ा मूर्ख था जो आपको ललकार बैठा, मैं तो आपकी शक्ति के एक बाल के बराबर भी नही मुझे क्षमा कर दीजिए|"


रामायण में वर्णित मुख्य स्थान

 रामायण में वर्णित मुख्य स्थान:-


1 तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी, यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की|

 

2 श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था, यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था, श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है|

 

3 कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे|

 

4 प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे, कुछ महीने पहले तक प्रयाग को इलाहाबाद कहा जाता था|

 

5 चित्रकूट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट, चित्रकूट वह स्थान है जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते है, तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है, भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते है|

 

6 सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था, हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था|

 

7 दंडकारण्य : चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए, असल में यहीं था उनका वनवास, इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था, दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल है| दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था, इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम, गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे, स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे, ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है|

 

8 पंचवटी नासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए, यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है, यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी, राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी, वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है|

 

9 सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था, जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है, जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है, इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया, रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था, इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी|

 

10 पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है, रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते है, पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है, मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था, हालांकि कुछ मानते है कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था, इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी, इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है, यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है|

 

11 तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए, तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए|

 

12 शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में, जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे, रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है, शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा, 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है, इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है, केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है|

 

13 ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े, यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया, ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था, ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है, पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है, इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे|

 

14 कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े, तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है, कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है, यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया, लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया|

 

15 रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है, रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है, महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी, रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है|

 

16 धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो, उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया, धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है, धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है, धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है|

 

इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है, इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है, धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है|

 

17 'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था, 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते है, यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते है जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है|

 

श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित #रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है, आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि #रामायण में वर्णित किए गए है|



विद्यार्थी और फैशन...

 विद्यार्थी और फैशन....


शब्दकोश में फैशन का अर्थ होता है ढंग या शैली लेकिन लोकव्यवहार में फैशन का परिधान शैली अथार्त वस्त्र पहनने की कला को कहते हैं। मनुष्य अपने आप को सुंदर दिखाने के लिए फैशन का प्रयोग करता है। कोई भी व्यक्ति गोरा हो या काला, मोटा हो या पतला, नवयुवक हो या प्रौढ़ सभी का कपड़े पहनने का अपना-अपना ढंग होता है।


मनुष्य केवल अपनी आयु, रूप-रंग और शरीर की बनावट को देखकर ही फैशन करता है। यहाँ तक की फैशन के विषय में कोई विशेष विवाद नहीं है। कोई भी अध्यापक हो या विद्यार्थी, लड़का हो या लडकी, पुरुष हो या स्त्री सभी को फैशन करने का अधिकार होता है।


💥 फैशन पर विवाद : जब हम फैशन का गूढ़ अर्थ बनाव सिंगार लेते हैं तो फैशन के विषय में विवाद उठता है। इस गूढ़ अर्थ से दूल्हा और दुल्हन का संबंध हो सकता है लेकिन छात्र और छात्राओं का इससे कोई संबंध नहीं होता है।


छात्र और छात्राएं अभी विद्यार्थी हैं और विद्यार्थी का अर्थ होता है विद्या की इच्छा करने वाला। अगर विद्या की इच्छा करने वाले विद्यार्थी फैशन को चाहने लगेंगे तो वे अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक जायेंगे। अगर विद्यार्थी विद्या की जगह पर फैशन को चाहेगा तो विद्या उससे रूठ जाएगी।


💥 प्राचीनकाल में विद्यार्थियों में फैशन की भावना : प्राचीनकाल में मध्य मे से लेकर 21 वी शताब्दी आरंभ लगभग तक विद्यार्थी फैशन को इतना पसंद नहीं करते थे जितने आज के विद्यार्थी करते हैं। प्राचीनकाल में विद्यार्थी सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे उनमे फैशन की अपेक्षा विद्या को चाहने की बहुत तीव्र इच्छा होती थी।


आज के विद्यार्थियों में फैशनेबल दिखने की इच्छा तीव्र होती है। आजकल विद्यार्थी जिस तरह के कपड़े दूसरों को पहने हुए देखते हैं वैसे ही कपड़ों की मांग वे अपने माता -पिता से करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आस-पास के लोगों में खुद को धनी दिखा सकें लेकिन वास्तव में वे धनी नहीं होते हैं।


धनी के साथ-साथ आज का विद्यार्थी खुद को दूसरों से सुंदर दिखाना चाहता है जो वो होता नहीं है। इस तरह वे फैशन में इतना समय व्यर्थ में गंवा देते हैं लेकिन बहुत से महत्वपूर्ण कामों के लिए उसके पास समय ही नहीं होता है। ऐसी अवस्था में कौन उन्हें यह बात समझाएगा कि वे धन के अपव्यय के साथ-साथ समय की भी बरबादी करते हैं।


💥 सौन्दर्य के लिए धन की आवश्यकता : जब विद्यार्थी सुंदर दिखने की भावना को प्रबल कर लेते हैं तो उन में धन विलासिता भी बढ़ जाती है। फैशन के जीवन को जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है। जब विद्यार्थी को फैशन का जीवन जीने के लिए धन आसानी से नहीं मिलता है तो वह झूठ का सहारा लेकर धन को प्राप्त करने की कोशिश करता है।


वह धन को पाने के लिए चोरी तक करने लगता है। ऐसा करने के बाद जुआ जैसे बुरे काम भी उनसे दूर नहीं रह पाते हैं। इस तरह से विद्यार्थी की मौलिकता खत्म हो जाती है और वह आधुनिक वातावरण में जीने लगता है। ऐसा करने से घर के लोगों से उसका संबंध टूट जाता है और सिनेमा के अभिनेता उसके आदर्श बन जाते हैं।


वे विद्यालय की जगह पर फिल्मों में अधिक रूचि लेने लगते हैं और अपने मार्ग से भटक जाते हैं। जो विद्यार्थी फैशन के पीछे भागते हैं वे अपने जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। आगे चलकर उन्हें पछताना ही पड़ता है।


💥 सिनेमा का कुप्रभाव : आज के समय में हमारे जीवन में सिनेमा एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। ज्यादातर छात्र-छात्राएं फिल्मों से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। अमीर परिवार तो फैशनेबल कपड़े पहन सकते हैं और अपने बच्चों को भी फैशनेबल कपड़े पहना सकते हैं लेकिन गरीब लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। विद्यार्थियों में देखा-देखी फैशन की होड़ बढती ही जा रही है। टीवी की संस्कृति ने हमारे देश के लोगों के लिए समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। यह फैशनपरस्ती फिल्मों की ही देन है।


💥 फैशन के दुष्परिणाम : आज के विद्यार्थियों में फैशन की प्रवृत्ति के बढने से केवल माता-पिता ही नहीं बल्कि पूरे समाज मे घातक सिद्ध हो रही है। गरीब परिवार के लोग अपने बच्चों की मांगों की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। इसकी वजह से उनके घर के बच्चे घर में असहज वातावरण उत्पन्न कर देते हैं।


जो विद्यार्थी फैशन के पीछे भागते हैं वो सिनेमा घरों में जाकर अशोभनीय व्यवहार करते हैं, गली मोहल्लों में हल्ला मचाते हैं और हिंसक गतिविधियों में भाग लेते हैं। जो विद्यार्थी फैशनपरस्ती होते हैं वे जीवन के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं | जो विद्यार्थी फैशनपरस्ती के पीछे भागते हैं वो अपनी शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे विद्यार्थी अपने माता-पिता के सपनों को तोड़ देते हैं।


💥 उपसंहार : हम यह कह सकते हैं कि फैशन विद्यार्थियों के लिए अच्छा नहीं होता है। विद्यार्थियों का आदर्श हमेशा सादा जीवन उच्च विचार होना चाहिए। फैशन के मामलों में विद्यार्थी को अपना जीवन कभी भी खर्च नहीं करना चाहिए।


विद्यार्थी का लक्ष्य बस अपने जीवन का निर्माण होना चाहिए। जो विद्यार्थी अपनी शिक्षा पर ध्यान देते हैं वे ही अपने जीवन में सफल होते हैं। बस फैशन के पीछे भागने वाले बाद में पछताते हैं।


         #सामयिकी #भारतीयसंस्कृति

सनातन धर्म के 13 सुत्र

 . 🕉️  सनातन धर्म के 13 सुत्र 🚩

           ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

      1️⃣.प्रश्न :- तुम कौन हो...?          

                उत्तर :- भारतीय / आर्य ।

      2️⃣. प्रश्न :- तुम्हारा धर्म क्या है...?            

               उत्तर :- सत्य सनातन वैदिक धर्म ।

      3️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म ग्रंथ क्या है...?   

               उत्तर :- चार वेद, चार उपवेद, चार ब्राह्मण ग्रंथ, छ: वेदांग, ग्यारह उपनिषद, छ: दर्शन शास्त्र, मनुस्मृति, बाल्मिक रामायण, व्यास कृत महाभारत, ऋगवेदादिभाष्यभूमिका।

      4️⃣. प्रश्न:- तुम्हारे ईश्वर का मुख्य नाम क्या है ...?

            उत्तर :- ईश्वर का मुख्य नाम ओ३म् है !

      5️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का चिन्ह क्या है...?

              उत्तर :- चौटी और जनेऊ है।

      6️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म की प्रथम आज्ञा क्या है...?

             उत्तर :- सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।

      आचारस्य प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः॥

   अर्थात सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय ( स्वयं को धर्म पुस्तकों अनुसार पढने में ) में आलस्य मत करो। अपने श्रेष्ठ कर्मों से साधक को कभी मन नहीं चुराना चाहिए।

      7️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का मूलमंत्र क्या है...?

             उत्तर :- वेदों का मूल मंत्र गायत्री हैं।

             ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं 

    भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

   भावार्थ :- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

      8️⃣. प्रश्न :- तुम्हरी जीवन यात्रा क्या है...?

               उत्तर :- योग से मोक्ष तक पहुँचना ।  

      9️⃣ प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का कर्म क्या है....?

              उत्तर :- ऋषियों ने ये बोध कराने हेतु पाँच महायज्ञों का विधान किया।

      १. ब्रह्मयज्ञ = सन्ध्या व वेद स्वाध्याय ।

      २. देवयज्ञ = अग्निहोत्र ।

      ३. पितृयज्ञ = माता-पिता की सेवा ।

      ४. अतिथियज्ञ = घर आए विद्वानों की सेवा ।

      ५. बलिवैश्वदेव यज्ञ = सहयोगी प्राणियों पशु आदि की सेवा।

      🔟. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का सिद्धांत क्या है...?

           उत्तर :- वसुधैव कुटुम्बकम्‌'। सारी पृथ्वी एक कुटुंब/परिवार के समान।” तथा विश्व का कल्याण हो !

      1️⃣1️⃣. प्रश्न :- तुम्हारे धर्म के लक्षण क्या है...?

             उत्तर :- दस लक्षण हैं।....

   धर्ति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचम् इन्द्रियनिग्रह        

      धीविर्द्दया सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।   

   १.धृति सुख, दुःख , हानि, लाभ, मान, अपमान मे धैर्य रखना!

   २.क्षमा- शरीर मे सामर्थ्य होने पर भी बुराई का प्रतिकार न करना या बदला न लेना क्षमा है।

   ३.दम-मन मे अच्छी बातो का चिंतन करना बुरी बातों को दबाना हटाना !

   ४.अस्तेय-बिना दूसरे की आज्ञा के कोई वस्तु न लेना चोरी न करना !

   ५.शौच-शरीर की आत्मिक और शारीरिक शुद्धि रखना!

   ६-इन्द्रियनिग्रह हाथ, पांव, आंख, मुख, नाक आदिको अच्छे कार्यो मे लगाना।इन्द्रियों को संयम में रखना।

   ७.धी-बुद्धि बढाने हेतू प्रयत्न करना!

   ८.विद्या-ईश्वर द्वारा बनाये गए प्रत्येक पदार्थ का ज्ञान प्राप्त करना तथा उनसे उपयोग लेना!

   ९.सत्य-जो हम जानते है उसको वैसा ही अपने द्वारा कहना मानना सत्य कहलाता है। हमेशा सत्य ही बोलना।

   १०.अक्रोध-इच्छा से उत्पन्न क्रोध !

      1️⃣2️⃣.प्रश्न :- तुम्हारे धर्म का उदेश्य क्या है।

             उत्तर :- कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है - विश्व को आर्य ( श्रेष्ठ /उत्तम) बनाते चलो।

      1️⃣3️⃣. प्रश्न:- तुम्हारी धार्मिक नीति क्या है !

          उत्तर :- अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l" अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है।

   धर्म की जय हो,

       अधर्म का नाश हो,

          प्राणियों मे सद्भावना हो, 

              विश्व का कल्याण हो---

                   ~~~हर हर महादेव~~~

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कुछ हिन्दू मंत्र जिसे हमें अवश्य पढ़ना चाहिए

 और कुछ भले ना जानते हो परंतु ये 14 मंत्र जो....हर हिंदू को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए,


1. महादेव

          ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, 

           सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,

           उर्वारुकमिव बन्धनान्,

           मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!


2. श्री गणेश

              वक्रतुंड महाकाय, 

              सूर्य कोटि समप्रभ 

              निर्विघ्नम कुरू मे देव,

              सर्वकार्येषु सर्वदा !!


3. श्री हरि विष्णु

           मङ्गलम् भगवान विष्णुः,

           मङ्गलम् गरुणध्वजः।

           मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः,

           मङ्गलाय तनो हरिः॥


4. श्री ब्रह्मा जी

             ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा,

              नमस्ते परमात्ने ।

              निर्गुणाय नमस्तुभ्यं,

              सदुयाय नमो नम:।।


5. श्री कृष्ण

               वसुदेवसुतं देवं,

               कंसचाणूरमर्दनम्।

               देवकी परमानन्दं,

               कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।


6. श्री राम

              श्री रामाय रामभद्राय,

               रामचन्द्राय वेधसे ।

               रघुनाथाय नाथाय,

               सीताया पतये नमः !


7. मां दुर्गा

            ॐ जयंती मंगला काली,

            भद्रकाली कपालिनी ।

            दुर्गा क्षमा शिवा धात्री,

            स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।


8. मां महालक्ष्मी

            ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,

            धन धान्यः सुतान्वितः ।

            मनुष्यो मत्प्रसादेन,

            भविष्यति न संशयःॐ ।


9. मां सरस्वती

            ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं,

             वरदे कामरूपिणि।

             विद्यारम्भं करिष्यामि,

             सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।


10. मां महाकाली

             ॐ क्रीं क्रीं क्रीं,

             हलीं ह्रीं खं स्फोटय,

             क्रीं क्रीं क्रीं फट !!


11. हनुमान जी

          मनोजवं मारुततुल्यवेगं,

          जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

          वातात्मजं वानरयूथमुख्यं,

          श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥


12. श्री शनि देव

             ॐ नीलांजनसमाभासं,

              रविपुत्रं यमाग्रजम ।

              छायामार्तण्डसम्भूतं, 

              तं नमामि शनैश्चरम् ||


13. श्री कार्तिकेय 

        ॐ शारवाना-भावाया नम:,

         ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा ,

         वल्लीईकल्याणा सुंदरा।

          देवसेना मन: कांता,

          कार्तिकेया नामोस्तुते ।


14. श्री काल भैरव

          ॐ ह्रीं वां बटुकाये,


*15 मंत्र जो हर हिंदू को सीखना चाहिए।* 👇👇👇


1. *श्री महादेव जी*

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!


2. *श्री गणेश जी*


वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ 

निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा!!


3. *श्री हरी विष्णु जी*


मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥


4. *श्री ब्रह्मा जी*


ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा नमस्ते परमात्ने।

निर्गुणाय नमस्तुभ्यं सदुयाय नमो नम:।।


5. *श्री कृष्ण जी*


वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।।


6. *श्री राम जी*


श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः !


7. *मां दुर्गा जी*


ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते


8. *मां महालक्ष्मी जी*


ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।


9. *मां सरस्वती*


ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।


10. *मां महाकाली*


ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हलीं ह्रीं खं स्फोटय क्रीं 

क्रीं क्रीं फट !!


11. *श्री हनुमान जी*


मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥


12. *श्री शनिदेव जी*


ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||


13. *श्री कार्तिकेय*


ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते


14. *काल भैरव*


ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा


15. *गायत्री मंत्र*


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟

          क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये,

          कुरु कुरु बटुकाये,

          ह्रीं बटुकाये स्वाहा।


 खुद भी सीखे और परिवार / बच्चों को भी सिखाये। और जिन्हें याद हैं बहुत अच्छा । किसी भी तरह याद करें सुबह शाम घर पर करें।

विज्ञान नहीं मानेगा, पर यह हैं आठ चिरंजीवी हैं

 विज्ञान नहीं मानेगा, पर यह हैं आठ चिरंजीवी हैं,,,,,,


हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आओ जानते हैं कि हिंदू धर्म अनुसार कौन से हैं यह सात जीवित महामानव।


अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।

कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।

जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।


अर्थात इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।


प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है।


१. हनुमान - कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं और हनुमानजी भी इन अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। अजर-अमर का अर्थ है कि जिसे ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा शक्ति का स्रोत माना गया है क्योंकि वे चीरयुवा हैं।


२. कृपाचार्य- महाभारत के अनुसार कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने भी पांडवों के विरुद्ध कौरवों का साथ दिया था।


३. अश्वथामा- ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।


अश्वथाम के संबंध में प्रचलित मान्यता... मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक किला है। इसे असीरगढ़ का किला कहते हैं। इस किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।


४. ऋषि मार्कण्डेय- भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए।


५. विभीषण- राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया।


६. राजा बलि- शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे।


७. ऋषि व्यास- ऋषि भी अष्ट चिरंजीवी हैँ और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना भी की थी। महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही की गई है। इन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।


८. परशुराम- भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था। 


परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना फरसा (एक हथियार) दिया था। इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे।

गीता जयंती विशेष

 गीता जयंती विशेष 

हिंदू धर्म मे चार वेद हैं और इन चारों वेद का सार गीता में है। यही कारण है कि गीता को हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र धर्मग्रंथ माना गया है। माना जाता है कि गीता को स्पर्श करने के बाद इंसान झूठ नहीं बोलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में खड़े होकर गीता का ज्ञान दिया था और श्रीकृष्ण और अजुर्न संवाद के नाम से ही इसे जाना जाता है। भले ही गीता का ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था, लेकिन अर्जुन के माध्यम से ही उन्होंने संपूर्ण जगत को यह ज्ञान दिया था।

श्रीकृष्ण के गुरु घोर अंगिरस थे दिया था और उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सर्वप्रथम गीता का उपदेश दिया था और इसी उपदेश को भगवान ने अर्जुन को दिया था। गीता द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के समय रणभूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा कही गई थी, लेकिन इस वचनामृत की प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है। हममे से बहुत लोग गीता के बारे में केवल इतना ही जानते हैं कि ये एक धर्म ग्रंथ है

गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म से जुड़ी कई ऐसे बातें बताई गईं है जो मनुष्य के लिए हर युग में महत्वपूर्ण हैं। गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है। गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकास क्रम, हिन्दू संदेशवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म-कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी-देवता, उपासना, प्रार्थना, यम-नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्वजन्म, प्रारब्ध, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है। गीता का मुख्य ज्ञान श्रेष्ठ मानव बनना, ईश्वर को समझना और मोक्ष की प्राप्ति है।

गीता में लिखा है, क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क मरता है तो मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है और उसका पतन शुरू हो जाता है। इस आधार पर कई ज्ञान और बुद्धि को खोलने वाली बातें लिखी हैं।