एक लम्हा है जो तेरे बगैर गुज़रता नहीं...
दोस्त टूट कर चाहना और फिर टूट जाना,बात छोटी है मगर जान निकल जाती हैं…जिन्हें याद कर के मुस्कुरा दे ये आँखें,वो लोग दूर होकर भी दूर नहीं होते दोस्त...तेरी दूरियों में वो दम कहा,जो मेरी चाहत को कम कर दे दोस्त...तरस गई है ये आंखे तुम्हे निहारने को,काश आखिरी बार थोडा और देख लिया होता तुझे दोस्त...तुम को महसूस करना ही तो इश्क़ है,छू के तो मैंने खुदा को भी नहीं देखा दोस्त...एक उम्र है जो तेरे बगैर गुजारनी है,और एक लम्हा है जो तेरे बगैर गुज़रता नहीं दोस्त...कुछ नही जानता मैं तुम्हारे बारे में,बस खुबसूरत अदाओं से लगता है तू मेरी जिंदगी की राजधानी थी दोस्त...हिसाब आज तक इसका कोई रख ही नहीं पाया,किसी को पाने की हसरत में क्या क्या खोना पड़ता है दोस्त...बेबसी किसे कहते है कोई हमसे पूछें,तुम्हरा पता होक भी लापता है तू मेरी जिंदग...मैंने परखा है अक्सर अपनी बदनसीबी को,जिस को अपना कह दूं फिर वो अपना नहीं रहता दोस्त...सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर ,चीख़ भी लेते हैं हम और आवाज़ भी नहीं होती दोस्त...सिखा न सकी जो उम्र भर तमाम किताबे मुझे,करीब से कुछ चेहरे पढे और न जाने कितने सबक सीख लिए...झूठी मोहब्बत,वफा के वादे,साथ निभाने की कसमें,कितना कुछ करते हैं लोग सिर्फ वक्त गुजारने के लिए दोस्त...कितनी भी कोशिश कर लो दोस्त,समझा नहीं पाओगे उसे जो समझना ही नहीं चाहता...ख्वाहिशों के समंदर के सब मोती तेरे नसीब हों,तेरे चाहने वाले हमसफ़र तेरे हरदम क़रीब हों,कुछ यूँ उतरे तेरे लिए रहमतों का मौसम,की तेरी हर दुआ ,हर ख्वाहिश कबूल हो...जो गुजारी न जा सके,हम वो जिंदगी गुजार रहे हैं दोस्त...है रूह को भी समझना ज़रूरी,महज़ हाथों को थामना साथ नहीं न होता दोस्त...बदलते लोग, बदलते रिश्ते और बदलता मौसम,चाहे दिखाई ना दे मगर महसूस जरूर होते है दोस्त...खुशबू कैसे ना आये मेरी बातों से यार,मैंने बरसों से एक ही फूल से मोहब्बत की है...राज
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