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Wednesday, February 24, 2021
आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #बक्सर_की_लड़ाई
आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#बक्सर_की_लड़ाई
बक्सर का युद्ध बंगाल के नवाब मीर कासिम,अवध के नवाब सुजाउद्दौला व मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजों के मध्य लड़ा गया था | यही वह निर्णायक युद्ध था जिसने अंग्रेजों को अगले दो सौ वर्षों के लिए भारत के शासक के रूप में स्थापित कर दिया| यह युद्ध अंग्रेजों द्वारा फरमान और दस्तक के दुरुपयोग और उनकी विस्तारवादी व्यापारिक आकांक्षाओं का परिणाम था|
22 अक्टूबर,1764 ई. को लड़े गए बक्सर के युद्ध में संयुक्त भारतीय सेना की पराजय हुई| बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास की युगांतरकारी घटना साबित हुई |1765 ई. में सुजाउद्दौला और शाह आलम ने इलाहाबाद में कंपनी गवर्नर क्लाइव के साथ संधि पर हस्ताक्षर किये| इस संधि के तहत,कंपनी को बंगाल,बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्रदान कर दिए गए, जिसने कंपनी को इन क्षेत्रों से राजस्व वसूली के लिए अधिकृत कर दिया|कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के क्षेत्र लेकर मुग़ल शासक को सौंप दिए,जोकि अब इलाहाबाद में अंग्रेजी सेना के संरक्षण में रहने लगा था|कंपनी ने मुगल शासक को प्रतिवर्ष 26 लाख रुपये के भुगतान का वादा किया लेकिन थोड़े समय बाद ही कंपनी द्वारा इसे बंद कर दिया गया|कंपनी ने नवाब को किसी भी आक्रमण के विरुद्ध सैन्य सहायता प्रदान करने का वादा किया लेकिन इसके लिए नवाब को भुगतान करना होगा|अतः अवध का नवाब कंपनी पर निर्भर हो गया| इसी बीच मीर जाफर को दोबारा बंगाल का नवाब बना दिया गया| उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र को नवाब की गद्दी पर बैठाया गया| कंपनी के अफसरों ने नवाब से धन ऐंठ कर व्यक्तिगत रूप से काफी लाभ कमाया|
#युद्ध_के_लिए_जिम्मेदार_घटनाएँ
ब्रिटिशों द्वारा दस्तक और फरमान का दुरुपयोग,जिसने मीर कासिम के प्राधिकार और प्रभुसत्ता को चुनौती दी
ब्रिटिशों के आतंरिक व्यापार पर सभी तरह के शुल्कों की समाप्ति
कंपनी के कर्मचारियों का दुर्व्यवहार : उन्होंने भारतीय दस्तकारों, किसानोंऔर व्यापारियों को अपना माल सस्ते में बेचने के लिए बाध्य किया और रिश्वत व उपहार लेने की परंपरा की भी शुरुआत कर दी|
ब्रिटिशों का लुटेरों जैसा व्यवहार जिसने न केवल व्यापार के नियमों का उल्लंघन किया बल्कि नवाब के प्राधिकार को भी चुनौती दी|
#निष्कर्ष
बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास की युगांतरकारी घटना साबित हुई | ब्रिटिशों की रूचि तीन तटीय क्षेत्रों कलकत्ता ,बम्बई और मद्रास में अधिक थी| अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के बीच लड़े गए कर्नाटक युद्ध ,प्लासी के युद्ध और बक्सर के युद्ध ने भारत में ब्रिटिश सफलता के दौर को प्रारंभ कर दिया|1765 ई. तक ब्रिटिश बंगाल,बिहार और उड़ीसा के वास्तविक शासक बन गए| अवध और कर्नाटक के नवाब(जिसे उन्होंने ही नवाब बनाया था) उन पर निर्भर हो गए|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#मौर्य_युग_के_पूर्व_विदेशी_आक्रमण
#ईरानी_फारसी_आक्रमण
पूर्वोत्तर भारत में धीरे-धीरे छोटे गणराज्यों और रियासतों का विलय मगध साम्राज्य के साथ कर दिया था। लेकिन उत्तर-पश्चिम भारत में विदेशी आक्रमण से क्षेत्र की रक्षा करने के लिए कोई भी मजबूत साम्राज्य नहीं था। यह क्षेत्र धनवान भी था और इसमें हिंदू कुश के माध्यम से आसानी से प्रवेश किया जा सकता था।
518 ई.पू. में ईरानी आक्रमण और 326 ई.पू. में मकदूनियाई आक्रमण के रूप में भारतीय उप-महाद्वीप के दो प्रमुख विदेशी आक्रमण हुए थे।
आर्कमेनियन शासक डारियस प्रथम ने 518 ईसा पूर्व में भारत के उत्तर-पश्चिम सीमांत पर आक्रमण किया और राजनीतिक एकता के अभाव का लाभ लेते हुए पंजाब पर आक्रमण कर दिया।
#ईरानी_आक्रमण_के_प्रभाव
आक्रमण से इंडो-ईरानी व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि हुई। ईरानियों ने भारतीयों के लिए एक नई लेखन लिपि की शुरूआत की जिस खरोष्ठी के रूप में जाना जाता था।
#मकदूनियाई_सिकंदर_के_आक्रमण
सिकंदर 20 साल की उम्र में अपने पिता की जगह लेते हुए मैसेडोनिया के सिंहासन आसीन हुआ। उसका सपना विश्व विजेता बनने का था और 326 ईसा पूर्व भारत पर आक्रमण करने से पहले उसने कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर ली थी। अम्भी (तक्षशिला के शासक) और अभिसार ने उसके आगे आत्मसमर्पण कर दिया था लेकिन पंजाब के शासक ने ऐसा करने से मना कर दिया था।
सिकंदर और पोरस की सेनाओं के बीच झेलम नदी के पास शुरू हुए युद्ध को हेडास्पेस के युद्ध के नाम से जाना जाता है। हांलाकि इस युद्ध में पोरस हार गया था लेकिन सिकन्दर ने उसका उदारतापूर्वक व्यवहार किया था।
हालांकि, यह जीत भारत में उसकी आखिरी बड़ी जीत साबित हुई क्योंकि उसकी सेना ने इसके बाद आगे जाने से इनकार कर दिया था। वे सिकंदर के अभियान के साथ जाने से काफी थक गए थे और वापस घर लौटना चाहते थे। इसके अलावा, मगधियन साम्राज्य (नंदा शासक) की ताकत से भी वो भयभीत थे।
विजय प्राप्त प्रदेशों के लिए आवश्यक प्रशासनिक व्यवस्था करने के बाद सिकंदर 325 ईसा पूर्व वापस चले गया। 33 वर्ष की आयु में जब वह बेबीलोन में था तब उसका निधन हो गया।
#आक्रमण_के_प्रभाव
इस आक्रमण से भारत में राजनीतिक एकता की जरूरत महसूस की गयी जिससे चंद्रगुप्त मौर्य और उसके वंश का उदय हुआ है जिन्होंनो अपने शासन के दौरान भारत को एकजुट किया।
सिकंदर के आक्रमण के परिणामस्वरूप, भारत में इंडो-बैक्टेरियन और इंडो-पर्थिनयन राज्य स्थापित किये गये जिसने भारतीय वास्तुकला, सिक्कों और खगोल विज्ञान को प्रभावित किया था।
#निष्कर्ष:
व्यापार, वाणिज्य, कला और संस्कृति के विकास साथ विदेशी आक्रमणों ने भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक एकीकरण में मदद की।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#मुगल_साम्राज्य
मुगलों के भारत आने के बाद भारत के इतिहास, संस्कृति, परंपरा, जातीयता और कलात्मकता में बड़ा बदलाव आया। मुगलों ने बाबर के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया। 1526 में पानीपत की लड़ाई हुई और बाबर ने भारत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोधी को हराया। उनके द्वारा स्थापित राजवंश तीन शताब्दियों से अधिक समय तक रहा। आईए जानते है मुगल वंश के शासकों के बारे में-
#मुगल_वंश_के_शासक :
#बाबर(1526–1530)
▪️बाबर का जन्म 1483 में फरगाना (अफ़गानिस्तान) में हुआ था।
▪️वह मुगल साम्राज्य के संस्थापक थे, जिन्होंने भारत में बारूद की शुरुआत की।
▪️पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को हराया (1526 ई.)।
▪️खानवा के युद्ध में राणा साँगा (संग्राम सिंह) को हराया (1527 ई.)।
▪️चंदेरी की लड़ाई में चंदेरी की मेदिनी राय को हराया (1528 ई.)।
▪️घाघरा की लड़ाई (1529 ई।) में महमूद लोदी को हराया। यह बाबर द्वारा लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी।
▪️उन्होंने तुज़ुक-ए-बबुरी (बाबर की आत्मकथा) तुर्की भाषा में लिखी थी।
▪️बाबर ने जेहाद की घोषणा की और गाजी (खानवा युद्ध के बाद) पदवी प्राप्त किया।
▪️तुज़ुक-ए-बबुरी के अनुसार, बाबर की मृत्यु 1530 में लाहौर में हुई और उसे अराम बाग (आगरा) में दफनाया गया। बाद में उनके पार्थिव शरीर को अफगानिस्तान (काबुल) ले जाया गया।
#हुमायूँ (1530-1556 ई.)
▪️हुमायूँ बाबर का सबसे बड़ा पुत्र था।
▪️दिल्ली में दीनपनाह को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
▪️शेरशाह सूरी ने धीरे-धीरे सत्ता हासिल की। उन्होंने हुमायूँ के साथ दो लड़ाइयाँ लड़ीं -एक चौसा की लड़ाई (1539 ई.) और दूसरी कन्नौज की लड़ाई (1540 ई.) जिसमें हुमायूँ की हार हुई।
▪️हुमायूँ को निर्वासन में 15 वर्ष बीत गए। उसने अपने अधिकारी बैरम खान की मदद से 1555 में फिर से भारत पर आक्रमण किया।
▪️हुमायूँ की मृत्यु 1556 ई. में उसके पुस्तकालय भवन की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुई।
▪️हुमायूँ की सौतेली बहन, गुलबदन बेगम, ने हुमायूँ-नामा लिखा।
#अकबर (1556-1605ई.)
▪️अबूल-फतह जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर को अकबर के नाम से जाना जाता है,
▪️हुमायूँ के बाद एक रेजिमेंट, बैरम खान ने भारत में युवा सम्राट मदद की और भारत में मुगल सम्राज्य को मजबूत बनाया।
▪️सबसे महान शासकों में से एक माना जाता है।
▪️बैरम खान की मदद से पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556 ई.) में हेमू को हराया।
▪️बाज बहादुर को हराकर मालवा (1561 ई.)विजय, इसके बाद गढ़-कटंगा (रानी दुर्गावती द्वारा शासित), चित्तौड़ (1568 ई.), रणथंभौर और कालिंजर (1569 ई.), गुजरात (1572 ई. ), मेवाड़ (हल्दीघाटी का युद्ध, 1576 अकबर और राणा प्रताप) कश्मीर (1586 ई.), सिंध (1593 ई.) और असीरगढ़ (1603 ई.)को हराया। ,
▪️1572 ई. में गुजरात पर विजय के बाद फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा का निर्माण किया गया।
▪️अकबर ने हरखा बाई (जोधा बाई के रूप में भी जाना जाता है) से निकाह किया, जो राजपूत शासक भारमल की बेटी थी।
▪️अकबर ने जज़ियाह (1564 ई।) को समाप्त कर दिया।
▪️उसे इबादत खाना (प्रार्थना की हॉल) में विश्वास था, इसलिए फतेहपुर सीकरी में , सुलह-ए-कुल (सभी के लिए शांति) का निर्माण किया,डिग्री ऑफ इनफिलिबिलिटी (1579 ई.) जारी किया; धार्मिक दीन-ए-इलाही (1582 ई.) का आदेश दिया। बीरबल ने सबसे पहले इसे गले लगाया था।
▪️महानता और सेना को संगठित करने के लिए भू-राजस्व प्रणाली जिसे टोडर माल बंदोबस्त या ज़बती कहा जाता था, भूमि का वर्गीकरण और किराए का निर्धारण; और मानसबाड़ी प्रथा (रैंक धारक) की शुरुआत की।
▪️इनके नवरत्नों में टोडर मल, अबुल फजल, फैजी, बीरबल, तानसेन, अब्दुर रहीम खाना-ए-खाना, मुल्ला-डो-प्याजा, राजा मान सिंह और फकीर अज़ीओ-दीन शामिल थे।
▪️27 अक्टूबर 1605 को पेचिश के कारण अकबर की मृत्यु हो गई। उनका शव आगरा के सिकंदरा स्थित उनके मकबरे में दफनाया गया था।
#जहाँगीर (1605-1627 ई.)
▪️पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जुन देव को मारा।
▪️1622 ई. में फारस से कंधार से की हार उसकी सबसे बड़ी विफलता थी।
▪️जहाँगीर ने 1611 ई. में मेहर-उन-निसा से शादी की और नूरजहाँ की उपाधि दी।
▪️उन्होंने शाही न्याय के चाहने वालों के लिए आगरा किले में जंजीर-ए-अदल की स्थापना की।
▪️कप्तान हॉकिन्स और सर थॉमस रो ने उनके दरबार का दौरा किया था।
#शाहजहाँ(1628-1658ई.)
▪️शाहजहाँ को निर्माण का एक अतुलनीय शौक था।
उनके शासन में आगरा के ताजमहल और दिल्ली के ▪️जामा मस्जिद, आदि अन्य स्मारकों का निर्माण हुआ।
▪️इसका शासनकाल ने मुगल शासन के सांस्कृतिक उत्थान का समय माना जाता है ।
▪️उनके सैन्य अभियानों ने साम्राज्य को दिवालियापन के कगार पर ला दिया।
▪️उनके पुत्रों ने विभिन्न मोर्चों पर बड़ी सेनाओं की कमान संभाली।
▪️उनके शासनकाल के दौरान मारवाड़ी घोड़े सामने आए।
▪️अनन्त प्रेम स्मारक ताजमहल, आगरा में स्थित है। ▪️शाहजहाँ ने 1631 में मुमताज महल के नाम से मशहूर अपनी पसंदीदा बेगम, अर्जुमांचल बानो बेगम के लिए यह मकबरा बनवाया।
▪️गुरु हरगोबिंद के नेतृत्व में सिखों का विद्रोह हुआ। ▪️शाहजहाँ ने लाहौर में सिख मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया।
#औरंगजेब (आलमगीर)(1658-1707 ई.)
▪️औरंगज़ेब मुमताज़ और शाहजहाँ के पुत्र था।
▪️औरंगजेब अपने भाई दारा, शुजा और मुराद के बीच उत्तराधिकार के क्रूर युद्ध के बाद विजयी हुआ।
▪️उनके शासन के दौरान – मथुरा में जाट किसान, पंजाब में सतनामी किसान और बुंदेलखंड में बुंदेलों का विद्रोह हुआ।
▪️1658 ई. में मारवाड़ का मेल, राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद राजपूत और मुगलों के बीच एक गंभीर दरार बन गया।
▪️नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर को उनके द्वारा 1675 ई. में मार दिया गया था।
▪️मुगल विजय उसके शासनकाल के दौरान चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई।
▪️यह उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में जिंजी तक, पश्चिम में हिंदुकुश से पूर्व में चटगाँव तक फैला हुआ था।
▪️उन्हें दरवेश या जिंदा पीर कहा जाता था। उसने सती को नही मानता था। बीजापुर (1686 ई.) और गोलकोंडा (1687 ई.) पर विजय प्राप्त की और 1679 ई. में जज़िया कर फिर से लगा दिया।
▪️इसने औरंगाबाद में अपनी रानी रबूद-दुर्रानी की कब्र पर बीवी का मकबरा दिल्ली के लाल किले के भीतर मोती मस्जिद; और लाहौर में यामी या बादशाही मस्जिद बनवाया।
▪️1707 में अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु हो गई।
#अन्य_मुग़ल_शासक :
#बहादुर_शाह I (1707-12)
▪️असली नाम मुअज्जम था।
▪️शाह-ए-बेखबर टाइटल था।
▪️मराठों और राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध को बढ़ावा दिया
#जहाँदार_शाह (1712-13)
▪️वह जुल्फिकार खान (वज़ीर) की मदद से गद्दी प्राप्त की।
▪️जजिया कर खत्म कर दिया।
▪️इसके दरबार में एक दासी लालकुमर थी।
फर्रुख्सियर(1713-19)
▪️उसके पास स्वतंत्र रूप से शासन करने की क्षमता और ज्ञान का अभाव था।
▪️उनके शासनकाल में सैय्यद ब्रदर्स (राजा निर्माता के रूप में जाना जाता है) का उदय हुआ।
▪️अब्दुल्ला खान-वज़ीर था
▪️हुसैन अली-सेनापति था।
▪️1717-मुक्त व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को गोल्डन फ़ार्मन जारी किया।
▪️फर्रुखसियर ने बंदा बहादुर(एक सिख नेता)को मारा।
#मुहम्मद_शाह (1719-48)
▪️सय्यद ब्रदर्स की मदद से बादशाह बना।
▪️नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और मयूर ▪️सिंहासन और कोहिनूर हीरा छीन लिया।
▪️टाइटल- रंगीला था।
▪️उनके काल में स्वतंत्र राज्य का उदय हुआ।
#अहमद_शाह (1748-54)
▪️अहमद शाह अब्दाली (नादिर शाह के जनरल) ने दिल्ली की ओर कूच किया और मुगलों ने पंजाब और मुल्तान पर कब्जा कर लिया।
▪️उन्होंने राजमाता “उमाद बाई” के मार्गदर्शन में काम किया।
#आलमगीर(1754-59)
▪️अहमद शाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया, बाद में, मराठों द्वारा दिल्ली को लूट लिया गया।
#शाह_आलम II (1759-1806)
▪️असली नाम: अलीगोहर
▪️पानीपत का युद्ध: (1761)
▪️बक्सर युद्ध (1764)
▪️इलाहाबाद की संधि (1765)
▪️12 साल तक दिल्ली में प्रवेश नहीं कर सका।
▪️1788: गुलाम कादिर ने उन्हें अंधा बना दिया।
#अकबर II (1806-37)
▪️ईस्ट इंडिया कंपनी के पेंशनर।
▪️राम मोहन राय को “राजा” की उपाधि दी।
#बहादुर_शाह II (1837-57)
▪️उपनाम: जाफ़र
▪️अंतिम मुगल सम्राट, जिसे 1857 के विद्रोह के दौरान प्रमुख बनाया गया था।
▪️1862-रंगून में मृत्यु (म्यांमार)
#मुगल_राजवंश_के_तहत_कला_और_आर्क_का
#चित्रण :
मुगलों के अधीन कला और वास्तुकला इस्लामी, फारसी और भारतीय वास्तुकला का मिश्रण था। बाबर के अधीन मुगल वास्तुकला ने भारत के चारों ओर काफी कुछ मस्जिदों के निर्माण को देखा, जो ज्यादातर हिंदू मंदिरों से लिया गया था। आगरा में एक भी खुदा हुआ मस्जिद के अपवाद के साथ, कोई अन्य जीवित संरचना निर्विवाद रूप से हुमायूँ के संरक्षण के परिणामस्वरूप नहीं थी। अकबर के दौरान मुगल वास्तुकला भारतीय शैली के साथ फारसी वास्तुकला के अद्वितीय सम्मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती है। अकबर से संबंधित प्रसिद्ध वास्तुकला के मैदान आगरा के किले-महल, आगरा में फतेहपुर सीकरी, इलाहाबाद में जहाँगीरी महल, अजमेर में किले, बीरबल के जोधाबाई महल, हाउस ऑफ बीरबल और उनकी अपनी शानदार कब्र हैं।
जहांगीर ने मुगल शासन में लघु चित्रकला के स्कूल में उत्साहपूर्वक संरक्षण किया। औरंगजेब के शासनकाल में पत्थर और संगमरमर ने प्लास्टर आभूषण के साथ ईंट या मलबे को रास्ता दिया। उन्होंने लाहौर के किले में अपना नाम जोड़ा। औरंगजेब के शासनकाल की सबसे प्रभावशाली इमारत, बादशाही मस्जिद है जिसका निर्माण 1674 में हुआ था।
#मुगल_प्रशासन :
मुगलों के राजत्व सिद्धान्त का मूलाधिकार ‘शरीअत’ (कुरान एवं हदीस का सम्मिलित नाम) था। बाबर ने ‘बादशाह’ की उपाधि धारण करके मुगल बादशाहों को खलीफा के नाममात्रा के अधिपत्य से भी मुक्त कर दिया। हुमायुˇ बादशाह को ‘पृथ्वी पर खुदा का प्रतिनिधि’ मानता था। अकबर राजतन्त्रा को धर्म एवं सम्प्रदाय से परे मानता था और उसने रूढ़िवादी इस्लामी सिद्धान्तों के स्थान पर ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति अपनायी। मुगल बादशाहों ने निःसन्देह बादशाह के दो कर्तव्य माने थे- ‘जहांबानी’(राज्य की रक्षा) और जहांगीरी (अन्य राज्यों पर अधिकार) अकबर के शासन काल के 11वे वर्ष में पहली बार मनसब प्रदान किये जाने का संकेत मिलता है। अकबर ने अपने अन्तिम वर्षों में मनसबदारी व्यवस्था में ‘जात एवं सवार’ नामक द्वैत मनसब प्रथा को प्रारम्भ किया। अकबर के समय में सबसे छोटा मनसब 10 का तथा सबसे बड़ा 10,000 तक हो गया। जहांगीर और शाहजहां के काल में सरकारों को 8000 तक के मनसब दिये जाने लगे।
जिसकी संख्या उत्तर मुगल काल में 50,000 तक पहुंच गयी। मनसबदारों का वेतन रुपयों के रूप में निश्चित किया जाता था किन्तु उसकी अदायगी ‘जागीर’ के रूप में की जाती थी।
#मुग़ल_सम्राज्य_का_पतन :
मुगल साम्राज्य के तेजी से पतन के लिए इतिहासकारों ने कई स्पष्टीकरण दिए हैं। सम्राटों ने साम्राज्य का अधिकार और नियंत्रण खो दिया, क्योंकि व्यापक रूप से बिखरे हुए शाही अधिकारियों ने केंद्रीय अधिकारियों में विश्वास खो दिया, और प्रभाव के स्थानीय लोगों के साथ अपने स्वयं के सौदे किए। उत्तराधिकारी कमजोर और अक्षम थे। एक अन्य कारण कई युद्धों है, जो त्वरित उत्तराधिकार में लड़े गए थे। इस कारण मराठा और अन्य क्षेत्रीय शक्तियाँ बढ़ने लगीं और मुगलों के लिए अपने साम्राज्य को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। मुगल साम्राज्य के पतन से कृषि उत्पादकता में गिरावट आई, जिससे खाद्य कीमतों में गिरावट आई।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#मगध_साम्राज्य
पुराणों के अनुसार छठी शताब्दी ईसा पूर्व में वृहद्रथ ने मगध साम्राज्य की स्थापना की। जिसकी राजधानी गिरिव्रज को बनाया और बार्हद्रथ वंश (वृहद्रथ वंश) की नींव रखी। कालांतर में वृहद्रथ को एक पुत्र हुआ जिसका नाम जरासंध रखा गया, जो एक प्रतापी राजा बना और जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। अथर्ववेद तथा ऋग्वेद में भी मगध का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार जरासंध की मृत्यु के पश्चात मगध पर शिशुनाग वंश का अधिपत्य हुआ।
परन्तु बौद्ध साहित्य के अनुसार शिशुनाग वंश का कोई अस्तित्व नहीं है और उसकी जगह हर्यक वंश की स्थापना हुई थी, क्यूंकि जब भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार हेतु मगध की यात्रा की थी तब वहां का राजा हर्यक वंश का बिम्बिसार था। आईए जानते हैं मगध पर शासन करने वाले प्रमुख वंशो के बारे में –
#हर्यक_वंश (545 ई. पू. से 412 ई. पू. तक) –
#बिंबसार_या_बिम्बिसार :
बिंबसार या बिम्बिसार ने हर्यक वंश की नींव रखी थी। बिंबसार हर्यक वंश का एक प्रतापी राजा था।बिंबिसार ने 52 साल तक 544 BC से 492 BC तक शासन किया |
वैवाहिक गठबंधन के माध्यम से इसने अपनी स्थिति और समृद्धि को मजबूत किया | इसका पहला विवाह कोशल देवी नामक महिला से कोशल परिवार में हुआ | बिंबिसार को दहेज में काशी प्रांत दिया गया |
बिंबिसार ने वैशाली के लिच्छवि परिवार की चेल्लाना नामक राजकुमारी से विवाह किया |अब इस वैवाहिक गठबंधन ने इसे उत्तरी सीमा में सुरक्षित कर दिया | बिंबिसार ने दुबारा एक और विवाह मध्य पंजाब के मद्रा के शाही परिवार की खेमा से किया |इसने अंग के ब्रहमदत्ता को पराजित कर उसके साम्राज्य पर कब्जा कर लिया | बिंबिसार के अवन्ती राज्य के साथ अच्छे तालुक थे |
#अजातशत्रु :
अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था जिसने बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात 491 ई० पू० मगध का सिंहासन संभाला। पुराणों के अनुसार ‘दर्शक’ अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना, परन्तु जैन और बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार ‘उदायिन’ को उत्तराधिकारी माना जाता है, जिसने ‘पाटलिपुत्र’ नगर की स्थापना की थी। अजातशत्रु को ‘कुणिक’ के नाम से भी जाना जाता है।
कई मत हैं कि अजातशत्रु जैन धर्म का अनुयायी था, परन्तु कुछ समय पश्चात बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। इसीलिए अजातशत्रु ने बुद्ध के निर्वाण (मृत्यु) के पश्चात उनके अवशेषों पर स्तूप का निर्माण किया, जिसे ‘राजगृह’ (वर्तमान में राजगीर, जिला-नालंदा, बिहार) में बनाया गया।
#उदयीन :
उदयीन, अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना | इसने पाटलीपुत्र की नींव राखी और राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र स्थानत्रित किया |
नागदशक हर्यंक राजवंश का अंतिम शासक था | इसे लोगों द्वारा शासन करने के लिए अयोग्य पाया गया और
उसे अपने मंत्री शिशुनाग के लिए राजगद्दी से हाथ पीछे खींचना पड़ा |
#शिशुनाग_वंश (412 ई. पू. से 344 ई. पू. तक) –
#शिशुनाग :
समय के साथ हर्यक वंश के राजाओं की शक्ति इतनी कमजोर हो चुकी थी कि शिशुनाग नामक राजा के सेवक ने सिहांसन पर कब्ज़ा कर लिया और मगध का सम्राट बना। तभी से शिशुनाग वंश का उदय हुआ। शिशुनाग ने भी गिरिव्रज को ही अपनी राजधानी बनाया था।
#कालाशोक :
शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात शिशुनाग के उत्तराधिकारी कालाशोक ने साम्राज्य संभाला। कालाशोक ने ‘पाटलिपुत्र’ को मगध की राजधानी बनाया। कालाशोक के कार्यकाल में ही बौद्ध धर्म की द्वितीय संगीति का आयोजन वैशाली में किया गया था।
#नन्दिवर्धन :
कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने शिशुनाग वंश के पतन तक मगध पर शासन किया, जिनमें से नन्दिवर्धन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था।
#नन्द_वंश (344 ई. पू. से 322 ई. पू. तक) –
#महापद्मनंद (उग्रसेन) :
महापद्म नंद ने शिशुनाग वंश का तख्तापलट कर मगध पर अधिकार किया और नंदवंश की नींव रखी। पाली ग्रंथों के अनुसार महापद्म को उग्रसेन के नाम से जाना गया है। विशाल सेना होने के कारण महापद्म को उग्रसेन कहा गया। जैन ग्रंथों के अनुसार महापद्म को वेश्या का पुत्र माना गया है, कई मतों के अनुसार माना जाता है कि महापद्म निम्न कुल का था।.
यही कारण है कि महापद्म को प्राचीन भारत का पहला शूद्र सम्राट भी माना जाता है।.
#नंदराज (धननंद या घनानंद) :
नन्दवंश का अंतिम उत्तराधिकारी नंदराज था, जिसे बौद्ध ग्रंथों में धननन्द (घनानंद) के नाम से जाना जाता है। 322-321 ई० पू० में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य के साथ मिलकर धननंद की हत्या कर मगध का तख्तापलट किया और मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
#निष्कर्ष
घनानंद का तख़्ता पलट चन्द्र गुप्त मौर्य द्वारा 322 BC में किया गया जिसने मगध के नए शासन की स्थापना की जिसे मौर्य राजवंश के नाम से जाना गया |
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#लोदी_वंश
सैयद वंश का अंत कर बहलोल लोदी ने 1451 ई. में लोदी वंश की दिल्ली सल्तनत में स्थापना की थी। यह वंश 1526 ई. तक सत्ता में रहा और सफलतापूर्वक शासन किया। यह राजवंश दिल्ली सल्तनत का अंतिम सत्तारूढ़ परिवार था, जो अफगान मूल से था।
#लोदी_वंश_के_शासक :-
▪️बहलोल लोदी (1451 – 1489 ई.)
▪️सिकंदर लोदी (1489 – 1517 ई.)
▪️इब्राहिम लोदी (1517 – 1526 ई.)
#बहलोल_लोदी (1451 – 1489 ई.)
बहलोल लोदी ने 1451 ई. में लोदी राजवंश की स्थापना की और 1489 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। सैयद वंश के अंतिम शासक आलम शाह ने बहलोल लोदी के पक्ष में दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर स्वेच्छा से त्याग दिया था। बहलोल लोदी अफगान मूल का था। वह एक पश्तून परिवार में पैदा हुआ था। बहलोल लोदी, सय्यद वंश के मुहम्मद शाह के शासनकाल के दौरान, सरहिंद का राज्यपाल था, जो वर्तमान पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित है। बहलोल लोदी ने दिल्ली सल्तनत में बैठने के बाद “बहलोल शाह्गाजी” की उपाधि ली। उसने सरहिन्द के एक हिंदू सुनार की बेटी से शादी की।
🔹मृत्यु
▪️बहलोल लोदी की 1489 ई. में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, उसका पुत्र सिकन्दर लोदी दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठा।
#सिकंदर_लोदी (1489 – 1517 ई.)
1489 ई. में बहलोल लोदी के मृत्यु के बाद सिकंदर लोदी दिल्ली सल्तनत का उत्तराधिकारी हो गए और लोदी राजवंश के दूसरे शासक बना। उसके बचपन का नाम निजाम खान था, लेकिन सत्ता सम्भालने के बाद उसने अपना नाम “सुल्तान सिकन्दर शाह” रख दिया जो बाद में सिकन्दर लोदी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने 1489 ई. से 1517 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। सिकंदर लोदी, बहलोल लोदी का दूसरा पुत्र था और बारबक शाह, बहलोल लोदी का सबसे बड़ा पुत्र था, जो जौनपुर का वायसराय था।
🔹सिकंदर लोदी के प्रमुख कार्य
▪️उसने बंगाल, बिहार, चंदैरी, अवध व बुदेलखंड के राजाओ पर नियंत्रण करके दिल्ली सल्तनत को दोबारा स्थापित करने का प्रयास किया।
▪️भूमि मापन के लिए प्रमाणिक पैमाना गजे सिकन्दरी का प्रचलन किया।
▪️उसने 1503 ई. मे आगरा शहर बसाया और 1506 ई. मे अपनी राजधानी दिल्ली से आगरा ले आया।
▪️उसने नगरकोट के ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्ति को तोडकर उसके टुकडो को कसाइयो को माँस तोलने के लिए दे दिया था और हिंदूओ पर जज़िया लगाया।
▪️मुसलमानों के ताजीया निकालने एवं मुसलमान स्त्रियों के पीरो एवं संतो के मजार पर जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
▪️उसने ग्वालियर के किले पर पांच बार आक्रमण किया लेकिन राजा मानसिंह ने हर बार उसे हरा दिया।
🔹मृत्यु
▪️सिकंदर लोदो की मृत्यु 1517 ई. में गले के बीमारी की वजह से हुई उसके बाद उसका बेटा इब्राहिम लोदी राजा बना।
#इब्राहिम_लोदी (1517 – 1526 ई.)
इब्राहिम लोदी, सिकंदर लोदी का सबसे छोटा बेटा था। सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद इब्राहिम लोदी 1517 ई. में राजगद्दी पर बैठा और 1526 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। वह लोदी राजवंश के अंतिम राजा और दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था।
🔹शासन काल में कार्य
▪️वह एक साहसी राजा था उसके शासनकाल में बहुत से विद्रोह हुए।
▪️जौनपुर और अवध मे विद्रोह का नेतृत्व दरिया खान ने किया ।
▪️दौलत खान ने पंजाब में विद्रोह किया।
▪️खतौली की लड़ाई 1518 ई. में राणा सांगा के हाथों पराजित होना पड़ा।
▪️उसके ज़मींदार व चाचा आलम खान काबुल भाग गया और बाबर को भारत पर हमला करने का न्यौता दिया।
▪️पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ और इसमें लोदी की हार हुई।
🔹मृत्यु
▪️बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में 21 अप्रैल 1526 को पराजित कर इसे मार डाला और आगरा तथा दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया।
1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर ने मुगल वंश की नींव रखी जिसने लगभग 500 साल तक भारत पर राज किया। इस तरह दिल्ली सल्तनत का अंत हुआ ।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#प्लासी_का_युद्ध
प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नवाब सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। किंतु इस युद्ध को कम्पनी की जीत नही मान सकते कयोंकि युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। नवाब की तो पूरी सेना ने युद्ध मे भाग भी नही लिया था युद्ध के फ़ौरन बाद मीर जाफ़र के पुत्र मीरन ने नवाब की हत्या कर दी थी। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है। आईए जानते हैं विस्तार से-
#शौकतगंज_नवाब_बनना_चाहता_था-
गद्दी पर बैठते ही सिराजुद्दौला को शौकतगंज के संघर्ष का सामना करना पड़ा क्योंकि शौकतगंज नवाब बनना चाहता था। इसमें छसीटी बेगम तथा उसके दिवान राजवल्लाव और मुगल सम्राट का समर्थन उसे प्राप्त था इस लिए सिराजुद्दौला ने सबसे पहले उस आन्तरिक संघर्ष को सुलझाने का प्रयास किया। क्योंकि इसी के चलते बंगाल की राजनीति में अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था नवाब ने शौकतगंज की हत्या कर दी। और इसके पश्चात उसने अंग्रेजों से मुकाबला करने का निश्चय किया।
#अंग्रेज_द्वारा_नवाब_के_विरुद्ध_षडयंत्र-
प्रारंभ से ही अंग्रेजों की आखें बंगाल पर लगी हुई थी। क्योंकि बंगाल एक उपजाऊ और धनी प्रांत था। अगर बंगाल पर कम्पनी का अधिकार हो जाता तो उसे अधिक से अधिक धन कमाने की आशा थी। इतना ही नहीं वे हिन्दु व्यापारियों को अपनी ओर मिलाकर उन्हें नवाब के विरुद्ध भड़काना शुरु किया नवाब इसे पसन्द नहीं करता था।
#व्यापारिक_सुविधाओं_का_उपयोग-
मुगल सम्राट के द्वारा अंग्रेजों को निशुल्क सामुद्रिक व्यापार करने की छूट मिलि थी लेकिन अंग्रेजों ने इसका दुरुपयोग करना शुरु किया। वे अपना व्यक्तिगत व्यापार भी नि:शुल्क करने लगे और देशी व्यापारियों को बिना चुंगी दिए व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। इससे नवाब को आर्थीक क्षति पहुँचती थी। नवाब इन्हें पसन्द नहीं करता था जब, उन्होने व्यापारिक सुविधाओं के दुरुपयोग को बन्द करने का निश्चय किया तो अंग्रेज संघर्ष पर उतर आए।
#अंग्रेजों_द्वारा_किले_बन्दी-
इस समय यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ने की आशंका थी। जिसमें इंगलैण्ड और फ्रांस एक दूसरे के विरुद्ध लड़ने वाले थे अत: दूसरे देश में भी जो अंग्रेज और फ्रांसीसी थे। उन्हे युद्ध की आशंका थी। इसलिए अपनी- 2 स्थिति को मजबूत करने के लिए उन्होनें किलेबन्दी करना शुरु किया। नवाब इसे बर्दास्त नहीं कर सकता था।
#अंग्रेज_द्वारा_सिराजुद्दौला_को_नवाब_की_मान्यता
#नहीं_देना-
बंगाल की प्राचीन परम्परा के अनुसार अगर कोई नया नवाब गद्दी पर बैठता था तो उस दिन दरवार लगती थी। और उसके अधीन निवास करने वाले राजाओं, अमीरों या विदेशी जातियों के प्रतिनिधियों को दरबार में उपस्थित हो कर उपहार भेट करना पड़ता था। कि वे नये नवाब को स्वीकार करते हैं। परन्तु सिराजुद्दौला के राज्यभिषेक के अवसर पर अंग्रेजों का कोई प्रतिनिधि दरबार में हाजिर नहीं हुआ। क्योंकि वे सिराजुद्दौला को नवाब नहीं मानते थे इसके चलते भी दोनों के बीच संघर्ष की संम्भावना बढ़ती गई।
#नवाब_बदलने_की_कोशिश-
अंग्रेज सिराजुद्दौला को हटा कर किसी ऐसे व्यक्ति को नवाब बनाना चाहते थे जो उसके इशारे पर चलने के लिए तैयार हो इसके लिए अंग्रेजों ने प्रयास करना शुरु किया। ऐसी परिस्थिति में संघर्ष टाला नहीं जा सकता था।
#कलकत्ता_पर_आक्रमण-
जब नवाब ने किले बंदी करने को रोकने का आदेश जारी किया तो अंग्रेजों ने उसपर कोई ध्यान नहीं दिया वो किले का निर्माण करते रहे। इसपर नवाब क्रोधित हो उठा और 4 जुन 1756 को कासिमबाजार की कोठी पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेज सैनिक इस आक्रमण से घबड़ा गए और अंग्रेजों की पराजय हुई और कासिम बाजार पर नवाब का अधिकार हो गया। इसके बाद नवाब ने शिघ्र ही कलकत्ता के फोर्ट विलिय पर आक्रमण किया यहाँ अंग्रेज सैनिक भी नवाब के समक्ष टीक नहीं पाया और इसपर भी नवाब का अधिकार हो गया। इस युद्ध में काफी अंग्रेज सैनिक गिरफ्तार किये गये।
#काली_कोठरी_की_दुर्घटना-
उपर्युक्त लड़ाई में नवाब ने 146 अंग्रेज सैनिकों को कैद कर लिया तो उसे एक छोटी सी अंधेरी कोठरी में बन्द कर दिया इसकी लम्बाई 18 फिट और चौड़ाई 14- 10 फिट थी। यह अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया था और इसमें भारतीय अपराधियों को बन्द किया जाता था। चुँकि गर्मी का दिन था और युद्ध के परिम थे 123 सैनिकों की मृत्यु दम घुटने के कारण हो गई और 23 सैनिक बचे जिसमें हाँवेल एक अंग्रेज सैनिक भी था। उसी के इस घटना की जानकारी मद्रास के अंग्रेजों को दी। इसी दुर्घटना को काली कोठरी की दुर्घटना के नाम से जाना जाता है। इसके चलते अंग्रेजों का क्रोध भड़क उठा और वे नवाब से युद्ध की तैयारी करने लगे।
#अंग्रेजों_द्वारा_कलकत्ता_पर_पुन_अधिकार-
अपनी पराजय का बदला लेने के लिए अंग्रेज ने शीघ्र ही कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। इस समय नवाब ने मानिकचन्द को कलकत्ता का राजा नियुक्त किया था। लेकिन वह अंग्रेजों का मित्र और शुभचिन्तक था। फलत: अंग्रेजों की विजय हुई कलकत्ता नवाब के चंगुल से मुक्त हो गया। 9 फरवरी 1757 को दोनों के बीच अली नगर की संधि हुई और अंग्रेजों को फिर से सभी तरह के व्यवहारिक अधिकार उपलब्ध हो गया।
#फ्रांसीसीयों_पर_अंग्रेजों_का_आक्रमण-
अंग्रेजों ने फ्रांसीसीयों की वस्ती चन्द नगर पर आक्रमण कर दिया। और उसे अपने अधिन कर लिया। फ्रांसिसी नवाब के मित्र थे इसलिए नवाब इस घटना से काफी क्षुब्ध थे।
#मीरजाफर_के_साथ_गुप्त_संधि –
इसी समय अंग्रेजों ने नवाब को पदच्युत करने के लिए एक षडयंत्र रचा। इसमें नवाब के भी कई लोग शामिल थे। जैसे- रायदुर्लभ प्रधान सेनापति मीरजाफर और धनी व्यापाकिर जगत सेवक आदि। अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने का प्रलोभन दिया और इसके साथ गुप्त संधि की इस संधि के पश्चात नवाब पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होने अली नगर की संधि का उलंघन किया है और उसी का बहाना बनाकर अंग्रेज ने नवाब पर 22 जुन 1757 को आक्रमण कर दिया। प्लासी युद्ध के मैदान में घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ मीरजाफर तो पहले ही अंग्रेजों से संधि कर चुका था फलत: नवाब की जबरदस्त पराजय हुई। अंग्रेजों की विजय हुई। नवाब की हत्या कर दी गई और मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया।
#प्लासी_युद्ध_के_परिणाम-
प्लासी युद्ध के द्वारा बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। अंग्रेजों को नवाब बनाया गया। प्लासी का युद्ध वास्तव में कोई युद्ध नहीं था यह एक षडयंत्र और विश्वासघाति का प्रदर्शन था प्रसिद्ध इतिहासकार ‘पानीवकर’ के अनुसार प्लासी का युद्ध नहीं, परन्तु इसका परिणाम काफी महत्वपूर्ण निकला। इसलिए इसे विश्व के निर्णायक युद्धों में स्थान उपलब्ध है। क्योंकि इसी के द्वारा बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। क्लाइव ने इस युद्ध को क्रांति की संज्ञा दी है। वास्तव में यह एक क्रांति थी क्योंकि इसके द्वारा भारतीय इतिहास की धारा में महान परिवर्तन आ गया और एक व्यापारिक संस्था ने बंगाल की राजनितिक बागडोर अपने हाथों में ले ली। इसके विभिन्न तरह के परिणाम दृष्टिगोचर होते हैं।
#आर्थिक_परिणाम-
इस युद्ध के द्वारा अंग्रेजों को काफी आर्थिक लाभ पहुँचा मीरजाफर ने कम्पनी को 1 करोड़ 17 लाख रुपये दिये जिससे कम्पनी की आर्थीक स्थिति काफी मजबूत हो गई बंगाल की लुट से बी उसे काफी धन हाथ लगा। कम्पनी के मठ कर्मचारीयों को साढ़े 12 लाख रुपए मिले। क्लाइव को दो लाख 24 हजार रुपए मिले। इस युद्ध के पश्चात कम्पनी धीरे- 2 जागीदार बाद में बंगाल की दीवान बन गई। इस प्रकार इसके द्वारा भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। अंग्रेजों को पुन: व्यापार करने का अधिकार मिला मीरजाफर ने कम्पनी को घूस के रूप में 3 करोड़ रुपए प्रदान किए तथा व्यापार से भी अंग्रेजों ने 15 करोड़ का मुनाफा कमाया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#महाजनपद
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कुछ साम्राज्यों के विकास में वृद्धि हुयी थी जो बाद में प्रमुख साम्राज्य बन गये और इन्हें महाजनपद या महान देश के नाम से जाना जाने लगा था। इन्होंने उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी बिहार तक तथा हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों से दक्षिण में गोदावरी नदी तक अपना विस्तार किया। आर्य यहां की सबसे प्रभावशाली जनजाति थी जिन्हें 'जनस' कहा जाता था। इससे जनपद शब्द की उतपत्ति हुयी थी जहां जन का अर्थ "लोग" और पद का अर्थ "पैर" होता था। जनपद वैदिक भारत के प्रमुख साम्राज्य थे। महाजनपदों में एक नये प्रकार का सामाजिक-राजनीतिक विकास हुआ था। महाजनपद विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित थे। 600 ईसा पूर्व से 300 ईसा पूर्व के दौरान भारतीय उप-महाद्वीपों में सोलह महाजनपद थे।
#उनके_नाम_थे:-
1. अंग
2. अश्मक
3. अवंती
4. छेदी
5. गांधार
6. कम्बोज
7. काशी
8. कौशल
9. कुरु
10. मगध
11. मल्ल
12. मत्स्य
13. पंचाल
14. सुरसेन
15. वज्जि
16. वत्स
#मगध_साम्राज्य:
▪️मगध साम्राज्य ने 684 ईसा पूर्व से 320 ईसा पूर्व तक भारत में शासन किया।
▪️इसका उल्लेख महाभारत और रामायण में भी किया गया है।
▪️यह सोलह महाजनपदों में सबसे अधिक शक्तिशाली था।
▪️साम्राज्य की स्थापना राजा बृहदरथ द्वारा की गयी थी।
▪️राजगढ (राजगिर) मगध की राजधानी थी, लेकिन बाद में चौथी सदी ईसा पूर्व इसे पाटलिपुत्र में स्थानांतरित कर दिया गया था।
▪️यहां लोहे का इस्तेमाल उपकरणों और हथियारों का निर्माण करने के लिए किया जाता था।
▪️हाथी जंगल में पाये जाते थे जिनका इस्तेमाल सेना में किया जाता था।
▪️गंगा और उसकी सहायक नदियों के तटीय मार्गों ने संचार को सस्ता और सुविधाजनक बना दिया था।
▪️बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापदम नंद जैसे क्रूर और महत्वाकांक्षी राजाओं की कुशल नौकरशाही द्वारा नीतियों के कार्यान्वयन से मगध समृद्ध बन गया था।
▪️मगध का पहला राजा बिम्बिसार था जो हर्यंक वंश का था।
▪️अवंती मगध का मुख्य प्रतिद्वंदी था, लेकिन बाद में एक गठबंधन में शामिल हो गया था।
▪️शादियों ने राजनीतिक गठबंधनों के निर्माण में मदद की थी और राजा बिम्बिसार ने पड़ोसी राज्यों की कई राजकुमारियों से शादी की थी।
#हर्यंक_राजवंश:
▪️यह बृहदरथ राजवंश के बाद मगध पर शासन करने वाला यह दूसरा राजवंश था।
▪️शिशुनाग इसका उत्तराधिकारी था।
▪️राजवंश की स्थापना बिम्बिसार के पिता राजा भाट्य द्वारा की गयी थी।
▪️राजवंश ने 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 413 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया था।
▪️हर्यंक राजवंश के राजा इस प्रकार थे:
1. भाट्य
2. बिम्बिसार
3. अजातशत्रु
4. उदयभद्र
5. अनुरूद्ध
6. मुंडा
7. नागदशक
#बिम्बिसार:
▪️बिम्बिसार ने मगध पर 544 ईसा पूर्व से 492 ईसा पूर्व तक, 52 वर्ष शासन किया था।
▪️उसने विस्तार की आक्रामक नीति का पालन किया और काशी, कौशल और अंग के पड़ोसी राज्यों के साथ कई युद्ध लड़े।
▪️बिम्बिसार गौतम बुद्ध और वर्द्धमान महावीर का समकालीन था।
▪️उसका धर्म बहुत स्पष्ट नहीं है। बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख के अनुसार वह बुद्ध का एक शिष्य था, जबकि जैन शास्त्रों में उसका वर्णन महावीर के अनुयायी के रूप तथा राजगीर के राजा श्रेनीका के रूप में मिलता है।
▪️बाद में बिम्बिसार को उसके पुत्र अ़जातशत्रु द्वारा कैद कर लिया गया जिसने मगध के सिंहासन पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था। बाद में कारावास के दौरान बिम्बिसार की मृत्यु हो गई।
#अजातशत्रु
▪️अजातशत्रु ने 492- 460 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया था।
▪️उसने वैशाली के साथ 16 वर्षों तक युद्ध किया था और अंत में कैटापोल्ट्स की मदद से साम्राज्य को शिकस्त दी।
▪️उसने काशी और वैशाली पर आधिपत्य स्थापित करने के बाद मगध साम्राज्य का विस्तार किया था।
▪️उसने राजधानी राजगीर को मजबूत बनाया जो पाँच पहाड़ियों से घिरी हुई थी जिससे यह लगभग अभेद्य बन गयी थी।
#उदयन:
▪️उदयन या उदयभद्र अजातशत्रु का उत्तराधिकारी था।
उसका शासनकाल 460 ईसा पूर्व से 444 ईसा पूर्व तक चला था।
▪️उसने पटना (पाटलिपुत्र) के किले का निर्माण कराया था जो मगध साम्राज्य का केंद्र था
▪️उदयन का उत्तराधिकारी शिशुनाग था।
▪️शिशुनाग ने अवंती साम्राज्य का विलय मगध में कर दिया था।
▪️बाद में उसका उत्तराधिकारी नंद राजवंश बना।
#नंद_राजवंश:
▪️राजवंश का शासनकाल 345 ईसा पूर्व से 321 ईसा पूर्व तक चला था।
▪️महापदम नंद, नंद राजवंश का पहला राजा था जिसने कलिंग का विलय मगध साम्राज्य में कर दिया था।
▪️उसे सबसे शक्तिशाली और क्रूर माना जाता था यहां तक कि सिकंदर भी उसके खिलाफ युद्ध लड़ना नहीं चाहता था।
▪️नंद वंश बेहद अमीर बन गया था। उन्होंने अपने पूरे साम्राज्य में सिंचाई परियोजनाओं और मानकीकृत व्यापारिक उपायों की शुरूआत की थी।
▪️हर्ष और कठोर कराधान प्रणाली ने नंदों को अलोकप्रिय बना दिया था।
▪️अंतिम नंद राजा, घानानंद को चंद्रगुप्त मौर्य ने पराजित कर दिया था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#कर्नाटक_का_युद्ध
कर्नाटक का युद्ध – कर्नाटक का युद्ध अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य व्यापार को लेकर हुए संघर्ष थे। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच तीन कर्नाटक युद्ध हुए। 17वीं तथा 18वीं शताब्दियों में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य व्यापार को लेकर संघर्ष जारी था। ये दोनों ही व्यापार को बढ़ाने और अधिकाधिक लाभ उठाने हेतु अग्रसर थे।
इसी कारण अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों ने भारतीय राजनीति में भी दखल देना प्रारम्भ कर दिया। जिससे दोनों कम्पनियों के मध्य और कटुता आ गई। अब इनका मुख्य उद्देश्य व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर दूसरी कम्पनी को पूर्णतः मार्ग से हटाना हो गया था।
ये दोनों ही कम्पनियाँ यूरोपीय थीं और वहां भी इनके मध्य संघर्ष चलाता ही रहता था। जैसे ही यूरोप में संघर्ष शुरू होता, वैसे ही विश्व के अलग-अलग भाग में दोनों कम्पनियों के मध्य भी संघर्ष शुरू हो जाता था। भारत में आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष को कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है, ये युद्ध उस समय प्रारम्भ हुआ जब यूरोप में दोनों देशों के मध्य ऑस्ट्रिया पर अधिकार को लेकर संघर्ष शुरू हुआ। भारत में कुल 3 युद्ध लड़े गये जोकि वर्ष 1746-1763 के मध्य हुए। इसके परिणाम स्वरूप फ्रांसीसियों का भारत से पूर्णतः सफाया हो गया। महत्वपूर्ण युद्धों का वर्णन निम्नलिखित है.
#प्रथम_कर्नाटक_युद्ध (1746-1748)
▪️इस युद्ध के प्रारम्भ होने के समय फ्रांसीसियों का मुख्यालय पांडिचेरी में था तथा उनके अन्य कार्यालय जिंजी, मसूलीपट्टनम, करिकल, माही, सूरत और चन्द्रनगर में थे।
▪️अंग्रेजों के मुख्य कार्यालय मद्रास, बम्बई और कलकत्ता में थे।
▪️1740 में आस्ट्रिया पर उत्तराधिकार को लेकर यूरोप में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य संघर्ष शुरू हो गया।
▪️1746 में भारत में दोनों कम्पनियों में युद्ध शुरू हो गया।
▪️इस समय डूप्ले पांडिचेरी का फ्रैंच गवर्नर था और उसके नेतृत्व में फ्रेंच सेना ने अंग्रेजों को परास्त कर मद्रास को जीत लिया।
▪️प्रथम कर्नाटक युद्ध के दौरान लड़ा गया “सेंट टोमे का युद्ध” स्मरणीय है।
▪️सेंट टोमे का युद्ध- यह युद्ध फ्रांसीसी सेना तथा कर्नाटक के नवाब अनवरूद्दीन(1744-1749) के मध्य लड़ा गया। असल में जिस समय दोनों यूरोपीय कम्पनियाँ भारत में युद्ध कर रही थी, उस समय कर्नाटक के नवाब ने दोनों को ही युद्ध बन्द करने तथा देश की शांति व्यवस्था को भंग न करने के लिए आदेशित किया। डूप्ले ने अपनी कूटनीति से नवाब को मद्रास जीत कर देने का आश्वासन दिया। परन्तु बाद में वह अपनी इस शर्त से मुकर गया। ▪️जिस कारण नवाब ने अपनी सेना को फ्रांसीसियों से युद्ध हेतु भेजा। डूप्ले की महज 230 फ्रांसीसी और 700 भारतीयों की सेना ने नवाब की 10000 की सेना को परास्त कर अनुशासित यूरोपीय सेना की ढीली और असंगठित भारतीय सेना पर श्रेष्ठता को सिद्ध कर दिया।
▪️प्रथम कर्नाटक युद्ध यूरोप में 1748 में हुयी “एक्स-ला शापैल” की संधि से समाप्त हुआ। इस संधि से आस्ट्रिया का उत्तराधिकार का विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिया गया। इस संधि के अनुसार मद्रास अंग्रेजों को पुनः प्राप्त हुआ।
▪️इस युद्ध के दौरान दोनों ही दल बराबरी पर रहे परन्तु युद्धों में फ्रांसीसी श्रेष्ठता साफ थी।
#द्वितीय_कर्नाटक_युद्ध (1749-1754)
▪️कर्नाटक के प्रथम युद्ध में अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध कर चुके डूप्ले की राजनीतिक पिपासा जाग चुकी थी।
डूप्ले अब भारतीय राजनीति में भाग लेकर, अंग्रेजी कम्पनी को पूर्णतः भारत से विस्थापित करने की रणनीति बनाने लगा।
▪️उसे भारतीय राजनीति में दखल देने का अवसर हैदराबाद तथा कर्नाटक के उत्तराधिकार विवाद से मिला।
हैदराबाद- आसफजाह की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकार को लेकर नासिर जंग(पुत्र) और उसके भतीजे मुजफ्फरजंग (आसफजाह का पौत्र) के मध्य विवाद खड़ा हो गया था।
▪️कर्नाटक- कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा उसके बहनोई चन्दा साहिब के मध्य विवाद शुरू हुआ।
हैदराबाद और कर्नाटक में चल रहे इन विवादों से राजनीतिक बढ़त बनाने हेतु डूप्ले ने हैदराबाद में मुजफ्फरजंग और कर्नाटक में चंदा साहिब का सहयोग किया। अपरिहार्य रूप से अंग्रेजों को नासिर जंग और अनवरूद्दीन का सहयोग करना पड़ा।
▪️1749 में फ्रेंच सेना की सहायता से एक युद्ध में अनवरूद्दीन मारा गया तथा चंदा साहिब कर्नाटक का अगला नवाब बना।
▪️1750 में नासिर जंग भी फ्रेंच सेना से संघर्ष करता मारा गया और मुजफ्फरजंग हैदराबाद का नवाब बना दिया गया।
▪️डूप्ले इस समय तक अपनी शक्ति के चरम पर था। पर स्थिति परिवर्तित होने में देर नहीं लगी।
▪️अनवरूद्दीन का पुत्र मुहम्मद अली युद्ध में बचकर भाग गया था और उसने त्रिचनापल्ली में शरण ली। ▪️फ्रांसीसियों ने चन्दा साहिब की सेना के साथ मिलकर दुर्ग को घेर लिया। अंग्रेजों की तरफ से क्लाइव इस घेरे को तोड़ने में असफल रहा तो क्लाइव ने दबाव कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्कटा पर अधिकर कर लिया।
▪️1752 में स्ट्रिगर लारेन्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने त्रिचनापल्ली को बचा लिया और फ्रांसीसी सेना ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
▪️फ्रांसीसी अधिकारियों ने त्रिचनापल्ली में हुई हानि के लिए डूप्ले को जिम्मेदार ठहराया और उसे वापस फ्रांस बुला लिया गया।
▪️1754 में गोडाहू अगला फ्रांसीसी गवर्नर जनरल बनकर भारत आया।
▪️1755 में दोनों कम्पनियों के मध्य संधि हो गई।
#तृतीय_कर्नाटक_युद्ध (1756-1763)
▪️पूर्व की तरह ही यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही भाग था।
▪️इस युद्ध को सप्त वर्षीय युद्ध भी कहा जाता है।
▪️1756 में फ्रांसीसी सरकार ने काउन्ट डि लाली को अगला गवर्नर जनरल बना कर भारत भेजा।
▪️उसने भारत आते ही फोर्ड डेविड को जीत लिया और तंजौर पर 56 लाख रूपये बकाया के विवाद को लेकर युद्ध शुरू कर दिया, परन्तु वो इसमें असफल रहा जिससे फ्रांसीसी ख्याति को हानि पहुँची।
▪️उधर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को पराजित कर बंगाल पर अधिकार कर लिया था। इससे अंग्रेजों की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गयी थी।
▪️1760 में सर आयर कूट के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने फ्रांसीसियों को वांडिवाश के युद्ध में बुरी तरह पराजित किया।
▪️1761 में फ्रांसीसी पराजित होने के पश्चात पांडिचेरी लौट गए। मात्र 8 माह बाद ही अंग्रेजों ने इसे भी जीत लिया और शीघ्र ही माही तथा जिंजी भी अपने अधिकार में कर लिए।
▪️1763 में इस युद्ध के अंत में पांडिचेरी एवं कुछ अन्य प्रदेश किला बन्दी न करने की शर्त पर फ्रांसीसियों को लौटा दिए गए।
▪️इस तरह तृतीय कर्नाटक युद्ध एक निर्णायक युद्ध साबित हुआ और आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष का समापन हो गया, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुयी।
▪️अब अंग्रेजों को भारत पर पूरी तरह आधिपत्य स्थापित करने के लिए केवल भारतीय शासकों का ही सामना करना शेष था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#सैयद_वंश
दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला चौथा वंश था। इस वंश ने दिल्ली सल्तनत में 1414 से 1451 ई. तक शासन किया। उन्होंने तुग़लक़ वंश के बाद राज्य की स्थापना की। यह वंश मुस्लिमों की तुर्क जाति का यह आख़री राजवंश था।
#सैयद_वंश_के_शासक :-
▪️सैयद ख़िज़्र खाँ (1414 – 1421 ई.)
▪️मुबारक़ शाह (1421 – 1434 ई.)
▪️मुहम्मद शाह (1434 – 1445 ई.)
▪️आलमशाह शाह (1445 – 1476 ई.)
#सैयद_ख़िज़्र_खाँ (1414 – 1421 ई.)
ख़िज़्र ख़ाँ ने य्यद वंश की स्थापना की । ख़िज़्र ख़ाँ ने 1414 ई. में दिल्ली की राजगद्दी पर अधिकार कर लिया। ख़िज़्र ख़ाँ ने सुल्तान की उपाधि न धारण कर अपने को ‘रैयत-ए-आला’ की उपाधि से ही खुश रखा। जब भारत को लूटकर तैमूर लंग वापस जा रहा था, उसने ख़िज़्र ख़ाँ को मुल्तान, लाहौर एवं दीपालपुर का शासक नियुक्त कर दिया था। ख़िज़्र ख़ाँ के शासन काल में पंजाब, मुल्तान एवं सिंध पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गये।
सुल्तान को राजस्व वसूलने के लिए भी प्रतिवर्ष सैनिक अभियान का सहारा लेना पड़ता था। उसने अपने सिक्कों पर तुग़लक़ सुल्तानों का नाम खुदवाया। फ़रिश्ता ने ख़िज़्र ख़ाँ को एक न्यायप्रिय एवं उदार शासक बताया है।
🔹मृत्यु
▪️20 मई, 1421 को ख़िज़्र ख़ाँ की मृत्यु हो गई।
▪️फ़रिश्ता के अनुसार ख़िज़्र ख़ाँ की मृत्यु पर युवा, वृद्ध दास और स्वतंत्र सभी ने काले वस्त्र पहनकर दुःख प्रकट किया।
#मुबारक़_शाह (1421 – 1434 ई.)
ख़िज़्र ख़ाँ की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनका पुत्र मुबारक शाह ने दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ली। अपने पिता के विपरीत उन्होंने अपने आप को सुल्तान के रूप में घोषित किया।
🔹मुबारक शाह के कार्य
▪️इसने यमुना नदी के किनारे 1434 ई0 में मुबारकबाद नामक नगर की स्थापना की।
▪️मुबारक शाह ने ‘शाह’ की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम के सिक्के जारी किये।
▪️उसने अपने नाम से ‘ख़ुतबा (प्रशंसात्मक रचना)’ पढ़वाया और इस प्रकार विदेशी स्वामित्व का अन्त किया।
▪️मुबारक शाह के समय में पहली बार दिल्ली सल्तनत में दो महत्त्वपूर्ण हिन्दू अमीरों का उल्लेख मिलता है।
▪️उसने विद्धान ‘याहिया बिन अहमद सरहिन्दी’ को अपना राज्याश्रय प्रदान किया था। उसके ग्रंथ ‘तारीख़-ए-मुबारकशाही’ से मुबारक शाह के शासन काल के विषय में जानकारी मिलती है।
🔹मृत्यु
▪️मुबारक शाह के वज़ीर सरवर-उल-मुल्क ने षड़यन्त्र द्वारा 19 फ़रवरी, 1434 ई. को मुबारक शाह की हत्या कर दी।
#मुहम्मद_शाह (1434 – 1445 ई.)
मुबारक शाह ले दत्तक पुत्र मुहम्मद शाह (मुहम्मद बिन खरीद खाँ) को वज़ीर सरवर-उल-मुल्क एवं अन्य अमीरों में मिलकर 19 फ़रवरी 1434 को दिल्ली का सुल्तान बना दिया। इसने मुल्तान के सुबेदार वहलोल को ‘खान-ए-खाना’ की उपाधि दी। मुहम्मद शाह नाममात्र का शासक था। शासन पर पूर्ण नियंत्रण वज़ीर सरवर-उल-मुल्क का था। मुहम्मद शाह के शासक बनते ही वजीर ने शस्त्रागार, राजकोष एवं हाथियों पर आधिपत्य कर लिया। मुहम्मद शाह को मरने के लिए वज़ीर सरवर-उल-मुल्क षडयंत्र कर रहा था। इससें पहले ही मुहम्मद शाह ने वजीर व उसके समर्थकों को मार दिया। मुहम्मद शाह ने कमाललमुल्क को नया वजीर बनाया।
1440 ई. में महमूद खिलजी ने मुहम्मद शाह पर आक्रमण किया, लेकिन युद्ध के बाद दोनों में संधि हो गई। बहलोल लोदी को मुहम्मद शाह ने अपने पुत्र की संज्ञा दी।
🔹मृत्यु
▪️बहलोल लोदी ने 1443 ई. में दिल्ली पर आक्रमण कर लिया। उसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई। लेकिन कुछ विद्वान् उसकी मृत्यु 1445 ई. में मानते है।
#आलमशाह_शाह (1445 – 1476 ई.)
आलमशाह शाह (अलाउद्दीन शाह), मुहम्मद शाह का पुत्र था। 1445 ई. में मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद सरदारों ने उसके पुत्र को अलाउद्दीन आलमशाह की उपाधि से इस विनिष्ट राज्य का शासक घोषित किया, जिसमें अब केवल दिल्ली शहर और अगल-बगल के गाँव बच गये थे। आलमशाह शाह बहुत कमजोर और अयोग्य था। उसने 1451 ई. में दिल्ली का राजसिंहासन बहलोल लोदी को दे दिया तथा निन्दनीय ढंग से 1447 ई. में दिल्ली छोड़कर अपने प्रिय स्थान बदायूँ चला गया।
🔹मृत्यु
▪️1476 ई. में अलाउद्दीन शाह (आलमशाह शाह) की मृत्यु हो गई।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#प्राचीन_धार्मिक_आन्दोलन
छठी सदी ई.पू. के उत्तरार्द्ध में मध्य गंगा के मैदानों में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ जिनमें जैन और बौद्ध सर्वाधिक महत्वपूर्ण सम्प्रदाय थे।
इस दौर में नए धर्मो के उदय के पीछे कई कारण विद्यमान थे किंतु ‘पूर्वोत्तर भारत में नई कृषिमूलक अर्थव्यवस्था का विस्तार’ सबसे प्रमुख कारण था। आईए जानते हैं इन महत्वपूर्ण धर्मो के बारे में-
#जैन_धर्म :
▪️जैन परम्परा के अनुसार उनके धर्म में 24 तीर्थकर हुए है जिनमें ऋषभदेव प्रथम, पार्श्वनाथ 23वें तथा महावीर 24वें तीर्थकर थे।
▪️पार्श्वनाथ के पूर्व के तीर्थकरों की ऐतिहासिकता संदिग्ध है हालाँकि ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद में है।
▪️वर्धमान महावीर का जन्म 540 ई.पू. मे वैशाली के कुण्डग्राम में हुआ उनके पिता ‘सिद्धार्थ’ क्षत्रिय कुल के प्रधान थे तो माता ‘त्रिशला’ लिच्छवी नरेश चेटक की बहन थी।
▪️महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग कर दिया तथा 12 वर्षो की कठिन तपस्या के के बाद जुम्भिकग्राम के समीप उन्हें ‘कैवल्य’ की प्राप्ति हुई।
▪️बौद्ध साहित्य में महावीर को निगण्ठ-नाथपुत्त कहा गया है।
▪️ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर केवलिन, जिन (विजेता), अर्ह (योग्य), निर्ग्रथ (बंधन रहित) कहलाए।
▪️जैन धर्म कर्मवाद पर आधारित था तथा कठिन तप पर विश्वास करता था।
▪️जैन धर्म के ‘आचरांग सूत्र’ में महावीर के कठिन तप का वर्णन किया गया है।
▪️जैन धर्म के पाँच व्रत हैं- अहिंसा (हिंसा न करना), अमृषा(झूठ न बोलना), अचौर्य(चोरी न करना), अपरिग्रह (सम्पति अर्जित नहीं करना) तथा ब्रम्हाचर्य (इंद्रिय निग्रह करना)। शुरूआत के चार व्रत पार्श्वनाथ के समय से चले आ रहे थे तथा पाँचवा व्रत महावीर ने जोड़ा।
▪️जैन भिक्षुओं के लिए पंच महाव्रत तथा गृहस्थों के लिए पाँच अणुव्रत की व्यवस्था हैं।
▪️जैन धर्म में देवताओं का अस्तित्व स्वीकार किया गया है किंतु उनका स्थान जिन से नीचे रखा गया है।
▪️महावीर के अनुसार पूर्वजन्म में अर्जित पुण्य या पाप के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है। साथ ही उनके अनुसार शुद्ध व अच्छे आचरण वाले निम्न जाति के लोग भी मोक्ष पा सकते हैं।
▪️जैन धर्म में मुख्यत: सांसरिक बंधनों से छुटकारा पाने के उपाय बताए गए हैं जो सम्यक् ज्ञान, सम्यक् ध्यान और सम्यक आचरण से प्राप्त किया जा सकता है। इसे ही जैन त्रिरत्न कहा गया है।
▪️जैन धर्म में युद्ध व कृषि दोनो वर्जित हैं क्योंकि इससे हिंसा होती है। हालाँकि जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था की उतनी कठोर निंदा नहीं है जितनी बौद्ध धर्म में है।
▪️जैन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता हे। उनके अनुसार पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है।
▪️जैन धर्म के अनुसार सृष्टि शाश्वत है तथा यह 6 तत्वों जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, काल तथा पुद्गल (सांसारिक कार्य) से मिलकर बनी है।
▪️जैन धर्म अनीश्वरवादी है तथा इसका विश्वास है कि ये संसार त्याज्य है। इस हिसाब से इसे निवृत्तिमूलक धर्म कहा जाता है।
▪️जैन धर्म मोक्ष से संबधित आस्रव (जीव का कर्म की ओर आकर्षण), संवर (जीव का कर्म से मोहभंग) तथ निर्जरा (विद्यमान कर्म का क्षय हो जाना) शब्दावलियाँ मिलती हैं। निर्जरा कें अंतर्गत ही संथारा या सल्लेखना पद्धिति आती है।
▪️स्यादवाद या सप्तीभंगनीय जैन धर्म का महत्वपूर्ण दर्शन है जो ‘ज्ञान की सापेक्षिकता’ की बात करता है।
▪️कालांतर मं जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बँट गया- श्वेताम्बर (सफेद वस्त्र धारण करने वाला) तथा दिगंबर (नग्न रहने वाला)।
▪️एक परंपरा के अनुसार महावीर के निर्वाण के 200 वर्षो बाद मगध में भारी अकाल पड़ा। फिर प्राण बचाने बहुत से जैन बाहुभद्र के नेतृत्व में दक्षिण चले गए। ये दक्षिणी जैन दिगंबर कहलाए तथा जो स्थलबाहु के नेतृत्व में मगध में ही रह गए जैन श्वेताम्बर कहलाएं।
▪️श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार 19वें तीर्थकर ‘मल्लिनाथ’ स्त्री हैं जबकि दिगंबर इन्हें पुरूष मानते है।
▪️यद्यपि जैन धर्म आरंभ में मर्तिपूजक नहीं था किंतु बाद मतें लोग महावीर और अन्य तीर्थकरों की पूजा करने लगे।
▪️प्रथम जैन संगीति गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर देवर्धि क्षमाश्रवण की अध्यक्षता में सम्पादित हुई। इसी सम्मेलन में प्राकृत भाषा में जैन में जैन ग्रंथो का संकलन हुआ।
▪️जैन धर्म का प्राचीनतम साहित्य ‘पूर्व’ कहलाता है जिसकी संख्या 14 थी। कालांतर में इसका संकलन ‘आगम’ के रूप में हुआ जिसकी संख्या 46 है।
▪️प्रमुख जैन ग्रंथोमें हेमचंद्र रचित परिशिष्ट पर्व तथा त्रिषष्ठिशलाकाचरित और हरिभद्र सूरी रचित अनेकांत विजय इत्यादि हैं।
▪️जैन धर्म को अनेक शासकों का संरक्षण प्राप्त था जिनमें चंद्रगुप्त मौर्य, महापद्मनंद, अमोघवर्ष तथा खारवेल इत्यादि महत्वपूर्ण शासक है।
▪️गंग शासकों के अधीन एक सामंत चामुण्ड राय ने कर्नाटक कें श्रवणबेलगाला में गोमतेश्वर की प्रतिमा बनवाई।
▪️468 ई.पू. मे महावीर का निर्वाण राजगीर के समीप पावापुरी में हुआ।
#बौद्ध_धर्म :
▪️गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में शाक्य क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ।
▪️गौतम के पिता शुद्धोधन गणतांत्रिक शाक्यों के प्रधान थे तथा उनकी माता महामाया कोसल राजवंश से संबद्ध थी। इस प्रकार महावीर की तरह बुद्ध भी उच्च कुल के थे।
▪️29 वर्ष की अवशस्था में बुद्ध ने महाभिनिष्क्रमण (गुह त्याग) कर दिया तथा 35 वर्ष की अवस्था में उन्हें निर्वाण (ज्ञान) प्राप्त हुआ।
▪️उन्होने अपना प्रथम उपदेश, जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहते है, सारनाथ में दिया।
▪️महात्मा बुद्ध के उपदेशों में व्यावहारिकता अधिक है। उन्होंने चार आर्य सत्यों का प्रतिपादन किया- (i) दु-ख (ii) दु:ख समुदाय (iii) दु:ख निरोध (iv) दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा। चौथे आर्य सत्य के अंतर्गत ही आष्टांगिक मार्ग की अवधारणा दी गई है। बुद्ध, धम्म तथा संघ बौद्ध त्रिरत्न है।
▪️बुद्ध के अनुसार लोग काम(इच्छा, लालसा) के कारण दु:ख पाते है। काम पर विजय पाई जाए तो निर्वाण प्राप्त हो जाएगा।
▪️बौद्ध धर्म ईश्वर और आत्मा में विश्वास नहीं करता है इसलिए इसे अनीश्वरवादी और अनात्मवादी कहा गया है।
बौद्ध धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है किंतु यहाँ पुनर्जन्म का संदर्भ चेतना से लिया जाता है।
▪️कई मायनों में बौद्ध धर्म को ‘आशावादी’ कहा जाता है।
▪️प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात् कारणता का सिद्धात का अर्थ है किसी वस्तु के होने पर किसी अन्य वस्तु की उत्पति होती है।
▪️बौद्ध सिद्धांत क्षण भंगवाद के अनुसार सृष्टि नश्वर है।
बौद्ध धर्म ‘प्रयोजनवादी’ है। अर्थात् यह पारलौकिक जीवन के बजाय ‘इहलौकिक’ जीवन पर अधिक बल देता है।
▪️बौद्ध धर्म में वर्ण व्यवस्था की कटु आलोचना की गई है तथा संघ में सभी वर्णा तथा स्त्रीयों का प्रवेश स्वीकार किया गया।
▪️हालाँकि संघ में प्रवेश के लिये बच्चों को अपने माता-पिता से, दासों को अपने स्वामी से, कर्जदारों को देनदारों से तथा स्त्री को अपने पति से अनुमति लेनी होती थी।
▪️बौद्ध भिक्षु वर्षा काल के दिनों में एक ही स्थान पर रहते थे जिसे वस्सस कहा जाता था। इसके बाद पवारना के तहत यह पूछा जाता था कि उन्होंने कोई पाप तो नहीं किया है।
#बौद्ध_संगीति :
▪️प्रथम बौद्ध संगीति अजातशत्रु के शासनकाल में 483 ई. पू. में राजगृह में सम्पादित हुई। इसके अध्यक्ष महाकस्सप थे तथा इसमें आनंद तथा उपालि ने क्रमश: सुत्त पिटक और विनय पिटक का संकलन किया।
▪️द्वितीय बौद्ध संगीति कालाशोक के शासन काल में 383 ई. पू. में वैशाली में सम्पादित हुई। इसकी अध्यक्षता साबकमीर ने की। इस संगीति में मठ संबंधी नियम को लेकर मतभेद हो गया तथा बौद्ध धर्म ‘स्थिरवादी/थेरवादी’ तथा महासंघिक में बँट गया।
▪️थेरवादी घूम-घूम कर भिक्षावृत्ति पर बल देते थे जबकि महासंघिक एक स्थान पर रहकर।
▪️तृतीय बौद्ध संगीति अशोक के समय 251 ई.पू. में पाटिलपुत्र में हुई। इसके अध्यक्ष मोग्गलिपुत्तस्स थे। इसमें अभिधम्मपिटक का संकलन हुआ।
हीनयान :
1. बुद्ध एक महापुरूष थे।
2. भाषा-पालि
3. प्रतीक-बंदर
4. सर्वोच्च आदर्श-अर्हत
महायान :
1. बुद्ध देवता थे।
2. भाषा-संस्कृत
3. प्रतीक-बिल्ली
4. बेधिसत्व की अवधारणा
▪️ चतुर्थ बौद्ध संगीति ईर्स्वी की प्रथम शाताब्दी में कश्मीर के कुण्डलवन में सम्पादित हुई इस समय कनिष्क का शासन था। इस सभा की अध्यक्षता वसुमित्र की तथा वश्वघोष उपाध्यक्ष थे। इस संगीति में बौद्ध धर्म महायान तथा हीनयान में विभाजन हो गया।
▪️सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेश, विनयपिटक में संघ के नियम तथा अभिधम्मपिटक में बौद्ध दर्शन हैं।
▪️जातकों में बुद्ध के पूर्व जन्म ककी काल्पनिक कथाएँ है तथा निकायों में बौद्ध सिद्धांत तथा कहानियाँ संकलित है।
▪️नागसेन द्वारा रचित मिलिन्दपण्हो ग्रंथ पालि भाषा में जबकि अश्वघोष रचित बुद्धचरित तथा सौन्दरानंद संस्कृत भाषा में।
▪️बुद्धघोष द्वारा रचित ‘विसुद्धमग्ग’ हीनयान शाखा का ग्रंथ है।
▪️483 ई.पू. में कुशीनगर नामक स्थान पर महात्मा बुद्ध की मृत्यु (महापरिनिर्वाण) हो गई।
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