Tuesday, June 2, 2020

Amazing History of India...

Amazing History of India... 

#आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#उग्रपंथ_और_बंगाल_विभाजन...

उग्रपंथियों का राजनीतिक उदय कांग्रेस के अन्दर ही बंगाल विभाजन विरोधी प्रदर्शनों से हुआ था|जब ब्रिटिश सरकार ने बंगाल के लोगों द्वारा किये जा रहे जन प्रदर्शनों के बावजूद बंगाल के विभाजन को रद्द करने से मना कर दिया तो अनेक युवा नेताओं का सरकार से मोहभंग हो गया, इन्हें ही नव-राष्ट्रवादी या उग्रपंथी कहा गया| लाला लाजपत राय,बाल गंगाधर तिलक,बिपिन चंद्र पाल और अरविन्द घोष प्रमुख उग्रपंथी नेता थे|उन्हें उग्रपंथी कहा गया क्योकि उनका मानना था कि सफलता केवल उग्र माध्यमों से ही प्राप्त की जा सकती है|

#उग्रपंथ_के_उदय_के_कारण

1.नरमपंथियों/उदारवादियों द्वारा सिवाय भारतीय परिषद् अधिनियम(1909) के तहत विधान परिषदों के विस्तार के,कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल न कर पाना |

2.1896-97 के प्लेग और अकाल,जो भारत के लोगों की आर्थिक स्थिति में ह्रास का कारण बना,के बाद भी ब्रिटिशों की शोषणकारी नीतियों में कोई बदलाव नहीं आया|

3.दक्षिण अफ्रीका में भारतियों के साथ रंग-भेद|

4.1904-05 की रूस-जापान युद्ध की घटना ने राष्ट्रीय जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी|

#प्रमुख_उग्रपंथी/गरमपंथी

• बाल गंगाधर तिलक: इन्हें ‘लोकमान्य’  भी कहा जाता है| इनके द्वारा निकाले गए ‘मराठा’(अंग्रेजी में) व ‘केसरी’(हिंदी में) नाम के साप्ताहिक पत्रों ने ब्रिटिश शासन पर हमलों में क्रांतिकारी भूमिका निभाई|1916 में इन्होने पूना में होमरूल लीग की स्थापना की और नारा दिया कि “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर रहूँगा”|

• लाला लाजपत राय:इन्हें ‘शेरे-पंजाब’ या ‘पंजाब का शेर’ कहा जाता था|इन्होने स्वदेशी आन्दोलन  में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा इन्होने ही दिया था|

• बिपिन चन्द्र पाल:ये पहले उदारवादी थे लेकिन बाद में उग्रपंथी बन गए| इन्होने स्वदेशी आन्दोलन  में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी|अपने प्रभावशाली भाषणों व लेखन के द्वारा इन्होनें राष्ट्रवाद के विचार को देश के कोने-कोने तक पहुँचाया|

• अरविन्द घोष:ये एक अन्य उग्रपंथी नेता थे जिन्होनें स्वदेशी आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई थी|

#बंगाल_का_विभाजन

बंगाल विभाजन भारत में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 1905 में लागू किया किया था जिसके कारण निम्नलिखित थे-

• बंगाली राष्ट्रवाद की ताकत को तोड़ना क्योकि बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का केंद्र था|

• बंगाल में हिन्दुओं व मुस्लिमों को विभाजित करना|

• यह दर्शाना की ब्रिटिश सरकार इतनी शक्तिशाली है कि वह जो चाहे कर सकती है|

लेकिन विभाजन ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति जन को जागृत कर जन-आन्दोलन का रूप दे दिया जिसका परिणाम बहिष्कार और स्वदेशी आन्दोलन के रूप में दिखाई दिया|


#आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#जलियांवाला_बाग_हत्याकांड...

बात 13 अप्रैल 1919 की है जब एक प्रतिबंधित मैदान हो रहे जनसभा के एकत्रित निहत्थी भीड़ पर, बगैर किसी चेतावनी के, जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश सैनिकों ने अंधा-धुंध गोली चला दी थी। यह जनसभा जलियाँवाला बागमें हो रही थी, इसलिए इसे जलियाँवाला बाग हत्याकांड भी बोला जाता है। इस जनसभा की मुखबिरी हंसराज नामक भारतीय ने  किया था और उसके सहयोग से इस हत्याकांड की साज़िश रची गयी थी।

13 अप्रैल को यहाँ एकत्रित यह भीड़ दो राष्ट्रीय नेताओं –सत्यपाल और डॉ.सैफुद्दीन किचलू ,की गिरफ्तारी का विरोध कर रही थी। अचानक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जनरल डायर ने अपनी सेना को निहत्थी भीड़ पर,तितर-बितर होने का मौका दिए बगैर, गोली चलाने के आदेश दे दिए और 10 मिनट तक या तब तक गोलियां चलती रहीं जब तक वे ख़त्म नहीं हो गयीं। इन 10 मिनटों, (कांग्रेस की गणना के अनुसार) एक हजार लोग मारे गए और लगभग दो हजार लोग घायल हुए। गोलियों के निशान अभी भी जलियांवाला बाग़ में देखे जा सकते है,जिसे कि अब राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है। यह नरसंहार पूर्व-नियोजित था और जनरल डायर ने गर्व के साथ घोषित किया कि उसने ऐसा सबक सिखाने के लिए किया था और अगर वे लोग सभा जारी रखते तो उन सबको वह मार डालता। उसे अपने किये पर कोई शर्मिंदगी नहीं थी। जब वह इंग्लैंड गया तो कुछ अंग्रेजों ने उसका स्वागत करने के लिए चंदा इकट्ठा किया। जबकि कुछ अन्य डायर के इस जघन्य कृत्य से आश्चर्यचकित थे और उन्होंने जांच की मांग की । एक ब्रिटिश अख़बार ने इसे आधुनिक इतिहास का सबसे ज्यादा खून-खराबे वाला नरसंहार कहा।

21 वर्ष बाद ,13 मार्च,1940 को,एक क्रांतिकारी भारतीय ऊधम सिंह ने माइकल ओ डायर की गोली मारकर ह्त्या कर दी क्योंकि जलियांवाला हत्याकांड की घटना के समय वही पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था। नरसंहार ने भारतीय लोगों में गुस्सा भर दिया जिसे दबाने के लिए सरकार को पुनः बर्बरता का सहारा लेना पड़ा। पंजाब के लोगों पर अत्याचार किये गए,उन्हें खुले पिंजड़ों में रखा गया और उन पर कोड़े बरसाए गए। अख़बारों पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए और उनके संपादकों को या तो जेल में डाल दिया गया या फिर उन्हें निर्वासित कर दिया गया। एक आतंक का साम्राज्य ,जैसा कि 1857 के विद्रोह के दमन के दौरान पैदा हुआ था,चारों तरफ फैला हुआ था। रविन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा उन्हें प्रदान की गयी नाईटहुड की उपाधि वापस कर दी। ये नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

#जलियांवाला_बाग_हत्याकांड_में_कितने_लोग
#मारे_गए?

जलियांवाला बाग हत्याकांड के दौरान हुई मौतों की संख्या पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं था। लेकिन अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।

दिसंबर,1919 में अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें किसानों सहित बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। यह स्पष्ट है कि इस नरसंहार ने आग में घी का काम किया और लोगों में दमन के विरोध और स्वतंत्रता के प्रति इच्छाशक्ति को और प्रबल कर दिया।


#मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास
#सिख_साम्राज्य_का_उदय...

सिखों के दसवें व अंतिम गुरू गोविंदसिंह(1675-1699) ने खालसा पंथ की स्थापना की और गुरू प्रथा को समाप्त कर पांचवे गुरु अर्जुन देव द्वारा स्थापित “गुरू ग्रंथ साहिब” को ही अगला गुरू बताया। गुरू गोविंद सिंह की हत्या गुल खां नामक पठान ने 07 अक्तूबर 1708 को की थी। मृत्यु से पूर्व इनके द्वारा बंदा सिंह बहादुर को एक हुकमनामा के साथ पंजाब भेजा। इस हुकमनामा में लिखा था कि आज से आपका (सिखों) नेता बंदा सिंह बहादुर होगा।

#बंदा_सिंह_बहादुर

▪️बंदा सिंह बहादुर को सिखों का राजनैतिक गुरू भी कहा जाता है।
▪️बंदा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर में 27 अक्तूबर 1670 ई० में पूंछ जिले के राजोरी गाँव में हुआ था।
▪️बंदा सिंह बहादुर का वास्तविक नाम लक्ष्मण देव था।
▪️लक्ष्मण देव को बचपन से ही कुश्ती और शिकार आदि का शौक था।
▪️15 वर्ष की आयु में एक गर्भवती हिरन का उनके हाथों शिकार हो जाने से वह बहुत शोक में पड़ गये और इस घटना से अपना घर-बार छोड़ कर बैरागी हो गये।
▪️वह जानकी दास नामक एक बैरागी के शिष्य बने। अपना नाम बदल कर माधोदास कर लिया।
▪️कुछ समय पश्चात वह नांदेड क्षेत्र को चले गए जहाँ गोदावरी के तट पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की।
▪️03 सितंबर 1708 को नांदेड में सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह जी इस आश्रम में पधारे और उन्हें सिख बनाकर उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रख दिया।
▪️गुरूगोविंद सिंह जी की मृत्यु के बाद उनकी इच्छानुरूप बंदा सिंह बहादुर पंजाब गए और सिखों के अगले नेता बने।
▪️बंदा सिंह बहादुर और उनकी फौज ने सबसे पहले सोनीपत और फिर कैथल पर हमला किया।
▪️12 मई 1710 को छोटे साहिबजादों (गुरू गोविंद सिंह के दोनों छोटे बेटे बाबा जोरावर सिंह व फतेह सिंह) को शहीद करने वाले वजीर खां की हत्या कर दी और सरहिंद पर कब्जा कर लिया।
▪️बंदा सिंह बहादुर का उद्देश्य पंजाब में सिख राज्य स्थापित करना था। इन्होंने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।
▪️इन्होंने गुरूनानक और गुरू गोविंद सिंह के नाम के सिक्के भी चलवाये।
▪️मुगल बादशाह फारूख सियर की फौज ने अब्दुल समद खां के नेतृत्व में इन्हें गुरूदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरूदास नंगल गाँव में कई महीनों तक घेरे रखा।
▪️खाने-पीने की सामग्री के आभाव के कारण उन्होंने 07 दिसंबर 1715 को आत्मसमर्पण कर दिया।
▪️फरवरी 1716 को 794 सिखों के साथ बांदा सिंह बहादुर को दिल्ली लाया गया।
▪️जहां 5 मार्च से 13 मार्च तक रोज 100 सिखों को फांसी दी गयी।
▪️16 जून 1716 को फरूखसियर के आदेश पर बंदा सिंह तथा उनके मुख्य सैन्य अधिकारी के शरीर के टुकडे-टुकडे कर दिए गए।
▪️मरने से पूर्व बंदा सिंह बहादुर द्वारा किए गए कार्य –
— कृषकों को बड़े जमींदारों की दासता से मुक्ति दिलाई।
— इनके राज में मुसलमानों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता थी।
— इनकी स्वंय की सेना में 5000 मुस्लिम सैनिक थे।

#बंदा_सिंह_बहादुर_के_पश्चात_और_राजा_रणजीत
#सिंह_से_पूर्व

▪️बंदा सिंह बहादुर के पश्चात अच्छे नेतृत्व की कमी के कारण सिख कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बट गए।
▪️1748 में नवाब कर्तुर सिंह की पहल से सभी सिख टुकडियों का दल खालसा में विलय हुआ।
▪️इस दल खालसा का नेतृत्व जस्सा सिंह आहलुवालिया को सौंपा गया।
▪️बाद में इसे 12 दलों में विभाजित कर हर दल को मिसल(अरबी शब्द, अर्थ “बराबर”) कहा गया।
▪️सभी मिसल में से सबसे प्रमुख था सुकरचकिया। इसके मुखिया महारसिंह थे। महाराजा रणजीत सिंह का जन्म वर्ष 13 नवंबर 1780 में गुजरांवाला (वर्तमान पाकिस्तान) में इन्ही महासिंह के घर में हुआ था।

#महाराजा_रणजीत_सिंह

▪️1798-1799 में रणजीत सिंह लाहौर के शासक बने 12-अप्रैल 1801 को रणजीत सिंह ने महाराजा की उपाधि धारण की।
▪️गुरूनानक देव जी के वंशज ने इनकी ताज पोशी की।
▪️इन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया।
▪️महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाई लड़ी और उन्हें पश्चिम पंजाब की ओर खदेड़ दिया।
▪️महाराजा रणजीत सिंह का राज्य सूबों में बटा हुआ था । जिसमें से प्रमुख सूबे थे-
— पेशावर
— कश्मीर
— मुल्तान
— लाहौर
▪️अंग्रेज सिखों के बड़ते राज्य से भयभीत थे तथा जिस कारण सिखों से संधि कर अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करना चाहते थे। अमृतसर की संधि 25 अप्रैल 1809 को रणजीत सिंह और अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कंपनी के बीच हुई थी।
— उस समय गवर्नर जनरल लार्ड मिन्टो था परन्तु संधि चार्ल्स मेटकाफ के नेतृत्व में हुई थी तथा संधि पर हस्ताक्षर भी चार्ल्स मेटकाफ के द्वारा ही किए गए ।
— इस संधि से सतलज के पूर्व का भाग अंग्रेजों के हाथों में आया तथा सतलज रणजीत सिंह के राज्य की पूर्वी सीमा बन गई।
▪️महाराजा रणजीत सिंह के दो प्रमुख मंत्री फ़कीर अजीजुद्दीन(विदेश मंत्री) एवं दीनानाथ(वित्त मंत्री) थे।
▪️शाहशूजा जोकि एक अफगानी अमीर था, दोस्त मुहम्मद से हारकर कश्मीर में पनाह लेकर रह रहा था को कश्मीर के सूबेदार आत्ममुहम्मद ने शेरगढ़ के किले में बंदी बना रखा था।
▪️कोहिनूर हीरा, महाराजा रणजीत सिंह को इसी शाहशूजा को रिहा कराने के ऐवज में शाहशूजा की पत्नी वफा बेगम द्वारा दिया गया था।
▪️27 जून 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गयी।
▪️रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों में तीन पुत्र मुख्य थे-
— महाराजा खड़ग सिंह (1839-1840)
— महाराजा शेर सिंह (1841-1843)
— महाराजा दिलीप सिंह (1843-1849)

#महाराजा_दिलीप_सिंह

▪️महाराजा दिलीप सिंह का जन्म 1838 ई0 में हुआ था।
▪️1843 ई0 में बहुत कम उम्र होने के कारण महाराजा दिलीप सिंह की माता जींद कौर को उनका संरक्षक बनाकर राज्य सौंपा गया।
▪️अंग्रेजी सरकार इस स्थिति का फायदा उठाना चाहती थी। इसके साथ ही महारानी जींद कौर ने ताकतवर सिख सेना के बल पर अंग्रेजों को कमजोर आकने की गलती कर बैठी और सिख साम्राज्य का विस्तार करने का हुक्म दे दिया।
▪️जींद कौर के इस फैसले से अंग्रेजों को मौका मिल गया और 1845 में प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध प्रारम्भ हो गया।
▪️दिलीप सिंह के समय पर ही दोनों आंग्ल-सिख युद्ध हुए थे।



#मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#सिख_धर्म_के_10_गुरु...

सिख धर्म के 10 गुरु हुए हैं। गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रवर्तक (जनक) थे इनके बाद 9 गुरु और हुए हैं। सिक्ख धर्म के दसवें व अंतिम गुरु गोविंद सिंह थे।

#सिख_धर्म_के_10_गुरु_के_नाम

▪️गुरु नानक देव जी (1469-1539)
▪️गुरु अंगद देव जी (1539-1552)
▪️गुरु अमर दास (1552-1574)
▪️गुरु राम दास (1574-1581)
▪️गुरु अर्जुन देव (1581-1606)
▪️गुरु हरगोविंद (1606-1644)
▪️गुरु हर राय (1645-1661 )
▪️गुरु हरकिशन (1661-1664)
▪️गुरु तेग बहादुर (1664-1675)
▪️गुरु गोविंद सिंह (1675-1699)

1. #गुरु_नानक_देव_जी (1469-1539)

▪️सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल 1469 में तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था।
▪️गुरु नानक देव जी ने ही सिख धर्म की स्थापना की थी।
▪️नानक जी के पिता का नाम कल्यानचंद (मेहता कालू जी) और माता का नाम तृप्ता था।
▪️नानक जी के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा। वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में स्थित है।
▪️नानक जी का विवाह सुलक्खनी नाम की महिला के साथ हुआ।
▪️नानक जी के 2 पुत्र श्रीचन्द औऱ लक्ष्मीचन्द थे।
▪️नानक जी ने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया था, जो वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है। इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था।
▪️1496 ई० में कार्तिक पूर्णिमा की रात को इन्हें ज्ञान की प्राप्ती हुई थी।
▪️गुरु नानक देव जी ने संगत और पंगत को स्थापित किया था। संगत का अर्थ होता है धर्मशाला और पंगत का अर्थ होता है लंगर लगाना।

2. #गुरु_अंगद_देव_जी (1539-1552)

▪️गुरु अंगद देव जी सिखों के दूसरे गुरु थे।
▪️गुरु नानक देव ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर, इन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था।
▪️इनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था।
▪️इनके पिता का नाम फेरू जी था, जो पेशे से व्यापारी थे। इनकी माता का नाम रामा जी था।
▪️गुरु अंगद देव को लहिणा जी के नाम से भी जाना जाता है।
▪️इन्होंने ही गुरुमुखी लिपि को जन्म दिया।
▪️इनका विवाह खीवी नामक महिला के साथ हुआ।
▪️इनकी 4 संतान थी। जिनमें 2 पुत्र एवं 2 पुत्री थी।
▪️गुरु अंगद देव जी लगभग 7 साल तक गुरु नानक देव के साथ रहे और फिर सिख पंथ की गद्दी पर बैठे।
▪️गुरु अंगद देव जी सितंबर 1539 से मार्च 1552 तक अपने पद पर रहे।
▪️गुरु अंगद देव जी ने जात-पात के भेद-भाव से हटकर लंगर प्रथा स्थायी रूप से चलाई और पंजाबी भाषा का प्रचार शुरू किया।

3. #गुरु_अमर_दास_जी (1552-1574)

▪️गुरु अंगद देव जी के बाद गुरु अमर दास सिख धर्म के तीसरे गुरु बने।
▪️61 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव को अपना गुरु बनाया और तब से लगातार उनकी सेवा की ।
▪️गुरु अंगद देव ने उनकी सेवा व समर्पण को देखकर ही उन्हे अपनी गद्दी सौंपी।
▪️गुरु अमर दास का निधन 1 सितंबर, 1574 को हुआ था।
▪️गुरु अमर दास ने सती प्रथा का विरोध किया तथा अंतर जातीय विवाह एवं विधवा विवाह को बढ़ावा दिया था।

4. #गुरु_रामदास_जी (1574-1581)

▪️गुरु रामदास जी गुरु अमरदास के दामाद थे।
▪️गुरु रामदास जी का जन्म लाहौर में हुआ था।
▪️बाल्यावस्था में उनकी माता का देहांत हो गया था और लगभग 7 वर्ष की आयु में पिता का भी देहांत हो गया था। उसके बाद वे अपनी नानी के साथ रहे।
▪️गुरु अमरदास जी ने इनकी सहनशीलता, नम्रता व आज्ञाकारिता के भाव को देखकर अपनी छोटी बेटी की शादी इनके साथ कर दी।
▪️गूरू रामदास ने 1577 ई० में “अमृत सरोवर” नामक एक नगर की स्थापना की थी। जो आगे चलकर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
▪️मुग़ल साम्राज्य के मुग़ल सम्राट अकबर इनका बहुत सम्मान करते थे। गुरु रामदास जी के कहने पर ही अकबर ने एक साल का पंजाब का लगान माफ कर दिया था।

5. #गुरु_अर्जुन_देव (1581-1606)

▪️गुरु अर्जुन देव का जन्म 15 अप्रैल 1563 को हुआ था।
▪️गुरु अर्जुन देव ने खुद को सच्चा बादशाह कहा था।
▪️गुरु अर्जुन देव चौथे गुरु रामदास जी के पुत्र थे।
▪️इन्होने अमृत सरोवर का निर्माण कराकर उसमें “हरमंदिर साहिब” (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण कराया जिसकी नींव सूफी संत मियां मीर के हाथों से रखवायी गयी।
▪️धार्मिक ग्रन्थ (आदि ग्रन्थ) की रचना करने का श्रेय भी इनको ही जाता है।
▪️जहांगीर ने इन्हें अपने पुत्र खुसरो की बगावत में सहायता करने के कारण 30 मई 1606 को फांसी दे दी थी।

6. #गुरु_हरगोविंद_सिंह (1606-1645)

▪️गुरु हरगोविंद सिंह पांचवे गुरु अर्जन देव के पुत्र थे, इनकी माता का नाम गंगा था।
▪️इन्होंने सिखों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया।
▪️गुरु हरगोविंद सिंह ने ही सिंख पंथ को योद्धा का रूप प्रदान किया।
▪️इन्होंने छोटी-सी सेना बना ली थी। जिस कारण से इन्हें 12 वर्षो तक मुगल कैद में रहना पड़ा।
▪️रिहा होने के बाद गुरु हरगोविंद सिंह ने शाहजहाँ के खिलाफ बगावत कर दी और 1628 ई० में अमृतसर के निकट युद्ध में शाही मुगल फौज को हरा दिया।
▪️गुरु हरगोविंद सिंह ने ही अकाल तख़्त का निर्माण भी करवाया था।
▪️1644 ई० में कीरतपुर, पंजाब में इनका निधन हो गया।

7. #गुरु_हरराय (1645-1661)

▪️गुरु हरराय साहिब जी सिख धर्म के छठे गुरु हरगोविंद सिंह के पुत्र बाबा गुरदीता जी के छोटे बेटे थे।
▪️गुरु हरराय का विवाह किशन कौर के साथ हुआ, तथा इनके दो पुत्र रामराय जी और हरकिशन साहिब जी थे।
▪️गुरु हरराय ने औरंगजेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद की थी।
▪️1661 ई० में गुरु हरराय की मृत्यु हो गयी।

8. #गुरु_हरकिशन_साहिब (1661-1664)

▪️गुरु हरकिशन साहिब जन्म 7 जुलाई, 1656 को करतारपुर साहेब में हुआ, तथा ये सातवें गुरु हर राय जी के पुत्र थे।
▪️गुरु हरकिशन साहिब ने 1661 में मात्र 5 वर्ष की आयु में ही गद्दी प्राप्त कर ली थी।
▪️कम उम्र के कारण औरंगजेब ने इनका विरोध किया।
▪️इस विवाद को सुलझाने के लिए ये औरंगजेब से मिलने दिल्ली गए, तो वहां हैजे की महामारी फैली हुई थी। कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने के बाद गुरु हरकिशन साहिब जी स्वयं चेचक से पीडित हो गये।
▪️30 मार्च 1664 को इनका निधन हो गया। अपने अंतिम क्षणों में इनके मुँह से “बाबा बकाले” शब्द निकले। ▪️जिसका अर्थ था कि अगला सिख गुरु बकाले गांव से ढूंढा जायेगा।
▪️साथ ही गुरु हरकिशन साहिब ने अंतिम क्षणों में यह भी निर्देश दिया था कि उनकी मृत्यु के बाद कोई भी रोएगा नहीं।

9. #गुरु_तेग_बहादुर_सिंह (1664-1675)

▪️गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म 18 अप्रैल 1621 को पंजाब में हुआ था।
▪️गुरु तेग बहादुर सिंह ने धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ निछावर कर दिया। सही अर्थो में गुरु तेग बहादुर सिंह को “हिन्द की चादर” कहा जाता है।
▪️इस समय काल में औरंगजेब जबरन धर्म परिवर्तन करा रहा था। इससे परेशान होकर कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर की शरण में आये तो उन्होंने कहा कि औरंगजेब से जाकर कहो की अगर वो मुझे इस्लाम कबूल करवा देगा तो हम सब भी इस्लाम कबूल कर लेंगे।
▪️गुरु तेग बहादुर सिंह को औरंगजेब के दरबार में पहले लालच और फिर यातना देकर इस्लाम कबूलवाने की कोशिश की गयी।
▪️इस्लाम कबूलवाने के लिए औरंगजेब द्वारा उनके दो प्रिय शिष्यों को उनके सामने मार डाला गया।
▪️अंत में जब औरंगजेब कामयाब नहीं हुआ तो चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर सिंह का शीश 24 नवम्बर 1675 ई० को कटवा दिया गया।इस शहीदी स्थान को ‘शीश गंज’ के नाम से जाना जाता है, यहाँ पर “शीशगंज साहिब” नामक गुरुद्वारा स्थित है।

10. #गुरु_गोविंद_सिंह (1675-1699)

▪️सिखों के दसवें व अंतिम गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 ई० को पटना में हुआ था।
▪️गुरु गोविंद सिंह सिखों के 9 वें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह के पुत्र थे। यह मात्र 9 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठे।
▪️उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का निर्णय लिया और तलवार हाथ में उठाई।
▪️उनके बड़े पुत्र बाबा अजीत सिंह और एक अन्य पुत्र बाबा जुझार सिंह ने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की। ▪️22 दिसंबर सन्‌ 1704 को सिरसा नदी के किनारे चमकौर नामक जगह पर सिक्खों और मुग़लों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया था।
▪️इनके 2 पुत्र बाबा जोरावर सिंह व फतेह सिंह को मुगल गवर्नर वजीर खां के आदेश पर दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था।
▪️1699 ई० में सिखों के दसवें व अंतिम गुरु गोविंद सिंह का निधन हो गया। उससे पहले इन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की और गुरु प्रथा को समाप्त कर दिया।
▪️गुरु गोविंद सिंह ने पांचवे गुरु अर्जुन देव द्वारा स्थापित “गुरु ग्रंथ साहिब” को ही अगला गुरु बताया।

#आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#उदारवादी...

उदारवादियों ने 1885-1905 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर अपना प्रभुत्व बनाये रखा| वे थे तो भारतीय लेकिन वास्तव में अपनी पसंद,बुद्धि,विचार और नैतिकता के मामले में ब्रिटिश थे|वे धैर्य,संयम,समझौतों और सभाओं में विश्वास रखते थे| ए.ओ.ह्यूम,डब्लू.सी.बनर्जी,सुरेन्द्रनाथ बनर्जी,दादाभाई नैरोजी,फिरोजशाह मेहता,गोपालकृष्ण गोखले,पंडित मदन मोहन मालवीय,बदरुद्दीन तैय्यब जी,जस्टिस रानाडे,जी.सुब्रमण्यम अय्यर आदि राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रथम चरण के नेता थे| इन्हें उदारवादी कहा गया क्योकि ये ब्रिटिशों से निष्ठा प्राप्त करने के लिए याचिकाओं,भाषणों,और लेखों का सहारा लेते थे और खुले आम ब्रिटिश राज के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करते थे|

#उदारवादियों_की_मांगे

• वे विधान परिषदों के विस्तार द्वारा प्रशासन प्रशासन पर लोकप्रिय नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे|
• प्रेस और भाषा की स्वतंत्रता पर लगे प्रतिबंधों की समाप्ति|
• लोगों की स्वतंत्रता को बाधित करने वाले आर्म्स एक्ट का उन्मूलन|
• न्यायपालिका व कार्यपालिका का विभाजन|
• लोकतंत्र व राष्ट्रवाद के समर्थक|
• ब्रिटिशों की शोषणकारी नीतियों की समाप्ति|

#उदारवादियों_की_उपलब्धियां

• उन्होंने अपने समय में सबसे आक्रामक शक्ति की भूमिका निभाई,जिसने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया|
• वे निम्न मध्य वर्ग,मध्य वर्ग व बुद्धिजीवियों के बीच राजनैतिक जागरूकता की लौ जगाने में सफल रहे|
• उन्होंने नागरिक स्वतंत्रता व लोकतंत्र के विचार को प्रसारित किया|
• उन्होंने राष्ट्रवाद की भूमिका तैयार की और राष्ट्रीय आन्दोलन की नींव रखी|

#निष्कर्ष

हालाँकि हम यह कह सकते है कि उदारवादी जनता और ब्रिटिशों के मध्य सेफ्टी वाल्व की भूमिका निभा रहे थे लेकिन कुछ समय बाद उनका भारतीय खून जागा और उन्होंने संस्थागत प्रयासों द्वारा ब्रिटिशों को उखाड़ फेंकने की कोशिश की|

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