दोस्तो क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है, जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए और सहनशीलता भी तब पाप बन जाती है जब वह धर्म और मर्यादा को बचा नहीं पाती... दोस्तो अपने पास मेहनत नाम का हथियार रखो, सफलता तो खुद आपकी गुलाम हो जायेगी, असफलता आपको तब तक नहीं मिल सकती जब तक आपकी सफलता पाने की इच्छा मजबूत है। हमारी सबसे बढ़ी कमज़ोरी है की हम छोड़ देते हैं सफलता का एक रास्ता है की एक बार और प्रयास किया जाये। सफलता हमेशा अकेले में गले लगाती है लेकिन असफलता हमेशा सबके सामने तमाचा मारती है। किसी भी कार्य का परिणाम रातो-रात नहीं आता, धैर्य के साथ मेहनत करते रहें,मंजिल किसी भी कार्य का परिणाम रातो-रात नहीं आता, धैर्य के साथ मेहनत करते रहें,मंजिल एक दिन आपको जरूर मिलेगी। दुनिया में किसी भी इंसान को पूरी तरह से गलत समझने से,पहले शान्तिपूर्वक उसकी हालात जानने की कोशिश अवश्य करें।,जिन्दगी में हमेशा सुख-दुख और मुश्किलें तो सदा ही आती जाती रहती हैं,ये कोई इंसानियत नहीं कि किसी को दुख-दर्द देकर मृत्यु के लिए विवश करें... Wonderful Saying As per Modern Life... ना जाने कितना बटोरने के लिए भागती है दुनिया चंद खुशी के लिए वक्त नहीं,जिंदगी में जब हर खुशियां हैं दामन में पर सुकून से एक हंसी के लिए वक्त नहीं,दुनिया में हर एक के आगे बड़ी-बड़ी बताते हैं असलियत में निभाने का वक्त नहीं,जिंदगी के सफर में रिश्तों को स्वार्थ से कुचल दिया और उन्हें दफनाने का वक्त नहीं... इस संसार में हर किसी को,अपने “ज्ञान” का “घमंड” हैं परन्तु,किसी को भी अपने “घमंड” का “ज्ञान” नहीं है... मनुष्य का कोई गुण ऐसा नही है, जिसे हर मनुष्य अपने मेँ पैदा ना कर सके या विकसित ना कर सके। सच जब तक घर से बाहर निकलता है, जब तक झूठ आधी दुनिया घूम लेता है... एक सफल व्यक्ति हमेशा कुछ अच्छा हासिल करने के लिए प्रेरित होता है,ना कि किसी को पराजित करने के लिए। जिंदगी में हर मौके का फ़ायदा उठाओ,मगर किसी की मज़बूरी और भरोसे का नहीं। जीवन में कभी भी निर्दोष और निर्धन का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए... जिंदगी में कोई भी रास्ता अपने आप नही बनता,इंसान खुद बनाते है, इंसान जैसा रास्ता बनाता है,उसे वैसी ही मंजिल मिलती है... हार से मत घबराओ क्योकि जो सब कुछ हार जाता है उसके पास जीतने के अलावा कुछ नही बचता। ऊँचाई तक वहीं पहुँचते है,जो प्रतिशोध की बजाय परिवर्तन की सोच रखते हैं. उम्र से सम्मान" जरुर मिलता है पर "आदर" तो आपके व्यवहार से ही मिलेगा...अक्सर हमें थकान काम के कारण नहीं बल्कि चिंता, निराशा और असंतोष के कारण होती है। लोग क्या सोचेंगे इस बात की चिंता करने की बजाये क्यों ना कुछ ऐसा करने में समय लगाएं जिसे प्राप्त करने पर लोग आपकी प्रशंशा करेंं... शर्म की अमीरी से इज्जत की गरीबी अच्छी होती है...जब कोई देख कर भी अनदेखा करें समझे कि उनकी नजर आप पर ही है...राज कुमार
दोस्तो आप सबने ..इरा सिंघल , गौरव अग्रवाल , फैसल शाह , निशांत जैन , गोविन्द जयसवाल , रचित राज , हिमांशु अग्रवाल , रोमन सैनी , मेधा रूपम ..ये नाम तो सुने ही होंगे न ..? ...मेरा एक सवाल कैसा महसूस करते हो आप सब जब इनके बारे में पढ़ते हो , देखते हो या सुनते हो ... ? ...एक अजीब सी हलचल होती है न बदन में .. और कुछ कर गुजरने का जूनून एक दम से जाग उठता है ..?.. ..और सब बनना चाहते हैं इनकी तरह .. पर कभी सोचा है ये लोग क्या सोचते थे जब आपकी तरह तैयारी कर रहे थे ..... मेरे संपर्क में कई आईएएस ऑफिसर्स हैं एक बार इसी तरह बात बात में एक बार मैंने एक सवाल किया कि आज कल के लड़के जिस तरह किसी ना किसी को अपना रोल मॉडल मानते हैं ..जैसे मैं गौरव अग्रवाल जी जैसा बनूँगा , मैं इरा सिंघल जैसी बनूँगी ....क्या आपने भी उस दौरान किसी को अपना रोल मॉडल बनाया था ...?? ...उन्होंने जो उत्तर दिया वो मेरे दिल को छु कर गया ...उनका उत्तर था कि मैं ही खुद का सबसे बड़ा रोल मॉडल था "" ये परीक्षा मेरी थी , सपना मेरा था , मुझे ही आईएएस बनना था , मुझे खुद को साबित करना था... जब हर चीज में " मैं" ही था तो फिर किसी दूसरे को अपना रोल मॉडल कैसे बनाऊ ..? यहाँ पर मुझे ही खुद को साबित करना था !! ..उनके इस उत्तर के बाद एक और लोकप्रिय सवाल मैंने उनसे पूछ लिया कि "" जो युवा अब आईएएस कि तयारी करना चाहते हैं उनके लिए आपकी क्या राय होगी ""? ...उनका जवाब था कि आईएएस इंसान ही होते हैं और आज के युवा को अपना खुद का महत्व समझना होगा .."" अगर हम लोग सफल हो सकते हैं तो आप क्यों नहीं ..?''' दोस्तों सबसे बड़ी बात यही है ..क्या आपने कभी सोचा कि आपमें और उनमे जो सफल हो गए क्या फर्क है ? ..दो आँखे , दो हाथ , दो कान , सब कुछ एक ही जैसा है न .... अब ये मत कहियेगा कि सर मस्तिष्क में अंतर होता है ... जाओ एक अपनी उम्र के एक आईएएस अधिकारी का मस्तिष्क और अपना मस्तिष्क वजन करके देखो ... लगभग बराबर ही होंगे ,,, हो सकता है आपका ज्यादा भी हो ..अब बताइये ..? ..है कोई सवाल ...!! ... सफल व्यक्ति और असफल व्यक्ति में सिर्फ एक ही अंतर होता है जानते है क्या .. सफल व्यक्ति निरंतर किसी काम को करता जाता है और असफल व्यक्ति उसे कई टुकड़ो में करता है और रुक रुक कर करता है ...!! ..बहुत ही प्यारी लाइन्स हैं आपको पता होगा "" कोई भी लक्ष्य मनुष्य के इरादों से बढ़कर नहीं होता , मन लो तो हार है और ठान लो तो जीत !! ..अब देखिये लक्ष्य आपका है , इरादे भी आपके हैं , पढाई भी आपको ही करनी है , और आईएएस बनने के बाद लाल और नीली बत्ती भी आपको ही मिलनी हैं ..अपनी सैलेरी तो मुझे या किसी अन्य को दोगे नहीं ना ... तो फिर प्रतियोगिता किससे...? ..खुद से करो कि आपको खुद को साबित करना है ...हमेशा एक ही चीज याद रखो अगर वो लोग कर सकते हैं , तो फिर आप क्यों नहीं...
Some beautiful line...
संसार में जुबान की हिफाज़त दौलत से कहीं ज्यादा मुश्किल है,दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जो पूरी तरह से संतुष्ट और सुखी हो। जिसे कोई समस्या ही ना हो और सम्पूर्ण संसार में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान ही ना हो। यदि आप वही करते हैं जो आप हमेशा से ही करते आये हैं तो आपको वही मिलेगा जो हमेशा से ही मिलता आया है। जब अपने खफा होने लग जाएँ तो आप समझ लेना आप सही राह पर हैं। मनुष्य को अपने लक्ष्य में कामयाब होने के लिए खुद पर विश्वास होना बहुत ज़रूरी है। हमें हमेशा इतना बड़ा बनने का सोचना चाहिए कि हम उसको प्रोत्साहित कर सकें जो कि हमसे बेहतर है। एक अच्छा इंसान आपको हमेशा बुरा लगेगा जबकि एक बुरा व्यक्तित्व हमेशा आपको सम्मोहित करेगा। हमें काम के साथ साथ हमेशा कुछ समय का विराम लेना चाहिए, ताकि खुद के बारे में भी कुछ सोच सकें। सफलता पाने के लिए हमें पहले विश्वास करना होगा की हम कर सकते हैं। जिंदगी में कुछ बदलाव चाहते हो तो,बदलाव की शुरुआत पहले अपने आप से करो। दुनिया के डर से अपने फैसले बदलने वालों के फैसलों की कोई अहमियत नहीं होती है। अपनी अपनी जिंदगी में तो दुखी सभी हैं यह इसलिए क्योंकि कोई यहां अपने गमों और कर्मों से दुखी है, तो कोई यहां दूसरों के सुख और खुशियों से दुखी है। सब कुछ के होते हुए भी कोई यहां संतुष्ट नहीं है, ठीक इस प्रकार साहब कि सारा झगड़ा यहां ख्वाहिशों का है, ना तो किसी को अपने कर्मों गम चाहिए ना ही किसी को किसी से कम चाहिए। आज के दुनिया की यही सच्चाई है कि जब आपके जेब में रुपए हो तब दुनिया आपकी औकात देखती है और जब आपके जेब में रुपए ना हो तो दुनिया अपनी औकात दिखाती है। जहां में फर्क सिर्फ अपनी अपनी सोच का है क्योंकि जिंदगी की जो सीढ़ियां हमें ऊपर ले जाती है, वही सीढ़ियां हमें नीचे भी लेकर आती है इसलिए हमें अपने वक्त का ख्याल रखना चाहिए। जिंदगी में जो व्यक्ति शक, अंधविश्वास और झूठ के सहारे से अपना जीवन व्यतीत करता है, उस व्यक्ति के पास खोने के लिए स्वयं उसके खुद का अस्तित्व नहीं बचता जिन्दगी में खुद के लिए। इसलिए कहा गया है कि मनुष्य जब से जाग जाए उसे तभी से सवेरा समझना चाहिए सुख दुख दो पहलू हैं अर्थात मनुष्य जब से सुधर जाए उसका जीवन वहीं से शांत और सुखमय व्यतीत होने लगता है...
आपका सबसे बड़ा शत्रु कौन...
अगर कभी दुनियां में खोट नजर आए तो अपने आपको सुधारो अगर आप सुधर गए तो जमाना खुदबखुद सुधर जाएगा वैसे कहते हैं भी हैं कि हम जमाने से नहीं बल्कि जमाना हम से है
अगर जमाना आपका दुश्मन होता तो वह पानी हवा बारिश किसी में भी जहर मिला कर आपकी जान ले लेता अगर जमाना खराब होता तो साधुओं को जमाने में भगवान नजर नही आते अगर जमाना आपका दुश्मन होता तो आपको बचपन में ही गला दबाकर मार दिया गया होता। उपरोक्त में से कुछ भी आपके साथ नहीं किया गया है फिर भी आपको जमाना खराब नजर आता है तो आप से बड़ा आपका कोई शत्रु नही है जो समय के साथ नए नए दुश्मन बनाते चला जाता है अर्थात दुनियां को नए नए रूप में दुश्मन की नजर से देखता है हमारे खुद की आंखों में ही खोट होता है इसलिए तो धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक कार्यक्रम जैसे लोग कल्याण के कार्यक्रमों में भी खोट नजर आता है अपने अंदर की ये प्रतिस्पर्धा ऊंच नीच महिला पुरुष जैसे विचारों को त्यागकर सभी परमपिता परमेश्वर की अनुपम कृति हैं का रूप धारण करके देखेंगे तो दुनियां रंग बिरंगी नजर आयेगी जो एक परम सत्य है इसलिए अपने आपको सुधारो दुनियां खुदबखुद सुधर जायेगी...
अब बस तभी रुकना हैं, जब सफलता हमारे कदमों में हो...
ये आपका फैसला होगा कि आसमान की ऊंचाइयों से खूबसूरत दुनिया को देखते हो या असफलता के चौखट में ही रहकर सिमट जाते हो। क्या आप असफलता की चौखट पर ही अपना दम तोड़ देना चाहते हैं , क्या आप भूल गए कि आप घर से बाहर इसलिए निकले थे ताकि आप अपने सर पर जीत का ताज पहन के घर पहुंचे , क्या आप भूल गए उनके ख्वाहिशों को ,अरमानों को जिन्होंने आपके लिए वर्षों से संजो कर रखे हैं , आखिर हुआ क्या है आपको ,आखिर क्यों आप आज उस तरीके से नहीं लड़ रहे जिस तरीके से आप को लड़ना चाहिए ! क्यों आप उन कसमों से दूर भाग रहे हैं जो आपको जीत दिलाती हैं आखिर क्यों आप एक नादान परिंदे की तरह गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए खामोश बैठे हैं , क्यों अभी तक आपके अंदर का मानव जगा नहीं। बहुत कुछ तो मैं नहीं कहना चाहता पर इतना जरूर बता दूं कि आप वह है जिसके अंदर से ही शख्सियत निकलती है , आप वह है जो कर्मो का तूफ़ान पैदा कर इतिहास बदल सकता है , आप वह है जो लकीर को इतनी लंबी खींच सकता है कि आगे आने वाले वर्षों तक वह सुनहरा बनकर चमकता रहेगा ! वक्त बहुत नहीं है पर वक्त इतना जरूर है कि आप अपने जिंदगी को अपने जीवन को साकार कर जाइए। चमक थी और आपके कर्मों में एक तूफान था। आखिर क्यों आप थम सा गए हैं आपकी सिद्दत कहां गई , आपका जुनून कहां गया , ऐसा तो नहीं कि आप जिंदा लाश बन गए हैं ! जनाब याद रखिए दुनिया उन्हीं को याद रखती है जो याद रखने जैसा कुछ कर जाते हैं। कल का तो मुझे पता नहीं पर आपसे इतना जरूर कहूंगा कि आप इस कदर मेहनत करो की खुद को सुकून मिले ! इतिहास गवाह है इतिहास उन्हीं का लिखा जाता है जो संघर्षों से गुजरते हुए खुद को खुद के लिए खड़ा कर लेते हैं।याद रखिये वही इंसान हैं जो लड़ सकता है गिर के उठ सकता है जो हार के भी जीत सकता है और जीत के भी जीत सकता है ! आपके लिये चंद लाइने –हौंसले हो बुलंद तो हर मुश्किल को आसां बना देंगे ,
छोटी टहनियों की क्या बिसात, हम बरगद को ही हिला देंगे ! वो और हैं जो बैठ जाते हैं थक कर मंजिल से पहले , हम बुलंद हौंसलों के दम पर आसमां को ही झुका देंगे...हम कैसे हार मान सकते हैं अपनी मंजिल, अपने ख्वाबों से पहले, कैसे भाग सकते हैं अपनी जिम्मेदारियों से किसी के भी प्रति ! बहुत लोगों की उम्मीद की किरण हैं हम, चाहे वो हमारे माता-पिता हो, चाहे हो भाई बहन, चाहे हो रिस्तेदार कोई, चाहे तो हमारा अपना समाज (Society), चाहे हो शहर अपना, हो चाहे हमारा अपना देश...तो दोस्तो पूरी ताकत से जुट जाइये और अब बस तभी रुकना हैं जब सफलता हमारे कदमों में हो। ऐसी कोई चीज नहीं है, जो हम मेहनत, लगन व आत्मविश्वास से नहीं पा सकते. खुद पर भरोसा कर इंसान अपनी किस्मत खुद बना सकता है...
समस्याओं का समाधान कैसे करें...
आज के समय में हर इन्सान की सबसे बड़ी यही चाहत है कि उसका जीवन और लाइफस्टाइल बेहतर से बेहतर हो लेकिन इस बेहतर जीवन की चाहत में इन्सान पैसों और धन को सबसे प्रमुख स्थान देता है एक कहावत के अनुसार पैसा ही सबकुछ नही होता है लेकिन जहां तक पैसों का सवाल है पैसों से सुख के संसाधन तो खरीदे जा सकते हैं लेकिन सुख नही खरीद सकते हैं ठीक उसी प्रकार पैसों से बिस्तर तो खरीदे सकते हैं लेकिन कभी भी पैसों से नीद नही खरीद सकते हैं...कहने का आशय यही है कि इन्सान काल्पनिक सुख की चाहत में अपने जीवन के वास्तविक सुख को खो दे रहा है और फिर उसी वास्तविक सुख की तलाश में इधर उधर भटकता फिरता है और अंत में उसे यही समझ में आता है कि मानव सेवा तथा भलाई और मानव परोपकार ही सबसे बड़ा सुख देने वाला होता है... यदि हमें अपना जीवन सुंदर और बेहतर बनाना है तो हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए क्योंकि जो लोग दूसरों की मदद में आगे आते हैं आवश्यकता पड़ने पर उस व्यक्ति की मदद में ईश्वर खुद स्वयं मदद करने आते हैं...
एक कहानी पर हकीकत...
समुद्र के किनारे जब एक लहर आयी तो एक बच्चे का चप्पल ही अपने साथ बहा ले गई| बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है "समुद्र चोर है"| उसी समुद्र के एक दूसरे किनारे कुछ मछुआरे बहुत सारी मछली पकड़ लेते हैं| वह उसी रेत पर लिखता है "समुद्र मेरापालनहार है"| एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है| उसकी मां रेत पर लिखती है "समुद्र हत्यारा है"| एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था| उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया| वह रेत पर लिखता है "समुद्र दानी है" अचानक एक बड़ी लहर आती है
और सारे लिखा मिटा कर चली जाती है| लोग जो भी कहे समुद्र के बारे में लेकिन विशाल समुद्र अपनी लहरों में मस्त रहता है| अपने तुफान और शांति वह अपने हिसाब से तय करता है| अगर विशाल समुद्र बनना है तो किसी के निर्णय पर अपना ध्यान ना दें| जो करना है अपने हिसाब से करें| जो गुजर गया उसकी चिंता में ना रहे| हार जीत, खोना पाना, सुख-दुख, इन सबके चलते मन विचलित ना करें| अगर जिंदगी सुख शांति से ही भरी होती तो आदमी जन्म लेते समय रोता नहीं| जन्म के समय रोना और मरकर रुलाना इसी के बीच के संघर्ष भरे समय को जिंदगी कहते हैं...
बुराई करना आसान है...
एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था। चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया। नीचे लिख दिया कि जिस किसी को, जहाँ भी इस में कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे। जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी। यह देख वह बहुत दुखी हुआ। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था। तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई ।उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे! उसने अगले दिन यही किया। शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया । वह संसार की रीति समझ गया। कमी निकालना, निंदा करना, बुराई करना आसान है, लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है...
Friends...Hope is favorable and confident expectation; it's an expectant attitude that something good is going to happen and things will work out, no matter what situation we're facing...दोस्तो इंसान की सोच अज़ीब है कामयाबी मिले तो अपनी ‘अक्ल‘ पर खुश होता है,और जब ‘परेशानी‘ आये तो अपने ‘नसीब‘ को दोष देता है. आप उस पछतावे के साथ मत जागिये,जिसे आप कल पूरा नहीं कर सके,बल्कि उस संकल्प के साथ जागिये,जिसे आपको आज पूरा करना है...सबसे पहले समस्याओं का आकलन करे फिर खुद कि क्षमताओं का आकलन करो...और एक मनुष्य के अंदर उतनी शक्तियां मौजूद होती हैं कि वह अपना भविष्य का निर्माण खुद कर सकता है। अगर आपके पास पैसा नहीं है तो योग्यता बनाइये और मुझे लगता है कि जिसके अंदर वास्तविक योग्यता होगी वो खाली नहीं रह सकता...जीवन में सुख साधन संपन्न व्यक्ति भाग्यशाली तो होते ही हैं लेकिन परम सौभाग्यशाली वो होते हैं जिनके पास भोजन के साथ-साथ भूख भी है, बिस्तर के साथ-साथ नींद भी है, धन के साथ- साथ धर्म भी है, विशिष्टता के साथ-साथ शिष्टता भी है, सुन्दर रूप के साथ-साथ सुन्दर चरित्र भी है, सम्पत्ति के साथ-साथ स्वास्थ्य भी है, बुद्धि के साथ-साथ विवेक भी है, परिवार के साथ-साथ प्यार भी है, सामर्थ्य के साथ-साथ दया भी है, और पद के साथ-साथ प्रतिष्ठा भी है...दूसरों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी देखना एक बहुत बड़ा हुनर है और जो इंसान ये हुनर सीख जाता है वो कभी भी दुखी नही होता..दोस्तो Life एक खेल है ये आप पे Depend करता है कि आपको खिलाड़ी बनना है या खिलौना...राज कुमार
किसी की सफलता पर जलन क्यों...
दोस्तो किसी अन्य व्यक्ति के प्रति जलन भाव ना रखकर ही उससे ईर्ष्या करने से बचा जा सकता है जो आपका नहीं उससे ईर्ष्या क्यों जिसको हम कभी हासिल नहीं कर सकते हैं उसके लिए अपने मन मस्तिष्क की कोमल कोशिकाओं को कठोर बनाने का कोई अर्थ ही नहीं निकलता कभी कभी हमारे मन मस्तिष्क में अपने मित्रों की सफलताओं को लेकर उनके प्रति असहजता उत्पन्न हो जाती है जबकि वह मित्र हमें बहुत प्रिय होते हैं हम उनके शुभचिंतक भी होते हैं लेकिन ये ईर्ष्या इसलिए उत्पन्न हो जाती है कि हम दोनों की शिक्षा एक साथ हुई होती है हम दोनों के एक ही सपने होते हैं हम दोनों अपने अपने तरीके से सपनों के रास्ते पर चल पड़ते हैं किसी तरह से हमारा मित्र सफल हो जाता है और हम असफल हो जाते हैं हमारा मित्र अपने जीवन में बुलंदियों को छूता जाता है और हम दिन रोज उससे पिछड़ते जाते हैं अचानक एक दिन खबर मिलती है कि हमारा मित्र किसी अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त हो गया है और हम यहीं दिल्ली में किसी देशी कम्पनी की खाक छान रहे हैं हमारा मित्र मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त हुआ है तो सबने मिलकर साथ में जश्न मनाया अचानक हमारे मन में उसके प्रति असहजता उत्पन्न हो जाती है ऐसा लगता है कि हम तो इससे बहुत पीछे छूट गए हैं...ऐसी असहजता मन मस्तिष्क में आना बहुत ही स्वाभाविक सी बात है बहुत कम ही लोग ऐसी असहजता से बच पाते हैं ये ईर्ष्या हमेशा किसी दूर दराज के व्यक्ति से हो यह जरूरी नहीं है किसी अपने के प्रति उत्पन्न हो यह भी जरूरी नहीं है जहां कहीं भी तुलना का भाव मन मस्तिष्क के अंदर गहरा जाए ईर्ष्या उसी समय से मन मस्तिष्क में बैठ जाती है...वर्तमान के दौर में इस मन मस्तिष्क की असहजता को बढ़ावा देने के लिए हमारे जीवन की दिनचर्या और भी प्रभावी घटक का कार्य कर रही है इस इंटरनेट के युग में एक दूसरे से मिलना जुलना निरंतर कम होता जा रहा है हम केवल मोबाइल वॉट्सऐप चैट के सहारे ही जीवन की नाव को पार लगाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं जिससे ये मन मस्तिष्क की असहजता और भी विकराल रूप धारण करती जा रही है...जहां से परस्पर प्रेम कम होता जाता है वहां से एक दूसरे के प्रति और भी मन मस्तिष्क की असहजता बढ़ती जाती है पहले समय में अर्थात इस इंटरनेट और प्रतिस्पर्धा के समय से पूर्व हम सब के थे सब हमारे थे यह विचार परिवार और समाज का केंद्रीय भाव हुआ करता था तब हम कितने भी दूर क्यों ना रहते थे चाहे कितने भी कम मिलते जुलते थे लेकिन कितनी शांति से गुजारा कर रहे थे...हमारे आर्थिक रूप से सक्षम हो जाने और हमारे जीवन में प्रतिस्पर्धा का तनाव बढ़ने के साथ ही हमारा ये सम्बन्ध टूटता चला गया और एक दूसरे के प्रति मन मस्तिष्क की असहजता बढ़ती चली गई अगर हम अपनी महत्वाकांक्षाओं पर ठीक से लगाम नहीं लगा पा रहे हैं तो यह इस इंटरनेट के युग की नहीं हमारी खुद की देन है जो हमको दिन रोज एक ऐसे समाज में ले जा रही है जो हमको परमार्थवादी नहीं बल्कि स्वार्थवादी बनाती जा रही है जहां से वापस आना बहुत ही मुश्किल है जो हमारे लिए हमारे समाज के लिए और हमारे देश के लिए घातक सिद्ध हो सकती है...
जो आप सोचते हैं आप वही बनते हैं...
दोस्तो प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थितियां एक जैसी नही होती कोई अच्छी और सकारात्मक परिस्थितियों में पला बढ़ा होता है तो कोई खराब यानी नकारात्मक परिस्थितियों में पला बड़ा होता है लेकिन जीवन को किस दिशा में ले जाना है ये हम तय करते हैं और उसी दिशा में दिन रात मेहनत करते हैं...ये कहानी है दो सगे भाइयों की जो एक ही घर मे रहते थे वह अपने जीवन के 22 साल एक ही घर में एक जैसी परिस्थितियों में व्यतीत किये इनमें से एक आईएएस अफसर बन गया उसका पास पड़ोस में बहुत नाम हुआ हर व्यक्ति उसका तारीफ करता हर कोई उसको सम्मान देता और अपने परिवार के साथ खुशी से जीवन व्यतीत कर कर रहा था...और दूसरी तरफ उसके भाई का कोई भी स्थिर पैसा कमाने का जरिया नही था और वह बहुत शराब पीताता था उसको कोई भी पसंद नही करता था उसको कोई तनिक भी सम्मान नही देता था और वह अपने पत्नी बच्चों को मारता पीटता था कुल मिला कर वो समाज मे बदनाम व्यक्ति था...एक दिन किसी ने दूसरे भाई से पूछ लिया कि तुम ऐसा क्यों करते हो तुम्हारी इन सब आदतों के कारण क्या है दूसरे भाई ने उत्तर दिया मेरे घर की परिस्थितियां इन सब का कारण है मेरे पिता बहुत शराब पीते थे शराब पी कर मेरी माँ को मारते थे कभी कभी तो वे हम सबको भी मारा करते थे...घर का माहौल बहुत ही नकारात्मक था हम सभी बहुत ही परेशान रहते थे सोचो ऐसे माहौल में मेरा पालन पोसन हुआ था तो मैं बन ही क्या सकता था जो मैं आज हूं इसके अतिरिक्त और कुछ नही बन सकता था...प्रसन्न पूछने वाला व्यक्ति पहले भाई के पास गया जो एक आईएएस अफसर था उससे भी उसने वही प्रसन्न पूछा तो पहले भाई ने उत्तर दिया आज मैं जो कुछ हूं अपने परिवार की वजह से हूं मेरे पिता शराब पीते थे कुछ कमाते नही थे और सभी घर वालो को मारते पीटते भी थे...समाज मे कोई भी उनकी इज्जत नही करता था हम बहुत परेशान रहते थे तब एक दिन मैंने सोचा कि मैं अपने पिता के जैसे बिल्कुल नही बनूंगा खूब मन लगाकर पढ़ाई करूँगा और एक सफल इंसान बन कर दिखाऊंगा इन्ही सब निर्णयों के कारण आज मैं ऐसा हूं...दोस्तों आप क्या बनोगे ये आपकी परिस्थितियां तय नही करती बल्कि आपकी सोच आपका निर्णय तय करता है कि आप क्या बनोगे...
अक्सर हम दुखी क्यों रहते हैं...
दोस्तो अक्सर देखा जाता है कि लोगों में गुस्से का अंबार लगा हुआ है बात बात पर जहर उगलने लग जाते हैं चाहे बात कितनी भी छोटी क्यों ना हो उसछोटी सी बात को भी पहाड़ जैसी बना देते हैं अगर इस गुस्से कारण जानने की कोशिश की जाए तो पायेगें कि हम अपने से कम दूसरों से ज्यादा उम्मीदें रखते हैं और ये कारण पर्याप्त है किसी की जिंदगी का सुख चैन छीनने के लिए अगर किसी ने हमारे किसी कार्य के लिए मना कर दिया तो ऐसा लगता है कि शायद उसने हमारी जान लेने की कोशिश है...अगर आपको लगता है कि उसने आपके विश्वास को तोड़ दिया है तो आप अपने आपको उस व्यक्ति के स्थान पर रख कर देखिए और सोचिए कि क्या आप दूसरों के हर कार्य को हमेशा करते रहेंगे क्या कभी मना नही करेंगे अगर उत्तर नहीं में मिले तो फिर ऐसी उम्मीदें लगाने का क्या फायदा जो आप भी पूरी नही कर सकते हो तो दूसरा कैसे पूरी कर सकता है...दूसरा कारण हमारे दुखी रहने का यह भी है कि हम जिस सुकून और आराम की कल्पना अपने सपनों में अपने जीवन के लिए करते हैं वह सुकून और आराम वास्तविक जीवन में नही मिलता है अगर यह कल्पना पूरी नही होती है तो हम दुखी रहने लग जाते हैं...तीसरा कारण यह भी है कि हम किसी सम्पन्न व्यक्ति को देखते हैं तो उसके जैसी पदप्रतिष्ठा मान सम्मान पाने की कल्पना करने लग जाते हैं हम कभी यह नहीं सोचते हैं कि उस व्यक्ति को कितनी मेहनत से यह पदप्रतिष्ट्ठा मान सम्मान हासिल हुआ है।हमको कोई आईएएस अफसर दिखाई देता है तो तुरंत निर्णय ले लेते हैं कि हमको भी आईएएस अफसर ही बनना है हम कभी उसकी परिस्थितियों और अपनी परिस्थितियों पर विचार नही करते हैं हम कभी यह विचार नहीं करते हैं कि उसके परिवार और हमारे परिवार की स्थिति में कितना फर्क है हम यह कभी नही सोचते हैं कि उसको कैसा माहौल मिला है उसको कोचिंग लेने की जरूरत क्यों नहीं पड़ी है इन तमाम बातों को नजरअंदाज करके निकल पड़ते हैं आईएएस अफसर बनने के लिए और कोचिंग करने के दौरान पाते हैं कि खूब मेहनत करने के बावजूद भी हमसे नहीं हो पाएगा और अंत में एक नया दुखी रहने का जरिया अपने जीवन में ले आते हैं और अंदर ही अंदर अपने आपको दोष देना शुरू कर देते हैं अपने द्वारा बनाए दुख में खुद ही फंस जाते हैं...अगर हम कोई बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड देखते हैं तो सोचते हैं कि काश हमारा भी कोई बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड होता या होती अगर कोई बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड बन जाए तो हम उसके लिए वह सब करने के लिए तैयार हो जाते हैं जो हमारे बस की बात नही होती और उससे वो सब उम्मीदें करने लग जाते हैं जो शायद कभी पूरी ना हों और अगर सामने वाला हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाता है तो उससे लड़ना झगड़ना शुरू कर देते हैं और अन्त में खुद का तो सुख चैन खत्म करते हैं साथ ही सामने वाले का भी जीना हराम कर देते हैं...अंत में मैं ये कहना चाहता हूं कि दोस्तो कोई भी निर्णय लो तो पहले अपने आपको उस निर्णय के तराजू में अच्छे तरीके से तौल कर देख लो अगर आपके कदम थोड़े भी डिगडिगाते हैं तो अपना निर्णय बदल लो या अपने आपको अपने निर्णय के प्रति अच्छे से तैयार करो और ऐसा निर्णय लो जिस पर आप हमेशा खरे उतर सको...
आखिर हम पढ़ते लिखते क्यों हैं...
दोस्तो आजादी से पहले के समाज में यह समझ थी कि पढ़ाई का मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं है बल्कि व्यक्तिगत विकास करके देश सेवा में समर्पित होना भी है अर्थात अपना नैतिक दायित्व भी निभाना है मगर आज की ज्यादातर पढ़ी लिखी पीढ़ी के सामने ऐसे नैतिक दायित्व दूर दूर तक नजर नही आते हैं जिससे व्यक्तिगत विकास के साथ देश के विकास को भी चार चांद लग सकें...शिक्षा की उम्र को लेकर एक सवाल हमेशा हमारे समाज में आता रहता है कि शिक्षा ग्रहण करने की वास्तविक उम्र क्या होनी चाहिए अक्सर देखा जाता है कि गरीब और ग्रामीण इलाकों के छात्र अपनी शिक्षा अल्पायु में पूरी कर लेते हैं जबकि अमीर घरानों और शहरी इलाकों में छात्र लगभग 28 30 साल तक ग्रहण करते रहते हैं फिर भी रोजगार प्राप्त करने में लगभग सभी को एक जैसी चुनौतियां आती हैं इस का मतलब साफ हो जाता है कि लंबे समय या अल्प समय तक शिक्षा ग्रहण करने से कोई विशेष फर्क नही पड़ता है...एक बार मैकाले से पूछा गया कि भारत में शिक्षा का क्या मकसद है तो उन्होंने भारत में पढ़ाई लिखाई का मकसद क्लर्क पैदा करना बताया था मैकाले के जाने के बाद पढ़ाई लिखाई का मूल लक्ष्य और भी घातक होता गया शिक्षा का व्यवसायीकरण होता गया और शिक्षा अमीर और शहरी लोगों में वितरित होती चली गई...पहले भी मध्यवर्गीय घरों में साइंस को कॉमर्स या आर्ट्स के मुकाबले ज्यादा अच्छी पढ़ाई मानने का चलन था क्योंकि उसमें नौकरी की गुंजाइश ज्यादा थी लेकिन अब तो पढ़ाई लिखाई का इतना भयावह व्यावसायीकरण हुआ है कि जैसे हर कोर्स नौकरी की गारंटी के बाद ही सार्थक है और इससे अलग किसी भी पढ़ाई का कोई मतलब नहीं रह गया है पढ़ाई अब न बेहतर मनुष्य बनने का जरिया है न बौद्धिकता और तर्कशीलता के माध्यम से चेतना अर्जित करने का न अपने समाज या जीवन की समझ पैदा करने का वह बस पैसा पैदा करने का रास्ता है जिस पर ज्ञान की दुकान चल रही है और जिसमें दो या चार साल की कारोबारी पढ़ाई के बाद कैंपस से लड़के सीधे मोटे पैकेज पर उठाए जा रहे हैं और औद्योगिक घरानों के परिसर में झोंके जा रहे हैं...जाहिर है जब शिक्षा ऐसे चोखे कारोबार में बदल जाए तो उसमें वे लोग ही ज्यादा होते हैं जिनका शिक्षा से नहीं पैसे से ज्यादा वास्ता होता है यह इत्तेफाक भर नहीं है कि इन दिनों भारत में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में निजी निवेश काफी बढ़ा है और इसमें भी ज्यादातर उस संदिग्ध पूंजी के जरिए आया है जिसके पीछे प्रॉपर्टी डीलिंग से लेकर बिल्डिंग इंडस्ट्री और बहुत सारे दूसरे ऐसे ही धंधे हैं इसका एक नतीजा यह हुआ है कि शिक्षा बेहद महंगी हो गई है और अक्सर कर्ज लेकर हासिल की जाती है जिसे बाद में चुकाना पड़ता है...हमारी कारोबारी शिक्षा से निकली कमाऊ पीढ़ी के किसी नौजवान के सामने नैतिकता के संकट आम तौर पर नहीं आते हैं वह शादी में दहेज लेने से नहीं हिचकता सरकारी कंपनियों में होता है तो घूस लेने में नहीं हिचकता निजी कंपनियों में होता है तो घूस देने में नहीं हिचकता इन निजी कंपनियों में योग्यता के नाम पर वह अपनों को भरता है और कार्यकुशलता की कमी की भरपाई वह ड्यूटी के घंटों को फैला कर देर तक काम करके पूरा करता है किसी नैतिक या सामाजिक या राष्ट्रीय दायित्व की भरपाई वह आसान किस्म की देशभक्ति से करता है जैसे भारत पाकिस्तान के क्रिकेट मैच में झंडे फहराकर कश्मीर या पूर्वोत्तर के पक्ष में या दलितों और आदिवासियों के पक्ष में बोलने वालों को गाली देकर आरक्षण के विरोध में योग्यता का परचम लहराते हुए दिखाया जाता है यह अलग बात है कि ऐसे अंध देश भक्त पहला मौका मिलते ही वह खुद देश छोड़कर विदेश में जाने में बिल्कुल भी हिचकिचाते नही हैं...
Wonderful answers of amazing questions...It is only for fun... Politely requested... Don't get bad...
प्रश्न - कितने लोगों को BSNL की चिंता है?
उत्तर- सभी को।
प्रश्न - कितने लोग BSNL की सिम का प्रयोग करते हैं?
उत्तर- कोई नहीं।
प्रश्न - सरकारी स्कूल की चिंता कितने लोग करते हैं?
उत्तर- सभी।
प्रशन - सरकारी स्कूल में कितने लोगो के बच्चे पढ़ते हैं?
उत्तर- किसी के नहीं।
प्रश्न - कितने लोग पालीथीन युक्त वातावरण चाहते हैं?
उत्तर - सभी।
प्रश्न - पालीथीन का प्रयोग कौन नहीं करता?
उत्तर- सभी करते हैं।
प्रश्न -भ्रष्टाचार मुक्त भारत कौन कौन चाहते हैं?
उत्तर-सभी।
प्रश्न - अपने स्वार्थ के लिए कितने लोगों ने रिश्वत नहीं ली / दी?
उत्तर - सभी ने किसी न किसी रूप में रिश्वत जरूर ली / दी है।
प्रश्न - गिरते रुपये की चिंता कितने लोग करते हैं?
उत्तर- सभी करते हैं ।
प्रश्न - कितने लोग सिर्फ स्वदेशी सामान खरीदते हैं?
उत्तर- कोई नहीं ।
प्रश्न - यातायात की बिगड़ी हालात से कौन कौन दुखी है?
उत्तर - सभी ।
प्रश्न - यातायात के नियमों को 100% पालन कौन कौन करता है?
उत्तर- कोई नहीं ।
प्रश्न - बदलाव कौन कौन चाहते हैं?
उत्तर - सभी।
प्रश्न - खुद कितने लोग बदलना चाहते हैं?
उत्तर - कोई नहीं।
*प्रश्न - कौन कौन मोदी से दुखी है ?*
*उत्तर - सभी ।*
*प्रश्न - कौन चाहता है कांग्रेस सरकार ?*
*उत्तर - कोई नहीं ।
Wishing you all my dear friends Wonderful night...
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