Saturday, November 5, 2022

बाल, युवा और बृद्ध...

 दोस्तो...शरीर कभी एकरूप नहीं रहता और सत्ता कभी अनेकरूप नहीं होती। शरीर जन्म से पहले भी नहीं था, मरने के बाद भी नहीं रहेगा तथा वर्तमान में वह प्रतिक्षण मर रहा है। शरीर की तीनों- बाल, युवा और बृद्ध अवस्थायें स्थूल शरीर की हैं। परंतु स्वरूप की चिन्मय सत्ता इन सभी अवस्थाओं से अतीत है!अवस्थाएँ बदलती है पर स्वरूप वही रहता है। जन्मना और मरना हमारा धर्म नहीं है प्रत्युत शरीर का धर्म है.हमारी आयु अनादि और अनंत है। जैसे हम अनेक वस्त्र बदलते रहते हैं, पर वस्त्र बदलने पर हम नहीं बदलते। ऐसे ही अनेक जन्मो में जाने पर भी हमारी सत्ता नित्य निरंतर ज्यों की त्यों रहती है। हर कठिन समय के बाद एक खूबसूरत सुबह जरूर होती है। ईश्वर पर भरोसा रखें। मजबूत बनें और अपना और परिवार का ध्यान रखें...संयोग तो अचानक आता है ना तो उसकी आहट सुनाई देती है। ना ही पूर्वाभास होता है। परन्तु जब आता है तो, जीवन के हर पहलू पर अपना असर छोड़ जाता है...जिसकी संगत से रंगत बदल जाए,वही मित्र उत्तम व श्रेष्ठ होता है। और जिसकी प्रेरणा व सुझाव से किसी का, चरित्र व जीवन बदल जाये गुरु वही श्रेष्ठ है...किसी भी रिश्ते को कितनी भी खूबसूरती से क्यों ना बांधा जाए...अगर नज़रों में इज्जत और बोलने में लिहाज,न हो तो वह टूट जाता है...         


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