कितने सालों बाद तुम्हें
आज देखा
जी करें तुम्हें आवाज लगा दूं
लेकिन
एक अजीब डर भी तो
मन को खाए जा रहा था
कैसे तुम्हें आवाज देता
अब क्या कह कर
तुम्हें पुकारता
सोचा इतने सालों में बहुत कुछ बदल भी तो गया होगा
सब कुछ भूला भी तो गया होगा
वक़्त के साथ-साथ
बहुत कुछ पीछे छुट गया होगा
और सब कुछ टुट भी गया होगा
पर फिर एक सवाल मन में आया
मजबूर कर दिया उसने
ये सोचने पे
के वक़्त गुजरने से रिश्ते टुट जाते है क्या
इस लिहाज से तो कुछ भी नही टूटा होगा
यही सोचा
मगर पता नही
दिल को अब भी क्यूं ये यकीं नही हो रहा था
आखिर ये रिश्ता टूटा है या जुड़ा हुआ ही है
इसी कश्मकश में
मैं तुम्हें आवाज नही दे पाया
और तुम भी मुझे देख ना पायी
फिर एक बार हम दोनों
एक दूसरे को देखे बिना ही
अपने अपने रास्तें की तरफ चल पड़े
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