टॉप क्लास की लाइन of all UPSC Topers...
स्पेशल फ़ॉर whole youngester...who r under studing...
एक बात कहूँ दोस्त...कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण है जो व्यक्ति साहस के साथ उनका सामना करते है,वे सदैव सफल होते है!...सुख भी बहुत हैं परेशानियाँ भी बहुत हैं, जिंदगी में लाभ हैं तो हानियाँ भी बहुत हैं क्या हुआ जो प्रभु ने थोड़े गम दे दिए उस की हम पर मेहरबानियाँ भी बहुत हैं...ये क्या सोचेंगे? वो क्या सोचेंगे? दुनिया क्या सोचेगी? इससे ऊपर उठकर कुछ सोच, जिन्दगीं सुकून का दूसरा नाम हो जाएगी...दुनियाँ में दो तरह के लोग होते है एक वो जो दुनियाँ के अनुसार खुद को बदल लेते है और दूसरे वो जो खुद के अनुसार दुनियाँ को बदल देते है।...पृथ्वी पर ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसको समस्या ना हो और कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान ना हो। मंजिले चाहे कितनी भी ऊँची क्यों ना हो उसके रास्ते हमेशा पैरों के नीचे से ही जाते है।...लक्ष्य वो है जो आपके लिए सही है इसके लिए अपना शत प्रतिशत दीजिये और कल के बीज बो दीजिये...अगर आपके पास मुसीबतों से लड़ने की ताकद है, तो आप जीत जाओगे। आप जीतते हैं तो आप लीड कर सकते हो, लेकिन अगर आप हारते हो तो आप मार्गदर्शन जरूर कर सकते है।...पानी की तरह बनो जो अपना रास्ता स्वयं बनाता है, पत्थर की तरह नहीं जो दूसरों का रास्ता भी रोक लेता है !...इन्तजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है,
जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है !...सबको गिला है की बहुत कम मिला है,जरा सोचिये की जितना आपको मिला है उतना कितनो को मिला है...चुनौतियों का स्वीकार करो, क्यूंकि इससे या तो
सफलता मिलेगी या शिक्षा !...जब तक तुम दौड़ने का साहस नहीं जुटाओगे,तुम्हारे लिए प्रतिस्पर्धा में जितना सदा असंभव बना रहेगा !....किसी ने बहुत अच्छी बात कही है मैं तुम्हें इसलिए सलाह नहीं दे रहा कि मैं ज्यादा समझदार हूँ…बल्कि इसलिए दे रहा हूँ कि मैंने ज़िंदगी में ग़लतियाँ तुमसे ज्यादा की हैं...बात कड़वी है पर सच है; लोग कहते है तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ है,यदि लोग सच में साथ होते तो संघर्ष, की जरुरत ही नहीं पड़ती...असफलता और सफलता दोनों ही अवस्थाओं में लोग तुम्हारी बातें करेंगे,सफल होने पर प्रेरणा के रूप में और असफल होने पर सीख के रूप में... ज़िंदगी तो कठिनाइयों का रास्ता है, मंजिल अपनी कुछ ख़ास रखना, सफलता जरूर मिलेगी, बस इरादे नेक और हौसले बेहिसाब रखना।...अपने किरदार को मौसम से बचाए रखना,लौटकर फूलो में वापस नहीं आती खुशबु !...महान सफलता हासिल करने वाले कभी भी फालतू की बातो में समय व्यर्थ नहीं करते.वे रचनात्मक तरीके से सोचते है, और वे जानते है की उनके सोचने का स्तर ही उनकी सफलता निर्धारित करेगा !... क्यूँ हथेली की लकीरों से आगे होती है हमारी उंगलियाँ,रब ने भी किस्मत से आगे हमारी मेहनत को ही रखा है...एक ऐसा लक्ष्य जरूर होना चाहिए। जो रोज सुबह बिस्तर से उठने पर, मजबुर कर दे...जिसको अपने आप पर भरोसा होता है , उसी को सफलता प्राप्त होती है...एक व्यक्ति द्वारा स्वामी विवेकानंद से पूछा गया,
सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या है ? स्वामी जी ने उत्तर दिया की वो ऊमीद खोना जिसके भरोसे पर हम सब कुछ वापस पा सकते है...एक व्यक्ति द्वारा स्वामी विवेकानंद से पूछा गया, सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या है ? स्वामी जी ने उत्तर दिया की वो ऊमीद खोना जिसके भरोसे पर हम सब कुछ वापस पा सकते है...जो मुस्कुरा रहा है उसे दर्द ने पाला होगा,जो चल रहा है उसके पाँव में छाला होगा,बिना संघर्ष के इन्सान चमक नहीं सकता यारों, जो जलेगा उसी दिये में तो उजाला होगा...संगत से इन्सान के स्वभाव पर कोई फर्क नहीं पड़ता,क्यूंकि विभीषण रावण के साथ रहकर भी नहीं बिगड़ा,और कैकेयी राम के साथ रहकर भी नहीं सुधरी...समय अनमोल है, क्योंकि समय ही जीवन में एकमात्र ऐसी चीज है, जो सीमित है... जीवन का फ्यूज उड़ने से पहले...जीवन को यूज कर लो...धीरज...अपने लिए ,प्रेम... दूसरों के लिए ,और...करुणा... सभी के लिए...याद रखिए...इतिहास उन्ही को याद रखता है जो इतिहास को झुका के आगे बढ़ते है...आप को अगर आगे बढ़ना है तो आप खुद पर यकीन रखिये और ताबड़तोड़ परिश्रम कीजिये...लक्ष्य से तनिक भी भटकाव आप की असफलता की गहरी नींव खोद सकती है...अनवरत परिश्रम ही सफलता का मूल मंत्र है , खुद पर यकीन कर कर्मों का सैलाब पैदा कीजिये , जीत की नींव गहरी होनी चाहिए...अगर आप दो-तीन साल खुद को तपा लिये तो यकीन मानिए फिर वो सोना बनके निकलेंगे...जिसकी कीमत लगाने की औकात जीत की भी नहीं होगी...Collected & Auditing By Raj sir
प्रारम्भिक_परीक्षा
Preparation Tips for UPSC
#आप कहा #गलती कर जाते हैं इस #लाइन में देखें और #सही करे, #अगर आप इस 10 line #follow kr लेते हैं तो यकीन कीजिए आप 80% यही सफल हो गए, कोई #परीक्षा कितनी टफ है, यह जानने के लिए उसके सक्सेस रेशो को देखना चाहिए। इस मापदंड से सिविल सर्विसेज एग्जाम या आईएएस एग्जाम को सबसे कठिन परीक्षा कहा जा सकता है। इसका सक्सेस रेशो 0.01 प्रतिशत है! ऐसी परीक्षा में सफलता पाने के लिए केवल प्रतिबद्धता, तैयारी और किस्मत ही काफी नहीं होती। इसके लिए जरूरी हो जाता है कि उम्मीदवार आईएएस की तैयारी को अपनी जीवनशैली ही बना डाले।पहले-पहल यह बहुत बोझिल लग सकता है लेकिन यदि आप आईएएस परीक्षा को क्लियर करने को लेकर समर्पित और गंभीर हैं, तो इसकी तैयारी का इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है। आईएएस की तैयारी को अपनी जीवनशैली में शामिल करने के लिए जरूरी है कि आप इन दस आदतों को अपना लें...।
1. #टाइमटेबल_बनाएं
अगर आप आईएएस परीक्षा में सफलता पाना चाहते हैं, तो आपको यह बताने की जरूरत नहीं कि पढ़ाई के लिए टाइमटेबल बनाना कितना जरूरी है। आपका टाइमटेबल ऐसा हो, जो पढ़ाई के घंटों, आराम, फिजिकल एक्टिविटी और सोशल लाइफ सभी के बीच संतुलन बनाकर चले। सारा समय सिर्फ पढ़ाई करते रहने से एकरसता आ जाएगी और पढ़ाई में आपका मन ही नहीं लगेगा। इसके साथ ही, आप दो-तीन अलग-अलग टाइम शेड्यूल बना लें, जिनमें आपकी पढ़ाई के दैनिक, साप्ताहिक और मासिक लक्ष्य निर्धारित हों। इससे आप अपनी तैयारी की निगरानी कर पाएंगे और जहां जरूरी हो, वहां सुधार ला पाएंगे।
2. #कॉन्सेप्ट_क्लियर_रखें
आईएएस परीक्षा का सिलेबस बहुत वृहद है और किसी विषय की पूरी लंबाई-चौड़ाई नाप डालता है। ऐसे में कई उम्मीदवार तथ्यों को रट लेते हैं, बजाय उनका कॉन्सेप्ट समझने के। यह तरीका बिल्कुल गलत है। हमारी याददाश्त केवल एक सीमित डेटा ही स्टोर कर सकती है और यह भी समय के साथ ध्ाूमिल पड़ती जाती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप जो भी पढ़ें, उसकी मूल अवधारणा को गहराई से समझें। अगर आप किसी टॉपिक को अच्छी तरह समझ लेंगे, तो उससे जुड़ी तमाम जानकारी अच्छी तरह याद भी रख पाएंगे।
3. #राइटिंग_स्किल_विकसित_करें
कई आईएएस उम्मीदवार केवल प्रिलिमिनरी एग्जाम पर ही फोकस करते हैं, जोकि ऑब्जेक्टिव टाइप परीक्षा है। शुरू-शुरू में यह रणनीति सही लग सकती है लेकिन आगे चलकर आपको अहसास होगा कि यह गलत है। आईएएस की मेन परीक्षा परंपरागत सब्जेक्टिव टाइप परीक्षा है, जिसमें आपको हाथ से उत्तर लिखने होंगे। इसलिए अगर आप मेन परीक्षा में भी सफल होना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि आप प्रिलिम्स स्तर से ही अपनी राइटिंग स्किल में निखार लाना शुरू कर दें। कई जानकारों का मत है कि लिखकर पढ़ाई करना न सिर्फ तथ्यात्मक सूचनाओं को याद रखने के सबसे अच्छे तरीकों में से एक है, बल्कि यह उत्तरों का फॉर्मेट विकसित करने में भी मददगार है, जोकि मेन परीक्षा में लाभ देता है।
4. #अखबारों_से_दोस्ती
अखबार किसी आईएएस उम्मीदवार के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं। आपको रोज अखबार पढ़ने की आदत डालनी ही चाहिए। मगर इतना ही काफी नहीं है। आपको उन टॉपिक्स की पहचान भी होनी चाहिए, जिन पर आपको ज्यादा फोकस करना है। अखबार पढ़ना शुरू करने से पहले खुद से पूछें कि आपको क्या पढ़ना चाहिए, क्यों पढ़ना चाहिए और कहां पढ़ना चाहिए। इस प्रकार आप वही पढ़ेंगे, जो पढ़ना जरूरी है और रोज-ब-रोज आवश्यक सूचनाएं इकट्ठी करते चलेंगे।
5. #सरकारी_वेबसाइट्स_पर_नजर
अधिकांश आईएएस उम्मीदवारों का इस बात पर ध्यान ही नहीं जाता कि सरकारी वेबसाइट्स नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों, डेटा और रिपोर्टों का सरल, सुगम स्रोत हैं। इन वेबसाइट्स का अध्ययन कर आप जो सूचनाएं पाएंगे और जो समझ विकसित करेंगे, वह प्रिलिम्स और मेन्स दोनों में लाभदायक रहेगी।
6. #क्वॉलिटी_डिस्कशधन
किसी आईएएस उम्मीदवार को अपने साथी उम्मीदवारों और टीचर्स व कोचिंग इंस्ट्रक्टर्स के साथ स्वस्थ और उच्च कोटि के डिस्कशन करते रहना चाहिए। इन चर्चाओं में किसी एक टॉपिक पर फोकस करें, उसे अलग-अलग नजरियों से देखें और अपनी बात को प्रामाणिक डेटा के आधार पर आगे बढ़ाएं। किसी टॉपिक पर अलग-अलग नजरिये सामने आने पर आप परीक्षा में अधिक संतुलित और परिपूर्ण उत्तर दे पाएंगे। ऐसे किसी डिस्कशन ग्रुप का सदस्य बनने से पढ़ाई के लिए प्रेरणा भी मिलती रहती है। साथ ही इससे इंटरव्यू की तैयारी में भी मदद मिलती है।
7. #प्रॉब्लम_सॉल्विंग_एटिट्यूड
परीक्षा में सफल होने के लिए ही नहीं, आईएएस अधिकारी के रूप में काम करने के दौरान भी आपको प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल की दरकार होगी। आपके सामने कई चुनौतियां आएंगीं, जिनसे आपको नई-नई तकनीकों से निपटना होगा। आपको वृहद सिलेबस को पढ़ने, टाइम मैनेजमेंट, संसाधनों, पियर प्रेशर, समाज के प्रेशर आदि की चुनौतियों से जूझना पड़ सकता है। ऐसी स्थितियों में आपका प्रॉब्लम सॉल्विंग एटिट्यूड ही काम आएगा।
8. #अपने_टीचर_खुद_बनें
आईएएस की तैयारी करना बहुत लंबा और थका देने वाला काम है। इसका सिलेबस मानो लगातार बढ़ता जाता है
और समय लगातार कम होता जाता है। ऐसे में किसी एक टीचर, गाइड, मेंटर या किसी एक कोचिंग क्लास मटेरियल पर निर्भर रहने से बात नहीं बनने वाली। आपको खुद अपना टीचर बनना होगा। आप खुद ही प्रश्न तैयार करें और रेफरेंस तथा स्टडी मटेरियल के इस्तेमाल से उनके उत्तर तलाशें। टीचर और स्टूडेंट दोनों की भूमिकाएं खुद निभाने से आपके भीतर आत्मविश्वास का भी संचार होगा, जो परीक्षा में और उसके बाद भी काम आएगा।
9. #स्वस्थ_जीवनशैली
'केवल काम, नहीं आराम' की नीति आईएएस की तैयारी में कारगर नहीं हो सकती। ढेर सारी किताबों के साथ खुद
को कमरे में बंद करके आज तक कोई आईएएस परीक्षा क्लियर नहीं कर पाया है। आपको अपने स्वास्थ्य, मनोरंजन तथा सामाजिक जीवन पर भी ध्यान देना चाहिए। योग, ध्यान या फिर रनिंग, स्पोर्ट्स आदि के लिए रोज समय जरूर निकालें। पौष्टिक भोजन और रोज कम से कम 8 घंटे की नींद लें। परिवार के साथ तो समय बिताएं ही, ऐसे दोस्त भी बनाएं जिनके लक्ष्य आपसे मिलते-जुलते हों। इससे आपका फोकस बना रहेगा और आपको प्रेरणा मिलती रहेगी।
10. #प्रतिबद्धता_और_समर्पण
आईएएस परीक्षा में सफलता का सफर बहुत लंबा और मुश्किल है। आपकी प्रतिबद्धता ही इस सफर को पूरा करने में आपके काम आएगी। आपके सामने ऐसी कई चुनौतियां और समस्याएं आएंगीं, जिनसे आपके कदम डगमगा
सकते हैं। कई ऐसे युवा भी हैं, जिन्होंने आईएएस की तैयारी में 5 से 7 साल लगा देने का बाद सामाजिक दबाव या फिर लगातार नाकामी के चलते हार मान ली। ऐसी तमाम चुनौतियों के बावजूद, यह भी सच है कि हर साल मुट्ठी भर उम्मीदवार अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इस परीक्षा को क्रैक कर ही लेते हैं। इसके लिए जरूरी है कि आपको खुद पर विश्वास हो और अपने लक्ष्य के प्रति आपमें समर्पण हो...
सिविल_सेवा_परीक्षा_की_पहली_सी ढ़ी:
प्रारम्भिक_परीक्षा
जैसा कि आप जानते हैं, संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों की सिविल सेवा परीक्षाओं में प्रारम्भिक परीक्षा ही सफलता की पहली सीढ़ी है। चूँकि प्रीलिम्स परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद ही आप मुख्य परीक्षा देने के लिए दावेदार बनते हैं, अतः प्रीलिम्स उत्तीर्ण करना इस प्रतिष्ठित परीक्षा में आगे बढ़ने की पहली शर्त है।
मेरी समझ में, यह चरण परीक्षा का सबसे कठिन और unpredictable चरण है। unpredictable से मेरा अर्थ है कि इस चरण में अटकलें या सम्भावनाएँ जताना सबसे मुश्किल होता है। न तो यह अंदाज़ा लगाया जा सकता कि सामान्य अध्ययन के किस खंड से ज़्यादा सवाल पूछे जाने की सम्भावना है और ना ही यह कि सुरक्षित कट ऑफ़ स्कोर क्या होगा, जिसके आस-पास उत्तीर्ण होने की उम्मीद की जा सके। यह चरण कठिन इसलिए नहीं कि इसकी तैयारी मुश्किल है, कठिन इसलिए है क्योंकि इस चरण में प्रतिस्पर्धा सबसे ज़्यादा है।
यद्यपि प्रीलिम्स में सुनिश्चित सफलता के लिए सेफ़ स्कोर ज़रूरी है पर प्रीलिम्स के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है अनेक ऐसे टॉपर रहे हैं, जिन्होंने यह चरण बिलकुल किनारे पर (यानी कट ऑफ़ से कुछ ही अंक ज़्यादा लाकर) उत्तीर्ण किया और अंतिम रूप में बेहतरीन रैंक लाए। इस तरह कुल मिलाकर यह समझना ज़रूरी है कि यद्यपि प्रीलिम्स में क़िस्मत भी ठीक-ठाक भूमिका निभाती है, पर प्रीलिम्स उत्तीर्ण करने का कोई विकल्प नहीं है और इस चरण को अनदेखा करने या हल्के में लेना भारी पड़ सकता है।
प्रीलिम्स में रिस्क नहीं...
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जैसा कि मैंने पहले कहा कि UPSC सिविल सेवा परीक्षा का पहला चरण यानी प्रारम्भिक परीक्षा सबसे ज़्यादा Unpredictable है। यह एक ऐसा चरण है, जिसमें हर साल लगभग आठ-नौ लाख अभ्यर्थी आवेदन करते हैं और क़रीब पाँच लाख अभ्यर्थी परीक्षा में भाग लेते हैं, जबकि कुछ हज़ार (आम तौर पर कुल रिक्तियों के 12-13 गुना अभ्यर्थी) अभ्यर्थी ही चयनित होते हैं। लिहाज़ा इस चरण में लापरवाही भारी पड़ सकती है।
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जैसा कि मैंने पहले कहा कि UPSC सिविल सेवा परीक्षा का पहला चरण यानी प्रारम्भिक परीक्षा सबसे ज़्यादा Unpredictable है। यह एक ऐसा चरण है, जिसमें हर साल लगभग आठ-नौ लाख अभ्यर्थी आवेदन करते हैं और क़रीब पाँच लाख अभ्यर्थी परीक्षा में भाग लेते हैं, जबकि कुछ हज़ार (आम तौर पर कुल रिक्तियों के 12-13 गुना अभ्यर्थी) अभ्यर्थी ही चयनित होते हैं। लिहाज़ा इस चरण में लापरवाही भारी पड़ सकती है।
इसलिए बेहतर और सुरक्षित विकल्प यह है कि प्रारम्भिक परीक्षा की तैयारी की रणनीति कुछ इस तरह बनायी जाए कि आपका प्रीलिम्स का स्कोर इतना हो कि आप सुरक्षित रूप से इस चरण को पार कर सकें।
प्रारम्भिक परीक्षा: योजना और पाठ्यक्रम
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आप जानते ही हैं कि प्रारम्भिक परीक्षा में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाते हैं। एक ही दिन में दो पालियों में सम्पन्न होने वाली इस परीक्षा में एक तिहाई निगेटिव मार्किंग होती है, यानी तीन प्रश्नों के ग़लत उत्तर देने पर एक प्रश्न के बराबर अंक काट लिए जाते हैं।
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आप जानते ही हैं कि प्रारम्भिक परीक्षा में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाते हैं। एक ही दिन में दो पालियों में सम्पन्न होने वाली इस परीक्षा में एक तिहाई निगेटिव मार्किंग होती है, यानी तीन प्रश्नों के ग़लत उत्तर देने पर एक प्रश्न के बराबर अंक काट लिए जाते हैं।
पहला प्रश्नपत्र सामान्य अध्ययन का होता है, जिसमें कुल 200 अंकों के 100 प्रश्न होते हैं। दूसरा प्रश्नपत्र सीसैट के नाम से जाना जाता है। इसमें 200 अंकों के 80 प्रश्न पूछे जाते हैं। 2015 की सिविल सेवा परीक्षा से अब दूसरे पेपर के अंक प्रारम्भिक परीक्षा की मेरिट में नहीं जुड़ते और इसे क्वालिफ़ाई करना पर्याप्त है।
प्रारम्भिक परीक्षा का पाठ्यक्रम इस प्रकार है-
सामान्य अध्ययन पेपर-1 :-
1. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाएँ।
2. भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन।
3. भारत और विश्व का भूगोल - भारत और विश्व का भौतिक/प्राकृतिक, सामाजिक और आर्थिक भूगोल।
4. भारतीय राजनीति और शासन – संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोक नीति, अधिकार संबंधी मुद्दे आदि।
5. आर्थिक और सामाजिक विकास – सतत विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहलें आदि |
6. पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे, जिनके लिये इस विषयगत विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है।
7. सामान्य विज्ञान।
सामान्य अध्ययन पेपर-2 (सी-सैट) :-
1. बोधगम्यता /अवबोध
2. संचार कौशल सहित अंतर-वैयक्तिक कौशल
3. तार्किक कौशल और विश्लेषणात्मक क्षमता
4. निर्णय लेना और समस्या समाधान
5. सामान्य मानसिक योग्यता
6. आधारभूत संख्ययन (संख्याएँ और उनके संबंध, विस्तार क्रम आदि- दसवीं कक्षा का स्तर), डेटा इंटरप्रिटेशन (चार्ट, ग्राफ, टेबल, डाटा पर्याप्तता आदि – दसवीं कक्षा का स्तर)
प्रारम्भिक परीक्षा की समग्र तैयारी के आयाम-
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सामान्य अध्ययन पेपर-1 :-
1. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाएँ।
2. भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन।
3. भारत और विश्व का भूगोल - भारत और विश्व का भौतिक/प्राकृतिक, सामाजिक और आर्थिक भूगोल।
4. भारतीय राजनीति और शासन – संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोक नीति, अधिकार संबंधी मुद्दे आदि।
5. आर्थिक और सामाजिक विकास – सतत विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहलें आदि |
6. पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे, जिनके लिये इस विषयगत विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है।
7. सामान्य विज्ञान।
सामान्य अध्ययन पेपर-2 (सी-सैट) :-
1. बोधगम्यता /अवबोध
2. संचार कौशल सहित अंतर-वैयक्तिक कौशल
3. तार्किक कौशल और विश्लेषणात्मक क्षमता
4. निर्णय लेना और समस्या समाधान
5. सामान्य मानसिक योग्यता
6. आधारभूत संख्ययन (संख्याएँ और उनके संबंध, विस्तार क्रम आदि- दसवीं कक्षा का स्तर), डेटा इंटरप्रिटेशन (चार्ट, ग्राफ, टेबल, डाटा पर्याप्तता आदि – दसवीं कक्षा का स्तर)
प्रारम्भिक परीक्षा की समग्र तैयारी के आयाम-
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- समझते हुए चीज़ों को याद करें। केवल रटने से बात नहीं बनेगी। पर यह भी ध्यान रहे, कुछ चीज़ें ज्यों की त्यों भी याद करनी पड़ती हैं- जैसे अनुच्छेद 14 से 32 तक क्रम से मूल अधिकार।
- यद्यपि सीखने की आदत यानी एक अच्छा लर्नर होना हमेशा और हर मोड़ पर मदद करता है, पर प्रारम्भिक परीक्षा में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। जहाँ से जो सीखने या जानने को मिले, उसे सीखते रहें। मिसाल के तौर पर मेट्रो ट्रेन या एफएम रेडियो पर आने वाले सरकारी योजनाओं और जागरूकता सम्बंधी विज्ञापन भी कई बार बहुविकल्पीय सवालों में काम आ जाते हैं। इसी तरह इंडिया ईयरबुक, योजना, पीआईबी, एआईआर आदि की ख़बरों के प्रति भी जागरूक रहें। कुल मिलाकर आँख-कान खुले रखें। वैविध्यपूर्ण अध्ययन और जागरूकता इस चरण ने बहुत काम आती हैं। जीएस के किसी एक खंड की तैयारी किसी दूसरे खंड में भी काम आ सकती है।
- प्रारम्भिक परीक्षा के पाठ्यक्रम पहले पेपर में ज़्यादातर खंड ऐसे हैं जो मुख्य परीक्षा में भी काम आते हैं। जैसे- करेंट अफ़ेयर्स, इतिहास और स्वतंत्रता आंदोलन, भारत और विश्व का भूगोल, भारतीय राजव्यवस्था और संविधान,आर्थिक विकास और पर्यावरण। अतः इन खंडों पर ज़्यादा फ़ोकस करें क्योंकि ये खंड सिविल सेवा परीक्षा के सभी चरणों में काम आते हैं।
- सामान्य अध्ययन के सभी खंडों से सम्बंधित नवीन समसामयिक घटनाओं पर विशेष ध्यान दें। जैसे सामान्य विज्ञान वाले खंड में समसामयिक उपलब्धियों और प्रौद्योगिकीय विकास पर ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसे ही हालिया विधेयक, संविधान संशोधन, अध्यादेश आदि, मौद्रिक नीति, बैंकिंग सुधार, जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का प्रभाव, संकटग्रस्त प्रजातियाँ, किसी नए भौगोलिक या सांस्कृतिक उत्खनन की ख़बर, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सम्मेलन और निर्णय आदि पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- यह अनुमान लगाना नामुमकिन ही है कि सामान्य अध्ययन के किस खंड (segment) से ज़्यादा सवाल आएँगे। कभी राजव्यवस्था और स्वतंत्रता आंदोलन से ज़्यादा सवाल आ जाते हैं, तो कभी भूगोल और पर्यावरण से। 2016 की प्रारम्भिक परीक्षा में किसी ने नहीं सोचा होगा कि करेंट अफ़ेयर्स से इतने सारे सवाल पूछे जा सकते हैं। इसलिए बेहतर है कि जीएस के सभी खंडों की क़ायदे से तैयारी कर लाइन।
- प्रारम्भिक परीक्षा की सम्पूर्ण तैयारी करेंट अफ़ेयर्स तक सीमित नहीं की जा सकती। पिछले सालों में अधिकतर यह ट्रेंड रहा है कि प्रारम्भिक परीक्षा के पेपर एक में जीएस के विविध खंडों की आधारभूत/बेसिक समझ पर सवाल पूछे जाते रहे हैं। इसके लिए छठी कक्षा से बारहवीं कक्षा तक की NCERT की सामाजिक विज्ञानों की किताबें पढ़नी चाहिए।
- करेंट अफ़ेयर्स में जो कुछ भी पढ़ें, उसकी बेसिक नोलिज प्राप्त कर लें। क्योंकि अक्सर प्रीलिम्स में करेंट अफ़ेयर्स के सवाल सीधे न पूछकर सामान्य अध्ययन की ट्रेडिशनल जानकारी से जोड़कर पूछे जाते हैं। इस तरह आप आधारभूत पारम्परिक ज्ञान और समसामयिक घटनाक्रम को कनेक्ट करके प्रारम्भिक परीक्षा की समग्र तैयारी कर सकते हैं।
कैसे करें पेपर 2 यानी 'सी-सैट' की तैयारी-
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पेपर दो का नाम यद्यपि सामान्य अध्ययन-2 है, पर यह सीसैट (सिविल सर्विस एप्टीट्यूड टेस्ट) के नाम से ज़्यादा लोकप्रिय है। हालाँकि अब यह पेपर क्वालिफ़ाइंग ही रह गया है, पर प्रारम्भिक परीक्षा आप तभी उत्तीर्ण कर पाएँगे, जब इस पेपर ने निर्धारित न्यूनतम अंक प्राप्त कर पाएँगे।
यह पेपर दरअसल एप्टीट्यूड टेस्ट ही है, जिसमें आपके विभिन्न कौशलों, योग्यताओं और क्षमताओं का परीक्षण किया जाता है। इनमें अवबोध क्षमता, संचार कौशल, तार्किक योग्यता, विश्लेषण क्षमता, मानसिक योग्यता और संख्यात्मक अभियोग्यता आदि शामिल हैं। इसके लिए आधारभूत अंकगणित और सांख्यिकी, रीज़निंग, अवबोध क्षमता (comprehension) पर बेसिक पकड़ ज़रूरी है।
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पेपर दो का नाम यद्यपि सामान्य अध्ययन-2 है, पर यह सीसैट (सिविल सर्विस एप्टीट्यूड टेस्ट) के नाम से ज़्यादा लोकप्रिय है। हालाँकि अब यह पेपर क्वालिफ़ाइंग ही रह गया है, पर प्रारम्भिक परीक्षा आप तभी उत्तीर्ण कर पाएँगे, जब इस पेपर ने निर्धारित न्यूनतम अंक प्राप्त कर पाएँगे।
यह पेपर दरअसल एप्टीट्यूड टेस्ट ही है, जिसमें आपके विभिन्न कौशलों, योग्यताओं और क्षमताओं का परीक्षण किया जाता है। इनमें अवबोध क्षमता, संचार कौशल, तार्किक योग्यता, विश्लेषण क्षमता, मानसिक योग्यता और संख्यात्मक अभियोग्यता आदि शामिल हैं। इसके लिए आधारभूत अंकगणित और सांख्यिकी, रीज़निंग, अवबोध क्षमता (comprehension) पर बेसिक पकड़ ज़रूरी है।
पेपर में अवबोध क्षमता से काफ़ी सवाल आते हैं। इन सवालों को सही तरीक़े से हल करने के लिए पढ़ने और समझने की गति तेज़ होना और सटीक उत्तर देने की क्षमता होना ज़रूरी है। लिहाज़ा तैयारी के स्तर पर मैं कहूँगा कि ख़ूब पढ़ें और पढ़ने और अवबोध की गति व क्षमता में इज़ाफ़ा करें। रही बात गणित और रीज़निंग की, तो इनसे ज़्यादा न डरें, क्योंकि इनका स्तर बहुत जटिल न होकर बेसिक और सामान्य होता है। गणित और रीज़निंग में मेरा मानना है, कि हर टाइप के आठ-दस सवाल हल करने का अभ्यास कर लेना चाहिए।
द्वितीय प्रश्नपत्र की तैयारी में अभ्यास का महत्व सर्वविदित है। इसमें तैयारी का बड़ा समय अभ्यास को दें।
इस पेपर को लापरवाही से न देखें और इतनी पकड़ बना लें कि न्यूनतम उत्तीर्णाँक से ज़्यादा स्कोर आराम से ला सकें।
द्वितीय प्रश्नपत्र की तैयारी में अभ्यास का महत्व सर्वविदित है। इसमें तैयारी का बड़ा समय अभ्यास को दें।
इस पेपर को लापरवाही से न देखें और इतनी पकड़ बना लें कि न्यूनतम उत्तीर्णाँक से ज़्यादा स्कोर आराम से ला सकें।
प्रैक्टिस से राह होगी आसान
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प्रारम्भिक परीक्षा के दोनों प्रश्नपत्रों में अभ्यास का ज़बरदस्त महत्व है। अभ्यास पढ़ने की गति और सतर्कता (allertness) को बढ़ाता है और निगेटिव मार्किंग से निपटने में भी मदद करता है। अतः अपनी बेसिक तैयारी के बाद निरंतर अभ्यास को एक आदत बना लें।
इस अभ्यास में पिछले सालों के पेपर (ख़ास तौर पर नए पैटर्न 2011 के बाद के) विशेष रूप से उपयोगी हैं। इन पेपरों को समय-समय पर देखते रहने से ट्रेंड का अंदाज़ा होता है और हल करने से आत्मविश्वास बढ़ता है, सो अलग।
साथ ही, आप चाहें, तो किसी टेस्ट सिरीज़ में हिस्सा ले सकते हैं या बाज़ार में अथवा ओनलाइन मिलने वाले ओबजेक्टिव टाइप के पेपर घर बैठे हल करने का अभ्यास कर सकते हैं। पर अभ्यास करने का कोई विकल्प नहीं है, इसलिए जमकर अभ्यास करें। जिन प्रश्नों को टेस्ट में हल करें, बाद में उनके सही उत्तर देखकर उन्हें भी तैयारी में शामिल कर लें। इस तरह प्रीलिम्स में अधिकाधिक प्रश्नों का अभ्यास करें, और उन प्रश्नों को अध्ययन सामग्री की तरह पढ़ भी लें।
इस अभ्यास में पिछले सालों के पेपर (ख़ास तौर पर नए पैटर्न 2011 के बाद के) विशेष रूप से उपयोगी हैं। इन पेपरों को समय-समय पर देखते रहने से ट्रेंड का अंदाज़ा होता है और हल करने से आत्मविश्वास बढ़ता है, सो अलग।
साथ ही, आप चाहें, तो किसी टेस्ट सिरीज़ में हिस्सा ले सकते हैं या बाज़ार में अथवा ओनलाइन मिलने वाले ओबजेक्टिव टाइप के पेपर घर बैठे हल करने का अभ्यास कर सकते हैं। पर अभ्यास करने का कोई विकल्प नहीं है, इसलिए जमकर अभ्यास करें। जिन प्रश्नों को टेस्ट में हल करें, बाद में उनके सही उत्तर देखकर उन्हें भी तैयारी में शामिल कर लें। इस तरह प्रीलिम्स में अधिकाधिक प्रश्नों का अभ्यास करें, और उन प्रश्नों को अध्ययन सामग्री की तरह पढ़ भी लें।
निगेटिव मार्किंग से कैसे निपटें...
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प्रारम्भिक परीक्षा में निगेटिव मार्किंग को हैंडिल करना अपरिहार्य है और ऐसा केवल अभ्यास से ही किया जा सकता है। ध्यान दें, कभी भी ये न सोचें कि मुझे सारे के सारे सवाल हल करने ही हैं। और यह भी न भूलें कि किसी भी अभ्यर्थी को सारे सवालों के सही उत्तर मालूम नहीं हैं।
मेरी राय में पहले राउंड में उन सवालों को हल करें, जिनमें आप कोनफ़िडेंट हैं। यानी एकदम सुनिश्चित टाइप के सवालों को सबसे पहले हल करें। यह तय मानकर चलिए, कि बहुत सारे सवाल ऐसे होंगे, जिनमें आपको पक्का आत्मविश्वास नहीं होगा। कहीं-कहीं फिफ़्टी-फिफ़्टी वाली स्थिति भी पैदा होगी। इसका एक कारगर तरीक़ा है- विलोपन विधि (elimination method)। यानी सबसे पहले ऐसे विकल्पों को काट दें, जो निश्चित तौर पर ग़लत हैं। यदि इसके बाद भी दो विकल्प बच जाते हैं, तो मेरी व्यक्तिगत सलाह है कि ऐसे में रिस्क लिया जा सकता है।
कुछ अभ्यर्थी निगेटिव मार्किंग से इतना ज़्यादा आतंकित से रहते हैं कि वे बहुत ही कम सवाल हल करने की हिम्मत जुटा पाते हैं। यह भी समझदारी नहीं कही जा सकती। अतः ठीक-ठाक संख्या में सवाल अटेम्प्ट करें।
प्रारम्भिक परीक्षा में कितने सवाल अटेम्प्ट किए जाएँ, इसकी कोई आदर्श संख्या नहीं हो सकती, यह प्रश्नपत्र की कठिनता के स्तर, आपकी तैयारी और जानकारी के स्तर आदि पर निर्भर करता है। कुल मिलाकर निगेटिव मार्किंग को हैंडिल करना एक कला है, जो निरंतर टेस्ट पेपर हल करने और अभ्यास से सीखी जा सकती है।
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प्रारम्भिक परीक्षा में निगेटिव मार्किंग को हैंडिल करना अपरिहार्य है और ऐसा केवल अभ्यास से ही किया जा सकता है। ध्यान दें, कभी भी ये न सोचें कि मुझे सारे के सारे सवाल हल करने ही हैं। और यह भी न भूलें कि किसी भी अभ्यर्थी को सारे सवालों के सही उत्तर मालूम नहीं हैं।
मेरी राय में पहले राउंड में उन सवालों को हल करें, जिनमें आप कोनफ़िडेंट हैं। यानी एकदम सुनिश्चित टाइप के सवालों को सबसे पहले हल करें। यह तय मानकर चलिए, कि बहुत सारे सवाल ऐसे होंगे, जिनमें आपको पक्का आत्मविश्वास नहीं होगा। कहीं-कहीं फिफ़्टी-फिफ़्टी वाली स्थिति भी पैदा होगी। इसका एक कारगर तरीक़ा है- विलोपन विधि (elimination method)। यानी सबसे पहले ऐसे विकल्पों को काट दें, जो निश्चित तौर पर ग़लत हैं। यदि इसके बाद भी दो विकल्प बच जाते हैं, तो मेरी व्यक्तिगत सलाह है कि ऐसे में रिस्क लिया जा सकता है।
कुछ अभ्यर्थी निगेटिव मार्किंग से इतना ज़्यादा आतंकित से रहते हैं कि वे बहुत ही कम सवाल हल करने की हिम्मत जुटा पाते हैं। यह भी समझदारी नहीं कही जा सकती। अतः ठीक-ठाक संख्या में सवाल अटेम्प्ट करें।
प्रारम्भिक परीक्षा में कितने सवाल अटेम्प्ट किए जाएँ, इसकी कोई आदर्श संख्या नहीं हो सकती, यह प्रश्नपत्र की कठिनता के स्तर, आपकी तैयारी और जानकारी के स्तर आदि पर निर्भर करता है। कुल मिलाकर निगेटिव मार्किंग को हैंडिल करना एक कला है, जो निरंतर टेस्ट पेपर हल करने और अभ्यास से सीखी जा सकती है।
प्रारम्भिक परीक्षा के ठीक पहले ....
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प्रारम्भिक परीक्षा क्वालीफ़ाई करना कितना महत्वपूर्ण है, हम सब जानते ही हैं। आइए, समझें कि इस प्रीलिम्स परीक्षा के ठीक पहले की तनावपूर्ण घड़ी में कैसे सहज रहकर सफलता हासिल करें -
- सबसे पहले तो मन से यह ग़लतफ़हमी निकाल दें कि आप पहले पढ़ी हुई चीज़ें भूल गए हैं। निश्चिन्त रहें, परीक्षा भवन में आप सब कुछ पढ़ा हुआ रिकलेक्ट कर पाएँगे।
- विश्वास भरपूर रखें कि आपकी तैयारी अच्छी है तो सेलेक्शन की सम्भावनाएँ भी ज़्यादा हैं। वैसे भी लाखों अभ्यर्थियों में sincere या गम्भीर अभ्यर्थी काफ़ी कम ही होते हैं।
- 'निष्काम कर्मयोग' (Disinterested Action) का सिद्धांत ख़ास तौर पर प्रीलिम्स में बहुत सहारा देता है। परीक्षा को तनावमुक्त होकर देना हमारा काम है, उसके परिणाम की उधेड़बुन में लगे रहने का कोई औचित्य नहीं है। प्रीलिम्स में असफल हो जाने वाले ज़्यादातर अभ्यर्थी यह स्वीकार करते हैं कि हमने सवाल का उत्तर जानने के बावजूद जल्दबाज़ी, तनाव, स्ट्रेस या ऊहापोह में ग़लत विकल्प चुन लिया या फिर ग़लत गोला भर दिया।
- रिवीज़न ही करें, यह नया पढ़ने का समय नहीं है। हो सके तो, एक बार राजव्यस्वस्था, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और करेंट अफ़ेयर्स को दोबारा देख लें।
- निगेटिव मार्किंग से निपटने के लिए अभ्यास ज़रूरी है, लिहाज़ा टेस्ट पेपर हल करें और निगेटिव मार्किंग का गणित अच्छे से समझ कर अपनी एक सम्भावित रणनीति बना लें।
- पेपर एक और पेपर दो, दोनों के प्रश्नपत्रों का अभ्यास करें।
- इस बात का सिरदर्द बिलकुल न पालें कि आपको पढ़ी हुई बातें याद हैं या नहीं। आपने साल भर जो कुछ भी पढ़ा है, वह निश्चित रूप से आपके स्मृति पटल में सुरक्षित है और वह ज़रूरत पड़ने पर स्वतः याद आ जाएगा।
- परीक्षा चूँकि सुबह होती है अतः आख़िरी के दिनों में वक़्त पर सोने और सुबह वक़्त पर उठने की आदत डाल लाइन ताकि परीक्षा की सुबह तरोताज़ा उठें।
- किसी की देखादेखी अपनी नींद को नज़रअन्दाज़ न करें और रोज़ सात घंटे की नींद ज़रूर लें।
- हल्का और सुपाच्य भोजन लाइन, फल-सब्ज़ियाँ-सलाद का सेवन करें।
- सुबह या शाम के समय आधा घंटा हरियाली के बीच टहलें ज़रूर।
- अपने आराध्य पर और ख़ुद पर आस्था बनाए रखें।
- इधर-उधर की बातों या व्यर्थ के तनावों से बचें और नकारात्मकता से कोसों दूर रहें।
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प्रारम्भिक परीक्षा क्वालीफ़ाई करना कितना महत्वपूर्ण है, हम सब जानते ही हैं। आइए, समझें कि इस प्रीलिम्स परीक्षा के ठीक पहले की तनावपूर्ण घड़ी में कैसे सहज रहकर सफलता हासिल करें -
- सबसे पहले तो मन से यह ग़लतफ़हमी निकाल दें कि आप पहले पढ़ी हुई चीज़ें भूल गए हैं। निश्चिन्त रहें, परीक्षा भवन में आप सब कुछ पढ़ा हुआ रिकलेक्ट कर पाएँगे।
- विश्वास भरपूर रखें कि आपकी तैयारी अच्छी है तो सेलेक्शन की सम्भावनाएँ भी ज़्यादा हैं। वैसे भी लाखों अभ्यर्थियों में sincere या गम्भीर अभ्यर्थी काफ़ी कम ही होते हैं।
- 'निष्काम कर्मयोग' (Disinterested Action) का सिद्धांत ख़ास तौर पर प्रीलिम्स में बहुत सहारा देता है। परीक्षा को तनावमुक्त होकर देना हमारा काम है, उसके परिणाम की उधेड़बुन में लगे रहने का कोई औचित्य नहीं है। प्रीलिम्स में असफल हो जाने वाले ज़्यादातर अभ्यर्थी यह स्वीकार करते हैं कि हमने सवाल का उत्तर जानने के बावजूद जल्दबाज़ी, तनाव, स्ट्रेस या ऊहापोह में ग़लत विकल्प चुन लिया या फिर ग़लत गोला भर दिया।
- रिवीज़न ही करें, यह नया पढ़ने का समय नहीं है। हो सके तो, एक बार राजव्यस्वस्था, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और करेंट अफ़ेयर्स को दोबारा देख लें।
- निगेटिव मार्किंग से निपटने के लिए अभ्यास ज़रूरी है, लिहाज़ा टेस्ट पेपर हल करें और निगेटिव मार्किंग का गणित अच्छे से समझ कर अपनी एक सम्भावित रणनीति बना लें।
- पेपर एक और पेपर दो, दोनों के प्रश्नपत्रों का अभ्यास करें।
- इस बात का सिरदर्द बिलकुल न पालें कि आपको पढ़ी हुई बातें याद हैं या नहीं। आपने साल भर जो कुछ भी पढ़ा है, वह निश्चित रूप से आपके स्मृति पटल में सुरक्षित है और वह ज़रूरत पड़ने पर स्वतः याद आ जाएगा।
- परीक्षा चूँकि सुबह होती है अतः आख़िरी के दिनों में वक़्त पर सोने और सुबह वक़्त पर उठने की आदत डाल लाइन ताकि परीक्षा की सुबह तरोताज़ा उठें।
- किसी की देखादेखी अपनी नींद को नज़रअन्दाज़ न करें और रोज़ सात घंटे की नींद ज़रूर लें।
- हल्का और सुपाच्य भोजन लाइन, फल-सब्ज़ियाँ-सलाद का सेवन करें।
- सुबह या शाम के समय आधा घंटा हरियाली के बीच टहलें ज़रूर।
- अपने आराध्य पर और ख़ुद पर आस्था बनाए रखें।
- इधर-उधर की बातों या व्यर्थ के तनावों से बचें और नकारात्मकता से कोसों दूर रहें।
परीक्षा हॉल में ....
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-प्रीलिम्स में होने वाली एक आम ग़लती यह है कि हम सवाल को ध्यान से या सावधानी से नहीं पढ़ते। मसलन अगर किसी बहुविकल्पीय प्रश्न में पूछा गया है कि कौन-कौन से विकल्प सही 'नहीं'हैं? और जल्दबाज़ी या लापरवाही में हमने 'नहीं' शब्द पर ध्यान नहीं दिया तो पूरी तरह आने वाला प्रश्न भी ग़लत हो जाएगा। अतः हर सवाल को धैर्यपूर्वक पढ़ें।
- प्रीलिम्स का पेपर इंग्लिश और हिंदी दो भाषाओं में आता है। मेरी व्यक्तिगत सलाह है कि यदि आपको कोई शब्द या वाक्य एक भाषा में समझ नहीं आ पा रहा है तो दूसरी भाषा में उसका अनुवाद देख लें। कभी-कभी उससे भी कुछ क्लू मिल जाता है।
- पेपर के पहले पन्ने पर दिए गए दिशानिर्देशों को ज़रूर पढ़ें। आपको उत्तर-पत्रक पर काले रंग के बॉल पेन से गोले (bubbles) भरने होते हैं। निर्देशानुसार सही तरीक़े से गोले भरें।
-पेपर को देखकर ही आपको अंदाज़ा होता है कि इस साल पेपर कैसा आया है। कुछ अभ्यर्थी कठिन पेपर देखकर बुरी तरह घबरा जाते हैं। मैं उन्हें याद दिलाना चाहूँगा कि पेपर आसान हो या कठिन, सभी अभ्यर्थियों के लिए एक जैसा ही है। अतः घबराए बग़ैर आसन्न परिस्थितियों में ही अपना बेस्ट प्रदर्शन करें।
- कुछ अभ्यर्थी इतने ज़्यादा उतावले और व्यग्र होते हैं कि पहला पेपर देने के बाद दूसरा पेपर शुरू होने के पहले फ़र्स्ट पेपर के विकल्पों की जाँच करने लगते हैं। यह सरासर ग़लत है। आप पहला पेपर कुछ घंटों के लिए उसे भूल जाएँ। ख़ुद को थोड़ा रीलैक्स करें और तरोताज़ा होकर सेकिंड पेपर देने पहुँचें।
- दोनों पेपर देने के तुरंत बाद उत्तर कुंजियाँ (answer key) न ढूँढें। यदि आपको सही उत्तर जानने ही हैं, तो आराम से दो-तीन दिन बाद किसी अच्छी 'आन्सर की' से मिलान करें। ध्यान रहे, कि कोई भी 'आन्सर की' शत प्रतिशत सही नहीं है। कट ऑफ़ कितना जाएगा, इन अटकलों में उलझे बग़ैर अगले चरण यानी मुख्य परीक्षा की तैयारी में जी-जान से जुट जाएँ।
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-प्रीलिम्स में होने वाली एक आम ग़लती यह है कि हम सवाल को ध्यान से या सावधानी से नहीं पढ़ते। मसलन अगर किसी बहुविकल्पीय प्रश्न में पूछा गया है कि कौन-कौन से विकल्प सही 'नहीं'हैं? और जल्दबाज़ी या लापरवाही में हमने 'नहीं' शब्द पर ध्यान नहीं दिया तो पूरी तरह आने वाला प्रश्न भी ग़लत हो जाएगा। अतः हर सवाल को धैर्यपूर्वक पढ़ें।
- प्रीलिम्स का पेपर इंग्लिश और हिंदी दो भाषाओं में आता है। मेरी व्यक्तिगत सलाह है कि यदि आपको कोई शब्द या वाक्य एक भाषा में समझ नहीं आ पा रहा है तो दूसरी भाषा में उसका अनुवाद देख लें। कभी-कभी उससे भी कुछ क्लू मिल जाता है।
- पेपर के पहले पन्ने पर दिए गए दिशानिर्देशों को ज़रूर पढ़ें। आपको उत्तर-पत्रक पर काले रंग के बॉल पेन से गोले (bubbles) भरने होते हैं। निर्देशानुसार सही तरीक़े से गोले भरें।
-पेपर को देखकर ही आपको अंदाज़ा होता है कि इस साल पेपर कैसा आया है। कुछ अभ्यर्थी कठिन पेपर देखकर बुरी तरह घबरा जाते हैं। मैं उन्हें याद दिलाना चाहूँगा कि पेपर आसान हो या कठिन, सभी अभ्यर्थियों के लिए एक जैसा ही है। अतः घबराए बग़ैर आसन्न परिस्थितियों में ही अपना बेस्ट प्रदर्शन करें।
- कुछ अभ्यर्थी इतने ज़्यादा उतावले और व्यग्र होते हैं कि पहला पेपर देने के बाद दूसरा पेपर शुरू होने के पहले फ़र्स्ट पेपर के विकल्पों की जाँच करने लगते हैं। यह सरासर ग़लत है। आप पहला पेपर कुछ घंटों के लिए उसे भूल जाएँ। ख़ुद को थोड़ा रीलैक्स करें और तरोताज़ा होकर सेकिंड पेपर देने पहुँचें।
- दोनों पेपर देने के तुरंत बाद उत्तर कुंजियाँ (answer key) न ढूँढें। यदि आपको सही उत्तर जानने ही हैं, तो आराम से दो-तीन दिन बाद किसी अच्छी 'आन्सर की' से मिलान करें। ध्यान रहे, कि कोई भी 'आन्सर की' शत प्रतिशत सही नहीं है। कट ऑफ़ कितना जाएगा, इन अटकलों में उलझे बग़ैर अगले चरण यानी मुख्य परीक्षा की तैयारी में जी-जान से जुट जाएँ।
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