विश्व_का_भूगोल...
ब्रह्मांड
#प्रारंभिक_स्वरूप
आज से 14 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं था। पूरा ब्रह्मांड एक छोटे से अति सघन बिंदु में सिमटा हुआ था। अचानक एक जबर्दस्त विस्फोट - बिग बैंग (Big Bang) हुआ और ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। महाविस्फोट के प्रारंभिक क्षणों में आदि पदार्थ (Proto matter) व प्रकाश का मिला-जुला गर्म लावा तेजी से चारों तरफ बिखरने लगा। कुछ ही क्षणों में ब्रह्मांड व्यापक हो गया। लगभग चार लाख साल बाद फैलने की गति धीरे-धीरे कुछ धीमी हुई। ब्रह्मांड थोड़ा ठंडा व विरल हुआ और प्रकाश बिना पदार्थ से टकराये बेरोकटोक लम्बी दूरी तय करने लगा और ब्रह्मांड प्रकाशमान होने लगा। तब से आज तक ब्रह्मांड हजार गुना अधिक विस्तार ले चुका है।
#ब्रह्मांड_का_व्यापक_स्वरूप
आकाशगंगाओं में केवल अरबों-खरबों तारे ही नहीं बल्कि धूल व गैस के विशाल बादल बिखरे पड़े हैं। सैकड़ों प्रकाशवर्ष दूर तक फैले इन बादलों में लाखों- तारों के पदार्थ सिमटे हुए हैं। इन्हें निहारिकाएँ (nebule) कहते हैं। ये सैकड़ों भ्रूण तारों को अपने गर्भ में समेटे रहती हैं। हमारी अपनी आकाशगंगा में भी हजारों निहारिकाएं हैं, जिनसे हर पल सैकड़ों तारे पैदा होते हैं। तारों की भी एक निश्चित आयु होती हैै। सूर्य जैसे मध्यम आकार के तारों की जीवन यात्रा लगभग 10 अरब वर्ष लम्बी है। सूर्य के आधे आकार के तारों की उम्र इससे भी दुगुनी होती है। पर भारी-भरकम तारों की जीवन-लीला कुछ करोड़ वर्षों में ही समाप्त हो जाती है। तारों का अंत सुपरनोवा विस्फोट के रूप में होता है।
#आधुनिक_खगोलशास्त्र_का_उदय
सन् 1929 में एडविन हब्बल और मिल्टन हुमासान ने एक महत्वपूर्ण खोज की। उन्होंने पाया कि दूरस्थ आकाशगंगाओं के प्रकाश में विशेष रहस्य छिपे हैं। हब्बल व हुमासान ने आकाशगंगाओं की दूरी और इनकी गति का तुलनात्मक अध्ययन किया। जिससे पता चला कि सुदूर अंतरिक्ष में बिखरी पड़ी अनगिनत आकाशगंगाएँ हमसे जितनी दूर हैं उतनी ही अधिक तेजी से वह और दूर भाग रही हैं। इस खोज ने यह स्पष्टï कर दिया कि हमारी आकाशगंगा से परे न सिर्फ पूरा ब्रह्मांड व्यापक जाँच-पड़ताल की प्रतीक्षा में है बल्कि यह लगातार फैलता जा रहा है। इस खोज ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति की जड़ तक पहुँचने में सफलता दिलाई और यह तथ्य उभरकर सामने आया कि पूरा का पूरा ब्रह्मïांड कभी एक अति सघन छोटे से बिंदु में सिमटा हुआ था। इसकी महाविस्फोट से शुरुआत हुई और तभी से यह लगातार फैलता जा रहा है। नजदीकी तारों का प्रकाश कुछ वर्षों में हम तक पहुँचता है और दूरस्थ आकाशगंगाओं का प्रकाश हम तक पहुँचने में अरबों साल लग सकते हैं। हम आकाशगंगाओं का जो दृश्य देखते हैं वह करोड़ों-अरबों साल पहले का होता है क्योंकि प्रकाश इतने ही वर्षों में हम तक पहुँचता है। इस लंबी दूरी को व्यक्त करने के लिए प्रकाश वर्ष एक प्रचलित पैमाना है।
#अंतरिक्षीय_विकिरण
अंतरिक्षीय विकिरण के रूप में एक महत्वपूर्ण खोज सन् 1964 में विल्सन व पेनजिऑस द्वारा की गई जिसने ब्रह्मांड को खंगालने की एक नई विधा हमारे हाथ में पकड़ा दी। विकिरण की सर्वव्यापकता व निरंतरता इस बात की गवाह है कि आकाशगंगाओं, इनके झुण्डों और ग्रहों आदि जैसी संरचना निर्मित होने के भी बहुत पहले अतीत काल से ही विकिरण चला आ रहा है। इस सहज प्रवाह के कारण हम विकिरण के गुणों की प्रामाणिक पहचान कर सकते हैं। इस कार्य को ठीक से करने के लिए सन् 1989 में पृथ्वी की कक्षा में एक कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर उपग्रह भेजा गया। यह प्रारंभिक ब्रह्मïांड द्वारा उत्सर्जन का परीक्षण करने में सफल रहा। ब्रह्मांड का लगातार प्रसार हो रहा है और शुरुआती समय की अपेक्षा यह विकिरण सतरंगी पट्टी के सूक्ष्म तरंगीय हिस्से में दिखाई देने वाले तरंगदैध्र्य के परे लाल रंग की तरफ झुका था। विल्सन व पेनजिऑस द्वारा अन्वेषित सूक्ष्म तरंगीय आकाश हमारी अपनी आकाशगंगा के स्तर को छोड़कर पूरी तरह शांत था। लेकिन इस स्तर के ऊपर व नीचे के विकिरण में कोई उतार-चढ़ाव नहीं था। कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर यानि कोबे उपग्रह ने बहुत हल्का उतार-चढ़ाव दर्ज किया है। फिर भी सूक्ष्म तरंगीय विकिरण हलचल मुक्त ही है। यह उतार-चढ़ाव- एक लाख में एक भाग-बिग बैंग के लगभग चार लाख साल बाद प्रारंभिक ब्रह्मांड के तापमान में हुए बदलाव का प्रभाव है। सन् 2001 में कोबे से 100 गुना अधिक संवेदनशील उपग्रह के सहारे वैज्ञानिकों ने अधिक आँकड़ों को समेटे एक सूक्ष्म तरंगीय आसमान का मानचित्र तैयार किया। इसमें भी बहुत हल्का उतार-चढ़ाव पाया गया, जो नवजात ब्रह्मांड में पदार्थों के इकट्ठे होने की ओर संकेत करता है। अरबों साल में ये पदार्थ सघन हुए और गुरुत्व बल के प्रभाव से चारों तरफ के अधिकाधिक पदार्थों को अपनी ओर खींचने लगे। यह प्रक्रिया आगे बढ़ते हुए आकाशगंगाओं तक जा पहुँची। नजदीकी आकाशगंगाओं के समूह से अन्तहीन जाल जैसी संरचनाएं बन गई। यह बीज ब्रह्मांड के जन्म के समय ही पड़ा और काल के प्रवाह में अरबों-खरबों आकाशगंगाओं का वटवृक्ष खड़ा हुआ जिन्हें आज हम देख रहे हैं। उपग्रहीय अवलोकन ने कुछ और अज्ञात, अनजाने तथ्यों के साथ-साथ अदृश्य पदार्थ के अस्तित्व को भी प्रमाणित किया।
#ब्रह्मांड_का_भविष्य
ब्रह्मांड का आने वाले समय में क्या भविष्य क्या है, सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है? क्या अनंत ब्रह्मांड अनंतकाल तक विस्तार लेता ही जाएगा? सैद्धांतिक दृष्टि से इस बारे में तीन तस्वीरें उभरती हैं। सुदूर में अदृश्य व दृश्य पदार्थ के वर्चस्व मे गुरुत्व बल भारी पड़ा और ब्रह्मांड के फैलने की गति धीमी हुई। ब्रह्मांड के बढ़ते आकार में धीरे-धीरे पदार्थों की ताकत घटने लगी और अदृश्य ऊर्जा रूपी विकर्षण शक्ति अपना प्रभाव जमाने लगी। फलत: ब्रह्मांड के फैलने की दर तेज हुई। अगले 100 अरब साल तक यदि यह दर स्थिर भी रहे तो बहुत सी आकाशगंगाओं का अंतिम प्रकाश भी हम तक नहीं पहुँच पाएगा। अदृश्य ऊर्जा का प्रभुत्व बढऩे पर फैलने की दर तेज होती हुई आकाशगंगाओं, सौर परिवार, ग्रहों, हमारी पृथ्वी और इसी क्रम में अणुओं के नाभिक तक को 'नष्ठ भष्ठ कर देगी। इसके बाद क्या होगा इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। लेकिन यदि अदृश्य ऊर्जा के पतन से पदार्थों का साम्राज्य पुन: स्थापित होता है यानि पदार्थ सघन होकर गुरुत्वीय प्रभाव को और अधिक बलशाली बना देते हैं तो दूरस्थ आकाशगंगाएँ भी हमें आसानी से नजर आने लगेंगी। यदि अदृश्य ऊर्जा ऋणात्मक हो जाती है तो ब्रह्मांड पहले धीरे-धीरे और फिर तेजी से अपने आदिस्वरूप के छोटे बिंदु में सिमटने के लिए विवश होगा। निर्वात भौतिकी या शून्यता ब्रह्मïांंड का भविष्य निश्चित करेगी। अमेरिकी ऊर्जा विभाग और नासा ने मिलकर अंतरिक्ष आधारित एक अति महत्वकांक्षी परियोजना 'ज्वाइंट डार्क एनर्जी मिशन का प्रस्ताव रक्खा है। अगले दशक में पूर्ण होने वाली इस परियोजना में दो मीटर व्यास की एक अंतरिक्षीय दूरबीन स्थापित की जानी है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने भी 2007 में प्लांक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित किया है। यह अंतरिक्ष यान प्रारम्भिक अंतरिक्षीय विकिरण का अध्ययन अधिक गहराई और सूक्ष्मता से कर सकता है।
#आकाशगंगा
आकाशगंगाएँ तारों का विशाल पुंज होती हैं, जिनमें अरबों तारे होते हैं। आकाशगंगाओं का निर्माण शायद 'महाविस्फोट के 1 अरब वर्ष पश्चात् हुआ होगा। खगोलशास्त्री भी आकाशगंगाओं की कुल सँख्या का अनुमान नहीं लगा सके हैं। आकाशगंगाएँ इतनी विशाल होती हैं कि उन्हें 'द्विपीय ब्रह्मांड भी कहते हैं। आकाशगंगाएँ मुख्यत: तीन आकारों- सर्पिल, दीर्घवृत्तीय और अनियमित होती हैं। हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे सर्पिल आकार की है। आकाशगंगाएँ अक्सर समूहों में ब्रह्मांड की परिक्रमा करती हैं। हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे 20 आकाशगंगाओं के समूह की सदस्य है। कुछ आकाशगंगाओं के समूह में हजारों आकाशगंगाएँ शामिल होती हैं।
#मिल्की_वे_आकाशगंगा
हमारी आकाशगंगा का नाम 'मिल्की वे है। इसमें लगभग 100 अरब तारे शामिल हैं। हमारा सौरमंडल और सूर्य 'मिल्की वे के केंद्र के किनारे से आधी दूरी पर स्थित है। 'मिल्की वे के एक सिरे से दूसरे सिरे तक यात्रा करने में प्रकाश को 100,000 वर्ष लगते हैं। 'मिल्की वे ब्रह्मांड की परिक्रमा करती है। सूर्य को 'मिल्की वेÓ के केंद्र की परिक्रमा करने में 22.5 करोड़ वर्ष का समय लगता है, जिसे आकाशगंगीय वर्ष कहते हैं।
#तारे
तारे विशाल चमकदार गैसों के पिण्ड होते हैं जो स्वयँ के गुरूत्वाकर्षण बल से बंधे होते हैं। भार के अनुपात में तारों में 70 प्रतिशत हाइड्रोजन, 28 प्रतिशत हीलियम, 1.5 प्रतिशत कार्बन, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन तथा 0.5 प्रतिशत लौह तथा अन्य भारी तत्व होते हैं। ब्रह्मांड का अधिकाँश द्रव्यमान तारों के रूप में ही है। तारों का जन्म समूहों में होता है। गैस व धूल के बादल जिन्हें अभ्रिका कहते हैं, जब लाखों वर्ष पश्चात् छोटे बादलों में टूटकर विभाजित हो जाते हैं तब अपने ही गुरूत्वाकर्षण बल से आपस में जुड़कर तारों का निर्माण करते हैं। तारों की ऊष्मा हाइड्रोजन को एक अन्य गैस हीलियम में परिवर्तित कर देती है। इस परिवर्तन के साथ ही 'नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है, जिससे अत्यन्त उच्चस्तरीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसी ऊर्जा के स्रोत से तारे चमकते हैं। ब्रह्मांड के लगभग 50 प्रतिशत तारे युग्म में पाए जाते हैं। उन्हें 'युग्म तारे के नाम से जाना जाता है। जब किसी तारे का हाइड्रोजन ईंधन चुकने लगता है तो उसका अंतकाल नजदीक आ जाता है। तारे के बाह्य क्षेत्र का फूलना और उसका लाल होना उसकी वृद्धावस्था का प्रथम संकेत होता है। इस तरह के बूढ़े तथा फूले तारे को 'रक्त दानव कहते हैं। अपना सूर्य जो कि मध्यम आयु का तारा है, संभवत: 5 अरब वर्ष बाद 'रक्त दानव में परिवर्तित हो जाएगा। जब ऐसे तारे का सारा ईंधन समाप्त हो जाता है तो वह अपने केंद्र में पर्याप्त दबाव नहीं उत्पन्न कर पाता, जिससे वह अपने गुरूत्वाकर्षण बल को सम्भाल नहीं सकता है। तारा अपने भार के बल की वजह से छोटा होने लगता है। यदि यह छोटा तारा है तो वह श्वेत विवर में परिवर्तित हो जाता है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार सूर्य भी 5 अरब वर्ष पश्चात् एक श्वेत विवर में परिवर्तित हो जाएगा। किंतु बड़े तारे में एक जबर्दस्त विस्फोट होता है और उसका पदार्थ ब्रह्मांड में फैल जाता है।
ब्रह्मांड
#प्रारंभिक_स्वरूप
आज से 14 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं था। पूरा ब्रह्मांड एक छोटे से अति सघन बिंदु में सिमटा हुआ था। अचानक एक जबर्दस्त विस्फोट - बिग बैंग (Big Bang) हुआ और ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। महाविस्फोट के प्रारंभिक क्षणों में आदि पदार्थ (Proto matter) व प्रकाश का मिला-जुला गर्म लावा तेजी से चारों तरफ बिखरने लगा। कुछ ही क्षणों में ब्रह्मांड व्यापक हो गया। लगभग चार लाख साल बाद फैलने की गति धीरे-धीरे कुछ धीमी हुई। ब्रह्मांड थोड़ा ठंडा व विरल हुआ और प्रकाश बिना पदार्थ से टकराये बेरोकटोक लम्बी दूरी तय करने लगा और ब्रह्मांड प्रकाशमान होने लगा। तब से आज तक ब्रह्मांड हजार गुना अधिक विस्तार ले चुका है।
#ब्रह्मांड_का_व्यापक_स्वरूप
आकाशगंगाओं में केवल अरबों-खरबों तारे ही नहीं बल्कि धूल व गैस के विशाल बादल बिखरे पड़े हैं। सैकड़ों प्रकाशवर्ष दूर तक फैले इन बादलों में लाखों- तारों के पदार्थ सिमटे हुए हैं। इन्हें निहारिकाएँ (nebule) कहते हैं। ये सैकड़ों भ्रूण तारों को अपने गर्भ में समेटे रहती हैं। हमारी अपनी आकाशगंगा में भी हजारों निहारिकाएं हैं, जिनसे हर पल सैकड़ों तारे पैदा होते हैं। तारों की भी एक निश्चित आयु होती हैै। सूर्य जैसे मध्यम आकार के तारों की जीवन यात्रा लगभग 10 अरब वर्ष लम्बी है। सूर्य के आधे आकार के तारों की उम्र इससे भी दुगुनी होती है। पर भारी-भरकम तारों की जीवन-लीला कुछ करोड़ वर्षों में ही समाप्त हो जाती है। तारों का अंत सुपरनोवा विस्फोट के रूप में होता है।
#आधुनिक_खगोलशास्त्र_का_उदय
सन् 1929 में एडविन हब्बल और मिल्टन हुमासान ने एक महत्वपूर्ण खोज की। उन्होंने पाया कि दूरस्थ आकाशगंगाओं के प्रकाश में विशेष रहस्य छिपे हैं। हब्बल व हुमासान ने आकाशगंगाओं की दूरी और इनकी गति का तुलनात्मक अध्ययन किया। जिससे पता चला कि सुदूर अंतरिक्ष में बिखरी पड़ी अनगिनत आकाशगंगाएँ हमसे जितनी दूर हैं उतनी ही अधिक तेजी से वह और दूर भाग रही हैं। इस खोज ने यह स्पष्टï कर दिया कि हमारी आकाशगंगा से परे न सिर्फ पूरा ब्रह्मांड व्यापक जाँच-पड़ताल की प्रतीक्षा में है बल्कि यह लगातार फैलता जा रहा है। इस खोज ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति की जड़ तक पहुँचने में सफलता दिलाई और यह तथ्य उभरकर सामने आया कि पूरा का पूरा ब्रह्मïांड कभी एक अति सघन छोटे से बिंदु में सिमटा हुआ था। इसकी महाविस्फोट से शुरुआत हुई और तभी से यह लगातार फैलता जा रहा है। नजदीकी तारों का प्रकाश कुछ वर्षों में हम तक पहुँचता है और दूरस्थ आकाशगंगाओं का प्रकाश हम तक पहुँचने में अरबों साल लग सकते हैं। हम आकाशगंगाओं का जो दृश्य देखते हैं वह करोड़ों-अरबों साल पहले का होता है क्योंकि प्रकाश इतने ही वर्षों में हम तक पहुँचता है। इस लंबी दूरी को व्यक्त करने के लिए प्रकाश वर्ष एक प्रचलित पैमाना है।
#अंतरिक्षीय_विकिरण
अंतरिक्षीय विकिरण के रूप में एक महत्वपूर्ण खोज सन् 1964 में विल्सन व पेनजिऑस द्वारा की गई जिसने ब्रह्मांड को खंगालने की एक नई विधा हमारे हाथ में पकड़ा दी। विकिरण की सर्वव्यापकता व निरंतरता इस बात की गवाह है कि आकाशगंगाओं, इनके झुण्डों और ग्रहों आदि जैसी संरचना निर्मित होने के भी बहुत पहले अतीत काल से ही विकिरण चला आ रहा है। इस सहज प्रवाह के कारण हम विकिरण के गुणों की प्रामाणिक पहचान कर सकते हैं। इस कार्य को ठीक से करने के लिए सन् 1989 में पृथ्वी की कक्षा में एक कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर उपग्रह भेजा गया। यह प्रारंभिक ब्रह्मïांड द्वारा उत्सर्जन का परीक्षण करने में सफल रहा। ब्रह्मांड का लगातार प्रसार हो रहा है और शुरुआती समय की अपेक्षा यह विकिरण सतरंगी पट्टी के सूक्ष्म तरंगीय हिस्से में दिखाई देने वाले तरंगदैध्र्य के परे लाल रंग की तरफ झुका था। विल्सन व पेनजिऑस द्वारा अन्वेषित सूक्ष्म तरंगीय आकाश हमारी अपनी आकाशगंगा के स्तर को छोड़कर पूरी तरह शांत था। लेकिन इस स्तर के ऊपर व नीचे के विकिरण में कोई उतार-चढ़ाव नहीं था। कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर यानि कोबे उपग्रह ने बहुत हल्का उतार-चढ़ाव दर्ज किया है। फिर भी सूक्ष्म तरंगीय विकिरण हलचल मुक्त ही है। यह उतार-चढ़ाव- एक लाख में एक भाग-बिग बैंग के लगभग चार लाख साल बाद प्रारंभिक ब्रह्मांड के तापमान में हुए बदलाव का प्रभाव है। सन् 2001 में कोबे से 100 गुना अधिक संवेदनशील उपग्रह के सहारे वैज्ञानिकों ने अधिक आँकड़ों को समेटे एक सूक्ष्म तरंगीय आसमान का मानचित्र तैयार किया। इसमें भी बहुत हल्का उतार-चढ़ाव पाया गया, जो नवजात ब्रह्मांड में पदार्थों के इकट्ठे होने की ओर संकेत करता है। अरबों साल में ये पदार्थ सघन हुए और गुरुत्व बल के प्रभाव से चारों तरफ के अधिकाधिक पदार्थों को अपनी ओर खींचने लगे। यह प्रक्रिया आगे बढ़ते हुए आकाशगंगाओं तक जा पहुँची। नजदीकी आकाशगंगाओं के समूह से अन्तहीन जाल जैसी संरचनाएं बन गई। यह बीज ब्रह्मांड के जन्म के समय ही पड़ा और काल के प्रवाह में अरबों-खरबों आकाशगंगाओं का वटवृक्ष खड़ा हुआ जिन्हें आज हम देख रहे हैं। उपग्रहीय अवलोकन ने कुछ और अज्ञात, अनजाने तथ्यों के साथ-साथ अदृश्य पदार्थ के अस्तित्व को भी प्रमाणित किया।
#ब्रह्मांड_का_भविष्य
ब्रह्मांड का आने वाले समय में क्या भविष्य क्या है, सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है? क्या अनंत ब्रह्मांड अनंतकाल तक विस्तार लेता ही जाएगा? सैद्धांतिक दृष्टि से इस बारे में तीन तस्वीरें उभरती हैं। सुदूर में अदृश्य व दृश्य पदार्थ के वर्चस्व मे गुरुत्व बल भारी पड़ा और ब्रह्मांड के फैलने की गति धीमी हुई। ब्रह्मांड के बढ़ते आकार में धीरे-धीरे पदार्थों की ताकत घटने लगी और अदृश्य ऊर्जा रूपी विकर्षण शक्ति अपना प्रभाव जमाने लगी। फलत: ब्रह्मांड के फैलने की दर तेज हुई। अगले 100 अरब साल तक यदि यह दर स्थिर भी रहे तो बहुत सी आकाशगंगाओं का अंतिम प्रकाश भी हम तक नहीं पहुँच पाएगा। अदृश्य ऊर्जा का प्रभुत्व बढऩे पर फैलने की दर तेज होती हुई आकाशगंगाओं, सौर परिवार, ग्रहों, हमारी पृथ्वी और इसी क्रम में अणुओं के नाभिक तक को 'नष्ठ भष्ठ कर देगी। इसके बाद क्या होगा इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। लेकिन यदि अदृश्य ऊर्जा के पतन से पदार्थों का साम्राज्य पुन: स्थापित होता है यानि पदार्थ सघन होकर गुरुत्वीय प्रभाव को और अधिक बलशाली बना देते हैं तो दूरस्थ आकाशगंगाएँ भी हमें आसानी से नजर आने लगेंगी। यदि अदृश्य ऊर्जा ऋणात्मक हो जाती है तो ब्रह्मांड पहले धीरे-धीरे और फिर तेजी से अपने आदिस्वरूप के छोटे बिंदु में सिमटने के लिए विवश होगा। निर्वात भौतिकी या शून्यता ब्रह्मïांंड का भविष्य निश्चित करेगी। अमेरिकी ऊर्जा विभाग और नासा ने मिलकर अंतरिक्ष आधारित एक अति महत्वकांक्षी परियोजना 'ज्वाइंट डार्क एनर्जी मिशन का प्रस्ताव रक्खा है। अगले दशक में पूर्ण होने वाली इस परियोजना में दो मीटर व्यास की एक अंतरिक्षीय दूरबीन स्थापित की जानी है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने भी 2007 में प्लांक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित किया है। यह अंतरिक्ष यान प्रारम्भिक अंतरिक्षीय विकिरण का अध्ययन अधिक गहराई और सूक्ष्मता से कर सकता है।
#आकाशगंगा
आकाशगंगाएँ तारों का विशाल पुंज होती हैं, जिनमें अरबों तारे होते हैं। आकाशगंगाओं का निर्माण शायद 'महाविस्फोट के 1 अरब वर्ष पश्चात् हुआ होगा। खगोलशास्त्री भी आकाशगंगाओं की कुल सँख्या का अनुमान नहीं लगा सके हैं। आकाशगंगाएँ इतनी विशाल होती हैं कि उन्हें 'द्विपीय ब्रह्मांड भी कहते हैं। आकाशगंगाएँ मुख्यत: तीन आकारों- सर्पिल, दीर्घवृत्तीय और अनियमित होती हैं। हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे सर्पिल आकार की है। आकाशगंगाएँ अक्सर समूहों में ब्रह्मांड की परिक्रमा करती हैं। हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे 20 आकाशगंगाओं के समूह की सदस्य है। कुछ आकाशगंगाओं के समूह में हजारों आकाशगंगाएँ शामिल होती हैं।
#मिल्की_वे_आकाशगंगा
हमारी आकाशगंगा का नाम 'मिल्की वे है। इसमें लगभग 100 अरब तारे शामिल हैं। हमारा सौरमंडल और सूर्य 'मिल्की वे के केंद्र के किनारे से आधी दूरी पर स्थित है। 'मिल्की वे के एक सिरे से दूसरे सिरे तक यात्रा करने में प्रकाश को 100,000 वर्ष लगते हैं। 'मिल्की वे ब्रह्मांड की परिक्रमा करती है। सूर्य को 'मिल्की वेÓ के केंद्र की परिक्रमा करने में 22.5 करोड़ वर्ष का समय लगता है, जिसे आकाशगंगीय वर्ष कहते हैं।
#तारे
तारे विशाल चमकदार गैसों के पिण्ड होते हैं जो स्वयँ के गुरूत्वाकर्षण बल से बंधे होते हैं। भार के अनुपात में तारों में 70 प्रतिशत हाइड्रोजन, 28 प्रतिशत हीलियम, 1.5 प्रतिशत कार्बन, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन तथा 0.5 प्रतिशत लौह तथा अन्य भारी तत्व होते हैं। ब्रह्मांड का अधिकाँश द्रव्यमान तारों के रूप में ही है। तारों का जन्म समूहों में होता है। गैस व धूल के बादल जिन्हें अभ्रिका कहते हैं, जब लाखों वर्ष पश्चात् छोटे बादलों में टूटकर विभाजित हो जाते हैं तब अपने ही गुरूत्वाकर्षण बल से आपस में जुड़कर तारों का निर्माण करते हैं। तारों की ऊष्मा हाइड्रोजन को एक अन्य गैस हीलियम में परिवर्तित कर देती है। इस परिवर्तन के साथ ही 'नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है, जिससे अत्यन्त उच्चस्तरीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसी ऊर्जा के स्रोत से तारे चमकते हैं। ब्रह्मांड के लगभग 50 प्रतिशत तारे युग्म में पाए जाते हैं। उन्हें 'युग्म तारे के नाम से जाना जाता है। जब किसी तारे का हाइड्रोजन ईंधन चुकने लगता है तो उसका अंतकाल नजदीक आ जाता है। तारे के बाह्य क्षेत्र का फूलना और उसका लाल होना उसकी वृद्धावस्था का प्रथम संकेत होता है। इस तरह के बूढ़े तथा फूले तारे को 'रक्त दानव कहते हैं। अपना सूर्य जो कि मध्यम आयु का तारा है, संभवत: 5 अरब वर्ष बाद 'रक्त दानव में परिवर्तित हो जाएगा। जब ऐसे तारे का सारा ईंधन समाप्त हो जाता है तो वह अपने केंद्र में पर्याप्त दबाव नहीं उत्पन्न कर पाता, जिससे वह अपने गुरूत्वाकर्षण बल को सम्भाल नहीं सकता है। तारा अपने भार के बल की वजह से छोटा होने लगता है। यदि यह छोटा तारा है तो वह श्वेत विवर में परिवर्तित हो जाता है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार सूर्य भी 5 अरब वर्ष पश्चात् एक श्वेत विवर में परिवर्तित हो जाएगा। किंतु बड़े तारे में एक जबर्दस्त विस्फोट होता है और उसका पदार्थ ब्रह्मांड में फैल जाता है।
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