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Wednesday, February 24, 2021
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_में_अनुसूची
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#संविधान_में_अनुसूची
#अनुसूची :
भारतीय संविधान की अनुसूची में कुल 12 अनुसूचियां हैं, जो इस प्रकार हैं:
#प्रथम_अनुसूची : इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों (29 राज्य) एवं संघ शासित (सात) क्षेत्रों का उल्लेख है.
नोट: संविधान के 62वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है.
नोट: 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश से पृथक तेलंगाना राज्य बनाया गया. इससे पहले राज्यों की संख्या 28 थी.
#द्वितीय_अनुसूची : इसमें भारत राज-व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्य सभा के सभापति एवं उपसभापति, विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन का उल्लेख किया गया है.
#तृतीय_अनुसूची : इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों) द्वारा पद-ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है.
#चौथी_अनुसूची : इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्य सभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है.
#पांचवीं_अनुसूची : इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उल्लेख है.
#छठी_अनुसूची : इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है.
#सांतवी_अनुसूची : इसमें केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारे के बारे में बताया गया है, इसके अन्तगर्त तीन सूचियाँ है- संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची:
▪️(1) संघ सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर केंद्र सरकार कानून बनाती है. संविधान के लागू होने के समय इसमें 97 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 98 विषय हैं.
▪️(2) राज्य सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर राज्य सरकार कानून बनाती है. राष्ट्रीय हित से संबंधित होने पर केंद्र सरकार भी कानून बना सकती है. संविधान के लागू होने के समय इसके अन्तर्गत 66 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 62 विषय हैं.
▪️(3) समवर्ती सूची: इसके अन्तर्गत दिए गए विषय पर केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं. परंतु कानून के विषय समान होने पर केंद्र सरकार केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है. राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून केंद्र सरकार के कानून बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है. संविधान के लागू होने के समय समवर्ती सूची में 47 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 52 विषय हैं.
#आठवीं_अनुसूची : इसमें भारत की 22 भाषाओँ का उल्लेख किया गया है. मूल रूप से आंठवीं अनुसूची में 14 भाषाएं थीं, 1967 ई० में सिंधी को और 1992 ई० में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. 2004 ई० में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया.
#नौवीं_अनुसूची : संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गई. इसके अंतर्गत राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है. इन अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं.
▪️नोट: अब तक यह मान्यता थी कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. 11 जनवरी, 2007 के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा यह स्थापित किया गया कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उच्चतम न्यायालय इन कानूनों की समीक्षा कर सकता है.
#दसवीं_अनुसूची : यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है.
#ग्यारहवीं_अनुसूची : यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किए गए हैं.
#बारहवीं_अनुसूची : यह अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिय 18 विषय प्रदान किए गए हैं.
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#मुस्लिम_लीग_की_स्थापना
बंगाल के विभाजन ने सांप्रदायिक विभाजन को भी जन्म दे दिया। 30 दिसंबर,1906 को ढाका के नवाब आगा खां और नवाब मोहसिन-उल-मुल्क के नेतृत्व में भारतीय मुस्लिमों के अधिकारों की रक्षा के लिए मुस्लिम लीग का गठन किया गया। प्रारंभ में इसे ब्रिटिशों द्वारा काफी सहयोग मिला लेकिन जब इसने स्व-शासन के विचार को अपना लिया,तो ब्रिटिशों से मिलने वाला सहयोग समाप्त हो गया।1908 में लीग के अमृतसर अधिवेशन में सर सैय्यद अली इमाम की अध्यक्षता में मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की गयी जिसे ब्रिटिशों ने 1909 के मॉर्ले-मिन्टो सुधारों द्वारा पूरा कर दिया।मौलाना मुहम्मद अली ने अपने लीग विरोधी विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए अंग्रेजी जर्नल ‘कामरेड’ और उर्दू पत्र ‘हमदर्द’ को प्रारंभ किया। उन्होंने ‘अल-हिलाल’ की भी शुरुआत की जोकि उनके राष्ट्रवादी विचारों का मुखपत्र था।
#मुस्लिम_लीग_को_प्रोत्साहित_करने_वाले_कारक :
• #ब्रिटिश_योजना- ब्रिटिश भारतीयों को साम्प्रदायिक आधार पर बाँटना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने भारतीय राजनीति में विभाजनकारी प्रवृत्ति का समावेश किया,इसका प्रमाण पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था करना और ब्राह्मणों व गैर-ब्राह्मणों के बीच जातिगत राजनीति का खेल खेलना थे।
• #शिक्षा_का_अभाव-मुस्लिम पश्चिमी व तकनीकी शिक्षा से अछूते थे।
• #मुस्लिमों_की_संप्रभुता_का_पतन-1857 की क्रांति ने ब्रिटिशों को यह सोचने पर मजबूर किया कि मुस्लिम उनकी औपनिवेशिक नीतियों के लिए खतरा हो सकते है क्योकि मुग़ल सत्ता को हटाकर ही उन्होंने अपने शासन की नींव रखी थी।
• #धार्मिक_भावनाओं_की_अभिव्यक्ति-अधिकतर इतिहासकारों और उग्र-राष्ट्रवादियों ने भारतीय सामासिक संस्कृति के एक पक्ष को ही महिमामंडित किया| उन्होंने शिवाजी,राणा प्रताप आदि की तो प्रशंसा की लेकिन अकबर,शेरशाह सूरी,अलाउद्दीन खिलजी,टीपू सुल्तान आदि के बारे में मौन बने रहे।
• #भारत_का_आर्थिक_पिछड़ापन- औद्योगीकीकरण के अभाव में बेरोजगारी ने भीषण रूप धारण कर लिया था और घरेलु उद्योगों के प्रति ब्रिटिशों का रवैया दयनीय था।
#लीग_के_गठन_के_उद्देश्य :
• भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा को प्रोत्साहित करना।
• भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारों की रक्षा करना और उनकी जरुरतों व उम्मीदों को सरकार के समक्ष प्रस्तुत करना।
• मुस्लिमों में अन्य समुदायों के प्रति विरोध भाव को कम करना।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#संविधान_में_भाग_ओर_अनुच्छेद
भारतीय संविधान को 22 भागों में बंटा गया है, इसमे 395 अनुच्छेद तथा 22 अनुसूचियां हैं । जिस तरह एक पुस्तक के अलग अलग अध्याय होते हैं, उसी तरह संविधान को भी अलग अलग भागों में बंटा गया हैं, और हरेक भाग के आगे अनुच्छेद दिए गए हैं। आइए जानते हैं संविधान में दिए गए भाग और अनुच्छेद के बारे में -
#भाग_और_अनुच्छेद [ 1 से 395 तक ] :
#भाग_1: संघ और उसका राज्य क्षेत्र
1 संघ का नाम और राज्य क्षेत्र
2 नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
2क [निरसन]
3 नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के
क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
4 पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक, और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां
____________________________________________
#भाग_2: नागरिकता
5 संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
6 पाकिस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
7 पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
8 भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
9 विदेशी राज्य की नागरिकता, स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों का नागरिक न होना
10 नागरिकता के अधिकारों को बना रहना
11 संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना.
____________________________________________
#भाग_3: मूल अधिकार
12 राज्य की परिभाषा
13 मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां असंगत या अल्पीकरण की सीमा तक विधि शून्य होगी.
▪️समता का अधिकार
14 विधि के समक्ष समानता
15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता
17 अस्पृश्यता का अंत
18 उपाधियों का अंत.
▪️स्वतंत्रता का अधिकार
19 वाक-स्वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का
संरक्षण
20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण शोषण के विरुद्ध अधिकार
23 मानव और दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
24 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध.
▪️धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
25 अंत:करण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता
26 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
27 किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता
28 कुल शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता.
▪️संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
29 अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण
30 शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार
31 [निरसन]
31क संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
31ख कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण
31ग कुछ निदेशक तत्वों को प्रभाव करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
31घ [निरसन].
▪️सांविधानिक उपचारों का अधिकार
32 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
32A [निरसन]
33 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति
34 जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन
35 इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने का विधान ऊपर.
____________________________________________
#भाग_4: राज्य की नीति के निदेशक तत्व
36 परिभाषा
37 इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना
38 राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा
39 राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व
39क समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता
40 ग्राम पंचायतों का संगठन
41 कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
42 काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध
43 कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
43क उद्योगों के प्रबंध में कार्मकारों का भाग लेना
44 नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
45 बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध
46 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि
47 पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य को सुधार करने का राज्य का कर्तव्य
48 कृषि और पशुपालन का संगठन
48क पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
49 राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
50 कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
51 अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि.
#भाग_4क: मूल कर्तव्य
51A मूल कर्तव्य
____________________________________________
#भाग_5 : संघ
▪️अध्याय I. कार्यपालिका
▪️राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति
52 भारत के राष्ट्रपति
53 संघ की कार्यपालिका शक्ति
54 राष्टप्रति का निर्वाचन
55 राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
56 राष्ट्रपति की पदावधि
57 पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
58 राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं
59 राष्टप्रति के पद के लिए शर्तें
60 राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
61 राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रकिया
62 राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
63 भारत का उप राष्ट्रपति
64 उप राष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना
65 राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उप राष्टप्रति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन
66 उप राष्ट्रपति का निर्वाचन
67 उप राष्ट्रपति की पदावधि
68 उप राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
69 उप राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
70 अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन
71 राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषयत
72 क्षमता आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति
73 संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार.
▪️केन्द्रीय मंत्रि-परिषद
74 राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद
75 मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध.
▪️भारत का महान्यायवादी
76 भारत का महान्यायवादी
77 भारत सरकार के कार्य का संचालन
78 राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य.
▪️अध्याय 2. संसद
79 संसद का गठन
80 राज्य सभा की संरचना
81 लोक सभा की संरचना
82 प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुन: समायोजन
83 संसद के सदनों की अवधि
84 संसद की सदस्यता के लिए अर्हता
85 संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन
86 सदनों के अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का
राष्टप्रति का अधिकार
87 राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण
88 सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार.
▪️संसद के अधिकारी
89 राज्य सभा का सभापति और उप सभापति
90 उप सभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना
91सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति
92 जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
93 लोक सभा और अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
94 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया जाना
95अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों को पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति
96 जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
97 सभापति और उप सभापति तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते
98 संसद का सचिवालय.
99 सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
100 सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति.
101 स्थानों का रिक्त होना
102 सदस्यता के लिए निरर्हताएं
103 सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय
104अनुच्छेद 99 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति संसद और उसके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां
105 संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि
106 सदस्यों के वेतन और भत्ते.
▪️विधायी प्रक्रिया
107 विधेयकों के पुर: स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपलबंध.
108 कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
109 धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
110 “धन विधेयक” की परिभाषा
111 विधेयकों पर अनुमति वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया
112 वार्षिक वित्तीय विवरण
113 संसद में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया
114 विनियोग विधेयक
115 अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान
116 लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान
117 वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध साधारणतया प्रक्रिया.
118 प्रक्रिया के नियम
119 संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
120 संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
121 संसद में चर्चा पर निर्बंधन
122 न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना.
▪️अध्याय 3. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां
123 संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति.
▪️अध्याय 4. संघ की न्यायपालिका
124 उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
125 न्यायाधीशों के वेतन आदि
126 कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति
127 तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति
128 उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति
129 उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना
130 उच्चतम न्यायालय का स्थान
131 उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता
131क [निरसन]
132 कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता
133 उच्च न्यायालयों में सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता
134 दांडिक विषयों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता
134क उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र
135 विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना
136 अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत
137 निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पुनर्विलोकन
138 उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता की वृद्धि
139 कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना
139क कुछ मामलों का अंतरण
140 उच्चतम न्यायालय की आनुषंगिक शक्तिया
141 उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी
न्यायालयों पर आबद्धकर होना
142 उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का
प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश
143 उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति
की शक्ति
144 सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्चतम
न्यायालय
144क [निरसन]
145 न्यायालय के नियम आदि
146 उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्यय
147 निर्वचन.
▪️अध्याय 5. भारत के नियंत्रक–महा लेखापरीक्षक
148 भारत का नियंत्रक – महा लेखापरीक्षक
149 नियंत्रक महा लेखापरीक्षक के कर्तव्य और शक्तियां
150 संघ के और राज्यों के लेखाओं का प्ररूप
151 संपरीक्षा प्रतिवेदन
ऊपर.
____________________________________________
#भाग_6 : राज्य
▪️अध्याय 1. साधारण
152 परिभाषा.
▪️अध्याय 2. कार्यपालिका
▪️राज्यपाल
153 राज्यों के राज्यपाल
154 राज्य की कार्यपालिका शक्ति
155 राज्यपाल की नियुक्ति
156 राज्य की पदावधि
157 राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
158 राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
159 राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
160 कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का
निर्वहन
161 क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के
निलंबन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति
162 राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
मंत्रि परिषद.
163 राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि
परिषद
164 मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
राज्य का महाविधवक्ता.
165 राज्य का महाधिवक्ता
सरकारी कार्य का संचालन.
166 राज्य की सरकार के कार्य का संचालन
167 राज्यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में.
▪️मुख्यमंत्री के कर्तव्य
▪️अध्याय 3. राज्य का विधान मंडल
साधारण
168 राज्यों के विधान – मंडलों का गठन
169 राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन
170 विधान सभाओं की संरचना
171 विधान परिषदों की संरचना
172 राज्यों के विधान-मंडलों की अवधि
173 राज्य के विधान-मंडल की सदस्यता के लिए अर्हता
174 राज्य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रावहसान और
विघटन
175 सदन और सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश
भेजने का राज्यपाल का अधिकार
176 राज्यपाल का विशेष अभिभाषण
177 सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार
▪️राज्य के विधान-मंडल के अधिकारी
178 विधान सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
179 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना
180 अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शाक्ति
181 जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
182 विधान परिषद का सभापति और उप सभापति
183 सभापति और उप सभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना
184 सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति
185 जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
186 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथ सभापति और उप-सभापति के वेतन और भत्ते
187 राज्य के विधान मंडल का सचिवालय कार्य संचालन
188 सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
189 सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति सदस्यों की निरर्हताएं
190 स्थानों का रिक्त होना
191 सदस्यता के लिए निरर्हताएं
192 सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय
193 अनुच्छेद 188 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञा करने से पहले या अर्हित न होते हुए या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां
194 विधान-मंडलों के सदनों की तथा सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषधिकार आदि
195 सदस्यों के वेतन और भत्ते विधायी प्रक्रिया
196 विधेयकों के पुर: स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध
197 धन विधेयकों से भिन्न विधेयकों के बारे में विधान परिषद की शक्तियों पर निर्बंधन
198 धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
199 “धन विधेयक” की परिभाषा
200 विधेयकों पर अनुमति
201 विचार के लिए आरक्षित विधे.
▪️वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया
202 वार्षिक वित्तीय विवरण
203 विधान-मंडल में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया
204 विनियोग विधेयक
205 अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान
206 लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान
207 वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध.
▪️साधारणतया प्रक्रिया
208 प्रक्रिया के नियम
209 राज्य के विधान-मंडल में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
210 विधान मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा
211 विधान-मंडल में चर्चा पर निर्बंधन
212 न्यायालयों द्वारा विधन मंडल की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना.
▪️अध्याय 4. राज्यपाल की विधायी शाक्ति
213 विधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्याति करने की राज्यपाल की शक्ति.
▪️अध्याय 5. राज्यों के उच्च न्यायालय
214 राज्यों के लिए उच्च न्यायालय
215 उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना
216 उच्च न्यायालयों का गठन
217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें
218 उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों का लागू होना
219 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
220 स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात विधि-व्यवसाय पर निर्बंधन
221 न्यायाधीशों के वेतन आदि
222 किसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण
223 कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति
224 अपर और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति
224क उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति
225 विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता
226 कुछ रिट निकालने की उच्च न्यायालय की शक्ति
226क [निरसन]
227 सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति
228 कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण
228क [निरसन]
229 उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्यय
230 उच्च न्यायालयों की अधिकारिता का संघ राज्य क्षेत्रों पर विस्तार
231 दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना.
▪️अध्याय 6. अधीनस्थ न्यायालय
233 जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति
233क कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण
234 न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्तियों की भर्ती
235 अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण
236 निर्वचन
237 कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों पर इस अध्याय के उपबंधों का लागू होना.
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#भाग_7 : पहली अनुसूची के भाग ख के राज्य
238 [निरसन]
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#भाग_8 : संघ राज्य क्षेत्र
239 संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन
239क कुछ संघ राज्य क्षेत्रों के लिए स्थानीय विधान मंडलों या मंत्रि-परिषदों का या दोनों का सृजन
239क दिल्ली के संबंध में विशेष उपबंध
239कक सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध
239कख विधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की प्रशासक की शक्ति
240 कुछ संघ राज्य क्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति
241 संघ राज्य क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
242 [निरसन].
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#भाग_9 : पंचायत
243 परिभाषाएं
243क ग्राम सभा
243ख पंचायतों का गठन
243ग पंचायतों की संरचना
243घ स्थानों का आरक्षण
243ड पंचायतों की अवधि, आदि
243च सदस्यता के लिए निरर्हताएं
243छ पंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
243ज पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां
243-झ वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
243ञ पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
243ट पंचायतों के लिए निर्वाचन
243ठ संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना
243ड इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू नह होना
243ढ विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
243ण निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन.
#भाग_9क : नगरपालिकाएं
243त परिभाषाएं
243थ नगरपालिकाओं का गठन
243द नगरपालिकाओं की संरचना
243ध वार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना
243न स्थानों का आरक्षण
243प नगरपालिकाओं की अवधि, आदि
243फ सदस्यता के लिए निरर्हताएं
243ब नगरपालिकाओं, आदि की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
243भ नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियां
243म वित्त आयोग
243य नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
243यक नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
243यख संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना
243यग इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
243यघ जिला योजना के लिए समिति
243यड महानगर योजना के लिए समिति
243यच विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना
243यछ निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन
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#भाग_10 : अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र
244 अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन.
244क असम के कुछ जनजाति क्षेत्रों को समाविष्ट करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाना और उसके लिए स्थानीय विधान मंडल या मंत्रि परिषद का या दोनों का सृजन.
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#भाग_11: संघ और राज्यों के बीच संबंध
▪️अध्याय I. विधायी संबंध विधायी शक्तियों का वितरण
245 संसद द्वारा राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार.
246 संसद द्वारा और राज्य के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषयवस्तु.
247 कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति.
248 अवशिष्ट विधायी शक्तियां.
249 राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति.
250 यदि आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची में के विषय के संबंध में विधि.
251 संसद द्वारा अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.
252 दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार किया जाना.
253 अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान.
254 संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.
255 सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना..
▪️अध्याय 2. प्रशासनिक संबंध
256 राज्यों की ओर संघ की बाध्यता.
257 कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण.
257क [निरसन]
258 कुछ दशाओं में राज्यों को शक्ति प्रदान करने आदि की संघ की शक्ति.
258क संघ को कृत्य सौंपने की राज्यों की शक्ति.
259 [निरसन]
260 भारत के बाहर के राज्य क्षेत्रों के संबंध में संघ की अधिकारिता.
261 सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियां..
▪️जल संबंधी विवाद
262 अंतरराज्यिक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन..
▪️राज्यों के बीच समन्वय
263 अंतरराज्य परिषद के संबंध में उपबंध..
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#भाग_12: वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद
▪️अध्याय 1. वित्त
264 विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना.
265 विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना.
266 भारत और राज्यों के संचित निधियां और लोक लेखे.
267 आकस्मिकता निधि..
▪️संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण
268 संघ द्वारा उदगृहीत किए जाने वाले किन्तु राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क.
269 संघ द्वारा उदगृहीत और संगृहीत किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर.
270 उदगृहीत कर और उनका संघ तथा राज्यों के बीच वितरण.
271 कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार.
272 [निरसन]
273 जूट पर और जूट उत्पादों का निर्यात शुल्क के स्थान पर अनुदान.
274 ऐसे कराधान पर जिसमें राज्य हितबद्ध है, प्रभाव डालने वाले विधेयकों के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश की अपेक्षा.
275 कुछ राज्यों को संघ अनुदान.
276 वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर.
277 व्यावृत्ति.
278 [निरसन]
279 “शुद्ध आगम”, आदि की गणना.
280 वित्त आयोग.
281 वित्त आयोग की सिफारिशें..
▪️प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध
282 संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व के लिए जाने वाले व्यय.
283 संचित निधियों, आकस्मिकता निधियों और लोक लेखाओं में जमा धनराशियों की अभिरक्षा आदि.
284 लोक सेवकों और न्यायालयों द्वारा प्राप्त वादकर्ताओं की जमा राशियों और अन्य धनराशियों की अभिरक्षा.
285 संघ और संपत्ति को राजय के कराधान से छूट.
286 माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधिरोपण के बारे में निर्बंधन.
287 विद्युत पर करों से छूट.
288 जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट.
289 राज्यों की संपत्ति और आय को संघ और कराधार से छूट.
290 कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन.
290क कुछ देवस्वम निधियों की वार्षिक संदाय.
291 [निरसन].
▪️अध्याय 2. उधार लेना
292 भारत सरकार द्वारा उधार लेना.
293 राज्यों द्वारा उधार लेना..
▪️अध्याय 3. संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व,
बाध्यताएं और वाद
294 कुछ दशाओं में संपत्ति, अास्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार.
295 अन्य दशाओं में संपत्ति, अास्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार.
296 राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोदभूत संपत्ति.
297 राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना.
298 व्यापार करने आदि की शक्ति.
299 संविदाएं.
300 वाद और कार्यवाहियां..
▪️अध्याय 4. संपत्ति का अधिकार
300क विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना..
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#भाग_13 : भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम
▪️भारत के संघ राज्य क्षेत्र
301 व्यापार, वाणज्यि और समागम की स्वतंत्रता.
302 व्यापार, वाणज्यि और समागम पर निर्बंधन अधिरोपित करने की संसद की शक्ति.
303 व्यापार और वाणिज्य के संबंध में संघ और राज्यों की विधायी शक्तियों पर निर्बंधन.
304 राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन.
305 विद्यमान विधियों और राज्य के एकाधिकार का उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति.
306 [निरसन]
307 अनुच्छेद 301 से अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति..
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#भाग_14: संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं
▪️अध्याय 1. सेवाएं
308 निर्वचन.
309 संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती
और सेवा की शर्तें.
310 संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि.
311 संघ या राज्य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्यक्तियों का पदच्युत किया जाना या पंक्ति में अवनत किया जाना.
312 अखिल भारतीय सेवाएं.
312क कुछ सेवाओं के अधिकारियों की सेवा की शर्तों में परिवर्तन करने या उन्हें प्रतिसंहृत करने की संसद की शक्ति.
313 संक्रमण कालीन उपबंध.
314 [निरसन].
▪️अध्याय 2. लोक सेवा आयोग
315 संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग.
316 सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि.
317 लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना.
318 आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति.
319 आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के सबंध में प्रतिषेध.
320 लोक सेवा आयोगों के कृत्य.
321 लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति.
322 लोक सेवा आयोगों के व्यय.
323 लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन..
#भाग_14क : अभिकरण
323शासनिक अधिकरण.
323ख अन्य विषयों के लिए अधिकरण.
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#भाग_15 : निर्वाचन
324 निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना.
325 धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति का निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना और उसके द्वारा किसी विशेष निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए जाने का दावा न किया जाना.
326 लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का वयस्क मताधिकार के आधार पर होना.
327 विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति.
328 किसी राज्य के विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की उस विधान मंडल की शक्ति.
329 निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन.
329क [निरसन].
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#भाग_16: कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध
330 लोक सभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण.
331 लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व.
332 राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण.
333 राज्यों की विधान सभाओं में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व.
334 स्थानों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व का साठ वर्ष के पश्चात न रहना.
335 सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे.
336 कुछ सेवाओं में आंग्ल भारतीय समुदाय के लिए विशेष उपबंध.
337 आंग्ल भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शैक्षिक अनुदान के लिए विशेष उपबंध.
338 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग.
338क राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग.
339 अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में संघ का नियंत्रण.
340 पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति.
341 अनुसूचित जातियां.
342 अनुसूचित जनजातियां..
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#भाग_17: राजभाषा
▪️अध्याय 1. संघ की भाषा
343 संघ की राजभाषा.
344 राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति..
▪️अध्याय 2. प्रादेशिक भाषाएं
345 राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं.
346 एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा.
347 एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा..
▪️अध्याय 3. उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा
348 उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा.
349 भाषा से संबंधित कुछ विधियां अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया..
▪️अध्याय 4. विशेष निदेश
350 व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा.
350क प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं.
350ख भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी.
351 हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश.
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#भाग_18 : आपात उपबंध
352 आपात की उदघोषणा.
353 आपात की उदघोषणा का प्रभाव.
354 जब आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में है तब राजस्वों के वितरण संबंधी उपबंधों का लागू होना.
355 बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्य की संरक्षा करने का संघ का कर्तव्य.
356 राज्यों सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध.
357 अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उदघोषणा के अधीन विधायी शाक्तियों का प्रयोग.
358 आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन.
359 आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन.
359क [निरसन]
360 वित्तीय आपात के बारे में उपबंध..
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#भाग_19 : प्रकीर्ण
361 राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण.
361क संसद और राज्यों के विधान मंडलों की कार्यवाहियों की प्रकाशन का संरक्षण.
361ख लाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए निरर्हता.
362 [निरसन]
363 कुछ संधियों, करारों आदि से उत्पन्न विवादों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन
363क देशी राज्यों के शासकों को दी गई मान्यता की समाप्ति और निजी थौलियों का अंत
364 महापत्तनों और विमानक्षेत्रों के बारे में विशेष उपबंध
365 संघ द्वारा दिए गए निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव
366 परिभाषाएं
367 निर्वचन
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#भाग_20 : संविधान का संशोधन
368 संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया.
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#भाग_21: अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रावधान
369 राज्य सूची के कुछ विषयों के सबंध में विधि बनाने की संसद की इस प्रकार अस्थायी शक्ति मानो वे समवर्ती सूची के विषय हों.
370 जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध.
371 महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष उपबंध.
371क नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
371ख असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
371ग मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
371घ आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
371ड आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना.
371च सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
371छ मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
371ज अरुणाचल प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
371-झ गोवा राज्य के संबंध में विशेष उपबंध.
372 विद्यमान विधियों का प्रवृत्त बने रहना और उनका अनुकूलन.
372क विधियों का अनुकूलन करने की राष्ट्रपति की शक्ति.
373 निवारक निरोध में रखे गए व्यक्तियों के संबंध में कुछ दशाओं में आदेश करने की राष्ट्रपति की शाक्ति.
374 फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपरिषद हिज मेजेस्टी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के बारे में उपबंध.
375 संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायालयों, प्राधिकारियों और अधिकारियों का कृत्य करते रहना.
376 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
377 भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध
378 लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध
378क आंध्र प्रदेश विधान सभा की अवधि के बारे में विशेष उपबंध
379-391 [निरसन]
392 कठिनाइयों को दूर करने की राष्ष्ट्रपति की शक्ति
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#भाग_22 : संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और निरसन
हिंदी में प्राधिकृत पाठ
393 संक्षिप्त नाम
394 प्रारंभ
394क हिंदी भाषा में प्राधिकृत पाठ
395 निरसन
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#मार्ले_मिन्टो_सुधार_या_सांप्रदायिक_सुधार
तत्कालीन भारत सचिव मार्ले एवं वायसराय लार्ड मिन्टो के नाम इस एक्ट को मार्ले मिन्टो सुधार या सांप्रदायिक सुधार अधिनियम 1909 के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि 1892 के भारत परिषद अधिनियम में गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में सदस्यों के मनोनयन पद्धति का समापन करके अप्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था कर दी गयी किन्तु यह उन भारतीयों को शांत करने में असफल रहा जो अब अपने अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक हो चुके थे। इस एक्ट या सुधार को लाने के पीछे अंग्रेजों का एक उद्देश्य सांप्रदायिक निर्वाचन प्रारंभ कर हिन्दू व मुस्लिमों के बीच मतभेद पैदा कर उनकी एकता को ख़त्म करना भी था।
#भारत_परिषद_अधिनियम_1909_के_प्रमुख
#प्रावधान :
▪️भारतीयों को बजट पर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया किन्तु गवर्नर जनरल उत्तर देने के लिए बाध्य नही थे।
▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में पहली बार एक भारतीय सदस्य सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा को शामिल किया गया।
▪️मुस्लिमों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया अर्थात सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति की शुरुवात हुई।
▪️केन्द्रीय काउंसिल में विधि सदस्यों की संख्या बढाकर 60 कर दी गई जिनमे 27 मनोनीत व 33 निर्वाचित होते थे।
▪️प्रांतीय विधायिकाओं में भी सदस्यों की संख्या बढाई गई और निर्वाचित सदस्यों का बहुमत स्थापित किया गया।
#भारत_परिषद_अधिनियम_1909_के_प्रमुख_प्रभाव :
1909 के भारत परिषद् अधिनियम का प्रमुख प्रभाव यह देखने को मिला की भारत में पहली बार धर्म के आधार पर या सांप्रदायिक निर्वाचन (Communal Election) की शुरुवात हुई।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#बंगाल_विभाजन [ 1905 ]
#तथा_स्वदेशी_आंदोलन
भारत में अपनी हुकूमत कायम रखने के लिए अंग्रेजों की तो नीति ही ‘फूट डालो और राज करो’ की रही थी। साथ ही राष्ट्रवादी आंदोलनों के दमन के लिए भी उन्होंने विभाजन वाली नीति का सहारा लिया। वर्ष 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल विभाजन का कदम उठाना इसी दिशा में उठाया गया एक कदम था कि बंगाल जो भारतीय राष्ट्रवाद का तब प्रमुख केंद्र बनकर उभर चुका था, विभाजन करके उसे तितर-बितर कर दिया जाए।
#बंगाल_का_विभाजन :
ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम 3 दिसंबर, 1903 को बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव यह तर्क देकर लाया कि यहां कि विशाल आबादी के कारण प्रशासनिक व्यवस्था सुचारु तरीके से नहीं चल पा रही है और इसके कुशल संचालन के लिए बंगाल का विभाजन करना जरूरी है। हालांकि, सभी जानते थे कि इसका उद्देश्य तो दरअसल बंगाल में सिर उठा चुके राष्ट्रवादी आंदोलनों का दमन था, क्योंकि इसका प्रभाव देशव्यापी हो रहा था।
#भाषा_के_आधार_पर_विभाजन
▪️बंगाली बोलने वालों की जनसंख्या 1 करोड़ 70 लाख की थी।
▪️हिंदी और उड़िया बोलने वाले 3 करोड़ 70 लाख की संख्या में थे।
▪️इस तरह से बंगाली भाषा वाले बंगाल में बंगाली ही अल्पसंख्यक बन गये।
#धर्म_के_आधार_पर_विभाजन
▪️पश्चिमी बगाल की आबादी 5 करोड़ 40 लाख की थी, जिनमें हिंदुओं की संख्या 4 करोड़ 20 लाख की थी।
▪️पूर्वी बंगाल में मुस्लिम बहुसंख्यक थे। यहां 3 करोड़ 10 लाख की आबादी थी, जिनमें मुस्लिम 1 करोड़ 80 लाख की तादाद में थे।
▪️लॉर्ड कर्जन ने तो ढाका को पूर्वी बंगाल की राजधानी बनाने की भी बात कह दी थी। कर्जन ने कहा कि इससे मुगलों के शासन के दौरान जो मुस्लिमों के बीच एकता थी, वह फिर से कायम हो पायेगी।
▪️इस तरह से बंगाल विभाजन से यह साफ हो गया कि अंग्रेजों ने संप्रदायवाद को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करने के लिए ऐसा किया था।
#ऐसे_हुआ_विरोध :
▪️बैठकों का दौर शुरू हो गया। ढाका, चटगांव और मेमनसिंह में अधिकतर बैठकें आयोजित हुईं।
▪️के.के. मित्रा, सुरेंद्रनाथ बनर्जी और पृथ्वीशचंद्र राय जैसे उदारवादी नेताओं ने विरोध-प्रदर्शन की अगुवाई की।
▪️बंगाली, संजीवनी व हितवादी जैसे अखबार निकालकर बंगाल विभाजन के प्रस्ताव की आलोचना की गई।
#प्रभावी_हुआ_बंगाल_विभाजन :
▪️19 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा हुई।
▪️16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल के विभाजन की औपचारिक घोषणा हो गई।
▪️इस दिन को आंदोलनकारियों की ओर से शोक दिवस के रूप में मनाया गया।
▪️वंदे मातरम गाते हुए नंगे पांव पदयात्रा भी निकाली गई।
▪️पूरे बंगाल में इस दिन को रविंद्र नाथ टैगोर की ओर से राखी दिवस मनाया गया और एक-दूसरे को राखी बांधी गई।
#स्वदेशी_आंदोलन_का_आगाज :
▪️स्वदेशी आंदोलन को बंग-भंग आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
▪️बंगाल विभाजन के अगले ही दिन सुरेंद्र नाथ बनर्जी और आनंद मोहन बोस के नेतृत्व में दो विशाल जनसभाएं हुईं।
▪️स्वदेशी आंदोलन और बहिष्कार आंदोलन का बिगूल फूंक दिया गया।
▪️एक ही दिन में 50 हजार रुपये भी जमा कर लिये गये।
#स्वदेशी_आंदोलन_के_दौरान_गतिविधियां :
▪️उदारवादियों द्वारा चलाये गये आंदोलन का कोई परिणाम नहीं निकलने पर स्वदेशी आंदोलन पर वर्ष 1905 के बाद उग्र विचारधारा वाले नेताओं का कब्जा हो गया।
▪️सरकार की ओर से दमक की कार्रवाई शुरू हुई, जिसके तहत वंदे मातरम गाने पर रोक लगा दिया गया। ▪️सार्वजनिक सभाओं पर भी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिये।
▪️पूरे बंगाल में जनसभाएं शुरू हो गईं। लाला लाजपत राय, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल और अरविंद घोष ने सभाओं में स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की अपील करनी शुरू कर दी।
▪️जिन दुकानों में विदेशी वस्तुएं बेची जा रही थीं, उनके बाहर धरने दिये जाने लगे।
▪️विदेशी वस्तुओं की होली भी जलाई जाने लगी।
▪️सरकारी कार्यालय, स्कूल, काॅलेज और उपाधियों तक का बहिष्कार किया जाने लगा।
▪️अरविंद घोष ने साफ कह दिया कि राजनीतिक स्वतंत्रता ही राष्ट्र के जीवन की सांसें हैं।
▪️धोबियों ने विदेशी कपड़े धोने से मना कर दिया।
▪️ब्राह्मण विदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल वाले धार्मिक समारोहों का बहिष्कार करने लगे।
▪️बारीसल में अश्विनी कुमार दत्त के नेतृत्व में स्वदेशी बंधब समिति ने इस आंदोलन के दौरान लोगों में राजनीतिक जागरुकता फैलाई।
#स्वदेशी_आंदोलन_के_आर्थिक_प्रभाव :
▪️विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के कारण स्वदेशी वस्तुओं की मांग बढ़ने से भारतीयों का व्यवसाय चल निकला और वे आर्थिक दृष्टि से मजबूत होने लगे।
▪️लघु और कुटीर उद्योगों को स्वदेशी आंदोलन की वजह से प्रोत्साहन मिलना शुरू हो गया। इससे इनकी संख्या तेजी से बढ़ने लगी। साबुन, स्वदेशी वस्त्र, घरेलू उपयोगी की वस्तुओं आदि का निर्माण अपने ही देश में होने लगा।
▪️भारतीय ने अपनी खुद के बैंक खोलने शुरू कर दिये। साथ ही बीमा कंपनियां भी खुलने लगीं।
▪️दुकान भी खुलने लगे और भारतीय इनमें पूंजी लगाकर आर्थिक तौर पर खुद को सबल बनाने में जुट गये।
▪️पार्ले जी विस्कुट का शुरू होना भी स्वदेशी आंदोलन की ही देन थी। दरअसल, 1929 में भारत में एक कंपनी की शुरुआत हुई थी, जिसने जर्मनी से बिस्कुट बनाने वाली एक मशीन खरीदी थी। पहले तो यह किसमी और ऑरेंज कैंडी नामक टाफियां बनाती थी। बाद में यह बिस्कुट भी बनाने लगी, जिसे वर्तमान में पार्ले जी बिस्कुट के नाम से सभी जानते हैं।
▪️इसी दौरान प्रफुल्ल चंद्र राय की ओर से लोकप्रिय बंगाल कैमिकल स्वदेशी स्टोर की भी शुरुआत की गयी।
▪️भारत से सस्ते दामों पर कच्चा माल अपने यहां ले जाकर और वापस भारत लाकर ऊंचे दामों पर बेचने के अंग्रेजों के खेल को भारतीय जनता ने समझ लिया और अपने देश में कच्चे मालों से उत्पाद करने लगे।
▪️कपड़ों की मिलें, फैक्ट्रियां, दुकान, बैंक व बीमा कंपनी आदि अपने देश में ही खुलने लगे, जिससे अपनी खुद की आर्थिक स्थिति में सुधार आने लगा।
#स्वदेशी_आंदोलन_के_राजनीतिक_प्रभाव :
▪️स्वदेशी आंदोलन के तहत विभिन्न गतिविधियों जैसे कि लोकप्रिय उत्सवों का आयोजन, मेले व सभाओं आदि के जरिये राजनीतिक चेतना का प्रचार-प्रसार तेजी से होने लगा।
▪️परंपरागत लोक नाट्यशालाओं के जरिये बंगाल में स्वदेशी आंदोलन ने बड़े पैमाने पर लोगों में राजनीतिक चेतना जगाई।
▪️लोकमान्य तिलक की ओर से महाराष्ट्र में शुरू हुए गणपति व शिवाजी उत्सव ने भी स्वदेशी आंदोलन के तहत लोगों को राजनीतिक रूप से जागरुक बनाने का काम किया।
▪️स्वदेशी आंदोलन के फलस्वरुप लोगों को यह समझ होने लगी कि आखिर राष्ट्र की उनके लिए क्या महत्ता है और इसके प्रति निष्ठा क्यों जरूरी है।
▪️इस आंदोलन के कारण जो राजनीतिक चेतना फैली, उसके परिणामस्वरुप समाज में फैली जातिगत विसंगति के साथ बाल विवाह, दहेज प्रथा और शराब के सेवन जैसी सामाजिक बुराईयों से लड़ पाना आसान प्रतीत होने लगा।
▪️रविंद्रनाथ टैगोर ने जो शांति निकेतन की स्थापना की, उससे प्रेरित होकर कलकत्ता में नेशनल काॅलेज के साथ अन्य शैक्षणिक संस्थान भी खुले, जिसने राजनीतिक तौर पर देशवासियों में नई समझ पैदा की और उन्हें राजनीतिक तरीके से परिपक्व भी बनाया।
▪️रविंद्रनाथ टैगोर ने इसी दौरान प्रसिद्ध अमार सोनार बांग्ला नामक गीत लिखा, जो आज बांग्लादेश का राष्ट्रगान भी है।
▪️महिलाओं में भी राजनीतिक चेतना आई और उन्होंने भी बढ़-चढ़कर आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।
#निष्कर्ष :
बंगाल के विभाजन के परिणामस्वरुप जो स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ, उसके बारे में यदि यह कहा जाए कि इसने भारत की आज़ादी की घड़ी को और नजदीक ला दिया, तो यह अतिशयोक्ति बिल्कुल भी नहीं होगी, क्योंकि यह आंदोलन उस वक्त हर भारतीय यह एहसास दिलाने में सफल रहा कि देश को आजाद कराने में वे किस तरह से अपना योगदान दे सकते हैं। इससे लोगों ने स्वदेशी के महत्व को समझा और आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनकर गुलामी की दासता से मुक्त होकर आजाद भारत में सांस लेने का सपना भी देखने लगे। स्वदेशी आंदोलन में जनता की बढ़ती भागीदारी को देखकर स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे नेताओं में भी नई जान आ गई और अपना सर्वस्व न्योछावर करने की भावना के साथ वे और तन-मन से देश को आजाद कराने की लड़ाई में जुट गये।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#संविधान_पर_विदेशी_प्रभाव
भारतीय संविधान पर प्रभाव डालने वाले देशी और विदेशी दोनों स्त्रोत हैं, लेकिन ‘भारतीय शासन अधिनियम 1935’ का संविधान पर गहरा प्रभाव है । भारतीय संविधान सबसे बड़ा लिखित संविधान है । भारत का संविधान 10 देशों के संविधान का मिश्रण है, जो कि उन देशों के संविधान से प्रमुख तथ्यों को लेकर बनाया गया है। जिसके कारण भारतीय संविधान को उधार का थैला भी कहा जाता है । आइये जानते हैं उन तथ्यों के बारे में जिनसे भारतीय संविधान का निर्माण हुआ।
(A) #आतंरिक_स्त्रोत –
#भारतीय_शासन_अधिनियम_1935 –
▪️संघीय तंत्र
▪️राज्यपाल का कार्यकाल
▪️न्यायपालिका
▪️लोक सेवा आयोग
▪️आपातकालीन उपबंध व प्रसानिक विवरण आदि प्रमुख तथ्य
▪️भारतीय शासन अधिनियम 1935 के अनुसार संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं,जो इस अधिनियम से कुछ जस के तस तथा कुछ में बदलाव करके लिया गया है.
(B) #विदेशी_स्त्रोत –
विदेशी स्त्रोत के अंतर्गत बहुत से देशों से लिए गए उपबंध सम्मिलित हैं। जो कि निम्नलिखित हैं –
#ब्रिटेन_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️संसदीय शासन
▪️बहुल मत प्रणाली
▪️विधि के समक्ष समता
▪️विधि निर्माण प्रक्रिया
▪️रिट या आलेख
▪️राष्ट्रपति का अभिभाषण
▪️एकल नागरिकता
▪️नाभिनाद संभद
#संयुक्त_राज्य_अमेरिका_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️मूल अधिकार
▪️न्यायिक पुनरावलोकन
▪️राष्ट्रपति पर महाभियोग
▪️निर्वाचित राष्ट्रपति
▪️उपराष्ट्रपति का पद
▪️विधि का सामान संरक्षण
▪️स्वतंत्र न्यायपालिका
▪️सामुदायिक विकास कार्यक्रम
▪️संविधान की सर्वोच्चता
▪️वित्तीय आपात
▪️उच्चतम न्यायलय या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया
▪️संविधान संशोधन में राज्य की विधायिकाओं द्वारा अनुमोदन
▪️“हम भारत के लोग”
#सोवियत_संघ_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️मूल कर्तव्य
▪️पंचवर्षीय योजना
#कनाडा_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️राज्यों क संघ
▪️संघीय व्यवस्था
▪️राजयपाल की नियुक्ति विषयक प्रक्रिया
▪️राजयपाल द्वारा विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखना
▪️प्रसादपर्यन्त और असमर्थ तथा सिद्ध कदाचार
तदर्थ नियुक्ति
#ऑस्ट्रेलिया_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️समवर्ती सूची का प्रावधान
▪️प्रस्तावना की भाषा
▪️संसदीय विशेषाधिकार
▪️व्यापारिक वाणिज्यिक और समागम की स्वतंत्रता
▪️केंद्र व राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन एवं संबंध
▪️प्रस्तावना में निहित भावना ( स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को छोड़कर )
#आयरलैंड_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️राज्य की नीति के निर्देशक तत्व ( DPSP )
▪️आपातकालीन उपबंध
▪️राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली
▪️राज्यसभा में मनोनयन ( कला, विज्ञान, साहित्य, समाजसेवा इत्यादि क्षेत्र से )
#जापान_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️अनुच्छेद – 21 की शब्दाबली – विधि की स्थापित प्रक्रिया ( शब्द के स्थान पर भावनाओं को महत्त्व )
#दक्षिण_अफ्रीका_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान
▪️राज्य विधान मण्डलों द्वारा राज्य विधानसभा में आनुपातिक प्रतिनिधित्व
#जर्मनी_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️आपात के दौरान राष्ट्रपति को मूल अधिकारों के निलंबन संबंधी शक्तियां
#फ्रांस_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️गणतंत्र
▪️स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना ( सम्पूर्ण विश्व ने फ्रांस से ही ली )
#स्विटजरलैंड_से_लिए_गए_उपबंध –
▪️सामाजिक नीतियों के सन्दर्भ में DPSP का उपबंध
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#भारतीय_संविधान_सभा
भारतीय संविधान सभा एक संप्रभु ढांचा था जिसका गठन कैबिनेट मिशन की सिफारिश पर किया गया था जिसने देश के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 1946 में भारत का दौरा किया था। भारत के लिए एक संवैधानिक मसौदा तैयार करने के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया गया था। हालांकि, बाद में संविधान सभा को अपने गठन के बाद कुछ आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था।
#भारतीय_संविधान_सभा_का_संरचना :
कैबिनेट मिशन द्वारा प्रदत्त ढांचे के आधार पर 9 दिसंबर, 1946 को एक संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान निर्माण संस्था का चुनाव 389 सदस्यों वाली प्रांतीय विधान सभा द्वारा किया गया था जिसमें रियासतों से 93 और ब्रिटिश भारत से 296 सदस्य शामिल थे। रियासतों और ब्रिटिश भारत प्रांतों को उनकी संबंधित आबादी और मुस्लिम, सिख तथा अन्य समुदायों के आधार पर अनुपात में विभाजित किया गया था। सीमित मताधिकार के बावजूद भी संविधान सभा में भारतीय समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिला था।
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली में हुई थी। डॉ सच्चिदानंद को सभा के अंतरिम अस्थायी अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था। हालांकि, 11 दिसंबर, 1946 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष और एच. सी. मुखर्जी को संविधान सभा का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया गया।
#संविधान_सभा_के_कार्य :
▪️संविधान तैयार करना।
▪️अधिनियमित कानूनों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया गया।
▪️22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया।
▪️इसने मई 1949 में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता को स्वीकार कर मंजूरी दे दी थी।
▪️24 जनवरी 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को चुना गया था ।
▪️24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गान को अपनाया।
▪️24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गीत को अपनाया।
#उद्देश्य_प्रस्ताव (ऑब्जेक्टिव रेजॉल्यूशन) :
▪️उद्देश्य प्रस्ताव को पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर, 1946 को स्थानांतरित कर दिया गया था जिसने संविधान तैयार करने के लिए दर्शन मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान किये थे और इसने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का रूप ले लिया था। हालांकि, इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से 22 जनवरी को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था।
▪️प्रस्ताव में कहा गया कि संविधान सभा सबसे पहले भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य के रूप में घोषित करेगी जिसमें सभी प्रदेशों, स्वायत्त इकाइयों को बनाए रखना और अवशिष्ट शक्तियों के अधिकारी; भारत के सभी लोगों को न्याय, स्थिति की समानता, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, पूजा, पेशे, संघ की स्वतंत्रता की गारंटी देना और कानून एवं सार्वजनिक नैतिकता के तहत अल्पसंख्यकों, पिछड़े, दलित वर्गों को पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करना; गणराज्य के क्षेत्र की अखंडता और भूमि, समुद्र और हवा पर अपना संप्रभु अधिकार तथा इस प्रकार भारत का विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए और मानव जाति के कल्याण के लिए योगदान देना शामिल है।
#संविधान_सभा_की_समितियां :
▪️संविधान सभा ने संविधान बनाने के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन के लिए आठ प्रमुख समितियों का गठन किया था- केंद्रीय शक्तियों वाली समिति, केंद्रीय संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, मसौदा समिति, मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों के लिए सलाहकार समिति, प्रक्रिया समिति के नियम, राज्यों की समिति (राज्यों के साथ बातचीत के लिए समिति), जवाहर लाल नेहरू, संचालन समिति।
▪️इन आठ प्रमुख समितियों के अलावा, सबसे महत्वपूर्ण मसौदा समिति थी। 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए डॉ बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया था।
#संविधान_सभा_की_आलोचना :
जिन बिंदुओं के आधार पर संविधान सभा की आलोचना की गयी थी वो इस प्रकार हैं:
▪️एक लोकप्रिय ढांचा नहीं: आलोचकों का मानना है कि संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सीधे भारत की जनता द्वारा नहीं किया गया था। प्रस्तावना कहती है कि संविधान, भारत के लोगों द्वारा अपनाया गया है जबकि इसे कुछ व्यक्तियों द्वारा अपनाया गया था जो भारतीय लोगों द्वारा निर्वाचित तक नहीं थे।
▪️एक संप्रभु विहीन ढांचा: आलोचक इस बात को लेकर बहस करते हैं कि संविधान सभा का ढांचा संप्रभु नहीं है क्योंकि इसका निर्माण भारत के लोगों के द्वारा नहीं किया गया था। यह भारत की आजादी से पहले कार्यकारी कार्रवाई के माध्यम से ब्रिटिश शासकों के प्रस्तावों द्वारा बनाया गया था तथा इसकी संरचना का निर्धारण भी उन्हीं के द्वारा किया गया था।
▪️वक्त की बर्बादी: आलोचकों का हमेशा से यह मानना रहा है कि संविधान तैयार करने के लिए लिया गया समय दूसरे देशों की तुलना में बहुत ज्यादा था। अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने संविधान तैयार करने के लिए केवल चार महीने का समय लिया जो कि आधुनिक दुनिया में अग्रणी था।
▪️कांग्रेस का बोलबाला: आलोचक हमेशा इस बात को लेकर आलोचना करते हैं कि संविधान सभा में कांग्रेस का काफी दबदबा था और अपने द्वारा तैयार संविधान के मसौदे के माध्यम से उसने देश के लोगों पर अपनी सोच थोप दी थी।
▪️एक समुदाय का बोलबाला: कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में धार्मिक विविधता का अभाव था और केवल हिंदुओं का वर्चस्व था।
▪️वकीलों का बोलबाला: आलोचकों का यह भी मानना है कि संविधान संभा में वकीलों के प्रभुत्व की वजह से यह काफी भारी और बोझिल बन गया था उन्होंने एक आम आदमी को समझने के लिए संविधान की भाषा को मुश्किल बना दिया था। संविधान का मसौदा तैयार करने के दौरान समाज के अन्य वर्ग अपनी चिंताओं को जाहिर नहीं कर पाये और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग नहीं ले सके थे।
इसलिए, संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गयी और महत्वपूर्ण रूप से भारत के ऐतिहासिक संविधान का मसौदा तैयार करने में अपना योगदान दिया और बाद में इसने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने में मदद की।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#भारत_में_क्रांतिकारी_आंदोलन
भारत की राजनीति में क्रांतिकारी राष्ट्रवादी आंदोलन का उदय लगभग उसी समय हुआ जब कांग्रेस के अंदर गरम दल का उदय हुआ था। क्रांतिकारी अतिवाद के उदय और विकास के पीछे भी वही कारण और परिस्थितियां कार्य कर रही थीं जो गरमपंथ के उदय के लिए जिम्मेदार थीं।
#विचारधारा_एवं_कार्यप्रणाली
क्रांतिकारियों का विश्वास था कि विदेशी शासन भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ तत्वों को समाप्त कर देगा तथा पश्चिम की अच्छी बातों को भी यहां स्वेच्छा से या शांतिपूर्ण उपायों से कभी लागू नहीं करेगा। उनका यह भी मानना था कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद को केवल हिंसक लड़ाई के द्वारा जल्द से जल्द भारत से समाप्त किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने बम और पिस्तौल की राजनीति को वरीयता दी।
कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी दल हुए जिनका कार्यक्रम अधिक व्यापक था। वे सेना में विद्रोह और किसानों में बगावत कराना चाहते थे। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हत्या करना, डाका डालना, बैंक, पोस्ट आफिस, रेलगाड़ी, शस्त्रागार आदि लूटना सब कुछ जायज था। यद्यपि इन क्रांतिकारियों ने मैजिनी, गैरीबाल्डी आदि विदेशी राष्ट्रनायकों की क्रियाविधियों का अनुसरण किया; लेकिन देश हित में अपना सर्वस्व बलिदान करने की इनकी अंत: प्रेरणा विशुद्ध भारतीय थी।
#क्रांतिकारी_आंदोलन_का_प्रथम_चरण :
क्रांतिकारी आंदोलन का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था लेकिन कालांतर में इसका प्रधान केन्द्र बंगाल बन गया। भारत के अन्य प्रांतो तथा विदेशों में भी भारतीय क्रांतिकारी सक्रिय हुए। आइए जानते हैं इन महत्वपूर्ण क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में -
#महाराष्ट्र_में_क्रान्तिकारी_आंदोलन :
क्रांतिकारी आंदोलन की लहर सबसे पहले महाराष्ट्र से चली और शीघ्र ही इसने समूचे भारत को अपनी गिरफ्त में ले लिया. प्रथम क्रांतिकारी संगठन 1896-97 में पूना में दामोदर हरि चापेकर और बालकृष्ण हरि चापेकर द्वारा स्थापित किया गया. इसका नाम ‘व्यायाम मंडल’ था. इस गुट के द्वारा रैण्ड और एमहर्स्ट नामक दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की गयी. यह यूरोपीयों की प्रथम राजनीतिक हत्या थी. इस हत्या का निशाना तो पूना में प्लेग समिति के प्रधान श्री रैण्ड थे, परन्तु एमहर्स्ट भी अकस्मात् मारे गये. चापेकर बन्धु पकड़े गये तथाप फांसी पर लटका दिये गये. शासक वर्ग ने अंग्रजों के विरुद्ध टिप्पणी लिखने के लिए तिलक को उत्तरदायी ठहराकर 18 मास की सजा दी. 1918 की विद्रोह समिति की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का प्रथम आभास महाराष्ट्र में मिलता है, विशेषकर पूना जिले के चितपावन ब्राह्मणों में. ये ब्राह्मण महाराष्ट्र के शासक पेशवाओं के वंशज थे. उल्लेखनीय है कि चापेकर बन्धु तथा तिलक चितपावन ब्राह्मण ही थे.
सावरकर ने 1904 में नासिक में ‘मित्रमेला’ नाम से एक संस्था आरंभ की थी जो शीघ्र ही मेजनी के ‘तरुण इटली’ की तर्ज पर एक गुप्त सभा ‘अभिनव भारत’ में परिवर्तित हो गयी. बंगाल के क्रांतिकारियों से भी इस संस्था का संबंध था. इस संस्था ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए विदेशों से अस्त्र-शस्त्र मंगवाया और बम बनाने का काम रूसियों के सहायता से किया. अनेक गुप्त संस्थाएं बम्बई, पूना, नासिक, नागपुर, कोल्हापुर आदि जगहों में सक्रिय थीं. शीघ्र ही सरकार इनकी कार्यवाहियों से पराजित हो गयी. गणेश दामोदर सावरकर को भारत से निर्वासित कर दिया गया. जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या के आरोप में दामोदर सावरकर सहित अनेक व्यक्तियों पर ‘नासिक षड्यंत्र’ केस चलाया गया. उन्हें भारत से आजीवन निर्वासित कर ‘कालापानी’ की सजा दी गयी. बाद में सरकार की दमनात्मक नीति एवं धन की कमी के कारण महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आन्दोलन ठंडा हो गया.
#बंगाल_में_क्रांतिकारी_आन्दोलन :
बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन का सूत्रापात भद्रलोक समाज से हुआ. पी. मित्रा ने एक गुप्त क्रांतिकारी सभा ‘अनुशीलन समिति’ का गठन किया. बंग-विभाजन की याजेना, इसके विरुद्ध जन आक्रोश की भावना एवं सरकारी दमनात्मक कार्रवाइयों ने क्रांतिकारी कार्रवाइयों का प्रसार किया. 1905 में बारीन्द्र वुफमार घोष ने ‘भवानी मंदिर’ नामक की पुस्तिका प्रकाशित कर क्रांतिकारी आन्दोलन को बढ़ावा दिया. इसके पश्चात् ‘वर्तमान रणनीति’ नामक पुस्तिका प्रकाशित की. ‘युगान्तर’ और ‘सांध्य’ नामक पत्रिकाओं द्वारा भी अंग्रेज विरोधी विचार फैलाये गये. इसी प्रकार एक अन्य पुस्तिका ‘मुक्ति कौन पथे’ में भारतीय सैनिकों से क्रांतिकारियों को हथियार देने को आग्रह किया गया.
पूर्व बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर बैमफिल्ड फुलर की हत्या का काम प्रफुल्ल चाकी को सौंपा गया, किन्तु यह काम पूरा नहीं हो सका. 1907 में बंगाल के लेफ्टिनेंट गर्वनर की ट्रेन को मेदनीपुर के पास उड़ा देने का षड्यंत्र हुआ तथा 1908 ई. में चन्द्रनगर के मेयर को मारने की योजना बनायी गयी. 30 अप्रैल को प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने मुजफ्फरपुर के जिला जज किंग्सपफोर्ड की हत्या करने का प्रयास किया, परन्तु गलती से बम श्री केनेडी की गाड़ी पर गिरा जिससे दो महिलाओं की मृत्यु हो गयी. खुदीराम बोस पकड़े गये. जबकि प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली. बोस पर अभियोग चलकार उन्हें फाँसी दे दी गयी.
सरकार ने अवैध हथियारों की तलाशी के संबंध में मानिकतला उद्यान तथा कलकत्ता में तलाशियां लीं और 34 व्यक्तियों को बन्दी बनाया, जिसमें दो घोष बन्धु – अरविंद घोष और बारीन्द्र घोष सम्मिलित थे. इन पर अलीपुर षड्यंत्र का मुकदमा बना. मुकदमे के दिनों में सरकारी गवाह नरेन्द्र गोसाईं की जेल में हत्या कर दी गयी. फरवरी 1909 में सरकारी वकील की हत्या कर दी गयी तथा 24 फरवरी, 1910 को उप-पुलिस अधीक्षक की कलकत्ता उच्च न्यायालय से बाहर आते समय हत्या कर दी गयी. इस षड्यंत्र में अनेक व्यक्तियों को फाँसी की सजा दी गयी. 1910 में हावड़ा षड्यंत्र एवं ढाका षड्यंत्र हुए. बारिसाल में भी क्रांतिकारी कार्य हुए. रॉलेट कमेटी की रिपोर्ट में 1906 से 1917 के बीच मध्य बंगाल में 110 डाकें तथा हत्या के 60 प्रयत्नों का उल्लेख है.
इन क्रांति घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने विस्फोट पदार्थ अधिनियम, 1908 और समाचार पत्र (अपराध प्रेरक) अधिनियम, 1908 पास किये. इसके अलावा व्यापक दमन चक्र चलाया गया. अनेक क्रांतिकारी फाँसी पर चढ़ा दिये गये. कुछ को गिरफ्तार कर लिया गया और अनेक को निर्वासित कर दिया गया. इन दमनात्मक कार्यों से क्रांतिकारी संगठन टूटने लगे.
#पंजाब_तथा_दिल्ली_में_क्रांतिकारी_आंदोलन :
बंगाल की घटनाओं का प्रभाव लगभग समूचे देश पर पड़ा. पंजाब और दिल्ली भी क्रांति से बचे नहीं रहे. 1907 ई. के आस-पास पंजाब के किसानों में ‘औपनिवेशिक विधयेक’ था. इसका नेतृत्व अजीत सिंह कर नामक क्रांतिकारी संस्था बनायी. लाला क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त थे. सिंह को बन्दी बना लिया गया तथा से निर्वासित कर दिये गये. अजित और वे फ़्रांस चले गये.
दिल्ली अमीरचंद ने किया. 1912 में दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया, जिसमें जख्मी हो गया और उसका एक सेवक मारा गया. सरकार ने संदिग्ध व्यक्तियों को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया. अमीरचंद और बम फेंकने वाले बसंत विश्वास को फांसी दे दी गयी. रास बिहारी बोस भागकर जापान चले गये और वहीं से क्रांतिकारी गतिविधियां संचालित करते रहे.
#भारत_के_अन्य_भागों_में_क्रांतिकारी_आंदोलन :
देश के अन्य भागों में भी क्रांतिकारी गतिविधियां चल रही थीं. मद्रास में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन विपिन चन्द्र पाल कर रहे थे. उनके विचारों से प्रभावित होकर अनेक लोग आन्दोलन में कूद पड़े. 1911 में तिनेवेली के जिला मजिस्ट्रेट मि. ऐश को रेलवे स्टेशन पर ही गोली मार दी गयी. नीलंकठ अय्यर और वी.पी.एस. अय्यर ने मद्रास में आन्दोलन को आगे बढ़ाया. राजस्थान में क्रांति फैलाने में मुख्य भूमिका अर्जुन लाल सेठी, केसरी सिंह बारहट और राव गोपाल सिंह ने निभायी, प्रताप सिंह ने अजमेर में क्रांति को जीवित रखा. मध्य प्रदेश के प्रमुख क्रांतिकारी अमरौती के गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे थे. संयुक्त प्रांत, आगरा एवं अवध के क्रांतिकारियों का प्रमुख केन्द्र बनारस बना. बिहार में पटना तथा झारखण्ड में देवघर, दुमका आदि जगहों पर भी घटनाएं हुईं. पटना में कामाख्या नाथ मित्रा, सुधीर कुमार सिंह, पुनीतलाल, बाबू मंगला चरण आदि ने क्रांतिकारी गतिविधियों को अपना सक्रिय सहयोग दिया.
#विदेशों_में_क्रांतिकारी_संगठन_एवं_कार्य :
अनके क्रांतिकारी सरकारी चंगुल से बचने के लिए विदेश चले गये और वहीं से अपना संघर्ष जारी रखा. विदेशों में क्रांतिकारी आन्दोलन के प्रसार का श्रेय श्यामजी कृष्ण वर्मा को जाता है. लंदन में इन्होंने 1905 में ‘इंडिया होमरूल सोसाइटी’ की स्थापना की. उन्होंने “इंडियन सोशियोलॉजिस्ट” नामक पत्र निकालकर भारत में स्वराज्य प्राप्ति को अपना उद्देश्य बताया. उन्होंने लंदन में ‘इंडिया हाउस’ की भी स्थापना की जो क्रांति गतिविधियों का केन्द्र था. बाद में उन्हें लंदन छोड़कर पेरिस भागना पड़ा. उनकी जगह नेतृत्व विनायक दामोदर सावरकर के हाथ में आ गया. उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘1857 ई. का भारतीय स्वतंत्रता का युद्ध’ लिखी. जुलाई 1909 ई. में लंदन में ही मदन लाल ढींगरा ने भारत सचिव के ए.डी.सी., कनर्ल सर विलियम कर्जन वाइली को गोली मार दी. ढ़ींगरा को फाँसी दे दी गयी और इस षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप में सावरकर को गिरफ्तार कर भारत भेजा गया, जहां उन पर मुकदमा चलाकर देश निकाला की सजा दी गयी. फ़्रांस में मैडम भीकाजी कामा क्रांतिकारी कार्रवाईयों का संचालन कर रही थी. साथियों ने 1931 ई. में सैन फ्रांसिस्को में की. संस्था ने एक साप्ताहिक पत्र ‘गदर’ आन्दोलन को बढ़ावा देती रहा.
क्रांतिकारियों ने लंदन में कमाल पाशा से भेंट की. भारत और मिस्र के क्रांतिकारियों का सम्मिलित सम्मलेन ब्रुसेल्स में हुआ. बैंकोक और चीन के गुरुद्वारे क्रांतिकारी विचारों के केन्द्र बन गये.
#क्रांतिकारी_आंदोलन_का_दूसरा_चरण -
चौरा चौरी की हिंसक घटना के बाद असहयोग आंदोलन को महात्मा गांधी द्वारा रोक दिया गया। ऐसे में क्रांतिकारी आंदोलन में फिर से तेजी आ गई। बंगाल की पुरानी युगांतर और अनुशीलन समितियों को पुनर्जीवित किया गया। लेकिन राष्ट्रव्यापी तालमेल के लिए एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी संगठन की आवश्यकता को महसूस किया गया। इसलिए सभी भारतीय क्रांतिकारी समूहों का अक्टूबर 1924 में कानपुर में एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें सचिन्द्रनाथ सान्याल, जगदीश चन्द्र चटर्जी और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे पुराने क्रांतिकाियों के साथ साथ भगत सिंह, सुखदेव, शिव वर्मा, भगवतीचरण वोहरा तथा चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा क्रांतिकारियों ने भी हिस्सा लिया। इनके सम्मिलित प्रयासों से 1928 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन या आर्मी नामक एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी संगठन की स्थापना हुई। बंगाल, बिहार, संयुक्त प्रांत, दिल्ली, पंजाब मद्रास आदि प्रांतों में इसकी शाखाएं स्थापित की गईं।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने तीन मुख्य उद्देयों को लेकर काम शुरू किया।
▪️गांधी जी की अहिंसात्मक नीतियों के खिलाफ जनता में जागरूकता पैदा करना।
▪️पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु प्रत्यक्ष क्रांतिकारी कार्यवाही की आवश्यकता को प्रदर्शित करना।
▪️अंग्रेजी साम्राज्यवादी सरकार के स्थान पर अखिल भारतीय समाजवादी संघीय गणतंत्र की स्थापना करना।
#काकोरी_रेल_डकैती :
9, अगस्त, 1925 को संयुक्त प्रांत (यू पी) के क्रांतिकारियों ने सहारनपुर लखनऊ रेल लाईन पर काकोरी जाने वाली रेलगाड़ी को सफलतापूर्वक लूटा।
#साण्डर्स_हत्याकांड :
सायमन कमीशन के विरोध में लाहौर में निकाले गए जुलूस का नेतृत्व करते समय लाला लाजपत राय पर पुलिस द्वारा भयंकर लाठी चार्ज किया गया था जिससे बाद में उनकी मृत्यु हो गई। पंजाब के क्रांतिकारियों ने भगतसिंह की अगुवाई में दोषी पुलिस अधिकारी साण्डर्स की 17 दिसंबर 1928 को गोली मारकर हत्या कर दी।
#सेंट्रल_असेंबली_बम_काण्ड :
8, अप्रैल 1929 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के दो सदस्यों ने केंद्रीय विधानसभा के खाली बेंचों में बम फेंका। सरदार भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इस कार्य को अंजाम दिया। उनका उद्देश्य किसी हत्या करना नहीं था। बल्कि ऊंचा सुनने वाले बहरों को जनता की आवाज सुनाना उनका मकसद था। चूंकि सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने भर से उनको फांसी नहीं दी जा सकती थी इसलिए सरकार ने इस कांड को साण्डर्स हत्या कांड से जोड़ कर उन पर लाहौर षड्यंत्र केस चलाया गया तथा भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गयी।
#चटगांव_शस्त्रागार_लूट :
इसी प्रकार सूर्यसेन ने बंगाल के चटगांव शस्त्रागार को अप्रैल 1930 में लूटा। बाद में वे पकड़े गए और फांसी पर लटका दिए गए।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1942 में देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया गया। गांधी जी तथा कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफतार कर लिया गया। इसके बाद भारत छोड़ो आन्दोलन जनता का स्वत: स्फूर्त आंदोलन बन गया जिसमें हिंसावादी-अहिंसावादी, समाजवादी और क्रांतिकारी सब ने एक साथ काम किया। जयप्रकाश नारायण आदि समाजवादियों ने आंतरिक तोड़फोड़ की नीति अपनाई तो सुभाषचन्द्र बोस ने जापान और जर्मनी की सहायता से पूर्वोत्तर से ब्रिटिश भारत पर आजाद हिन्द फौज के द्वारा आक्रमण किया। देश के अनेक हिस्सों में समानांतर सरकारों का गठन भी किया गया।
उपरोक्त संक्षिप्त विवरण से स्पष्ट है कि पहले चरण के क्रांतिकारियों और दूसरे चरण के क्रांतिकारियों में कुछ मूलभूत अंतर था। पुराने क्रांतिकारी भारत के पारंपरिक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से प्रेरित थे उनके विपरीत दूसरे दौर के क्रांतिकारी समाजवादी सिद्धांतों से संचालित थे। बाद वाले क्रांतिकारी अपेक्षाकृत अधिक संगठित थे और वृहत्तर उद्देश्यों को लेकर चले। देश के लिए बलिदान और आत्मोसर्ग इनकी भावना से सम्पूर्ण राष्ट्र अनुप्राणित था। लेकिन गांधी जी के अहिंसात्मक सत्याग्रह की अपार सफलता के चलते क्रांतिकारी विचारधारा भारत में प्रमुखता नहीं पा सकी।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#कांग्रेस_में_गरम_दल_और_नरम_दल
भारत में आजादी से पहले कांग्रेस ही मुख्य पार्टी या मुख्य संगठन था जो भारत की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता था। लेकिन जैसा की आप जानते है की हर संगठन में दो तरह के सोच वाले लोग होते है। उसी तरह से इस संगठन में भी दूसरी तरह के सोच वाले लोग निकल कर सामने आये। क्योंकि कुछ लोग समझौता करके भारत पर शासन चाहते थे तो कुछ लोगो को किसी भी तरह का समझौता स्वीकार नहीं था।
#गरम_दल :
गरम दल के लोग किसी भी कीमत पर आजादी चाहते थे और पूरी आजादी चाहते थे। क्योंकि इन्हे अंग्रेजो का हस्तक्षेप बिलकुल भी स्वीकार नहीं था। गरम दल वालों का मानना था कि ऐसी सरकार से तो गुलामी कई गुणा अच्छी है! यदि अंग्रेजों के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे तो ये भारत के साथ फिर धोखा होगा. नरम दल वाले वंदे मातरम के विरुद्ध थे क्योंकि उनके अनुसार वह गीत भारतीयों के मन में देशभक्ति की भावना को भरता था| पर लोग वंदे मातरम के दीवाने थे| कई सभाओं में तो यह स्थिति हो गई कि जहाँ वंदे मातरम गीत रात रात भर गाया जाता था। ये वही वन्दे मातरम् गीत है जिसने कभी हम सभी के आदर्श शहीद भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, क्षुदी राम बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद आदि कई क्रांतिकारियों को राष्ट्र हेतु मर मिटने के लिए प्रेरित किया| जिसे गाते गाते लाखो लोग फांसी पर झूल गए। जिनमे से सिर्फ कुछ को ही इतिहास अपने पन्नो में जगह दे पाया।
#लाल_बाल_पाल :
ये गरम दल को बनाने वाले नेता थे जिनके कारण भारत से अंग्रेजो को भागना पड़ा था,
लाला लाजपत राय जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी थी। उन्हें भारत के राष्ट्रवादी लोग आज भी उन्हें लाल कह कर याद करते है। ठीक उसी तरह से बाल गंगाधर तिलक को बाल और विपिन पाल को पाल कहकर याद करते है। गरम दल स्वदेशी के पक्षधर थे और सभी आयातित वस्तुओं के बहिष्कार के समर्थक थे। 1905 के बंग भंग आन्दोलन में उन्होने जमकर भाग लिया। लाल-बाल-पाल की त्रिमूर्ति ने पूरे भारत में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध लोगों को आन्दोलित किया। बंगाल में शुरू हुआ धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार देश के अन्य भागों में भी फैल गया।
#गरम_दल_के_नेताओ_के_नाम :
▪️लाला लाजपत राय
▪️बाल गंगाधर तिलक
▪️विपिनचंद्र पाल
▪️चंद्रशेखर आज़ाद
▪️सुभाषचंद्र बोस
▪️भगत सिंह
▪️राज गुरु
▪️सुखदेव
#नरम_दल :
नरम दल के नेता जो अंग्रेजों का समर्थन करते थे क्योंकि अंग्रेजो ने भारत में लूट के साथ साथ आधुनिक तकनीक लाने का भी काम किया जिसमे रेलवे इत्यादि का काम प्रमुख है। इनको लगा होगा की हम अग्रेंजो से समर्थन और तकनीक ले ले बदले में कुछ सोचा होगा। क्या पता। लेकिन इधर जब नरम दल वालों ने देखा कि वंदे मातरम की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, तो अंग्रेंजो ने इन पर ये सब बंद करवाने का दबाब बनाया क्योंकि इससे जनता में अंग्रेजो के प्रति क्रांति की भावना (खिलाफत या विरोध) पैदा हो रही थी। अगर समर्थन चाहिए तो अंग्रेजो की बात माननी ही पड़ती इसलिए नरम दल के कुछ नेताओ ने एक अफवाह फैलाई की ” वंदे मातरम मुसलमानों को नहीं गाना चाहिए क्योंकि इसमें बुत परस्ती है! (या वतन की पूजा है) ”
नरम दल के लोग ये बात जानते थे कि “वंदे मातरम संस्कृत” में है जिसे अधिकांश भारत नहीं समझता, और वो वंदे मातरम के अंश लेकर उसका तोड़ मोड़कर अर्थ प्रस्तुत करने लगे| उन्होंने इस बहस की शकल ऐसी बना दी कि जैसे वंदे मातरम देशभक्ति का गीत न होकर कोई धार्मिक गान हो! इस मामले ने इतना तूल पकड़ा की मुस्लिम लोगो को लगा की अपना भी संगठन होना चाहिए. और नरम दल की सहायता से ही भारत में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुयी। अर्थात जो बातें मुसलमान भाइयों के मन में कभी नहीं आई, उसका बीज आखिर किसने बोया ये आप समझ सकते है।
नरम दल धीरे धीरे औपनिवेशिक शासन से समन्वय करके स्वशासन के लक्ष्य को प्रप्त करना चाहता था,जिसके अन्तर्गत नरम दल (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) ने ब्रिटेन की द्वितीय विश्वयुद्ध में केवल इस शर्त पर सहायता दी की ब्रिटिश शासन हमें स्वशासन का अवसर देगा ।
#नरम_दल_के_नेताओ_के_नाम :
▪️महात्मा गांधी
▪️जवाहरलाल नेहरु
▪️सरदार वल्लभ भाई पटेल
▪️गोपाल कृष्णा गोखले
#नरम_दल_और_गरम_दल_में_अंतर :
▪️दोनों ही कांग्रेस के विभाजन से बने दल थे, जिसमे एक का नाम नरम दल और दूसरे का नाम गरम दल था.
▪️नरम दल का नेतृत्व मोती लाल नेहरू करते थे और गरम दल का नेतृत्व लोकमान्य तिलक करते थे.
▪️गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक एक क्रन्तिकारी की तरह थे, जिन्होंने यातनाये सही, भूखे रहे, जंगलो में रहे, काला पानी सहा जो हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे वहीं दूसरी ओर नरम दल के नेता जो अंग्रेजों के नियम या अंग्रेजी संविधान का समर्थन करते थे. जिसे हमारे इतिहास में शान्ति से ली गयी आजादी, संविधान में रहकर ली गयी आजादी लिखा गया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#भारत_में_संवैधानिक_विकास
भारत में संवैधानिक विकास की शुरुआत ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (1600 ई०) से माना जा सकता है। ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज व्यापारियों का एक समूह था। इसे ब्रिटिश सरकार ने भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया था। व्यापार की रक्षा के नाम पर यूरोपीय कंपनियों ने भारत में किलेबंदी करना और सेना रखना शुरू कर दिया। अपनी सैनिक शक्ति के दम पर ईस्ट इंडिया कंपनी जल्द ही भारतीय रियासतों के राजनीतिक एवं आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगी और भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई। 1757 की प्लासी की लड़ाई के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में एक मुख्य राजनीतिक ताकत बन गई। 1764 के बक्सर के युद्ध तथा 1765 की इलाहाबाद की संधि से तो कंपनी बंगाल, बिहार और उड़ीसा में सर्वेसर्वा हो गई। भारत में कंपनी की आर्थिक और राजनीतिक सफलताओं एवं कारगुजारियों की वजह से ब्रिटेन में यह जरूरी समझा गया कि भारत में उसके क्रियाकलापों नियंत्रित किया जाए।
#रेग्युलेटिंग_एक्ट (1773) :
▪️रेग्ययुलेटिंग एक्ट जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार तथा संसद ने पहली बार कंपनी की गतिविधियों को रेग्युलेट करने या नियंत्रित करने के लिए नियम बनाकर हस्तक्षेप किया।
▪️रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में रखा गया।
▪️1773 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। इसका कार्य क्षेत्र बंगाल, बिहार और उड़ीसा तक था। सर एलीजा इम्पे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
▪️कंपनी के कर्मचारियों निजी व्यापार नहीं कर सकते थे।.
▪️वे उपहार भी नहीं ले सकते थे।
▪️कोर्ट आफ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष कर दिया गया।
#पिट्स_इंडिया_एक्ट (1784) :
▪️यह अधिनियम ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विलियम पिट जुनियर द्वारा लाया गया था।
▪️रेग्युलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया।
▪️पिट्स इंडिया एक्ट में कंपनी प्रशासित क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश राज्य क्षेत्र कहा गया।
▪️बंगाल के गवर्नर जनरल की नियुक्ति पहले की तरह बोर्ड आफ डायरेक्टर्स करता था परंतु इससे पहले बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति लेना जरूरी हो गया। और इस प्रकार नियुक्त गवर्नर जनरल को सम्राट जब चाहे वापस बुला सकता था।
▪️गवर्नर जनरल के कौंसिल के सदस्यों की संख्या चार से घटाकर तीन कर दिया गया। एक सदस्य प्रधान सेनापति होता था।
▪️सपरिषद् (कौंसिल सहित) गवर्नर जनरल को युद्ध, राजस्व तथा राजनीतिक मामलों में बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी पर अधिक नियंत्रण प्रदान किया गया।
▪️इसी प्रकार गवर्नर जनरल बिना बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति के देशी राज्यों के प्रति युद्ध या शांति या किसी अन्य विषय में किसी भी प्रकार की नीति नहीं अपना सकता था।
▪️बाद में एक्ट में संशोधन कर यह प्रावधान किया गया कि यदि गवर्नर जनरल जरूरी समझे तो अपनी परिषद के निर्णय को अस्वीकार कर दे।
▪️पिट के भारत अधिनियम के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों में ब्रिटिश सरकार का पहले से अधिक नियंत्रण स्थापित किया गया। ऐसा एक प्रकार का दोहरा शासन स्थापित करके किया गया।
▪️इंग्लैंड में एक नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड आफ कंट्रोल) की स्थापना की गई। इसमें छः सदस्य होते थे। इंग्लैंड का वित्त मंत्री तथा राज्य सचिव (सेकेट्री आफ स्टेट) इसके सदस्य होते थे। चार अन्य सदस्यों की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी। यह नियंत्रण बोर्ड कंपनी के संचालकों के बोर्ड (बोर्ड आफ डायरेक्टर्स) से ऊपर होता था। कंपनी के मालिकों का बोर्ड भी बोर्ड आफ कंट्रोल के नियंत्रण में होता था। बोर्ड आफ कंट्रोल को कंपनी के सैनिक, असैनिक तथा राजस्व संबंधी सभी मामलों की देखरेख तथा नियंत्रण-निर्देशन का अधिकार था। बोर्ड आफ कंट्रोल कंपनी के संचालकों के नाम आदेश भी जारी कर सकता था। इस प्रकार बोर्ड आफ कंट्रोल के माध्यम से ब्रिटेन की सरकार का कंपनी की गतिविधियों पर मजबूत नियंत्रण स्थापित हो गया। कंपनी के संचालक मंडल को भारत से प्राप्त तथा भारत भेजे जाने वाले सभी कागजात की प्रतिलिपि बोर्ड आफ कंट्रोल के समक्ष रखनी पड़ती थी, जिन्हें वह चाहे तो अस्वीकार भी सकती थी या उसमें परिवर्तन भी करके नया रूप भी दे सकती थी। इस प्रकार बोर्ड आफ कंट्रोल द्वारा स्वीकृत या संशोधित आदेश को संचालक मंडल को मानना ही पड़ता था।
▪️इस तरह संचालक मंडल (बोर्ड आफ डायरेक्टर्स) को बोर्ड आफ कंट्रोल के आदेशों और निर्देशों को मानना ही होता था।
▪️इस अधिनियम के द्वारा संचालक मंडल को केवल कंपनी के व्यापारिक कार्यों के प्रबंधन की शक्ति प्रदान की गई।
▪️संचालक मंडल कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता था परंतु यदि सम्राट चाहे तो ऐसी किसी भी नियुक्ति को निरस्त भी कर सकता था। लेकिन गवर्नर जनरल की नियुक्ति के लिए बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति लेना आवश्यक था।
#1793_का_चार्टर_एक्ट :
▪️भारत के साथ व्यापार के कंपनी के अधिकार को 20 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया।
▪️मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी के गवर्नर भी अपने परिषदों के निर्णयों को निरस्त करने का अधीकार दिया गया।
#1813_का_चार्टर_एक्ट :
▪️इस चार्टर एक्ट के द्वारा भारत के साथ कंपनी के व्यापार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। लेकिन चीन के साथ कंपनी के व्यापार और चाय के व्यापार पर एकाधिकार सुरक्षित रखा गया।
▪️भारतीयों की शिक्षा के लिए एक लाख रुपए वार्षिक की व्यवस्था की गई।
▪️ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।
#1833_का_चार्टर_एक्ट :
▪️कंपनी के चाय के व्यापार के एकाधिकार और चीन के साथ व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा कंपनी को पूर्णता राजनीतिक और प्रशासनिक मशीनरी बना दिया गया ।
▪️इस चार्टर एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा गया। लार्ड विलियम बैंटिक भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बना।
▪️एक विधि आयोग का गठन किया गया। लार्ड मैकाले विधि आयोग का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया।
▪️दास प्रथा गैर कानूनी घोषित हुई।
▪️कंपनी के अधीन किसी पद पर नियुक्ति के मामले में भारतीयों से किसी भी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध किया गया।
▪️संपूर्ण भारत के लिए अधिनियम बनाने का अधिकार सपरिषद् गवर्नर जनरल को दिया गया।
#भारतीय_शासन_अधिनियम (1858) :
▪️इस अधिनियम के द्वारा कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और अब भारत का शासन सम्राट के नाम से किया जाने लगा।
▪️भारत का गवर्नर जनरल अब वायसराय कहा जाने लगा, जो सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में भारत का शासन चलाता था।
▪️लार्ड कैनिंग पहला वायसराय बना।
▪️भारत सचिव का एक नया पद बनाया गया। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमंडल का एक सदस्य होता था। 15 सदस्यों का एक भारत परिषद बनाया गया। यह परिषद भारत सचिव को उसके कार्य में सहायता देती थी। ▪️नियंत्रण बोर्ड और निदेशक मंडल को समाप्त कर दिया गया तथा इन दोनों का कार्य भारत सचिव को दे दिया गया।
▪️इस तरह 1858 के भारत शासन अधिनियम से द्वैध शासन समाप्त हुआ।
#भारतीय_परिषद_अधिनियम (1861) :
▪️इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को अपनी परिषद में भारतीय सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार दिया गया। परंतु ये सदस्य न तो बजट पर बहस कर सकते थे और न ही प्रश्न कर सकते थे।
▪️अब सपरिषद प्रांतीय गवर्नर अर्थात् बंबई और मद्रास के गवर्नर भी कानून बना सकते थे। यह एक तरह से विकेंद्रीकरण की शुरुआत थी ।
#भारतीय_परिषद_अधिनियम (1892) :
▪️गवर्नर जनरल की परिषद में गैर सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। परंतु अभी सरकारी सदस्यों का बहुमत बना रहा।
▪️सीमित रूप में तथा अप्रत्यक्ष पद्धति से ही सही, अब परिषद के सदस्यों का चुनाव शुरू किया गया। अर्थात् भारत में निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत हो गई।
▪️सदस्य गण अब बजट पर बहस कर सकते थे परंतु आर्थिक मुद्दों पर मतदान नहीं कर सकते थे। वे प्रश्न भी कर सकते थे, परंतु पूरक प्रश्न नहीं कर सकते थे। उनके प्रश्नों का उत्तर दिया जाना भी जरूरी नहीं था।
▪️यह अधिनियम भारत के किसी भी राजनीतिक गुट को संतुष्ट नहीं कर सका। यहां तक कि नरम दल भी इस अधिनियम से असंतुष्ट रहा।
#1909_का_भारतीय_परिषद_अधिनियम
▪️भारत सचिव जान मार्ले और वायसराय लॉर्ड मिंटो ने सुधार का एक मसौदा पेश किया जिसके आधार पर 1909 का भारतीय परिषद अधिनियम पारित हुआ इसलिए इसे मार्ले-मिंटो सुधार भी कहते हैं।
▪️1909 के भारतीय परिषद अधिनियम के केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई।
▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया।
▪️सदस्यों को प्रस्ताव रखने, बजट पर बहस करने, प्रश्न करने तथा मतदान का भी अधिकार दिया गया। लेकिन व्यावहारिक रूप में यह सब अधिकार नहीं थे।
▪️सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम की सबसे खराब बात थी। इसके द्वारा मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई, जहां मुस्लिम प्रतिनिधियों का चुनाव केवल मुस्लिम मतदाताओं को करना था। इस तरह अंग्रेजों ने भारत में बढ़ती हुई राष्ट्रवाद की भावना को कमजोर करने के लिए फूट डालो और राज करो की नीति के तहत साम्प्रदायिकता का जहर बो दिए।
#मांटेग्यू_घोषणा :
20 अगस्त 1917 को भारत सचिव मांटेग्यू ने हाउस आफ कामन्स में एक महत्वपूर्ण घोषणा की। यह घोषणा में भारत में अंग्रेजी सरकार के उद्देश्य और नीतियों से संबंधित थी। इसमें मांटेग्यू ने कहा कि भारत में स्वशासी शासनिक संस्थानो का धीरे-धीरे क्रमशः इस प्रकार विकास किया जाएगा कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अभिन्न अंग के रूप में प्रगति करते हुए उत्तरदायी शासन प्रणाली की दिशा में आगे बढ़े तथा शासन के प्रत्येक विभाग में भारतीयों की भागीदारी बढ़े। और यह सब भारतीयों के सहयोग तथा जवाबदारी निभाने की क्षमता पर निर्भर करेगा। लेकिन इस दिशा में कब और किस मात्रा में प्रगति होगी इसका निर्धारण भारत सरकार और ब्रिटिश सरकार ही करेंगे।
#मांटफोर्ड_रिपोर्ट (1918) :
भारत सचिव एडविन मांटेग्यू और वायसराय चेम्सफोर्ड ने 1917 के 20,अगस्त की घोषणा को लागू करने के लिए एक मसौदा पेश किया। इसे ही मांटफोर्ड रिपोर्ट कहा गया। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित है-
▪️नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों आदि स्थानीय निकायों में पूर्ण लोकप्रिय नियंत्रण।
▪️प्रांतों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना।.
▪️केंद्रीय असेंबली का विस्तार तथा उसमें भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व देना।
यही रिपोर्ट 1919 के भारत शासन अधिनियम का आधार बनी। इसे मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं।
#भारत_सरकार_अधिनियम (1919) :
(क) प्रांतों से संबंधित उपबंध:
इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण भाग प्रांतों में दोहरा शासन या द्वैध शासन लागू करना था। इसके लिए शासन के विषयों को प्रांतीय और केंद्रीय सूचियों में बांट दिया गया-
1. केंद्रीय विषयों में रक्षा, विदेशी मामले, मुद्रा और टंकण, आयात-निर्यात कर इत्यादि थे।
2. शांति और व्यवस्था, स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, चिकित्सा प्रशासन और कृषि आदि को प्रांतीय विषयों की सूची में शामिल किया गया था।
प्रांतीय विषयों को फिर दो भागों में बांटा गया- हस्तांतरित और आरक्षित। हस्तांतरित विषयों (जैसे, स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, अस्पताल, उद्योग, कृषि आदि) का प्रशासन लोकप्रिय मंत्रियों को सौंपा जाना था। जबकि शांति और व्यवस्था, पुलिस, वित्त, भूमि कर और श्रम जैसे कुछ अन्य विषय गवर्नर के लिए आरक्षित किए गए जिनका प्रशासन उसे सरकारी सदस्यों के सहयोग से चलाना था।
प्रांतीय परिषदों का विस्तार भी किया गया तथा निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। मताधिकार का विस्तार किया गया। दुर्भाग्यवश सांप्रदायिक निर्वाचन मंडल को न केवल बनाए रखा गया बल्कि और बढ़ा दिया गया। अब मुसलमानों के साथ-साथ सिखों, यूरोपीयों, भारतीय ईसाइयों तथा एंग्लो इंडियन को भी पृथक प्रतिनिधित्व मिला।
1. प्रांतों के गवर्नर आरक्षित विषयों में गवर्नर जनरल या भारत सचिव के प्रति उत्तरदायी था। हस्तांतरित विषयों में भी वह सांवैधानिक मुखिया का कार्य न करके अक्सर मंत्रियों की सलाह के विरुद्ध काम करता था। वह किसी भी विधेयक को रोक सकता था तथा विधान मंडल द्वारा अस्वीकृत विधेयक को प्रमाणित कर सकता था। वह अध्यादेश जारी कर सकता था। विधान मंडल को भंग करके समस्त प्रशासन अपने हाथ में ले सकता था। वह विधानमंढल का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा भी सकता था।
(ख) केंद्र में परिवर्तन :
केंद्रीय स्तर पर पहले की तरह ही निरंकुश सरकार चलती रही और वह सैद्धांतिक रूप से केवल ब्रिटेन की संसद के प्रति उत्तरदायी थी। केंद्रीय विधान मंडल को द्विसदनात्मक बना दिया गया। मताधिकार अब भी सीमित था। यद्यपि दोनों सदनों में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत रखा गया परन्तु गवर्नर जनरल की शक्तियां बढ़ा दी गईं। वह कटौतियों का पुनः स्थापन कर सकता था, विधेयकों को प्रमाणित कर सकता था और अध्यादेश जारी कर सकता था।
कमियां: भारत शासन अधिनियम 1919 के द्वारा प्रांतों में लागू किया गया दोहरा शासन बहुत ही भद्दा, भ्रममय और जटिल था। इसके द्वारा बहुत ही चालाकी से भारतीय राजनेताओं को आरक्षित और हस्तांतरित विषयों की चूहा-दौड़ में फंसा दिया गया। इसी तरह केंद्र में गवर्नर जनरल के अत्यधिक शक्तिशाली हो जाने से गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत भी छलावा मात्र था। कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत शासन अधिनियम 1919 भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकता था इसलिए शीघ्र ही असहयोग आंदोलन शुरू हो गया।.
#भारत_शासन_अधिनियम (1935) :
▪️प्रांतीय स्वायत्तता भारत शासन अधिनियम 1935 की मुख्य विशेषता थी। अब प्रांतों का शासन लोकप्रिय मंत्रियों की सलाह से गवर्नर द्वारा चलाया जाना था।
▪️प्रांतीय और केंद्रीय विधान मंडलों की सदस्य संख्या बढ़ा दी गई।
▪️प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त कर दिया गया लेकिन इसे केंद्र में लागू कर दिया गया।
▪️केंद्र के प्रशासनिक विषयों को दो प्रकारों में संरक्षित और हस्तांतरित में बांटा गया। संरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल सरकारी सदस्यों की सहायता से करता था, जो विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। ▪️हस्तांतरित विषयों का प्रशासन लोकप्रिय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था तो विधानमंडल के सदस्यों में से होते थे और उसी के प्रति जवाबदार होते थे।
▪️भारत शासन अधिनियम 1935 में एक अखिल भारतीय संघ का प्रस्ताव था, जो ब्रिटिश भारत के प्रांतों, चीफ कमिश्नरों के क्षेत्रों और देशी रियासतों से मिलाकर बनाया जाना था। लेकिन देशी रियासतों के लिए इस प्रस्तावित संघ में शामिल होना अनिवार्य नहीं होकर वैकल्पिक था इसलिए यह व्यवस्था अमल में नहीं आ सकी।
▪️मताधिकार का विस्तार किया गया।
▪️पृथक निर्वाचन की व्यवस्था को और बढ़ाते हुए हरिजनों को भी इसमें शामिल किया गया।
▪️बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया।
▪️सिंध प्रांत को बंबई से अलग कर दिया गया।
▪️‘बिहार और उड़ीसा’ प्रांत का विखंडन करके बिहार तथा उड़ीसा नाम से दो नए प्रांत बनाए गए।
▪️भारत मंत्री के अधिकारों में कटौती की गई तथा ‘भारत परिषद’ को समाप्त कर दिया गया।
▪️एक संघीय न्यायालय तथा रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना की गई।
#संविधान_सभा_का_गठन :
केबिनेट मिशन योजना (1946) के अंतर्गत एक संविधान निर्मात्री सभा के गठन का प्रावधान था। जुलाई 1946 में संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव हुआ। इसकी प्रथम बैठक 09, दिसंबर 1946 को हुई। संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह और 18 दिनों के अथक परिश्रम के बाद भारत का संविधान बनाया। इस संविधान पर 26 नवंबर 1949 को सदस्हयों हस्ताक्षर हुए। संविधान के नागरिकता आदि से संबंधित कुछ उपबंध तत्काल लागू हो गये। संविधान पूर्ण रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #भारत_का_संवैधानिक_इतिहास
भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#भारत_का_संवैधानिक_इतिहास
#प्राचीन_भारत_में_संवैधानिक_शासन_प्रणाली :
प्राचीन भारत में शासन धर्म से बंधे हुए थे कोई भी व्यक्ति धर्म का उल्लंखन नहीं कर सकता था। ऐसे प्रयाप्त प्रमाण सामने आए है जिसमे पता चलता है की प्राचीन भारत के अनेक भागो में गणतंत्र शासन प्रणाली प्रतिनिधि विचारण मंडल और स्थानीय स्वशासी संस्थाए विधमान थी और बैदिक काल (3000-1000 ई.पू. के पास) से ही लोकतान्त्रिक चिंतन तथा वयवहार लोगो के जीवन के विभिन्न पहलुओ में घर कर गए थे।
ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में सभा (आम सभा) तथा समिति (वयो वृद्धो की सभा) का उल्लेख मिलता है। एतरेय ब्राह्मण पाणिनि की अष्टध्यायी, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, महाभारत, अशोक स्तंभों पर उत्कीर्ण शिलालेख, उस काल के बौद्ध् तथा जैन ग्रन्थ और मनुस्मृति – ये सभी इस बात के साक्ष्य है की भारतीय इतिहास के वैदिकोत्तर काल में अनेक सक्रिय गणतंत्र विद्यमान थे। विशेष रूप से महाभारत के बाद विशाल साम्राज्यों के स्थान पर अनेक छोटे-छोटे गणतंत्र राज्य अस्तित्व में आ गए।
दसवी शताब्दी में शुक्राचार्य ने ‘नीतिसार’ की रचना की जो संविधान पर लिखी पुस्तक है।
#अंग्रेजी_शासन :
31 दिसम्बर, 1600 को लन्दन के चंद व्यापारीयो द्वारा बनाई गई ईस्ट इंडिया कम्पनी ने महारानी एलिजाबेथ से शाही चार्टर प्राप्त कर लिया और उस चार्टर द्वारा कम्पनी को प्रारंभ में 15 वर्ष की अवधी के लिए भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ क्षेत्रो के साथ व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया गया था। (इसमें कम्पनी का संविधान, उसकी शक्तियां और उसके विशेषाधिकार निर्धारित थे।)
औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद मुग़ल साम्राज्य के विघटन की स्थिति का लाभ उठाते हुए कम्पनी एक प्रभावी शक्ति के रूप में उभर कर सामने आ गई। 1757 में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ प्लासी की लड़ाई में कम्पनी की विजय के साथ इसकी पकड़ और भी मजबूत हो गई और भारत में अंग्रेजी शासन की नीव पड़ी।
#रेगुलेटिंग_एक्ट – (1773) :
भारत में कम्पनी के प्रशासन पर ब्रिटीश संसदीय नियंत्रण के प्रयासों की शुरुआत थी। कम्पनी के शासनाधीन क्षेत्रो का प्रशासन अब कम्पनी के व्यापारियो का निजी मामला नहीं रहा। 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट में भारत में कम्पनी का शासन के लिए पहली बार एक लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया।
#चार्टर_एक्ट (1833) :
भारत में अंग्रेजी राज के दौरान संविधान निर्माण के प्रथम धुंधले से संकेत 1833 के चार्टर एक्ट में मिलते है।
भारत में अंग्रेजी शासनाधीन सभी क्षेत्रो में सम्पूर्ण सिविल तथा सैनिक शासन तथा राजस्व की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण स्पष्ट रूप से गवर्नर जर्नल ऑफ़ इंडिया इन कौंसिल (सपरिषद भारतीय गवर्नर जर्नल) को सौप दिया गया। इस प्रकार गवर्नर जर्नल की सरकार भारत सरकार और उसकी परिषद् ‘भारत परिषद्’ के रूप में मानी जाती है।
विधायी कार्य के परिषद का विस्तार करते हुए पहले के तीन सदस्यों के अतिरिक्त उसमे एक ‘विधि सदस्य’ और जोड़ दिया गया।
गवर्नर जर्नल ऑफ़ इंडिया इन कौंसिल को अब कतिपय प्रतिबंधो के अधीन रहते हुए, भारत में अंग्रेजी शासनाधीन सम्पूर्ण क्षेत्रो के लिए कानून बनाने की अन्य शक्तियाँ मिल गई।
#चार्टर_एक्ट (1853) :
1853 का चार्टर एक्ट अंतिम चार्टर एक्ट था. इस एक्ट के तहत भारतीय विधान तंत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए। यधपि भारतीय गवर्नर जर्नल की परिषद को ऐसे विधायी प्राधिकरण के रूप में जारी रखा गया जो समूचे ब्रिटिश भारत के लिए विधियाँ बनाने में सक्षम थी।
विधायी कार्यो के लिए परिषद में छः विशेष सदस्य जोरकर इसका विस्तार कर दिया गया। इन सदस्यों को विधियाँ तथा विनियम बनाने के लिए बुलाई गई बैठको के अलावा परिषद् में बैठने तथा मतदान करने का अधिकार नहीं था। इन सदस्यों को विधायी पार्षद कहा जाता था। परिषद् में गवर्नर जर्नल, कमांडर-इन-चीफ, मद्रास, बम्बई, कलकत्ता और आगरा के स्थानीय शासको के चार प्रतिनिधियों समेत अब बारह सदस्य हो गए थे।
#1858_का_एक्ट :
भारत में अंग्रेजी शासन के मजबुती के साथ स्थापित हो जाने के बाद 1857 का विद्रोह अंग्रेजी शासन का तख्ता पलट देने का पहला संगठित प्रयास था। उसे अंग्रेज इतिहासकारों ने भारतीय ग़दर तथा भारतीयों ने स्वाधीनता के लिए प्रथम युद्ध का नाम दिया।
यह एक्ट अंततः 1858 का भारत के उत्तम प्रशासन के लिए एक्ट बना। इस एक्ट के अधीन उस समय जो भी भारतीय क्षेत्र कम्पनी के कब्जे में थे वे सब crawn में निहित हो गए और उन पर (भारत के लिए) प्रिंसिपल सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट के माध्यम से कार्य करते हुए crawn द्वारा तथा उसके नाम सीधे शासन किया जाने लगा।
#भारतीय_परिषद_एक्ट ( 1861) :
इसके बाद शीघ्र ही सरकार ने ये यह जरुरी समझा की वह भारतीय प्रशासन की सुधार सम्बन्धी निति का निर्धारण करे। यह ऐसे साधनों तथा उपायों पर विचार करे जिसके द्वारा देश के जनमत से निकट संपर्क स्थापित किया जा सके और भारत की सलाहकार परिषद में यूरोपीय तथा भारतीय गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जा सके ताकि सरकार द्वारा प्रस्तावित विधानों के बारे में बाहरी जनता से विचारो तथा भावनाओ की अभिव्यक्ति यथा समय हो सके।
1861 का भारतीय परिषद एक्ट भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण और युगांतकारी घटना है। यह दो कारणों से महत्वपूर्ण है। एक तो यह की इसने गवर्नर जर्नल को अपनी विस्तारित परिषद में भारतीय जनता के प्रतिनिधियों को नामजद करके उन्हें विधायी कार्य से संवाद करने का अधिकार दे दिया। दूसरा यह की इसने गवर्नर जर्नल की परिषद की विधायी शक्तियों का विकेन्द्रीयकरण कर दिया तथा उन्हें बम्बई तथा मद्रास की सरकारों में निहित कर दिया।
विधायी कार्यो से लिए कम-से-कम छः तथा अधिक-से-अधिक बारह अतिरिक्त सदस्य सम्मिलित किये गए। उनमे से कम-से-कम आधे सदस्यों का गैर सरकारी होना जरुरी था.
1862 में गवर्नर जर्नल, लार्ड कैनिंग ने नवगठित विधान परिषद् में तिन भारतीयों – पटियाला के महाराजा, बनारस के राजा और सर दिनकर राव को नियुक्त किया। भारत में अंग्रेजी राज की शुरूआत के बाद पहली बार भारतीयों को विधायी कार्य के साथ जोड़ा गया।
1861 के एक्ट में अनेक त्रुटियाँ थी। इनके अलावा यह भारतीय आकांक्षाओ को भी पूरा नहीं करता था इससे गवर्नर जर्नल को सर्वशक्तिमान बना दिया था। गैर सरकारी सदस्य कोई भी प्रभावी भूमिका अदा नहीं कर सकता था। न तो कोई प्रश्न पुछा जा सकता था और न ही बजट पर बहस हो सकती थी।
अनाज की भारी किल्लत हो गई और 1877 में जबरदस्त अकाल पड़ा। इससे व्यापक असंतोष फैल गया और स्थिति विस्फोटक बन गई।
1857 के विद्रोह के बाद जो दमनचक्र चला उसके कारणअंग्रेजो के खिलाफ लोगो की भावनाए भड़क उठी थी इनमे और भी तेजी आई, जब यूरोपियो और आंगल भारतीयों ने इल्वर्ट विधेयक का जमकर विरोध किया।
इल्वर्ट विधेयक में सिविल सेवाओ के यूरोपियो तथा भारतीय सदस्यों के बीच घिनौना भेद को समाप्त करने की व्यवस्था की गई थी।
#भारतीय_राष्ट्रीय_कांग्रेस_का_जन्म :
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का श्रीगणेश 1805 में हुआ। ए ओ ह्यूम इसके प्रेनेता थे और प्रथम अध्यक्ष बने डब्लु सी बनर्जी। श्री ह्यूम अंग्रेज थे। 28 दिसम्बर, 1885 को श्री डब्लु सी बनर्जी की अध्यक्षता में हुए इसके पहले अधिवेशन में ही कांग्रेश ने विधान परिषदों में सुधार तथा इनके विस्तार की मांग की।
कांग्रेश के पांचवे अधिवेशन (1889) में इस विषय पर बोलते हुए श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने कहा था “यदि आपकी यह मांग पूरी हो जाती है, तो आपकी अन्य सभी मांगे पूरी हो जाएगी, इस पर देश का समूचा भविष्य तथा हमारी प्रशासन व्यवस्था का भविष्य निर्भर करता है।
1889 के अधिवेशन में जो प्रस्ताव पारित किया गया, उसमे गवर्नर जर्नल की परिषद् तथा प्रांतीय विधान परिषदों में सुधार तथा उनके पुनर्गठन के लिए एक योजना की रुपरेखा दी गई थी और उसे ब्रिटिश पार्लियामेंट में पेश किये जानेवाले बिल में शामिल करने का सुझाव भी दिया गया था।
इस योजना में अन्य बातो के साथ-साथ यह मांग की गई थी की भारत में 21 वर्ष से ऊपर के सभी पुरुष ब्रिटिश नागरिको को मताधिकार तथा गुप्त मतदान पद्धति द्वारा मतदान करना का अधिकार दिया जाये।
#भारतीय_परिषद्_एक्ट_1892 :
भारतीय परिषद् एक्ट 1892 मुख्यतया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेश के 1889 से 1891 तक के अधिवेशनो में स्वीकार किये गए प्रस्तावों से प्रभावित होकर पारित किया गया था। 1892 के एक्ट के अधिन गवर्नर जर्नल की परिषद् में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढाकर कम से कम 10 तथा अधिक से अधिक 16 कर दी गई (इससे पहले इनकी न्यूनतम संख्या 6 और अधिकतम संख्या 12 थी। परिषदों को उनके विधायी कार्यो के अलावा अब कतिपय शर्तो तथा प्रतिबंधो के साथ वार्षिक वितीय वितरण या बजट पर विचार-विमर्श करने की इजाजत दे दी गई।
#मिन्टो_मार्ले_सुधार :
एक ओर रास्ट्रीय आन्दोलन में गरमपंथियों की शक्ति बढती जा रही थी दूसरी ओर भारतीय कांग्रेस में नरमपंथी लोग देश के कार्य संचालन में भारतीयों के और अधिक प्रतिनिधित्व के लिए अनथक अभियान चला रहे थे. इसे देखते हुए तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया लार्ड मार्ले तथा तत्कालीन वायसराय लार्ड मिन्टो ने मिलकर 1906-08 के दौरान कतिपय संवैधानिक सुधार प्रस्ताव तैयार किये, इन्हें आमतौर पर मिन्टो-मार्ले सुधार प्रस्ताव कहा जाता है।
इनका मकसद था कि विधान परिषदों का विस्तार किया जाए तथा उनकी शक्तियों और कार्य क्षेत्र को बढ़ाया जाए, प्रशासी परिषदों में भारतीय सदस्य नियुक्ति किये जाए, जहाँ पर ऐसी परिषदे नहीं है वहां पर ऐसी परिषदे स्थापित की जाए, और स्थानीय स्वशासन प्रणाली का और विकाश की जाए।
#भारतीय_परिषद्_एक्ट (1909) :
1909 के एक्ट और इसके अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा परिषदों तथा उनके कार्य क्षेत्र का और अधीन विस्तार करके उन्हें अधिक विस्तार करके उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व एवम प्रभावी बनाने के लिए उपबंध किये गये। भारतीय विधान परिषद् के अतिरिक्त सदस्यों की अधिकतम संख्या 16 से बढाकर 60 कर दी गई। इस एक्ट के अधीन अप्रत्यक्ष निर्वाचक के सिद्धांत को मान्यता दी गई। निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचक क्षेत्रो से चुने जाने थे यथा नगरपालिकाये जिला तथा स्थानीय बोर्ड विश्वविधालय वाणिज्य तथा व्यापार संघ मंडल और जमींदारो या चाय बागान मालिको जैसे लोगो के समूह।
ऐसे नियम बना दिए गए जिससे सभी प्रांतीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत हो, किन्तु केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी सदस्यों का ही बहुमत बना रहे। इन विनियमों में मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए पृथक निर्वाचक मंडल तथा पृथक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था भी कर दी गई। इस प्रकार पहली बार सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के घातक सिद्धांत का सूत्रपात हुआ।
इस एक्ट के द्वारा लागु किये गए सुधार जिम्मेदार सरकार की मांग को न तो पूरा करते थे, क्योंकि उसके अधीन स्थापित परिषदों में जिम्मेदारी का अभाव था जो जन-निर्वाचित सरकार की विशेषता होती है।
#मोंटेग्यू_घोषणा :
20 अगस्त, 1917 को अंग्रेजी राज के दौड़ान भारत के उतार-चढ़ाव वाले इतिहास में पहली बार इस वक्यत्व्य के द्वारा भारत में जिम्मेदार सरकार की स्थापना का वादा किया गया।
#मोंटफोर्ट_रिपोर्ट_1918 :
भारतीय संवैधानिक सुधार सम्बन्धी रिपोर्ट मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड या मोंटफोर्ट रिपोर्ट के नाम से जानी जाती है।इसे सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया श्री मोंटेग्यू तथा भारत के वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड ने संयुक्त रूप से तैयार किया जिसे जुलाई 1918 में प्रकाशित की गई। इस रिपोर्ट में स्वशासी डोमिनियन के दर्जे की मांग की पूर्ण उपेक्षा की गई।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#भारतीय_राष्ट्रीय_कांग्रेस
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 से 30 दिसंबर 1885 के मध्य बम्बई में तब हुई जब भारत की विभिन्न प्रेसीडेंसियों और प्रान्तों के 72 सदस्य बम्बई में एकत्र हुए। भारत के सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी एलेन ओक्टोवियन ह्युम ने कांग्रेस के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने पुरे भारत के कुछ महत्वपूर्ण नेताओं से संपर्क स्थापित किया और कांग्रेस के गठन में उनका सहयोग प्राप्त किया। दादाभाई नैरोजी, काशीनाथ त्रयम्बक तैलंग,फिरोजशाह मेहता,एस. सुब्रमण्यम अय्यर, एम. वीराराघवाचारी,एन.जी.चंद्रावरकर ,रह्मत्तुल्ला एम.सयानी, और व्योमेश चन्द्र बनर्जी उन कुछ महत्वपूर्ण नेताओं में शामिल थे जो गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में आयोजित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में शामिल हुए थे। महत्वपूर्ण नेता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी इसमें शामिल नहीं हुए क्योकि उन्होंने लगभग इसी समय कलकत्ता में नेशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया था।
भारत में प्रथम राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन के गठन का महत्व महसूस किया गया। अधिवेशन समाप्त होने के लगभग एक हफ्ते बाद ही कलकत्ता के समाचारपत्र द इंडियन मिरर ने लिखा कि “बम्बई में हुए प्रथम राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। 28 दिसंबर 1885 अर्थात जिस दिन इसका गठन किया गया था, को भारत के निवासियों की उन्नति के लिए एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मान्य जायेगा। यह हमारे देश के भविष्य की संसद का केंद्रबिंदु है जो हमारे देशवासियों की बेहतरी के लिए कार्य करेगा। यह एक ऐसा दिन था जब हम पहली बार अपने मद्रास, बम्बई,उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त और पंजाब के भाइयों से गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज की छत के नीचे मिल सके।इस अधिवेशन की तारीख से हम भविष्य में भारत के राष्ट्रीय विकास की दर को तेजी से बढ़ते हुए देख सकेंगे”।
कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे ।कांग्रेस के गठन का उद्देश्य,जैसा कि उसके द्वारा कहा गया,जाति, धर्म और क्षेत्र की बाधाओं को यथासंभव हटाते हुए देश के विभिन्न भागों के नेताओं को एक साथ लाना था ताकि देश के सामने उपस्थित महत्वपूर्ण समस्याओं पर विचार विमर्श किया जा सके। कांग्रेस ने नौ प्रस्ताव पारित किये,जिनमें ब्रिटिश नीतियों में बदलाव और प्रशासन में सुधार की मांग की गयी।
#भारतीय_राष्ट्रीय_कांग्रेस_के_लक्ष्य_और_उद्देश्य
▪️देशवासियों के मध्य मैत्री को प्रोत्साहित करना।
▪️जाति,धर्म प्रजाति और प्रांतीय भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करना।
▪️लोकप्रिय मांगों को याचिकाओं के माध्यम से सरकार के सामने प्रस्तुत करना।
▪️राष्ट्रीय एकता की भावना को संगठित करना।
▪️भविष्य के जनहित कार्यक्रमों की रुपरेखा तैयार करना।
▪️जनमत को संगठित व प्रशिक्षित करना।
▪️जटिल समस्याओं पर शिक्षित वर्ग की राय को जानना।
#पार्टी_के_अध्यक्षों_की_सूची/अधिवेशन
▪️व्योमेशचन्द्र बनर्जी – 29 December 1844 – 1906 1885 बम्बई
▪️दादाभाई नौरोजी – 4 September 1825 – 1917 1886 कलकत्ता
▪️बदरुद्दीन तैयबजी – 10 October 1844 – 1906 1887 मद्रास
▪️जॉर्ज यूल – 1829–1892 1888 अलाहाबाद
▪️विलियम वेडरबर्न – 1838–1918 1889 बम्बई
#सेफ्टी_वॉल्व_थ्योरी :
सेफ्टी वॉल्व थ्योरी का सिद्धांत सर्वप्रथम लाला लाजपत राय ने अपने पत्र “यंग इंडिया” में प्रस्तुत किया. गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय द्वारा 1916 में यंग इंडिया में प्रकाशित अपने एक लेख के माध्यम सुरक्षा वॉल्व की परिकल्पना करते हुए कांग्रेस द्वारा ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध अपनाई गई नरमपंथी रणनीति पर प्रहार किया और संगठन को लॉर्ड डफरिन के दिमाग की उपज बताया गया. उन्होंने संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतवासियों को राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाने के स्थान ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की रक्षा और उस आसन्न खतरों से बचना बताया. उनका कहना था कि कांग्रेस ब्रिटिश वायसराय के प्रोत्साहन ब्रिटिश हितों के लिए स्थापित एक संस्था जो भारतीयों का प्रतिनिधित्व नहीं करती.
1857 के विद्रोह का नेतृत्व विस्थापित भारतीय राजाओं, अवध के नवाबों, तालुकदारों और जमींदारों ने किया था. इस विद्रोह स्वरूप भी अखिल भारतीय नहीं था एवं नेतृत्वकर्ता के रूप में सामान्य जन की भागीदारी सीमित रूप में थी. कांग्रेस की स्थापना के समय तक स्थिति में बदलाव आ चुका था और इस ब्रिटिश प्रशासन के शोषण के विरुद्ध समाज प्रत्येक वर्ग हिंसक मार्ग अपनाने को तैयार था.
हिंसक क्रान्ति घटित होने वाली सभी दशाओं की उपस्थिति के ही कांग्रेस की स्थापना और आगे किसी होने वाले विप्लव का टल जाना सेफ्टी वॉल्व मिथक की सत्यता का समर्थन करता है.
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#कांग्रेस_से_पूर्व_स्थापित_राजनीतिक_संस्थाएं
दिसम्बर, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अकस्मात् घटी कोई घटना नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक जागृति की चरम पराकाष्ठा थी. दरअसल, कांग्रेस के गठन के पहले भी कई राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठनों की स्थापना हो चुकी थी.
इन संगठनों का विवरण नीचे दिए जा रहा है.
#बंग_भाषा_प्रकाशक_सभा :
1836 ई. में राजा राममोहन राय के अनुयायी गौरीशंकर तरकाबागीश द्वारा स्थापित यह संगठन सरकार की नीतियों से सम्बंधित मामलों की समीक्षा करती थी. यह बंगाल में स्थापित प्रथम राजनीतिक संगठन था. संगठन का मुख्य कार्य प्रशासनिक क्रियाकलापों की समीक्षा कर उनमें सुधार लाने के लिए याचनाएं भेजना एवं देशवासियों को उनके राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना था.
#लॉर्ड_होल्डर्स_सोसाइटी :
इसकी स्थापना बंगाल के जमींदारों (द्वारकानाथ टैगोर, राजा राधाकांत देव, राजा काली कृष्ण ठाकुर और अन्य बड़े जमींदार) ने 1838 ई. में की थी. इसके जरिये उन्होंने भूमि के अतिक्रमण व अपहरण का विरोध किया. इस प्रकार का यह पहला संगठित राजनीतिक प्रयास था. संस्था ने समस्याओं के निराकरण हेतु संवैधानिक रास्ता अपनाते हुए पहली बार संगठित रूप राजनीतिक क्रियाकलाप प्रारम्भ किया. हालाँकि संस्था के उद्देश्य सीमित थे.
#बंगाल_ब्रिटिश_इंडिया_सोसाइटी :
1843 में स्थापित इस संस्था का उद्देश्य आम जनता के हितों की रक्षा करना तथा उन्हें बढ़ावा देना था. मात्र जमींदारों के हितों की रक्षा करने का उद्देश्य रखने वाली लैंड होल्डर्स सोसाइटी के विपरीत देश के सभी वर्ग के लोगों के कल्याण एवं ब्रिटिश प्रशास के सामने उनके अधिकारों से सम्बंधित मांगों को रखने के लिए जॉर्ज थॉमसन की अध्यक्षता में बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी की स्थापना की गई. इसके सचिव प्यारी चन्द्र मित्र थे.
इस संस्था में भारतीयों के साथ-साथ गैर-सरकारी ब्रिटिशों का भी प्रतिनिधित्व था. संस्था ने जमींदारी प्रथा की आलोचना करते हुए कृषकों से सम्बंधित मुद्दे उठाये.
#ब्रिटिश_इंडियन_एसोसिएशन :
1851 में लैंड होल्डर्स सोसाइटी एवं बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी के विलय के उपरान्त यह संगठन अस्तित्व में आया. इसके अध्यक्ष राधाकांत देव थे. इसके सचिव देवेन्द्रनाथ टैगोर चुने गये थे. इसकी स्थापना पहले से स्थापित संस्थाओं, जैसे – लैंड होल्डर्स सोसाइटी, बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी आदि की असफलताओं को देखते हुए दोनों संस्थाओं का विलय कर जमींदारों के हितों की रक्षा करने के लिए की गई थी. हिन्दू पेट्रियट नामक पत्रिका के जरिये इस संस्था द्वारा प्रचार किया. इस संस्था में भी जमींदार वर्ग का ही वर्चस्व बना था. संस्था द्वारा 1860 में आयकर लागू करने के विरोध तथा नील विद्रोह से सम्बन्धित आयोग के गठन की माँग की गई साथ ही 1860 में अकाल पीड़ितों के लिए धन भी एकत्रित किया. बंगाल में इसे भारत वर्षीय सभा के नाम से जाना गया.
#मद्रास_नेटिव_एसोसिएशन :
बंगाल में स्थापित ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की शाखा (26 फरवरी, 1852) के रूप में मद्रास में गजुलू लक्ष्मी नरसुचेट्टी द्वारा संस्थापित संस्था का ही नाम बदलकर 13 जुलाई, 1852 को मद्रास नेटिक एसोसिएशन कर दिया गया. सी. वाई. मुदलियार इसके अध्यक्ष और वी. रामानुजाचारी इसके सचिव थे.
#ईस्ट_इंडिया_एसोसिएशन :
लंदन में राजनैतिक प्रचार करने के उद्देश्य से दादा भाई नौरोजी द्वारा 1866 ई. में इसकी स्थापना की गई थी. इसकी बहुत-सी शाखाएँ भारत में खोली गयीं. इसका उद्देश्य भारतवासियों की समस्याओं और मांगों से ब्रिटेन को अवगत कराना तथा भारतवासियों के पक्ष में इंग्लैंड में जनसमर्थन तैयार करना था. कालान्तर में भारत के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएँ खोली गईं.
#पूना_सार्वजनिक_सभा :
पूना सार्वजनिक सभा (मराठी – पुणे सार्वजनिक सभा) की स्थापना 2 अप्रैल, 1870 ई. को महादेव गोविंद रानडे ने की थी. पूना सार्वजनिक सभा सरकार और जनता के बीच मध्यस्थता कायम करने के लिए बनाई गई थी. भवनराव श्रीनिवास राव इस संस्था के प्रथम अध्यक्ष थे. बाल गंगाधर तिलक, गोपाल हरि देशमुख, महर्षि अण्णासाहेब पटवर्धन जैसे कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने इस संगठन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. चलिए जानते हैं कि इस सभा (The Poona Sarvajanik Sabha) की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई और इसके क्या परिणाम सामने आये.
#कलकत्ता_स्टूडेंट्स_एसोसिएशन :
छात्रों में राष्ट्रवादी भावनाओं के प्रसार और उनमें राजनीतिक जागरूकता लाने के लिए 1875 में आनंद मोहन बोस द्वारा स्टूडेंट्स एसोसिएशन की स्थापना की गयी. छात्र संघ में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की भागीदारी महत्त्वपूर्ण रही.
#इंडियन_लीग :
1875 में शिशिर कुमार घोषित ने इसकी स्थापना की थी. अगले वर्ष (1876) में इसी संस्था का स्थान इंडियन एसोसिएशन ने ले लिया. यह कांग्रेस की पूर्ववर्ती संस्थाओं में एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी. संस्था मुख्य नेतृत्वकर्ता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी एवं आनंद मोहन बोस थे.
#इंडियन_एसोसिएशन :
इंडियन एसोसिएशन की स्थापना 1876 में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनंद बोस ने की थी. इस संस्था को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पूर्वगामी कहा गया है. भारत में प्रबल जनमत तैयार करना, हिन्दू-मुस्लीम जनसम्पर्क की स्थापना करना, सार्वजनिक कार्यक्रम के आधार पर लोगों को संगठित करना, सिविल सेवा के भारतीयकरण के पक्ष में मत तैयार करना आदि इसके प्रमुख उद्देश्य थे.
#मद्रास_महाजन_सभा :
1884 ई. में वी. राघवाचारी, जी. सुब्रमण्यम, आनंद चारलू ने मद्रास महाजन की स्थापना की. 29 दिसम्बर, 1884 से 2 जनवरी, 1885 के मध्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सम्मेलन और मद्रास मेले के आयोजन के साथ का प्रथम सम्मेलन हुआ. सभा द्वारा की गई प्रमुख माँगें थीं –
▪️विधान परिषदों का विस्तार एवं उसमें भारतीयों के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना.
▪️न्यायपालिका का राजस्व एकत्रित करने वाली संस्थाओं से पृथक्करण.
▪️कृषकों की दयनीय स्थिति में सुधार लाना.
#बम्बई_प्रेसीडेंसी_एसोसिएशन :
1885 ई. में बंबई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना फिरोजशाह मेहता, के.टी. तैलंग और बदरूद्दीन तैय्यबजी ने मिलकर की. फिरोजशाह मेहता को बॉम्बे का बेताज बादशाह माना जाता था. आम लोग को राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना, प्रशासन संबंधी सुधार को याचनाओं, प्रार्थना-पत्रों के जरिये भारतीय प्रशासन एवं ब्रिटिश संसद के सामने रखना संस्था के मुख्य उद्देश्य थे.
#अन्य_संस्थाएँ :
▪️1862 में लंदन में पुरुषोत्तम मुदलियार ने लन्दन इंडियन कमेटी का गठन किया.
▪️1865 में लंदन में ही दादाभाई नौरोजी ने लदंन इंडिया सोसाइटी की स्थापना की.
#निष्कर्ष :
यद्यपि, उपरोक्त सभी संस्थाएँ राजनीतिक गतिविधियों के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही थीं, तथापि इनमें से अधिकांश का आधार क्षेत्रीय था तथा ये संकीर्ण हितों का प्रतिनिधित्व करते थे. अधिकांश संस्थाओं की अभिजात्य दृष्टि थी. अतः आवश्यकता इसी बात की थी कि इन सभी प्रयत्नों को संगठित कर एक अखिल भारतीय संस्था की स्थापना की जाए.
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन :
#भारतीय_संविधान
भारत का संविधान,भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन
(26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
#संविधान_क्या_है ?
▪️किसी भी देश का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का वह बुनियादी ढ़ांचा होता है जिसके अंतर्गत उसकी जनता शासित होती है।
▪️यह राज्य की कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगो की स्थापना करता है तथा उनकी शक्तियों की व्याख्या करता है उसके दायित्वों का सीमांकन करता है और उनके पारम्परिक तथा जनता के साथ सम्बन्धो का विनियमन करता है।
#संवैधानिक_विधि :
▪️विशेष रूप से इनका सरोकार राज्य के विभिन्न अंगो के बीच और संघ तथा इकाइयो के बीच शक्तियो के वितरण के ढ़ांचे की बुनियादी विषताओ से होता है।
#भारत_का_संविधान :
▪️संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को अंगीकार किया गया था।
▪️यह 26 जनवरी 1950 से पूर्णरूपेन लागु हो गया।
▪️संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचीयां थी।
▪️किन्तु सन्दर्भ में सुभीते की दृष्टी से संविधान के भागो और अनुच्छेदो की मूल संख्याओ में परिवर्तन नहीं किया गया।
▪️वर्तमान समय में गणना की दृष्टि के कुल अनुच्छेद वस्तुतया 448 हो गया है अनुचियाँ 8 से बढ़कर 12 हो गई है।
▪️पिछले 53 वर्षों में 94 संविधान संशोधन विधेयक पारित हो चुके है।
#संविधान_के_श्रोत :
▪️राज्य के निति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत ग्राम पंचायतो के संगठन का उल्लेख स्पस्ट रूप से महात्मा गाँधी तथा प्राचीन भारतीयों स्वशासी संस्थानों से प्रेरित होकर किया गया था जिसे 73वे तथा 74वे संविधान संसोधन अधिनियमों ने उन्हें अब और अधिक सार्थक तथा महत्वपूर्ण बना दिया है।
▪️उल्लेखनीय है की नेहरु कमिटी की रिपोर्ट में जो 19 मूल अधिकार शामिल किये गए थे उनमे से 10 को भारत के संविधान में बिना किसी खास परिवर्तन के शामिल कर लिया गया।
▪️मूल संविधान में मूल कर्तव्यो का कोई उल्लेख नहीं था किन्तु बाद में 1976 में संविधान (42वा) संसोधन अधिनियम द्वारा इस विषय पर भी एक नया अध्याय संविधान में जोर दिया गया।
▪️संविधान का लगभग 75% अंश भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया था।
▪️राज्य व्यवस्था का बुनियादी ढ़ांचा तथा संघ एवं राज्यों के संबंधो, आपात स्थिति की घोषणा आदि को विनियमित करनेवाले उपबंध अधिकांशतः 1935 के अधिनियम पर आधारित थे।
▪️निदेशक तत्व की संकल्पना आयरलैंड के संविधान से ली गई है।
▪️विधायिका के प्रति उत्तरदायी मंत्रियो वाली संसदीय प्रणाली अंग्रेजो से आई और राष्ट्रपति में संघ की कार्यपालिका शक्ति तथा संघ के रक्षा बलो का सर्वोच्च समादेश निहित करना और उपराष्ट्रपति को राज्य सभा का पदेन सभापति बनाने के उपबंध अमरीकी संविधान पर आधारित थे।
▪️संघीय ढ़ांचे और संघ तथा राज्यों के संबंधो एवं संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण से सम्बंधित उपबंध कनाडा के संविधान से प्रभावित है।
▪️सप्तम अनुसूची में समवर्ती अनुसूची, व्यापार, वाणिज्य तथा समागम, वित्त आयोग और संसदीय विशेषाधिकार से सम्बंधित उपबंध, आस्टेलियाई संविधान के आधार पर तैयार किये गए है।
▪️आपात स्थिति से सम्बंधित उपबंध अन्य बातों के साथ-साथ जर्मन राज्य संविधान द्वारा प्रभावित हुए थे।
▪️न्यायिक आदेशो तथा संसदीय विशेषाधिकारो के विवाद से सम्बंधित उपबंधो की परिधि तथा उनके विस्तार को समझने के लिए अभी भी ब्रिटिश संविधान का सहारा लेना परता है।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#सामाजिक_व_धार्मिक_सुधार_आंदोलन
19वीं सदी को भारत में धार्मिक एवं सामाजिक पुनर्जागरण की सदी माना गया है। इस समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी की पाश्चात्य शिक्षा पद्धति से आधुनिक तत्कालीन युवा मन चिन्तनशील हो उठा, तरुण व वृद्ध सभी इस विषय पर सोचने के लिए मजबूर हुए। यद्यपि कम्पनी ने भारत के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के प्रति संयम की नीति का पालन किया, लेकिन ऐसा उसने अपने राजनीतिक हित के लिए किया। पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित लोगों ने सामाजिक रचना, धर्म, रीति-रिवाज व परम्पराओं को तर्क की कसौटी पर कसना आरम्भ कर दिया। इससे सामाजिक व धार्मिक आन्दोलन का जन्म हुआ। यद्यपि इन सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों की कुछ सीमाएं थीं परन्तु निश्चित रूप से यह एक निर्विवाद सत्य है कि इन आंदोलनों ने भारतीय समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक जागरूकता पर आश्चर्यजनक और चिरस्थायी प्रभाव डाला, जिसने आधुनिक भारत के विकास की आधारशिला रखी। आज हम 19वीं सदी में सामाजिक व धार्मिक सुधार आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को एक-एक कर के आपके सामने रखेंगे.
#हिन्दू_सुधार_आन्दोलन
#राजा_राम_मोहन_रॉय_एवं_ब्रह्म_समाज :
▪️राजा राममोहन राय को भारतीय नवजागरण का अग्रदूत कहा जाता है। इनका जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के हुगली जिले मेँ स्थित राधानगर मेँ हुआ था।
▪️राजा राममोहन राय पहले भारतीय थे जिन्होंने ने सर्वप्रथम भारतीय समाज मेँ व्याप्त धार्मिक और सामाजिक बुराइयोँ को दूर करने के लिए आंदोलन किया।
▪️राजा राममोहन राय मानवतावादी थे, उनकी विश्व बंधुत्व में घोर आस्था थी। ये जीवन की स्वतंत्रता तथा संपत्ति ग्रहण करने के लिए प्राकृतिक अधिकारोँ के समर्थक थे।
▪️राजा राम मोहन राय ने 1815 मेँ कलकत्ता मेँ आत्मीय सभा की स्थापना करके हिंदू धर्म की बुराइयोँ पर प्रहार किया। राजा राममोहन राय एकेश्वरवादी थे। उन्होंने इस संस्था के माध्यम से एकेश्वरवाद का प्रचार-प्रसार किया।
▪️सन् 1828 मेँ राजा राम मोहन राय ने कोलकाता मेँ ब्रह्म सभा की नामक एक संस्था की स्थापना की जिसे बाद मेँ ब्रह्म समाज का नाम दे दिया गया।
▪️राजा राममोहन राय ने अपने संगठन ब्रह्म समाज के माध्यम से हिंदू समाज मेँ व्याप्त सती-प्रथा, बहुपत्नी प्रथा, वेश्यागमन, जातिप्रथा आदि बुराइयोँ के विरोध मेँ संघर्ष किया।
▪️विधवा पुनर्विवाह का इन्होने समर्थन किया।
▪️ब्रह्म समाज ने जाति प्रथा पर प्रहार किया तथा स्त्री पुरुष समानता पर बल दिया।
▪️धार्मिक क्षेत्र मेँ इन्होंने मूर्तिपूजा की आलोचना करते हुए अपने पक्ष को वेदोक्तियों के माध्यम से सिद्ध करने का प्रयास किया। इनका मुख्य उद्देश्य भारतीयों को वेदांत के सत्य का दर्शन कराना था।
▪️राजा राम मोहन राय के विचारोँ से प्रभावित होकर देवेंद्र नाथ टैगोर ने 1843 मेँ ब्रह्म समाज की सदस्यता ग्रहण की।
▪️ब्रह्म समाज मेँ शामिल होने से पूर्व देवेंद्र नाथ टैगोर ने तत्वबोधिनी सभा (1839) का गठन किया था।
▪️1857 मेँ केशव चंद्र सेन ब्रह्म समाज के आचार्य नियुक्त किये गए।
▪️केशव चंद्र सेन के प्रयत्नोँ से ब्रह्म समाज ने एक अखिल भारतीय आंदोलन का रुप ले लिया।
▪️राजा राम मोहन राय ने संवाद कौमुदी और मिरात उल अखबार प्रकाशित कर भारत मेँ पत्रकारिता की नींव डाली।
▪️संवाद कौमुदी शायद भारतीयों द्वारा संपादित, प्रकाशित तथा संकलित प्रथम भारतीय समाज-पत्र था।
▪️राजा राम मोहन राय ने ईसाई धर्म का अध्ययन करके इसाई धर्म पर एक पुस्तक की रचना की, जिसका नाम प्रिसेप्ट ऑफ जीजस था।
▪️राजा राम मोहन राय ने अनेक भाषाओं, अरबी, फारसी, संस्कृत जैसी प्राचीन भाषाएँ तथा अंग्रेजी, फ्रांसीसी, लैटिन, यूनानी आदि पाश्चात्य भाषाओं के ज्ञाता थे।
▪️राजा राम मोहन राय ने शिक्षा के क्षेत्र मेँ भी कार्य किया। इन्होंने 1825 मेँ वेदांत कॉलेज की स्थापना की। ▪️कलकत्ता मेँ डेविड हैयर द्वारा हिंदू कॉलेज की स्थापना मेँ भी राजा राममोहन राय ने सहयोग किया।
▪️राजा राममोहन राय ने धर्म, समाज, शिक्षा, आदि के क्षेत्र मेँ सुधार के साथ ही राजनीतिक जागरण का भी प्रयास किया। उनका कहना था कि स्वतंत्रता मनुष्य का अमूल्य धन है। वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ राजनीतिक स्वतंत्रता के भी हिमायती थे।
▪️बंगाली बुद्धिजीवियो मेँ राजा राम मोहन राय और उनके अनुयायी ऐसे पहले बुद्धिवादी थे, जिन्होंने पाश्चात्य संस्कृति का अध्ययन करते हुए उसके बुद्धिवादी एवम प्रजातांत्रिक सिद्धांतों, धारणाओं और भावनाओं को आत्मसात किया।
▪️राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद 1865 मेँ वैचारिक मतभेद के कारण ब्रह्म समाज मेँ विभाजन हो गया। देवेंद्र नाथ का गुट आदि धर्म समाज और केशव चंद्र का गुट भारतीय ब्रह्म समाज कहलाया।
▪️ब्रह्म समाज मेँ विभाजन से पूर्व केशव चंद्र सेन ने संगत सभा की स्थापना आध्यात्मिक तथा सामाजिक समस्याओं पर विचार करने के लिए की।
▪️आचार्य केशव चंद्र सेन के प्रयासो से मद्रास मेँ वेद समाज की स्थापना हुई। 1871 मेँ वेद समाज दक्षिण के ब्रह्म समाज के रुप मेँ अस्तित्व मेँ आया।
▪️भारतीय ब्राहमण समाज मेँ फूट पैदा हो गई, जिसके फलस्वरुप 1878 मेँ साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना हुई। इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य जाति प्रथा तथा मूर्ति पूजा का विरोध तथा नारी मुक्ति का समर्थन करना था।
▪️साधारण ब्रह्म समाज के अंग्रेजी सदस्योँ मेँ शिवनाथ शास्त्री, विपिनचंद्र पाल, द्वारिका नाथ गांगुली और आनंद मोहन बोस शामिल थे।
▪️आचार्य केशव चंद्र ने ब्रह्म विवाह अधिनियम का उल्लंघन करते हुए अपनी अल्प आयु पुत्री का विवाह कूच बिहार के राजा से कर दिया भारतीय ब्रह्म समाज मेँ विभाजन का कारण यही था।
#केशव_चंद्र_सेन_और_प्रार्थना_समाज :
▪️केशव चंद्र की प्रेरणा से मुंबई मेँ 1867 मेँ आत्माराम पांडुरंग ने प्रार्थना समाज की स्थापना की। इस संस्था की स्थापना मेँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अन्य लोगो मे महादेव गोविंद रानाडे और आर. जी. भंडारकर थे।
▪️महादेव गोविंद रानाडे को पश्चिमी भारत मेँ सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है।
▪️प्रार्थना समाज ने बाल विवाह, विधवा विवाह का निषेध, जातिगत संकीर्णता के आधार पर सजातीय विवाह, स्त्रियोँ की उपेक्षा, विदेशी यात्रा का निषेध किया।
▪️केशव चंद्र सेन के सहयोग से रानाडे ने 1867 मेँ विधवा आश्रम संघ की स्थापना की।
▪️महादेव गोविंद रानाडे ने एक आस्तिक धर्म मेँ आस्था नामक पुस्तक की रचना की।
#दयानंद_सरस्वती_और_आर्य_समाज :
▪️आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती थे, इन्होंने 1875 मेँ बंबई मेँ आर्य समाज की स्थापना की।
▪️वैदिक समाज से बहुत प्रभावित ये एक ईश्वर मेँ विश्वास करते थे मूर्तिपूजा पुरोहितवाद तथा कर्मकांडोँ का विरोध करते थे इसलिए उनहोने वेदो की और लौटो का नारा दिया।
▪️दयानंद सरस्वती ने जाति व्यवस्था, बाल विवाह, समुद्री यात्रा निषेध के विरुद्ध आवाज बुलंद की तथा स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह आदि को प्रोत्साहित किया।
▪️स्वामी दयानंद ने शुद्धि आंदोलन चलाया। इस आंदोलन ने उन लोगोँ के लिए हिंदू धर्म के दरवाजे खोल दिए जिन्होंने हिंदू धर्म का परित्याग कर दूसरे धर्मों को अपना लिया था।
▪️स्वामी दयानंद ने अनेक पुस्तको की रचना की, किंतु सत्यार्थ प्रकाश और पाखंड खंडन उन की महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।
▪️आर्य समाज की स्थापना का मूल उद्देश्य देश मेँ व्याप्त धार्मिक और सामाजिक बुराइयोँ को दूर कर वैदिक धर्म की पुनः स्थापना कर भारत को सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक रुप से एक सूत्र मेँ बांधना था।
▪️स्वामी दयानंद ने शूद्रों तथा स्त्रियोँ को वेद पढ़ने, ऊँची शिक्षा प्राप्त करने तथा यज्ञोपवीत धारण करने के पक्ष मेँ आंदोलन किया।
▪️वेलेंटाइन शिरोल ने अपनी पुस्तक इंडियन अनरेस्ट मेँ आर्य समाज को भारतीय अशांति का जन्मदाता कहा है।
▪️आर्य समाज के प्रचार-प्रसार का मुख्य केंद्र पंजाब रहा है। उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान मेँ भी इस आंदोलन को कुछ सफलता मिली।
▪️स्वामी दयानंद की मृत्यु के बाद आर्य समाज दो गुटोँ मेँ बंट गया, जिसमे एक गुट पाश्चात्य शिक्षा का विरोधी तथा दूसरा पाश्चात्य शिक्षा का समर्थन करता था।
▪️पाश्चात्य शिक्षा के विरोधी आर्य समाजियों मेँ श्रद्धानंद, लेखराज और मुंशी राम प्रमुख थे, जिन्होंने 1902 मेँ हरिद्वार मेँ गुरुकुल की स्थापना की।
▪️पाश्चात्य शिक्षा के समर्थन मेँ हंसराज और लाला लाजपत राय थे। इन्होंने दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज की स्थापना की। भारत मेँ डी.ए.वी. स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की नींव भी आर्य समाज के इसी गुट ने रखी।
#स्वामी_विवेकानंद_और_रामकृष्ण_मिशन :
▪️स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 में अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की स्मृति मेँ की थी।
▪️राम कृष्ण परम हंस कलकत्ता के दक्षिणेश्वर स्थित काली मंदिर के पुजारी थे, जिंहोने चिंतन, सन्यास और भक्ति के परंपरागत तरीको मेँ धार्मिक मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास किया।
▪️राम कृष्ण मूर्ति पूजा मेँ विश्वास रखते थे और उसे शाश्वत, सर्वशक्तिमान ईश्वर को प्राप्त करने का साधन मानते थे।
▪️1886 मेँ रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने अपने गुरु संदेशों प्रचार-प्रसार का उत्तरदायित्व संभाला।
▪️विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। इनका जन्म बंगाल के एक कायस्थ परिवार मेँ हुआ था।
▪️सितंबर, 1893 मेँ अमेरिका के शिकागो मेँ आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन मेँ विवेकानंद ने भारत का नेतृत्व किया।
▪️विवेकानंद ने कहा था, “ मैं ऐसे धर्म को नहीं मानता जो विधवाओं आंसू नहीं पोंछ सके या किसी अनाथ को एक टुकड़ा रोटी भी ना दे सके।“
▪️भारत मेँ व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास के बारे मेँ स्वामी जी ने अपने विचार इस प्रकार अभिव्यक्त किये, “हमारा धर्म रसोईघर मेँ है, हमारा ईश्वर खाना बनाने के बर्तन मेँ है, और हमारा धर्म है मुझे मत छुओ मैं पवित्र हूँ, यदि एक शताब्दी तक यह सब चलता रहा तो हम सब पागलखाने मेँ होंगे।“
▪️सुभाष चंद्र बोस ने स्वामी विवेकानंद को आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यात्मिक पिता कहा था।
विवेकानंद ने कोई राजनीतिक संदेश नहीँ दिया था। परंतु फिर भी उनहोने अपने लेखों तथा भाषणों के द्वारा नई पीढ़ी मेँ राष्ट्रीयता और आत्मगौरव की भावना का संचार किया।
▪️वलेंटाइन शिरोल ने विवेकानंद के उद्देश्योँ को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक प्रमुख कारण माना।
#एनी_बेसेंट_और_थियोसोफिकल_सोसाइटी :
▪️थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना 1875 मेँ मैडम एच. पी. ब्लावेट्स्की और हेनरी स्टील आलकॅाट द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका मेँ की गई थी।
▪️इस सोसाइटी ने हिंदू धर्म को विश्व का सर्वाधिक गूढ़ एवं आध्यात्मिक धर्म माना।
▪️1882 मेँ मद्रास के समीप अड्यार में थियोसोफिकल सोसाइटी का अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय स्थापित किया गया।
▪️भारत मेँ इस आंदोलन को सफल बनाने का श्रेय एक आयरिश महिला श्रीमती एनी बेसेंट को दिया गया, जो 1893 मेँ भारत आयी और इस संस्था के उद्देश्योँ के प्रचार-प्रसार मेँ लग गयी।
▪️एनी बेसेंट ने बनारस मेँ 1898 मेँ सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की जो, 1916 मेँ पंडित मदन मोहन मालवीय के प्रयासो से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय मेँ परिणित हो गया।
#प्रमुख_धार्मिक_संस्थाएँ_और_आंदोलन :
▪️शिवदयाल साहिब ने 1861 मेँ आगरा मेँ राधा स्वामी आंदोलन चलाया।
▪️1887 मेँ शिव नारायण अग्निहोत्री ने लाहौर मेँ देव समाज की स्थापना की।
▪️भारतीय सेवा समाज की स्थापना 1851 मेँ समाज सुधार के उद्देश्य से गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
▪️रहनुमाई मजदयासन सभा की स्थापना 1851 मेँ नौरोजी जी फरदाने जी, दादाभाई नैरोजी तथा एस.एस. बंगाली ने की। इस संस्था राफ्त गोफ्तार नाम की एक पत्रिका का प्रकाशन भी किया।
▪️ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की तथा गुलामगीरी नाम की एक पुस्तक की रचना भी की।
▪️श्री नारायण गुरु के नेतृत्व मेँ केरल के बायकोम मंदिर मेँ अछूतों के प्रवेश हेतु एक आंदोलन हुआ था।
▪️सी. एन. मुदलियार ने दक्षिण भारत मेँ 1915-16 मेँ जस्टिस पार्टी की स्थापना की।
▪️ई.वी. रामास्वामी नायकर ने दक्षिण भारत मेँ 1920 मे आत्मसम्मान आंदोलन चलाया।
▪️बी.आर.अम्बेडकर ने 1924 में अखिल भारतीय दलित वर्ग की स्थापना की तथा 1927 में बहिष्कृत भारत नामक एक पत्रिका का प्रकाशन किया।
▪️भारत मेँ महिलाओं के उन्नति के लिए 1917 में श्रीमती एनी बेसेंट ने मद्रास मेँ भारतीय महिला संघ की स्थापना की।
▪️महात्मा गांधी ने छुआछूत के विरोध के लिए 1932 मेँ हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।
▪️अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ की स्थापना बी. आर. अंबेडकर ने 1942 मेँ की।
#मुस्लिम_सुधार_आंदोलन
#अहमदिया_आंदोलन :
▪️अहमदिया आंदोलन का आरंभ 1889-90 मेँ मिर्जा गुलाम अहमद ने फरीदकोट मेँ किया।
▪️गुलाम अहमद हिंदू सुधार आंदोलन, थियोसोफी और पश्चिमी उदारवादी दृष्टिकोण से प्रभावित तथा सभी धर्मोँ पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय धर्म की स्थापना की कल्पना करते थे।
▪️अहमदिया आंदोलन का उद्देश्य मुसलमानोँ मेँ आधुनिक बौद्धिक विकास का प्रचार करना था।
▪️मिर्जा गुलाम अहमद ने हिंदू देवता कृष्ण और ईसा मसीह का अवतार होने का दावा किया।
#अलीगढ_आंदोलन :
▪️सर सैय्यद अहमद द्वारा चलाए गए आंदोलन को अलीगढ आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
▪️सर सैय्यद अहमद मुसलमानोँ मेँ आधुनिक शिक्षा का प्रसार करना चाहते थे।
▪️इसके लिए उन्होंने 1865 मेँ अलीगढ मेँ मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की, जो 1890 मेँ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।
▪️अलीगढ आंदोलन ने मुसलमानोँ मेँ आधुनिक शिक्षा का प्रसार किया तथा कुरान की उदार व्याख्या की।
▪️इस आंदोलन के माध्यम से सर सैय्यद अहमद ने मुस्लिम समाज मेँ व्याप्त कुरीतियोँ को दूर करने का प्रयास किया।
#देवबंद_आन्दोलन :
▪️यह रुढ़िवादी मुस्लिम नेताओं द्वारा चलाया गया आंदोलन था, जिसका उद्देश्य विदेशी शासन का विरोध तथा मुसलमानोँ मेँ कुरान की शिक्षाओं का प्रचार करना था।
▪️मोहम्मद कासिम ननौतवी तथा रशीद अहमद गंगोही ने 1867 मेँ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मेँ इस आंदोलन की स्थापना की।
▪️यह अलीगढ़ आंदोलन का विरोधी था। देवबंद आंदोलन के नेताओं मेँ शिमली नुमानी, फारसी और अरबी के प्रसिद्ध विद्वान व लेखक थे।
▪️शिबली नुमानी ने लखनऊ मेँ नदवतल उलेमा तथा दार-उल-उलूम की स्थापना की।
▪️देवबंद के नेता भारत मेँ अंग्रेजी शासन के विरोधी थे। यह आंदोलन पाश्चात्य और अंग्रेजी शिक्षा का भी विरोध करता था।
#सिख_सुधार_आंदोलन
▪️हिंदू और मुसलमानोँ की तरह सिक्खोँ मेँ भी सुधार आंदोलन हुए। सिक्खोँ के प्रबुद्ध लोगोँ पर पश्चिम के विकासशील और तर्कसंगत विचारोँ का प्रभाव पड़ा।
▪️19 वीँ सदी मेँ सिक्खोँ की संस्था सरीन सभा की स्थापना हुई।
▪️पंजाब का कूका आंदोलन सामाजिक एवं धार्मिक सुधारो से संबंधित था।
▪️जवाहर मल और रामसिंह ने कूका आंदोलन का नेतृत्व किया।
▪️अमृतसर मेँ सिंह सभा आंदोलन चलाया गया।
▪️अकाली आंदोलन द्वारा 1921 में गुरुद्वारों के महंतों के विरुद्ध अहिंसात्मक अन्दिलन का सूत्रपात हुआ। इस आंदोलन के परिणाम स्वरुप 1922 मेँ सिख गुरुद्वारा अधिनियम पारित किया गया, जो आज तक कार्यरत है।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#उत्तर_भारत_के_प्रमुख_राजवंश
गुर्जर प्रतिहार वंश, गहडवाल वंश, चौहान वंश, कलचुरी वंश, चंदेल वंश, परमार वंश, सोलंकी वंश, सिसोदिया वंश, पाल वंश एवं सेन वंश
#गुर्जर_प्रतिहार_वंश – नागभट्ट प्रथम ने मालवा में गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रथम शासक के रूप में आठवी शताब्दी में शासन किया. देवराज, वत्सराज तथा नागभट्ट द्वितीय इस वंश के अन्य प्रसिध्द शासक हुए. मिहिर भोज प्रतिहार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतापी सम्राट था.
इसने अपने शासनकाल में कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया. महेंद्र पाल तथा महिपाल ने इस वंश के अन्य शासक हुए. महिपाल की मृत्यु होने पर इस वंश का अंत हो गया. 1090 ई. के लगभग इस राज्य पर राठौर वंश के राजपूतों ने अपना अधिकार कर लिया. इस वंश के प्रथम शासक चंद्रदेव ने कन्नौज पर अधिकार कर गहडवाल वंश की स्थापना की थी तथा अपने राज्य का यमुना-गंगा के दोआब तक विस्तार कर लिया |
#गहडवाल_वंश – चंद्रदेव इस वंश का संस्थापक था. इसने वाराणसी को अपनी राजधानी बनाया और शीघ्र ही उसने प्रतिहारों का अंत कर कन्नौज पर अपना अधिकार कर लिया. गोविन्द चन्द्र इस वंश का सर्वाधिक प्रशिध्द एवं प्रतापी शासक था. उसके शासनकाल में लक्ष्मीधर ने ‘कल्प्दुभ’ नामक विधि ग्रन्थ की रचना की. जयचंद्र इस वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक था. 1194 में चंदवर के युध्द में मोहम्मद गौरी से पराजित होकर जयचंद मारा गया |
#चौहान_वंश – दिल्ली तथा अजमेर उत्तरी भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था जिस पर चौहान वंश का अधिकार था. विग्रह राज द्वितीय, अजयराज, विग्रह राज चतुर्थ, बीसलदेव, पृथ्वीराज द्वितीय तथा पृथ्वीराज तृतीय (चौहान) इस वंश के प्रमुख शासक थे.
पृथ्वी राज चौहान इस वंश का वीर, प्रतापी एवं अंतिम शासक था जिसका मोहम्मद गौरी के साथ तराइन का प्रथम एवं द्वितीय युध्द हुआ. द्वितीय युध्द में पृथ्वीराज चौहान परास्त हुआ और उत्तरी भारत में पहली बार मुगलों का राज्य स्थापित हुआ |इसके दरबार में प्रसिध्द कवि चंदबरदाई था जिसने ‘पृथ्वीराज रासो’ लिखी |
#कलचुरी_वंश – इस वंश का संस्थापक कोकल्ल था. इसने ‘त्रिपुरी’ को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया. इसकी दूसरी शाखा की राजधानी ‘रतनपुर’ थी. लक्ष्मण राज, गांगेयदेव, लक्ष्मिकोर्ण इस वंश के अन्य शासक हुए. रंगदेव इस वंश का शक्तिशाली शासक था इसने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की. 13वी शताब्दी में इस वंश की शक्ति अत्यंत क्षीण हो गयी और अब इस वंश का राज्य जबलपुर तथा आस-पास के प्रदेशों तक ही सिमित रह गया. 15वी शताब्दी के आरम्भ में गोंडो ने इनकी रही शक्ति को नष्ट कर दिया |
#चंदेल_वंश – यशोवर्मन इस वंश का प्रथम प्रतापी एवं स्वतन्त्र शासक था जिसने बुंदेलखंड का राज्य कन्नौज के प्रतिहारो की दुर्बलता का लाभ उठाकर प्राप्त किया. उसने महोबा को अपनी राजधानी बनाया.
उसने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार राजा देवपाल को परास्त किया. धंग, गंड, कीर्तिवर्मन, मदनवर्मन तथा परमल इस वंश के अन्य शासक हुए. कीर्तिवर्मन कला एवं सहित्य का प्रेमी था, उसने महोबा के समीप ‘कीर्तिसागर’ नामक जलाशय का निर्माण कराया. परमल अथवा परमर्दन चंदेल वंश का अंतिम शासक था, जिसने 1202 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली और यही से चंदेल वंश का पतन प्रारम्भ हो गया. खुजराहो के मंदिर चंदेलों की ही दें है |
#परमार_वंश - ‘उपेन्द्र’ इस वंश का संस्थापक था. मालवा इसका शासन प्रदेश था. श्री हर्ष, वाकपतिमुंज, सिन्धुराज, भोज, जयसिंह, उदयादित्य इस वंश के अन्य शासक हुए. श्री हर्ष इस वंश प्रथम स्वतंत्र शक्तिशाली शासक था , जिसने राष्ट्रकुटो को पराजित किया. राजा भोज इस वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा था. उसने चिकित्सा, गणित, व्याकरण आदि पर अनेक ग्रन्थ लिखे. उसकी राजधानी धार थी.
#सोलंकी_वंश - गुजरात में इस वंश का संस्थापक ‘मूलराज’ प्रथम था. उसने अनेक मंदिरो का निर्माण कराया. भीम प्रथम, जयसिंह सिद्धराज, कुमारपाल, भीम द्वितीय इस वंश के अन्य शासक हुए. भीम प्रथम के शासनकाल में महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया था. जयसिंह सिद्धराज इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं कुमारपाल इस वंश के अंतिम शासको में से था. इसकी मृत्यु के पश्चात् ही सोलंकी वंश का पतन प्रारम्भ हो गया.
#सिसोदिया_वंश – इस वंश के शासक अपने को सूर्यवंशी कहते थे. इनका शासन मेवाड़ पर था और चित्तौड़ इनकी राजधानी थी. राणा कुम्भा, राणा संग्रामसिंह तथा महाराणा प्रताप इस वंश के प्रतापी तथा प्रसिध्द राजा हुए. राणा कुम्भा ने अपनी विजयों के उपलक्ष्य में विजय स्तम्भ का निर्माण कराया.
#पाल_वंश – गोपाल को पाल वंश का संस्थापक माना जाता है, क्योकि इस वंश के शासकों ने नाम के अंत में पाल शब्द जुड़ा रहता था अता यह पाल वंश के नाम से जाना जाता है. धर्मपाल, देवपाल, नारायणपाल, महिपाल, नयनपाल, रामपाल आदि इस वंश के प्रमुख राजा हुए. गोपाल ने लगभग 45 वर्षों तक सफलतापूर्वक शासन किया. अपने शासन काल में उसने मगध पर भी अधिकार कर लिया महिपाल इस वंश का अंतिम प्रतापी शासक था.
वह बौध धर्म का अनुयायी था. देवपाल इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था, जिसने कामरूप (वर्तमान असम) तथा कलिंग पर अपना अधिकार कर लिया अंत में 12वी शताब्दी में सेन वंश के शासको ने पाल वंश का अंत कर दिया. विक्रमशिला विश्व विद्यालय की स्थापना इस वंश के धर्मपाल ने की थी.
#सेन_वंश – सामंत सेन, सेन वंश का संस्थापक था. विजय सेन, बल्लाल सेन, लक्ष्मण सेन इस वंश के अन्य शासक हुए, जिन्होंने बंगाल व बिहार पर शासन किया विजय सेन इस वंश का महत्वाकांक्षी शासक हुआ. वह शैवधर्म का अनुयायी था. ‘देवपारा’ में उसने एक शिव मंदिर का निर्माण कराया, जो प्रद्युमनेश्वर के नाम से जाना जाता है. बल्लाल सेन भी इस वंश का उच्च कोटि का शासक विद्वान तथा प्रसिध्द लेखक था. इसने दानसागर लिखा तथा अद्भुत सागर का लेखन प्रारंभ किया लक्ष्मण सेन इस वंश का अंतिम प्रसिध्द राजा था. गीतगोविन्द के रचियता जयदेव इसका दरबारी कवि था.
#उत्तर_भारत_के_प्रमुख_राजवंशों_की_शासन
#व्यवस्था :
उत्तर भारत के स्वतंत्र राजवंशों की शासन व्यवस्था पूर्णत निरंकुश थी. परन्तु शासक अपने मंत्रियों से सलाह भी लेते थे. सामंत प्रथा प्रचलित थी, जो स्वतंत्र रूप से शासक के अधीन रहते हुए कार्य करते थे. उस समय ग्राम पंचायते थी जो राजकीय हस्तक्षेप से मुक्त थी.
#साहित्य_एवं_कला_में_योगदान :
इस काल में संस्कृत भाषा में विभिन्न विषयों पर ग्रंथ लिखे, जिनमें माघ का शिशुपालवध, शारवि का किर्तार्जुनियम, कल्हण की राजतरंगिणी और जयदेव का गीत गोविन्द मुख्य हैं. इस काल में स्वतंत्र राजवंशों के शासकों ने अनेक सुंदर भवनों एवं मन्दिरों का निर्माण कराया, जिनमें भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर तथा ग्वालियर, चित्तोड़, रणथम्भौर के दुर्ग, राजस्थान के आबू पर्वत पर देलवाड़ा में सफ़ेद संगमरमर के जैन मंदिर आदि बनाये गये. चित्रकला के क्षेत्र में खूब उन्नति हुई. दीवारों पर पशु पक्षियों व वृक्ष लताओं के सुंदर मंदिर बनाए गये.
सम्राट हर्ष के बाद उत्तर और दक्षिण भारत के इन स्वतंत्र राजवंशों का काल वीर गाथाओं का काल था. राजनीतिक अस्थिरता होते होते हुए भी इस काल में भारतीय कला, संस्कृति एवं साहित्य की खूब उन्नति हुई जो आज भी हमारे लिए प्रेरणास्पद हैं.
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#दक्षिण_भारत_के_प्रमुख_राजवंश
दक्षिण भारत में दो महत्त्वपूर्ण वंशकांची के पल्लव वंश एवं बादामी या वातापी के चालुक्य वंश शासन कर रहे थे। इन दोनों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य वंश दक्षिण भारत में शासन करते हुए दिखायी पड़ते हैं। आइए जानते हैं इन प्रमुख वंशो के बारे में -
#पल्लव_वंश :
▪️पल्लव वंश की स्थापना सिंह विष्णु (575-600 ई०) ने की, उसने काँची (तमिलनाडु) को अपनी राजधानी बनाया, वह वैष्णव धर्म का उपासक था।
▪️प्रसिद्ध ग्रन्थ किरातार्जुनीयम के रचनाकार भारवि सिंह विष्णु का दरबारी कवि था।
▪️पल्लव वंश के प्रमुख शासक महेन्द्रवर्मन-l (606 ई० से 630 ई०), नरसिंहवर्मन-l (630-668 ई० तक), महेन्द्रवर्मन-ll (668-670 ई०), परमेंश्वर वर्मन-l (670-695 ई०), नरसिंहवर्मन-ll (695-722 ई०) दंपतवर्मन-l (795-844 ई०) आदि थे।
▪️पल्लव वंश का अन्तिम शासक अपराजित (879-897 ई०) था।
▪️इस वंश के शासक नरसिंहवर्मन-l द्वारा एकाश्मक रथ (महाबलिपुरम्) का निर्माण कराया गया।
▪️एकाश्म रथ चट्टान काटकर बनाया गया है तथा इसे धर्मराज रथ भी कहा जाता है।
▪️धर्मराज रथ तथा उसी स्थान पर बने 6 अन्य मन्दिर सामूहिक रूप सवे सप्तरथ अथवा 7 पैगोडा कहलाते हैं।
▪️कैलाशनाथ मन्दिर (काँची) का निर्माण नरसिंहवर्मन-ll तथा मुक्तेश्वर एवं बैकुंठ पेरूमाल मन्दिर (दोनों काँची में) का निर्माण पल्लव शासक नन्दी वर्मन ने किया।
▪️पल्लव शासक नरसिंहवर्मन-l द्वारा वातापीकोंडा की उपाधि धारण की गई।
▪️पल्लव शाक महेन्द्रवर्मन-। क्षरा मतविलास प्रहसन नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की गई।
▪️दशकुमार चरितम् के रचनाकार दंडी पल्लव शासक नन्दीवर्मन का दरबारी कवि था।
▪️पल्लव शासक ‘नन्दीवर्मन’ का ही समकालीन प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरूमडन्ग अलवर थे।
▪️काँची के पल्लवों के संदर्भ में हमें प्रथम जानकारी हरिषेण के प्रयाग प्रशस्ति एवं चीनी यात्री ह्वेसांग के यात्रा विवरण से प्राप्त होती है।
#पल्लव_कालीन_मन्दिरों_की_निर्माण_शैलियाँ
▪️एकाम्बरनाथ एवं सितनवासल मन्दिरों के निर्माण में पल्लव नरेश महेंद्रवर्मन-। द्वारा अपनाई गई गुहा शैली का प्रयोग किया गया है।
▪️पल्लव नरेश ‘नरसिंहवर्मन-।’ द्वारा अपनाई गई माम्मल शैली का प्रयोग ‘महाबलिपुरम्’ के 5 मन्दिरों में किया गया है।
▪️राजसिंह शैली का प्रयोग काँची के कैलाशनाथ मन्दिर में देखने को मिलता है।
▪️पल्लवकालीन मन्दिरों की प्रमुख विशेषता है कि इन्हें एक चट्टान को काटकर बनाया गया है।
▪️पल्लवों के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र काँची था।
▪️पल्लवों का मूल-निवास स्थान नहीं था, बल्कि उनका मूल निवास-स्थान तोण्डमण्डलन था।
▪️पल्लव वंश के प्रथम शासक सिंहविष्णु ने माम्मलपुरम् के आदि वराह गुहा मन्दिर का निर्माण किया।
▪️पल्लव शासक नरसिंहवर्मन-। ने चालुक्य शासक पुलकेशिन-।। को तीन युद्धों में परास्त किया तथा उसकीर पीठ पर ‘विजय’शब्द अंकित कराया।
▪️पल्लव शासक नरसिंहवर्मन-। ने एक बंदरगाह नगर महाबिलपुरम (माम्मलपुरम्) की स्थापना काँची के नजदीक की।
▪️काँची के ऐरावतेश्वर मन्दिर का निर्माण ‘राजसिंह शैली’ में नरसिंहवर्मन-।। ने करवाया।
▪️पल्लव शासक नंदिवर्मन-।। को राष्ट्रकूट नरेश दंतिदुर्गा ने परास्त कर राजधानी ‘काँची’ पर अधिकार कर लिया
▪️पल्लव शासक दंतिवर्मन (796-847 ई०) ने मद्रास के निकट पार्थसारथी मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया।
▪️‘दंतिवर्मन’को पल्लव अभिलेखों में पल्लव कुलभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
#राष्ट्रकूट_वंश :
▪️दंतिदुर्गा ने 752 ई० में राष्ट्रकूट राजवंश की स्थापना की।
▪️राष्ट्रकूट वंश की राजधानी म्यानखेड (वर्तमान शोलापुर के निकट) थी।
▪️इस वंश के प्रमुख शासक इस प्रकार थे- दंतिदुर्गा (736-56 ई०) कृष्णा-। (756-72 ई०) , ध्रुव (779-93 ई०), गोविंद-।।। (793-814 ई०), अमोघवर्ष (815-78 ई०), इन्द्र-।।। (914-27 ई०) तथा कृष्णा-।।। (936-65) आदि।
▪️कनौज पर अधिकार करने के उद्देश्य से त्रिपक्षीय संघर्ष में सर्वप्रथम भाग लेने वाला राष्ट्रकूट शासक ध्रुव था।
#महत्वपूर्ण_तथ्य
▪️राष्ट्रकूट शासक इन्द्र-।।। के शासनकाल में अरब यात्री अल-मसूदी भारत के दौरे पर आया। उसके द्वारा तत्कालीन राष्ट्रकूट शासकों को भारत के सर्वश्रेष्ठ शासक कहा गया।
▪️प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को त्रिपक्षीय संघर्ष में राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने पराजित किया।
राष्ट्रकूट नरेश ‘ध्रुव’ को धारावर्ष के नाम से भी जाना जाता था।
▪️चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक पाल नरेश धर्मपाल तथा प्रतिहार शासक नागभट्ट-।। को त्रिपक्षीय संघर्ष में परास्त करने वाला राष्ट्रकूट शासक गोविंद-।।। था।
▪️गोविंद-।।। ने पांड्य, पल्लव एवं गंग शासकों के एक संघ को नष्ट कर दिया।
▪️कन्नड़ भाषा में रचित कविराजमार्ग का रचनाकार राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था।
▪️जिनसेन, महावीराचार्य तथा सक्तायन जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार राष्ट्रकूट शासक ‘अमोघवर्ष’ के दरबार में थे।
▪️जिनसेन ने आदि पुराण, ‘महावीराचार्य’ ने गणितसार संग्रह तथा ‘सक्तायन’ ने अमोघवृत्ति नामक प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की।
▪️अमोघवर्ष ऐसा राष्ट्रकूट शासक था जिसने तुंगभद्रा नदी में जलसमाधि लेकर अपनी जीवन-लीला समाप्त की।.
▪️राष्ट्रकूट वंश में अन्तिम महान शासक कृष्ण-।।। हुआ।
▪️कल्याणी के चालुक्यवंशी शासक तैलप-।। ने 973 ई० में राष्ट्रकूट शासक कर्क को परास्त कर इस वंश के शासन का अन्त कर दिया।
▪️राष्ट्रकूट शासक शैव, वैष्णव, शाक्त सम्प्रदायोंके साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे।
▪️अरब यात्री सुलेमान ने अमोघवर्ष की गणना विश्व के चार महान शासकों से की।
#ऐलोरा_की_गुफाएँ
▪️राष्ट्रकूट शासकों ने ऐलोरा में 34 शैलचित्र गुफाएँ निर्मित करवाई।
▪️उपरोक्त में 1 से 12 बौद्ध संप्रदायों से संबंधित है।
▪️गुफा संख्या 13 से 29 हिन्दुओं से संबंधित हैं।
▪️गुफा संख्या 30 से 34 जैन संप्रदाय से संबंधित है।
#चालुक्य_वंश (कल्याणी) :
▪️तैलप-।। ने चालुक्य वंश (कल्याणी) की स्थापना की।
▪️तैलप-।। ने अपनी राजधानी मान्यखेड में स्थापित की।
▪️चालुक्य वंश (कल्याणी) के शासक सोमेश्वर- ने मान्यखेड़ा से हटाकर राजधानी कनार्टक के कल्याणी में स्थापित की।
▪️विक्रमादित्य- Vl को कल्याणी के चालुक्य वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक माना जाता है।
▪️विक्रमादित्य- Vl के दरबार में विज्ञानेश्वर तथा विल्हण जैसे विद्वान थे।
▪️मिताक्षरा (हिन्दू विधि पर ग्रन्थ) नामक याज्ञवल्वय् स्मृति पर टीका की रचना विज्ञानेश्वर ने की।
▪️विक्रमादित्य-Vl के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालने वाले ग्रन्थ विक्रमांकदेवचरित् की रचना विल्हण ने की।
▪️विक्रमादित्य-Vl द्वारा 1076 ई० में चालुक्य-विक्रम संवत् की शुरूआत की।
▪️कल्याणी के चालुक्य वंश का अन्तिम शासक सोमेश्वर-Vl था।
▪️देवगिरिके यादव शासक होयसल नरेश वीरबल्लाल ने 1190 ई० में सोमेश्वर-Vl के परास्त कर वंश के शासन का अन्त कर दिया।
#चालुक्य_वंश (वातापी) :
▪️इस वंश को बादामी के चालुक्य भी कहते हैं।
▪️इसकी स्थापना जसिंह ने की तथा वातापी को अपनी राजधानी बनाया।
▪️पुलकेशिन-।, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन-।।, विक्रमादित्य, विनयादित्य तथा विजयादित्य आदि इस वंश के प्रमुख शासके थे।
▪️हर्षवर्धन को हराकर पुलकेशिन-।। द्वारा परमेश्वर की उपाधि धारण की गई।
▪️पुलकेशिन-।। ने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण की।.
▪️पल्ल्ववंशीय शासक परसिंहवर्मन-। ने पुलकेशिन-।। को हराकर उसकी राजधानी वातापी (बादामी)
को अपने कब्जे में ले लिया।
▪️पुलकेशिन-।। की उपरोक्त युद्ध में सम्भवत: मृत्यु हो गई, इसी उपलक्ष्य में नरसिंहवर्मन-। ने वातापीकोंडा की उपाधि की।
▪️पुलकेशिन-।। के विषय में ऐतिहासकि विववरण ऐहियोल प्रशस्ति अभिलेख से प्राप्त होते हैं।
▪️पुलकेशिन-।। के द्वारा जिनेन्द्र के मेगुती मन्दिर का निर्माण कराया गया।
▪️पुलकेकिशन-।। को एक फारसी दूतमण्डल की आगवानी करते हुए अजंता के एक गुहा चित्र में दर्शाया गया है।
▪️कीर्तिवर्मनको वातापी का निर्माता माना जाता है।
▪️इस वंश के शासक विनादित्य द्वारा मालवा के विजय के पश्चात सकलोत्तरपथनाथ की उपाधि धारण की गई।
▪️अरबों का ‘दक्कन-आक्रमण’ विक्रमादित्य-।। के शासनकाल में हुआ।
▪️विक्रमादित्य-।। ने अरबों के विरूद्ध सफलता प्राप्त करने के लिए ‘पुलकेशी’ को अवजिनाश्रय की उपाधि से सम्मानित किया।
▪️पट्टद्कल के प्रसिद्ध विरूपाक्ष महादेव मन्दिर का निर्माण विक्रमादित्य-।। की प्रथम पत्नी लोकमहादेवी द्वारा कराया गया।
▪️विक्रमादित्य-।। की दूसरी पत्नी त्रैलोक्य देवी द्वारा त्रैलोकश्वर मन्दिर का निर्माण विक्रमादित्य-।। की प्रथम पत्नी लोकमहादेवी द्वारा कराया गया।
▪️वातापी अथवा बादामी के चालुक्य वंश का अन्तिम शासक कीर्तिवर्मन-।। था, जिसे परास्त कर उसके सामंत दन्तिदुर्ग ने राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की तथा यह वंश समाप्त हो गया।
#चालुक्य_वंश (वेंगी) :
▪️वेंगी के चालुक्य वंश की स्थापना विष्णुवर्धन ने की, इसकी राजधानी वेंगी (आंध्र प्रदेश) थी।
▪️जयसिंह-।, इन्द्रवर्धन, विष्णुवर्धन-।।, जयसिंह-।।, तथा विष्णुवर्धन-।।। आदि इस वंश के प्रमुख शासक था।.
▪️वेंगी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी शासक विजयादित्य था।
#यादव_वंश :
▪️भिल्लभ-V यादव वंश के शासन की स्थापना देवगिरी में की।
▪️राजा सिंहण (1210-46 ई०) यादव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।
▪️इस वंश का अन्तिम शासक रामचंद था जिसका खात्मा अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य जनरल मलिक काफूर ने कर दिया।
▪️सिंहण के दरबार में संगीत रत्नाकर के रचनाकार सांरधर तथा प्रसिद्ध ज्योतिष्ज्ञी चंगदेव था।
#होयसल_वंश :
▪️विष्णुवर्द्धन ने इस वंश की स्थापना 12वीं शताब्दी में की।
▪️इस वंश की राजधानी द्वारसमुद्र (कर्नाटक) में थी।
▪️होयसल वंश का आर्विभाव 12वीं शताब्दी में मैसूर में ▪️यादव वंश की एक शाखा से हुआ।
▪️विष्णुवर्धन ने 1117 ई० में बेलूर के चेन्ना केशव मन्दिर का निर्माण कराया।
▪️होयसल वंश का अन्तिम शासक वीर बल्लाल-।।। था।.
▪️अलाउद्दीन खिलजी के सैनरू-जनरल ‘मलिक काफूर’ ने ही इस वंश के शासन का अन्त किया।
#कदंब_वंश :
▪️‘मयूर शर्मन’ ने इस वंश की स्थापना वनवासी (राजधानी) में की थी।
▪️इस राज्य की स्थापना आंध्र-सातवाहन राज्य के पतनावेशष्ज्ञ पर हुआ।
▪️काकुतस्थ वर्मन इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
▪️इस वंश के शासन का अन्त कर अलाउद्दीन खिलजी ने इस राज्य पर अधिकार कर लिया।
#गंग_वंश :
▪️गंगों के राज्य का विस्तार मैसूर रियासत के अधिकांश भाग पर था।
▪️गंगोंके कारण उपर्युक्त सम्पूर्ण क्षेत्र गंगावाड़ी के नाम से प्रसिद्ध था।
▪️इस राज्य की नींव चौथी शाताब्दी ई० में दिदिग एवं माधव-l ने डाली।
▪️माधव-l ने दत्तक सूत्र पर एक टीका लिखी।
▪️गंग राज्य की आरम्भिक राजधानी कुलुवल (कोलार) में थी।
▪️5वीं शताब्दी में इस वंश के शासक हरिवर्मन ने राज्य की राजधानी तलकाड (मैसूर जिला) में स्थापित की, कालान्तर में राष्ट्रकूटों ने इस राज्य पर अधिकार कर लिया।
#चोल_वंश :
▪️9वीं शताब्दी में पल्लवों के पतनावशेष पर चोल वंश की स्थापना हुई।
▪️चोल राज्य की स्थापना विजयालय (850-87 ई०) द्वारा की गई।
▪️चोल साम्राज्य की राजधानी तंजावुर (तंजौर) में थी।.
▪️विजयालय द्वार नरकेसरी की उपाधि धारण की गई।.
▪️आदित्य-। द्वारा चोलों का स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया गया।
▪️आदित्य-। द्वारा ‘पल्लवोंֹ’ को परास्त करने के पश्चात् कोदण्डराम की उपाधिा धारण की गई।
▪️चोल नरेश राजाराज-। ने श्रीलंगा पर आक्रमण कर दिया, इससे घबराकर वहाँ के शासक महिम-V ने श्रीलंका के दक्षिणी भाग में शरण ली।
▪️राजाराज-। ने अपने द्वारा विजित श्रीलंका को मम्डि़चोलमण्डलम नाम दिया।
▪️राजाराज-। द्वारा ‘मम्डिचोलमण्डलम’ को अपने साम्राज्य का एक नया प्रान्त घोषित किया तथा पोल्लनरूवा को इसकी राजधानी बनाया, वह शैवधर्म का अनुयायी था।
▪️राजाराज-। द्वारा ‘तंजौर’के प्रसिद्ध बृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मन्दिर का निर्माण करया।
▪️राजेन्द्र-। के कार्यकाल में चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
▪️राजेन्द्र-। ने महिपाल (बंगाल के शासक) को परास्त कर गंगैकोंडाचोल की उपाधि धारण की।
▪️राजेन्द्र-। ने अपनी नवीन राजधानी गंगैकोंडचोलपुरम के निकट एक तालाब चोलगंग्म का निर्माण कराया।
▪️चोल शासक राजेन्द्र-।। ने प्रकेसरी की उपाधि धारण किया।
▪️चोल शासक वीर राजेन्द्र द्वारा राजकेसरी की उपाधि धारण की गई।
▪️चोल साम्राज्य का अन्तिम शासक राजेन्द्र-।।। था।
▪️विक्रम चोल ने अकाल एवं अभावग्रस्त जनता से चिदंबरम् मन्दिर के पुननिर्माण के लिए कर-राजस्व वसूल किये।
▪️‘चिदंबरम् मन्दिर’ में स्थित गोविंदराज (विष्णु) की मूर्ति को चोल शासक कुलोतुंग-। ने समुद्र में फेंकवा दिया।.
▪️कालान्तर में उपर्युक्त मूर्ति का पुनरूद्धार वैष्णव आचार्य रामानुज ने इसे तिरूपति मन्दिर में प्राण-प्रतिष्ठित करके किया।
#चोलवंश_के_प्रमुख_शासक
▪️विजयालय (850-880 ई0)
▪️आदित्य-। (880-907 ई०)
▪️परांतक-। (907-955 ई०)
▪️राजाराज-। (985-1014 ई०)
▪️राजेंद्र-। (1012-1042 ई०)
▪️राजाधिराज-। (1042-1052 ई०)
▪️कुलोतुंग-। (1070-1178 ई०)
▪️विक्रम चोल- (1120-1135 ई०)
▪️राजाराज-।। (1150-1173 ई०)
#चोलकालीन_स्थानीय_स्वशासन :
▪️वर्तमान दौर में लोकतन्त्र को सबसे निचले स्तर तक मजबूत करने के उद्देश्य से ग्रामीण स्वायत्तता (Rural Autonomy) बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। यह कार्य प्राचीन काल में ही चोल साम्राज्य में किया गया-
▪️कर- यह सर्वसाधारण लोगों की सभा थी तथा सार्वजनकि कल्याण के लिए भूमि का अधिकग्रहण करना इसका प्रमुख कार्य था।
▪️ग्रामसभा– ब्राह्मणों की संस्था थी, जिसके निम्न अवयव थे।
▪️बरियम – ग्राम सभा की 30 सदस्यीय कार्य संचालन समिति।
▪️सम्बतर बरियम- बरियम के 12 ज्ञानी व्यक्तियों की आर्थिक समिति।
▪️उद्यान समिति- बरियम के 12 सदस्यों की एक समिति।
▪️तड़ाग समिति- बरियम के 6 सदस्यों की एक समिति।
नगरम्- व्यापारियों की एक सभा थी।
▪️चोल साम्राज्य में प्रशासन (Administration) में सुविधा की दृष्टि से 6 प्रांत थे।
▪️चोलकालीन प्रान्त (Provinces) मण्डलम् कहलाते थे।
▪️चोल प्रान्त कोट्टम (कमिश्नरिया) में विभाजित थे।
▪️कोट्टम पुन: जिलों में विभाजित थे उन्हें वलनाडु कहा जाता था।
▪️चोल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई नाड़ (ग्राम-समूह) कहलाती थी।
▪️‘नगरों’ की स्थानीय सभा को नगरतार एवं ‘नाडु’ की स्थानीय सभा को नाटूर कहा जाता है।
▪️चोल प्रशासन में कुल उपज का 1/3 हिस्सा भू-राजस्व के रूप में लिया जाता था।
▪️चोल साम्राज्य के पास एक शक्तिशाली जलसेना थी।
▪️चोल शासक कुलोतुंग-। के शासन काल में तमिल साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि जयन्गोंदर को राजकवि का दर्जा प्राप्त था।
▪️‘जयन्गोंदर’ प्रसिद्ध तमिल रचना कलिंगतुपर्णि का सुजन किया।
▪️‘तमिल’ साहित्य का त्रिरत्न कंबन, पुगलेंदित था औट्टूककुट्टन को कहा जाता है।
▪️‘कन्नड़’ साहित्य का ‘त्रिरत्न’ रन्न, पंथ एवं पोन्न को कहा जाता है।
▪️तंजौर के वृहदेश्वर मन्दि के निर्माण को पर्सी ब्राउन ने भारतीय द्रविड़ वास्तुकला का चरमोत्कर्ष बताया।
▪️चोल कला का ‘सांस्कृतिक-सार’ इस काल की नटराज प्रतिमा को माना जाता है।
▪️अधिकतर चोलशासक शैव धर्म के उपासक थे परन्तु वैष्णव, बौद्ध तथा जैन धर्मों का स्थान भी बरकरार था।
▪️इस काल में तिरूत्क्कदेवर नामक जैन पंडित ने जीवक चिंतामणि (10 वीं शताब्दी) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की।
▪️चोल काल में एक अन्य लेखक तोलोमोक्ति ने शूलमणि नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की।
▪️प्रसिद्ध कवि कंबन ने चोल शासक कुलोतुंग-।।। के शासनकाल में ‘तमिल रामायण’ रामावतारम् की रचना की।
▪️बौद्ध विद्वान् बुद्धमित्र ने इस काल में प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ रसोलियम (11वीं शताब्दी) की रचना, नलवेम्ब नाम प्रसिद्ध महाकाव्य की रचना पुगलेन्दि ने की।
▪️चोलकाल में आम वस्तुओं के आदान-प्रदान (Exchange) का आधार धान (Paddy) था।
▪️कावेरीपट्टनम् चोलकाल (10वींशताब्दी) का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह था।
▪️चोल काल में एक इकाई के रूप में शासित होने वाले बहुत बड़े गाँव को तनियर की संज्ञा दी गई थी।
▪️‘शिव’ के उपासकों को नयनार संत तथा ‘विष्णु’ के उपासकों को अलवर संत कहा जात था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#गुप्तोत्तर_काल
छठी शताब्दी के मध्य अर्थात् 550 ई0 के लगभग गुप्त साम्राज्य के विखंडन के बाद एक बार पुनः भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में विकेन्द्रीकरण और विभाजन की प्रवृत्तियाँ सक्रिय हो उठीं। इस काल में अनेक सामंतों एवं शासकों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी और स्वतंत्र राजवंशों की स्थापना की। हर्षवर्द्धन के उदय होने तक उत्तरी तथा पश्चिमी भारत की राजनीति में अनेक छोटे-छोटे राजवंशों का उदय हुआ जिनमें निम्नलिखित प्रमुख थे-.
1. बल्लभी के मैत्रक,.
2. पंजाब के हूण.
3. मालवा का यशोधर्मन.
4. मगध और मालवा के उत्तरगुप्त.
5. कन्नौज के मौखरि.
#बल्लभी_का_मैत्रक_वंश :
इस वंश की स्थापना भट्टार्क नामक व्यक्ति ने की जो गुप्तकाल में एक सैनिक पदाधिकारी था। पाँचवीं शताब्दी के अन्त तक भट्टार्क के उत्तराधिकारियों ने सौराष्ट्र (काठियावाड़) में शक्तिशाली राज्य स्थापित करने में सफलता पाई। भट्टार्क के बाद धरसेन शासक हुआ तथा द्रोणसिंह इस वंश का तीसरा शासक हुआ। द्रोणसिंह के बाद उसका भाई ध्रुवसेन राजा बना। मैत्रक वंशीय राजा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे तथा उन्होंने बौद्ध विहारों को पर्याप्त दान दिया। इस समय बल्लभी शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ एक विश्वविद्यालय था जिसकी पश्चिमी भारत में वही प्रसिद्धि थी जो पूर्वी भारत में नालंदा विश्वविद्यालय की थी। चीनी यात्री इत्सिंग, जो सातवीं शताब्दी में आए थे, ने इस शिक्षा केन्द्र की प्रशंसा की है। शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र होने के साथ-साथ बल्लभी व्यापार-वाणिज्य का भी केन्द्र था।.
#पंजाब_के_हूण :
हूण एक खानाबदोश और बर्बर जाति थी जो मध्य एशिया में निवास करती थी। हूणों का पहला भारतीय आक्रमण गुप्त शासक स्कंदगुप्त के शासनकाल में हुआ। वे स्कंदगुप्त के हाथों पराजित हुए और उनका अभियान असफल रहा। हूणों के इस आक्रमण का देश के ऊपर कोई तात्कालिक प्रभाव नहीं पड़ा किन्तु गुप्त साम्राज्य के पतन में इसने परोक्ष रूप से भूमिका निभाई। स्कंदगुप्त की मृत्यु के बाद तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने गंगा-घाटी पर पुनः आक्रमण किया। मध्य भारत के एरण नामक स्थान से प्राप्त तोरमाण के लेख से इस बात की जानकारी मिलती है कि धन्यविष्णु उसके शासनकाल में उसका सामंत था। जैन ग्रंथ कुवलयमाला से जानकारी मिलती है कि उसकी राजधानी चन्द्रभागा (चिनाब) नदी के तट पर स्थित पवैया में थी। तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने पवैया, साकल (स्याल कोट), एरण, मालवा आदि में अपनी सत्ता स्थापित की। तोरमाण ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने पुत्र मिहिरकुल को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। मिहिरकुल एक क्रूर और अत्याचारी शासक था। ह्नेनसांग के अनुसार उसकी राजधानी साकल थी। ग्वालियर लेख में उसे महान पराक्रमी और ’पृथ्वी का स्वामी’ कहा गया है। 530 ई0 के आस-पास मिहिरकुल यशोधर्मन द्वारा पराजित हुआ। यह मिहिरकुल की अंतिम पराजय थी और और इसके उपरांत हूणों की शक्ति समाप्त हो गई। मिहिरकुल शैव मतानुयायी तथा बौद्धों का शत्रु था। कल्हण के अनुसार श्रीनगर में मिहिरकुल ने एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।.
#मालवा_का_यशोधर्मन :
मन्दसौर प्रशस्ति में यशोधर्मन को उत्तर-भारत के चक्रवर्ती शासक के रूप में बताया गया है। यशोधर्मन द्वारा हूणों की पराजय उसकी महानतम उपलब्धियों में से एक थी। संभवतः 535 ई0 तक यशोधर्मन का शासन समाप्त हो गया।.
#मगध_और_मालवा_के_उत्तरगुप्त :
गुप्त राजवंश के विघटन के बाद मगध और मालवा में एक नये राजवंश ने लगभग दो शताब्दियों तक शासन किया। गुप्त वंश से अलग करने के लिए इसे परवर्ती अथवा उत्तर गुप्तवंश कहा जाता है। उत्तर गुप्त वंश की स्थापना कृष्णगुप्त के बाद हर्षगुप्त, जीवितगुप्त, कुमारगुप्त, दामोदर गुप्त, महासेनगुप्त, माधवगुप्त, आदित्यसेन आदि कई शासक इस वंश में हुए।.
उत्तरगुप्त वंश के शासकों ने गुप्त साम्राज्य की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं का अनुसरण किया।.
मन्दसौर से जानकारी मिलती है कि आदित्यसेन ने तीन अश्वमेध यज्ञ किये।.
आदित्यसेन के शासनकाल में चीनी राजदूत वांग-हुएन-त्से (लगभग 655-675 ई.) ने दो बार भारत की यात्रा की।.
#कन्नौज_का_मौखरि_वंश :
उत्तरगुप्त वंश के समान मौखरि भी गुप्त साम्राज्य के सामंत थे तथा गुप्त साम्राज्य के निर्बल होने पर उन्होंने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। मौखरि के समय में मगध के स्थान पर कन्नौज राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन गया। बाणभट्ट हर्षचरित से हमें इसके विषय में जानकारी मिलती है। मौखरि वंश का प्रारम्भिक शासक हरिवर्मा था। हरिवर्मा के बाद उसका पुत्र आदित्यवर्मा राजा हुआ। इसके बाद ईश्वरर्मा शासक हुआ, जिसे जौनपुर लेख में ’राजाओं में सिंह के समान’ बताया गया है। इन तीनों शासकों ने ’महाराज’ की उपाधि धारण की जो उनकी सामन्ती स्थिति को दर्शाता है। ईश्वरवर्मा के पश्चात् उसका पुत्र ईशानवर्मा शासक हुआ, जिसने मौखरियों को सामन्त स्थिति से स्वतंत्र स्थिति में लाने का काम किया। ईशानवर्मा के बाद सर्ववर्मा मौखरि वंश का शासक हुआ। सर्ववर्मा ही प्रथम शासक था जिसने मगध की मौखरि आधिपत्य के अन्तर्गत लाया। सर्ववर्मा के बाद अवन्तिवर्मा शासक बना तथा इसी के समय में थानेश्वर के पुष्यभूति वंश के साथ मौखरि वंश का वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ। अवन्तिवर्मा का पुत्र और उत्तराधिकारी ग्रहवर्मा का विवाह थानेश्वर शासक प्रभाकरवर्द्धन की पुत्री राज्यश्री के साथ संपन्न हुआ था। ग्रहवर्मा की मृत्यु के बाद मौखरि वंश की शक्ति क्षीण होती चली गयी।
#थानेश्वर_का_पुष्यभूति (वर्द्धन) वंश :
▪️गुप्त वंश के पतन के पश्चात् पुष्यभूति ने थानेश्वर में एक नवीन राजवंश की स्थापना की जिसे ‘पुष्यभूति वंश’ कहा गया।
▪️पुष्यभूति शिव का उपासक था।
▪️हर्षवर्द्धन (इस राजवंश का सबसे प्रतापी शासक) के लेखों में उसके केवल चार पूर्वजों नरवर्द्धन, राज्यवर्द्धन, आदित्यवर्द्धन एवं प्रभाकरवर्द्धन का उल्लेख मिलता है।.
▪️थानेश्वर राज्य के 3 आरंभिक शासक मामूली सरदार थे।
▪️चौथे शासक प्रभाकरवर्द्धन को इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक माना जाता है।
▪️प्रथम तीन शासकों ने मात्र महाराज की उपाधि धारण की जबकि ‘प्रभाकरवर्द्धन’ ने परमभट्टारक एवं महाराजाधिराज आदि उपाधियाँ धारण की।
▪️प्रभाकरवर्द्धन ने अपनी पुत्री राजश्री का परिणय ग्रहवर्मन से किया जो मौखरी वंश का था।
▪️देवगुप्त (मालवा नरेश) एवं शशांक (गौड़ का शासक) ने मिलकर ग्रहवर्मन की हत्या कर दी।
▪️प्रभाकरवर्द्धन के उत्तराधिकारी राज्यवर्द्धन की भी शशांक ने हत्या कर दी।
#हर्षबर्धन_का_साम्राज्य (606- 647 ईस्वी) :
▪️606 ई० में 16 वर्ष की आयु में हर्षवर्द्धन राजगद्दी पर बैठा।
▪️गद्दी पर बैठने के साथ ही हर्षवर्धन के सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं – अपनी बहन राज्यश्री को ढूँढना तथा अपने भाई तथा बहनोई की हत्या का बदला लेना।
▪️सबसे पहले उसने अपनी बहन को अपने एक बौद्ध भिक्षु मित्र दिवाकर मित्र जिसका नाम था उसकी मदद से ढूंढ निकाला वह उस वक्त सती होने जा रही थी !
▪️इसके पश्चात उसने शशांक से बदला लेने निकला, इसकी खबर लगते ही शशांक भाग निकला परंतु हर्ष ने उसे बंगाल में हराया तथा बंगाल पर आधिपत्य कर लिया।
▪️हर्ष के विजय अभियान को रोका बादामी के चालुक्यों में से एक पुलकेशियन द्वितीय ने, इसने हर्ष को नर्मदा नदी के किनारे पर हराया।
▪️आरंभ में हर्षवर्द्धन की राजधानी थानेश्वर थी, बाद में उसने इसे कन्नौज स्थानांतरित कर दिया।
▪️हर्षचरित् की रचना हर्ष के दरबारी कवि वाणभट्ट ने की।
▪️हर्षवर्द्धन स्वयं एक बड़ा साहित्यकार था तथा उसने रत्नावली, नागानंद एवं प्रियदर्शिका जैसी प्रसिद्ध नाट्य-ग्रंथों की रचना की। वह शैव धर्म का उपासक था।
▪️हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत की यात्रा पर आया। ह्वेनसांग को यात्री सम्राट एवं नीति का पंडित कहा गया है।
▪️हर्षवर्द्धन को एक अन्य नाम शिलादित्य से भी जाना जाता है।
▪️हर्षवर्द्धन उत्तरी भारत का अंतिम महान हिंदू सम्राट था, उसने परमभट्टारक की उपाधि धारण की।
▪️ऐहियोल प्रशस्ति के अनुसार 630 ई० में हर्ष को ताप्ती नदी के किनारे बदामी के चालुक्य वंशीय शासक पुलकेशिन-II ने पराजित किया।
▪️हर्ष काफी धार्मिक प्रवृत्ति का था एवं प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था।
▪️हर्ष द्वारा 643 ई० में कन्नौज तथा प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया गया।
▪️प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्षपरिषद् कहा गया।
▪️हर्षवर्द्धन काल में अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नकद वेतन के बदले भू-खण्ड देने की प्रथा जोरों पर थी इस कारण इस युग में सामंतवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया।
▪️हर्षवर्द्धन काल में सामंतवाद के अत्यधिक प्रचलन के कारण गुप्तकाल के मुकाबले प्रशासन अधिक विकेंद्रित हो गया।
▪️हर्ष-काल में राजस्व के स्रोत के संदर्भ में तीन प्रकार के करों भाग, हिरण्य एवं बलि का भी उल्लेख मिलता है।
▪️‘भाग’ एक भूमिकर था जो कुल उपज का 1/6 हिस्सा वसूला जाता था।
▪️‘हिरण्य’ नकद के रूप में वसूला जाने वाला कर था। ▪️‘बाली’ एक प्रकार का उपहार कर था। ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में करीब 500 हाथी, 2000 घुड़सवार एवं 5 हजार पैदल सैनिक थे।
▪️हर्षवर्द्धन ने 641 ई० में अपना एक दूत चीनी सम्राट के दरबार में भेजा तथा चीनी सम्राट ने भी अपना एक दूतमंडल हर्ष के दरबार में भेजा। हर्षवर्द्धन की मृत्यु 647 ई० में हुई।
#गुप्तोत्तरकालीन_सामाजिक_स्थिति :
गुप्त युग की समृद्धि और प्रतिष्ठा का अवसान गुप्तोत्तर काल में होने लगा था। इस काल का सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन, जिसने समाज के हर भाग को प्रभावित किया, वह था बड़े पैमाने पर दिया जाने वाला भूमिदान, सामंतवादी व्यवस्था का उत्कर्ष इसी के कारण हुआ। गुप्त काल में उन्नत व्यापार-वाणिज्य का रोम साम्राज्य के विनाश के कारण अवसान हो गया, नगर नष्ट हो गए और गुप्तोत्तर काल में कृषि मूल अर्थव्यवस्था प्रारम्भ हो गई। अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि होने के कारण गाँव पर जनसंख्या बोझ बढ़ा। वैश्यों का शूद्रों के स्तर पर मूल्यांकन तथा शूद्रों का कृषकों के रूप में परिवर्तन हुआ। वर्ण व्यवस्था के चारों वर्णों का आधार जन्म तथा नियम और कठोर हुए। ब्राह्मण वर्ग सबसे श्रेष्ठ और पवित्र माना जाता था, उनका मुख्य कार्य अध्ययन-अध्यापन, यज्ञ करवाना और दान प्राप्त करना था। गुप्तोत्तर काल के अव्यवस्था तथा वाह्य आक्रमणों से उत्पन्न राजनीतिक उथल-पुथल तथा आर्थिक विषमताओं के कारण ब्राह्मण वर्ण अन्य व्यवसाय अपनाने के लिए बाध्य हुए। इस काल में राजपूतों का उदय हुआ, जिन्होंने प्राचीन वर्ण क्षत्रिय में स्थान पाया। इस काल में वैश्यों की स्थिति में गिरावट आई, व्यापार-वाणिज्य के नष्ट होने के कारण वे कृषि करने को बाध्य हुए, जिस कारण उन्हें मनु और बौधायन धर्मसूत्र में शूद्रों के समकक्ष माना। इस काल में वैश्य एवं शूद्रों को वेदों के अध्ययन और सुनने की अनुमति नहीं थी। यदि वे ऐसा करते थे तो उनके लिए कठोर दण्ड का प्रावधान था। इस काल में वर्ण संकर जातियों की संख्या अत्यन्त बढ़ गई, जो अनुलोम और प्रतिलोम विवाह के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई थी। इन्हें वर्ण व्यवस्था में स्थान नहीं दिया गया तथा इन्हें अन्त्यज कहा गया। इस काल में महिलाओं की स्थिति में अत्यन्त गिरावट आई। कृषि-मूलक ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कारण स्त्रियों के बाल विवाह होने लगे, जिससे उन्हें शिक्षा के अधिकार से भी वंचित होना पड़ा। यौवनारम्भ से पूर्व विवाह को आदर्श माना गया। बाल विवाह होने के कारण बाल विधवाओं की समस्या और सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा समाज में उत्पन्न हो गई। स्वयं हर्ष की माता यशोमति उसके पिता की मृत्यु के उपरान्त उनके शव के साथ सती हो गई थीं जबकि उसकी बहन राज्यश्री 12 वर्ष की अवस्था में विधवा हो गई थी और सती होने जा रही थी, जिसे हर्ष ने रोका था। इस काल में विधवाओं के लिए अनेक कठोर नियम बनाये गये जिससे सामाजिक व्यवस्था बनी रहे। विधवाओं को पुनर्विवाह की मनाही थी जबकि पुरुष को बहुविवाह का अधिकार था। इस काल में पर्दा प्रथा का भी प्रचलन बढ़ा हलाँकि यह कुलीन वर्गों तक सीमित था, श्रमिक महिलाएँ इन नियमों से पृथक थी। .
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#भारत_में_प्रेस_का_विकास
भारत में प्रिटिंग प्रेस की शुरुआत 16 वी सदी में उस समय हुई जब गोवा के पुर्तगाली पादरियों ने सन् 1557 में एक पुस्तक छापी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना पहला प्रिटिंग प्रेस सन् 1684 में बंबई में स्थापित किया। लगभग 100 वर्षो तक कंपनी के अधिकार वाले प्रदेशो में कोई समाचार-पत्र नहीं छपा क्योकि कंपनी के कर्मचारी यह नहीं चाहते थे कि उनके अनैतिक, अवांछनीय तथा निजी व्यापार से जुड़े कारनामो की जानकारी ब्रिटेन पहुँचे।
कालांतर में भारत में स्वतंत्र तथा तटस्थ पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रथम प्रयास जेम्स आगस्टस हिक्की द्धारा सन् 1780 में किया गया। उसके द्धारा प्रकाशित प्रथम समाचार-पत्र का नाम 'बंगाल गजट' अथवा 'द कलकत्ता जरनल एडवरटाइजर' था। शीघ्र ही उसकी निष्पक्ष शासकीय आलोचनात्मक पत्रकारिता के कारण उसका मुद्रणालय जब्त कर लिया गया। सन् 1784 में कलकत्ता गजट,1785 में बंगाल जरनल तथा द ओरियंटल मैंगजीन ऑफ कलकत्ता अथवा द कलकत्ता एम्यूजमेंट, 1788 में मद्रास कुरियर इत्यादि अनेक समाचार-पत्र निकलने आरंभ हुए। जब कभी कोई समाचार-पत्र कंपनी के विरुद्ध कोई समाचार प्रकाशित करता तो कंपनी की सरकार कभी-कभी पूर्व -सेंसरशिप की नीति भी लागु कर देती थी और तथाकथित अपराधी संपादक को निर्वासन् की सजा सुना दिया करती थी। आइए जानते है विस्तार से-
#ब्रिटिश_भारत_में_प्रकाशित_समाचार_पत्र :
#एक_दृष्टि_में
समाचार पत्र : भाषा : वर्ष : प्रकाशन: स्थल : संस्थापक/संपादक
▪️टाइम्स ऑफ इंडिया : अंग्रेजी :1861 : बम्बई :
रॉबर्ट नाइट
▪️स्टेट्स मैन : अंग्रेजी : 1875 : कलकत्ता :
रॉबर्ट नाइट
▪️पायनियर :अंग्रेजी : 1865 : इलाहाबाद :
जॉर्ज एलन
▪️सिविल एण्ड मिलीट्र गजट : अंग्रेजी : 1876 : लाहौर रॉबर्ट नाइट
▪️अमृत बाजार पत्रिका : बंग्ला : 1868 : कलकत्ता मोतीलाल घोष/शिशिर कुमार घोष
▪️सोम प्रकाश :बंग्ला : 1859 : कलकत्ता
ईश्वरचंद्र विद्यासागर
▪️हिन्दू :अंग्रेजी : 1878 : मद्रास :
वीर राघवाचारी
▪️केसरी ,मराठा : मराठी,अंग्रेजी : 1881 : बम्बई
तिलक (प्रारंभ में अगरकर के सहयोग से)
▪️नेटिव ओपिनियन : अंग्रेजी : 1864 : बम्बई
बी. एन. मांडलिक
▪️बंगाली : अंग्रेजी : 1879 : कलकत्ता : सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
▪️बम्बई दर्पण : मराठी : 1832 : बंबई
बाल शास्त्री
▪️कॉमन वील : अंग्रेजी : 1914 :
एनी बेसेंट
▪️कवि वचन सुधा : हिन्दी : 1867 : संयुक्त प्रांत (उ. प्र.) भारतेन्दु हरिश्चंद्र
▪️हरिश्चंद्र मैगजीन : हिन्दी : 1872 : संयुक्त प्रांत (उ. प्र.) भारतेन्दु हरिश्चंद्र
▪️हिंदुस्तान स्टैंडर्ड : अंग्रेजी : 1899
सच्चिदानंद सिन्हा
▪️हिंदी प्रदीप : हिन्दी : 1877 : संयुक्त प्रांत (उ. प्र.) बालकृष्ण
▪️इंडियन रिव्यू : अंग्रेजी : मद्रास
जी. ए. नटेशन
▪️यंग इंडिया : अंग्रेजी : 1919 :अहमदाबाद
महात्मा गाँधी
▪️नव जीवन : हिन्दी, गुजराती : 1919 : अहमदाबाद महात्मा गाँधी
▪️हरिजन : हिन्दी, गुजराती : 1933 : पूना
महात्मा गाँधी
▪️इंडिपेंडेस : अंग्रेजी : 1919 :
मोतीलाल नेहरू
▪️आज : हिन्दी : शिव प्रसाद गुप्त
▪️हिंदुस्तान टाइम्स : अंग्रेजी : 1920 : दिल्ली
के. एम. पाणिकर
▪️नेशनल हेराल्ड : अंग्रेजी : 1938 : दिल्ली
जवाहरलाल नेहरू
▪️उदन्त मार्तण्ड : हिन्दी(प्रथम) : 1826 : कानपुर
जुगल किशोर
▪️द ट्रिब्यून : अंग्रेजी : 1877 : चंडीगढ़
सर दयाल सिंह मजीठिया
▪️अल हिलाल : उर्दू : 1912 : कलकत्ता
मौलाना अबुल कलाम आजाद
▪️अल बिलाग : उर्दू : 1913 : कलकत्ता
मौलाना अबुल कलाम आजाद
▪️कामरेड : अंग्रेजी : मुहम्मद अली जिन्ना
▪️हमदर्द : उर्दू : मुहम्मद अली जिन्ना
▪️प्रताप पत्र : हिन्दी : 1910 : कानपुर
गणेश शंकर विद्यार्थी
▪️गदर : अंग्रेजी,पंजाबी : 1913,1914 : सैन फ्रांसिस्को लाला हरदयाल
▪️हिन्दू पैट्रियाट : अंग्रेजी : 1855
हरिश्चंद्र मुखर्जी
#प्रेस_पर_लगाए_गए_प्रतिबंध :
#प्रेस_नियंत्रण_अधिनियम (1799) : ब्रिटिश भारत में प्रेस पर क़ानूनी नियंत्रण की शुरुआत सबसे पहले तब हुई जब लॉर्ड वेलेजली ने प्रेस नियंत्रण अधिनियम द्धारा सभी समाचार- पत्रों पर नियंत्रण (सेंसर) लगा दिया। ततपशचात सन् 1818 में इस प्री-सेंसरशिप को समाप्त कर दिया गया।
#भारतीय_प्रेस_पर_पूर्ण_प्रतिबंध (1823) : कार्यवाहक गवर्नर जरनल जॉन एडम्स ने सन् 1823 में भारतीय प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इसके कठोर नियमो के अंतर्गत मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापित करने हेतु लाइसेंस लेना होता था तथा मजिस्ट्रेट को मुद्रणालय जब्त करने का भी अधिकार था। इस प्रतिबंध के चलते राजा राममोहन राय की पत्रिका 'मिरात-उल-अख़बार' का प्रकाशन रोकना पड़ा।
#लिबरेशन_ऑफ_दि_इंडियन_प्रेस_अधिनियम (1835) : लॉर्ड विलियम बेटिक ने समाचार -पत्रों के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। इस उदारता को और आगे बढ़ाते हुए चार्ल्स मेटकॉफ ने सन् 1823 के भारतीय अधिनियम को रद्द कर दिया। अत: चार्ल्स मेटकॉफ को भारतीय समाचार- पत्र का मुक्तिदाता कहा जाता है। सन् 1835 के अधिनियम के अनुसार मुद्रक तथा प्रकाशन के लिए प्रकाशन के स्थान की सूचना देना जरुरी होता था।
#लाइसेंसिंग_अधिनियम (1857) : सन् 1857 के विद्रोह से निपटने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक वर्ष की अवधि के लिए बिना लाइसेंस मुद्रणालय रखने और प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
#पंजीकरण_अधिनियम (1867) : इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक मुद्रिक पुस्तक तथा समाचार-पत्र पर मुद्रक, प्रकाशक और मुद्रण स्थान का नाम होना अनिवार्य था तथा प्रकाशन के एक मास के भीतर पुस्तक की एक प्रति स्थानीय सरकार को नि: शुल्क भेजनी होती थी। सन् 1869 -70 में हुए वहाबी विद्रोह के कारण ही सरकार ने राजद्रोही लेख लिखने वालों के लिए आजीवन अथवा कम काल के लिए निर्वासन् या फिर दण्ड का प्रावधान रखा।
#वर्नाक्यूलर_प्रेस_एक्ट (1878) : लॉर्ड लिटन द्धारा लागू किया गया वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878 मुख्यत: 'अमृत बाजार पत्रिका' के लिए लाया गया था जो बांग्ला समाचार-पत्र था। इससे बचने के लिए ही यह पत्रिका रातो-रात अंग्रेजी भाषा की पत्रिका में बदल गई। इस एक्ट के प्रमुख प्रावधान थे:
▪️प्रत्येक प्रेस को यह लिखित वचन देना होगा कि वह सरकार के विरुद्ध कोई लेख नहीं छापेगा।
▪️प्रत्येक मुद्रक तथा प्रकाशक के लिए जमानत राशि ( Security Deposit ) जमा करना आवश्यक होगा।
▪️इस संबंध में जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा तथा उसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकेगी।
इस अधिनियम को 'मुँह बंद करने वाला अधिनियम' कहा गया। जिन पत्रों के विरुद्ध इस अधिनियम को लागू किया गया, उनमें प्रमुख थे- सोम-प्रकाश तथा भारत-मिहिर। इस एक्ट को लॉर्ड रिपन ने सन् 1881 में निरस्त कर दिया।
#आपराधिक_प्रक्रिया_संहिता (1898) : इस अधिनियम द्धारा सेना में असंतोष फैलाने अथवा किसी व्यक्ति को राज्य के विरुद्ध काम करने को उकसाने वालों के लिए दण्ड का प्रावधान किया गया।
#समाचार_पत्र_अधिनयम (1908) : इस अधिनियम के द्धारा मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दे दिया गया कि वह हिंसा या हत्या को प्रेरित करने वाली आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने वाले समाचार-पत्रों की सम्पत्ति या मुद्रणालय को जब्त कर ले।
#भारतीय_प्रेस_अधिनियम (1910) : इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नवत थे:
▪️किसी मुद्रणालय के स्वामी या समाचार-पत्र के प्रकाशन से स्थानीय सरकार पंजीकरण जमानत माँग सकती है, जो कि न्यूनतम रु. 500 तथा अधिकतम रु. 2000 होगी।
▪️आपत्तिजनक सामग्री के निर्णय का अधिकार प्रांतीय सरकार को होगा न कि अदालत को।
▪️सर तेजबहादुर सप्रू, जो उस समय विधि सदस्य थे, की अध्यक्षता में सन 1921 में एक समाचार-पत्र समिति की नियुक्ति की गई, जिसकी सिफारिशों पर 1908 और 1910 के अधिनियम निरस्त कर दिए गए।
#भारतीय_प्रेस (संकटकालीन शक्तियाँ) अधिनियम, (1931) : इस अधिनियम के द्धारा प्रांतीय सरकार को जमानत राशि जब्त करने का अधिकार मिला तथा राष्ट्रिय कांग्रेस के विषय में समाचार प्रकाशित करना अवैध घोषित कर दिया गया। उपर्युक्त अधिनियमो के अतिरिक्त, सन 1932 के एक्ट द्धारा पड़ोसी देशों के प्रशासन की आलोचना पर तथा 1934 ई. के एक्ट द्धारा भारतीय रजवाड़ो की आलोचना पर रोक लगा दी गयीं। सन 1939 में इसी अधिनियम द्धारा प्रेस को सरकारी नियंत्रण में लाया गया।
#11_वीं_समाचार_पत्र_जाँच_समिति : मार्च 1947 में भारत सरकार ने एक समाचार-पत्र जाँच समिति का गठन किया और उसे आदेश दिया कि वह संविधान सभा में स्पष्ट किये गए मौलिक अधिकारों के सन्दर्भ में समाचार-पत्र संबंधी कानूनों का पुनरावलोकन करे।
#समाचार_पत्र ( आपत्तिजनक विषय ) अधिनियम, (1951) : 26 जनवरी, 1950 को नया संविधान लागू होने के बाद सन 1951 में सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 19 (2 ) में संशोधन किया और फिर समाचार-पत्र (आपत्तिजनक विषय) अधिनियम पारित किया। यह अधिनियम उन सभी समाचार-पत्र संबंधी अधिनियमो से अधिक व्यापक था जो कि उस दिन तक पारित हुए थे। इसके द्धारा केंद्रीय तथा राजकीय समाचार-पत्र अधिनियम, जो उस समय लागू था, समाप्त कर दिया गया। नये कानून के तहत सरकार को समाचार-पत्रों तथा मुद्रणालयों से आपत्तिजनक विषय प्रकाशित करने पर उनकी जमानत जब्त करने का अधिकार मिल गया। परंतु अखिल भारतीय समाचार-पत्र संपादक सम्मेलन तथा भारतीय कार्यकर्ता पत्रकार संघ ने इस अधिनियम का भारी विरोध किया। अत: सरकार ने इस कानून की समीक्षा करने के न्यायाधीश जी. एस. राजाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समाचार-पत्र आयोग नियुक्त किया। एस आयोग ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 1954 में प्रस्तुत की, जिसके आधार पर समाचार-पत्रों के पीड़ित संपादक तथा मुद्रणालय के स्वामियों को जूरी द्धारा न्याय माँगने का अधिकार प्राप्त हो गया।
#प्रेस_की_भूमिका_एवं_प्रभाव :
राष्ट्रीय भावना के उदय एवं विकास में प्रेस ने निश्चय ही देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में राजनितिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कतिक एवं प्रत्येक स्तर पर इसकी भूमिका सराहनीय रही। वस्तुत: ब्रिटिश सरकार के वास्तविक उद्देश्य को, उसकी दोहरी चालो को तथा उसके द्धारा भारतीय के शोषण को जनता के समक्ष रखने वाला माध्यम प्रेस ही था।
#प्रेस_की_भूमिका_एवं_प्रभाव_संबंधी_अन्य_तथ्य
#इस_प्रकार_हैं:
▪️तत्कालीन युग का मुख्य उद्देश्य जन जागरण था और इस उद्देश्य की प्रगति में प्रेस की भूमिका सक्रिय तथा सशक्त रही।
▪️कांग्रेस की स्थापना से पहले समाचार-पत्र देश में लोकमत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे । पत्रकारिता को अपना बहुमूल्य समय देकर समाचार-पत्रों के माध्यम से सरकार की नीतियों की आलोचना कर तथा विभिन्न विषयों पर लेख लिखकर शिक्षित भारतीय देशवासियो को सरकार के विभिन्न कार्यो तथा देश की समकालीन स्थिति से अवगत करा रहे थे।
▪️भारतीय समाचार-पत्रों ने लोगो को राजनितिक शिक्षा देने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था। कांग्रेस की माँग को बार-बार दोहराकर प्रेस सरकार तथा जनता को प्रभावित करता रहता था।
▪️अतिवादी जुझारू राष्ट्रवाद को फैलाने में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, वरिंद्र घोष, अरविंद घोष, विपिनचंद्र पाल इत्यादि ने प्रेस का ही सहारा लिया।
▪️सर्वाधिक उल्लेखनीय रूप से, राष्ट्रीय आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में समाचार-पत्रों के अमूल्य योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इन पत्रों के संपादकों एवं आम जनता के बीच भावनात्मक एकता एवं सहानुभूति का संबंध कायम हो चूका था। यह कहना भी गलत न होगा कि जनमत का निर्माण एवं विकास भारतीय भाषायी पत्रों की स्थापना एवं विकास के परिणामस्वरूप ही संभव हो सका।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#शिक्षा_का_विकास
शिक्षा एक ऐसा शक्तिशाली औजार है जो स्वतंत्रता के स्वर्णिम द्वार को खोलकर दुनिया को बदल सकने की क्षमता रखता है।ब्रिटिशों के आगमन और उनकी नीतियों व उपायों के कारण परंपरागत भारतीय शिक्षा प्रणाली की विरासत का पतन हो गया और अधीनस्थ वर्ग के निर्माण हेतु अंग्रेजियत से युक्त शिक्षा प्रणाली का आरम्भ किया गया।
प्रारंभ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी शिक्षा प्रणाली के विकास के प्रति गंभीर नहीं थी क्योकि उनका प्राथमिक उद्देश्य व्यापार करना और लाभ कमाना था।भारत में शासन करने के लिए उन्होंने उच्च व मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करने की योजना बनायीं ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार किया जाये जो रक्त और रंग से तो भारतीय हो लेकिन अपनी पसंद और व्यवहार के मामले में अंग्रेजों के समान हो और सरकार व जनता के बीच आपसी बातचीत को संभव बना सके| इसे ‘निस्पंदन सिद्धांत’ की संज्ञा दी गयी। शिक्षा के विकास हेतु ब्रिटिशों ने निम्नलिखित कदम उठाये-
#शिक्षा_और_1813_का_अधिनियम
▪️चार्ल्स ग्रांट और विलियम विल्बरफोर्स,जोकि मिशनरी कार्यकर्ता थे ,ने ब्रिटिशों पर अहस्तक्षेप की नीति को त्यागने और अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार हेतु दबाव डाला ताकि पाश्चात्य साहित्य को पढ़ा जा सके और ईसाईयत का प्रचार हो सके| अतः ब्रिटिश संसद ने 1813 के अधिनियम में यह प्रावधान किया की ‘सपरिषद गवर्नर जनरल’ एक लाख रुपये शिक्षा के विकास हेतु खर्च कर सकते है और ईसाई मिशनरियों को भारत में अपने धर्म के प्रचार-प्रसार की अनुमति प्रदान कर दी।
▪️इस अधिनियम का इस दृष्टि से महत्व है कि यह पहली बार था जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में शिक्षा के विकास हेतु कदम उठाया।
▪️राजा राममोहन राय के प्रयासों से पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए ‘कलकत्ता कॉलेज’ की स्थापना की गयी | कलकत्ता में तीन संस्कृत कॉलेज भी खोले गए।
#जन_निर्देश_हेतु_सामान्य_समिति(1823)
▪️इस समिति का गठन भारत में शिक्षा के विकास की समीक्षा के लिए किया गया था।
▪️इस समिति में प्राच्यवादियों का बाहुल्य था,जोकि अंग्रेजी के बजाय प्राच्य शिक्षा के बहुत बड़े समर्थक थे।
▪️इन्होने ब्रिटिश सरकार पर पाश्चात्य शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु दबाव डाला परिणामस्वरूप भारत में शिक्षा का प्रसार प्राच्यवाद और अंग्रेजी शिक्षा के भंवर में फंस गयी |अंततः मैकाले के प्रस्ताव के आने से ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का स्वरुप स्पष्ट हो सका।
#लॉर्ड_मैकाले_की_शिक्षा_प्रणाली(1835)
• यह भारत में शिक्षा प्रणाली की स्थापना का एक प्रयास था जिसमें समाज के केवल उच्च वर्ग को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने की बात थी|
• फारसी की जगह अंग्रेजी को न्यायालयों की भाषा बना दिया गया |
• अंग्रेजी पुस्तकों की छपाई मुफ्त में होने लगी और उन्हें सस्ते दामों पर बेचा जाने लगा |
• प्राच्य शिक्षा की अपेक्षा अंग्रेजी शिक्षा को अधिक अनुदान मिलने लगा |
• 1849 में बेथुन ने ‘बेथुन स्कूल’ की स्थापना की |
• पूसा (बिहार) में कृषि संस्थान खोला गया |
• रुड़की में इंजीनियरिंग संस्थान खोला गया|
#जेम्स_थॉमसन_के_प्रयास(1843-53)
▪️ब्रिटिश भारत के पश्चिमोत्तर प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थॉमसन ने स्थानीय भाषा में ग्रामीण शिक्षा के विकास हेतु एक व्यापक योजना लागू की।
▪️इसके तहत मुख्य रूप से प्रायोगिक विषयों जैसे- क्षेत्रमिति, कृषि विज्ञान आदि पढ़ाया जाता था।
▪️जेम्स थॉमसन के प्रयासों का मुख्य उद्देश्य नए स्थापित हुए राजस्व तथा लोक निर्माण विभाग हेतु कर्मचारियों की आवश्यकता को पूरा करना था।
#वुड_डिस्पैच(1854)
चार्ल्स वुड ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल (Board of Control) के अध्यक्ष थे। भारत में शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु उन्होंने एक विस्तृत योजना तैयार की जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा लागू किया गया।
▪️इसके तहत प्रावधान किया गया कि जनसामान्य तक शिक्षा के प्रसार की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की होगी। इसके माध्यम से अधोगामी निस्पंदन के सिद्धांत का विरोध किया गया।
▪️इसने देश में विद्यमान शिक्षा पद्धति को सुव्यवस्थित करते हुए प्राथमिक शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा को, माध्यमिक शिक्षा हेतु एंग्लो-वर्नाकुलर (अर्द्ध-अंग्रेज़ी) भाषा तथा उच्च शिक्षा हेतु अंग्रेज़ी को माध्यम बनाया।
▪️इसने पहली बार महिला शिक्षा हेतु प्रयास किया।
▪️इसके द्वारा व्यावसायिक शिक्षा तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु प्रावधान किये गए।
▪️इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि सरकारी संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा धर्म-निरपेक्ष हो।
▪️इसके तहत निजी विद्यालयों को प्रोत्साहन देने हेतु अनुदान (Grant-in-aid) का प्रावधान भी किया गया।
▪️इसके तहत भारत के सभी राज्यों में शिक्षा विभाग की स्थापना का निर्देश दिया गया।
▪️इस अधिनियम के परिणामस्वरूप देश के तीनों प्रेसीडेंसियों (बंगाल, मद्रास तथा बॉम्बे) में एक-एक विश्वविद्यालय स्थापित किया गया।
#हंटर_आयोग(1882-83)
▪️हालाँकि वुड्स डिस्पैच ने देश के उच्च शिक्षा के लिये प्रयास किये लेकिन प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा के विकास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
▪️प्रत्येक राज्य में शिक्षा विभाग की स्थापना से प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा की ज़िम्मेदारी भी राज्यों पर आ गई जिसके लिये उनके पास संसाधनों की कमी थी।
▪️वर्ष 1882 में सरकार ने डब्लूडब्लू हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया जिसका कार्य वुड्स डिस्पैच के बाद देश में शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति का मूल्यांकन करना था। हंटर आयोग के मुख्य सुझाव प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा से संबंधित थे जो कि इस प्रकार थे:
• इसके तहत इस बात पर ज़ोर दिया गया कि राज्य प्राथमिक शिक्षा के विस्तार तथा विकास हेतु विशेष कार्य करे और प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा हो।
• इसके द्वारा यह अनुशंसा की गई कि प्राथमिक शिक्षा का नियंत्रण नए स्थापित ज़िला तथा नगरपालिका बोर्डों को दिया जाए।
• इसकी अनुशंसा थी कि माध्यमिक शिक्षा के अंतर्गत दो शाखाएँ हों:
• साहित्यिक जिसके बाद विद्यार्थी विश्वविद्यालयी शिक्षा की तरफ जाएँ।
• व्यावसायिक जिसके बाद विद्यार्थी रोज़गार प्राप्त करें।
▪️इसके माध्यम से तत्कालीन समय में महिला शिक्षा में विद्यमान अवसंरचनात्मक कमियों को उजागर किया गया तथा उसकी भरपाई हेतु व्यापक प्रयास के सुझाव प्रस्तुत किये गए।
▪️हंटर आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद अगले दो दशक तक देश में शिक्षा का उल्लेखनीय विकास हुआ तथा पंजाब विश्वविद्यालय (1882) और इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1887) की स्थापना हुई।
#भारतीय_विश्वविद्यालय_आयोग(1904)
▪️20वीं शताब्दी के उदय के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल व्याप्त था। प्रशासन का मानना था कि निजी प्रबंधन की वजह से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई तथा उच्च शैक्षणिक संस्थान राजनीतिक क्रांतिकारियों के उत्पादक बन गए हैं।
▪️इसके विपरीत राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञों का मानना था कि सरकार देश में निरक्षरता को कम करने तथा शिक्षा के विकास हेतु कोई प्रयास नहीं कर रही है।
▪️वर्ष 1902 में सरकार ने रैले आयोग का गठन किया जिसका कार्य भारत के विश्वविद्यालयों की दशा का अध्ययन करना तथा उनकी स्थिति में सुधार हेतु सुझाव देना था।
▪️रैले आयोग की अनुशंसा के आधार पर सरकार ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 पारित किया। अधिनियम की मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे:
• विश्वविद्यालयों में शिक्षा तथा शोध पर अधिक बल दिया जाए।
• विश्वविद्यालयों में शोधार्थियों की संख्या तथा उनके कार्यकाल को कम किया गया। अधिकांश शोधार्थियों को सरकार द्वारा नामित किया जाने लगा।
• सरकार को विश्वविद्यालयों के सीनेट के विनियमों को वीटो करने का अधिकार प्राप्त हो गया और सरकार उनके द्वारा बनाए गए नियमों को बदल सकती थी या स्वयं द्वारा निर्मित नियम लागू कर सकती थी।
• विश्वविद्यालयों से निजी कॉलेजों को संबंधित करने की प्रक्रिया को कठिन कर दिया गया।
• उच्च शिक्षा तथा विश्वविद्यालयों के विकास हेतु प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए के हिसाब से पाँच वर्षों तक अनुदान देने का प्रावधान किया गया।
इस समय भारत का वायसराय लॉर्ड कर्ज़न था। उसने गुणवत्ता तथा दक्षता बढ़ाने के नाम पर विश्वविद्यालयों पर कड़ा नियंत्रण स्थापित कर दिया।।
#सैडलर_विश्वविद्यालय_आयोग(1917-19)
सैडलर आयोग का गठन कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन तथा उस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये किया गया था लेकिन इसके सुझाव देश के सभी विश्वविद्यालयों पर लागू हुए थे।
इसके मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे:
▪️स्कूली पाठ्यक्रम 12 वर्षों का होना चाहिये। विश्वविद्यालयों में इंटरमीडिएट स्तर के बाद विद्यार्थी प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं। विश्वविद्यालय में डिग्री पाठ्यक्रम तीन वर्षों का होने चाहिये। ऐसा करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे:
• विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा हेतु विद्यार्थियों को तैयार करना।
• स्कूलों में इंटरमीडिएट स्तर की शिक्षा देने से विश्वविद्यालयों को राहत देना।
• उन विद्यार्थियों को कॉलेज की शिक्षा प्रदान करना जो कि विश्वविद्यालयों में नहीं जाना चाहते।
• विश्वविद्यालय के विनियमों के निर्माण में लचीलापन बनाए रखना।
• विश्वविद्यालय को एक केंद्रीकृत, आवासीय शिक्षण प्रदान करने के लिये स्वायत्त निकाय के तौर पर बनाया जाए, न कि कई कॉलेजों को संबंद्ध कर विस्तृत किया जाए।
• महिला शिक्षा, प्रायोगिक विज्ञान, तकनीकी शिक्षा तथा अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु प्रयास किये जाएँ।
वर्ष 1916 से वर्ष 1921 के दौरान भारत में सात नए विश्वविद्यालयों (मैसूर, पटना, बनारस, अलीगढ़, ढाका, लखनऊ तथा ओस्मानिया विश्वविद्यालय) की स्थापना हुई।
#हर्टोग_समिति(1929) :
हर्टोग समिति का गठन विभिन्न स्कूलों तथा कॉलेजों द्वारा शिक्षा के मानकों का पालन न करने के कारण किया गया था तथा इसका कार्य शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट तैयार करना था।
इसकी प्रमुख अनुशंसाएँ निम्नलिखित थीं:
▪️प्राथमिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए लेकिन इसके लिये जल्दबाज़ी में इसका विस्तार तथा अनिवार्यता न बनाई जाए।
▪️ऐसी व्यवस्था बनाई जाए ताकि केवल पात्र विद्यार्थी ही हाईस्कूल तथा इंटरमीडिएट में प्रवेश लें, जबकि औसत विद्यार्थी व्यावसायिक शिक्षा में प्रवेश प्राप्त करें।
▪️विश्वविद्यालयी शिक्षा का स्तर उठाने के लिये आवश्यक है कि विश्वविद्यालयों में प्रवेश को नियंत्रित किया जाए।
#शिक्षा_पर_सार्जेट_योजना(1944)
सार्जेंट योजना (सर जॉन सार्जेंट सरकार के शैक्षिक सलाहकार थे) का निर्माण वर्ष 1944 में सेंट्रल एडवाइज़री बोर्ड ऑफ एजुकेशन (Central Board of Education) ने किया था। इसके मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे:
▪️3-6 वर्ष के आयु समूह के लिये पूर्व-प्राथमिक शिक्षा।
▪️6-11 वर्ष के आयु वर्ग के लिए नि:शुल्क, सार्वभौमिक और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा।
▪️11-17 वर्ष आयु समूह के कुछ चयनित बच्चों के लिये हाईस्कूल शिक्षा और उच्च माध्यमिक के बाद 3 वर्ष का विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम।
▪️हाईस्कूल स्तर की शिक्षा दो प्रकार की होती:
• शैक्षणिक
• तकनीकी और व्यावसायिक
▪️तकनीकी, वाणिज्यिक और कला संबंधी शिक्षा को पर्याप्त प्रोत्साहन।
▪️इंटरमीडिएट का उन्मूलन।
▪️20 वर्षों में वयस्क निरक्षरता को समाप्त करना।
▪️शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांगों के लिये शिक्षकों के प्रशिक्षण, शारीरिक शिक्षा, शिक्षा पर ज़ोर देना।
सार्जेंट योजना का उद्देश्य आगामी 40 वर्षों के अंदर ब्रिटेन में प्रचलित शिक्षा स्तर को भारत में लागू करना था। हालाँकि यह एक विस्तृत योजना थीं लेकिन इसके क्रियान्वयन हेतु कोई योजना नहीं बनाई गई थी। इसके अलावा इस योजना को लागू करने के लिये ब्रिटेन की तुलना में भारतीय परिस्थितियाँ भिन्न थीं।
#निष्कर्ष
अतःहम कह सकते है की ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ईसाई मिशनरियों की आकांक्षाओं से प्रभावित थी। इसका वास्तविक उद्देश्य कम खर्च पर अधीनस्थ प्रशासनिक पदों पर शिक्षित भारतीयों को नियुक्त करना और ब्रिटिश वाणिज्यिक हितों की पूर्ति करना था।इसीलिए उन्होंने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को महत्त्व दिया और ब्रिटिश प्रशासन व ब्रिटिशों की विजयगाथाओं को महिमामंडित किया।
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