Wednesday, February 24, 2021

प्राचीन_भारत_का_इतिहास : #महाजनपद

#प्राचीन_भारत_का_इतिहास : #महाजनपद छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कुछ साम्राज्यों के विकास में वृद्धि हुयी थी जो बाद में प्रमुख साम्राज्य बन गये और इन्हें महाजनपद या महान देश के नाम से जाना जाने लगा था। इन्होंने उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी बिहार तक तथा हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों से दक्षिण में गोदावरी नदी तक अपना विस्तार किया। आर्य यहां की सबसे प्रभावशाली जनजाति थी जिन्हें 'जनस' कहा जाता था। इससे जनपद शब्द की उतपत्ति हुयी थी जहां जन का अर्थ "लोग" और पद का अर्थ "पैर" होता था। जनपद वैदिक भारत के प्रमुख साम्राज्य थे। महाजनपदों में एक नये प्रकार का सामाजिक-राजनीतिक विकास हुआ था। महाजनपद विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित थे। 600 ईसा पूर्व से 300 ईसा पूर्व के दौरान भारतीय उप-महाद्वीपों में सोलह महाजनपद थे। #उनके_नाम_थे:- अंग अश्मक अवंती छेदी गांधार कम्बोज काशी कौशल कुरु मगध मल्ल मत्स्य पंचाल सुरसेन वज्जि वत्स #मगध_साम्राज्य: मगध साम्राज्य ने 684 ईसा पूर्व से 320 ईसा पूर्व तक भारत में शासन किया। इसका उल्लेख महाभारत और रामायण में भी किया गया है। यह सोलह महाजनपदों में सबसे अधिक शक्तिशाली था। साम्राज्य की स्थापना राजा बृहदरथ द्वारा की गयी थी। राजगढ (राजगिर) मगध की राजधानी थी, लेकिन बाद में चौथी सदी ईसा पूर्व इसे पाटलिपुत्र में स्थानांतरित कर दिया गया था। यहां लोहे का इस्तेमाल उपकरणों और हथियारों का निर्माण करने के लिए किया जाता था। हाथी जंगल में पाये जाते थे जिनका इस्तेमाल सेना में किया जाता था। गंगा और उसकी सहायक नदियों के तटीय मार्गों ने संचार को सस्ता और सुविधाजनक बना दिया था। बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापदम नंद जैसे क्रूर और महत्वाकांक्षी राजाओं की कुशल नौकरशाही द्वारा नीतियों के कार्यान्वयन से मगध समृद्ध बन गया था। मगध का पहला राजा बिम्बिसार था जो हर्यंक वंश का था। अवंती मगध का मुख्य प्रतिद्वंदी था, लेकिन बाद में एक गठबंधन में शामिल हो गया था। शादियों ने राजनीतिक गठबंधनों के निर्माण में मदद की थी और राजा बिम्बिसार ने पड़ोसी राज्यों की कई राजकुमारियों से शादी की थी। #हर्यंक_राजवंश: यह बृहदरथ राजवंश के बाद मगध पर शासन करने वाला यह दूसरा राजवंश था। शिशुनाग इसका उत्तराधिकारी था। राजवंश की स्थापना बिम्बिसार के पिता राजा भाट्य द्वारा की गयी थी। राजवंश ने 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 413 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया था। हर्यंक राजवंश के राजा इस प्रकार थे: भाट्य बिम्बिसार अजातशत्रु उदयभद्र अनुरूद्ध मुंडा नागदशक #बिम्बिसार: बिम्बिसार ने मगध पर 544 ईसा पूर्व से 492 ईसा पूर्व तक, 52 वर्ष शासन किया था। उसने विस्तार की आक्रामक नीति का पालन किया और काशी, कौशल और अंग के पड़ोसी राज्यों के साथ कई युद्ध लड़े। बिम्बिसार गौतम बुद्ध और वर्द्धमान महावीर का समकालीन था। उसका धर्म बहुत स्पष्ट नहीं है। बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख के अनुसार वह बुद्ध का एक शिष्य था, जबकि जैन शास्त्रों में उसका वर्णन महावीर के अनुयायी के रूप तथा राजगीर के राजा श्रेनीका के रूप में मिलता है। बाद में बिम्बिसार को उसके पुत्र अ़जातशत्रु द्वारा कैद कर लिया गया जिसने मगध के सिंहासन पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था। बाद में कारावास के दौरान बिम्बिसार की मृत्यु हो गई। #अजातशत्रु अजातशत्रु ने 492- 460 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया था। उसने वैशाली के साथ 16 वर्षों तक युद्ध किया था और अंत में कैटापोल्ट्स की मदद से साम्राज्य को शिकस्त दी। उसने काशी और वैशाली पर आधिपत्य स्थापित करने के बाद मगध साम्राज्य का विस्तार किया था। उसने राजधानी राजगीर को मजबूत बनाया जो पाँच पहाड़ियों से घिरी हुई थी जिससे यह लगभग अभेद्य बन गयी थी। #उदयन: उदयन या उदयभद्र अजातशत्रु का उत्तराधिकारी था। उसका शासनकाल 460 ईसा पूर्व से 444 ईसा पूर्व तक चला था। उसने पटना (पाटलिपुत्र) के किले का निर्माण कराया था जो मगध साम्राज्य का केंद्र था उदयन का उत्तराधिकारी शिशुनाग था। शिशुनाग ने अवंती साम्राज्य का विलय मगध में कर दिया था। बाद में उसका उत्तराधिकारी नंद राजवंश बना। #नंद_राजवंश: राजवंश का शासनकाल 345 ईसा पूर्व से 321 ईसा पूर्व तक चला था। महापदम नंद, नंद राजवंश का पहला राजा था जिसने कलिंग का विलय मगध साम्राज्य में कर दिया था। उसे सबसे शक्तिशाली और क्रूर माना जाता था यहां तक कि सिकंदर भी उसके खिलाफ युद्ध लड़ना नहीं चाहता था। नंद वंश बेहद अमीर बन गया था। उन्होंने अपने पूरे साम्राज्य में सिंचाई परियोजनाओं और मानकीकृत व्यापारिक उपायों की शुरूआत की थी। हर्ष और कठोर कराधान प्रणाली ने नंदों को अलोकप्रिय बना दिया था। अंतिम नंद राजा, घानानंद को चंद्रगुप्त मौर्य ने पराजित कर दिया था। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास : #सातवाहन_का_युग सातवाहन ने भारतीय राज्यों के उनके शासकों की छवि के साथ वाले सिक्के जारी किए | इन्होने सांस्कृतिक पुल का निर्माण किया और व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और अपने विचारों और संस्कृति को इंडो गंगा के मैदान से भारत के दक्षिण के सिरे तक आदान प्रदान किया | सातवाहन के लोग खेती और लोहे के बारे में पूर्ण रूप से परिचित थे | #सामाजिक_संगठन सातवाहन साम्राज्य का समाज चार वर्गों के अस्तित्व को दर्शाता है : प्रथम वर्ग उन लोगों से बना है जो जिलों का देखरेख और नियंत्रण करते थे | द्वितीय वर्ग अधिकारियों से बना था | तीसरा वर्ग में किसान और वैद्यों आते थे | चौथे वर्ग में आम नागरिक आते थे | परिवार का मुखिया गृहपति था | #प्रशासन_का_स्वरूप सातवाहन साम्राज्य पाँच प्रान्तों में विभाजित था | नासिक के पश्चिमी प्रांत पर अभिरस का शासन था | इक्ष्वाकू ने कृष्ण-गुंटूर प्रांत के पूर्वी प्रांत में शासन किया | चौतस ने दक्षिण पश्चिमी भाग पर कब्जा किया और अपने प्रांत का उत्तर और पूर्व तक विस्तार किया | पहलाव ने दक्षिण पूर्वी भाग पर नियंत्रण किया | अधिकारियों को आमात्य और महामंत्र के रूप में जाना जाता था | सेनापति को प्रांतीय राज्यपाल के तौर पर नियुक्त किया जाता था | गौल्मिका के पास सैन्य पलटनों का जिम्मा होता था जिसमे 9 हाथी, 9 रथ, 25 घोड़े और 45 पैदल सैनिक होते थे | सातवाहन राज्य में तीन दर्जे के सामंत थे | उच्च दर्जा राजा का होता था जिसके पास सिक्कों के छापने का अधिकार था जबकि दूसरा दर्जा महाभोज का और तीसरा दर्जा सेनापति का था | हमे कतक और स्कंधावरस जैसे शब्दों की जानकारी हमें इस युग के अभिलेखों से मिलती है | #धर्म : बौद्ध और ब्राह्मण धर्म दोनों सातवाहन शासन के दौरान प्रचलित हुए | विभिन्न संप्रदाय के लोगों के बीच राज्य में विभिन्न धर्म में धार्मिक सहिष्णुता का अस्तित्व रहा | #वास्तुकला सातवाहन के शासन के दौरान, चैत्य और विहार बड़ी महीनता के साथ ठोस चट्टानों से काटे गए | चैत्य बौद्ध के मंदिर थे और मोनास्ट्री को विहार के नाम से भी जाना जाता था | सबसे प्रसिद्ध चैत्य पश्चिमी दक्कन के नाशिक, करले इत्यादि में स्थित है | इस समय में चट्टानों से काटकर बनाया गया वास्तुशिल्प भी मौजूद था | #भाषा सातवाहना के शासकों ने दस्तावेज़ों पर आधिकारिक भाषा के रूप में प्राकृत भाषा का इस्तेमाल किया | सभी अभिलेखों को प्राकृत भाषा में बनाया गया और ब्रहमी लिपि में लिखा गया | #महत्व_और_पतन सातवाहन ने शुंग और मगध के कनव के साथ अपना साम्राज्य को स्थापित करने के लिए मुक़ाबला किया | बाद में इन्होने भारत के बहुत बड़े हिस्से को विदेशी आक्रमणकारियों जैसे पहलाव, शक और यवना से बचाने के लिए एक बड़ी भूमिक अदा की | गौतमीपुत्र सत्कर्णी और श्री यजना सत्कर्णी इस राजवंश के कुछ प्रमुख शासक थे | कुछ समय के लिए सातवाहन ने पश्चिमी क्षत्रपस के साथ संघर्ष किया | तीसरी सदी AD में साम्राज्य छोटे छोटे राज्यों में बाँट गया | [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारत_की_परमाणु_नीति_क्या_है? भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण मई 1974 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के शासनकाल में किया था. इस परमाणु परीक्षण का नाम "स्माइलिंग बुद्धा" था. इसके बाद पोखरण-2 परीक्षण मई 1998 में पोखरण परीक्षण रेंज पर किये गए पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला का एक हिस्सा था. भारत ने 11 और 13 मई, 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर 5 परमाणु परीक्षण किये थे. इस कदम के साथ ही भारत की दुनिया भर में धाक जम गई. भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बना जिसने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. भारत द्वारा किये गए इन परमाणु परीक्षणों की सफलता ने विश्व समुदाय की नींद उड़ा दी थी. इन परीक्षणों के कारण विश्व समुदाय ने भारत के ऊपर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाये थे. इसी कारण भारत ने विश्व समुदाय से कहा था भारत एक जिम्मेदार देश है और वह अपने परमाणु हथियारों को किसी देश के खिलाफ “पहले इस्तेमाल” नही करेगा; जो कि भारत की परमाणु नीति का हिस्सा है. #भारत_ने_2003_में_अपनी_परमाणु_नीति_बनायीं #थी_भारत_की_परमाणु_नीति_की_विशेषताएं_इस #प्रकार_हैं? 1. भारत की परमाणु नीति का मूल सिद्धांत " पहले उपयोग नही" है. इस नीति के अनुसार भारत किसी भी देश पर परमाणु हमला तब तक नही करेगा जब तक कि शत्रु देश भारत के ऊपर हमला नही कर देता. 2. भारत अपनी परमाणु नीति को इतना सशक्त रखेगा कि दुश्मन के मन में भय बना रहे। 3. यदि किसी देश ने भारत पर परमाणु हमला किया तो उसका प्रतिशोध इतना भयानक होगा कि दुश्मन को अपूर्णीय क्षति हो और वह जल्दी इस हमले से उबर ना सके. 4. दुश्मन के खिलाफ परमाणु हमले की कार्यवाही करने के अधिकार सिर्फ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों अर्थात देश के राजनीतिक नेतृत्व को ही होगा हालाँकि परमाणु कमांड अथॉरिटी का सहयोग जरूरी होगा. 5. जिन देशों के पास परमाणु हथियार नही हैं उनके खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नही किया जायेगा. 6. यदि भारत के खिलाफ या भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ किसी कोई रासायनिक या जैविक हमला होता है तो भारत इसके जबाब में परमाणु हमले का विकल्प खुला रखेगा. 7. परमाणु एवं प्रक्षेपात्र सम्बन्धी सामग्री तथा प्रौद्योगिकी के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण जारी रहेगा तथा परमाणु परीक्षणों पर रोक जारी रहेगी. 8. भारत परमाणु मुक्त विश्व बनाने की वैश्विक पहल का समर्थन करता रहेगा तथा भेदभाव मुक्त परमाणु निःशस्त्रीकरण के विचार को आगे बढ़ाएगा. न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी के अंतर्गत एक राजनीतिक परिषद् तथा एक कार्यकारी परिषद् होती है. राजनीतिक परिषद् के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होते हैं जबकि कार्यकारी परिषद् के अध्यक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) होते हैं. NSA न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी को निर्णय लेने के लिए जरूरी सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं तथा राजनीतिक परिषद् द्वारा किये गए निर्देशों का क्रियान्वयन करते हैं. यह सच है कि भारत में परमाणु हमला करने का निर्णय सिर्फ प्रधानमन्त्री के पास होता है. हालाँकि प्रधानमन्त्री अकेले निर्णय नही ले सकता है. प्रधानमन्त्री के पास एक स्मार्ट कोड जरूर होता है जिसके बिना परमाणु बम को नही छोड़ा जा सकता है. परमाणु बम को दागने का असली बटन तो परमाणु कमांड की सबसे निचली कड़ी या टीम के पास होता है जिसे परमाणु मिसाइल दागनी होती है. #प्रधानमंत्री_निम्न_लोगों_से_राय_लेकर_ही_हमले #का_निर्णय_ले_सकता_है; 1. सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी 2. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार 3. चेयरमैन ऑफ़ चीफ ऑफ़ स्टाफ कमेटी इस प्रकार ऊपर लिखे गए बिन्दुओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भारत का परमाणु कार्यक्रम किसी देश को धमकाने या उस पर हमला करके कब्ज़ा करने के लिए नही बल्कि भारत की संप्रभुता और सीमाओं की रक्षा करने के लिए है. [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास : #मगध_का_साम्राज्य मगध साम्राज्य ने भारत में 684 BC – 320 BC तक शासन किया | मगध साम्राज्य का दो महान काव्य रामायण और महाभारत में उल्लेख किया गया है | मगध साम्राज्य पर 544 BC से 322 BC तक शासन करने वाले तीन राजवंश थे | पहला था हर्यंका राजवंश (544 BC से 412 BC ), दूसरा था शिशुनाग राजवंश (412 BC से 344 BC ) और तीसरा था नन्दा राजवंश (344 BC से 322 BC )| #हर्यंका_राजवंश: हर्यंका राजवंश में तीन महत्वपूर्ण राजा थे बिंबिसार, अजातशत्रु और उदयीन #बिंबिसार_546_494_BC बिंबिसार ने 52 साल तक 544 BC से 492 BC तक शासन किया | इसको इसी के ही पुत्र अजातशत्रु (492-460 BC ) ने बंदी बना लिया और हत्या कर दी | बिंबिसार मगध का शासक था।वह हर्यंका राजवंश से था। वैवाहिक गठबंधन के माध्यम से इसने अपनी स्थिति और समृद्धि को मजबूत किया | इसका पहला विवाह कोशल देवी नामक महिला से कोशल परिवार में हुआ | बिंबिसार को दहेज में काशी प्रांत दिया गया | बिंबिसार ने वैशाली के लिच्छवि परिवार की चेल्लाना नामक राजकुमारी से विवाह किया |अब इस वैवाहिक गठबंधन ने इसे उत्तरी सीमा में सुरक्षित कर दिया | बिंबिसार ने दुबारा एक और विवाह मध्य पंजाब के मद्रा के शाही परिवार की खेमा से किया |इसने अंग के ब्रहमदत्ता को पराजित कर उसके साम्राज्य पर कब्जा कर लिया | बिंबिसार के अवन्ती राज्य के साथ अच्छे तालुक थे | #अजातशत्रु_494_462_BC अजात शत्रु ने अपने पिता की हत्या कर राज्य को छीन लिया | अजात शत्रु अपने पूरे शासन काल के दौरान तेज़ विस्तार के लिए आक्रामक नीति का पालन करता रहा | इस नीति ने उसे काशी और कौशल की तरफ धकेल दिया | मगध और कौशल के बीच लंबी अशांति शुरू हो गई |कौशल के राजा को मजबूरन शांति के लिए अपनी बेटी का विवाह अजातशत्रु से करना पड़ा और उसे काशी भी दे दिया |अजातशत्रु ने वैशाली के लिच्छवियों के खिलाफ भी युद्ध की घोषणा कर दी और वैशाली गणराज्य को जीत लिया | यह युद्ध 16 साल तक चला | शुरुआत में वह जैन धर्म का अनुयायी था पर बाद में उसने बौद्ध धर्म को अपनाना शुरू कर दिया |अजातशत्रु ने कहा कि वह गौतम बुद्ध से मिला था | यह दृश्य बरहुत की मूर्तियों में दिखाया गया है | इसने कई चैत्यों और विहारों का निर्माण करवाया | वह बौद्ध की मृत्यु के बाद राजगृह में प्रथम बौद्ध परिषद में भी था | #उदयीन उदयीन, अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना | इसने पाटलीपुत्र की नींव राखी और राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र स्थानत्रित किया | नाग –दसक हर्यंका राजवंश का अंतिम शासक था | इसे लोगों द्वारा शासन करने के लिए अयोग्य पाया गया और उसे अपने मंत्री शिशुनाग के लिए राजगद्दी से हाथ पीछे खींचना पड़ा | #शिशुनाग_राजवंश शिशुनाग के शासन के दौरान अवन्ती राज्य को जीत लिया गया और मगध साम्राज्य के कब्जे में लिया गया | शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक बना | उसने 383 BC में वैशाली में दूसरी बौद्ध परिषद बुलाई | #नन्दा_राजवंश नन्दा राजवंश के संस्थापक महापद्म के द्वारा शिशुनाग राजवंश के अंतिम राजा का तख़्ता पलट कर दिया गया था। इसे सर्वक्षत्रांतक (पुराण ) और उग्रसेना (एक बड़ी सेना का स्वामी ) के नाम से भी जाना गया | महापद्म को पुराण में एक्राट (एकमात्र सम्राट) के नाम से भी जाना गया | यहाँ तक कि इसे भारतीय इतिहास में पहला साम्राज्य निर्माता के तौर पर जाना गया है | धन नन्द, नन्दा राजवंश का अंतिम शासक था | इसे यूनानी पुस्तकों में अग्राम्मेस या क्षाण्ड्रेमेस भी कहा गया | इसके शासन काल के दौरान अलेक्जेंडर ने भारत पर आक्रमण किया था । #निष्कर्ष धन नन्दा का तख़्ता पलट चन्द्र गुप्त मौर्य द्वारा 322 BC में किया गया जिसने मगध के नए शासन की स्थापना की जिसे मौर्य राजवंश के नाम से जाना गया |

Sunday, November 1, 2020

भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन...

 भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन...


प्राचीन भारत में संवैधानिक शासन प्रणाली... 

प्राचीन भारत में शासन धर्म से बंधे हुए थे कोई भी व्यक्ति धर्म का उल्लंखन नहीं कर सकता था। ऐसे प्रयाप्त प्रमाण सामने आए है जिसमे पता चलता है की प्राचीन भारत के अनेक भागो में गणतंत्र शासन प्रणाली प्रतिनिधि विचारण मंडल और स्थानीय स्वशासी संस्थाए विधमान थी और बैदिक काल (3000-1000 ई.पू. के पास) से ही लोकतान्त्रिक चिंतन तथा वयवहार लोगो के जीवन के विभिन्न पहलुओ में घर कर गए थे। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में सभा (आम सभा) तथा समिति (वयो वृद्धो की सभा) का उल्लेख मिलता है। एतरेय ब्राह्मण पाणिनि की अष्टध्यायी, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, महाभारत, अशोक स्तंभों पर उत्कीर्ण शिलालेख, उस काल के बौद्ध् तथा जैन ग्रन्थ  और मनुस्मृति – ये सभी इस बात के साक्ष्य है की भारतीय इतिहास के वैदिकोत्तर काल में अनेक सक्रिय गणतंत्र विद्यमान थे। विशेष रूप से महाभारत के बाद विशाल साम्राज्यों के स्थान पर अनेक छोटे-छोटे गणतंत्र राज्य अस्तित्व में आ गए। दसवी शताब्दी में शुक्राचार्य ने ‘नीतिसार’ की रचना की जो संविधान पर लिखी पुस्तक है।

अंग्रेजी_शासन... 

31 दिसम्बर, 1600 को लन्दन के चंद व्यापारीयो द्वारा बनाई गई ईस्ट इंडिया कम्पनी ने महारानी एलिजाबेथ से शाही चार्टर प्राप्त कर लिया और उस चार्टर द्वारा  कम्पनी को प्रारंभ में 15 वर्ष की अवधी के लिए भारत तथा दक्षिण-पूर्व  एशिया के कुछ क्षेत्रो के साथ व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया गया था। (इसमें कम्पनी का संविधान, उसकी शक्तियां और उसके विशेषाधिकार निर्धारित थे।) औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद मुग़ल साम्राज्य के विघटन की स्थिति का लाभ उठाते हुए कम्पनी एक प्रभावी  शक्ति के रूप में उभर कर सामने आ गई। 1757 में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ प्लासी की लड़ाई में कम्पनी की विजय के साथ इसकी पकड़ और भी मजबूत हो गई और भारत में अंग्रेजी शासन की नीव पड़ी।

रेगुलेटिंग_एक्ट – (1773)... 

भारत में कम्पनी के प्रशासन पर ब्रिटीश संसदीय नियंत्रण के प्रयासों की शुरुआत थी। कम्पनी के शासनाधीन क्षेत्रो का प्रशासन अब कम्पनी के व्यापारियो का निजी मामला नहीं रहा। 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट में भारत में कम्पनी का शासन के लिए पहली बार एक लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया।

चार्टर_एक्ट (1833)... 

भारत में अंग्रेजी राज के दौरान संविधान निर्माण के प्रथम धुंधले से संकेत 1833 के चार्टर एक्ट में मिलते है। भारत में अंग्रेजी शासनाधीन सभी क्षेत्रो में सम्पूर्ण सिविल तथा सैनिक शासन तथा राजस्व की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण स्पष्ट  रूप से गवर्नर जर्नल ऑफ़ इंडिया इन कौंसिल (सपरिषद भारतीय गवर्नर जर्नल) को सौप दिया गया। इस प्रकार गवर्नर जर्नल की सरकार भारत सरकार और उसकी परिषद् ‘भारत परिषद्’ के रूप में मानी जाती है। विधायी कार्य के परिषद का विस्तार करते हुए पहले के तीन सदस्यों के अतिरिक्त उसमे एक ‘विधि सदस्य’ और जोड़ दिया गया। गवर्नर जर्नल ऑफ़ इंडिया इन कौंसिल को अब कतिपय प्रतिबंधो के अधीन रहते हुए, भारत में अंग्रेजी शासनाधीन सम्पूर्ण क्षेत्रो के लिए कानून बनाने की अन्य शक्तियाँ मिल गई।

चार्टर_एक्ट  (1853)... 

1853 का चार्टर एक्ट अंतिम चार्टर एक्ट था. इस एक्ट के तहत भारतीय विधान तंत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए। यधपि भारतीय गवर्नर जर्नल की परिषद को ऐसे विधायी प्राधिकरण के रूप में जारी  रखा गया जो समूचे ब्रिटिश भारत के लिए विधियाँ बनाने में सक्षम थी। विधायी कार्यो के लिए परिषद में छः विशेष सदस्य जोरकर इसका विस्तार कर दिया गया। इन सदस्यों को विधियाँ  तथा विनियम बनाने के लिए बुलाई गई बैठको के अलावा परिषद् में बैठने तथा मतदान करने का अधिकार नहीं था। इन सदस्यों को विधायी पार्षद कहा जाता था। परिषद् में गवर्नर जर्नल, कमांडर-इन-चीफ, मद्रास, बम्बई, कलकत्ता और आगरा के स्थानीय शासको के चार प्रतिनिधियों समेत अब बारह सदस्य हो गए थे।

1858_का_एक्ट ... 

भारत में अंग्रेजी शासन के मजबुती के साथ स्थापित हो जाने के बाद 1857 का विद्रोह अंग्रेजी शासन का तख्ता पलट देने  का पहला संगठित प्रयास था। उसे अंग्रेज इतिहासकारों ने भारतीय ग़दर तथा भारतीयों ने स्वाधीनता के लिए प्रथम युद्ध का नाम दिया। यह एक्ट अंततः 1858 का भारत के उत्तम प्रशासन के लिए एक्ट बना। इस एक्ट के अधीन उस समय जो भी भारतीय क्षेत्र कम्पनी के कब्जे में थे वे सब crawn में निहित हो गए और उन पर (भारत के लिए) प्रिंसिपल सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट के माध्यम से कार्य करते हुए crawn द्वारा तथा उसके नाम सीधे शासन किया जाने लगा।

भारतीय_परिषद_एक्ट ( 1861)...

इसके बाद शीघ्र ही सरकार ने ये यह जरुरी समझा की वह भारतीय प्रशासन की सुधार सम्बन्धी निति का निर्धारण करे। यह ऐसे साधनों तथा उपायों पर विचार करे जिसके द्वारा देश के जनमत से निकट संपर्क स्थापित किया जा सके और भारत की सलाहकार परिषद में यूरोपीय तथा भारतीय गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया जा सके ताकि सरकार द्वारा प्रस्तावित विधानों के बारे में बाहरी जनता से विचारो तथा भावनाओ की अभिव्यक्ति यथा समय हो सके।
1861 का भारतीय परिषद एक्ट भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण और युगांतकारी घटना है। यह दो कारणों से महत्वपूर्ण है। एक तो यह की इसने गवर्नर जर्नल को अपनी विस्तारित परिषद में भारतीय जनता के प्रतिनिधियों को नामजद करके उन्हें विधायी कार्य से संवाद करने का अधिकार दे दिया। दूसरा यह की इसने गवर्नर जर्नल की परिषद की विधायी शक्तियों का विकेन्द्रीयकरण कर दिया तथा उन्हें बम्बई तथा मद्रास की सरकारों में निहित कर दिया। विधायी कार्यो से लिए कम-से-कम छः तथा अधिक-से-अधिक बारह अतिरिक्त सदस्य सम्मिलित किये गए। उनमे से कम-से-कम आधे सदस्यों का गैर सरकारी होना जरुरी था. 1862 में गवर्नर जर्नल, लार्ड कैनिंग ने नवगठित विधान परिषद् में तिन भारतीयों – पटियाला के महाराजा, बनारस के राजा और सर दिनकर राव को नियुक्त किया। भारत में अंग्रेजी राज की शुरूआत के बाद पहली बार भारतीयों को विधायी कार्य के साथ जोड़ा गया। 1861 के एक्ट में अनेक त्रुटियाँ थी। इनके अलावा यह भारतीय आकांक्षाओ को भी पूरा नहीं करता था इससे गवर्नर जर्नल को सर्वशक्तिमान बना दिया था। गैर सरकारी सदस्य कोई भी प्रभावी भूमिका अदा नहीं कर सकता था। न तो कोई प्रश्न पुछा जा सकता था और न ही बजट पर बहस हो सकती थी। अनाज की भारी किल्लत हो गई और 1877 में जबरदस्त अकाल पड़ा। इससे व्यापक असंतोष फैल गया और स्थिति विस्फोटक बन गई।
1857 के विद्रोह के बाद जो दमनचक्र  चला उसके कारणअंग्रेजो के खिलाफ लोगो  की भावनाए भड़क उठी थी इनमे और भी तेजी आई, जब यूरोपियो और आंगल भारतीयों ने इल्वर्ट विधेयक का जमकर विरोध किया। इल्वर्ट विधेयक में सिविल सेवाओ के यूरोपियो तथा भारतीय सदस्यों के बीच घिनौना  भेद को समाप्त करने की व्यवस्था की गई थी।

भारतीय_राष्ट्रीय_कांग्रेस_का_जन्म... 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का श्रीगणेश 1805 में हुआ। ए ओ ह्यूम इसके प्रेनेता  थे और प्रथम अध्यक्ष बने डब्लु सी बनर्जी। श्री ह्यूम अंग्रेज थे। 28 दिसम्बर, 1885 को श्री डब्लु सी बनर्जी की अध्यक्षता में हुए इसके पहले अधिवेशन में ही कांग्रेश ने विधान परिषदों में सुधार तथा इनके विस्तार की मांग की।
कांग्रेश के पांचवे अधिवेशन (1889) में इस विषय पर बोलते हुए श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने कहा था “यदि आपकी यह मांग पूरी हो जाती है, तो आपकी अन्य सभी मांगे पूरी हो जाएगी, इस पर देश का समूचा भविष्य तथा हमारी प्रशासन व्यवस्था का भविष्य निर्भर करता है। 1889 के अधिवेशन में जो प्रस्ताव पारित  किया गया, उसमे गवर्नर जर्नल  की परिषद् तथा प्रांतीय विधान परिषदों में सुधार तथा उनके पुनर्गठन  के लिए एक योजना की रुपरेखा दी गई थी और उसे ब्रिटिश पार्लियामेंट में पेश किये जानेवाले बिल में शामिल करने का सुझाव भी दिया गया था।
इस योजना में अन्य बातो के साथ-साथ यह मांग की गई थी की भारत में 21 वर्ष से ऊपर के सभी पुरुष ब्रिटिश नागरिको को मताधिकार तथा गुप्त मतदान पद्धति द्वारा मतदान करना का अधिकार दिया जाये।

भारतीय_परिषद्_एक्ट_1892... 

भारतीय परिषद् एक्ट 1892 मुख्यतया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेश के 1889 से 1891 तक के अधिवेशनो में स्वीकार किये गए प्रस्तावों से प्रभावित होकर पारित किया गया था। 1892 के एक्ट के अधिन गवर्नर जर्नल की परिषद् में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढाकर कम से कम 10 तथा अधिक से अधिक 16 कर दी गई (इससे पहले इनकी न्यूनतम संख्या 6 और अधिकतम संख्या 12 थी। परिषदों को उनके विधायी कार्यो के अलावा अब कतिपय शर्तो तथा प्रतिबंधो के साथ वार्षिक वितीय वितरण या बजट पर विचार-विमर्श करने की इजाजत दे दी गई।

मिन्टो_मार्ले_सुधार... 

एक ओर रास्ट्रीय आन्दोलन में गरमपंथियों की शक्ति बढती जा रही थी दूसरी ओर भारतीय कांग्रेस में नरमपंथी लोग देश के कार्य संचालन में भारतीयों के और अधिक प्रतिनिधित्व के लिए अनथक अभियान चला रहे थे. इसे देखते हुए तत्कालीन  सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया लार्ड मार्ले तथा तत्कालीन वायसराय लार्ड मिन्टो ने मिलकर 1906-08 के दौरान कतिपय संवैधानिक सुधार प्रस्ताव तैयार किये, इन्हें आमतौर पर मिन्टो-मार्ले सुधार प्रस्ताव कहा जाता है।
इनका मकसद था कि विधान परिषदों का विस्तार किया जाए तथा उनकी शक्तियों और कार्य क्षेत्र को बढ़ाया जाए, प्रशासी परिषदों में भारतीय सदस्य नियुक्ति किये जाए, जहाँ पर ऐसी परिषदे नहीं है वहां पर ऐसी परिषदे स्थापित की जाए, और स्थानीय स्वशासन प्रणाली का और विकाश की जाए।

भारतीय_परिषद्_एक्ट (1909)... 

1909 के एक्ट और इसके अधीन बनाए गए विनियमों द्वारा परिषदों तथा उनके कार्य क्षेत्र का और अधीन विस्तार करके उन्हें अधिक विस्तार करके उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व एवम प्रभावी बनाने के लिए उपबंध किये गये। भारतीय विधान परिषद् के अतिरिक्त सदस्यों की अधिकतम संख्या 16  से बढाकर 60 कर दी गई। इस एक्ट के अधीन अप्रत्यक्ष निर्वाचक के सिद्धांत को मान्यता दी गई। निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचक क्षेत्रो से चुने जाने थे यथा नगरपालिकाये जिला तथा स्थानीय बोर्ड विश्वविधालय वाणिज्य तथा व्यापार संघ मंडल और जमींदारो  या चाय बागान मालिको जैसे लोगो के समूह। ऐसे नियम बना  दिए गए जिससे सभी प्रांतीय विधान परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत हो, किन्तु केन्द्रीय विधान परिषद में सरकारी सदस्यों का ही बहुमत बना रहे। इन विनियमों में मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए पृथक निर्वाचक मंडल तथा पृथक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था भी कर दी गई। इस प्रकार पहली बार सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के घातक सिद्धांत का सूत्रपात हुआ। इस एक्ट के द्वारा लागु किये गए सुधार जिम्मेदार सरकार की मांग को न तो पूरा करते थे, क्योंकि उसके अधीन स्थापित परिषदों में जिम्मेदारी का अभाव था जो जन-निर्वाचित  सरकार की विशेषता होती है।

मोंटेग्यू_घोषणा... 

20 अगस्त, 1917 को अंग्रेजी राज के दौड़ान भारत के उतार-चढ़ाव वाले इतिहास में पहली बार इस वक्यत्व्य के द्वारा भारत में जिम्मेदार सरकार की स्थापना का वादा किया गया।

मोंटफोर्ट_रिपोर्ट_1918... 

भारतीय संवैधानिक सुधार सम्बन्धी रिपोर्ट मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड या मोंटफोर्ट रिपोर्ट के नाम से जानी जाती है।इसे सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया श्री मोंटेग्यू तथा भारत के वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड ने संयुक्त रूप से तैयार किया जिसे जुलाई 1918 में प्रकाशित की गई। इस रिपोर्ट में स्वशासी डोमिनियन के दर्जे की मांग की पूर्ण उपेक्षा की गई।

संविधान of India... 

भारत का संविधान,भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है।

संविधान_क्या_है ?... 

▪️किसी भी देश का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का  वह बुनियादी ढ़ांचा होता  है जिसके अंतर्गत उसकी जनता शासित होती है।
▪️यह राज्य की कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगो की स्थापना  करता है तथा उनकी शक्तियों की व्याख्या करता है उसके दायित्वों का सीमांकन करता है और उनके पारम्परिक तथा जनता के साथ सम्बन्धो का विनियमन करता है।

संवैधानिक_विधि... 

▪️विशेष रूप से इनका सरोकार राज्य के विभिन्न अंगो के बीच और संघ  तथा इकाइयो के बीच शक्तियो के वितरण के ढ़ांचे की बुनियादी विषताओ से होता है।

भारत_का_संविधान... 

▪️संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को अंगीकार किया गया था।
▪️यह 26 जनवरी 1950 से पूर्णरूपेन लागु हो गया।
▪️संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचीयां थी।
▪️किन्तु सन्दर्भ में सुभीते की दृष्टी से संविधान के भागो और अनुच्छेदो की मूल संख्याओ में परिवर्तन नहीं किया गया।
▪️वर्तमान समय में गणना की दृष्टि के कुल अनुच्छेद वस्तुतया 448 हो गया है अनुचियाँ 8 से बढ़कर 12 हो गई है।
▪️पिछले 53 वर्षों में 94 संविधान संशोधन विधेयक पारित हो चुके है।

संविधान_के_श्रोत... 

▪️राज्य के निति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत ग्राम पंचायतो के संगठन का उल्लेख स्पस्ट रूप से महात्मा गाँधी तथा प्राचीन भारतीयों स्वशासी संस्थानों से प्रेरित होकर किया गया था जिसे 73वे तथा 74वे संविधान संसोधन अधिनियमों ने उन्हें अब और अधिक सार्थक तथा महत्वपूर्ण बना दिया है।
▪️उल्लेखनीय है की नेहरु कमिटी की रिपोर्ट में जो 19 मूल अधिकार शामिल किये गए थे उनमे से 10 को भारत के संविधान में बिना किसी खास परिवर्तन के शामिल कर लिया गया।
▪️मूल संविधान में मूल कर्तव्यो का कोई उल्लेख नहीं था किन्तु बाद में 1976 में संविधान (42वा) संसोधन अधिनियम द्वारा इस विषय पर भी एक नया अध्याय संविधान में जोर दिया गया।
▪️संविधान का लगभग 75% अंश भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया था।
▪️राज्य व्यवस्था का बुनियादी ढ़ांचा तथा संघ एवं राज्यों के संबंधो, आपात स्थिति की घोषणा आदि को विनियमित करनेवाले उपबंध अधिकांशतः 1935 के अधिनियम पर आधारित थे।
▪️निदेशक तत्व की संकल्पना आयरलैंड के संविधान से ली गई है।
▪️विधायिका के प्रति उत्तरदायी मंत्रियो वाली संसदीय प्रणाली अंग्रेजो से आई और राष्ट्रपति में संघ की कार्यपालिका शक्ति तथा संघ के रक्षा बलो का सर्वोच्च समादेश निहित करना और उपराष्ट्रपति को राज्य सभा का पदेन सभापति बनाने के उपबंध अमरीकी संविधान पर आधारित थे।
▪️संघीय ढ़ांचे और संघ तथा राज्यों के संबंधो एवं संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण से सम्बंधित उपबंध कनाडा के संविधान से प्रभावित है।
▪️सप्तम अनुसूची में समवर्ती अनुसूची, व्यापार, वाणिज्य तथा समागम, वित्त आयोग और संसदीय विशेषाधिकार से सम्बंधित उपबंध, आस्टेलियाई संविधान के आधार पर तैयार किये गए है।
▪️आपात स्थिति से सम्बंधित उपबंध अन्य बातों के साथ-साथ जर्मन राज्य संविधान द्वारा प्रभावित हुए थे।
▪️न्यायिक आदेशो तथा संसदीय विशेषाधिकारो के विवाद से सम्बंधित उपबंधो की परिधि तथा उनके विस्तार को समझने के लिए अभी भी ब्रिटिश संविधान का hi.... 

संविधान_पर_विदेशी_प्रभाव... 

भारतीय संविधान पर प्रभाव डालने वाले देशी और विदेशी दोनों स्त्रोत हैं, लेकिन ‘भारतीय शासन अधिनियम 1935’ का संविधान पर गहरा प्रभाव है । भारतीय संविधान सबसे बड़ा लिखित संविधान है । भारत का संविधान 10 देशों के संविधान का मिश्रण है, जो कि उन देशों के संविधान से प्रमुख तथ्यों को लेकर बनाया गया है। जिसके कारण भारतीय संविधान को उधार का थैला भी कहा जाता है । आइये जानते हैं उन तथ्यों के बारे में जिनसे भारतीय संविधान का निर्माण हुआ।

(A) #आतंरिक_स्त्रोत –

#भारतीय_शासन_अधिनियम_1935 –

▪️संघीय तंत्र
▪️राज्यपाल का कार्यकाल
▪️न्यायपालिका
▪️लोक सेवा आयोग
▪️आपातकालीन उपबंध व प्रसानिक विवरण आदि प्रमुख तथ्य
▪️भारतीय शासन अधिनियम 1935 के अनुसार संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं,जो इस अधिनियम से कुछ जस के तस तथा कुछ में बदलाव करके लिया गया है.

(B) #विदेशी_स्त्रोत –

विदेशी स्त्रोत के अंतर्गत बहुत से देशों से लिए गए उपबंध सम्मिलित हैं। जो कि निम्नलिखित हैं –

#ब्रिटेन_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️संसदीय शासन
▪️बहुल मत प्रणाली
▪️विधि के समक्ष समता
▪️विधि निर्माण प्रक्रिया
▪️रिट या आलेख
▪️राष्ट्रपति का अभिभाषण
▪️एकल नागरिकता
▪️नाभिनाद संभद

#संयुक्त_राज्य_अमेरिका_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️मूल अधिकार
▪️न्यायिक पुनरावलोकन
▪️राष्ट्रपति पर महाभियोग
▪️निर्वाचित राष्ट्रपति
▪️उपराष्ट्रपति का पद
▪️विधि का सामान संरक्षण
▪️स्वतंत्र न्यायपालिका
▪️सामुदायिक विकास कार्यक्रम
▪️संविधान की सर्वोच्चता
▪️वित्तीय आपात
▪️उच्चतम न्यायलय या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया
▪️संविधान संशोधन में राज्य की विधायिकाओं द्वारा अनुमोदन
▪️“हम भारत के लोग”

#सोवियत_संघ_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️मूल कर्तव्य
▪️पंचवर्षीय योजना

#कनाडा_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️राज्यों क संघ
▪️संघीय व्यवस्था
▪️राजयपाल की नियुक्ति विषयक प्रक्रिया
▪️राजयपाल द्वारा विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखना
▪️प्रसादपर्यन्त और असमर्थ तथा सिद्ध कदाचार
तदर्थ नियुक्ति

#ऑस्ट्रेलिया_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️समवर्ती सूची का प्रावधान
▪️प्रस्तावना की भाषा
▪️संसदीय विशेषाधिकार
▪️व्यापारिक वाणिज्यिक और समागम की स्वतंत्रता
▪️केंद्र व राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन एवं संबंध
▪️प्रस्तावना में निहित भावना ( स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को छोड़कर )

#आयरलैंड_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️राज्य की नीति के निर्देशक तत्व ( DPSP )
▪️आपातकालीन उपबंध
▪️राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली
▪️राज्यसभा में मनोनयन ( कला, विज्ञान, साहित्य, समाजसेवा इत्यादि क्षेत्र से )

#जापान_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️अनुच्छेद – 21 की शब्दाबली – विधि की स्थापित प्रक्रिया ( शब्द के स्थान पर भावनाओं को महत्त्व )

#दक्षिण_अफ्रीका_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान
▪️राज्य विधान मण्डलों द्वारा राज्य विधानसभा में आनुपातिक प्रतिनिधित्व

#जर्मनी_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️आपात के दौरान राष्ट्रपति को मूल अधिकारों के निलंबन संबंधी शक्तियां

#फ्रांस_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️गणतंत्र
▪️स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना ( सम्पूर्ण विश्व ने फ्रांस से ही ली )

#स्विटजरलैंड_से_लिए_गए_उपबंध –

▪️सामाजिक नीतियों के सन्दर्भ में DPSP का उपबंध

भारतीय_संविधान_सभा... 

भारतीय संविधान सभा एक संप्रभु ढांचा था जिसका गठन कैबिनेट मिशन की सिफारिश पर किया गया था जिसने देश के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 1946 में भारत का दौरा किया था। भारत के लिए एक संवैधानिक मसौदा तैयार करने के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया गया था। हालांकि, बाद में संविधान सभा को अपने गठन के बाद कुछ आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था।

भारतीय_संविधान_सभा_का_संरचना... 

कैबिनेट मिशन द्वारा प्रदत्त ढांचे के आधार पर 9 दिसंबर, 1946 को एक संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान निर्माण संस्था का चुनाव 389  सदस्यों वाली प्रांतीय विधान सभा द्वारा किया गया था जिसमें रियासतों से 93 और ब्रिटिश भारत से 296 सदस्य शामिल थे। रियासतों और ब्रिटिश भारत प्रांतों को उनकी संबंधित आबादी और मुस्लिम, सिख तथा अन्य समुदायों के आधार पर अनुपात में विभाजित किया गया था। सीमित मताधिकार के बावजूद भी संविधान सभा में भारतीय समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिला था। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली में हुई थी।  डॉ सच्चिदानंद को सभा के अंतरिम अस्थायी अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था। हालांकि, 11 दिसंबर, 1946 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष और एच. सी. मुखर्जी को संविधान सभा का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया गया।

#संविधान_सभा_के_कार्य :

▪️संविधान तैयार करना।
▪️अधिनियमित कानूनों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया गया।
▪️22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया।
▪️इसने मई 1949 में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता को स्वीकार कर मंजूरी दे दी थी।
▪️24 जनवरी 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को चुना गया था ।
▪️24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गान को अपनाया।
▪️24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गीत को अपनाया।

#उद्देश्य_प्रस्ताव (ऑब्जेक्टिव रेजॉल्यूशन) :

▪️उद्देश्य प्रस्ताव को पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर, 1946 को स्थानांतरित कर दिया गया था जिसने संविधान तैयार करने के लिए दर्शन मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान किये थे और इसने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का रूप ले लिया था। हालांकि, इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से 22 जनवरी को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था।
▪️प्रस्ताव में कहा गया कि संविधान सभा सबसे पहले भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य के रूप में घोषित करेगी जिसमें सभी प्रदेशों, स्वायत्त इकाइयों को बनाए रखना और अवशिष्ट शक्तियों के अधिकारी; भारत के सभी लोगों को न्याय, स्थिति की समानता, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, पूजा, पेशे, संघ की स्वतंत्रता की गारंटी देना और कानून एवं सार्वजनिक नैतिकता के तहत अल्पसंख्यकों, पिछड़े, दलित वर्गों को पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करना; गणराज्य के क्षेत्र की अखंडता और भूमि, समुद्र और हवा पर अपना संप्रभु अधिकार तथा इस प्रकार भारत का विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए और मानव जाति के कल्याण के लिए योगदान देना शामिल है।

#संविधान_सभा_की_समितियां :

▪️संविधान सभा ने संविधान बनाने के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन के लिए आठ प्रमुख समितियों का गठन किया था- केंद्रीय शक्तियों वाली समिति, केंद्रीय संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, मसौदा समिति, मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों के लिए सलाहकार समिति, प्रक्रिया समिति के नियम, राज्यों की समिति (राज्यों के साथ बातचीत के लिए समिति), जवाहर लाल नेहरू, संचालन समिति।
▪️इन आठ प्रमुख समितियों के अलावा, सबसे महत्वपूर्ण मसौदा समिति थी। 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए डॉ बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया था।

#संविधान_सभा_की_आलोचना :

जिन बिंदुओं के आधार पर संविधान सभा की आलोचना की गयी थी वो इस प्रकार हैं:

▪️एक लोकप्रिय ढांचा नहीं: आलोचकों का मानना है कि संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सीधे भारत की जनता द्वारा नहीं किया गया था। प्रस्तावना कहती है कि संविधान, भारत के लोगों द्वारा अपनाया गया है जबकि इसे कुछ व्यक्तियों द्वारा अपनाया गया था जो भारतीय लोगों द्वारा निर्वाचित तक नहीं थे।
▪️एक संप्रभु विहीन ढांचा: आलोचक इस बात को लेकर बहस करते हैं कि संविधान सभा का ढांचा संप्रभु नहीं है क्योंकि इसका निर्माण भारत के लोगों के द्वारा नहीं किया गया था। यह भारत की आजादी से पहले कार्यकारी कार्रवाई के माध्यम से ब्रिटिश शासकों के प्रस्तावों द्वारा बनाया गया था तथा इसकी संरचना का निर्धारण भी उन्हीं के द्वारा किया गया था।
▪️वक्त की बर्बादी: आलोचकों का हमेशा से यह मानना रहा है कि संविधान तैयार करने के लिए लिया गया समय दूसरे देशों की तुलना में बहुत ज्यादा था। अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने संविधान तैयार करने के लिए केवल चार महीने का समय लिया जो कि आधुनिक दुनिया में अग्रणी था।
▪️कांग्रेस का बोलबाला: आलोचक हमेशा इस बात को लेकर आलोचना करते हैं कि संविधान सभा में कांग्रेस का काफी दबदबा था और अपने द्वारा तैयार संविधान के मसौदे के माध्यम से उसने देश के लोगों पर अपनी सोच थोप दी थी।
▪️एक समुदाय का बोलबाला: कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में धार्मिक विविधता का अभाव था और केवल हिंदुओं का वर्चस्व था।
▪️वकीलों का बोलबाला: आलोचकों का यह भी मानना है कि संविधान संभा में वकीलों के प्रभुत्व की वजह से यह काफी भारी और बोझिल बन गया था उन्होंने एक आम आदमी को समझने के लिए संविधान की भाषा को मुश्किल बना दिया था। संविधान का मसौदा तैयार करने के दौरान समाज के अन्य वर्ग अपनी चिंताओं को जाहिर नहीं कर पाये और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग नहीं ले सके थे।

इसलिए, संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गयी और महत्वपूर्ण रूप से भारत के ऐतिहासिक संविधान का मसौदा तैयार करने में अपना योगदान दिया और बाद में इसने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने में मदद की... 

भारत_में_संवैधानिक_विकास... 

भारत में संवैधानिक विकास की शुरुआत ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (1600 ई०) से माना जा सकता है। ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज व्यापारियों का एक समूह था। इसे ब्रिटिश सरकार ने भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया था। व्यापार की रक्षा के नाम पर यूरोपीय कंपनियों ने भारत में किलेबंदी करना और सेना रखना शुरू कर दिया। अपनी सैनिक शक्ति के दम पर ईस्ट इंडिया कंपनी जल्द ही भारतीय रियासतों के राजनीतिक एवं आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगी और भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई। 1757 की प्लासी की लड़ाई के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में एक मुख्य राजनीतिक ताकत बन गई। 1764 के बक्सर के युद्ध तथा 1765 की इलाहाबाद की संधि से तो कंपनी बंगाल, बिहार और उड़ीसा में सर्वेसर्वा हो गई। भारत में कंपनी की आर्थिक और राजनीतिक सफलताओं एवं कारगुजारियों की वजह से ब्रिटेन में यह जरूरी समझा गया कि भारत में उसके क्रियाकलापों नियंत्रित किया जाए।

#रेग्युलेटिंग_एक्ट (1773) :

▪️रेग्ययुलेटिंग एक्ट जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार तथा संसद ने पहली बार कंपनी की गतिविधियों को रेग्युलेट करने या नियंत्रित करने के लिए नियम बनाकर हस्तक्षेप किया।
▪️रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में रखा गया।
▪️1773 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। इसका कार्य क्षेत्र बंगाल, बिहार और उड़ीसा तक था। सर एलीजा इम्पे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
▪️कंपनी के कर्मचारियों निजी व्यापार नहीं कर सकते थे।.
▪️वे उपहार भी नहीं ले सकते थे।
▪️कोर्ट आफ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष कर दिया गया।

#पिट्स_इंडिया_एक्ट (1784) :

▪️यह अधिनियम ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विलियम पिट जुनियर द्वारा लाया गया था।
▪️रेग्युलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया।
▪️पिट्स इंडिया एक्ट में कंपनी प्रशासित क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश राज्य क्षेत्र कहा गया।
▪️बंगाल के गवर्नर जनरल की नियुक्ति पहले की तरह बोर्ड आफ डायरेक्टर्स करता था परंतु इससे पहले बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति लेना जरूरी हो गया। और इस प्रकार नियुक्त गवर्नर जनरल को सम्राट जब चाहे वापस बुला सकता था।
▪️गवर्नर जनरल के कौंसिल के सदस्यों की संख्या चार​ से घटाकर तीन कर दिया गया। एक सदस्य प्रधान सेनापति होता था।
▪️सपरिषद् (कौंसिल सहित) गवर्नर जनरल को युद्ध, राजस्व तथा राजनीतिक मामलों में बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी पर अधिक नियंत्रण प्रदान किया गया।
▪️इसी प्रकार गवर्नर जनरल बिना बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति के देशी राज्यों के प्रति युद्ध या शांति या किसी अन्य विषय में किसी भी प्रकार की नीति नहीं अपना सकता था।
▪️बाद में एक्ट में संशोधन कर यह प्रावधान किया गया कि यदि गवर्नर जनरल जरूरी समझे तो अपनी परिषद के निर्णय को अस्वीकार कर दे।
▪️पिट के भारत अधिनियम के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों में ब्रिटिश सरकार का पहले से अधिक नियंत्रण स्थापित किया गया। ऐसा एक प्रकार का दोहरा शासन स्थापित करके किया गया।
▪️इंग्लैंड में एक नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड आफ कंट्रोल) की स्थापना की गई। इसमें छः सदस्य होते थे। इंग्लैंड का वित्त मंत्री तथा राज्य सचिव (सेकेट्री आफ स्टेट) इसके सदस्य होते थे। चार अन्य सदस्यों की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी। यह नियंत्रण बोर्ड कंपनी के संचालकों के बोर्ड (बोर्ड आफ डायरेक्टर्स) से ऊपर होता था। कंपनी के मालिकों का बोर्ड भी बोर्ड आफ कंट्रोल के नियंत्रण में होता था। बोर्ड आफ कंट्रोल को कंपनी के सैनिक, असैनिक तथा राजस्व संबंधी सभी मामलों की देखरेख तथा नियंत्रण-निर्देशन का अधिकार था। बोर्ड आफ कंट्रोल कंपनी के संचालकों के नाम आदेश भी जारी कर सकता था। इस प्रकार बोर्ड आफ कंट्रोल के माध्यम से ब्रिटेन की सरकार का कंपनी की गतिविधियों पर मजबूत नियंत्रण स्थापित हो गया। कंपनी के संचालक मंडल को भारत से प्राप्त तथा भारत भेजे जाने वाले सभी कागजात की प्रतिलिपि बोर्ड आफ कंट्रोल के समक्ष रखनी पड़ती थी, जिन्हें वह चाहे तो अस्वीकार भी सकती थी या उसमें परिवर्तन भी करके नया रूप भी दे सकती थी। इस प्रकार बोर्ड आफ कंट्रोल द्वारा स्वीकृत या संशोधित आदेश को संचालक मंडल को मानना ही पड़ता था।
▪️इस तरह संचालक मंडल (बोर्ड आफ डायरेक्टर्स​) को बोर्ड आफ कंट्रोल के आदेशों और निर्देशों को मानना ही होता था।
▪️इस अधिनियम के द्वारा संचालक मंडल को केवल कंपनी के व्यापारिक कार्यों के प्रबंधन​ की शक्ति प्रदान की गई।
▪️संचालक मंडल कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता था परंतु यदि सम्राट चाहे तो ऐसी किसी भी नियुक्ति को निरस्त भी कर सकता था। लेकिन गवर्नर जनरल की नियुक्ति के लिए बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति लेना आवश्यक था।

#1793_का_चार्टर_एक्ट :

▪️भारत के साथ व्यापार के कंपनी के अधिकार को 20 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया।
▪️मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी के गवर्नर भी अपने परिषदों के निर्णयों को निरस्त करने का अधीकार दिया गया।

#1813_का_चार्टर_एक्ट :

▪️इस चार्टर एक्ट के द्वारा भारत के साथ कंपनी के व्यापार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। लेकिन चीन के साथ कंपनी के व्यापार और चाय के व्यापार पर एकाधिकार सुरक्षित रखा गया।
▪️भारतीयों की शिक्षा के लिए एक लाख रुपए वार्षिक की व्यवस्था की गई।
▪️ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।

#1833_का_चार्टर_एक्ट :

▪️कंपनी के चाय के व्यापार के एकाधिकार और चीन के साथ व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा कंपनी को पूर्णता राजनीतिक और प्रशासनिक मशीनरी बना दिया गया ।
▪️इस चार्टर एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा गया। लार्ड विलियम बैंटिक भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बना।
▪️एक विधि आयोग का गठन किया गया। लार्ड मैकाले विधि आयोग का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया।
▪️दास प्रथा गैर कानूनी घोषित हुई।
▪️कंपनी के अधीन किसी पद पर नियुक्ति के मामले में भारतीयों से किसी भी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध  किया गया।
▪️संपूर्ण भारत के लिए अधिनियम बनाने का अधिकार सपरिषद् गवर्नर जनरल को दिया गया।

#भारतीय_शासन_अधिनियम (1858) :

▪️इस अधिनियम के द्वारा कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और अब भारत का शासन सम्राट के नाम से किया जाने लगा।
▪️भारत का गवर्नर जनरल अब वायसराय कहा जाने लगा, जो सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में भारत का शासन चलाता था।
▪️लार्ड कैनिंग पहला वायसराय बना।
▪️भारत सचिव का एक नया पद बनाया गया। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमंडल का एक सदस्य होता था। 15 सदस्यों का एक भारत परिषद बनाया गया। यह परिषद भारत सचिव को उसके कार्य में सहायता देती थी। ▪️नियंत्रण बोर्ड और निदेशक मंडल को समाप्त कर दिया गया तथा इन दोनों का कार्य भारत सचिव को दे दिया गया।
▪️इस तरह 1858 के भारत शासन अधिनियम से द्वैध शासन समाप्त हुआ।

#भारतीय_परिषद_अधिनियम (1861) :

▪️इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को अपनी परिषद में भारतीय सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार दिया गया। परंतु ये सदस्य न तो बजट पर बहस कर सकते थे और न ही प्रश्न कर सकते थे।
▪️अब सपरिषद प्रांतीय गवर्नर अर्थात् बंबई और मद्रास के गवर्नर भी कानून बना सकते थे। यह एक तरह से विकेंद्रीकरण की शुरुआत थी ।

#भारतीय_परिषद_अधिनियम (1892) :

▪️गवर्नर जनरल की परिषद में गैर सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। परंतु अभी सरकारी सदस्यों का बहुमत बना रहा।
▪️सीमित रूप में तथा अप्रत्यक्ष पद्धति से ही सही, अब परिषद के सदस्यों का चुनाव शुरू किया गया। अर्थात् भारत में निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत हो गई।
▪️सदस्य गण अब बजट पर बहस कर सकते थे परंतु आर्थिक मुद्दों पर मतदान नहीं कर सकते थे। वे प्रश्न भी कर सकते थे, परंतु पूरक प्रश्न नहीं कर सकते थे। उनके प्रश्नों का उत्तर दिया जाना भी जरूरी नहीं था।
▪️यह अधिनियम भारत के किसी भी राजनीतिक गुट को संतुष्ट नहीं कर सका। यहां तक कि नरम दल भी इस अधिनियम से असंतुष्ट रहा।

#1909_का_भारतीय_परिषद_अधिनियम

▪️भारत सचिव जान मार्ले और वायसराय लॉर्ड मिंटो ने सुधार का एक मसौदा पेश किया जिसके आधार पर 1909 का भारतीय परिषद अधिनियम पारित हुआ इसलिए इसे मार्ले-मिंटो सुधार भी कहते हैं।
▪️1909 के भारतीय परिषद अधिनियम के केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई।
▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया।
▪️सदस्यों को प्रस्ताव रखने, बजट पर बहस करने, प्रश्न करने तथा मतदान का भी अधिकार दिया गया। लेकिन व्यावहारिक रूप में यह सब अधिकार नहीं थे।
▪️सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम की सबसे खराब बात थी। इसके द्वारा मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई, जहां मुस्लिम प्रतिनिधियों का चुनाव केवल मुस्लिम मतदाताओं को करना था। इस तरह अंग्रेजों ने भारत में बढ़ती हुई राष्ट्रवाद की भावना को कमजोर करने के लिए फूट डालो और राज करो की नीति के तहत साम्प्रदायिकता का जहर बो दिए।

#मांटेग्यू_घोषणा :

20 अगस्त 1917 को भारत सचिव मांटेग्यू ने हाउस आफ कामन्स में एक महत्वपूर्ण घोषणा की। यह घोषणा में भारत में अंग्रेजी सरकार के उद्देश्य और नीतियों से संबंधित थी। इसमें मांटेग्यू ने कहा कि भारत में स्वशासी शासनिक संस्थानो का धीरे-धीरे क्रमशः  इस प्रकार विकास किया जाएगा कि भारत  ब्रिटिश साम्राज्य के अभिन्न अंग के रूप में प्रगति करते हुए उत्तरदायी शासन प्रणाली की दिशा में आगे बढ़े तथा शासन के प्रत्येक विभाग में भारतीयों की भागीदारी बढ़े। और यह सब भारतीयों के सहयोग तथा जवाबदारी निभाने की क्षमता पर निर्भर करेगा। लेकिन इस दिशा में कब और किस मात्रा में प्रगति होगी इसका निर्धारण भारत सरकार और ब्रिटिश सरकार ही करेंगे।

#मांटफोर्ड_रिपोर्ट (1918) :

भारत सचिव एडविन मांटेग्यू और वायसराय चेम्सफोर्ड ने 1917 के 20,अगस्त की घोषणा​ को लागू करने के लिए एक मसौदा पेश किया। इसे ही मांटफोर्ड रिपोर्ट कहा गया। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित है-
▪️नगरपालिकाओं​, जिला बोर्डों आदि स्थानीय निकायों में पूर्ण लोकप्रिय नियंत्रण।
▪️प्रांतों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना।.
▪️केंद्रीय असेंबली का विस्तार तथा उसमें भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व देना।
यही रिपोर्ट 1919 के भारत शासन अधिनियम का आधार बनी। इसे मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं।

#भारत_सरकार_अधिनियम (1919) :

(क) प्रांतों से संबंधित उपबंध:

इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण भाग प्रांतों में दोहरा शासन या द्वैध शासन लागू करना था। इसके लिए शासन के विषयों को प्रांतीय और केंद्रीय सूचियों में बांट दिया गया-

1. केंद्रीय विषयों में रक्षा, विदेशी मामले, मुद्रा और टंकण, आयात-निर्यात कर इत्यादि थे।
2. शांति और व्यवस्था, स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, चिकित्सा प्रशासन और कृषि आदि को प्रांतीय विषयों की सूची में शामिल किया गया था।

प्रांतीय विषयों को फिर दो भागों में बांटा गया- हस्तांतरित और आरक्षित। हस्तांतरित विषयों (जैसे, स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, अस्पताल, उद्योग, कृषि आदि) का प्रशासन लोकप्रिय मंत्रियों को सौंपा जाना था। जबकि शांति और व्यवस्था, पुलिस, वित्त, भूमि कर और श्रम जैसे कुछ अन्य विषय गवर्नर के लिए आरक्षित किए गए जिनका प्रशासन उसे सरकारी सदस्यों के सहयोग से चलाना था।

प्रांतीय परिषदों का विस्तार भी किया गया तथा निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। मताधिकार का विस्तार किया गया। दुर्भाग्यवश सांप्रदायिक निर्वाचन मंडल को न केवल बनाए रखा गया बल्कि और बढ़ा दिया गया। अब मुसलमानों के साथ-साथ सिखों, यूरोपीयों, भारतीय ईसाइयों तथा एंग्लो इंडियन को भी पृथक प्रतिनिधित्व मिला।

1. प्रांतों के गवर्नर आरक्षित विषयों में गवर्नर जनरल या भारत सचिव के प्रति उत्तरदायी था। हस्तांतरित विषयों में भी वह सांवैधानिक मुखिया का कार्य न करके अक्सर मंत्रियों की सलाह के विरुद्ध काम करता था। वह किसी भी विधेयक को रोक सकता था तथा विधान मंडल द्वारा अस्वीकृत​ विधेयक को प्रमाणित कर सकता था। वह अध्यादेश जारी कर सकता था। विधान मंडल को भंग करके समस्त प्रशासन अपने हाथ में ले सकता था। वह विधानमंढल का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा भी सकता था।

(ख) केंद्र में परिवर्तन :

केंद्रीय स्तर पर पहले की तरह ही निरंकुश सरकार चलती रही और वह सैद्धांतिक रूप से केवल ब्रिटेन की संसद के प्रति उत्तरदायी थी। केंद्रीय विधान मंडल को द्विसदनात्मक बना दिया गया। मताधिकार अब भी सीमित था। यद्यपि दोनों सदनों में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत रखा गया परन्तु गवर्नर जनरल की शक्तियां बढ़ा दी गईं। वह कटौतियों का पुनः स्थापन कर सकता था, विधेयकों को प्रमाणित कर सकता था और अध्यादेश जारी कर सकता था।

कमियां: भारत शासन अधिनियम 1919 के द्वारा प्रांतों में लागू किया गया दोहरा शासन बहुत ही भद्दा, भ्रममय और जटिल था। इसके द्वारा बहुत ही चालाकी से भारतीय राजनेताओं को आरक्षित और हस्तांतरित विषयों की चूहा-दौड़ में फंसा दिया गया। इसी तरह केंद्र में गवर्नर जनरल के अत्यधिक शक्तिशाली हो जाने से गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत भी छलावा मात्र था। कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत शासन अधिनियम 1919 भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकता था इसलिए शीघ्र ही असहयोग आंदोलन शुरू हो गया।.

#भारत_शासन_अधिनियम (1935) :

▪️प्रांतीय स्वायत्तता भारत शासन अधिनियम 1935 की मुख्य विशेषता थी। अब प्रांतों का शासन लोकप्रिय मंत्रियों की सलाह से गवर्नर द्वारा चलाया जाना था।
▪️प्रांतीय और केंद्रीय विधान मंडलों की सदस्य संख्या बढ़ा दी गई।
▪️प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त कर दिया गया लेकिन इसे केंद्र में लागू कर दिया गया।
▪️केंद्र के प्रशासनिक विषयों को दो प्रकारों में संरक्षित और हस्तांतरित में बांटा गया। संरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल सरकारी सदस्यों की सहायता से करता था, जो विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। ▪️हस्तांतरित विषयों का प्रशासन लोकप्रिय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था तो विधानमंडल के सदस्यों में से होते थे और उसी के प्रति जवाबदार होते थे।
▪️भारत शासन अधिनियम 1935 में एक अखिल भारतीय संघ का प्रस्ताव था, जो ब्रिटिश भारत के प्रांतों, चीफ कमिश्नरों के क्षेत्रों और देशी रियासतों से मिलाकर बनाया जाना था। लेकिन देशी रियासतों के लिए इस प्रस्तावित संघ में शामिल होना अनिवार्य नहीं होकर वैकल्पिक था इसलिए यह व्यवस्था अमल में नहीं आ सकी।
▪️मताधिकार का विस्तार किया गया।
▪️पृथक निर्वाचन की व्यवस्था को और बढ़ाते हुए हरिजनों को भी इसमें शामिल किया गया।
▪️बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया।
▪️सिंध प्रांत को बंबई से अलग कर दिया गया।
▪️‘बिहार और उड़ीसा’ प्रांत का विखंडन करके बिहार तथा उड़ीसा नाम से दो नए प्रांत बनाए गए।
▪️भारत मंत्री के अधिकारों में कटौती की गई तथा ‘भारत परिषद’ को समाप्त कर दिया गया।
▪️एक संघीय न्यायालय तथा रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना की गई।

#संविधान_सभा_का_गठन :

केबिनेट मिशन योजना (1946) के अंतर्गत एक संविधान निर्मात्री सभा के गठन का प्रावधान था। जुलाई 1946 में संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव हुआ। इसकी प्रथम बैठक 09, दिसंबर 1946 को हुई। संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह और 18 दिनों के अथक परिश्रम के बाद भारत का संविधान बनाया। इस संविधान पर 26 नवंबर 1949 को सदस्हयों हस्ताक्षर हुए। संविधान के नागरिकता आदि से संबंधित कुछ उपबंध तत्काल लागू हो गये। संविधान पूर्ण रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।


संविधान_में_अनुसूची... 

#अनुसूची :

भारतीय संविधान की अनुसूची में कुल 12 अनुसूचियां हैं, जो इस प्रकार हैं:

#प्रथम_अनुसूची : इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों (29 राज्य) एवं संघ शासित (सात) क्षेत्रों का उल्लेख है.
नोट: संविधान के 62वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है. 
नोट: 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश से पृथक तेलंगाना राज्‍य बनाया गया. इससे पहले राज्‍यों की संख्‍या 28 थी.

#द्वितीय_अनुसूची : इसमें भारत राज-व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्य सभा के सभापति एवं उपसभापति, विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन का उल्लेख किया गया है.

#तृतीय_अनुसूची : इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों) द्वारा पद-ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है.

#चौथी_अनुसूची : इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्य सभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है.

#पांचवीं_अनुसूची : इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उल्लेख है.

#छठी_अनुसूची : इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है.

#सांतवी_अनुसूची : इसमें केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारे के बारे में बताया गया है, इसके अन्तगर्त तीन सूचियाँ है- संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची:

▪️(1) संघ सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर केंद्र सरकार कानून बनाती है. संविधान के लागू होने के समय इसमें 97 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 98 विषय हैं. 
▪️(2) राज्य सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर राज्य सरकार कानून बनाती है. राष्ट्रीय हित से संबंधित होने पर केंद्र सरकार भी कानून बना सकती है. संविधान के लागू होने के समय इसके अन्‍तर्गत 66 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 62 विषय हैं. 
▪️(3) समवर्ती सूची: इसके अन्‍तर्गत दिए गए विषय पर केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं. परंतु कानून के विषय समान होने पर केंद्र सरकार केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है. राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून केंद्र सरकार के कानून बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है. संविधान के लागू होने के समय समवर्ती सूची में 47 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 52 विषय हैं.

#आठवीं_अनुसूची : इसमें भारत की 22 भाषाओँ का उल्लेख किया गया है. मूल रूप से आंठवीं अनुसूची में 14 भाषाएं थीं, 1967 ई० में सिंधी को और 1992 ई० में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. 2004 ई० में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया.

#नौवीं_अनुसूची : संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गई. इसके अंतर्गत राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है. इन अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं.

▪️नोट: अब तक यह मान्यता थी कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. 11 जनवरी, 2007 के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा यह स्थापित किया गया कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उच्चतम न्यायालय इन कानूनों की समीक्षा कर सकता है.

#दसवीं_अनुसूची : यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है.

#ग्यारहवीं_अनुसूची : यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किए गए हैं.

#बारहवीं_अनुसूची : यह अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिय 18 विषय प्रदान किए गए हैं.


नार्को टेस्ट क्या होता है और इसे कैसे किया जाता है?...

 नार्को टेस्ट क्या होता है और इसे कैसे किया जाता है?... 


👉Narco Test: नार्को टेस्ट में अपराधी या किसी व्यक्ति को ट्रुथ ड्रग नाम की एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है या फिर सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगाया जाता है. इस दवा का असर होते ही व्यक्ति ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है जिसमें व्यक्ति पूरी तरह से बेहोश भी नहीं होता और पूरी तरह से होश में भी नहीं रहता है.

👉पुलिस विभाग में एक कहावत है कि "पुलिस की मार के आगे, गूंगा भी बोलने लगता है", लेकिन यह कहावत कभी-कभी ठीक सिद्ध नहीं होती है. ऐसी परिस्थिति में पुलिस अन्य तरीकों का सहारा लेती है. इसी एक तरीके में शामिल है

💟👉नार्को टेस्ट क्या होता है? (What is Narco Test)

👉इस टेस्ट को अपराधी या आरोपी व्यक्ति से सच उगलवाने के लिए किया जाता है. इस टेस्ट को फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक आदि की मौजूदगी में किया जाता है.

👉नार्को टेस्ट (Narco Test) के अंतर्गत अपराधी को कुछ दवाइयां दी जाती है जिससे उसका सचेत दिमाग सुस्त अवस्था में चला जाता है और अर्थात व्यक्ति को लॉजिकल स्किल थोड़ी कम पड़ जाती है. कुछ अवस्थाओं में व्यक्ति अपराधी या आरोपी बेहोशी की अवस्था में भी पहुँच जाता है. जिसके कारण सच का पता नहीं चल पाता है.

👉यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि ऐसा नहीं है कि नार्को टेस्ट (Narco Test) में अपराधी/आरोपी हर बार सच बता देता है और केस सुलझ जाता है. कई बार अपराधी/आरोपी ज्यादा चालाक होता है और टेस्ट में भी जांच करने वाली टीम को चकमा दे देता है.

💟👉नार्को टेस्ट करने से पहले व्यक्ति का परीक्षण;

👉किसी भी अपराधी/आरोपी का नार्को टेस्ट करने से पहले उसका शारीरिक परीक्षण किया जाता है जिसमें यह चेक किया जाता है कि क्या व्यक्ति की हालात इस टेस्ट के लायक है या नहीं. यदि व्यक्ति; बीमार, अधिक उम्र या शारीरिक और दिमागी रूप से कमजोर होता है तो इस टेस्ट का परीक्षण नहीं किया जाता है.

👉व्यक्ति की सेहत, उम्र और जेंडर के आधार पर उसको नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती है. कई बार दवाई के अधिक डोज के कारण यह टेस्ट फ़ैल भी हो जाता है इसलिए इस टेस्ट को करने से पहले कई जरुरी सावधानियां बरतनी पड़तीं हैं.

👉कई केस में इस टेस्ट के दौरान दवाई के अधिक डोज के कारण व्यक्ति कोमा में जा सकता है या फिर उसकी मौत भी हो सकती है इस वजह से इस टेस्ट को काफी सोच विचार करने के बाद किया जाता है.

💟👉नार्को टेस्ट कैसे किया जाता है? (How is Narco Test Conducted)

👉इस टेस्ट में अपराधी या किसी व्यक्ति को "ट्रुथ ड्रग" नाम की एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है या फिर " सोडियम पेंटोथल या सोडियम अमाइटल" का इंजेक्शन लगाया जाता है.

👉इस दवा का असर होते ही व्यक्ति ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है. जहां व्यक्ति पूरी तरह से बेहोश भी नहीं होता और पूरी तरह से होश में भी नहीं रहता है. अर्थात व्यक्ति की तार्किक सामर्थ्य कमजोर कर दी जाती है जिसमें व्यक्ति बहुत ज्यादा और तेजी से नहीं बोल पाता है. इन दवाइयों के असर से कुछ समय के लिए व्यक्ति के सोचने समझने की छमता खत्म हो जाती है.

👉इस स्थिति में उस व्यक्ति से किसी केस से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. चूंकि इस टेस्ट को करने के लिये व्यक्ति के दिमाग की तार्किक रूप से या घुमा फिराकर सोचने की क्षमता ख़त्म हो जाती है इसलिए इस बात की संभावना बढ़ जाती कि इस अवस्था में व्यक्ति जो भी बोलेगा सच ही बोलेगा.

💟👉नार्को टेस्ट के लिए कानून: (Laws for the Narco Test)

👉वर्ष 2010 में K.G. बालाकृष्णन वाली 3 जजों की खंडपीठ ने कहा था कि जिस व्यक्ति का नार्को टेस्ट या पॉलीग्राफ टेस्ट लिया जाना है उसकी सहमती भी आवश्यक है. हालाँकि सीबीआई और अन्य एजेंसियों को किसी का नार्को टेस्ट लेने के लिए कोर्ट की अनुमति लेना भी जरूरी होता है.

👉ज्ञातव्य है कि झूठ बोलने के लिए ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल होता है जबकि सच बोलने के लिए कम दिमाग का इस्तेमाल होता है क्योंकि जो सच होता है वह आसानी से बिना ज्यादा दिमाग पर जोर दिए बाहर आता है लेकिन झूठ बोलने के लिए दिमाग को इस्तेमाल करते हुए घुमा फिरा के बात बनानी पड़ती है.

👉इस टेस्ट में व्यक्ति से सच ही नहीं उगलवाया जाता बल्कि उसके शरीर की प्रतिक्रिया भी देखी जाती है. कई केस में सिर्फ यहीं पता करना होता है कि व्यक्ति उस घटना से कोई सम्बन्ध है या नहीं. ऐसे केस में व्यक्ति को कंप्यूटर स्क्रीन के सामने लिटाया जाता है और उसे कंप्यूटर स्क्रीन पर विजुअल्स दिखाए जाते हैं.

👉पहले तो नार्मल विजुअल्स जैसे पेड़, पौधे, फूल और फल इत्यादि दिखाए जाते हैं. इसके बाद उसे उस केस से जुड़ी तस्वीर दिखाई जाती है फिर व्यक्ति की बॉडी को रिएक्शन चेक किया जाता है. ऐसी अवस्था में अगर दिमाग और शरीर कुछ अलग प्रतिक्रिया देता है तो इससे पता चल जाता है कि व्यक्ति उस घटना या केस से जुड़ा हुआ हैं.

👉यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि नार्को टेस्ट की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि किस तरह के सवाल पूछे जाते हैं? आपने देखा होगा कि "तलवार" मूवी में भी आरोपियों का नार्को टेस्ट किया जाता है और जब उस टेस्ट का क्रॉस एग्जामिनेशन होता है तो पाया जाता है कि टेस्ट में जिस तरह के प्रश्न पूछे गए थे वे 'पहले से तय रिजल्ट' के अनुसार ही पूछे गये थे.

👉इस प्रकार नार्को टेस्ट के बारे में यह कहा जा सकता है कि यह टेस्ट कई मुश्किल मामलों में पुलिस और सीबीआईको सुराख़ अवश्य देता है.

नील आर्मस्ट्रॉन्ग के अलावा ये हैं वो 11 एस्ट्रोनॉट्स जो चांद की धरती पर कदम रख चुके हैं ...

 नील आर्मस्ट्रॉन्ग के अलावा ये हैं वो 11 एस्ट्रोनॉट्स जो चांद की धरती पर कदम रख चुके हैं 



ISRO के चंद्रयान-2 मिशन ने चांद को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है. इसरो का ये मिशन चांद पर मानव को भेजने की ही कवायद है. इसरो ही नहीं, चांद पर कदम रखने के लिए दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां बेताब हैं. अमेरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान हैं. लेकिन उनके अलावा भी कई और एस्ट्रोनॉट चांद की ज़मीं पर चहलकदमी कर चुके हैं. आइए जानते हैं ऐसे ही अंतरिक्ष यात्रियों के बारे में…

1. नील आर्मस्ट्रॉन्ग
1969 में अमेरिका ने चांद पर अपोलो-11 यान भेजा था, जिसमें एस्ट्रोनॉट नील आर्मस्ट्रॉन्ग भी मौजूद थे. 20 जुलाई 1969 को वो चांद पर कदम रखने वाले दुनिया के पहले शख़्स बन गए थे.
2. बज एल्ड्रिन
अपोलो-11 में बज एल्ड्रिन भी मौजूद थे. नील आर्मस्ट्रांग के बाद चांद पर दूसरा कदम उन्होंने ही रखा था.
3. पेटे कॉनराड
चांद पर कदम रखने वाले तीसरे व्यक्ति हैं पेटे कॉनराड. अमेरिका ने नवंबर 1969 में जो अपोलो-12 मिशन भेजा, वो उसका हिस्सा थे.
4. एलन बीन
अपोलो-12 मिशन में एस्ट्रोनॉट एलन बीन भी शामिल थे. इस तरह वो भी चांद की सतह पर कदम रखने वाले शख़्स बन गए. उनका नंबर चौथा था.
5. एलन शेपर्ड
अमेरिका के अपोलो-14 मिशन का हिस्सा थे एलन शेपर्ड. उन्होंने फ़रवरी 1971 में मून पर कदम रखा था.
6. एडगर मिशेल
एलन शेपर्ड के साथ ही गए एडगर मिशेल को भी चांद की धरती पर चलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. ऐसा करने वाले मिशेल छठे शख़्स थे.
7. डेविड स्कॉट
अपोलो-15 मिशन पर एस्ट्रोनॉट डेविड स्कॉट 1971 में जुलाई-अगस्त में चांद पर गए थे. रिटायर होने के बाद उन्होंने बतौर लेखक ख़ूब नाम कमाया था.
8. जेम्स इरविन
चांद की धरती पर चलने वाले आठवें शख़्स थे जेम्स इरविन. वो एक एयफ़ोर्स पायलट थे, जो 1966 में एस्ट्रोनॉट बने थे.
9. जॉन यंग
मून पर कदम रखने वाले जॉन यंग 9वें व्यक्ति थे. वो 1972 में भेजे गए अपोलो-16 मिशन का हिस्सा थे.
10. चॉर्ल्स ड्यूक
अपोलो-16 के साथ गए चॉर्ल्स ड्यूक को भी चांद पर कदम रखने का मौका मिला था. ऐसा करने वाले वो 10वें इंसान बने.
11. हैरिसन श्मिट
अपोलो-17 के साथ चांद पर जाने वाले हैरिसन श्मिट 11वें व्यक्ति हैं, जिन्होंने चांद पर कदम रखा था.
12. यूजीन सेरनन
अपोलो-17 के साथ ही जाने वाले एस्ट्रोनॉट यूजीन सेरनन ने भी चांद पर कदम रखा था. वो आख़िरी बार इन्होंने ही मून पर चहलकदमी की थी.

Thursday, October 29, 2020

इंटरव्यू या साक्षात्कार में ध्यान देने योग्य बाते

Iटरव्यू या साक्षात्कार में ध्यान देने योग्य बाते... 


1. बिना पूछे इंटरव्यू या साक्षात्कार रूम में न घुसे.
2. अपने बायोडाटा या रिज्यूमे को विनम्र तरीके से इंटरव्यूर को दे.
3. इंटरव्यूर के सामने आपने आँख को नीचे न करे (नीचे की तरफ न देखे). आपका अच्छा Eye Contact होना चाहिए.
4. इंटरव्यूर के सामने घबराए नही. आराम से बैठे.
5. यदि इंटरव्यूर आपसे हाथ मिलता हैं तो अच्छी तरह मिलाये. ढीले तरीके से हाथ न मिलाए.
6. चमचमापन, भड़कीला दिखने वाला और बहुत ज्यादा आकर्षक दिखने वाला कपड़ा न पहने. साधारण और सिंपल कपड़े पहने जिसमे आप आरामदायक महसूस करते हैं.
7. इंटरव्यूर के सामने आराम से बैठे और आराम से बाते करे. कुर्सी पर बीच में आराम से बैठे.
8. अपने जीभ से अपने होटो को बार-बार न चाटें.
9. हाथ घड़ी को बार-बार न देखे.
10. मोबाइल को साइलेंट रखे या बंद करके रखे.
11. इंटरव्यूर के प्रश्नों के उत्तर कम-से-कम शब्दों में दे और उचित उत्तर दे.
12. प्रश्नों के उत्तर घुमा-फिरा कर न दे.
13. गलत उत्तर न दे.
14. विचार करके और तार्किक विचारों को पेश करें.
15. प्रश्न को अच्छी तरह सुने और उसके बाद समझे फिर उत्तर दे. उत्तर देने में जल्दबाजी न करे.
16. इंटरव्यू देने से पहले, अपने कम्युनिकेशन स्किल (Communication Skill) को बेहतर बनाए. शीशे के सामने अपने इंटरव्यू की जरूर तयारी करे. अपने आवाज को रिकॉर्ड करके भी देख सकते हैं कि जब आप उत्तर दे रहे हैं तो वह कितना प्रभावी हैं.
17. शिष्टता और आत्मविश्वास बनाए रखें.
18. इंटरव्यू में आप जिस विषय (Topics) पर बात कर रहे हैं उसे तथ्यों और वास्तविक जीवन के उदाहरण (Real-life Example) से जोड़ें.
19. इंटरव्यूर के द्वारा पूछा गया प्रश्न समझ में नही आया तो प्रश्न को विनम्रता पूर्वक दुबारा पूछे.
20. जिस भाषा में आपसे प्रश्न किया जाय, उसी भाषा में उत्तर देने की कोशिश करे. यदि आपकी उस भाषा पर अच्छी पकड़ नही हैं तो जिस भाषा को आप जानते हैं इंटरव्यूर से इजाजत लेकर उस भाषा में उत्तर दे सकते हैं. उदाहरण के लिए अधिकत्तर टेक्निकल प्रश्न इंग्लिश में पूछे जाते हैं परन्तु आप इंग्लिश में अच्छी तरह एक्सप्लेन (Explain) नही कर सकते तो, हिंदी का प्रयोग कर सकते हैं क्योकि यहाँ पर आपकी टेक्निकल स्किल्स (Technical Skills) को देखा जाता हैं. समय की अनुसार निर्णय ले.
21. यदि आप प्राइवेट जॉब इंटरव्यू (Private Job Interview) दे रहे हैं और फ्रेशर (Fresher) हैं तो इंटरव्यू के अंत में अपना फीडबैक (Feedback) जरूर ले. इसे विनम्रता पूर्वक पूछे. इससे आप अपने इंटरव्यू की कमियों के बारे में पता चलेगा.


यूपीएससी परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स की तैयारी कैसे करें... 


*जैसा कि हम जानते हैं कि आईएएस तैयारी के सभी तीन चरणों (प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा व साक्षात्कार या व्यक्तित्व परीक्षण) में वर्तमान मामलों की समझ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाल के वर्षों में आईएएस परीक्षा में वर्तमान मामलों का महत्व में वृद्धि हुई है, जिसमें आनुपातिक रूप से प्रश्नों के विश्लेषणात्मक रुझान के साथ-साथ कुछ विषय जैसे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था से जुड़ी घटनाओं आदि का विशेष महत्व भी बढ़ा है।*


*अब प्रश्न यह उठता है कि आईएएस परीक्षा के लिए वर्तमान मामलों को कैसे तैयार किया जाए?* यूपीएससी प्रिलिम्स के पाठ्यक्रम में काफी स्पष्ट रूप से *"राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की वर्तमान घटनाओं"* का उल्लेख है जिसे हम करेंट अफेयर्स या समसामयिकी के रूप में समझते हैं। आयोग ने परीक्षा में वर्तमान मामलों को बहुत ही कुशलता से शामिल किया है, लेकिन प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों के पाठ्यक्रम में इस भाग को परिभाषित नहीं किया गया है। एक उम्मीदवार को हर दिन यूपीएससी परीक्षा के स्तर के आधार पर समाचार पत्रों के माध्यम से महत्वपूर्ण वर्तमान मामलों से संबंधित सभी प्रमुख समाचारों को पढ़ना और उनसे नोट्स बनाने की कला का विकास करना चाहिये।
*Note*- *अगर आप समाचार पत्र को नहीं पढ़ते हैं तो कोई बात लेकिन आप उस दिन के वे तथ्य जो परीक्षा के दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं उसको जरूर पढें और अगर आप   समाचार पत्र पढ़ते भी हैं तो उसमें ध्यान रखें कि जो उसमें दिया है उसको पढ़ के उसके बारे में विस्तृत जानकरी रखें तभी पढ़ना सार्थक हो पायेगा।।*

*समाचार पत्र पढ़ने से पहले आपको पूरा विषय वस्तु ध्यान से पढ़ लें ताकि जो भी आप पढें उसको आप अपने विषय से जोड़ लें,,अगर आप न्यूज़पेपर नहीं पढ़ते हैं तो _हमारे ग्रुप_ में जो समाचार बताया जाता है उसको लिखें और उससे बहुत सारी जानकारियां इकट्ठा करें!!*


आईएएस परीक्षा में मौजूदा मामलों से पूछे जाने वाले प्रश्नों का कोई विशेष ट्रेंड नहीं है। यदि हम पिछले वर्ष के पेपर का अध्ययन करें तो हम यह समझ सकते हैं कि कई मौजूदा घटनाओं से कई प्रश्नों को सीधे-सीधे पूछा गया था। वर्तमान मामलों में विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल किया गया जाता है और ये प्रमुख विषयों जैसे कि भूगोल, नीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, पर्यावरण एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ ओवरलैप करते हैं। इस तरह से हम यह समझते हैं कि करेंट अफेयर्स की तैयारी के लिये किसी विशिष्ट विषय के तहत प्रश्नों को वर्गीकृत करना कठिन है।


*दैनिक समसामयिकी में कवर किये जाने वाले टापिक्स।*


सरकार के पहलुओं / नीतियों, भारत की नीतियां जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैं जैसे - पूर्व की ओर देखो नीति (Act East policy), अंतर्राष्ट्रीय संस्थान - अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council), अंतर्राष्ट्रीय समझौते - गैर-प्रसार संधि (एनपीटी), वासेनार व्यवस्था, स्टार्ट संधि, राइट्स इश्यू, सोशल सेक्टर की पहल (Social Sector Initiatives), सस्टेनेबल डेवलपमेंट (Sustainable Development) पर सरकार द्वारा उठाए गए अच्छे उपाय इत्यादि।

आप आसानी से *समाचार पत्रों के महत्व* को समझ सकते हैं। सभी स्थैतिक (Static Portion) भाग जैसे भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति, विज्ञान और तकनीक या पर्यावरण इत्यादि दैनिक समाचारों का एक नियमित हिस्सा है। इसके अलावा, यूपीएससी के प्रश्नों के उत्तर देने के लिये हमें समकालीन मुद्दों का स्थैतिक पहलू से संबंध तथा उसके विश्लेषण आदि की समझ में निपुणता प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। जब आप समकालीन विकास व घटनाओं से अवगत होते हैं, तो इसकी तैयारी मुश्किल नहीं होती है।


*आईएएस परीक्षा में वर्तमान मामलों का क्या महत्व है।

*सिविल सेवा परीक्षा में वर्तमान घटनाओं या सीधे उससे जुड़े प्रश्न पूछे जा सकते हैं। आप वर्तमान घटनाओं का उपयोग उदाहरणों के लिए कर सकते हैं जो आपके उत्तर में आपके द्वारा उठाए गए रुख को स्पष्ट कर सके।*

करेंट अफेयर्स का वर्गीकरण:

♦सरकारी योजनाएं और नीतियां
♦विज्ञान और तकनीक
♦भारत के अंतरिक्ष मिशन और रक्षा प्रणाली
♦अंतर्राष्ट्रीय संस्थान जैसे विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन, आईएमएफ, संयुक्त राष्ट्र आदि।
♦अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ
♦अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक और पर्यावरण संबंधी पहल
तथा वर्तमान राष्ट्रीय समाचार||

*यूपीएससी सिविल सेवाओं की परीक्षा में वर्तमान मामलों के लिए विषय-आधारित नोट तैयार करने और अध्ययन करने से संबंधित खबरों का अध्ययन करने के सुझावों के लिए नीचे दिये गये सुझाव व स्रोत पढ़ें:*

*भूगोल*: हिमशैल पिघल

ने, एल नीनो / ​​ला नीना (El Nino/La Nina) आदि पर अखबारों की रिपोर्ट।
*भारतीय सोसाइटी*: महिला मुद्दे, समाचारों में महिला संगठन, आबादी के मुद्दे, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, गरीबी के मुद्दों और योजनाएं वैश्वीकरण और महिलाओं, प्रवासियों आदि जैसे विशेष समूहों पर इसके प्रभाव।
*सामाजिक न्याय*: एनजीओ, संघ बजट, स्वास्थ्य और शिक्षा से शिक्षा के मुद्दों, खाद्य सुरक्षा मुद्दों आदि से कल्याण योजनाएं आदि।
*शासन*: योजना पत्रिका की रिपोर्ट व लेख।
*अंतरराष्ट्रीय मामले*: समाचार पत्र, समाचार वेबसाइटें।
*भारतीय अर्थव्यवस्था*: समाचार चैनलों, लोकसभा, राज्यसभा टीवी, आर्थिक सर्वेक्षण, संघ बजट, सरकार की पहल, कृषि, बुनियादी ढांचा, बिजली आदि में चर्चा।
*विज्ञान और तकनीकी*: द हिंदू अखबार व साइंस रिपोर्टर पत्रिका।
*आंतरिक सुरक्षा*: भारतीय सुरक्षा, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, उन्हें रोकने के लिए सरकार के उपाय, आदि।
*आचार विचार*: कॉर्पोरेट जासूसी, भ्रष्टाचार, आदि के उदाहरण।
*द हिंदू समाचार पत्र*: सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों के लिए तैयार करने के लिए द हिंदू अखबार सबसे अच्छे स्रोतों में से एक है तथा इसके संपादकीय और राय भाग में विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों के बारे में एक विस्तृत विवरण और विचार प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण संबंधी मुद्दों- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दे और नीतियां, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, आर्थिक विकास और नीतियां, विज्ञान और प्रौद्योगिकी इत्यादि। *इसका हर रोज़ वैज्ञानिक विकास खण्ड बहुत उपयोगी है।*

*द इंडियन एक्सप्रेस*: इसमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों प्रकाशित लेख अन्य अखबारों की तुलना में अच्छे माने जाते हैं। *इंटरनेशनल रिलेशन्स (IR)* के लिये कई महत्वपूर्ण जानकारियां इससे तैयार की जा सकती हैं।


*आपको यह सीखना चाहिए कि अख़बारों और अन्य स्रोतों से पढ़ी जाने वाली जानकारी को यूपीएससी पाठ्यक्रम से जोड़कर उत्तर कैसे बनाया जाए जो विश्लेषणात्मक दृष्टिकोणों से उपयुक्त हो। वर्तमान मामलों के लिए पाठ्यक्रम की संपूर्ण जानकारी होना महत्वपूर्ण है, ताकि जब आप स्रोतों के माध्यम से जानकारी के लिए अध्ययन करें तो आप तुरंत उस खबर को संबंधित विषय से जोड़ सकते हैं और अपने मौजूदा मामलों के फाइल में संबंधित समाचारों को संक्षेप में नोट सकते हैं।*

*वर्तमान मामलों के लिए स्रोतों की विस्तृत सूची*

♦द हिंदू अख़बार
♦फ्रंटलाइन पत्रिका
♦प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB)
♦योजना और कुरुक्षेत्र
♦लाइव मिंट न्यूज
♦अखिल भारतीय रेडियो समाचार चर्चा
♦मन की बात (प्रधान मंत्री द्वारा)
♦राज्य सभा और लोकसभा टीवी
♦सरकारी मंत्रालयों की वेबसाइट
♦इंडिया ईयर बुक
♦आर्थिक सर्वेक्षण
♦मैनोरमा ईयरबुक
♦मथुब्रूमी ईयरबुक
♦प्रतियोगिता दर्पण पत्रिका


A to Z Abbreviation for Engineering Study




A to Z Abbreviation for Engineering Study... Like Civil, Mechanical Or Electrical... By Raj sir... 


A - compressed air line or area

ABC - above ceiling

AC - air chamber, alternating current

A/C - air conditioning

AFF - above finished floor

AFG - above finished grade

AL - aluminum

AMB - ambient

AMP - ampere

ARR - arrangement

ATC - automatic temperature control, at ceiling

ATM - atmosphere

AUTO - automatic

AUX - auxiliary

AVG - average

BBD - boiler blowdown

BF - boiler feed

BHP - boiler horsepower, brake horsepower

BOD - bottom of duct

BOP - bottom of pipe

BOT - bottom

BP - back pressure

B & S - bell-and-spigot

BSMT - basement

BTU - British thermal unit

BV - butterfly valve

oC - degrees Celsius

C - condensate line

C to C - center to center

CA - compressed air

CAL - calorie

CAP - capacity

CD - condensate drain

CF - chemical feed, cubic foot

CFH - cubic feet per hour

CFM - cubic feet per minute

CI - cast iron

CIRC - circular

CL - center line

CM - centimetre

CM2 - square centimetre

CO - clean out

COL - column

CONC - concrete, concentric

CONN - connect, connection

CONT - continuation

CPVC - chlorinated polyvinyl chloride

CR - condenser return

CRW - chemical resistant waste

CS - condenser supply

CTR - center

CU - cubic

CU FT. - cubic feet

CU IN. - cubic inches

CV - check valve

CW - cold water

CWR - cold water riser

D - drain, deep

DB - dry bulb

DDC - direct digital control

DEG - degree

DELTAT - temperature difference

DET - detail

DIA - diameter

DISC - disconnect

DN - down

DP - dew point temperature

DR - drain

DWG - drawing

EA - exhaust air, each

EAT - entering temperature

EATR – Exhaust Air Transfer Ratio - to identify the amount of exhaust air transferred to inlet air in an energy recovery ventilator

E to C - end to center

EER - energy efficient ratio

EFF - efficiency

EJ - expansion joint

EL - elevation

ELB - elbow

ELEC - electrical

ENT - entering

ERV – Energy Recovery Ventilator

ESP - external static pressure

ET - expansion tank

EVAP - evaporator

EWT - entering water temperature

EXH - exhaust

EXP - expansion

EXST - existing

EXT - external

oF - degrees Fahrenheit

F - Fahrenheit

FC - flexible connector, flexible connection

FCO - floor clean out

FD - floor drain

FDW - feed water

FEC - fire extinguisher cabinet

FF - finish floor

FG - finish grade

FHC - fire hose cabinet

FLA - full load amps

FLR - floor

FM - flow meter

FO - fuel oil

FOV - flush out valve

FPM - feet per minute

FPS - feet per second

FS - flow switch, federal specs

FT - foot, feet

FTG - fitting

FU - fixture unit

FV - flush valve

G - gram, gas line

GA - gauge

GAL - gallons

GALV - galvanized

GL.V - globe valve

GND - ground

GPD - gallons per day

GPH - gallons per hour

GPM - gallons per minute

GPS - gallons per second

GR - grain

GV - gate valve

GWH - gas water heater

H2O - water

HB - hose bibb

HD - head

Hg - mercury

HGT - height

HMD - humidity

HORIZ - horizontal

HP - horsepower

HR - hour

HRV – Heat Recovery Ventilator

HTD - heated

HTR - heater

HW - hot water

HWH - hot water heater

HWR - hot water return, hot water riser

HWS - hot water supply

HWT - hot water tank

HZ - herts

ID - inside diameter

IN. - inch

INHg - inches of mercury

INSUL - insulation

INT - international

INTL - internal

IPS - iron pipe size

IV - indirect vent

IW - indirect waste

J - joule

K - kelvin

KG - kilogram

KM - kilometre

KM2 - square kilometre

KPA - kilo pascal

KS - kitchen sink

KW - kilowatt

L - length, liter

LAT - leaving air temperature

LB. - pound

LBF - pound-force

LIQ - liquid

LP - low pressure

LRA - locked rotor amps

LVL - level

LVR - louver

LWT - leaving water temperature

M - meter

M2 - square meter

M TYPE - lightest type of rigid copper pipe

MAN - manual

MAT - mixed air temperature

MAX - maximum

MBH - thousand British thermal units per hour

MFR - manufacturer

MG - milligram

MGD - millions gallons per day

MIN - minimum or minute

ML - milliliter

MM - millimetre

MM3 - cubic millimetre

MPT - male pipe thread

MTD - mounted

MU - make up

NA - not applicable

NC - normally closed

NEG - negative

NIC - not in contact

NO - normally open

NPHP - name plate horsepower

NPS - nominal pipe size

NPSH - net positive suction head

NTS - not to scale

O - oxygen

OA - outside air

OAT - outside temperature

OC - on center

OD - outside diameter

OED - open end duct

OF - overflow

OV - outlet velocity

OZ. - ounce

PA - pascal

PC - plumbing contractor

PCR - pumped condensate return

PD - pressure drop

PF - power factor

PG - pressure gauge

PL - plate

PNEU - pneumatic

PRESS - pressure

PROP - propeller

PRV - pressure reducing valve

PSI - pounds per square inch

PSIA - pound per square inch absolute

PSIG - pound per square inch gauge

PV - plug valve

QTY - quantity

RA - return air

RAD - radius

RAT - return air temperature

RD - roof drain

R/E - return and exhaust

RECOV - recovery

RED - reducer

REF - reference

RH - relative humidity

REQD - required

REV - revision

RL - refrigerant liquid

RLA - Rated Load Amperes

RM - room

RS - refrigerant suction

RTN - return

RV - relief valve

S - switch

SA - shock absorber, supply air

SAT - supply air temperature

SCH - schedule

SDT - saturated discharge temperature

SEC - seconds, secondary

SENS - sensible

SEP - separate

SEQ - sequence

SER - series

SERV - service

SF - service factor

SHT - sheet

SI - international systems of units

SOL - solenoid

SP - static pressure

SPEC - specification

SQ. - square

SQ.FT. - square feet

SS - stainless steel

SSH - static suction head

SST - saturated suction temperature

STD - standard

STH - static total head

STL - steel

SUCT - suction

SPLY - supply

SV - service

SVH - static velocity head

SW - service weight

SWS - service water

TD - temperature difference

TDH - total dynamic head

TEMP - temperature

TH - thermometer

THK - thick

TP - total pressure

TSP - total static pressure

UF - under floor

UH - unit heater

V - vent, volt, volume

VAC - vacuum

VAV - variable air volume

VB - vacuum breaker

VCI - vacuum cleaning inlet

VCL - vacuum cleaning line

VEL - velocity

VERT - vertical

VIB - vibration

VOL - volume

VSD - variable speed drive

VP - velocity pressure

VTR - vent thru roof

W - watt, width, wide

WB - wet bulb

WCO - wall clean out

WG - water gauge

WH - water heater


Pipe line Tricks... Abbreviation System, Pipe Contents... 


CHWR Chilled Water Return Green - White


CHWS Chilled Water Supply Green - White


CWR Condenser Water Return Green - White


CWS Condenser Water Supply Green - White


FOR Fuel Oil Return Yellow - Black


FOS Fuel Oil Supply Yellow - Black


HPC High Pressure Condensate Blue - White


HPS High Pressure Steam (above 125#) Blue - White


HWR Hot Water Heating Return Green - White


HWS Hot Water Heating Supply Green - White


LPC Low Pressure Condensate Blue - White


LPS Low Pressure Steam (below 25#) Blue - White


MPC Medium Pressure Condensate Blue - White


MPS Medium Pressure Steam


(above 25# - below 125#) Blue - White


PCR Pumped Condensate Return Blue - White


ACID Acid Waste Orange - Black


BR Brine Water Orange - Black


FIRE Fire Suppression Water Red - White


HAZ Hazardous Waste Orange - Black


DI or RO High Purity Water Green - White


DCW Potable Cold Water Green - White


DHW Potable Hot Water Supply Green - White


DHWR Potable Hot Water Return Green - White


NG Natural Gas Yellow - Black


LN2 Nitrogen (liquid) Black - White


Med Air Medical air Yellow - Black


CO2 Carbon dioxide Gray - White


He Helium Brown - White


N2 Nitrogen Black - White


N2O Nitrous oxide Blue - White


O2 Oxygen Green - White


WAGD Waste anesthetic gas disposal Violet - White


Lab Air Laboratory air Yellow and White checkerboard - Black


Lab Vac Laboratory vacuum White and Black checkerboard - Black boxed


IA Instrument air Red - White


CFHE Chemical Fume Hood Exhaust Purple - White


BCE Biosafety Cabinet Exhaust Purple - White


RE Radioisotope Exhaust Yellow - magenta

ETOE ETO Exhaust Purple - white

Shortcut Keys System

Shortcut Keys System


CTRL+A. . . . . . . . . . . . . . . . . Select All
CTRL+C. . . . . . . . . . . . . . . . . Copy
CTRL+X. . . . . . . . . . . . . . . . . Cut
CTRL+V. . . . . . . . . . . . . . . . . Paste
CTRL+Z. . . . . . . . . . . . . . . . . Undo
CTRL+B. . . . . . . . . . . . . . . . . Bold
CTRL+U. . . . . . . . . . . . . . . . . Underline
CTRL+I . . . . . . . . . . . . . . . . . Italic
F1 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Help
F2 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Rename selected object
F3 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Find all files
F4 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Opens file list drop-down in dialogs
F5 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Refresh current window
F6 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Shifts focus in Windows Explorer
F10 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Activates menu bar options
ALT+TAB . . . . . . . . . . . . . . . . Cycles between open applications
ALT+F4 . . . . . . . . . . . . . . . . . Quit program, close current window
ALT+F6 . . . . . . . . . . . . . . . . . Switch between current program windows
ALT+ENTER. . . . . . . . . . . . . . Opens properties dialog
ALT+SPACE . . . . . . . . . . . . . . System menu for current window
ALT+¢ . . . . . . . . . . . . . . . . . . opens drop-down lists in dialog boxes
BACKSPACE . . . . . . . . . . . . . Switch to parent folder
CTRL+ESC . . . . . . . . . . . . . . Opens Start menu
CTRL+ALT+DEL . . . . . . . . . . Opens task manager, reboots the computer
CTRL+TAB . . . . . . . . . . . . . . Move through property tabs
CTRL+SHIFT+DRAG . . . . . . . Create shortcut (also right-click, drag)
CTRL+DRAG . . . . . . . . . . . . . Copy File
ESC . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Cancel last function
SHIFT . . . . . . . . . . . . . . . . . . Press/hold SHIFT, insert CD-ROM to bypass auto-play
SHIFT+DRAG . . . . . . . . . . . . Move file
SHIFT+F10. . . . . . . . . . . . . . . Opens context menu (same as right-click)
SHIFT+DELETE . . . . . . . . . . . Full wipe delete (bypasses Recycle Bin)
ALT+underlined letter . . . . Opens the corresponding menu
PC Keyboard Shortcuts
Document Cursor Controls
HOME . . . . . . . . . . . . . . to beginning of line or far left of field or screen
END . . . . . . . . . . . . . . . . to end of line, or far right of field or screen
CTRL+HOME . . . . . . . . to the top
CTRL+END . . . . . . . . . . to the bottom
PAGE UP . . . . . . . . . . . . moves document or dialog box up one page
PAGE DOWN . . . . . . . . moves document or dialog down one page
ARROW KEYS . . . . . . . move focus in documents, dialogs, etc.
CTRL+ > . . . . . . . . . . . . next word
CTRL+SHIFT+ > . . . . . . selects word
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Numeric Keypad + . . . Expands current selection
Numeric Keypad – . . . Collapses current selection
¦ . . . . . . . . . . . . . . . . . . Expand current selection or go to first child
‰ . . . . . . . . . . . . . . . . . . Collapse current selection or go to parent
Special Characters
‘ Opening single quote . . . alt 0145
’ Closing single quote . . . . alt 0146
“ Opening double quote . . . alt 0147
“ Closing double quote. . . . alt 0148
– En dash. . . . . . . . . . . . . . . alt 0150
— Em dash . . . . . . . . . . . . . . alt 0151
… Ellipsis. . . . . . . . . . . . . . . . alt 0133
• Bullet . . . . . . . . . . . . . . . . alt 0149
® Registration Mark . . . . . . . alt 0174
© Copyright . . . . . . . . . . . . . alt 0169
™ Trademark . . . . . . . . . . . . alt 0153
° Degree symbol. . . . . . . . . alt 0176
¢ Cent sign . . . . . . . . . . . . . alt 0162
1⁄4 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . alt 0188
1⁄2 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . alt 0189
3⁄4 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . alt 0190
PC Keyboard Shortcuts
Creating unique images in a uniform world! Creating unique images in a uniform world!
é . . . . . . . . . . . . . . . alt 0233
É . . . . . . . . . . . . . . . alt 0201
ñ . . . . . . . . . . . . . . . alt 0241
÷ . . . . . . . . . . . . . . . alt 0247
File menu options in current program
Alt + E Edit options in current program
F1 Universal help (for all programs)
Ctrl + A Select all text
Ctrl + X Cut selected item
Shift + Del Cut selected item
Ctrl + C Copy selected item
Ctrl + Ins Copy selected item
Ctrl + V Paste
Shift + Ins Paste
Home Go to beginning of current line
Ctrl + Home Go to beginning of document
End Go to end of current line
Ctrl + End Go to end of document
Shift + Home Highlight from current position to beginning of line
Shift + End Highlight from current position to end of line
Ctrl + f Move one word to the left at a time
Ctrl + g Move one word to the right at a time
MICROSOFT® WINDOWS® SHORTCUT KEYS
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F4 Open the drive selection when browsing
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Ctrl + F4 Close window in program
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Holding Shift
During Bootup
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CD Player from playing
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WINKEY +
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WINKEY + U Open utility manager
WINKEY + L Lock the computer (Windows XP® & later)
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Ctrl + X Cut selected text
Ctrl + N Open new/blank document
Ctrl + O Open options
Ctrl + P Open the print window
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