Tuesday, June 2, 2020

UPSC क्रैक करना है

UPSC क्रैक करना है? तीन IAS ने दिए टिप्स... 
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आज जब कोरोना संकट के चलते पूरे देश में लॉकडाउन है. अभी इस बात का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है कि ये संकटकाल कब तक खत्म होगा. हमें सामान्य जीवन में लौटने में कितना समय लगेगा. ऐसे में यूपीएससी की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जो बिना कोचिंग के आईएएस परीक्षा में टॉप कर चुके हैं. बिना कोचिंग आईएएस बनने वालों से जानिए कुछ ऐसे ही टिप्स जो आपको लॉकडाउन के दौरान घर में पढ़ने की बेस्ट स्ट्रेटजी साबित हो सकते हैं... 

सिविल सर्विसेज फाइनल परीक्षा के नतीजे जारी कर दिए हैं. इस परीक्षा में जयपुर के रहने वाले कनिष्क कटारिया ने पहला स्थान हासिल किया है. यूपीएससी की इस अहम परीक्षा को पास करने से पहले कटारिया आईआईटी में पढ़ाई भी कर चुके हैं. कनिष्क के बारे में खास बात ये है कि उन्होंने बिना किसी कोचिंग के घर से रहकर तैयारी की.

कनिष्क कटारिया आईआईटी मुंबई से पढ़ाई करने के बाद दक्षिण कोरिया और बंगलुरु में नौकरी की. उसके बाद साल 2017 मार्च में वो जयपुर आए और सिविल सर्विसेज की परीक्षा में जुट गए. मैथ्स सब्जेक्ट से आईएएस करने वाले कनिष्क ने आईआईटी मुंबई से कंप्यूटर साइंस से पढ़ाई की थी.

शुरुआत में बेसिक आइडिया वगैरह समझने के लिए कन‍िष्क ने दिल्ली में आईएएस कोचिंग जॉइन की. फिर मार्च, 2018 से वो सेल्फ स्टडी करने लगे. कनिष्क का कहना है कि अगर आपको सिलेबस क्लियर हो तो आप घर से ही अच्छी तैयारी कर सकते हैं. आपके पढ़ने का समय निश्च‍ित होना चाहिए. कनिष्क खुद घर पर 8-10 घंटे का समय देते थे. फिर जैसे-जैसे मेंस का पेपर नज़दीक आने लगा, प्रेशर बढ़ने लगा. इसके बाद पढ़ने समय सीमा 14-15 घंटे प्रतिदिन कर दी थी.

IAS डॉ. अर्तिका शुक्ला की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. उन्होंने भी बिना कोचिंग ये परीक्षा पास की. बता दें कि MBBS की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने MD की पढ़ाई की तभी मन में आईएएस बनने का ख्याल आया और तैयारी शुरू कर दी. इसके लिए सोशल मीडिया से दूरी बनाई और एक साल में बिना कोचिंग यूपीएससी की परीक्षा क्रैक कर दी. आइए जानें, आईएएस आर्तिका की स्ट्रेटजी.

परीक्षा की तैयारी करने वालों को अर्तिका सलाह देती हैं कि प्रीलिम्स और मेन्स दोनों को दिमाग में रखकर तैयारी करनी चाहिए. रात में लिखने की प्रैक्टिस के साथ कुछ घंटे मेन्स के लिए साथ में देते रहें. उन्होंने बताया कि आईएएस बनने के लिए उन्होंने खुद को सोशल मीडिया से दूरी बना ली थी. वो इस दौरान फेसबुक भी इस्तेमाल नहीं करती थीं.

बिना कोचिंग के अर्तिका ने यूपीएससी परीक्षा में टॉप किया है. वो बताती हैं कि तैयारी के लिए कोचिंग से सैंपल पेपर लेकर हल करके भी तैयारी की जा सकती है. वो बताती हैं कि उन्होंने तीन दिन कोचिंग ज्वाइन की थी. ज्यादातर टॉपर मानते हैं कि आईएएस के लिए तैयारी स्कूल स्तर से ही शुरू हो जाती है. कुछ इसी तरह अर्तिका भी मानती हैं कि स्कूल के दिनों से अगर 10वीं स्तर से गणित, अंग्रेजी और जनरल स्टडी अच्छे से तैयार की जाए तो अभ्यर्थी इस परीक्षा के लिए तैयार हो जाते हैं.

बिना कोचिंग सिर्फ टेस्ट सीरीज की मदद से दिल्ली की लॉ स्टूडेंट सौम्या शर्मा का मुसीबतें पीछा नहीं छोड़ रही थीं. 16 की उम्र में उनकी सुनने की क्षमता चली गई थी. किसी तरह तैयारी करके जनरल कैटेगरी से फॉर्म भरा, एग्जाम के दिन ही उन्हें 102 डिग्री वायरल फीवर हो गया. लेकिन, फिर भी अपनी स्ट्रैटजी पर यकीन था, इसलिए परीक्षा नहीं छोड़ी. फिर पहले ही अटेंप्ट में वो नौवीं रैंक से UPSC टॉपर बन गईं. आइए जानें उनकी स्ट्रैटजी.

सौम्या कहती हैं कि यूपीएससी के लिए सेल्फ स्टडी से अच्छा कोई विकल्प नहीं है. अगर आपने मन में ठान लिया है कि आपको यूपीएससी निकालना है तो सिलेबस और स्टडी मैटे‍रियल अपने पास रख‍िए और पढ़ाई में जुट जाइए.

पढ़ती थीं ये दो न्यूजपेपर
सौम्या बताती हैं कि मैं सिलेबस से पढ़ाई के साथ घर पर हर दिन दो न्यूजपेपर पढ़ती थी. एक था द हिंदू और दूसरा इंडियन एक्सप्रेस जिससे मुझे मदद मिलती थी. इसके अलावा योजना मैगजीन और कुछ वेबसाइट की मदद से तैयारी की. मेन्स के लिए जरूरी है कि आप आंसर राइटिंग में परफेक्ट हों. मैंने कोचिंग नहीं ली, टेस्ट सीरीज की मदद से मैंने इसकी तैयारी की. इसमें मैंने सही समय पर सभी सवालों के सटीक जवाब देने की प्रैक्टिस...

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IAS Toppers की IAS Prelims की रणनीति
IAS Toppers की रणनीति को IAS उम्मीदवार अक्सर IAS Exam पास करने की प्रभावी मूल योजना के रुप में देखते हैं। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा सुझाई गयी किताबो अथवा अन्य अध्ययन सामग्रियों पर ध्यान देना चाहिए। यहां हम IAS Toppers द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।
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IAS Toppers को अक्सर हमारे देश के मेहनती छात्रों के लिए रोल मॉडल के रूप में माना जाता है। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा पढ़ी गयीं पुस्तकों, उनके द्वारा उपयोग में लाये गए विभीन्न स्रोतों और अध्ययन सामग्री के बारे में जानना चाहिए एवं उन्हें उपयोग में लाना चाहिए.

IAS Toppers की प्रभावी रणनीति का अनुसरण भी उनकी सफलता में योगदान दे सकता है। यहां हम IAS Toppers जैसे जसमीत सिंह संधू, इरा सिंघल, नितिन संगवान इत्यादि द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।

जसमीत सिंह संधू सीएसई परीक्षा 2015 में 3rd रैंक धारक हैं। जसमीत सिंह संधू IIT Roorkee के एक इंजीनियर हैं और वर्तमान में एक IRS अधिकारी हैं और सहायक आयुक्त के रूप में तैनात हैं। उन्होंने अपने IAS के चौथे प्रयास में रैंक 3 हासिल किया है, लेकिन वह सिविल सेवा परीक्षा में लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं।

IAS Prelims की अपनी रणनीति के बारे में वे कहते हैं कि IAS परीक्षा के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण होना बहुत महत्वपूर्ण है और इसलिए उम्मीदवारों को IAS Prelims, IAS मुख्य परीक्षा और IAS साक्षात्कार के लिए एकीकृत एवं व्यापक तैयारी करनी चाहिए। 

सिद्धार्थ जैन (RANK 13, सीएसई-2015)

सिद्धार्थ जैन IIT Roorkee से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने 2015 में सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में 13वी रैंक हासिल की है और आशा व्यक्त की कि वह कई उम्मीदवारों को इसे उत्तीर्ण करने के लिए प्रेरित करे।

IAS Prelims की तैयारी के बारे में वह सुझाव देते हैं कि उम्मीदवारों को अपनी सोचने की शैली में सुधार करना चाहिए तथा उन बातों को भी समझना चाहिए जो सीधे सीधे नही कही गयीं हो यानि जिनका अर्थ निहित हो. IAS Prelims में कई प्रश्नों को केवल विकल्पों के माध्यम से हल किया जा सकता है जिसका अभ्यास करना बहुत आवश्यक है। उस सहज कौशल को सुधारने के लिए, IAS उम्मीदवारों को बहुत सारे mock test देने चाहिए। इसके अलावा, IAS उम्मीदवारों को बुनियादी अध्ययन सामग्री जैसे NCERT और बुनियादी पुस्तकों को अच्छी तरह पड़ना चाहिए।

सिविल सेवा
IAS Toppers की IAS Prelims की रणनीति
IAS Toppers की रणनीति को IAS उम्मीदवार अक्सर IAS Exam पास करने की प्रभावी मूल योजना के रुप में देखते हैं। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा सुझाई गयी किताबो अथवा अन्य अध्ययन सामग्रियों पर ध्यान देना चाहिए। यहां हम IAS Toppers द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।

 Toppers को अक्सर हमारे देश के मेहनती छात्रों के लिए रोल मॉडल के रूप में माना जाता है। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा पढ़ी गयीं पुस्तकों, उनके द्वारा उपयोग में लाये गए विभीन्न स्रोतों और अध्ययन सामग्री के बारे में जानना चाहिए एवं उन्हें उपयोग में लाना चाहिए.

IAS Toppers की प्रभावी रणनीति का अनुसरण भी उनकी सफलता में योगदान दे सकता है। यहां हम IAS Toppers जैसे जसमीत सिंह संधू, इरा सिंघल, नितिन संगवान इत्यादि द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।

Jasmeet singh IASजसमीत सिंह संधू (RANK 3, सीएसई -2015)

जसमीत सिंह संधू सीएसई परीक्षा 2015 में 3rd रैंक धारक हैं। जसमीत सिंह संधू IIT Roorkee के एक इंजीनियर हैं और वर्तमान में एक IRS अधिकारी हैं और सहायक आयुक्त के रूप में तैनात हैं। उन्होंने अपने IAS के चौथे प्रयास में रैंक 3 हासिल किया है, लेकिन वह सिविल सेवा परीक्षा में लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं।

IAS Prelims की अपनी रणनीति के बारे में वे कहते हैं कि IAS परीक्षा के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण होना बहुत महत्वपूर्ण है और इसलिए उम्मीदवारों को IAS Prelims, IAS मुख्य परीक्षा और IAS साक्षात्कार के लिए एकीकृत एवं व्यापक तैयारी करनी चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

UPSC Rank 3 Jasmeet Singh Sandhu's Prelims Strategy

IAS Tips by Siddharth Jainसिद्धार्थ जैन (RANK 13, सीएसई-2015)

सिद्धार्थ जैन IIT Roorkee से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने 2015 में सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में 13वी रैंक हासिल की है और आशा व्यक्त की कि वह कई उम्मीदवारों को इसे उत्तीर्ण करने के लिए प्रेरित करे।

IAS Prelims की तैयारी के बारे में वह सुझाव देते हैं कि उम्मीदवारों को अपनी सोचने की शैली में सुधार करना चाहिए तथा उन बातों को भी समझना चाहिए जो सीधे सीधे नही कही गयीं हो यानि जिनका अर्थ निहित हो. IAS Prelims में कई प्रश्नों को केवल विकल्पों के माध्यम से हल किया जा सकता है जिसका अभ्यास करना बहुत आवश्यक है। उस सहज कौशल को सुधारने के लिए, IAS उम्मीदवारों को बहुत सारे mock test देने चाहिए। इसके अलावा, IAS उम्मीदवारों को बुनियादी अध्ययन सामग्री जैसे NCERT और बुनियादी पुस्तकों को अच्छी तरह पड़ना चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

IAS Topper 2015 Siddharth Jain Shares IAS Prelims Strategy

Nitin Sangwan IASनितिन सांगवान (RANK 28, सीएसई - 2015)

नितिन संगवान सीएसई परीक्षा 2015 में 28वीं रैंक धारक हैं। नितिन संगवान ने चाकरी दादरी हरियाणा से अपनी पढ़ाई की थी। उन्होंने IIT MADRAS से MBA किया था और इससे पहले, उन्होंने हरियाणा के इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है। IAS Exam देने के समय वह 27 साल की आयु को पार कर चुके थे और IAS परीक्षा की तैयारी करने के समय वो इन्फोसिस में काम कर रहे थे।

IAS Prelims की तैयारी के बारे में वे कहते हैं, IAS Prelims के लिए विशेष रूप से कोचिंग लेना, IAS Prelims परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा, एक समर्पित IAS उम्मीदवार ऑनलाइन स्रोतों से मार्गदर्शन लेकर और UPSC द्वारा दिए गए Syllabus का विश्लेषण करके परीक्षा को उत्तीर्ण कर सकता है। वह बताते है कि IAS Prelims में विषय विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है और इसलिए सभी विषयों को तैयार किया जाना चाहिए। 

इरा सिंघल (RANK 1, सीएसई -2014)

ईरा सिंघल की UPSC IAS परीक्षा 2014 में प्रथम रैंक है और उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए सभी बाधाओं को पार किया है। वह बताती है कि उम्मीदवारों को IAS की तैयारी का आनंद लेना चाहिए ताकि वे स्वयं पर दबाव न महसूस करें। इसके अलावा, उन्होंने उम्मीदवारों को सलाह दी कि वे किसी भी विषय के बारे में पूर्वानुमान न लगायें तथा पूरे IAS syllabus पर ध्यान दे ताकि परीक्षा में वोआश्चर्यचकित न हो।

सिविल सेवा
IAS Toppers की IAS Prelims की रणनीति
IAS Toppers की रणनीति को IAS उम्मीदवार अक्सर IAS Exam पास करने की प्रभावी मूल योजना के रुप में देखते हैं। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा सुझाई गयी किताबो अथवा अन्य अध्ययन सामग्रियों पर ध्यान देना चाहिए। यहां हम IAS Toppers द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।

 Toppers को अक्सर हमारे देश के मेहनती छात्रों के लिए रोल मॉडल के रूप में माना जाता है। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा पढ़ी गयीं पुस्तकों, उनके द्वारा उपयोग में लाये गए विभीन्न स्रोतों और अध्ययन सामग्री के बारे में जानना चाहिए एवं उन्हें उपयोग में लाना चाहिए.

IAS Toppers की प्रभावी रणनीति का अनुसरण भी उनकी सफलता में योगदान दे सकता है। यहां हम IAS Toppers जैसे जसमीत सिंह संधू, इरा सिंघल, नितिन संगवान इत्यादि द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।

Jasmeet singh IASजसमीत सिंह संधू (RANK 3, सीएसई -2015)

जसमीत सिंह संधू सीएसई परीक्षा 2015 में 3rd रैंक धारक हैं। जसमीत सिंह संधू IIT Roorkee के एक इंजीनियर हैं और वर्तमान में एक IRS अधिकारी हैं और सहायक आयुक्त के रूप में तैनात हैं। उन्होंने अपने IAS के चौथे प्रयास में रैंक 3 हासिल किया है, लेकिन वह सिविल सेवा परीक्षा में लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं।

IAS Prelims की अपनी रणनीति के बारे में वे कहते हैं कि IAS परीक्षा के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण होना बहुत महत्वपूर्ण है और इसलिए उम्मीदवारों को IAS Prelims, IAS मुख्य परीक्षा और IAS साक्षात्कार के लिए एकीकृत एवं व्यापक तैयारी करनी चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

UPSC Rank 3 Jasmeet Singh Sandhu's Prelims Strategy

IAS Tips by Siddharth Jainसिद्धार्थ जैन (RANK 13, सीएसई-2015)

सिद्धार्थ जैन IIT Roorkee से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने 2015 में सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में 13वी रैंक हासिल की है और आशा व्यक्त की कि वह कई उम्मीदवारों को इसे उत्तीर्ण करने के लिए प्रेरित करे।

IAS Prelims की तैयारी के बारे में वह सुझाव देते हैं कि उम्मीदवारों को अपनी सोचने की शैली में सुधार करना चाहिए तथा उन बातों को भी समझना चाहिए जो सीधे सीधे नही कही गयीं हो यानि जिनका अर्थ निहित हो. IAS Prelims में कई प्रश्नों को केवल विकल्पों के माध्यम से हल किया जा सकता है जिसका अभ्यास करना बहुत आवश्यक है। उस सहज कौशल को सुधारने के लिए, IAS उम्मीदवारों को बहुत सारे mock test देने चाहिए। इसके अलावा, IAS उम्मीदवारों को बुनियादी अध्ययन सामग्री जैसे NCERT और बुनियादी पुस्तकों को अच्छी तरह पड़ना चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

IAS Topper 2015 Siddharth Jain Shares IAS Prelims Strategy

Nitin Sangwan IASनितिन सांगवान (RANK 28, सीएसई - 2015)

नितिन संगवान सीएसई परीक्षा 2015 में 28वीं रैंक धारक हैं। नितिन संगवान ने चाकरी दादरी हरियाणा से अपनी पढ़ाई की थी। उन्होंने IIT MADRAS से MBA किया था और इससे पहले, उन्होंने हरियाणा के इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है। IAS Exam देने के समय वह 27 साल की आयु को पार कर चुके थे और IAS परीक्षा की तैयारी करने के समय वो इन्फोसिस में काम कर रहे थे।

IAS Prelims की तैयारी के बारे में वे कहते हैं, IAS Prelims के लिए विशेष रूप से कोचिंग लेना, IAS Prelims परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा, एक समर्पित IAS उम्मीदवार ऑनलाइन स्रोतों से मार्गदर्शन लेकर और UPSC द्वारा दिए गए Syllabus का विश्लेषण करके परीक्षा को उत्तीर्ण कर सकता है। वह बताते है कि IAS Prelims में विषय विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है और इसलिए सभी विषयों को तैयार किया जाना चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

Nitin Sangwan's Tips and Strategies for IAS Prelims

Ira Singhal IASइरा सिंघल (RANK 1, सीएसई -2014)

ईरा सिंघल की UPSC IAS परीक्षा 2014 में प्रथम रैंक है और उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए सभी बाधाओं को पार किया है। वह बताती है कि उम्मीदवारों को IAS की तैयारी का आनंद लेना चाहिए ताकि वे स्वयं पर दबाव न महसूस करें। इसके अलावा, उन्होंने उम्मीदवारों को सलाह दी कि वे किसी भी विषय के बारे में पूर्वानुमान न लगायें तथा पूरे IAS syllabus पर ध्यान दे ताकि परीक्षा में वोआश्चर्यचकित न हो। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

Ira Singhal's Tips and Strategies for IAS Prelims

NISHANT JAIN IASनिशांत जैन (RANK 13, सीएसई -2014)

निशांत जैन की UPSC सीएसई IAS परीक्षा 2014 में 13वीं रैंक है। उन्होंने संसद में हिंदी सहायक के रूप में काम किया है और उनका मानना है कि जीवन में धीरे धीरे ही प्रगति होती है। उनके अनुसार, CSAT पेपर के क्वालीफाइंग किये जाने के बाद से सामान्य अध्यन का महत्व बहुत बढ़ गया है। IAS की तैयारी में उन्होंने कला और संस्कृति के टॉपिक्स और पर्यावरण के महत्वपूर्ण अंशों को ज्यादा महत्व दिया। अन्त में, उन्होंने कई mock test पेपर्स से अभ्यास किया। 

सिविल सेवा
IAS Toppers की IAS Prelims की रणनीति
IAS Toppers की रणनीति को IAS उम्मीदवार अक्सर IAS Exam पास करने की प्रभावी मूल योजना के रुप में देखते हैं। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा सुझाई गयी किताबो अथवा अन्य अध्ययन सामग्रियों पर ध्यान देना चाहिए। यहां हम IAS Toppers द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।

 Toppers को अक्सर हमारे देश के मेहनती छात्रों के लिए रोल मॉडल के रूप में माना जाता है। IAS उम्मीदवारों को IAS Toppers द्वारा पढ़ी गयीं पुस्तकों, उनके द्वारा उपयोग में लाये गए विभीन्न स्रोतों और अध्ययन सामग्री के बारे में जानना चाहिए एवं उन्हें उपयोग में लाना चाहिए.

IAS Toppers की प्रभावी रणनीति का अनुसरण भी उनकी सफलता में योगदान दे सकता है। यहां हम IAS Toppers जैसे जसमीत सिंह संधू, इरा सिंघल, नितिन संगवान इत्यादि द्वारा अपनाई गयी IAS Prelims Exam की रणनीति प्रस्तुत कर रहे हैं।

Jasmeet singh IASजसमीत सिंह संधू (RANK 3, सीएसई -2015)

जसमीत सिंह संधू सीएसई परीक्षा 2015 में 3rd रैंक धारक हैं। जसमीत सिंह संधू IIT Roorkee के एक इंजीनियर हैं और वर्तमान में एक IRS अधिकारी हैं और सहायक आयुक्त के रूप में तैनात हैं। उन्होंने अपने IAS के चौथे प्रयास में रैंक 3 हासिल किया है, लेकिन वह सिविल सेवा परीक्षा में लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं।

IAS Prelims की अपनी रणनीति के बारे में वे कहते हैं कि IAS परीक्षा के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण होना बहुत महत्वपूर्ण है और इसलिए उम्मीदवारों को IAS Prelims, IAS मुख्य परीक्षा और IAS साक्षात्कार के लिए एकीकृत एवं व्यापक तैयारी करनी चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

UPSC Rank 3 Jasmeet Singh Sandhu's Prelims Strategy

IAS Tips by Siddharth Jainसिद्धार्थ जैन (RANK 13, सीएसई-2015)

सिद्धार्थ जैन IIT Roorkee से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने 2015 में सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की है। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में 13वी रैंक हासिल की है और आशा व्यक्त की कि वह कई उम्मीदवारों को इसे उत्तीर्ण करने के लिए प्रेरित करे।

IAS Prelims की तैयारी के बारे में वह सुझाव देते हैं कि उम्मीदवारों को अपनी सोचने की शैली में सुधार करना चाहिए तथा उन बातों को भी समझना चाहिए जो सीधे सीधे नही कही गयीं हो यानि जिनका अर्थ निहित हो. IAS Prelims में कई प्रश्नों को केवल विकल्पों के माध्यम से हल किया जा सकता है जिसका अभ्यास करना बहुत आवश्यक है। उस सहज कौशल को सुधारने के लिए, IAS उम्मीदवारों को बहुत सारे mock test देने चाहिए। इसके अलावा, IAS उम्मीदवारों को बुनियादी अध्ययन सामग्री जैसे NCERT और बुनियादी पुस्तकों को अच्छी तरह पड़ना चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

IAS Topper 2015 Siddharth Jain Shares IAS Prelims Strategy

Nitin Sangwan IASनितिन सांगवान (RANK 28, सीएसई - 2015)

नितिन संगवान सीएसई परीक्षा 2015 में 28वीं रैंक धारक हैं। नितिन संगवान ने चाकरी दादरी हरियाणा से अपनी पढ़ाई की थी। उन्होंने IIT MADRAS से MBA किया था और इससे पहले, उन्होंने हरियाणा के इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है। IAS Exam देने के समय वह 27 साल की आयु को पार कर चुके थे और IAS परीक्षा की तैयारी करने के समय वो इन्फोसिस में काम कर रहे थे।

IAS Prelims की तैयारी के बारे में वे कहते हैं, IAS Prelims के लिए विशेष रूप से कोचिंग लेना, IAS Prelims परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा, एक समर्पित IAS उम्मीदवार ऑनलाइन स्रोतों से मार्गदर्शन लेकर और UPSC द्वारा दिए गए Syllabus का विश्लेषण करके परीक्षा को उत्तीर्ण कर सकता है। वह बताते है कि IAS Prelims में विषय विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है और इसलिए सभी विषयों को तैयार किया जाना चाहिए। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

Nitin Sangwan's Tips and Strategies for IAS Prelims

Ira Singhal IASइरा सिंघल (RANK 1, सीएसई -2014)

ईरा सिंघल की UPSC IAS परीक्षा 2014 में प्रथम रैंक है और उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए सभी बाधाओं को पार किया है। वह बताती है कि उम्मीदवारों को IAS की तैयारी का आनंद लेना चाहिए ताकि वे स्वयं पर दबाव न महसूस करें। इसके अलावा, उन्होंने उम्मीदवारों को सलाह दी कि वे किसी भी विषय के बारे में पूर्वानुमान न लगायें तथा पूरे IAS syllabus पर ध्यान दे ताकि परीक्षा में वोआश्चर्यचकित न हो। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

Ira Singhal's Tips and Strategies for IAS Prelims

NISHANT JAIN IASनिशांत जैन (RANK 13, सीएसई -2014)

निशांत जैन की UPSC सीएसई IAS परीक्षा 2014 में 13वीं रैंक है। उन्होंने संसद में हिंदी सहायक के रूप में काम किया है और उनका मानना है कि जीवन में धीरे धीरे ही प्रगति होती है। उनके अनुसार, CSAT पेपर के क्वालीफाइंग किये जाने के बाद से सामान्य अध्यन का महत्व बहुत बढ़ गया है। IAS की तैयारी में उन्होंने कला और संस्कृति के टॉपिक्स और पर्यावरण के महत्वपूर्ण अंशों को ज्यादा महत्व दिया। अन्त में, उन्होंने कई mock test पेपर्स से अभ्यास किया। अधिक जानने के लिए देखें विडियो..

Nishant Jain's Tips and Strategies for IAS Prelims

ANANYA MITTAL IASअनन्य मित्तल (RANK 85, सीएसई -2014)

अनन्य मित्तल ने अपनी प्रथम प्रयास में IAS परीक्षा 2014 में सफलता प्रोप्त की और 85वां रैंक हासिल की। उन्होंने अपने अनुभव और रणनीतियों को साझा किया है जो IAS Prelims की परीक्षा के लिए तैयारी के दौरान उम्मीदवारों के लिये सहायक होगा। उनका कहना है कि कम से कम एक साल पहले ही IAS की तैयारी शुरू कर देना चाहिए, ताकि पुर्नावृत्ति के लिए समय शेष हो। उन्होंने पूरे साल IAS Prelims के लिए तैयारी की थी लेकिन अंत के 3 महीने केन्द्रित रूप से IAS Prelims के Syllabus को तैयार किया था।

IAS Prelims के लिए, सामान्य अध्ययन की कुछ मानक किताबें जैसे भारतीय राजव्यवस्था के लिए लक्ष्मीकांत, आधुनिक इतिहास की स्पेक्ट्रम को पड़ना आवश्यक माना है और mock test से अभ्यास करने पर इन्होने भी जोर दिया है।

आदित्य रंजन (RANK 99, सीएसई -2014)

आदित्य रंजन एक कंप्यूटर इंजिनियर हैं, जो की एक एमएनसी में कार्यरत थे जब उन्होंने IAS परीक्षा 2014 में 99वां रैंक हासिल की । उनकी रणनीति पारंपरिक थी तथा उन्होंने IAS Prelims के Syllabus को बहुत अच्छी तरह से तैयार किया था। उनका मानना है कि पहले पारंपरिक टॉपिक्स पर पकड़ बनाओ, फिर करंट अफेयर्स की तैयारी करें क्योंकि  करंट अफेयर्स अधिक अप्रत्याशित होता है। CSAT के लिए उन्होंने इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि होने की वजह से ज्यादा प्रयास नहीं किया, लेकिन उन्होंने भी IAS Prelims परीक्षा के लगभग 10-12 mock test paper से अभ्यास किया था। 

रिशव गुप्ता (रैंक 37, सीएसई -2013)

रिशव गुप्ता ने IAS परीक्षा 2013 में 85वां रैंक हासिल किया। IAS Prelims के लिए उनकी रणनीति बहुत ही मूलभूत थी क्योंकि उन्होंने सभी विषयों के आधारभूत टॉपिक्स पर अधिक बल दिया। उनका मानना था कि IAS Prelims की तैयारी में IAS अभ्यर्थी को सभी विषयों की जानकारी होनी चाहिए।

निष्कर्ष

उपरोक्त सभी IAS Prelims की रणनीतियाँ अपने आप में बहुत ही विविध हैं और यह IAS अभ्यर्थियों को भ्रमित भी कर सकती हैं। इसलिए सभी अभ्यर्थि को अपनी कुशलताओं और कमियों को आंक कर ही इन रणनीतियों का अनुसरण करना चाहिए। इन सभी रणनीतियों का मूल एक ही सच्चाई है कि सफलता के लिए कोई शॉर्टकट नहीं है और सफल होने के लिए सभी को कठिन परिश्रम करना अनिवार्य है।

सभी उपरोक्त रणनीतियों का सारांश यह भी है कि सभी IAS उम्मीदवारों को दुनिया में घट रहीं सामाजिक आर्थिक घटनाओं पर विशेष ध्यान बनाये रखना चाहिए। इसके अलावा, IAS उम्मीदवारों को अर्थशास्त्र और राजनीति के मजबूत मौलिक सिद्धांतों को मौजूदा मुद्दों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना आना चाहिए... 


यूपीएससी परीक्षा पास करने के लिए क्या नहीं करना चाहिए.??
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1. ऑनलाइन फ़ोरम में समय बर्बाद करना , अप्रासंगिक मुद्दों पर बहस करना, जिनका आपकी UPSC तैयारी पर कोई असर नहीं है,

और अपने ज्ञान ’के साथ लोगों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। अधिकांश लोगों के लिए समय की कुल बर्बादी है।

2. दैनिक समाचार पत्र को पाठ्यपुस्तक की तरह पढ़ने की कोशिश करना,

यह सोचना कि हर जगह से सीधे प्रश्न पूछे जाएंगे। अधिकांश दिनों में, अखबार का केवल 20-30% (द हिंदू / इंडियन एक्सप्रेस) प्रासंगिक है - संपादकीय के कुछ जोड़े, कुछ राष्ट्रीय / अंतर्राष्ट्रीय समाचार, और अर्थव्यवस्था पृष्ठ से कुछ।

3. सिलेबस को ठीक से नहीं पढ़ना और पूरी किताबों को कवर से कवर करने की कोशिश करना।

4. कुछ विषयों में अतिउत्साह की ओर जाना , और कुछ में जागरूकता की कमी है। बहुत बड़ी गलती।

5. प्रत्येक दृष्टिकोण से टॉपर्स स्ट्रेटेजीज़ ’का पालन करने की कोशिश करना - वे कितने घंटे सोते हैं , वे क्या खाते हैं, वे कौन सी फिल्में देखते हैं, नोट लेने के लिए वे किस सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं, आदि एक विनाशकारी नीति है।

अंतिम मेरिट सूची में आने का एकमात्र तरीका 'विशिष्ट' होना है। 'सफल लोगों' की नकल करने की कोशिश करेंगे, तो आप निश्चित रूप से दौड़ से बाहर हो जाएंगे। बस उनकी रणनीतियों से संकेत लें, और अपनी तैयारी करें।

6. तकनीकी सामानों को महत्वहीन करने के लिए बहुत अधिक समय देना - क्या मुझे नोट लेने के लिए वन नोट या एवरनोट का उपयोग करना चाहिए?

क्या मुझे यह टेस्ट सीरीज लेनी चाहिए या वह?

क्या मुझे उस कोचिंग में भी शामिल होना चाहिए जो मेरा दोस्त भाग ले रहा है? कितने घंटे पढ़ाई करनी है?

7. पूरे पाठ्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किए बिना, कुछ विषयों / विषयों पर एक विद्वान बनने की कोशिश करते हुए, इंटरनेट पर बहुत अधिक समय बिताना।

8. प्रीलिम्स क्वालिफाई करने के बाद विस्तृत आवेदन पत्र (DAF) पूरा करने में तीन सप्ताह का समय बिताना,

Mains के लिए कड़ी मेहनत करने के बजाय।

9. आईएएस बनने पर किन योजनाओं और नीतियों को लागू करने का सपना देख रहे हैं,

अधिकारियों को किस तरह की कारें मिलती हैं, भविष्य में किस तरह का जीवनसाथी मिलता है।

इन मुद्दों पर समय बर्बाद करने के बजाय एक अच्छी फिल्म देखना बेहतर है |

10. अनावश्यक संख्या में किताबें खरीदना और अलमारी को भरना, और आपके आने-जाने वाले लोगों को प्रभावित करना।

बाद में, आपके द्वारा खरीदी गई पुस्तकों की संख्या से अभिभूत हो जाना और वास्तव में उनके साथ कुछ भी नहीं करना।

11. बहुत अधिक सामान पढ़ना, अप्रासंगिक जानकारी / तथ्यों / आंकड़ों के साथ अपने सिर को रटना और पर्याप्त उत्तर लिखने का अभ्यास न करना।

12. यह सोचकर समय बर्बाद करना कि क्या एक बार क्लीयर प्रिलिम्स या मेन्स को क्लियर किए बिना भी आपका प्रोफाइल इंटरव्यू में अच्छा लगेगा।


यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा के लिए कौन सी किताबें पढ़नी चाहिए.??
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UPSC की प्रारंभिक परीक्षा में दो प्रश्नपत्र होता है - ‘सामान्य अध्ययन’ और ‘सिविल सेवा बोधगम्यता परीक्षा(CSAT)’। छात्रों को मुख्य परीक्षा में बैठने के लिए प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करना जरुरी ही होता है। इसका अंक मेरिट लिस्ट में भले नहीं जुड़ता हो लेकिन अगली सीढ़ी तक आपको पहुँचाने में इसकी भूमिका सबसे अहम होगी।

◆सामान्य अध्ययन -

०NCERT की कक्षा 6–12 तक की पाठ्यपुस्तक।

०प्राचीन भारत का इतिहास - रामशरण शर्मा।

०स्पेक्ट्रम प्रकाशन की प्राचीन,मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास।

०भारतीय राजनीति - एम. लक्ष्मीकांत।

०भारत का संविधान - डी.डी. बसु।

०भारत का भूगोल - माजिद हुसैन।

०विश्व का भूगोल - माजिद हुसैन।

०भौतिक भूगोल - सविंद्र सिंह।

०भारतीय अर्थशास्त्र - रमेश सिंह।

०भारतीय अर्थशास्त्र - दत्त एवं सुंदरम।

◆सिविल सेवा बोधगम्यता परीक्षा (CSAT) -

०संख्यात्मक अभियोग्यता - अरुण शर्मा।

०संख्यात्मक अभियोग्यता - आर.एस. अग्रवाल।

०तर्कशक्ति - आर.एस. अग्रवाल।

अरिहंत प्रकाशन द्वारा CSAT पर प्रकाशित अन्य पुस्तकों का भी संभव हो तो हल करने का प्रयास करें।

◆समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं -

●किसी भी एक समाचारपत्र के राष्ट्रीय संस्करण का दैनिक रूप से अध्ययन करे। दैनिक जागरण,हिंदुस्तान,दैनिक भास्कर या नवभारत टाइम्स में से किसी एक को अपने जीवनशैली का हिस्सा बना लें।

अंग्रेजी माध्यम वाले छात्र द हिन्दू या इंडियन एक्सप्रेस का नियमित अध्ययन करें।

●प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित ‛योजना’ और ‛कुरुक्षेत्र’ पत्रिका तैयार के दौरान सरकारी रिपोर्ट तथा आंकड़ों के सन्दर्भ में विशेष लाभप्रद है। इसके साथ ही ‛विज्ञान प्रगति’, ‛साइंस रिपोर्टर’ तथा ‛डाउन टू अर्थ’ भी फायदेमंद है।

इन सब के साथ साथ अपने विचारों को सीमित न बनाएं रखे,क्योंकि UPSC बहुत ही जांच परख के साथ ही आपको अगले पड़ाव पहुँचने का सुअवसर देती है। इसलिए इसे हलके में न लेकर तन्मयता से लग जाए।

भारतीय सेना 10 सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन


भारतीय सेना 10 सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन: अवश्य पढें।
इन्हें पढकर सच्चे गर्व की अनुभूति होती है...


1.
" *मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन मैं वापस अवश्य आऊंगा।*"
- कैप्टन विक्रम बत्रा,
  परम वीर चक्र
2.
" *जो आपके लिए जीवनभर का असाधारण रोमांच है, वो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी है।* "
- लेह-लद्दाख राजमार्ग पर साइनबोर्ड (भारतीय सेना)
3.
" *यदि अपना शौर्य सिद्ध करने से पूर्व मेरी मृत्यु आ जाए तो ये मेरी कसम है कि मैं मृत्यु को ही मार डालूँगा।*"
- कैप्टन मनोज कुमार पाण्डे,
परम वीर चक्र, 1/11 गोरखा राइफल्स
4.
" *हमारा झण्डा इसलिए नहीं फहराता कि हवा चल रही होती है, ये हर उस जवान की आखिरी साँस से फहराता है जो इसकी रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देता है।*"
- भारतीय सेना
5.
" *हमें पाने के लिए आपको अवश्य ही अच्छा होना होगा, हमें पकडने के लिए आपको तीव्र होना होगा, किन्तु हमें जीतने के लिए आपको अवश्य ही बच्चा होना होगा।*"
- भारतीय सेना
6.
" *ईश्वर हमारे दुश्मनों पर दया करे, क्योंकि हम तो करेंगे नहीं।"*
- भारतीय सेना
7.
" *हमारा जीना हमारा संयोग है, हमारा प्यार हमारी पसंद है, हमारा मारना हमारा व्यवसाय है।*
- अॉफीसर्स ट्रेनिंग अकादमी, चेन्नई
8.
" *यदि कोई व्यक्ति कहे कि उसे मृत्यु का भय नहीं है तो वह या तो झूठ बोल रहा होगा या फिर वो इंडियन आर्मी का  ही होगा।*"
- फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ
9.
" *आतंकवादियों को माफ करना ईश्वर का काम है, लेकिन उनकी ईश्वर से मुलाकात करवाना हमारा काम है।*"
- भारतीय सेना
10.
" *इसका हमें अफसोस है कि अपने देश को देने के लिए हमारे पास केवल एक ही जीवन है।

IAS_MOTIVATION

IAS_MOTIVATION

1

मेरे सर कहा करते है कि ज्ञान की प्यास इतनी बढ़ाओ की बुझ ना पाये.............
किताबों से तब तक जुड़े रहो,, जब तक मंज़िल मिल जाए ......!!

इतिहास के लिये कक्षा नौ (9th) से लेकर कक्षा बारह (12th) तक की NCERT किताबें व स्पेक्ट्रम की "आधुनिक भारत का संक्षिप्त इतिहास" और बिपिन चंद्रा की "आजादी के बाद का भारत" पुस्तकें उपयोगी होंगी। ध्यान रहे कि नये सिलेबस में स्वतंत्रता के बाद के इतिहास के बारे में भी पूंछा जाता है तो यदि हो सके तो रामचंद्र गुहा की "भारत गांधी के बाद" का भी अध्ययन कर सकते हैं।

भूगोल के लिये भी कक्षा नौ (9th) से लेकर बारह (12th) तक की NCERT किताबें और यदि इसके बाद भी आवश्यकता पड़े तो महेश बर्णवाल या माजिद हुसैन की किताबों से अधययन किया जा सकता है।

राज्यव्यवस्था की तैयारी के लिये हम एम० लक्ष्मीकांत की "भारतीय राज्यव्यवस्था" और मेन्स एग्जाम के पेपर - 2 के लिये "भारतीय शासन" पढ़ सकते हैं जिसमें की अधिकार संबंधी मुद्दों को ध्यान से पढ़े।

अर्थव्यवस्था भाग के लिये रमेश सिंह अथवा लाल एंड लाल की किताब, कक्षा नौ (9th) से लेकर बारह (12th) तक की NCERT किताबें और भारत सरकार द्वारा प्रकाशित "आर्थिक सर्वेक्षण" कि और "बजट" इत्यादि से तैयारे कर सकते हैं।

Best of luck...

2

जीवन कठिन #रास्तों से भरा हुआ एक #कल्पना है..?? #जीवन के कठिन #रास्तों से अगर #हिम्मत करके चलते #जाओगे तो #अंत में लोगों से #लाख गुना #बेहतर पाओगे..!!✓✓
✍️ जो इस बात को समझ जाता है उसका जीवन बदल जाता है👇👇
👉 उन लोगों की सलाह #लेना बन्द कर दीजिए जो अपने #जीवन में #सफल और #असफल नहीं हुए हैं.. #क्योंकि अगर आप #सफल #व्यक्ति की #सलाह लेंगे तो वो #आपको वो बातें बताएगा जिसकी वजह से वो #सफल हुआ है और आप यदि #बहुत बार #असफल हुए व्यक्ति से #सलाह लेंगे तो वो आपको वो बातें बताएंगे जिसकी वजह से वो #असफल हुए था.. आप #सफल व्यक्ति की बताई #बातों को #अपनाएं और #असफल व्यक्ति ने जो #गलती की उसे #करने से बचें..  #लेकिन जिस व्यक्ति ने #अपने जीवन में कुछ भी #हासिल ना किया हो उसकी #सलाह कभी ना लें.. #क्योंकि कोई भी व्यक्ति आपको उतना ही सलाह देता है जितना उसके #पास दिमाग़ होता है... 

3
इसे पढ़े और इसपर अमल करें, बदलाव तय है..!!👇

✍️ लोगों की #ईर्षा आपकी सफलता को रोक नहीं सकती..। 

  अगर आप उनकी vibrations से डरते हैं...
अगर आप उनसे परेशान होते हैं...
तो आप उनकी vibrations मे उलझ जाते हैं, और तब उनकी वाइब्रेशन आपकी सोच पर असर करती है..।

       अपनी सोच में विश्वास और उनके प्रति सहानुभूति रखे, आपकी सोच आपकी सफलता और भाग्य बनाती है..!!

 ✍️"भगवान मेरा काम हो जाए..
बहुत मेहनत की है, पता नहीं क्या होगा...
पिछली बार भी ठीक नहीं हुआ था..."

यह #कमजोर संकल्प और बोल है..।

"मैं शक्तिशाली आत्मा हूं, मेरा हर #कर्म सही है,
परमात्मा का #ज्ञान और #दुआएं मेरे साथ हैं,
सफलता मेरे लिए #निश्चित है.."

    ध्यान से सोचो.. संकल्प से सिद्धि होती है✓✓

✍️ अगर हमारी भावना और #कर्म सही है,
तो कुछ भी साबित करने की जरूरत नहीं है..

  लोग क्या सोचते हैं, क्या बोलते हैं,
इस बात से कभी डरना नहीं ..।
वह अपने कर्म कर रहे हैं, हम अपने कर्म कर रहे हैं.।

सत्य को सिद्ध नहीं करना पड़ता
सत्य के पास खुद को #प्रतक्ष्य करने की ताकत है..!!

✍️ जीवन कठिन #रास्तों से भरा हुआ एक #कल्पना है..?? #जीवन के कठिन #रास्तों से अगर #हिम्मत करके चलते #जाओगे तो #अंत में लोगों से #लाख गुना #बेहतर पाओगे..!!✓✓
✍️ जो इस बात को समझ जाता है उसका जीवन बदल जाता है👇👇
👉 उन लोगों की सलाह #लेना बन्द कर दीजिए जो अपने #जीवन में #सफल और #असफल नहीं हुए हैं.. #क्योंकि अगर आप #सफल #व्यक्ति की #सलाह लेंगे तो वो #आपको वो बातें बताएगा जिसकी वजह से वो #सफल हुआ है और आप यदि #बहुत बार #असफल हुए व्यक्ति से #सलाह लेंगे तो वो आपको वो बातें बताएंगे जिसकी वजह से वो #असफल हुए था.. आप #सफल व्यक्ति की बताई #बातों को #अपनाएं और #असफल व्यक्ति ने जो #गलती की उसे #करने से बचें..  #लेकिन जिस व्यक्ति ने #अपने जीवन में कुछ भी #हासिल ना किया हो उसकी #सलाह कभी ना लें.. #क्योंकि कोई भी व्यक्ति आपको उतना ही सलाह देता है जितना उसके #पास दिमाग़ होता है..!!


4

✍️ #ज़िन्दगी में #संघर्ष करने से मत भागो.. ज़िन्दगी #संघर्ष से भरा हुआ है..!!  #हर मुश्किल का डत कर सामना करो क्योंकि 👇
👉 #संघर्षों के साए में; ये जीवन चलता रहता है, जो डरा नहीं, जो थका नहीं, #इतिहास उन्हीं का बनता है..!!✓✓

✍️ #दोस्तों, जीत और #हार #जिंदगी का विधान है और याद रखो की ज़िन्दगी में आप कितनी बार हरे ये कोई मायने नहीं रखता #क्योंकि आप #जीतने के लिए #पैदा हुए हैं

✍️ अगर आज आप  #मेहनत कर रहे हो तो आने वाले कल के बारे में मत सोचो. चलने दो #ज़िन्दगी को #सहजता के साथ, डरते क्यों हो कल से, कल भी #बदलेगा समय #के साथ..!!✓✓

✍️#मैं  Raj sir आपसे पहले भी कहता था और आज भी कह रहा हूं कि अपने #जीवन में हर दिन कुछ नया आजमाओ, क्योंकि 👉#सफल लोगों में एक बात समान होती है कि वह लोग थोड़े में कभी संतुष्ट नहीं होते, और हर रोज कुछ नया करने की #कोशिश में लगे रहते हैं... 
5
एक बार फिर से...


हमारे साथ केवल वही लोग रहे ,जिनके अंदर अंत
तक लड़ने का दम हो...बीच मे मैदान छोड़ भागने वालों
के लिए यहा कोई जगह नही है..बहुत लोग मेरे साथ आये और वापिस चले गए , जिन्हें वापिस
जाना है वो अपना रास्ता अलग कर ले.यहां सिर्फ योद्धाओं को जगह है जो या तो मर कर जीतते है या जीत कर.आलोचना किसकी नहीं होती,आलोचना करने वाले कुछ लोग तो सृष्टि के रचनाकार
तक की आलोचना करते है ..अगर आपकी कोई आलोचना करें तो सहज होकर मूल्यांकन
कीजिए ...अगर आप पर की गई
आलोचनात्मक टिप्पणी सकारात्मक हैं तो तहेदिल से
कमेन्ट को स्वीकार कीजिए तथा आलोचना को,आत्मसुधार के रूप में देखिए ..लेकिन कुछ लोग अगर नकारात्मक,आलोचना आपको आहत करने तथा आपका आत्मविश्वास कमजोर,करने के लिए कर रहे हैं,तो उन्हें आक्रामक होकर जबाव देने
के बजाय आप रक्षात्मक रवैया ही अपनाएँ तथा अपने व्यक्तित्व में इतना निखार लाइए कि हवाबाजी में,नकारात्मक आलोचना करने वाला व्यक्ति खुद एक दिन शर्मसार हो जाएं,आज जो आप,
कठिन परिश्रम से ,अपना शरीर जला रहे है न कल
आपके इसी राख़ से आपका सुनहरा भविष्य लिखा जाएगा
और आपके लिए एक महफ़िल जुटेगी और लोग तालियों
की बौछार से आपका अभिनन्दन करेंगे अतः आजको
अगर लोग आपको गाली भी दे दे तो आप दुखी मत होइए.....पूरी ताक़त लगा दो...!!!
आग लगा दो... तूफ़ान पैदा कर दो.🎯विजार्ड🇮🇳Adventurous Soul👈 *अंत मे जीतता वही है जो मरने के लिए तैयार है...

6

आज जब छात्र तैयारी की शुरुआत करता है तो उत्साह से भरा हुआ होता है और इसी कारण वह तैयारी की शुरुआत बड़ी तेजी से करता है* और निर्णय लेता है की प्रतिदिन 8 -10 घंटे पढ़ना है और इन घंटों में जाने कितने विषय समायोजित करता है ….वह तैयारी तो तेजी से शुरू करता है पर उसे निरंतर नहीं रख पाता दो या तीन दिन बाद ही उसका उत्साह कम हो जाता है और धीरे धीरे उसकी 8 घंटे की पढाई 6 फिर 5 फिर 4 फिर 2 और फिर 1 घंटे में बदल जाती है क्या इतनी बड़ी शुरुआत करना उचित है ? …

क्या आपका दिमाग पहले से 8 से 10 घंटे लगातार पढ़ने के लिए तैयार है ? शायद नहीं ….. दोस्तों ऐसा सभी के साथ होता है तो कृपया इसमें सुधार कीजिये और पहले दिन की शुरुआत छोटी कीजिये फिर रोज इसमें थोड़ा थोड़ा समय जोड़ते जाइये इस तरह आपकी आदत 8 से 10 घंटे पढ़ने की बन जाएगी और आपका उत्साह भी काम नहीं होगा ….पहले दिन 1 या 2 घंटे से शुरुआत कीजिये फिर 3 ,4 .5 .6 और फिर और आगे बढ़ाते जाइये !इस तरह के उदाहरण आप रोज अपने परिवेश में भी देखते हो ..एक कुशल धावक दौड़ में शुरू के समय धीमे ही दौड़ता है और फिर ज्यो ज्यो लक्ष्य पास आता जाता है अपनी स्पीड बढ़ाता जाता है …..

अरे आप सभी क्रिकेट के तो दीवाने ही होंगे न तो जरा सोचिये जब कोई नया बल्लेबाज क्रीज पर आता है तो क्या वह शुरू की पहली बॉल से छक्का और चौके शुरू कर देता है नहीं न पहले वह परिस्थिति को समझता है , खुद को उस माहौल में ढालता है और एक या दो बॉल धीमे ही खेलता है ….बस यही तो आपको भी करना चाहिए..दोस्तों और एक बात कई लोग एक दिन 8 घंटे पढ़ लेते हैं फिर दूसरे दिन किताब खोलते तक नहीं है कि हमने कल तो इतना सारा पढ़ लिया अब कल पढ़ लेंगे ….ऐसा बिल्कुल मत कीजिये आईएएस निरंतरता मांगता है ..भले ही आप एक दिन में 8 की जगह सिर्फ 4 घंटे ही पढ़ें पर इसे निरंतर बनाये रखें ! 

काम की अल्पता नहीं बल्कि अनियमितता इंसान की असफलता का कारण बनती है ! दोस्तों जिंदगी बहुत छोटी है और हमारे सपने बहुत बड़े तो जायज है हमे तेज चलना होगा …. कहते तो सभी हैं हमे करके दिखाना होगा हर दिन अपनी जिंदगी को एक नया ख्वाब दो , चाहे कोई लौटकर न आये पर आवाज दो , एक दिन पुरे हो ही जायेंगे सारे ख्वाब तुम्हारे , बस हर दिन उन ख्वाबों को एक छोटी शुरुआत तो दो ...

7

IAS मूड का बहाना ना बनाएँ ...

आप एक घने जंगल से होकर गुजर रहे है, अचानक शेर की दहाड़ सुनाई देती है। आप यह कहने का साहस जुटा सकते हो कि आज मूड नहीं है इसलिए नहीं दौडूगा।
आपको तैरना नहीं आता और आप पानी में डूब रहे हैं, 
तो आप यह कहने का साहस कर सकते है कि" बचाओ बचाओ " चिल्लाने का मूड नहीं है क्या आप बत्रा धाम घूमने के लिए मूड की इजाज़त लेते हो?

क्या आप शुक्रवार को हिट मूवी का first show देखने के लिए मूड का सहारा लेते हो? 
क्या आप अपनी गर्ल फ्रेंड से बात करने के लिए मूड का सहारा लेते हो नहीं ना तो फिर पढ़ाई में हर बार मूड की हेल्प क्यों? 
आप कोशिश कर देख लीजिए जब भी आप अपने मूड से पूछेंगे, तो कम से कम आधे दिन आपका मन कहेंगा पढ़ने का मन नहीं है, जो असफलता की नींव तैयार करने में मदद करेगा, इसलिए कभी जरूरी काम के लिए मूड की तबीयत ना पूछें।

मैंने कई छात्रों से सुना है ,मैं IAS बनना तो चाहता हूँ, पर पढ़ने में मन नहीं लगता क्या करूँ अगर आपने आईएएस बनने का संकल्प किया है तो इसका मतलब तो यह हुआ ना आपने सबसे कठिन कामों को करने का फैसला किया है।

दोस्तों जैसे मन्दिर में पूजा -पाठ करने के लिए पुजारी कभी मूड का सहारा नहीं लेते, शीत ऋतु में बर्फ जैसे ठंडे पानी में सूर्योदय से पहले नहाकर बैठ जाता है, वह यह काम साल के 365 दिन बिना मूड का सहारा लिए हर रोज़ करता है, उसी तरह आपको बिना बहाना बनाएँ अपने काम को लगन से हर रोज़ करना ही करना है।

इसलिए मित्रों जो काम जरूरी है, उसके लिए मूड का सवाल भी पैदा नहीं होता। मूड के आज से ही दास नहीं मालिक बन जाईये फिर देखिए आपकी मंसूरी की राह कितनी सुगम तथा आसान हो जाती हैं ...

8

कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास की जरूरत ... 

 अगर आप एक विद्यार्थी हैं तो मुझे यकीन है आप इस तस्वीर को जरूर पहचानते होंगे. यह पिछले वर्ष की टॉपर सृष्टि जयंत देशमुख है जिन्होंने अपने पहले ही प्रयास में अखिल भारतीय स्तर पर भारत के सबसे कठिन परीक्षा माने जाने वाली  सिविल सेवा परीक्षा में पांचवी रैंक हासिल की थी. अब जब साल भर से अधिक का वक्त एक आईएस के रूप में इन्होंने गुजार लिया है तो कहती है कि 1 सालों का यह सफर बहुत सुहाना रहा हालांकि जिंदगी में कुछ ज्यादा बदलाव आया नहीं है जिस रूप में तैयारी के दौरान बतौर सजग इंसान की तरह पढ़ाई करती थी उसी प्रकार अब जो भी जिम्मेवारी लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन द्वारा) दी गई मैं बखूबी उस काम को करती गई. ( फिलहाल ये LBSNAA में ट्रेनिंग कर रही है ) 

कहा जाता हैं सफलता आपको रातों-रात नहीं मिलती बड़ा परिश्रम, धैर्य और आत्मविश्वास का होना बहुत जरूरत है. सबसे अच्छी बात एक सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं छात्र के लिए यह होती है कि वह पहले से ही एक आईएएस की तरह एक आईपीएस की तरह एक आईएफएस की तरह अपने जीवन को ढाल लेता है. अपने आसपास की उन तमाम गतिविधियों को, तमाम कार्यों को एक अलग दृष्टिकोण से अपने शुरुआती दिनों से ही देखना प्रारंभ कर देता है! जो उसे दूसरे छात्रों से बेहद अलग बनाती है! वो कहते है कि जीवन में कठिनाइयां हर इंसान को आती है कई बार आपको लगेगा कि बस अब और नहीं अब नहीं झेल सकता अब नहीं हो पाएगा ! लेकिन ऐसे समय में ही आपको धैर्य का परिचय देना है और जिस लक्ष्य को लेकर आप जीवन में आगे बढ़ रहे हैं उस तक पहुंचने के लिए और तेज गति से आगे बढ़ना है... 


9

Success_Tips for Youth_inspiration

अगर आपने अपने लक्ष्य को पाना #है तो आपको धैर्य रखना आना #चाहिए। इस दुनिया में जितने भी #बड़े-बड़े महापुरुष हुए है उनमे यह #बात कॉमन थी। धैर्य उनके स्वभाव #में था।

अगर आपने अपने लक्ष्य को पाने में बहुत ही हार्ड वर्क किया हो पर अगर आपको वह सफलता नहीं मिलती है जो आप चाहते है तो ऐसे में आप हार मान सकते है।

यही समय होता है जब पेशेंस आपकी परीक्षा लेता है और तब आप उन हालातों को कैसे हैंडल कर पाते है। आपको खुद में धैर्य बनाये रखना होगा। अगर आप धैर्य नहीं रखेंगे तो आपने अब तक जितनी मेहनत की होगी वह सब खत्म हो जाएगी। अगर आपने कठिन समय में धैर्य बना लिया तो समझ ले की आपको जीतने से कोई नहीं रोक सकता।

अगर आपमें धैर्य नहीं है तो इसे आसानी से पाना मुमकिन नहीं है। आप अपने रोजाना जीवन में इसे अपना सकते है। उदाहरण- अगर आपको कभी अपने दोस्त का 30 मिनट इन्तजार करना पड़े तब आप कितनी देर तक उसका इन्तजार कर सकते है।

यह आपके धैर्य को आसानी से बता देगा। फिर इसे आप धीरे-धीरे इम्प्रूव कर सकते है। यही बात सफलता में भी लागू होती है। आपको धैर्य रखना आना ही चाहिए... आपको_सिविल_सेवा_परीक्षा_कोचिंग_की_आवश्यकता_कब_होती_है...


10

सिविल_सेवा...बुरी_मिशाल_न_बने_ज़िन्दगी...

*_कुछ लोग हैं जो लम्बे समय से तैयारी में लगे हैं. सुखद परिणाम नहीं आ रहा. मन में आता है, क्या करें, छोड़ दे ! कुछ और कर ले ! क्या करें !_*
*_तो एक प्रसंग है, छोटा सा भावुक सा....!!!!!_*
*_बहुत लम्बे संघर्ष के बाद एक मित्र का चयन IAS में हुआ था._*  *_और ऐसे समय हुआ था जब उन्हें लगने लगा था कि घर परिवार और उनके अब सारे संसाधन ख़तम होने की कगार पर हैं. चयन होने के बाद बहुत सारे कोचिंगवाले बुलाते हैं स्टूडेंट्स के साथ इंटरएक्सन के लिए. उन्हें भी एक ने बुलाया था._*
*_स्टूडेंट्स में से एक ने सवाल पूछा,'सर ! आप इतने लम्बे समय से तैयारी कर रहे हैं और अभी तक टिके रहे अपनी तमाम असफलताओं के बावजूद, तो सर वो कौन सी बात है जो आपको इतना दिन के बाद भी प्रेरित करती रही.'_*
*_थोडा रूककर दिया लेकिन जवाब बहुत भावुक सा था,'मैं एक ख़राब मिशाल नहीं बनना चाहता था. एक गाँव से आया था तैयारी करने. मेरे गाँव से कभी कोई  IAS नहीं बना था.... और मेरे गाँव_*
*_के साथ -साथ आसपास गाँव के लोग भी जानते थे कि मैं तैयारी करता हूँ. मैं सोचता था, अगर नहीं बना और लौट गया तो लोगों पर क्या असर होगा. मेरा तो जो होगा सो होगा लेकिन आगे जब भी कोई बच्चा जयपुर दिल्ली जाकर तैयारी करना चाहेगा, मना करने वाले मेरी मिशाल देंगे. नहीं हुआ लौट आया. तुम क्या जाओगे बहुत कठिन है.,B.ED, BTC कर लो ये कर लो वो कर लो तमाम बाते. तो मेरा जीवन एक बुरा उदहारण बन कर रह जायेगा. यह बात मुझे रोके रखती थी और मैं अपनी तमाम असफलताओं के बावजूद अगली बार सफल होने के लिए लगा रहता था.....!!!!!_*
*_नोट :- वक्त कम है ,_*
*मन एकाग्र करो जीवन तुम्हारा है* ,
*_उसे सार्थक करो हवाये तेज है ,_*
*_खुद को संभालों आग हर तरफ है_* ,
*_अंदर की आग जलाओ रास्ता लंबा है ,_*
*_पर चलना तुम्ही को है खुद को समझो_*
*_और खुद के अरमान को समझो_*
*_जीत के लिए आये हो ,_*
*_हार के मत लौटना घर छोड़ के आये हो ,_*
*_खाली हाथ मत लौटना...

11

सिविल सेवा ...

पढ़ाई उसके लिए बोझ नही है, जो अपने मिशन से प्रेम करते हैं। - - - - - 
बल्कि पढाई बोझ उसके लिए है, जो अपने
लक्ष्य से प्रेम नही करते।........ 
क्या बच्चे अपने पैरेंट्स पर बोझ होते  ...!!!!!!!!!!
क्योंकि parents ke  लक्ष्य होते हैं.......
आपके लिए पापा हर दुख सह सकते हैं..........
आपके लिए मम्मी कुछ भी कर सकती
हैं....... 

क्योंकि वे आपको बहुत प्यार करते हैं।
....... 
जब यही पवित्र स्नेह आप
अपनी पढाई में पैदा कर लेंगे तो 
आपको नींद नही आयेगी....
आलस्य नही आयेगा.... 
कहा जाता है कि,,,,,,,,
सोने वाले डूब जाते हैं ....और ...... जागने वाले जग जीत लेते हैं....... 
जब आप हर समय जोश से लबरेज रहेंगे..... 
तो कलेक्टरी की तैयारी माउंट
एवरेस्ट की तरह नही
दिखेगी बल्कि,,,,,,,,,,
वह एक सामान्य चढाई मालूम
होगी .......
सोंचिए, जब मानव चांद, मंगल और शुक्र, शनि पर झंडा लहरा सकता है तो....
UPSC में झंडा क्यों नही गाड सकता........
"" UPSC की परीक्षा में पताका लहराना है""....... 
बस इतना ही वाक्य किसी सफल मंत्र
की तरह रोज जपते रहो, पसीना बहाते
रहो....लगे रहो पढ़ाई में 
मेरे सर कहा करते है कि ज्ञान की प्यास इतनी बढ़ाओ की बुझ ना पाये.............
किताबों से तब तक जुड़े रहो,, जब तक मंज़िल मिल जाए ...

12

चाहत और जरूरत

आपकी चाहत आईएएस बनना हो सकती है आपकी जरूरत आईएएस बनना हो सकती है  अब आपको फैसला करना है कि आपकी चाहत है या जरूरत है   आईएएस बनना क्या कभी चाहत और जरूरत में फर्क होता है इस बात पर विचार किया है

चाहतें हमेशा पूरी हो यह जरूरी नही है क्योंकि चाहतें समय के साथ बदलती रहती हैं जरूरतें हमेशा पूरी होती हैं हो सकता है आपको ज्यादा की जरूरत थी मगर कम जरूरत पूरी हुई हो

चाहत इंसान को कमजोर आलसी और केंद्रित नजरिए वाला बनाती है जबकि जरूरतें इंसान को ताकतबर कर्तव्यनिष्ठ और विकेंद्रित नजरिए वाला बनाती हैं

अगर आज तक आपकी चाहत आईएसएस बनना थी तो अपने आपका मूल्यांकन कीजिए क्या आपने वह सब किया जो एक आईएसएस बनने के लिए किया जाना चाहिए अर्थात अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए किया जाना चाहिए शायद आपको नही में जवाब मिलेगा अगर आपको नही में जवाब मिलता है तो आज ही अपनी चाहत से जरूरत का रास्ता तय कीजिए चंद दिनों में आप अपनी मंजिल को नजदीक से देखने के काबिल हो जाएंगे और चंद साल में एक सितारा बन जायेंगे जो अपने उजाले से कई लोगों को प्रकाशित करने की कोशिश करेगा

ये चाहत और जरूरत का ही तो फर्क होता है जो इंसान को सोने नहीं देता है इसके बेहतरीन उदाहरण के रूप में दक्षिण और पूर्व भारत को देख सकते हैं आज यह उत्तर भारत से आगे हैं क्योंकि वहां स्तिथि कुछ इस तरह की है कि कोई भी जीवन यापन के लिए भी कार्य करना है उसे चाहत के रूप में नहीं ले सकते हैं जरूरत के रूप में ही लेना पड़ता है और एक दिन छोटे या बड़े रूप में अपनी जरूरतों को हासिल भी कर लेते हैं 

जबकि उत्तर भारत में परिस्थितियां इसके विपरीत हैं यहां के लोग किसी भी कार्य को पहले चाहत बनाते हैं और अपने आपको चाहत की दृष्टि से ही केन्द्रित रखते हैं जब कुछ हासिल नहीं होता है तब चाहत को जरूरत में तब्दील करते हैं और एक दिन जरूरत पूरी कर लेते हैं चाहत से जरूरत की प्रिक्रिया में पहुंचने में समय लगता है जो शायद हर किसी के पास नही होता है इसलिए सीमित लोगों की ही जरूरतें पूरी हो पाती हैं इसलिए उत्तर भारत में पूर्व और दक्षिण भारत की तुलना में सफलता का अनुपात सीमित है


Fantastic History of india 1

Fantastic History of india 1

#मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#मराठा_साम्राज्य_1674_1818_ई...

मराठा राज्य का निर्माण एक क्रान्तिकारी घटना है। विजयनगर के उत्थान से भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण तत्व आया था। मराठा संघ एवं मराठा साम्राज्य एक भारतीय शक्ति थी जिन्होंने 18 वी शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना प्रभुत्व जमाया हुआ था। इस साम्राज्य की शुरुआत सामान्यतः 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साथ हुई और इसका अंत 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार के साथ हुआ। भारत में मुग़ल साम्राज्य को समाप्त करने के ज्यादातर श्रेय मराठा साम्राज्य को ही दिया जाता है।

#छत्रपति_शिवाजी

शिवाजी का जन्म पूना के निकट शिवनेर के किले में 20 अप्रैल, 1627 को हुआ था। शिवाजी शाहजी भोंसले और जीजाबाई के पुत्र थे। शिवाजी को मराठा साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है। शिवाजी महाराज ने बीजापुर सल्तनत से मराठा लोगो को रिहा करने का बीड़ा उठा रखा था और मुगलों की कैद से उन्होंने लाखो मराठाओ को आज़ादी दिलवाई। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे मुग़ल साम्राज्य को ख़त्म करना शुरू किया और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करने लगे।

1656 ई. में रायगढ़ को उन्होंने अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित की और एक आज़ाद मराठा साम्राज्य की स्थापना की। इसके बाद अपने साम्राज्य को मुग़ल से बचाने के लिए वे लगातार लड़ते रहे। और अपने राज्य के विस्तार का आरंभ 1643 ई. में बीजापुर के सिंहगढ़ किले को जीतकर किया। इसके पश्चात 1646 ई. में तोरण के किले पर भी शिवाजी ने अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। शिवाजी की शक्ति को दबाने के लिए बीजापुर के शासक ने सरदार अफजल खां को भेजा। शिवाजी ने 1659 ई. में अफजल खां को पराजित कर उसकी हत्या कर दी। शिवाजी की बढती शक्ति से घबराकर औरंगजेब ने शाइस्ता खां को दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया। शिवाजी ने 1663 ई. में शाइस्ता खां को पराजित किया। जयसिंह के नेतृत्व में पुरंदर के किले पर मुगलों की विजय तथा रायगढ़ की घेराबंदी के बाद जून 1665 में मुगलों और शिवाजी के बीच पुरंदर की संधि हुई। 1670 ई.  में शिवाजी ने मुगलों के विरुद्ध अभियान छेड़कर पुरंदर की संधि द्वारा खोये हुए किले को पुनः जीत लिया। 1670 ई. में ही शिवाजी ने सूरत को लूटा तथा मुगलों से चौथ की मांग की।

1674 में स्थापित नव मराठा साम्राज्य के छत्रपति के रूप में उनका राज्याभिषेक किया गया। अपने राज्याभिषेक के बाद शिवाजी का अंतिम महत्वपूर्ण अभियान 1676 ई. में कर्नाटक अभियान था।

12 अप्रैल, 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के समय उन्होंने 300 किले साथ, तक़रीबन 40,000 की घुड़सवार सेना और 50000 पैदल सैनिको की फ़ौज बना रखी थी और साथ पश्चिमी समुद्री तट तक एक विशाल नौसेना का प्रतिष्ठान भी कर रखा था। समय के साथ-साथ इस साम्राज्य का विस्तार भी होता गया और इसी के साथ इसके शासक भी बदलते गये, शिवाजी महाराज के बाद उनके पोतो ने मराठा साम्राज्य को संभाला और फिर उनके बाद 18 वी शताब्दी के शुरू में पेशवा मराठा साम्राज्य को सँभालने लगे।

#शंभाजी (1680 ई. से 1689 ई.)

शिवाजी महाराज के दो बेटे थे : संभाजी और राजाराम। संभाजी महाराज उनका बड़ा बेटा था, जो दरबारियों के बीच काफी प्रसिद्ध था।  1681 में संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य का ताज पहना और अपने पिता की नीतियों को अपनाकर वे उन्ही की राह में आगे चल पड़े। संभाजी महाराज ने शुरू में ही पुर्तगाल और मैसूर के चिक्का देवा राया को पराजित कर दिया था।

इसके बाद किसी भी राजपूत-मराठा गठबंधन को हटाने के लिए 1681 में औरंगजेब ने खुद दक्षिण की कमान अपने हात में ले ली। अपने महान दरबार और 5,000,00 की विशाल सेना के साथ उन्होंने मराठा साम्राज्य के विस्तार की शुरुआत की और बीजापुर और गोलकोंडा की सल्तनत पर भी मराठा साम्राज्य का ध्वज लहराया। अपने 8 साल के शासनकाल में उन्होंने मराठाओ को औरंगजेब के खिलाफ एक भी युद्ध या गढ़ हारने नही दिया।

1689 के आस-पास संभाजी महाराज ने अपने सहकारियो को रणनीतिक बैठक के लिए संगमेश्वर में आमंत्रित किया, ताकि मुग़ल साम्राज्य को हमेशा के लिए हटा सके। लेकिन गनोजी शिर्के और औरंगजेब  के कमांडर मुकर्रब खान ने संगमेश्वर में जब संभाजी महाराज बहुत कम लोगो के साथ होंगे तब आक्रमण करने की बारीकी से योजना बन रखी थी। इससे पहले औरंगजेब कभी भी संभाजी महाराज को पकड़ने में सफल नही हुआ था।

लेकिन इस बार अंततः उसे सफलता मिल ही गयी और 1 फरवरी 1689 को उन्होंने संगमेश्वर में आक्रमण कर मुग़ल सेना ने संभाजी महाराज को कैदी बना लिया। उनके और उनके सलाहकार कविकलाश को बहादुरगढ़ ले जाया गया, जहाँ औरंगजेब ने मुग़लों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए मार डाला। 11 मार्च 1689 को उन्होंने संभाजी महाराज को मार दिया था।

#राजाराम (1689 ई. से 1700 ई.)

शंभाजी की मृत्यु के बाद राजाराम को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया गया। राजाराम मुग़लोँ के आक्रमण के भय से अपनी राजधानी रायगढ़ से जिंजी  ले गया। 1698 तक जिंजी मुगलोँ के विरुद्ध मराठा गतिविधियो का केंद्र रहा। 1699 में सतारा, मराठों की राजधानी बना। राजाराम स्वयं को शंभाजी के पुत्र शाहू का प्रतिनिधि मानकर गद्दी पर कभी नहीँ बैठा। राजा राम के नेतृत्व में मराठों ने मुगलोँ के विरुद्ध स्वतंत्रता के लिए अभियान शुरु किया जो 1700 ई. तक चलता रहा। राजा राम की मृत्यु के बाद 1700 ई. में उसकी विधवा पत्नी तारा बाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय को गद्दी पर बैठाया और मुगलो के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा।

#शिवाजी_द्वितीय (1700 ई. से  1707 ई.)

राजाराम की विधवा पत्नी तारा बाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय को गद्दी पर बैठाया और मुगलो के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। उन्होंने ही कुछ समय तक मुग़लों के खिलाफ मराठा साम्राज्य की कमान संभाली और 1705 से उन्होंने नर्मदा नदी भी पार कर दी और मालवा में प्रवेश कर लिया, ताकि मुग़ल साम्राज्य पर अपना प्रभुत्व जमा सके।

#छत्रपति_शाहू_महाराज (1707 ई. से )

1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, संभाजी महाराज के बेटे (शिवाजी के पोते) को मराठा साम्राज्य के नए शासक बहादुर शाह प्रथम को रिहा कर दिया लेकिन उन्हें इस परिस्थिति में ही रिहा किया गया था की वे मुग़ल  कानून का पालन करेंगे। रिहा होते ही शाहू ने तुरंत मराठा सिंहासन की मांग की और अपनी चाची ताराबाई और उनके बेटे को चुनौती दी। इसके चलते एक और मुग़ल-मराठा युद्ध की शुरुआत हो गयी।

1707 में सतारा और कोल्हापुर राज्य की स्थापना की गयी क्योकि उत्तराधिकारी के चलते मराठा साम्राज्य में ही वाद-विवाद होने लगे थे। लेकिन अंत में शाहू को ही मराठा साम्राज्य का नया छत्रपति बनाया गया। लेकिन उनकी माता अभी भी मुग़लों के ही कब्जे में थी लेकिन अंततः जब मराठा साम्राज्य पूरी तरह से सशक्त हो गया तब शाहू अपनी माँ को भी रिहा करने में सफल हुए।

शाहू ने 1713 ई.  में बालाजी को पेशवा के पद पर नियुक्त किया। बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति के साथ ही पेशवा पद शक्तिशाली हो गया। छत्रपति नाममात्र का शासक रह गया। शाहू के शासनकाल में, रघुजी भोसले ने पूर्व (वर्तमान बंगाल) में मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। सेनापति धाबडे ने पश्चिम में विस्तार किया। पेशवा बाजीराव और उनके तीन मुख्य पवार (धार), होलकर (इंदौर) और सिंधिया (ग्वालियर) ने उत्तर में विस्तार किया। ये सभी राज्य उस समय मराठा साम्राज्य का ही हिस्सा थे।

#पेशवाओं_के_अधीन_मराठा_साम्राज्य

इस युग में, पेशवा चित्पावन परिवार से संबंध रखते थे, जो मराठा सेनाओ का नियंत्रण करते थे और बाद में वही मराठा साम्राज्य के शासक बने। अपने शासनकाल में पेशवाओ ने भारतीय उपमहाद्वीप के ज्यादातर भागो पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा था।

#बालाजी_विश्वनाथ (1713 ई. से 1720 ई.)

बालाजी विश्वनाथ एक ब्राहमण थे। बालाजी विश्वनाथ ने अपना राजनीतिक जीवन एक छोटे से राजस्व अधिकारी के रुप में शुरु किया था। 1713 में शाहू ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ती की थी। उसी समय से पेशवा का कार्यालय ही सुप्रीम बन गए और शाहूजी महाराज मुख्य व्यक्ति बने। उनकी पहली सबसे बड़ी उपलब्धि 1714 में कन्होजो अंग्रे के साथ लानावल की संधि का समापन करना थी, जो की पश्चिमी समुद्र तट के सबसे शक्तिशाली नौसेना मुखिया में से एक थे। बाद में वे मराठा में ही शामिल हो गये। 1719 में मराठाओ की सेना ने दिल्ली पर हल्ला बोला और डेक्कन के मुग़ल गवर्नर सईद हुसैन हाली के मुग़ल साम्राज्य को परास्त किया। तभी उस समय पहली बार मुग़ल साम्राज्य को अपनी कमजोर ताकत का अहसास हुआ।

#बाजीराव_प्रथम (1720 ई. – 1740 ई.)

बालाजी विश्वनाथ की 1720 में मृत्यु के बाद उसके पुत्र बाजीराव प्रथम को शाहू ने पेशवा नियुक्त किया। बाजीराव प्रथम के पेशवा काल में मराठा साम्राज्य की शक्ति चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। 1724 में शूकर खेड़ा के युद्ध में मराठोँ की मदद से निजाम-उल-मुल्क ने दक्कन में मुगल सूबेदार मुबारिज खान को परास्त कर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। निजाम-उल-मुल्क ने अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद मराठोँ के विरुद्ध कार्रवाई शुरु कर दी। बाजीराव प्रथम ने 1728  में पालखेड़ा के युद्ध में निजाम-उल-मुल्क को पराजित किया। 1728 में ही निजाम-उल-मुल्क बाजीराव प्रथम के बीच एक मुंशी शिवगांव की संधि  हुई जिसमे निजाम ने मराठोँ को चौथ एवं सरदेशमुखी देना स्वीकार किया। बाजीराव प्रथम ने शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया। 1739 ई. में बाजीराव प्रथम ने पुर्तगालियों से सालसीट तथा बेसीन छीन लिया। बालाजी बाजीराव प्रथम ने ग्वालियर के सिंधिया, गायकवाड़, इंदौर के होलकर और नागपुर के भोंसले शासकों को सम्मिलित कर एक मराठा मंडल की स्थापना की। 1740 तक अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने कुल 41 युद्ध में लढाई की और उनमे से वे एक भी युद्ध नही हारे।

#बालाजी_बाजीराव (1740 ई. – 1761 ई.)

बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद बालाजी बाजीराव  नया पेशवा बना। नाना साहेब के नाम से भी जाना जाता है। 1750 में रघुजी भोंसले की मध्यस्थता से राजाराम द्वितीय के मध्य संगौला की संधि हुई। इस संधि के द्वारा पेशवा मराठा साम्राज्य का वास्तविक प्रधान बन गया। छत्रपति नाममात्र का राजा रह गया। बालाजी बाजीराव पेशवा काल में पूना मराठा राजनीति का केंद्र हो गया। बालाजी बाजीराव के शासनकाल में 1761 ई. पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ। यह युद्ध मराठों अहमद शाह अब्दाली के बीच हुआ।

#पानीपत_का_तृतीय_युद्ध_दो_कारण –

▪️प्रथम नादिरशाह की भांति अहमद शाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था।
▪️दूसरा, मराठे हिंदू पद पादशाही की भावना से प्रेरित होकर दिल्ली पर अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे।

पानीपत के युद्ध में बालाजी बाजीराव ने अपने नाबालिग बेटे विश्वास राव के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना भेजी किन्तु वास्तविक सेनापति विश्वास राव का चचेरा भाई सदाशिवराव भाऊ था। इस युद्ध में मराठोँ की पराजय हुई और विश्वास राव और सदाशिवराव सहित 28 हजार सैनिक मारे गए।

#माधव_राव (1761 ई. – 1772 ई.)

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठोँ की पराजय के बाद माधवराव पेशवा बनाया गया। माधवराव की सबसे बड़ी सफलता मालवा और बुंदेलखंड की विजय थी। माधव ने 1763 में उद्गीर के युद्ध में हैदराबाद के निजाम को पराजित किया। माधवराव और निजाम के बीच राक्षस भवन की संधि हुई। 1771 ई. में मैसूर के हैदर अली को पराजित कर उसे नजराना देने के लिए बाध्य किया। माधवराव ने रुहेलों, राजपूतों और जाटों को अधीन लाकर उत्तर भारत पर मराठोँ का वर्चस्व स्थापित किया। 1771 में माधवराव के शासनकाल में मराठों निर्वासित मुग़ल बादशाह शाहआलम को दिल्ली की गद्दी पर बैठाकर पेंशन भोगी बना दिया। नवंबर 1772 में माधवराव की छय रोग से मृत्यु हो गई।

#नारायण_राव (1772 ई. – 1774 ई.)

माधवराव की अपनी कोई संतान नहीँ थी। अतः माधवराव की मृत्यु के उपरांत उसके छोटे भाई नारायणराव पेशवा बना। नारायणराव का अपने चाचा राघोबा से गद्दी को लेकर लंबे समय तक संघर्ष चला जिसमें अंततः राघोबा ने 1774 में नारायणराव की हत्या कर दी।

#माधव_नारायण (1774 ई. – 1796 ई.)

1774 ई. में पेशवा नारायणराव की हत्या के बाद उसके पुत्र माधवराव नारायण को पेशवा की गद्दी पर बैठाया गया। इसके समय में नाना फड़नवीस के नेतृत्व में एक काउंसिल ऑफ रीजेंसी का गठन किया गया था, जिसके हाथों में वास्तविक प्रशासन था। इसके काल में प्रथम आंग्ल–मराठा युद्ध हुआ। 17 मई 1782 को सालबाई की संधि द्वारा प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध समाप्त हो गया। यह संधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच हुई थी। टीपू सुल्तान को 1792 में तथा हैदराबाद के निजाम को 1795 में परास्त करने के बाद मराठा शक्ति एक बार फिर पुनः स्थापित हो गई।

#बाजीराव_द्वितीय (1796 ई. से- 1818 ई.)

माधवराव नारायण की मृत्यु के बाद राघोबा का पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना। इसकी अकुशल नीतियोँ के कारण मराठा संघ में आपसी मतभेद उत्पन्न हो गया। 1802 ई. बाजीराव द्वितीय के बेसीन की संधि के द्वारा अंग्रेजो की सहायक संधि स्वीकार कर लेने के बाद मराठोँ का आपसी विवाद पटल पर आ गया। सिंधिया तथा भोंसले ने अंग्रेजो के साथ की गई इस संधि का कड़ा विरोध किया। द्वितीय औरतृतीय आंग्ल मराठा युद्ध बाजीराव द्वितीय के शासन काल में हुआ। द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध में सिंधिया और भोंसले को पराजित कर अंग्रेजो ने सिंधिया और भोंसले को अलग-अलग संधि करने के लिए विवश किया। 1803 में अंग्रेजो और भोंसले के साथ देवगांव की संधि कर कटक और वर्धा नदी के पश्चिम का क्षेत्र ले लिया। अंग्रेजो ने 1803 में ही सिन्धयों से सुरजी-अर्जनगांव की संधि कर उसे गंगा तथा यमुना के क्षेत्र को ईस्ट इंडिया कंपनी को देने के लिए बाध्य किया। 1804 में अंग्रेजों तथा होलकर के बीच तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ, जिसमें पराजित होकर होलकर ने अंग्रेजो के साथ राजपुर पर घाट की संधि की। मराठा शक्ति का पतन 1817-1818 ई. में हो गया जब स्वयं पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपने को पूरी तरह अंग्रेजो के अधीन कर लिया। बाजीराव द्वितीय द्वारा पूना प्रदेश को अंग्रेजी राज्य में विलय कर पेशवा पद को समाप्त कर दिया गया।


#मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#शाहजहां_1628_1658_ई...

शाहजहां जहांगीर का पुत्र तथा अकबर का पोता था, इसका जन्म 5 जनवरी 1592 लाहौर में हुआ था। इसके बचपन का नाम खुर्रम था। अहमदनगर और मुग़ल साम्राज्य के बीच 1617 ई. में संधि हुई थी, जिसमें जहांगीर के पुत्र खुर्रम ने अहम् भूमिका निभाई थी, जिससे प्रसन्न होकर जहांगीर ने खुर्रम को शाहजहां  की उपाधि से नवाजा था।

24 फरवरी, 1682 ई. को जहांगीर की मृत्यु के पश्चात शाहजहां मुग़ल साम्राज्य का नया बादशाह बना। मुग़ल शासक बनने के बाद पहले तीन वर्ष बुन्देल  के जुझार सिंह और अफगान सरदार ख़ानेजहाँ लोदी  के विद्रोह को दबाने में गुजरे। शाहजहां का मुकाबला सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद से भी हुआ था, जिसमें सिक्ख सेना की हार हुई थी।

शाहजहाँ का विवाह 1612 ई. में आसफ खाँ की पुत्री ‘अर्जुमन्द बानू बेगम‘ से हुआ था, जो जहांगीर की पत्नी नूरजहां की भतीजी थी।  अर्जुमन्द बानू बेगम को ही आगे चलकर मुमताज महल के नाम से जाना गया। शाहजहां और मुमताज महल के चार पुत्र और तीन पुत्रियां थी। पुत्रों के नाम औरंगजेब, मुरादबख्श, दाराशिकोह और शुजा थे। 1631 ई. में मुमताज की मृत्यु के पश्चात शाहजहां ने आगरा में यमुना नदी के किनारे मुमताज की याद में ताजमहल की नींव रखी, जो 1653 ई. में जाकर पूर्ण हुआ था। ताजमहल में ही मुमताज को दफनाया गया था।

1633 ई. में शाहजहां ने दक्षिण भारत के अहमदनगर  पर आक्रमण कर उसे मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बनाया था। इसके कुछ वर्ष पश्चात 1636 ई. में गोलकुण्डा पर आक्रमण किया, जहां का तत्कालीन सुल्तान अब्दुलाशाह था। अब्दुलाशाह को पराजय का सामना करना पड़ा और उसने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। इसी दौरान अब्दुलाशाह के वजीर मीर जुमला ने शाहजहाँ को भेट स्वरूप बेशकीमती कोहिनूर हिरा  दिया था। इसी वर्ष शाहजहां ने बीजापुर पर आक्रमण कर वहां के तत्कालीन शासक मुहम्मद आदिल शाह  को संधि करने के लिए मजबूर कर दिया था।

1639 ई. में शाहजहाँ ने दिल्ली के नजदीक शाहजहाँनामाबाद नामक नयी राजधानी की नींव रखी थी। 1645 ई. में शाहजहां ने मध्य एशिया पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए अपने पुत्र मुरादबख्श को भेजा, पर वह इसमें कामयाब न हो सका। इसीलिए 1647 ई. में अपने दूसरे पुत्र औरंगजेब को यह काम पूर्ण करने भेजा परन्तु वह भी सफल न हो सका।

शाहजहां के शासन काल को स्थापत्य कला और सांस्कृतिक दृष्टि से स्वर्णिम युग कहा गया है। शाहजहाँ ने अपने शासन काल में कई प्रसिद्ध इमारतें बनवायी थी। जिनमें आगरा में स्थित ताजमहल, दिल्ली का लाल किला और जामा मस्जिद, आगरा की मोती मस्जिद, आगरा के किले में स्थित दीवाने खास, दीवाने आम और मुसम्मन बुर्ज, लाहौर में स्थित शालीमार बाग़, शालामार गांव में स्थित शीशमहल, और काबुल, कंधार, कश्मीर और अजमेर आदि में कई महल, बगीचे आदि कई इमारतें बनवायी थी। शाहजहां ने लाहौर तक रावी नहर का निर्माण भी करवाया था।

शाहजहां के दरबार में पंडित जगन्नाथ राजकवि हुआ करते थे, जिन्हें जगन्नाथ पण्डितराज के नाम से भी जाना जाता था। जो ‘गंगा लहरी‘ और ‘रस गंगाधर‘ के रचनाकार हैं। यह उच्चकोटि के कवि, समालोचक  व साहित्यकार थे। इसके दरबार में संगीतकार सुरसेन, सुखसेन आदि दरबारी थे। शाहजहां के सबसे बड़े पुत्र दाराशिकोह ने ‘भगवत गीता‘ और ‘योगवशिष्ठ‘ का फ़ारसी भाषा में अनुवाद करवाया था, साथ ही वेदों का संकलन भी करवाया था। इसीलिए शाहजहां ने दाराशिकोह को ‘शाहबुलंद इक़बाल‘ की उपाधि से सम्मानित किया था।

शाहजहाँ के शासन काल में ही फ़्रांसिसी यात्री बर्नियरऔर ट्रेवर्नियर तथा इटेलियन यात्री मनुची भारत आये थे। इन्होने शाहजहां के शासन काल का वर्णन किया है। शाहजहां ने अपने  शासन काल में सिक्का चलाया था जिसे ‘आना‘ कहा जाता था। शाहजहां एक बेशकीमती तख़्त पर आसीन होता था जिसे ‘तख्त-ए-ताऊस‘ कहा जाता था।

1657 ई. में शाहजहां के बीमार होते ही उसके पुत्रों के मध्य सुल्तान बनने की होड़ सी शुरू हो गयी और आपसी संघर्ष शुरू हो गया। जिस घटना को इतिहास में ‘उत्तराधिकार का युद्ध‘ नाम से जाना जाता है। शाहजहां दाराशिकोह को अपने बाद मुग़ल साम्राज्य का शासक बनाना चाहता था परन्तु औरंगजेब खुद मुगलों का शासक बनना चाहता था। जिस कारण शाहजहां की सभी सातों संतानों के बीच सुल्तान बनने की जंग प्रारम्भ हो गयी। जिस कारण इनके बीच धरमट (धर्मत) का युद्ध (1658 ई. में), सामूगढ़ का युद्ध  और देवराई का युद्ध आदि कुछ प्रमुख युद्ध हुए थे।

जिनमें औरंगजेब की विजय हुई थी और वो मुग़ल साम्राज्य का शासक बन बैठा। औरंगजेब इतने में ही नहीं रुका उसने मुरादबख्श को हराकर उसकी मृत्यु करवा दी। साथ ही अपने पिता शाहजहाँ को बंदी बनाकर आगरा के किले शाहबुर्ज में बंद करवा दिया। जहाँ शाहजहाँ ने आठ वर्ष बंदी के रूप में व्यतीत किये और 1666 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। शाहजहां के शव को उसकी पत्नी मुमताज महल की कब्र के पास ताजमहल में ही दफनाया गया। शाहजहाँ एक मात्र ऐसा मुग़ल शासक था, जिसे उसके पुत्र ने ही बंदी बनाया था।


#आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#भारतीय_राष्ट्रीय_कांग्रेस...

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 से 30 दिसंबर 1885 के मध्य बम्बई में तब हुई जब भारत की विभिन्न प्रेसीडेंसियों और प्रान्तों के 72 सदस्य बम्बई में एकत्र हुए| भारत के सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी एलेन ओक्टोवियन ह्युम ने कांग्रेस के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| उन्होंने पुरे भारत के कुछ महत्वपूर्ण नेताओं से संपर्क स्थापित किया और कांग्रेस के गठन में उनका सहयोग प्राप्त किया| दादाभाई नैरोजी, काशीनाथ त्रयम्बक तैलंग,फिरोजशाह मेहता,एस. सुब्रमण्यम अय्यर, एम. वीराराघवाचारी,एन.जी.चंद्रावरकर ,रह्मत्तुल्ला एम.सयानी, और व्योमेश चन्द्र बनर्जी उन कुछ महत्वपूर्ण नेताओं में शामिल थे जो गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में आयोजित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में शामिल हुए थे| महत्वपूर्ण नेता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी इसमें शामिल नहीं हुए क्योकि उन्होंने लगभग इसी समय कलकत्ता में नेशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया था|

भारत में प्रथम राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन के गठन का महत्व महसूस किया गया| अधिवेशन समाप्त होने के लगभग एक हफ्ते बाद ही कलकत्ता के समाचारपत्र  द इंडियन मिरर  ने लिखा कि “बम्बई में हुए प्रथम राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है| 28 दिसंबर 1885 अर्थात जिस दिन इसका गठन किया गया था, को भारत के निवासियों की उन्नति के लिए एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मान्य जायेगा| यह हमारे देश के भविष्य की संसद का केंद्रबिंदु है जो हमारे देशवासियों की बेहतरी के लिए कार्य करेगा| यह एक ऐसा दिन था जब हम पहली बार अपने मद्रास, बम्बई,उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त और पंजाब के भाइयों से गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज की छत के नीचे मिल सके|इस अधिवेशन की तारीख से हम भविष्य में भारत के राष्ट्रीय विकास की दर को तेजी से बढ़ते हुए देख सकेंगे”|

कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे |कांग्रेस के गठन का उद्देश्य,जैसा कि उसके द्वारा कहा गया,जाति, धर्म और क्षेत्र की बाधाओं को यथासंभव हटाते हुए देश के विभिन्न भागों के नेताओं को एक साथ लाना था ताकि देश के सामने उपस्थित महत्वपूर्ण समस्याओं पर विचार विमर्श किया जा सके| कांग्रेस ने नौ प्रस्ताव पारित किये,जिनमें ब्रिटिश नीतियों में बदलाव और प्रशासन में सुधार की मांग की गयी|

#भारतीय_राष्ट्रीय_कांग्रेस_के_लक्ष्य_और_उद्देश्य

• देशवासियों के मध्य मैत्री को प्रोत्साहित करना
• जाति,धर्म प्रजाति और प्रांतीय भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करना
• लोकप्रिय मांगों को याचिकाओं के माध्यम से सरकार के सामने प्रस्तुत करना
• राष्ट्रीय एकता की भावना को संगठित करना
• भविष्य के जनहित कार्यक्रमों की रुपरेखा तैयार करना
• जनमत को संगठित व प्रशिक्षित करना
• जटिल समस्याओं पर शिक्षित वर्ग की राय को जानना


#मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#जहाँगीर_1605_1627_ई...

जहांगीर का जन्म 30 अगस्त, 1569 को फतेहपुर सीकरी में हुआ था। इसके पिता अकबर तथा माता जयपुर की राजकुमारी जोधाबाई थी। जहांगीर के बचपन का नाम ‘मुहम्मद सलीम‘ था। आगे चलकर सलीम को जहांगीर के नाम से जाना जाने लगा।

अकबर की मृत्यु के पश्चात आगरा में 3 नवम्बर, 1605  को जहांगीर का राज्याभिषेक हुआ, और उसने मुग़ल साम्राज्य की शासन व्यवस्था को संभाला। गद्दी पर आसीन होते ही जहांगीर को अपने पुत्र खुसरो का विद्रोह झेलना पड़ा। खुसरो ने आगरा के हसन बेग  और लाहौर के दीवान अब्दुल रहीम की मदद से विद्रोह किया था। खुसरो और जहांगीर के बीच भेरवाल नामक स्थान पर युद्ध हुआ था, जिसमें खुसरो को पराजय का सामना करना पड़ा और उसने सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन देव के वहाँ जाकर शरण ली। इससे नाराज होकर जहांगीर ने अर्जुनदेव पर राजद्रोह का आरोप लगाकर अर्जुनदेव को मृत्युदण्ड देते हुए फांसी की सजा सुना दी।

जहांगीर का विवाह 1585 ई. में आमेर के राजा भगवान दास की पुत्री मानबाई से हुआ था। खुसरो मानबाई की ही संतान थी। जहांगीर का दूसरा विवाह ‘गोसाई‘ से हुआ था जोकि राजा उदय सिंह की पुत्री थी। गोसाई ने एक पुत्र को जन्म दिया था, जिसका नाम शाहजादा खुर्रम रखा गया, जिसे आगे चलकर शाहजहां के नाम से जाना गया। जहांगीर का तीसरा विवाह 1611 ई. में फारस के मिर्जा गयास बेग की पुत्री मेहरुन्निसा हुआ था, जोकि एक विधवा थी। जहांगीर ने मेहरुन्निसा को नूर-ए-महल और नूर-ए-जहां की उपाधि दी थी। जहांगीर ने नूर-ए-जहां (नूरजहां) के पिता गयास बेग को वजीर का पद दिया था तथा एत्मादुद्दौला की उपाधि से नवाजा था। साथ ही नूरजहाँ के भाई आसफ खाँ को खान-ए-सामा का पद भी दिया था।

जहांगीर और मेवाड़ के तत्कालीन राजा राणा अमर सिंह के मध्य 1605 ई. से 1615 ई. तक लगभग 18 युद्ध लड़ने के पश्चात संधि हुई, जिसे जहांगीर की बड़ी उपलब्धि माना जाता है। जहांगीर की उल्लेखनीय सफलता 1620 ई. में कई दिनों तक घेरा डाल के रखने के बाद उत्तरी पूर्वी पंजाब की पहाड़ियों पर स्थित कांगड़ा के दुर्ग को जीतना था, जिसे उसने 1620 ई.  में प्राप्त किया था। 1626 ई. में महावत खां ने विद्रोह कर जहांगीर को बंदी बना लिया था। परन्तु महावत खां की यह योजना नूरजहां की बुद्धिमानी के कारण असफल सिद्ध हुई। महावत खां मुगल राज्य का एक दरबारी था।

जहांगीर को फ़ारसी और तुर्की भाषा का अच्छा ज्ञान था। जहांगीर ने अपने दादा बाबर की भांति अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहांगीरी‘ लिखी थी। जिसे फ़ारसी भाषा में लिखा गया है। साथ ही जहांगीर ने ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि सूरदास को अपने दरबार में आश्रय दिया था जिन्होंने सूरसागर की रचना की थी।

जहांगीर भी अपने पिता अकबर की तरह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था। वह भी अकबर की तरह हिन्दू धर्म से खासा प्रभावित था इसी वजह से वह भी मंदिरों और पुरोहितों को दान दिया करता था। यहाँ तक कि जहांगीर ने पहली बार 1612 ई. में रक्षा बंधन का त्यौहार भी मनाया था। साथ ही जहांगीर ने तम्बाकू के सेवन पर प्रतिबन्ध भी लगाया था।

जहांगीर के शासन काल में इंग्लैंड के शासक जेम्स प्रथम ने 1608 ई. में विलियम हॉकिन्स, 1612 ई. में पॉल कैनिंग व विलियम एडवर्ड और 1615 ई. में सर टॉमस रो आदि विदेशी राजदूत भारत आये थे। जिस कारण अंग्रेजों को कई व्यापारिक सुविधायें प्राप्त हुई थी।

जहांगीर के शासन में सबसे अधिक चित्रकला की प्रगति हुई थी क्यूंकि खुद जहांगीर को भी चित्रकला का अच्छा ज्ञान था। इसीलिए जहांगीर के शासन काल को चित्रकला का स्वर्णिम युग कहा जाता है। जहांगीर ने आगरा के नजदीक सिकंदरा में ‘अकबर का मकबरा‘ बनवाया था, जिसका निर्माण कार्य अकबर ने शुरू करवाया था परन्तु निर्माण पूर्ण होने से पहले ही अकबर की मृत्यु हो गयी, जिसे उसके बाद जहांगीर ने पूरा करवाया। जहांगीर ने लाहौर की मस्जिद का निर्माण भी करवाया था। साथ ही जहांगीर ने कश्मीर में  शालीमार बाग़ का निर्माण करवाया था। साथ ही लाहौर और बहुत सी अन्य जगहों पर सुन्दर बाग़ भी लगवाए थे।

जहांगीर के शासन काल में ही उसकी पत्नी नूरजहां ने अपने पिता की याद में एत्मादुद्दौला का मक़बर  बनवाया था। जो जहांगीर के समय में बनी प्रसिद्ध इमारतों में से एक है।

07 नवम्बर, 1627 ई. को कश्मीर से लाहौर वापस जाते समय भीमवार नामक स्थान पर जहांगीर की मृत्यु हुई थी। जहांगीर के शव को लाहौर के शाहदरा में बहने वाली रावी नदी के तट पर दफनाया गया। जहांगीर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र खुर्रम जिसे शाहजहां के नाम से भी जाना जाता है ने मुग़ल साम्राज्य की बागडोर संभाली।


#आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#रौलट_विरोधी_सत्याग्रह...

महात्मा गाँधी ने रौलट एक्ट के विरुद्ध अभियान चलाया और बम्बई में 24 फ़रवरी 1919 ई. को सत्याग्रह सभा की स्थापना की| रौलट विरोधी सत्याग्रह के दौरान,महात्मा गाँधी ने कहा कि “यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम मुक्ति केवल संघर्ष के द्वारा ही प्राप्त करेंगे न कि अंग्रेजों द्वारा हमें प्रदान किये जा रहे सुधारों से”| 13अप्रैल,1919 को घटित जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ,रौलट विरोधी सत्याग्रह ने अपनी गति खो दी| यह आन्दोलन प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों और बिना ट्रायल के कैद में रखने के विरोध में था|

रौलट एक्ट ब्रिटिशों को बंदी प्रत्यक्षीकरण के अधिकार को स्थगित करने सम्बन्धी शक्तियां प्रदान करता था| इसने राष्ट्रीय नेताओं को चिंतित कर दिया और उन्होंने इस दमनकारी एक्ट के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन प्रारंभ कर दिए| मार्च-अप्रैल 1919 के दौरान देश एक अद्भुत राजनीतिक जागरण का साक्षी बना| हड़तालों,धरनों,विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया गया | अमृतसर में  9 अप्रैल को स्थानीय नेता सत्यपाल व किचलू को कैद कर लिया गया | इन स्थानीय नेताओं की गिरफ़्तारी के कारन ब्रिटिश शासन के प्रतीकों पर हमले किये गए और 11अप्रैल को जनरल डायर के में नेतृत्व में मार्शल लॉ लगा दिया गया|
13 अप्रैल,1919 को शांतिपूर्ण व निहत्थी भीड़ (जिसमें अधिकतर वे ग्रामीण शामिल थे जो आस-पास के गावों से बैशाखी उत्सव मानाने आये थे) एक लगभग बंद मैदान(जलियांवाला बाग़) में जनसभा को सुनने के लिए,जनसभाओं पर पाबन्दी के बावजूद,एकत्रित हुए,जिनकी  बिना किसी चेतावनी के क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गयी| जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया और देशभक्तों के मष्तिष्क को उग्र प्रतिशोध के लिए भड़का दिया| हिंसक माहौल के कारण गाँधी जी ने इसे हिमालय के समान गलती मानी और 18 अप्रैल को आन्दोलन को वापस ले लिया|

#निष्कर्ष

13अप्रैल,1919 को घटित जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ,रौलट विरोधी सत्याग्रह ने अपनी गति खो दी| इसके अलावा पंजाब,बंगाल और गुजरात में हुई हिंसा ने गांधी जी को आहत किया|अतः महात्मा गाँधी ने आन्दोलन को वापस ले लिया|