Monday, December 19, 2022

जो कुछ भी था बेसक मैं मिट्टी था...






जो कुछ भी था बेसक मैं मिट्टी था...

पांचवे दिन हम खुद ही फूंक देते लाश अपनी दोस्त, कास तुम चार दिन की जिंदगी में कुछ पल का साथ दे दिए होते...राज उस गुलशन का बहार है जिसकी फिजा ही बेवफा नकली दोस्त...मेरा हाल जब भी पूछो अकेले में पूछना, क्यूंकि भीड़ में तो मैं हंसता बहुत हूं दोस्त...वक्त पर वक्त न दे पाना भी, एक वजह है कई रिश्तो के अलग हो जाना दोस्त...बेहतर है उन रिश्तों का टूट जाना दोस्त, जिन रिश्तों से हम टूट रहे हो...11 महीने अच्छे नहीं गए,तो आखरी एक से क्या उम्मीद रखना दोस्त...जब मामला दो से तीन का हो जाय तो,किसी एक को ग्रहण लगना लाजमी है दोस्त...जो कुछ भी था बेसक मैं मिट्टी था, पर और कुछ पल रुकते तो शायद हम दोनों को हमरा खजाना मिल गया होता दोस्त...जिसको पाना ही मुमकिन नहीं था कभी,उम्र भर उसे खोने से डरते रहे दोस्त...बेबसी किसे कहते है कोई हमसे पूछे दोस्त, संपर्क तो है पर बात कभी नहीं कर सकते...बेहद सस्ती निकली मेरी जिंदगी दोस्त,कुछ लोग मेरे ज़िंदगी मे आकर तमाशा कर गए...किसी को क्या बताएं दोस्त कि कितने मजबूर हैं हम,जिसे बेहिसाब चाहा उसी से उम्र भर के लिए दूर हैं हम...दिल टूटने से तकलीफ़ ही नहीं तमाम उम्र का सकून भी खो गया दोस्त...तमाम रातों के तब हिसाब होते,जब तुम मेरे पास बेहिसाब होंते दोस्त...ए चंद मयखाने ही है जो दर्द से मरने नही देते,वर्ना हर संचा आशिक खुदखुशी कर लेता दोस्त...अब इन आँखों को किसी नजारे की जरूरत नहीं दोस्त,एक मुद्दत से इस कदर इश्क़ से तौबा कर रखा है मैंने...इज्जतदार होना मशहूर होने से ज्यादा बेहतर है दोस्त क्यूंकि यहीं खुदा का असली इबादत है...किसी से दिल लग जाये वो प्रेम नहीं,किसी के बिना दिल न लगे शायद वही प्रेम है...जहाँ दर्द मिलता है किस्तो में,बहेद करीब होते है वो रिश्तों मे दोस्त...राज 

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