Tuesday, November 8, 2022

मेरा गम भी तेरे जायदाद से ज्यादा है...





मेरा गम भी तेरे जायदाद से ज्यादा है...


क्या खूब लिखा ग़ालिब साहेब ने दोस्त... बिलास देख कर मुझे गरीब समझने वाले, मेरा गम भी तेरे जायदाद से ज्यादा है...तमन्नाओ से होते नहीं फैसले मुकदर के,कोशिश लाख सही मगर तकदीर भी एक चीज होती है दोस्त...हरगिज़ गलत निगाह से परखा न कर मुझे...मै कभी तेरा ही था दोस्त सोंचा ना कर मुझे...शब्दो को अधरों पर रख कर मन का भेद न खोलो, मै आँखों से सुन सकता हूँ दोस्त तुम अब बस आँखों से हीं बोलो...बड़े बेचैन रहते वो लोग दोस्त, जिन्हे हर बात याद रहती है...मिल सके जो असनी से उसकी ख्वाहिश नहीं मुझे दोस्त, जिद तो उसकी है जो मुक्कुदर में लिखा हीं नहीं...दिन भी हसीन और राते भी खुशनसीब थी, फिर हम दोनों कैसे बदनसीब हो गए दोस्त...जिससे मिलने के बाद जीने उम्मीद बाद जाय, शायद वही सही प्रेम है दोस्त...गीले शिकवे मिटा कर सोया करो, क्यूंकि मौत मुलाक़ात का मौका नहीं देती दोस्त ...इश्क वो जुआ है मेरे दोस्त, जहाँ हुकूमत का इक्का को भी झुकना पड़ता है...सब्र आ जाने के बाद पसंदीदा शख्स भी, दो टेके का लगने लगता है दोस्त...तुम थे तुम हो तुम ही रहोगे, ऐसा कहने वाले पता नहीं कँहा चले जाते है दोस्त...तुम हकीकत चाहे किसी की भी हो, ख़्वाब हमेसा हमरा है रहोगे दोस्त...किसी की ह्रदय को प्रेम से भर देना,फिर उससे मुँह फेर लेना किसी हत्या से काम नहीं होता दोस्त...दिल बुरा रख कर जुबान से मीठा नहीं बनना है दोस्त, जिसे इज्जत दी दिल से दी और जिसे छोड़ा दिल से...राज

क्या खूब लिखा है दोस्त किसी लिखने वाले ने...

एक बाजार लगा मोहब्बत का, शोदेबाजी जोरो से हुई...

किसी को खरीदार मिला अच्छा, अपनी यारी चोरो से हुई...

हमको हमसी चुराया उसने,हमको अपनी खास बताया उसने...

लकीरें इन हाथो से फिसल गई,वक्त बदला तो वो भी बदल गई...

जिस दिन अलग हुए मर जाउंगी कहा करती थी, मोहब्बत ही नहीं मेरा गुस्सा भी सहा करती थी...

परछाई बन कर साथ रहती थी वो,दूर जाने पर आँखों से बहती थी वो...

कोई माने या माने शादी तुझी से होंगी,कितना झूठ कहती थी वो...

उसकी दी हुई निशानी रखता हूँ, तु कर मै तेरी नादानी देखता हूँ...

ऐसा हकीम मिले तो बताना हमें, जो कहे आओ दोस्त हर परेशानी मैं देखता हूँ...

अगर किस्मत से किसी रास्ते पर टकराएगे,न देखेंगे तुमको न चेहरा दिखाएंगे...

अनजान मोसाफिर की तरह तुम भी गुजर जाना,हम भी गुजर जाएंगे दोस्त...

हमने ऐसी भी क्या खाता कर दी, जो काबिले माफ़ी नहीं,तुमसे बाते नहीं की कई मुद्द्त से, क्या यही सजा काफ़ी नहीं दोस्त...मेरी दुनियां उजड़ गई दोस्त, जिसे तुम हादसा समझते हो...Raj







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