Indian राष्ट्रपति_शासन SPECIAL
राष्ट्रपति_शासन_लगाने_से_जुड़ा _वह_सब_जिसे_आपको_जानने_और_ समझने_की_आवश्यकता_है
चुनावी नतीजों के तीन हफ्ते बाद भी सरकार गठन को लेकर अनिश्चितता में फंसे महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकता है.
खबर है कि राज्य के राजनीतिक हालात पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपनी रिपोर्ट केंद्र को भेज दी है. बताया जा रहा है कि इसमें उन्होंने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की है. कुछ खबरों में यह भी कहा गया है कि केंद्र ने भी इसकी अनुशंसा कर दी है. आइए जानते हैं, राष्ट्रपति शासन लगाने से जुड़े संवैधानिक प्रावधान और इस पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश,
#संवैधानिक_प्रावधान
राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 और 365 में हैं.
आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है. ऐसा जरूरी नहीं है कि वे राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही करे.
राष्ट्रपति शासन लगाये जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है. यदि इस बीच लोकसभा भंग हो जाती है तो इसका राज्यसभा द्वारा अनुमोदन किये जाने के बाद नई लोकसभा द्वारा अपने गठन के एक महीने के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है.
अनुच्छेद 365 के मुताबिक यदि राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा दिये गये संवैधानिक निर्देशों का पालन नहीं करती है तो उस हालत में भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.
#सर्वोच्च_न्यायालय_की_व्याख्या
1994 में बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारिया आयोग की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाये जाने संबंधी विस्तृत दिशानिर्देश दिये थे. इन्हें मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है.
#इन_परिस्थितियों_में_राष्ट् रपति_शासन_लगाना_उचित_है
1- यदि चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत न मिला हो.
2- यदि जिस पार्टी को बहुमत मिला हो वह सरकार बनाने से इनकार कर दे और राज्यपाल को दूसरा कोई ऐसा गठबंधन न मिले जो सरकार बनाने की हालत में हो.
3- यदि राज्य सरकार विधानसभा में हार के बाद इस्तीफा दे दे और दूसरे दल सरकार बनाने के इच्छुक या ऐसी हालत में न हों.
4- यदि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों का पालन न किया हो.
5- यदि कोई राज्य सरकार जान-बूझकर आंतरिक अशांति को बढ़ावा या जन्म दे रही हो.
6- यदि राज्य सरकार अपने संवैधानिक दायित्यों का निर्वाह न कर रही हो.
#इन_परिस्थितियों_में_राष्ट् रपति_शासन_लगाना_अनुचित_है
1- यदि राज्य सरकार विधानसभा में बहुमत हारने पाने के बाद इस्तीफा दे दे और राज्यपाल बिना किसी अन्य संभावना को तलाशे राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर दे.
2- यदि राज्य सरकार को विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का मौका दिये बिना राज्यपाल सिर्फ अपने अनुमान के आधार पर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दे.
3- यदि राज्य में सरकार चलाने वाली पार्टी लोकसभा के चुनाव में बुरी तरह हार जाये (जैसा कि जनता पार्टी सरकार ने अपातकाल के बाद 9 राज्य सरकारों को बर्खास्त करके किया था. और इंदिरा सरकार ने उसके बाद इतनी ही सरकारों को बर्खास्त करके किया था).
4- राज्य में आंतरिक अशांति तो हो लेकिन उसमें राज्य सरकार का हाथ न हो और कानून और व्यवस्था बुरी तरह से चरमराई न हो.
5- यदि प्रशासन ठीक से काम न कर रहा हो या राज्य सरकार के महत्वपूर्ण घटकों पर भ्रष्टाचार के आरोप हों या वित्त संबंधी आपात स्थिति दरपेश हो.
6- कुछ चरम आपात स्थितियों को छोड़कर यदि राज्य सरकार को खुद में सुधार संबंधी अग्रिम चेतावनी न दी गई हो.
7- यदि किसी किस्म का राजनीतिक हिसाब-किताब निपटाया जा रहा हो.
#अदालत_की_भूमिका
1975 में आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने 38वें संविधान संशोधन के जरिये अदालतों से राष्ट्रपति शासन की न्यायिक समीक्षा का अधिकार छीन लिया था. बाद में जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन के जरिये उसे फिर से पहले जैसा कर दिया. बाद में बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक समीक्षा के लिए कुछ मोटे प्रावधान तय किये.
1- राष्ट्पति शासन लगाये जाने की समीक्षा अदालत द्वारा की जा सकती है.
2- सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट राष्ट्रपति शासन को खारिज कर सकता है यदि उसे लगता है कि इसे सही कारणों से नहीं लगाया गया.
3- राष्ट्रपति शासन लगाने के औचित्य को ठहराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है और उसके द्वारा ऐसा न कर पाने की हालत में कोर्ट राष्ट्रपति शासन को असंवैधानिक और अवैध करार दे सकता है.
4- अदालत राष्ट्रपति शासन को असंवैधानिक और अवैध करार देने के साथ-साथ बर्खास्त, निलंबित या भंग की गई राज्य सरकार को बहाल कर सकती है, जैसा उसने उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार के मामले में किया है.
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