Thursday, May 28, 2020

हरि अनंत हरिकथा अनंता

हरि अनंत हरिकथा अनंता

भगवान शिव ने पार्वती को रामकथा सुनाते हुए समझाया कि प्रभु श्रीराम के बारे में किसी को संदेह नहीं करना चाहिए। राम तो परम ब्रह्म स्वरूप हैं यदि मनका दर्पण धुंधला होगा तो राम कैसे दिखेंगे।

कहहिं ते वेद असंमत बानी, जिन्ह के सूझ लाभु नहिं हानी।
मुकुर मलिन अरु नयन बिहीना, राम रूप देखहिं किमि दीना।
जिन्ह के अगुन न सगुन बिवेका, जल्पहिं कल्पित बचन अनेका। हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं, तिन्हहि कहत कछु अधटित नाहीं।
बातुल भूत विवस मतवारे, ते नहिं बोलहिं बचन विचारे।
जिन्ह कृत महामोह मद पाना, तिन्ह कर कहा करिअ नहिं काना।

शिवजी ने कहा जिनको अपना लाभ और हानि दिखाई नहीं पड़ती वे ही ऐसी वेद विरुद्ध बातें कहते है। इसके अलावा जिनका हृदय रूपी दर्पण मैला है और जो नेत्रों से हीन हैं वे बेचारे श्रीरामचन्द्र जी का रूप कैसे देख सकते हैं।

उन लोगों को जिनको सगुण और निर्गुण का ज्ञान नहीं, जो अनेक मन गढंत बातें किया करते हैं (बकते हैं) जो श्री हरि की माया के वश में होकर जगत में जन्म-मृत्यु के चक्कर में घूमते रहते हैं उनके लिए कुछ भी कह डालना संभव है। इसी प्रकार उन लोगों को जिन्हें वायु रोग (सन्निपात, उन्माद आदि) हो गया हो, जो भूत के वश हो गये हैं और जो नशे में चूर हैं, ऐसे लोग विचार कर बचन नहीं बोलते और जिन्होंने महामोह रूपी मदिरा का पान कर रखा है उनके कहने पर कान नहीं देना चाहिए।

अस निज हृदय विचारि तजु संसय भजु राम पद।
सुनु गिरिराज कुमारि, भ्रम तम रविकर बचन मम।

शिव जी ने कहा हे पार्वती। ऐसा विचार कर संदेह छोड़ दो और श्री रामचन्द्र जी के चरणों का भजन करिए क्योंकि भ्रम रूपी अंधकार को नष्ट करने के लिए सूर्य की किरणों के समान मेरे बचनों को सुनो।

सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा, गावहि मुनि पुरान बुध वेदा।
अगुन अरूप अलख अज जोई, भगत प्रेम बस सगुन सो होई।
जो गुन रहित सगुन सोई कैसे, जलु हिम उपल विलगनहिं जैसे।
जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा, तेहि किमि कहिअ विमोह प्रसंगा।

पार्वती जी को समझाते हुए शिवजी ने कहा सगुण और निर्गुण में कोई भेद नहीं है मुनि, पुराण, पंडित और वेद सभी यही कहते हैं। ऐसा समझिए कि जो निर्गुण अरूप (निराकार), अलख (न दिखाई पड़ने वाला) और अजन्मा है वही भक्तों के प्रेमवश सगुण होकर आकार धारण कर लेता है।

अब यह सवाल कि जो निर्गुण है वही सगुण कैसे अर्थात् जिसका कोई आकार नहीं तो वह आकार कैसे धारण कर लेता है इसके लिए यह समझ लें कि जैसे पानी और ओले में कोई भेदभाव नहीं होता, दोनों जल ही हैं ऐसे ही निर्गुण और सगुण एक ही हैं। जल का कोई आकार नहीं जिस वर्तन में रख दो उसका आकार हो जाता है जबकि ओले का आकार होता है। शिव जी ने कहा कि जिसका नाम भ्रम रूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य है उसके लिए मोह का प्रसंग भी कैसे कहा जा सकता है।

राम सच्चिदानंद दिनेसा, नहिं तहं मोह निसा लवलेसा।
सहज प्रकास रूप भगवाना, नहिं तहं पुनि विग्यान बिहाना।
हरष विषाद ग्यान अग्याना, जीव धर्म अहमिति अभिमाना।
राम ब्रह्म व्यापक जग जाना, परमानंद परेस पुराना।

श्री रामचन्द्र जी सद् चित और आनंद के स्वरूप सूर्य हैं वहां मोह रूपी रात के छोटे-छोटे अंश (लवलेश) भी नहीं हैं। वह स्वभाव से ही प्रकाश रूप और भगवान हैं, वहां तो विज्ञान रूपी प्रातःकाल भी नहीं होता। प्रातःकाल वहीं होता है जहां रात्रि हो। यहां रात्रि ही नहीं है। शिव जी ने कहा कि हर्ष, शोक, ज्ञान-अज्ञान, अहंकार और अभियान ये सभी जीव के धर्म हैं अर्थात स्वाभाविक रूप से उसमें रहते हैं श्री रामचन्द्र जी तो व्यापक ब्रह्म, परमानंद स्वरूप प्रभु और पुराण पुरुष है इसे सारा जगत जानता है।

पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि, प्रगट परावर नाथ।
रघुकुल मनि मम स्वामि सोइ कहि सिव नायउ माथ।

शिव जी ने कहा कि जो पुराण पुरुष प्रसिद्ध हैं प्रकाश के भण्डार हैं सभी रूपों में प्रकट हैं। जीव, माया और जगत सभी के स्वामी हैं वे ही रघुकुल मणि श्री रामचन्द्र जी मेरे स्वामी हैं-ऐसा कहकर शिवजी ने भगवान राम को स्मरण कर उनके चरणों पर मस्तक नवाया।

निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी, प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी।
जथा गगन धन पटल निहारी, झांपेउ भानु कहहिं कुविचारी।
चितव जो लोचन अंगुलि लाएं, प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएं।
उमा राम विषइक असमोहा, नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा।

शिव जी ने कहा कि अज्ञानी मनुष्य अपने भ्रम को तो समझते नहीं और वे मूर्ख प्रभु श्री रामचन्द्र जी पर उसका आरोप करते हैं जैसे आकाश में बादलों का पर्दा देखकर कुविचारी (गलत विचार वाले) कहते हैं कि बादलों ने सूर्य को ढक लिया है। इसी प्रकार जो मनुष्य आंखों के ऊपर उंगली रख कर देखता है उसको दो चन्द्रमा दिखाई ही पड़ेंगे। इसलिए हे पार्वती। श्री रामचन्द्र जी के विषय में इस प्रकार मोह की कल्पना करना वैसा ही है जैसे आकाश में अंधकार, धूल और धुएं का दिखाई पड़ना। आकाश तो बहुत विस्तृत है, आकाश निर्मल और निर्लेप है उसको कोई मलिन या स्पर्श नहीं कर सकता। इसी प्रकार भगवान श्री रामचन्द्र जी नित्य निर्मल और निर्दोष (स्पर्श से बाहर) है।

विषय करन सुर जीव समेता, सकल एक ते एक सचेता।
सब कर परम प्रकासक जोई, राम अनादि अवधपति सोइ।
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू, माया धीस ग्यान गुन धामू।
जासु सत्यता ते जड़ माया, भास सत्य इव मोह सहाया।

शिव जी ने कहा यह जगत प्रकाश्य है अर्थात इसको प्रकाशित किया जा सकता है और प्रकाशित करने वाले श्रीराम हैं। वे माया के स्वामी तथा ज्ञान और गुणों के धाम हैं, जिनकी सत्ता से मोह की सहायता पाकर जड़ माया भी सत्य के समान महसूस (भासित) होती है। विषय, इन्द्रियां, और इंद्रियों के देवता और जीवात्मा ये सब एक ही सहायता से चेतन होते हैं अर्थात विषयों का प्रकाश इंद्रियांे से और इंद्रियों का प्रकाश इंद्रियों के देवताओं से और इन्द्रिय देवता का चेतन जीवात्मा से प्रकाशित होता है। इन सभी का जो परम प्रकाशक है अर्थात जिससे इन सबका प्रकाश होता है वही अनादि ब्रह्म अयोध्या पति श्री राम हैं।

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