Thursday, May 28, 2020

अवश्य पढ़ें,एक उपदेशात्मक प्रस्तुति

अवश्य पढ़ें,एक उपदेशात्मक प्रस्तुति

बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥

मित्रों, विवेक उत्पन्न किए बिना विद्या पढ़ने से परिणाम में श्रम ही हाथ लगता है, हमने यह समझा है कि आज के विधार्जन के साधन पूरी तरह से मनुष्य जीवन के उद्देश्य को जानने व उसकी प्राप्ति के यथार्थ साधन बताने में पूरी तरह से सफल नही हुये हैं, मनुष्य के समस्त कर्तव्य व अकर्तव्यों का यथार्थ ज्ञान तो ईश्वर के ज्ञान यानि वेदों से ही प्राप्त हो सकता है, संसार में ईश्वर का ज्ञान किस रूप में उपलब्ध है, इस पर भी आज विचार करना जरूरी है। 

हमें यह भी ज्ञात है कि संसार की सबसे पुरानी पुस्तक वेद है, वेद देववाणी संस्कृत में हैं, वेद के समस्त पद व शब्द रूढ़ न होकर यौगिक या योगरूढ़ हैं, यह भी तथ्य है कि वेद सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है, सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न होने से वेदों में इतिहास का वर्णन नहीं है, हाँ, इतिहास उन ग्रन्थों में हो सकता है जो ग्रन्थ सृष्टि व मनुष्यों की उत्पत्ति के बाद बनें हों। 

वेदों में इतिहास का होना तभी सम्भव होता जब कि यह ज्ञान सृष्टि के आदि काल में प्राप्त न होकर बाद के वर्षों में प्राप्त हुआ हो, ईश्वर व जीव का स्वरूप क्या है? इसका निर्धारण मुख्यत: यथार्थ रूप में वेदाध्ययन कर ही जाना जा सकता है, जन्म व मरण की पहेली क्या है? मृत्यु से बचने के उपाय व साधन क्या हैं? दु:खों की निवृति सहित आनन्द या सुख की प्राप्ति किन किन साधनों से हो सकती हैं?

चिन्तन करने पर इसका उत्तर मिलता है कि सभी प्रकार का सत्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए वेदों की ही शरण, एवम् ईश्वर की भक्ति तथा उपासना ही साधन हैं, जीवात्मा को विवेक अर्थात् कर्तव्य व अकर्तव्य का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिये, इसके साधन भी वेदाध्ययन से उत्पन्न सत्य के ज्ञान से ही जाने जा सकते हैं। 

वेदाध्ययन वेदाध्यायी को ईश्वरोपासना में प्रवृत्त करते हैं, जिससे ईश्वर व जीवात्मा का साक्षात्कार होता है, इस अवस्था में पहुंचकर मनुष्य जीवनमुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है, इस अवस्था को प्राप्त कर लेने पर वह ईश्वरोपासना जारी रखते हुये परोपकार, सेवा, देश और समाज के हित व कल्याण के कार्य ही करता है, उसका मुख्य कार्य दूसरों के कल्याणार्थ सद्ज्ञान का प्रचार व प्रसार करना होता है 

ऐसा करने से सत्य व यथार्थ धर्म की उन्नति होती है, इसका उद्देश्य अपना नाम या अपना रूतबा बढ़ाना नहीं होता, अपितु "सर्वे भवन्तु सुखिनाम, सर्वे सन्तु निरामया:" जन-जन का हित व कल्याण करना होता है, इससे मनुष्य की इहलौकिक व पारलौकिक उन्नति होती है, जो कि धर्म का मुख्य उद्देश्य है, इस स्थिति में पहुँचे हुये मनुष्य के दु:खों की निवृत्ति हो जाती है, उसे जो ज्ञान प्राप्त होता है, उससे सन्तोष प्राप्त होता है, शंकायें व भ्रान्तियां दूर हो जाती हैं। 

जीवन सुख व प्रसन्नता से परिपूर्ण होता है, ऐसे धर्म के प्रचारक व्यक्ति को न तो सुख के साधनों, कार या बंगला, बैंक बैलेंस या सम्मान-प्रतिष्ठा के प्रति कोई मोह होता है, और न अपने जीवन के प्रति किसी प्रकार का राग व लगाव, ऐसा मनुष्य ही एक सीमा तक पूर्ण पुरुष या पूर्ण मनुष्य कहा जा सकता है, मनुष्य को सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये। 

सज्जनों, मनुष्य को अपना प्रत्येक कार्य सत्य और असत्य का विचार करके ही करना चाहिये, किसी पंथ या सम्प्रदाय के अनुयायियों को सत्य व असत्य का विवेचन करने की छूट नहीं है, हमें वही करना चाहिये जो हमारे वेदों में वर्णित है या हमारे ऋषि परम्परा में हमारे धर्म गुरु जैसा हमें कहते हैं, इसके विपरीत हम अपनी मनमर्जी या मताचरण से सत्याचार या सत्याचरण से युक्त मनुष्य धर्म का पालन नहीं कर पाते। 

इस कारण वेदाचरण से जो परिणाम मिलता है वह मताचरण से प्राप्त नहीं होता, अत: मनुष्यों की सभी प्रकार से उन्नति के लिये सभी पंथ या मतान्तरों के अनुयायियों को अपना मत वेदमत के अनुकूल बनाना होगा, वेदाचरण या वेदानुकूल आचरण से ही मनुष्य सच्चा मनुष्य बनेगा, ऐसा मनुष्य ही वस्तुत: अपने जीवन के उद्देश्य जो धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष हैं उसे प्राप्त करने वाला हो सकता है। 

इस अवस्था को प्राप्त करने वाले संसार में गिने चुने मनुष्य ही होते हैं, जो मनुष्य अपना कल्याण करना चाहते हैं, उन्हें पंथ या मतान्तरों से स्वयं को पृथक रख कर सद्ज्ञान की प्राप्ति व उसके अनुकूल आचरण करने का दृढ़ निश्चय करना होगा, यही जीवन उन्नति का एकमात्र सरल मार्ग है, मनुष्य को अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये।

यदि धर्म व जीवन के क्षेत्र में इस नियम का पालन किया जाये तो समाज में विद्या व ज्ञान को स्थापित कर मनुष्य दु:खों से रहित व सुख-शान्ति से समृद्ध हो सकता है, यही धर्म का उद्देश्य व लक्ष्य भी होता है, कल हम मानव जीवन के मूल उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेंगे, भाई-बहनों कल हम चर्चा करेंगे कि जब हम मानव शरीर लेकर आये हैं, तो हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहियें?

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