Wednesday, February 24, 2021

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन #मूल_कर्तव्य

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन #मूल_कर्तव्य 42वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा हमारे वर्तमान संविधान के भाग 4 में मौलिक कर्तव्य शामिल किये थे। वर्तमान में अनुच्छेद 51 A के तहत हमारे संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं जो कानून द्वारा वैधानिक कर्तव्य हैं और प्रवर्तनीय भी हैं। मौलिक अधिकारों को स्थापित करने के पीछे का उद्देश्य नागरिकों द्वारा अपने मौलिक अधिकारों का आदान-प्रदान कर अपने कर्तव्यों के दायित्वों पर जोर देकर उनका आनंद उठाना था। #हमारे_संविधान_में_निम्नलिखित_कर्तव्य_हैं : 1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों एवं संस्थाओं, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का आदर करे संविधान का पालन करने और इसके आदर्शों एवं संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान के संदर्भ में- प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह आदर्शों का सम्मान करे जिसमें स्वतंत्रता, न्याय, समानता, भाईचारा और संस्थाएं अर्थात् संस्थान, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका शामिल है। इसलिए किसी भी अंसंवैधानिक गतिविधियों में लिप्त हुए बिना संविधान की गरिमा बनाए रखना हम सब का कर्तव्य है। संविधान में यह भी उल्लेख किया गया है कि यदि कोई भी नागरिक को राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का अनादर करता है तो संविधान के प्रति वह दंड का भागीदार होगा। एक संप्रभु राष्ट्र के नागरिक के रूप संविधान का आदर करना सबका कर्तव्य है। 2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों का सम्मान करे भारत के नागरिक को उन महान आदर्शों का ध्यान रखते हुए पालन करना चाहिए जो स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की प्रेरणा का स्त्रोत बने। एक समाज का निर्माण और स्वतंत्रता, समानता, अहिंसा, भाईचारा और विश्व शांति के लिए एक संयुक्त राष्ट्र का निर्माण करना हमारे आदर्श है। यदि भारत के नागरिक इन आर्दशों के प्रति सचेत और प्रतिबद्ध हैं, तो अलगाववादी प्रवृत्तियां कहीं भी कहीं भी जन्म नहीं ले सकती है। 3. भारत की समप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और अक्षुण्ण बनाए रखे: यह भारत के सभी नागरिकों के सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दायित्वों में से एक है। भारत में जाति, धर्म, लिंग, भाषा के आधार पर लोगों की विशाल विविधता है। यदि देश की आजादी और एकता पर कोई खतरा उत्पन्न होता है तो तब संयुक्त राष्ट्र की कल्पना करना संभंव नहीं है। इसलिए संप्रभुता लोगों के पास हमेशा रहती हैं। इसे फिर से स्मरित किया जाता है जैसा कि प्रस्ताव में इसका उल्लेख पहले भी किया गया है और मौलिक अधिकारों की धारा 19 (2) के तहत भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उचित प्रतिबंधों की अनुमति प्रदान की गयी है। 4. देश की रक्षा करे तथा बुलाए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे बाहरी दुश्मनों के खिलाफ खुद की रक्षा करना हमारा एक मौलिक कर्तव्य है। प्रौद्योगिकी और परमाणु शक्तियों में सुधार होने से युद्ध केवल भूमि पर ही नहीं लड़े जा रहें हैं इसलिए सभी नागरिक इसके लिए बाध्य हैं कि कोई भी संदिग्ध तत्व जो भारत में प्रवेश करते हैं, के प्रति जागरूक रहें और जरूरत पड़ने पर स्वयं का बचाव करने के लिए हथियार उठाने को भी तैयार रहें। थल सेना, नौसेना और वायु सेना के अलावा इसमें सभी नागरिकों को शामिल किया गया है। 5. धर्म, भाषा और प्रबंध या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे भारत के लोगों में समरसता और समान बंधुत्व की भावना का निर्माण करें, स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध प्रथाओं का त्याग करें लोगों के बीच विभिन्न विविधताएं प्रदान की गयी हैं और एक ध्वज और भाईचारे की एक नागरिकता की भावना की उपस्थिति सभी नागरिकों में स्वाभाविक रूप से होनी चाहिए। यह उल्लेख भी किया गया है कि सभी नागरिकों को संकीर्ण सास्कृतिक मतभेदों से उपर उठकर सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है। 6. हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परीक्षण करे हमारी सांस्कृतिक विरासत, सबसे अमीर और समृद्ध विरासतों में से एक है, यह पृथ्वी की विरासत का भी एक हिस्सा है। इसलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हमें अतीत से जो भी विरासत में मिला है उसकी रक्षा करें और इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए बनाए रखें। भारत की सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। कला, विज्ञान, साहित्य के प्रति हमारे योगदान को पूरे विश्व में जाना जाता है और यह देश हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म की भी जन्म भूमि रही है। 7. प्राणिमात्र के लिए दयाभाव रखे तथा प्रकृति पर्यावरण जिसके अंतर्गत झील, वन, नदी और अन्य वन्य जीव हैं, की रक्षा का संवर्धन करे हमारे देश में प्राकृतिक भंडार और संसाधन हैं इसलिए इनकी रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। बढते हुए प्रदूषण और बड़े पैमाने पर हो रही जंगलों की गिरावट से पृथ्वी पर रहने वाली सभी मानव जातियों को भारी नुकसान हो सकता है। बढती हुयी प्राकृतिक आपदाएं इसका प्रमाण भी हैं। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत अनुच्छेद 48 ए के तहत अन्य संवैधानिक प्रावधानों में इसे और अधिक मजबूत बनाया गया है जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और इसमें सुधार करेगा तथा जंगलों व अन्य वन्य जीवों का संरक्षण करेगा। 8. मानववाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का विकास करे यह एक विदित हकीकत है कि अपने विकास के लिए लिए यह जरूरी है कि हम दुनिया भर के अनुभवों और घटनाओं से सीख लें। प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि तेजी से बदलती हुयी दुनिया के साथ सामंजस्य बनाए रखने के लिए वह वैज्ञानिक सोच और भावना को बढावा दें। 9. हिंसा से दूर रहें तथा सार्वजनिक संपति सुरक्षित रखें यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक देश जो पूरी दुनिया में अहिंसा का उपदेश देता है वहां हम समय- समय पर निर्थक हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की घटनाओं के साक्षी बनते हैं। सभी मौलिक कर्तव्यों के उल्लंघनों के बीच यह धारा अभी बाकी है। जब भी कोई हड़ताल या बंद या फिर रैली होती है तो वहाँ उपस्थित भीड़ बसों, इमारतों जैसी सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने तथा उन्हें लूटने की मानसिकता को विकसित करती है और नागिरक जो संरक्षक हैं वो मूक दर्शक रहते हैं। 10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढते हुए प्रयत्न तथा उपलब्धियों की नयी ऊचाइंयों को छूए एक जिम्मेदार नागरिक होने के रूप में हम जो भी कार्य अपने हाथों में लें वह उत्कृष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, जिससे हमारा देश निरंतर उपलब्धियों के शीर्ष स्तर तक पहुंच सके। इस अनुच्छेद में देश को न केवल पुर्नजीवित करने और फिर से संगठित करने की क्षमता है बल्कि इसे उत्कृष्टता के उच्चतम संभव स्तर तक पहुंचाने की क्षमता है। 11. प्रत्येक माता पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना यह राष्ट्रीय आयोग की सिफारिश थी कि 6 से 14 साल की उम्र के बीच के सभी बच्चों को कानूनी रूप से मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा हो। 86 वां संशोधन अधिनियम, कानूनी रूप से 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त औऱ अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान करता है #मौलिक_कर्तव्यों_की_आलोचना : ▪️मौलिक कर्तव्यों को आम लोगों द्वारा समझना मुश्किल होता है ▪️मौलिक कर्तव्यों की गैर न्यायोचित प्रकृति के कारण नैतिक उपदेशों के रूप में आलोचना ▪️लोगों द्वारा सभी का पालन करने के बाद लागू करने की कोई आवश्यकता नहीं है। ▪️भाग 4 शामिल करने के बाद मौलिक अधिकारों का मूल्य और महत्व कम हो गया है। ▪️सबसे महत्वपूर्ण यह है जिसकी सिफारिश स्वर्ण सिंह समिति ने की थी वे इसमें शामिल नहीं थे, जो इस प्रकार हैं: 1. संसद के पास कर्तव्यों के अनुपालन नहीं करने की स्थिति में जुर्माना या दंड लगाने की शक्ति है 2. यदि किसी धारा से ऊपर की सजा दी जाती है तो इस पर किसी भी आधार पर किसी भी न्यायालय में प्रश्न नहीं किया जा सकता है। 3. करों का भुगतान करने को मौलिक कर्तव्य के रूप में शामिल किया जाना। ▪️अन्य महत्वपूर्ण कर्तव्यों में परिवार नियोजन, मतदान आदि शामिल हैं। इस प्रकार, अंत में यह कहा जा सकता है कि सरकार के प्रय़ास तब तक सफल नहीं हो सकते हैं जब तक देश के नागरिक आम तौर पर सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग नहीं लेते। यहाँ तक कि मतदान जैसे अघोषित कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से लोगों द्वारा लागू किया जाना चाहिए। सार्वजनिक उत्साही लोगों और नेताओं को स्थानीय समुदाय की समस्याओं में रुचि लेने के लिए आगे आना चाहिए। हर नागरिक में पारिवारिक मूल्यों और शिक्षा के मामले में जिम्मेदार पितृत्व की भावना होनी चाहिए तथा बच्चे के शारीरिक नैतिक विकास को ठीक से पूरा किया जाना चाहिए। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #रॉलेट_एक्ट भारत में ब्रिटिश सरकार ने जब राज किया था तब उन्होंने भारत में कुछ ऐसे कानून बनाये थे जिसका विरोध करने पर हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी. आज हम इस लेख में ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गये ऐसे ही एक कानून के बारे बताने जा रहे हैं जिसका नाम है रॉलेट एक्ट. आइए जानते हैं इस कानून के बारे में विस्तृत तरीके से - #रॉलेट_एक्ट_क्या_था ? रॉलेट एक्ट, सन 1919 में मार्च महीने की 10 तारीख को ब्रिटिश भारत की लेजिस्लेचर एवं इम्पिरियल लेजिस्लेटिव कांउसिल द्वारा पारित किया गया एक कानून था. इस कानून के तहत भारतीय ब्रिटिश सरकार को लोगों पर अधिकार करने की अधिक शक्ति मिल गई थी. इस एक्ट को रॉलेट कमीशन भी कहा जाता है क्योंकि इस एक्ट को लाने के लिए एक कमेटी बनाई गई थी और इसके अध्यक्ष ब्रिटिश न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट थे. जिनके नाम पर इस एक्ट का नाम रखा गया था. इसके अलावा इसे ब्लैक एक्ट भी कहा जाता है। #रॉलेट_एक्ट_लाने_का_कारण : सन 1910 के दशक में यूरोप के अधिकतर देशों में प्रथम विश्व युद्ध हुआ था, इस युद्ध में ब्रिटेन की जीत हुई थी. और इस युद्ध में ब्रिटेन के जीत हासिल कर लेने के बाद उन्होंने भारत पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया. उन्होंने सन 1918 में युद्ध समाप्त होने के बाद देश में उनके खिलाफ क्रांतिकारियों द्वारा की जा रही गतिविधियों एवं आंदोलनों को दबाने के लिए रॉलेट एक्ट कानून लाने का फैसला किया था, ताकि कोई भी भारतीय ब्रिटिशों के खिलाफ आवाज न उठा सके. हालाँकि ब्रिटिश सरकार का इस एक्ट को लागू करने का उद्देश्य देश में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों को समाप्त कर देश में शांति लाना भी था। #रॉलेट_एक्ट_के_तहत_ब्रिटिश_सरकार_के_अधिकार : इस एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार को निम्न अधिकार मिल गए थे – ▪️सबसे पहले तो उन्हें यह अधिकार मिल गया था कि वे किसी भी ऐसे व्यक्ति को, जोकि आतंकवाद, देशद्रोह और विद्रोह में शामिल होता हुआ दिखेगा, उसे तुरंत गिरफ्तार कर सकते हैं. और वो भी बिना किसी वारंट के केवल शक के आधार पर। ▪️इसके अलावा गिरफ्तार किये गये लोगों को बिना किसी भी कार्यवाही के एवं बिना किसी को जमानत दिए 2 साल तक जेल में रखने का अधिकार भी ब्रिटिश सरकार को प्राप्त था. यहाँ तक कि गिरफ्तार किये गए लोगों को यह भी नहीं बताया जाता था कि उन्हें किस धारा के तहत जेल में डाल दिया गया है. और उन्हें अनिश्चितकाल तक नजरबंद भी रखा जाता था. इसके साथ ही भारतीयों को यह अधिकार भी नहीं दिया गया कि वे अपने पक्ष कुछ बोल सकें। ▪️ब्रिटिश सरकार को यह भी अधिकार प्राप्त था कि उन्होंने पुलिस को प्रेस को अधिक सख्ती से नियंत्रित करने की शक्ति दे दी थी। ▪️जेल में डाले गये दोषियों को अपने अच्छे व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए सिक्योरिटीज को जमा करने के बाद ही रिहा किया जाता था। ▪️भारतियों को राजनीतिक, धार्मिक या शैक्षिक गतिविधियों में हिस्सा लेने पर भी प्रतिबंध लगा दिए गये थे। #रॉलेट_एक्ट_का_भारतियों_द्वारा_किया_गया_विरोध : इस एक्ट का भारतीयों द्वारा विरोध किया गया था, क्योंकि उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके ऊपर यह कानून लागू करना अन्याय है. इस कानून के साथ भारतीय जनता काफी गुस्से में थी. उनकी ब्रिटिश सरकार से नाराजगी पहले की तुलना में और अधिक बढ़ गई थी. इस एक्ट का विरोध करने वालों में प्रमुख मजहर उल हक, मदन मोहन मालवीय जैसे स्वतंत्रता कार्यकर्ता एवं नेता शामिल थे. इन सभी ने अपने बाकी भारतीय सहयोगियों के साथ मिलकर इस एक्ट के खिलाफ सर्वसम्मति से मतदान करने के बाद काउंसिल से इस्तीफा देने का फैसला किया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #मौलिक_अधिकार भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। इन अधिकारों में अनुच्छेद 12, 13, 33, 34 तथा 35 का संबंध अधिकारों के सामान्य रूप से है। 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा जाता था परंतु इस संशोधन के अनुसार संपति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया। भारतीय नागरिकों को छ्ह मौलिक अधिकार प्राप्त है :- 1. समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक। 2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक। 3. शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक। 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक। 5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक। 6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32 #मूल_अधिकार_एक_दृष्टि_में : #मूल_अधिकार_साधारण ▪️अनुच्छेद 12 (परिभाषा) ▪️अनुच्छेद 13 (मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां।) 1. #समता_का_अधिकार : ▪️अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता) ▪️अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध) ▪️अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता) ▪️अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत) ▪️अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत) 2. #स्वातंत्रय_अधिकार ▪️अनुच्छेद 19 (वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण) ▪️अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) ▪️अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण) 3. #शोषण_के_विरूद्ध_अधिकार : ▪️अनुच्छेद 23 (मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रय का प्रतिषेध) ▪️अनुच्छेद 24 (कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध) 4. #धर्म_की_स्वतन्त्रता_का_अधिकार ▪️अनुच्छेद 25 (अंत: करण की और धर्म के अबोध रूप में मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता) ▪️अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता) ▪️अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करांे के संदाय के बारे में स्वतंत्रता) ▪️अनुच्छेद 28 (कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता) 5. #संस्कृति_और_शिक्षा_संबंधी_अधिकार ▪️अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण) ▪️अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करनेका अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार) ▪️अनुच्छेद 31 (निरसति) #कुछ_विधियों_की_व्यावृत्ति ▪️अनुच्छेद 31क (संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति) ▪️अनुच्छेद 31ख (कुछ अधिनियमों और विनिमयों का विधिमान्यकरण) ▪️अनुच्छेद 31ग (कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति) ▪️अनुच्छेद 31घ (निरसित) 6. #सांविधानिक_उपचारों_का_अधिकार ▪️अनुच्छेद 32 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए उपचार) ▪️अनुच्छेद 32क (निरसति) । ▪️अनुच्छेद 33 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति) ▪️अनुच्छेद 34 (जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का निर्बधन ▪️अनुच्छेद 35 (इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान) #मौलिक_अधिकारों_का_निलम्बन : निम्नलिखित दशाओं में मौलिक अधिकार सीमित या स्थगित किये जा सकते हैं:- ▪️संविधान में संशोधन करने का अधिकार भारतीय संसद को है. वह संविधान में संशोधन कर मौलिक अधिकारों को स्थगित या सीमित कर सकती है. भारतीय संविधान में इस उद्देश्य से बहुत-से संशोधन किये जा चुके हैं. इसके लिए संसद को राज्यों के विधानमंडलों की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं रहती. ▪️संकटकालीन अवस्था की घोषणा होने पर अधिकार बहुत ही सीमित हो जाते हैं. ▪️संविधान के अनुसार स्वतंत्रता के अधिकार और वैयक्तित्व अधिकार कई परिस्थतियों में सीमित किये जा सकते हैं; जैसे- सार्वजनिक सुव्यवस्था, राज्य की सुरक्षा, नैतिकता, साधारण जनता के हित में या अनुसूचित जातियों की रक्षा इत्यादि के हित में राज्य इन स्वतंत्रताओं पर युक्तिसंगत प्रतिबंध लगा सकता है. ▪️जिस क्षेत्र में सैनिक कानून लागू हो, उस क्षेत्र में उस समय अधिकारीयों द्वारा मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण या स्थगन हो सकता है. ▪️संविधान में यह कहा गया है कि सशस्त्र सेनाओं या अन्य सेना के सदस्यों के मामले में संसद् मौलिक अधिकारों (fundamental rights) को सीमित या प्रतिबंधित कर सकती है. [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #महात्मा_गांधी_एवं_उनके_प्रारंभिक_आंदोलन महात्मा गांधी जिन का नाम लेते ही हमारा दिमाग अहिंसा की तस्वीर उकेरने लगता है.जिन्हें हम 'बापू' के नाम से भी जानते हैं.जिन्हे भारत सरकार द्वारा राष्ट्रपिता की उपाधि से सम्मानित किया गया है. जिनके अथक प्रयासों से हमें 1746 से चली आ रही 200 सालों की अंग्रेजों की गुलामी से 15 अगस्त 1947 के दिन आजादी मिली. यूं तो हमें आजादी दिलाने में गांधी जी के अलावा अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. हमारे प्रिय स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह,राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने में अपने प्राणों की आहुति तक दे डाली. हमें आजादी दिलाने में इन महान क्रांतिवीरो का भी अहम् योगदान रहा है. लेकिन महात्मा गांधी जी द्वारा चलाये गए अहिंसा के आंदोलनों ने अंग्रेजी हुकूमत की रीड तोड़ कर रख दी. क्योंकि हिंसात्मक आंदोलनों को तो अंग्रेजी सरकार हिंसा के दम पर तोड़ना जानती थी लेकिन जिन आंदोलनों की बुनियाद ही सत्य और अहिंसा पर टिकी हो उसके आगे अंग्रेजी हुकूमत भी बेबस नजर आती थी. यही अहम् कारण थे कि महात्मा गांधी के चलाये गए आंदोलन सफल रहे और तिथि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा. दोस्तों आज हम आपसे इन्हीं महान पुरुष के जीवन तथा इनके प्रारंभिक आंदोलनों की दिलचस्प जानकारी सांझा कर रहे हैं. इस जानकारी को पढ़कर आप इन्हें तथा इनके आंदोलनों को और गहराई से जान पाएंगे. तो चलिए जानते हैं भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी के जीवन तथा उनके आंदोलन से जुड़ी दिलचस्प जानकारी. ▪️पूरा नाम – मोहनदास करमचंद गांधी ▪️जन्म – 2 अक्टूबर 1869 ▪️जन्मस्थान – पोरबंदर (गुजरात) ▪️पिता – करमचंद गाँधी ▪️माता – पुतलीबाई ▪️मृत्यु – 30 जनवरी 1948 महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 के दिन गुजरात राज्य के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था. उनके पिता का नाम श्री करमचंद्र गांधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था. महात्मा गांधी के पिता पोरबंदर के दीवान थे तथा उनकी माता पुतलीबाई ग्रहणी तथा धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. महात्मा गांधी की माता पढ़ी-लिखी नहीं थी लेकिन वह धार्मिक विचारों का पालन पूरी लगन से करती थी इन्हीं धार्मिक विचारों, धार्मिक सोच का गांधी जी के जीवन पर अहम प्रभाव बचपन से ही शुरू हो गया था. महात्मा गांधी का बचपन का नाम मोहनदास गांधी था.महात्मा गांधी का विवाह बाल अवस्था में ही हो गया था.उनके पिता करमचंद गांधी ने मात्र 13 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी का विवाह कस्तूरबा माखन से कर दिया था. कस्तूरबा, गांधी जी से उम्र में 1 साल बड़ी थी. सन् 1885 में गांधीजी के घर पुत्र का जन्म हुआ पर कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई. इसके कुछ समय बाद उनके पिता करमचंद गांधी भी चल बसे. मोहनदास और कस्तूरबा गांधी के कुल 4 पुत्र हुए. जिनका नाम हीरालाल गांधी , मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी था. #शिक्षा : गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से शुरू हुई. सन 1881 में उन्होंने हाई स्कूल में प्रवेश लिया तथा सन 1887 में गांधीजी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की.मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया किंतु परिवार वालों के कहने पर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड जाने का निर्णय लिया. इंग्लैंड में उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की तथा सन् 1891 में वे बैरिस्ट्रर बनकर भारत लौटे. गाँधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे. उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये. जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ. वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे. दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को अपमान का सामना करना पड़ा. गांधीजी को रेल द्वारा प्रीटोरिया की यात्रा करते समय अपमानजनक तरीके से ट्रेन से उतार फेंका गया. गाँधी जी का ये अपमान उनके काळा भारतीय होने के कारण हुआ था. दक्षिण अफ्रीका के गोरों ने अपनी अश्वेत नीति के तहत उनके साथ यह दुर्व्यवहार किया था. गांधीजी का हुआ ये अपमान उनके सीने में घर कर गया. अपने साथ हुए इस अपमान का बदला लेने के लिए गाँधी जी ने भारतीयों के साथ मिलकर गोरी सरकार के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प ले लिया. गाँधी जी ने यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया और सत्याग्रह छेड़ किया. दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के सम्मान के लिए, भारतीयों के प्रबंधित स्थानों पर प्रवेश के लिए, महात्मा गांधी ने आवाज बुलंद की. दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के हितो की आवाज उठाते -२ गाँधी जी को भारत में ब्रिटिश सरकार की हुकूमत को लेकर विरोधी आभाष होने लगा. उन्हें भारतीयों का भविष्य ब्रिटिश सरकार की गुलामी में नजर आ रहा था. वे भारत के भविष्य को लेकर चिंतित थे. वर्ष 1915 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये. इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में पहचान बना चुके थे. वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में गाँधी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे. प्रारंभ में गाँधी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और देश के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की. #गाँधी_जी_से_जुड़े_प्रारंभिक_आंदोलन : #चंपारण_आंदोलन : गांधी जी द्वारा सन 1917 में चंपारण आंदोलन चलाया गया.यह आंदोलन बिहार के चंपारण जिले में चलाया गया था. चंपारण आंदोलन को चंपारण सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है. यह आंदोलन लैंडलॉर्ड द्वारा किसानों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में चलाया गया था. लैंडलॉर्ड किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर कर रहे थे और उन्हें एक निश्चित मूल्य पर बेचने के लिए विवश कर रहे थे. किसानों को लैंडलॉर्ड का किया यह अत्याचार रास नहीं आ रहा था. किसान इस से मुक्ति पाना चाहते थे तथा किसानों ने इस अत्याचार से बचने के लिए गांधी जी से मदद मांगी. गांधी जी चंपारण के हालात को देखने के लिए चंपारण गए. जहां हजारों की भीड़ ने गांधीजी को घेर लिया और किसानों ने अपनी सारी समस्याएं गांधी जी को बताई. गांधी जी के साथ इस जनसमूह को देखकर ब्रिटिश सरकार भी हरकत में आ गई और सरकार ने अपनी पुलिस के द्वारा गांधी जी को जिला छोड़ने का आदेश दिया. गांधी जी ने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया इस पर पुलिस ने गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया. गांधी जी को अगले दिन कोर्ट में हाजिर होना था. लेकिन गांधीजी के हाजिर होने से पहले ही कोर्ट में हजारों किसानों की भीड़ जमा हो गई गांधी जी के समर्थन में नारे लगने लगे.तभी मैजिस्ट्रेट ने गांधीजी को बिना जमानत के छोड़ने का आदेश दे दिया लेकिन गांधीजी ने इस आदेश को नहीं माना और उन्होंने कानून के अनुसार सजा की मांग की.परन्तु मजिस्ट्रेट ने फैसला स्थगित कर दिया और इसके बाद गांधी जी अपने कार्य पर निकल पड़े और चंपारण आंदोलन की शुरुआत हो गई. गांधी जी के आंदोलन में किसानों के साथ आम जनता ने भी साथ दिया तथा मजबूर होकर ब्रिटिश सरकार को एक कमेटी गठित करनी पड़ी तथा महात्मा गांधी को उस का सदस्य बनाया गया. गांधीजी ने उन सभी प्रस्ताव को स्तगित कर दिया जो किसानो के विरोध में थे. इस तरह गाँधी जी के भारत में चलाये गए प्रथम चम्पारण सत्याग्रह जीत हुई. #खेड़ा_सत्याग्रह : सन 1918 में गुजरात के खेड़ा नामक गांव में बाढ़ आ गई तथा किसानों की फसल तबाह हो गई. जिससे किसान ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स भरने में अक्षम हो गए. किसानों ने इस दुविधा से निकलने के लिए गांधीजी की सहायता मांगी तब गांधी जी ने किसानों को टैक्स में छूट दिलाने के लिए आंदोलन किया जिसे 'खेड़ा सत्याग्रह' के नाम से जाना जाता है इस आंदोलन में गांधी जी को किसानों के साथ जनता का भरपूर समर्थन मिला और आखिरकार मई 1918 में ब्रिटिश सरकार को अपने टैक्स संबंधी नियमों में संशोधन कर किसानों को राहत देने की घोषणा करनी पड़ी और इस तरह यह आंदोलन भी सफल हुआ. [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #नागरिकता नागरिकता शब्द से उल्लेख है किसी भी समुदाय के पूर्ण सदस्यता का आनंद प्राप्त करना या राज्य जिसमें नागरिक रहता है वह राजनैतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त करता है| इसे एक विशेष राज्य के व्यक्ति के कानूनी सम्बन्धों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसे वह राज्य के प्रति अपनी वफादारी निभाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध रहता है और अपने कर्तव्यों को निभाकर जैसे कर अदा करना, जरूरत के समय सेना की मदद करना, राष्ट्रीय सिद्धांतों और मूल्यों का सम्मान करना आदि आता है| #संवैधानिक_प्रावधान : संसद के कानून द्वारा नागरिकता को विनियमित करने के लिए संविधान सभा अनुच्छेद 11 के माध्यम से एक सामान्यीकृत प्रावधान शामिल किया गया। हालांकि, जब इस संविधान को अपनाया गया, तब अनुच्छेद 5-11 रूप में नागरिकता के संविधान भाग 2 लागू किया गया जोकि निम्न प्रकार से उल्लेख करता है : ▪️अनुच्छेद 5 के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति” जो भारत के क्षेत्र में रहता है और • जो भारत के क्षेत्र में पैदा हुआ था या • जिसके माता पिता भारत के क्षेत्र में पैदा हुए थे या • कम से कम 5 साल के लिए भारत के सामान्य नागरिक रहें तुरंत इस प्रक्रिया के आरंभ होने के बाद भारत का नागरिक बन सकता है| ▪️अनुच्छेद 6- कुछ भारतियों को नागरिकता का अधिकार जो पाकिस्तान से भारत आ गए हैं उन्हें संविधान के प्रारंभ में नागरिकता के तहत शामिल करना। ▪️अनुच्छेद 7- नागरिकता का अधिकार कुछ पाकिस्तानी प्रवासियों के लिए – ये उन लोगों के लिए विशेष प्रावधान है जो मार्च 1, 1947 के बाद पाकिस्तान चले गए परंतु बाद में भारत लौट आए थे। ▪️अनुच्छेद 8- ये नागरिकता का अधिकार उन व्यक्तियों के लिए है जो भारतीय मूल के होते हुए भारत से बाहर रोजगार, शिक्षा, और शादी या अनुच्छेद 8 के आगे रख देने के उद्देश्य से दिया गया है। ▪️अनुच्छेद 9– वह व्यक्ति जो स्वेच्छा से विदेशी राज्य की नागरिकता हासिल करता है, वह भारत का नागरिक नहीं होगा। ▪️अनुच्छेद 10– वह व्यक्ति जो भारत का नागरिक है इस भाग के किसी भी प्रावधान के तहत, जो संसद द्वारा बनाया गया हो के अधीन होगा| #नागरिकता_अधिनियम_1955_और_इसका #संशोधन : 1. #1955_का_नागरिकता_अधिनियम -- संविधान के प्रारंभ होने के बाद नागरिकता का अधिग्रहण और समाप्ति से संबन्धित है। ▪️वह व्यक्ति जो 26 जनवरी 1950 के बाद भारत में पैदा हुआ हो, वह भारत का नागरिक हो सकता है लेकिन राजनायिकों के बच्चे भारत के नागरिक नहीं हो सकते| ▪️26 जनवरी 1950 के बाद पैदा हुए कोई भी व्यक्ति नागरिक तभी कहलाएगा जब वह कुछ शर्तों को पूरा करेगा जैसे या तो माता पिता भारत के नागरिक हों, या पिता नागरिक हो आदि| ▪️कुछ विदशी कुछ शर्तों को पूरा करके द्वारा भारतीय नागरिकता हासिल कर सकते हैं| ▪️यदि कोई भी क्षेत्र भारत का हिस्सा बन जाता है, भारत सरकार उन्हें नागरिक बनने के लिए शर्तों को निर्दिष्ट कर सकता है| ▪️नागरिकता कुछ आधारों जैसे पर त्याग, वर्खास्त्गी, आदि से खो सकती है| ▪️एक राष्ट्रमंडल देश के नागरिक को भारत में राष्ट्रमंडल नागरिकता का दर्जा दिया जाएगा। 2.#1986_का_नागरिकता (संशोधन) अधिनियम—यह अधिनियम विशेष रूप से असम राज्य की नागरिकता से संबंधित है। इसमें उल्लेख किया गया है कि यह नागरिकता पाने के लिए अवैध प्रवासियों को निर्धारित प्रारूप में भारतीय वाणिज्य दूतावास के साथ पंजीकृत होने की जरूरत है| 3. #1992_का_नागरिकता(संशोधन ) अधिनियम—इस अधिनियम के अनुसार, भारत के बाहर पैदा हुए किसी भी व्यक्ति को वंश परंपरा के द्वारा नागरिकता मिल सकती है यदि उसके माता-पिता दोनों में से कोई भी अपने जन्म के समय भारत के नागरिक रहे हों| 4. #2003_का_नागरिकता (संशोधन) अधिनियम—यह अधिनियम अधिकारों का परिचय देता है जिसमें उनके पंजीकरण से संबन्धित विदेशी नागरिकों के लिए प्रावधान दिये गए हैं| 5. #2005_का_नागरिकता_अधिनियम – यह अधिनियम गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश के आधार निर्भर करता है। यह PIO’s के 16 देशों के लिए दोहरी नागरिकता का प्रावधान प्रदान करता है। #नागरिकता_के_अधिग्रहण_की_विधियां : 1. जन्म के द्वारा -इस धारा के तहत नागरिकता का अनुदान संशोधन के अनुसार उस जगह के समय के अनुसार परिवर्तन के अधीन है। 2. नागरिकता, पंजीकरण के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। 3. वंश के आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। 4. देशीकरण द्वारा भी नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। 5. किसी क्षेत्र के अपने देश में समावेश द्वारा भी नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। #नागरिकता_का_खो_जाना : 1955 का नागरिकता अधिनियम नागरिकता के खो जाने के साथ साथ अधिग्रहण करने के प्रावधानों के बारे में भी बताता है: 1. त्याग के द्वारा -किसी भी व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार नागरिकता का त्याग करने की घोषणा करना, जिससे उससे भारत की नागरिकता ले ली जाये। 2. निष्कासन के द्वारा – यदि एक व्यक्ति स्वेच्छा से जानबूझकर किसी भी अन्य देशका नागरिक बन जाता है। #भारत_के_विदेशी_नागरिक : 2003 की नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के अनुसार भारत के विदेशी नागरिक में वह व्यक्ति भी शामिल है। • भारतीय मूल का नागरिक होने के बाद किसी और देश का नागरिक हो जाने वाला व्यक्ति (PIO) • दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करने के तुरंत बाद भारत का नागरिकता छोड़ देनी तथा केंद्र सरकार द्वारा OCI के रूप में पंजीकृत कराना। #अनिवासी_भारतीय एक NRI भारत का नागरिक होता है जिसके पास भारतीय पासपोर्ट होता है और अस्थायी रूप से या तो रोजगार या शिक्षा या इस तरह के किसी भी अन्य कारण से अन्य देश में आकर बस जाता है। #भारतीय_मूल_के_व्यक्ति : जिनके माता-पिता या दादा-दादी भारत के नागरिक हैं लेकिन वह भारत का नागरिक नहीं है, क्योकि वह किसी दूसरे देश का नागरिक है परन्तु माता-पिता भारतीय मूल के होने के कारण वह भी भारतीय नागरिक कहा जायेगा। नागरिकता का मुद्दा एक लोकतांत्रिक राष्ट्र राज्य के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसलिए नागरिकता एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण नींव है। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_की_शासन_प्रणाली सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली को कार्यपालिका और विधायिका के बीच के रिश्तों के आधार पर संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली में बांटा जा सकता है। संसदीय प्रणाली में कार्यकारी विधायिका के हिस्से होते हैं जो कानून को लागू करने और उसे बनाने में सक्रिए भूमिका निभाते हैं। संसदीय प्रणाली में, राज्य का प्रमुख एक सम्राट या राष्ट्रपति/ अध्यक्ष हो सकता है लेकिन ये दोनों ही पद नियमानुसार/ औपचारिक हैं। सरकार का प्रमुख जिसे आम तौर पर प्रधानमंत्री कहा जाता है, वही वास्तविक प्रमुख होता है। इसलिए, सभी वास्तविक कार्यकारिणी शक्तियां प्रधानमंत्री के पास होती हैं। मंत्रिमंडल में कार्यकारिणी शक्तियां होने की वजह से संसदीय सरकार को कैबिनेट सरकार भी कहते हैं। अनुच्छेद 74 और 75 केंद्र में संसदीय प्रणाली और अनुच्छेद 163 और 164 राज्य में संसदीय प्रणाली के बारे में है। #संसदीय_प्रणाली_के_तत्व_और_विशेषताएं : नीचे संसदीय प्रणाली के तत्व और विशेषताएं बताईं गईं हैं 1. #नाममात्र_का_और_वास्तविक_प्रमुखः राज्य का प्रमुख औपचारिक पद पर होता है और वह नाममात्र का कार्यकारी होता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति। भारत में, सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है जो वास्तविक कार्यकारी है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75 राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री को नियुक्त किए जाने की बात कहता है। अनुच्छेद 74 के अनुसार मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता करने वाले प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को उनके कार्यों को करने में सहायता और परामर्श देंगे। 2. #कार्यकारिणी_विधायिका_का_एक_हिस्सा_है– कार्यकारिणी विधायिका का हिस्सा है। भारत में, किसी व्यक्ति को कार्यकारिणी का सदस्य बनने के लिए उसे संसद का सदस्य होना चाहिए। हालांकि, संविधान यह सुविधा प्रदान करता है कि अगर कोई व्यक्ति संसद सदस्य नहीं है तो उसे अधिकतम लगातार छह माह की अवधि तक मंत्री नियुक्त किया जा सकता है, उसके बाद वह व्यक्ति मंत्री पद पर नहीं रह सकता (यदि वह छह माह के अन्दर संसद का सदस्य नहीं बनता है तो)। 3. #बहुमत_दल_नियमः लोकसभा चुनावों में अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने वाला दल सरकार बनाता है। भारत में राष्ट्रपति, लोकसभा में बहुमत दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। राष्ट्रपति इस नेता को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करते हैं और बाकी के मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करते हैं। अगर किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता, तो ऐसी स्थिति में, राष्ट्रपति दलों के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। 4. #सामूहिक_जिम्मेदारीः मंत्री परिषद संसद के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार होता है। संसद का निचला सदन अविश्वास प्रस्ताव पारित कर सरकार को बर्खास्त कर सकता है। भारत में, जब तक लोकसभा में बहुमत रहता है तभी तक सरकार रहती है। इसलिए, लोकसभा के पास सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार होता है। 5. #सत्ता_के_केंद्र_में_प्रधानमंत्रीः भारत में प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी होते हैं। वे सरकार, मंत्रिपरिषद और सत्तारूढ़ सरकार के प्रमुख होते हैं। इसलिए, सरकार के कामकाज में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। 6. #संसदीय_विपक्षः संसद में कोई भी सरकार शत– प्रतिशत बहुमत प्राप्त नहीं कर सकती। विपक्ष राजनीतिक कार्यकारी द्वारा अधिकार के मनमाने ढंग से उपयोग की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 7. #स्वतंत्र_लोक_सेवाः लोक सेवक सरकार को परामर्श देते हैं औऱ उनके फैसलों को लागू करते हैं। मेधा– आधारित चयन प्रक्रिया के आधार पर लोक सेवकों की स्थायी नियुक्ति की जाती है। सरकार बदलने के बाद भी उनकी नौकरी की निरंतरता बनी रहती है। लोक सेवा कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के निष्पादन में दक्षता सुनिश्चित करता है। 8. #दो_सदनों_वाली_विधायिकाः भारत समेत, अधिकांश देश संसदीय प्रणाली अपनाते हैं और वहां दो सदनों वाली विधायिका है। इन सभी देशों के निचले सदन के सदस्यों का चुनाव जनता करती है। निचला सदन सरकार के कार्यकाल पूरा होने या बहुमत की कमी की वजह से सरकार न बना पाने की वजह से भंग किया जा सकता है। भारत में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर लोकसभा भंग कर सकते हैं। 9. #गोपनीयताः इस प्रणाली में कार्यकारिणी के सदस्यों को कार्यवाहियों, कार्यकारी बैठकों, नीतिनिर्माण आदि जैसे मामलों में गोपनीयता के सिद्धांत का पालन करना होगा। भारत में, अपने कार्यालय में प्रवेश से पहले मंत्री गोपनीयता की शपथ लेते हैं। #संसदीय_प्रणाली_के_लाभ : राष्ट्रपति प्रणाली की तुलना में संसदीय प्रणाली के निम्नलिखित लाभ हैं– 1. #विभिन्न_प्रकार_के_समूहों_का_प्रतिनिधित्वः सरकार का संसदीय स्वरूप कानून और नीति निर्माण में विभिन्न जातीय, नस्ली, भाषाई और वैचारिक समूहों को अपने विचार साझा करने का अवसर मुहैया कराता है। भारत जैसे देश में जहां विविधता का स्तर बहुत अधिक है, वहां, समाज के विभिन्न वर्गों के लिए राजनीतिक स्थान उपलब्ध करा कर लोगों का जीवन सरल बनाता है। 2. #विधायिका_और_कार्यपालिका_के_बीच_बेहतर #समन्वयः कार्यकारिणी, विधायिका का हिस्सा है। चूंकि सरकार को निचले सदन में सदस्यों का बहुमत प्राप्त होता है, विविदों और झगड़ों की प्रवृत्ति कम हो जाती है। यह सरकार के लिए संसद में कानून पारित कराना और उसे लागू करना आसान बनाता है। 3. #अधिनायकवाद_को_रोकता_हैः संसदीय प्रणाली में, एक ही व्यक्ति के पास सभी शक्तियों के बजाए शक्ति मंत्रि परिषद के पास होती है जिससे अधिनायकवाद की प्रवृत्ति कम हो जाती है। संसद अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सरकार को हटा सकती है। 4. #जिम्मेदार_सरकारः संसद कार्यकारिणी की गतिविधि की जांच कर सकती है क्योंकि कार्यकारिणी संसद के लिए जिम्मेदार होती है। राष्ट्रपति प्रणाली में, राष्ट्रपति विधायिका के लिए जिम्मेदार नहीं होता। संसद के सदस्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए प्रश्न पूछ सकते हैं, प्रस्ताव ला सकते हैं और जनता के महत्व के मामलों पर चर्चा कर सकते हैं। ऐसे प्रावधान राष्ट्रपति प्रणाली में नहीं हैं। 5. #वैकल्पिक_सरकार_की_उपलब्धताः संसद का निचला सदन ( लोकसभा) अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है और उसे पारित कर सकता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति, देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है। यूनाइटेड किंग्डम में, विपक्ष सरकार के मंत्रिमंडल के लिए छाया मंत्रिमंडल (शैडो कैबिनेट) बनाता है ताकि वे इस प्रकार की भूमिका निभाने के लिए तैयार रहें। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #ट्रेड_यूनियन_एवं_साम्यवादी_दल भारत का पहला अधुनिक मजदूर संगठन था- बी.पी. वाडिया द्वारा गठित मद्रास संघ, 1918 ई. में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना तथा उसमें भारत की सदस्यता का परिणाम आॅल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना के रूप में सामने आया। एटक का पहला सम्मेलन 1920 ई. में बम्बई में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता तत्कानीन कांग्रेस अध्यक्ष लाला लाजपत राय ने की। 1920 ई. तथा 1922 के मध्य यह संगठन कांग्रेस से सम्बद्ध था। कांग्रेस के गया अधिवेशन (1922) में श्रमिकों को संगठित करने के लिए कांग्रेस ने सहयोग करने का निर्णय लिया। कालांतर में लाल लाजपत राय सी.आर.दास जी.ए. सेन गुप्त, सी.एफ. एन्डूज, सुभाषचंन्द्र बोस तथा जवाहरलाल नेहरू जेसे नेताओं ने एटक की अध्यक्षता की। 1926 ई. में भारतीय मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ। जिससे मजदूर संघो को कानूनी दर्जा प्रदान किया गया। श्रमिक संघों में वामपंथी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के कारण 1929 ई. में एटक का विवभाजन हो गया। 1929 में एटक से अलग हुए साम्यवादी नेता देशपाण्डेय ने लाल ट्रेड यूनियन का गठन किया। 1934 ई.में कांग्रेस के अन्दर गठित समाजवादी कांग्रेस दल के प्रयासों से विभाजित एटक में एक बार फिर से एकता कायम हो गयी। कांग्रेस में ही वामपंथी विचारधारा वाले नेता जैसे श्रीपाद अमृत डांगे, मुजफ्फर हमद, पूरणचन्द्र जोशी तथा सोहन सिंह जोश ने कामगार किसान पार्टी की स्थापना की। केन्द्रीय संघ के संगठनों को एक करने के परिणामस्वरूप 1933 ई. में राष्ट्रीय मजदूर संघ परिसंघ स्थापना हुई। 1938 ई. में एटक तथा छज्न्थ् की नागपुर में एक संयुक्त बैठक हुई पहले विभाजन के 11 वर्ष बाद अर्थात् 1940 में दोनों में एकता स्थापित हो गयी। बाद में छज्न्थ् का विघटन हो गया तथा उसके मजदूर संघ एटक से जुड़ गये। श्रमिक आंदोलन 1930-36 के बीच कमजोर पड़ गया। इसका परिणाम हुआ कि 1932-34 ई. में शुरू हुए द्वितीय विनय अवज्ञा आंदोलन में मजदूरों की भागीदारी कम रही। 1935 ई के अधिनियम के बाद लोकप्रय मंत्रिमंडलों के सत्ता में आने से मजदूर संघों की संख्या में अत्याधिक वृद्धि हुई। आमतौर पर कांग्रेस मंत्रिमंडल श्रमिकों की मांगों के प्रति सहानुभूति रखते थे। उसके कार्यकाल मे कांग्रेस मंत्रिमंडलों द्वारा 1938 ई. के बम्बई औद्योगिक विवाद अधिनियम तथा 1939 ई. के दुकान और संस्थान अधिनियम जैसे विभिन्न श्रम अधिनियम पारित किए गए। द्वितीय विश्वयुद्ध का श्रमिक संघ आंदोलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। युद्ध के परिणाम स्वरूप पहले तो मूल्यों में वृद्धि हुई और जरूरी वस्तुओं का आभाव हो गया। दूसरे युद्ध की माॅग को पूरा करने के लिए औद्योगिक क्रियाकालापों में अत्याधिक वृद्धि हुई। कांग्रेस मंत्रिणमंडल पहले ही त्याग-पत्र दे चुके थे। श्रमिकों ने महगाई भत्ता तथा बोनस की मांग की परंतु सरकार ने भारत सुरक्षा अधिनियम के तहत सभी हड़तालों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। तथापि, युद्ध से उत्पन्न स्थितियाॅ श्रमिक संघों के विकास में सहायक हुई। लाहौर में नवम्बर 1941 में श्रमिक संघों के बहुत बडे़ सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें विशाल संख्या में श्रमिक संघों ने भाग लिया। इसी सम्मूलन में भारतीय श्रमिक परिस्ंाघ नाम से नए केन्द्रीय मजदूर संघ के गठन का निर्णय लिया गया। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ से ही भारत की स्वतंत्रताप्राप्ति तक श्रमिक संघों की गतिवधियाॅ बहुत धीमी रहीं 1940 ई. के बाद से ही साम्यवादी युद्ध प्रयासों का समर्थन कर रहे थे तथा वे हड़ताल के समर्थन में नहीं थे। इसके अलावा, केंग्रेस के श्रमिक संघों के अधिकतर नेता 1942 ई. के भारत छोडों आंदोलन में गिरफ्तार किएजा चुके थे। स्वतंत्रताप्राप्ति से से पूर्व श्रमिक संघ आंदोलन के इतिहास में युगांतरकारी घटना मई 1944 में भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन की स्थापना थी। इसका लक्ष्य श्रमिक आंदोलन को गंाधीवादी आदर्शों पर चलाना था। इस संगठन के गठन का प्रमुख कारण 1938ई. में नागपुर एकता के बाद साम्यवादियों द्वारा एटक पर अपना प्रभुत्व जमा लेना था। राष्ट्रवादियों ने सरदार बल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में मई 1947 में एटक से अलग होकर भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन बना ली। देश में 1918 ई0 में प्रथम श्रमिक संघ के गठन के साथ श्रमिक आंदोलनो की विकास-यात्रा आंरभ हुई। इसके विकास का अनुमान इस बात से लाया जा सकता है कि भारत जब आजाद हुआ तब इन संघों की संख्या 195 तक पहुॅच गयी थी। फिर भी, स्वंतत्रताप्राप्ति से पूर्व भारतीय श्रमिक संघ आंदोलन में अधिकांश औद्योगिक श्रमिकों की निरक्षरता, बाम्ह नेतृत्व पर उनकी निर्भरता तथा राजनीति चेतना का आभाव आदि प्रमुख कारण थे, जिनके परिणामस्वरूप यह आंदोलन कई धाराओं में विभक्त हो गया था इसे आपसी फूट का शिकार होना पड़ा। #श्रमिक_संघों_के_गठन_के_कारण : श्रमिक संघों के गठन संबधी प्रमुख कारणों में सर्वोंपरि थे- ग्रामीण गरीबी तथा ऋणग्रस्तता। गरीबी के कारण शहर आने वाले श्रमिक उन बिचैलियों की दया पर निर्भर होते थे, जो उन्हें नौकरी दिलाने में मदद करते थे। ये श्रमिक देश के विभिन्न भागों से आते थे और धर्म, जाति, सम्प्रदाय एवं भाषा भेद के कारणों से एक दूसरे के स्वभाव से परिचित नहीं थे। इस परिवेश में रहने के कारण श्रमिकों को एकता एवं संगठन में निहित शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने में काफी समय लगा। इसी बीच प्रथम विश्व युद्ध तथा मन्दी के कारण आर्थिक संकट का भार श्रमिकों के कंधों पर आ पड़ा। भारत में यह स्थिति संगठित मजदूर आंदोलन के विकास के लिए एकदम उपयुक्त थी। #वामपंथी_विचाधारा_का_विकास : वामपंथी एवं दक्षिणपंथी फ्रांसीसी क्रांति की देन हैं। राजा के समर्थक दक्षिणपंथी तथा राजा के विरोधी वामपंथी कहलाए। कालांतर में समाज वादी तथा साम्यवादी विचारधाराओं के संदर्भ में वामपंथी। शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। प्राचीन भारतीय परंपरा में चोलकाल के अंतर्गत भी दो वर्ग थे- वैलगै तथा इड़गै। वैलंगे समर्थकों का वर्ग था जबकि इड़गै राजा के विरोधियों का प्रतिनिधत्व करते थे। अठरहवीं शताब्दी के अंतिम दशक में इंग्लैण्ड में हुई औद्योगिक क्रांति के पश्चात् समाज में दो नए वर्गों पूंजीपति एव मजदूर वर्ग का उदय हुआ। धीरे-धीरे इन मजदूरों की दशा बहुत खराब होने लगी। कार्ल माक्र्स एवं फैडरिक एंजिल्स द्वारा सन् 1848 ई. में प्रसिद्ध प्रस्तक कम्युनिस्ट लिखी गई, जिसमें जिसमें सर्व प्रथम साम्यवाद शब्द का प्रयोग हुआ। भारत में प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् साम्यवादी विचारधारा का प्रचलन हुआ। इस विचारधारा का प्रसार सबसे अधिक औद्योगिक नगरों जैसे बंबई, कलकत्ता, मद्रास, लाहौर, में हुआ। लाहौर में गुलाम हुसैन के संपादन में इकलाब, बम्बई में एस.ए. डांगे के संपादन में सोशल्सिट बंगाल मे मुजफ्फर अहमद के संपादन में नवयुग ने वामपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व किया तथा पद्रास में सिंगारबेलु चेट्टियार ने कृषकों तथा मजदूरों को समर्थन देकर साम्यवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भमिका निभाई। भारत में वामपंथी आंदोलन का दो विचारधाराओं – साम्यवाद एवं कांग्रेस सोशलिस्ट दल के रूप में विकास हुआ। कांग्रेस सोशलिस्ट दल को भारतीय राष्ट्रीय का समर्थन प्राप्त था। जबकि सम्यवाद को रूस के साम्यवादी संगठन कमिन्टर्न का समर्थन प्राप्त था। #भारतीय_कम्युनिस्ट_पार्टी_का_उदय : 1920 में ताशकंद (तत्कालीन सोवियत रूस) में एम.एन. राय एवं उनके कुछ सहयोगियों ने मिलकर साम्यवादी दल के गठन की घोषणा की। एम.एन. राय कम्युनिस्ट इंटरनेशल की सदस्यता पाने वाले प्रथम भारतीय थे। सन् 1925 ई. में कानपुर में भारतीय कम्युनिट पार्टी का गठन हुआ। जिसके महामंत्री का पदभार एस.पी. घाटे ने संभाला। साम्यवादी दल के चर्चित होने का मुख्य कारण पेशावर षड्यंत्र केस (1922-24) कानपुर षड्यंत्र मामला (1924)ई0 तथा मेरठ षड्यंत्र केस 1929-33 ई में इस दल से संबंधित व्यक्तियों की संलिप्तता थी। इन मकदमों से निपटने के लिए कांग्रेस ने केन्द्रीय सुरक्षा समिति का गठन किया। पं. जवाहर लाल नेहरू, कैलाशनाथ काटजू एवं डाॅ.एफ.एच. अंसारी ने इन मुकदमों की सुनवाई के दौरान प्रतिवादी की ओर से पैरवी की। 1934 ई. के साम्यवादी दल के आंदोलनों ने भारत में काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी, जिसके परिणमस्वरूप सन् 1934 ई. में ब्रिटिश सरकार ने साम्यवादी दल पर प्रतिबंध लगा दिया। #कांग्रेस_समाजवादी_दल_का_उदय (1934 ) : 1934 में आचार्य नरेन्द्र जय प्रकाश नारायण, मीनू मसानी एवं अशोक मेहता के सम्मिलित प्रयासों के फलस्वरूप कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना हुई। इसका प्रथम सम्मेलन सन्-1934 ई में पटना में हुआ। कांग्रेस की नीतियों में समाजवादी विचारधारा को सम्मिलित करना तथा भारत के आर्थिक विकास की प्रक्रिया के नियंत्रण एवं नियम हेतु राज्य की सर्वोच्चता को स्वीकार करना समाजवादी दल की स्थापना का उद्देश्य था। साथ ही, राजाओं और जमींदारों की प्रथा का उन्मूलन बिना मुआवजे के करना, इसके अन्य उदेश्यों में शामिल था। जुलाई 1931 में बिहार में समाजवादी दल की स्थापना जयप्रकाश नारायण, फूलन प्रसाद वर्मा तथा अन्य व्यक्तियों ने की। पंजाब में भी सन् 1933 में एक समाजवादी दल की स्थापना की गई। दौरान आचार्य नरेन्द्र देव की समाजवाद एवं राष्ट्रीय आंदोलन तथा प्रकाश नारायण की ’समाजवाद ही क्यों’ नामक पुस्तकें प्रकाशित हुई। सुभाषचंन्द्र बोस द्वारा 1939 ई. में गठित फाॅरवर्ड ब्लाॅक अन्य वामपंथी संस्थाओं में प्रमुख है। सन् 1940 ई. में क्रांतिकारी समाजवादी दल का गठन हुआ, जिसका उद्देश्य अंग्रेजों को शक्ति द्वारा भारत से निकाल फेंकना था तथा भारत में समाजवाद की स्थापना करना था। एन. दत्त मजूमदार द्वारा सन् 1939 ई. में बोल्शेविक दल और सौम्येन्द्रनाथ टैगोर द्वारा सन् 1942 ई. में क्रांतिकारी साम्यवादी दल का गठन किया गया। सन् 1941 में बोल्शेविक लेनिनिस्ट दल की स्थापना का श्रेय क्रांतिकारी नेताओं अजीय राय एवं इन्द्रसेन को जाता है। अतिवादी लोकतंत्र दल का गठन भारतीय साम्यवादी दल के जनक एम. एन. द्वारा 1940 ई. में किया गया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_की_प्रस्तावना_या_उद्देशिका ▪️उद्देशिका संविधान के आदर्शोँ और उद्देश्योँ व आकांक्षाओं का संछिप्त रुप है। ▪️अमेरिका का संविधान प्रथम संविधान है, जिसमेँ उद्देशिका सम्मिलित है। ▪️भारत के संविधान की उद्देशिका जवाहरलाल नेहरु द्वारा संविधान सभा मेँ प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है। ▪️उद्देश्यिका 42 वेँ संविधान संसोधन (1976) द्वारा संशोधित की गयी। इस संशोधन द्वारा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता शब्द सम्मिलित किए गए। ▪️प्रमुख संविधान विशेषज्ञ एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र कहा है। हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिक को : सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक नयाय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब मेँ व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा मेँ आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत २००६ विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित, और आत्मार्पित करते हैं। #प्रस्तावना_का_उद्देश्य : ▪️सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय उपलब्ध कराना। ▪️विचार, मत, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करना। ▪️पद और अवसर की समानता देना। ▪️व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता स्थापित करना। #आवश्यक_तत्व : ▪️उद्घोषित करती है कि भारत की संप्रभुता भारत के लोगोँ मेँ समाहित है। ▪️उद्घोषित करती है कि भारत भारतीय राज्य की प्रकृति संप्रभु, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक है। ▪️उद्घोषित करती है कि भारत के लोगोँ का उद्देश्य न्याय, स्वतंत्रता, समानता प्राप्त करना है तथा बंधुत्व की भावना का विकास करना है। ▪️उद्घोषित करती है कि भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत, अधिनियमित, आत्मार्पित किया गया है। #परिभाषिक_शब्दों_के_भावार्थ : #हम_भारत_के_लोग : हम भारत के लोग संपूर्ण भारतीय राजव्यवस्था का मूल आधार है। इन शब्दोँ का महत्व इस अर्थ मेँ है कि अपने संपूर्ण इतिहास मेँ पहली बार भारत के लोग इस स्थिति मेँ हैं कि अपने भाग्य का निर्माण करने का निर्णय स्वयं कर सकें। ▪️यह शब्दावली भारतीय समाज के अंतिम व्यक्ति की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है कि हमारे भारत और उसकी व्यवस्था का स्वरुप क्या हो। ध्यान रहे कि इससे पूर्व सभी अधिनियमों को ब्रिटेन ने पारित किया था जबकि यह संविधान भारत की प्रमुख प्रभुत्व संपन्न संविधान सभा ने भारत के लोगोँ की और से अधिनियमित किया था। #संप्रभुता : इस शब्द का अर्थ है कि भारत ने अपने आंतरिक और वाह्य मामलोँ मेँ पूर्णतः स्वतंत्र है। अन्य कोई सत्ता इसे अपने आदेश के पालन के लिए विवश नहीँ कर सकती है। ▪️भारत मेँ स्वतंत्र होने के बाद से 1949 मेँ राष्ट्रमंडल की सदस्यता स्वेच्छा से की थी। अतः यह भारत की संप्रभुता का उल्लंघन नहीँ है। #समाजवादी : यह शब्द एक विशिष्ट आर्थिक व्यवस्था का द्योतक है जिसमेँ राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियोँ पर सरकार के माध्यम से पूरे समाज का अधिकार होने को मान्यता दी जाती है। ▪️यह पूंजी तथा व्यक्तिगत पूंजी पर आधारित आर्थिक व्यवस्था, पूंजीवाद के विपरीत संकल्पना है। ▪️42 वेँ संविधान संशोधन द्वारा शामिल किए जाने से पूर्व यह नीति निर्देशक तत्वों के माध्यम से संविधान मेँ शामिल था। समाजवादी शब्द को उद्देशिका मेँ सम्मिलित करना हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के उद्देश्यों के अनुरुप है। #पंथनिरपेक्ष : यह शब्द घोषित करता है कि भारत एक राष्ट्र के रुप मेँ किसी धर्म विदेश विशेष को मान्यता नहीँ देता है। इससे यह भी घोषित होता है कि भारत सभी धर्मो का आदर समान रुप से करता है। ▪️सभी नागरिक अपने व्यक्तिगत विश्वास, आस्था और धर्म का पालन, संरक्षण और संवर्धन करने के लिए स्वतंत्र है। ▪️यह शब्दावली भी 42 वेँ संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका मेँ सम्मिलित की गयी। यद्यपि पंथनिरपेक्षता के मूल तत्व संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 मेँ समाहित हैं। #लोकतंत्रात्मक : यह अत्यंत व्यापक अर्थों वाली शब्दावली है जिससे ध्वनित होता है कि आम आदमी की आवाज महत्वपूर्ण है। शासन प्रणाली हो या समाज व्यवस्था सभी क्षेत्रोँ मेँ लोकतंत्र की स्थापना के उद्देश्य का तात्पर्य यह घोषित करता है कि हम सभी समान है तथा क्योंकि हम मनुष्य है इसलिए अपने वर्तमान और भविष्य के उद्देश्यों, नीतियो को तय करना हम सब का समान अधिकार है। ▪️उद्देशिका मेँ प्रयुक्त लोकतांत्रिक शब्द भारत को लोकतंत्रात्मक प्रणाली का राष्ट्र घोषित करता है। भारत ने अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के अंतर्गत संसदीय प्रणाली को अपने ऐतिहासिक अनुभवो के आधार पर चुना। #गणराज्य : शब्द का तात्पर्य है कि राष्ट्र का प्रमुख या अध्यक्ष नियमित अंतराल पर नियमित कार्यकाल के लिए चुना जाता है। ▪️ब्रिटेन में वंशानुगत अधार पर राजा या रानी राष्ट्र का प्रतिनिधिनित्व हारते हैं, जबकि शासन की बागडोर प्रधानमंत्री के हाथ मेँ होती है। ▪️भारत मेँ गणतंत्र त्वक व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्र और शासन का प्रमुख एक ही पदाधिकारी राष्ट्रपति होता है। #सामाजिक_आर्थिक_एवं_राजनैतिक_न्याय : उद्देशिका भारत के नागरिकोँ को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक नयाय प्राप्त कराने के उद्देश्य की घोषणा करती है। ▪️न्याय का सामान्य अर्थ होता है कि भेद-भाव की समाप्ति। राजनीतिक न्याय सहित आर्थिक और सामाजिक नयाय के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए नीति-निदेशक तत्वों (भाग-4), मूल अधिकारोँ (भाग-3) मेँ विभिन्न प्रावधान किए गए हैं। ▪️सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक नयाय का लक्ष्य 1917 की रुसी क्रांति से प्रेरित है। ▪️विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता : इस शब्द का नकारात्मक अर्थ होता है – प्रतिबंधोँ का अभाव, जबकि सामान्य अर्थ होता है व्यक्तिगत विकास हेतु समान अवसरोँ की उपलब्धता। ▪️उद्देशिका मेँ वर्णित इन आदर्शोँ की प्राप्ति के लिए संविधान के भाग-3 मेँ मूल अधिकारोँ के अंतर्गत प्रावधान किया गया है। #प्रतिष्ठा_और_अवसर_की_समता : इस शब्द का तात्पर्य है कि अतार्किक विशेषाधिकारोँ की समाप्ति, आगे बढ़ने के समान अवसर तथा मानव होने के आधार पर सभी समान हैं। इससे संबंधित प्रावधान संविधान के भाग-3 और भाग-4 मेँ उल्लिखित हैं। ▪️व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता : बंधुता शब्द राष्ट्र के सभी नागरिकोँ के बीच भावनात्मक संबंधों को दृढ़ करने का आदर्श प्रस्तुत करता है, जैसा की परिवार के सदस्योँ के बीच मेँ होता है। ▪️भावनात्मक एकता के अभाव मेँ न तो व्यक्ति के सम्मान की रक्षा की जा सकती है और न राष्ट्र की एकता और अखंडता संरक्षित रह सकती है। ▪️अखंडता शब्द 42-वेँ संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका मे शामिल किया गया। वस्तुतः स्वतंत्रता, समता और बंधुता का उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांति (1889) से प्रभावित है। ▪️उद्देशिका : संविधान का भाग है या नहीँ? के संबंध संदर्भ मेँ न्यायिक निर्णय, सर्वोच्च नयायालय के दृष्टिकोण मेँ संविधान की प्रस्तावना संविधान के निर्माताओं के मन को खोलने की कुंजी है। ▪️1960 के बेरुबाड़ी वाद मेँ यह प्रश्न निर्णय हेतु सर्वोच्च यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुआ तो सर्वोच्चन न्यायालय ने माना की यद्यपि उद्देशिका संविधान के उद्देश्योँ का संघीभूत रुप है तथा संविधान निर्माताओं के लक्ष्योँ की कुंजी है, लेकिन यह संविधान का भाग नहीँ है। ▪️1973 के केशवानन्द भारती वाद और 1995 के एल. आई. सी. वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पूर्व की मान्यता के विपरीत माना कि उद्देशिका संविधान का भाग है क्योंकि संविधान अनुच्छेदों में वर्णित प्रावधानोँ की व्याख्या मेँ सहायक है। ▪️केशवानंद भारती के वाद मेँ उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि संविधान के किसी भाग मेँ संशोधन का अधिकार है लेकिन उस भाग मेँ संशोधन नहीँ किया जा सकता, जो आधारभूत ढांचे से संबंधित है। ▪️संविधान सभा ने भी सभी भागोँ को अधिनियमित करने के बाद उद्देशिका को संविधान के भाग के रुप मेँ अधिनियमित किया गया था। अतः उद्देशिका संविधान का भाग है। परंतु इसे नयायालय मेँ वैधानिक की प्रस्थिति प्राप्त नहीँ है। ▪️उद्देशिका : संशोधन योग्य है या नहीँ? के संदर्भ मेँ न्यायिक निर्णय – इसकी प्रकृति ऐसी है कि इनका प्रवर्तन नयायालय मेँ नहीँ हो सकता है अर्थात यह न्यायालय मेँ अप्रवर्तनीय है। ▪️संविधान के अनुच्छेद 368 मेँ संविधान संसोधन की शक्ति और प्रक्रिया सन्निहित है। ▪️1973 के केशवानन्द भारती वाद मेँ उद्देशिका के संशोधन योग्य होने या न होने का प्रश्न सर्वोच्च यायालय के समक्ष आया, तो न्यायालय ने माना की उद्देशिका संविधान का भाग है अतः यह अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधनीय है लेकिन एक शर्त रखी कि अनुच्छेद 368 के अंतर्गत किए गए संशोधन से संविधान के मूल तत्वों मेँ कोई परिवर्तन नहीँ होना चाहिए। अतः उद्देशिका संशोधन योग्य है और यह शक्ति मात्र संसद को प्राप्त है। संविधान के मूल तत्वों के प्रतिबंध के अंतर्गत रहते हुए 1976 मेँ 42 वेँ संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका मेँ समाजवादी, पंथ निरपेक्ष और अखंडता शब्द जोड़े गए। #उद्देशिका_का_महत्व : ▪️संविधान के मूल सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक दर्शन की अभिव्यक्ति है। ▪️संविधान निर्माताओं के महान और आदर्श विचारोँ की कुंजी है। ▪️सर अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर के अनुसार उद्देशिका हमारे स्वप्नों और विचारोँ का प्रतिनिधित्व करती है। ▪️के. एम. मुंशी के अनुसार उद्देशिका हमारे प्रभुत्व संपन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की जन्मकुंडली है। ▪️सर अर्नेस्ट वार्कर ने उद्देशिका को अपने सामाजिक, राजनैतिक विचारोँ की कुंजी माना तथा अपनी पुस्तक प्रिंसिपल्स ऑफ सोशल एंड पोलिटिकल थ्योरी मेँ आमुख के रूप मेँ शामिल किया। ▪️एम. हिदायतुल्ला के अनुसार उद्देशिका हमारे संविधान की आत्मा है। #प्रमुख_आवश्यक_तथ्य : ▪️भारत का संविधान भारत के लोगोँ द्वारा संविधान सभा के माध्यम से 26 नवंबर, 1949 को स्वीकार किया गया लेकिन 26 जनवरी, 1950 से संपूर्ण लागू किया गया। ▪️उद्देशिका, नीति-निदेशक तत्वों तथा मूल कर्तव्य की तरह ही वाद योग्य नहीँ है, अर्थात इसके उल्लंघन के विरुद्ध कोई वाद नहीँ लाया जा सकता है और न ही कानून के द्वारा लागू किया जा सकता है। ▪️13 दिसंबर, 1946 को पंडित नेहरु ने उद्देश्य प्रस्ताव संविधान सभा के समक्ष रखा। ▪️डेमोक्रेसी शब्द के दो यूनानी शब्दो डेमो और क्रेटिया शब्द से बना है, जिसका अर्थ है लोगों का शासन। ▪️प्रत्येक संविधान का अपना एक दर्शन होता है, हमारे भारतीय संविधान का दर्शन पंडित नेहरु के ऐतिहासिक उद्देश्य संकल्प से लिया गया है, जिसे संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को अंगीकार किया था। ▪️उच्चतम न्यायालय ने इस बात से सहमत प्रकट की थी कि उद्देशिका संविधान निर्माताओं के मन की कुंजी है, जहाँ अस्पष्ट शब्द पर जाएं या उनका अर्थ स्पष्ट ना हो, वहाँ संविधान निर्माताओं के आशय को समझने के लिए उद्देश्यिका की सहायता ली जा सकती है। ▪️उद्देशिका मेँ लिखित है कि हम भारत के लोग इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। इस प्रकार भारत की संप्रभुता भारत की जनता मेँ निहित है। ▪️भारत को 26 जनवरी, 1950 को एक गणराज्य घोषित किया गया, जिसका तात्पर्य है, भारत का राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होगा, अनुवांशिक नहीँ। ▪️उद्देशिका मेँ संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य, सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक नयाय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता, व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखंडता आदि प्रमुख शब्द प्रयोग किए गए हैं। ▪️भारत मेँ प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र अपनाया गया है। जहाँ संसद सदस्यों और विधायकों का प्रत्यक्ष चुनाव होता है। ▪️इस व्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाने के लिए इसकी शुरुआत पंचायती तथा नगर निगम निकायोँ से (73 वें और 74 वेँ संवैधानिक संसोधन 1992 द्वारा) शुरु की गयी। ▪️इस प्रकार संविधान की प्रस्तावना मेँ राजनीतिक लोकतंत्र के अलावा आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र को भी अपनाया गया है। गणराज्य या गणतांत्रिक व्यवस्था का तात्पर्य राष्ट्र का अध्यक्ष, आनुवांशिक न होकर निर्वाचित होगा। ▪️संविधान की उद्देशिका मेँ न्याय की परिभाषा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय के रुप मेँ की गयी है, जिसमेँ राजनैतिक न्याय के द्वारा राज्य को ज्यादा कल्याणकारी बनाकर सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के उद्देश्योँ को प्राप्त किया जा सकता है। ▪️स्वतंत्रता मेँ विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता सम्मिलित है। ▪️स्वतंत्रता एक अनिवार्य तत्व है। किसी भी समाज के व्यक्तियो के व्यक्तिगत बौद्धिक, आध्यात्मिक, विकास के लिए समानता का अर्थ है – प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता। ▪️हमारे संविधान मेँ किसी भी तरह के भेदभाव को अवैधानिक करार दिया गया है। चाहे वह धर्म के आधार पर हो, जाति, लिंग, जन्म अथवा राष्ट्रीयता के आधार पर। अंतिम लक्ष्य है, कि व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करना, इस प्रकार उद्देशिका यह घोषणा करती है कि भारत के लोग संविधान के मूल स्रोत हैं, भारतीय राजव्यवस्था में प्रभुता लोगोँ मेँ निहित है और भारतीय राज्य लोकतंत्रात्मक व्यवस्था है, जिसमे लोगों को मूल अधिकारोँ तथा स्वतंत्रताओं की गारंटी दी गयी है तथा राष्ट्र की एकता सुनिश्चित की गयी है। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #होमरुल_लीग_आंदोलन प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों की एक अन्य कम नाटकीय लेकिन अधिक प्रभावशाली प्रतिक्रिया हुई- ऐनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक का होमरूल लीग। होमरूल लीग आंदोलन, प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् उत्पन्न हुयी परिस्थितियों में भारतीयों की कम प्रभावशाली प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया, किन्तु स्वतंत्रता आंदोलन की प्रक्रिया में इसने अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। यद्यपि यह आंदोलन स्थिरता के साथ प्रारम्भ हुआ था लेकिन आगे चलकर इसने तत्कालीन सभी आंदोलनों को पीछे छोड़ दिया। भारतीय होमरूल लीग का गठन आयरलैंड के होमरूल लीग के नमूने पर किया गया था, जो तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी से उभरती हुयी प्रतिक्रियात्मक राजनीति के नये स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता था। ऐनी बेसेंट और तिलक इस नये स्वरुप के अगुवा थे। #होमरूल_आंदोलन_प्रारम्भ_होने_के_उत्तरदायी #कारक ▪️राष्ट्रवादियों के एक वर्ग का मानना था कि सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए उस पर दबाव डालना आवश्यक है। ▪️मार्ले-मिंटो सुधारों का वास्तविक स्वरुप सामने आने पर नरमपंथियों का भ्रम सरकार की निष्ठा से टूट गया। ▪️प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन द्वारा भारतीय संसाधनों का खुल कर प्रयोग किया गया। इस क्षतिपूर्ति के लिये युद्ध के उपरांत भारतीयों पर भारी कर आरोपित किये गये तथा आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं। इन कारणों से भारतीय त्रस्त हो गये तथा वे ऐसे किसी भी सरकार विरोधी आंदोलन में भाग लेने हेतु तत्पर थे। ▪️यह विश्वयुद्ध तत्कालीन विश्व की प्रमुख महाशक्तियों के बीच अपने-अपने हितों को लेकर लड़ा गया था तथा इससे अन्य ताकतों के साथ ब्रिटेन का वास्तविक चेहरा भी उजागर हो गया था। युद्ध के पश्चात् श्वेतों की अजेयता का भ्रम भी टूट गया। ▪️जून 1914 में बाल गंगाधर तिलक जेल से रिहा हो गये। भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु वे पुनः किसी सुअवसर की तलाश में थे। उन्होंने सरकार को अपना सहयोगात्मक रुख समझाने का प्रयत्न किया। आयरलैण्ड के होमरूल लीग के तर्ज पर उन्होंने प्रशासकीय सुधारों की मांग की। तिलक ने कहा हिंसा के प्रयोग से भारतीय स्वतंत्रता की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है। फलतः उन्होंने आयरिस होमरूल जैसे आदोलन के द्वारा भारतीयों की दशा में सुधार लाने की वकालत शुरू कर दी। उन्होंने यहां तक कहा कि संकट के इन क्षणों में हमें ब्रिटेन का सहयोग करना चाहिये। 1896 में आयरलैण्ड की थियोसोफिस्ट महिला ऐनी बेसेंट भारत आयीं थीं। प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत उन्होंने भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन देने हेतु आयरिस होमरूल लीग के नमूने पर भारत में आंदोलन प्रारम्भ करने का निर्णय किया। इस लीग के माध्यम से वे अपने विचारों को जनता में प्रसारित कर अपना कार्य क्षेत्र बढ़ाना चाहती थीं। बालगंगाधर तिलक तथा एनी बेसेंट दोनों की होमरूल लीग ने यह महसूस किया कि आन्दोलन की सफलता के लिए उदारवादियों के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ ही अतिवादी राष्ट्रवादियों का भी समर्थन आवश्यक है। 1914 में नरमपंथियेां एवं अतिवादियों के मध्य समझौता प्रयासों के असफल हो जाने के पश्चात् बालगंगाधर तिलक एवं ऐनी बेसेंट दोनों ने स्वयं के प्रयासों से राजनीतिक गतिविधियों को जीवंत करने का निश्चय किया। 1915 के प्रारम्भ से एनी बेसेंट ने भारत एवं अन्य उपनिवेशों में स्वशासन की स्थापना हेतु अभियान प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने जनसभायें आयोजित कीं तथा न्यू इण्डिया एवं कामनवील नामक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इन पत्रों के माध्यम से उन्होंने अंग्रेज सरकार के सम्मुख भारत में स्वशासन की स्थापना की मांग को दृढ़ता के साथ उठाया। 1915 के कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में तिलक एवं ऐनी बेसेंट को अपने प्रयासों में थोड़ा सफलता मिली। इस अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि उग्रवादियों को पुनः कांग्रेस में सम्मिलित किया जायेगा। यद्यपि ऐनी बेसेंट प्रारंभ में अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो सकी थीं। अधिवेशन में एनी बेसेंट अपनी होमरूल लीग योजना के लिये कांग्रेस का समर्थन प्राप्त करने में असफल रहीं किन्तु कांग्रेस, शिक्षा के माध्यम से राजनीतिक मांगों का प्रचार-प्रसार करने तथा स्थानीय कांग्रेस कमेटियों को पुनः सक्रिय करने पर अवश्य सहमत हो गयी। इसके पश्चात् ऐनी बेसेंट ने कांग्रेस की स्वीकृति प्राप्त होने का इंतजार न करते हुये स्वयं के प्रयासों से होमरूल लीग के कार्यों को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। उन्होंने घोषित किया कि चूंकि कांग्रेस ने उनकी लीग को स्वीकृति प्रदान करने में अनिवार्य कदम नहीं उठाये हैं फलतः लीग के माध्यम से वे अपने उद्देश्यों को स्वयं प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र हैं। बालगंगाधर तिलक तथा एनी बेसेंट ने किसी प्रकार के आपसी टकरावकी संभावनाओं को दूर करने के लिए पृथक-पृथक लीग स्थापित करने का निर्णय लिया। #तिलक_की_होमरूल_लीग : बाल गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग की स्थापना अप्रैल 1916 में की। इसकी शाखायें महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांत एवं बरार में खोली गयीं। इसे 6 शाखाओं में संगठित किया गया। स्वराज्य की मांग, भाषायी प्रांतों की स्थापना तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार को लीग ने अपना मुख्य लक्ष्य घोषित किया। #बेसेंट_की_होमरुल_लीग : ऐनी बेसेंट ने सितम्बर 1916 में मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना की घोषणा की। मद्रास के अतिरिक्त लगभग पूरे भारत में इसकी शाखायें खोली गयीं। इसकी लगभग 200 शाखायें थीं। जार्ज अरूंडेल को लीग का संगठन सचिव नियुक्त किया गया। यद्यपि बेसेंट की लीग का संगठन तिलक की होमरूल लीग की तुलना में कमजोर था किन्तु इसके सदस्यों की काफी बड़ी संख्या थी। बेसेंट की लीग में अरूंडेल के अलावा बी.एम. वाडिया एवं सी.पी. रामास्वामी अय्यर ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। धीरे-धीरे होमरूल लीग आंदोलन लोकप्रिय होने लगा तथा इसके समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी। अनेक प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं ने लीग की सदस्यता ग्रहण की, जिनमे मोतीलाल नेहरु, जवाहर लाल नेहरु, भूलाभाई देसाई, चितरंजन दास, मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, तेज बहादुर सप्रू एवं लाला लाजपत राय प्रमुख थे। इनमें से कुछ नेताओं को स्थानीय शाखाओं का प्रमुख नियुक्त किया गया। अनेक अतिवादी राष्ट्रवादी, जिनका कांग्रेस की कार्यप्रणाली से मोहभंग हो चुका था, होमरूल लीग आंदोलन में शामिल हो गये। गोपाल कृष्ण गोखले की सर्वेट आफ इंडिया सोसायटी के अनेक सदस्यों ने भी आंदोलन की सदस्यता ग्रहण कर ली। फिर भी एंग्लो-इण्डियन्स (आंग्ल-भारतीय), बहुसंख्यक मुसलमान तथा दक्षिण भारत की गैर-ब्राह्मण जातियां इस आंदोलन से दूर रहीं क्योंकि उनका विश्वास था कि होमरूल का तात्पर्य हिन्दुओं मुख्यतया उच्च जातियों के शासन से है। #होमरूल_लीग_आंदोलन_के_कार्यक्रम : होमरूल लीग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनमानस को होमरूल अर्थात् स्वशासन के वास्तविक अर्थ से परिचित कराना था। इसने भारतीयों को राजनैतिक रूप से जागृत करने के पिछले सभी आन्दोलनों को पीछे छोड़ दिया तथा भारत के राजनितिक दृष्टिकोण से पिछड़े क्षेत्रों जैसे- गुजरात एवं सिंध तक अपनी पैठ बनायी। आंदोलन का उद्देश्य पुस्तकालयों एवं अध्ययन कक्षों (जिनमें राष्ट्रीय राजनीति से संबंधित पुस्तकों का संग्रह हो) तथा जनसभाओं एवं सम्मेलनों का आयोजन कर भारतीयों में राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना था। इसके लिये लीग ने समाचार- पत्रों, राजनीतिक विषयों पर विद्यार्थियों की कक्षाओं का आयोजन, पैम्फलेट्स, पोस्टर, पोस्टकार्ड, नाटकों एवं धार्मिक गीतों जैसे माध्यमों को भी अपने प्रयासों में सम्मिलित किया। लीग ने अपने उद्देश्यों की सफलता के लिये कोष बनाया तथा धन एकत्रित किया, सामाजिक कार्यों का आयोजन किया तथा स्थानीय प्रशासन के कार्यों में भागेदारी निभायी। लीग ने स्थानीय कार्यों के माध्यम से बहुसंख्यक भारतीयों से जुड़ने का प्रयास किया। 1917 की रूसी क्रांति से भी लीग के कार्यों में सहायता मिली। #लीग_के_प्रति_सरकार_का_रुख : सरकार ने लीग के समर्थकों पर कड़ी कार्यवाही की तथा लीग के कार्यक्रमों को रोकने के लिये दमन का सहारा लिया। मद्रास में सरकार ने छात्रों पर कठोर कार्यवाई की तथा राजनीतिक सभाओं में उनके भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बाल गंगाधर तिलक के विरुद्ध न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया। उनके पंजाब एवं दिल्ली में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गयी। जून 1917 में ऐनी बेसेंट एवं उनके सहयोगियों बी.पी. वाडिया एवं जार्ज अरुंडेल को गिरफ्तार कर लिया गया। इन गिरफ्तारियों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी प्रतिक्रिया हुयी। अत्यन्त नाटकीय ढंग से सर एस. सुब्रह्मण्यम अय्यर ने अपनी ‘सर’ की उपाधि त्याग दी तथा तिलक ने सरकारी दमन के विरोध में अहिंसात्मक प्रतिरोध कार्यक्रम प्रारम्भ करने की वकालत की। सरकार को विश्वास था कि इन कार्यवाइयों से होमरूल आंदोलन स्वतः समाप्त हो जायेगा किन्तु इसका उल्टा प्रभाव पड़ा। सरकारी कुचक्र के विरोध में आंदोलनकारी और संगठित हो गये तथा कई अन्य राष्ट्रवादी इसमें शामिल हो गये। तिलक ने घोषणा की कि यदि ऐनी बेसेंट को रिहा नहीं किया गया तो भारतीय जनता सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह करेगी। 20 अगस्त 1917 को भारत सचिव ई.एस. मांग्टेग्यू के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि युद्ध के बाद भारत में स्वायत्त संस्थाओं के क्रमिक विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ की जायेगी। सरकार ने भी सितम्बर 1917 में ऐनी बेसेंट को जेल से रिहा कर दिया। इसके पश्चात् होमरूल लीग आंदोलन स्थगित कर दिया गया। #आंदोलन_की_उपलब्धियां : होमरूल लीग आंदोलन की अनेक उपलब्धियां भी रहीं। जो इस प्रकार हैं- ▪️आंदोलन ने केवल शिक्षित वर्ग के स्थान पर जनसामन्य की महत्ता की प्रतिपादित किया तथा सुधारवादियों द्वारा तय किये गये स्वतंत्रता आंदोलन की मानचित्रावली को स्थायी तौर पर परिवर्तित कर दिया। ▪️इसने देश एवं शहरों के मध्य सांगठनिक सम्पर्क स्थापित किया। आदोलन की यह उपलब्धि बाद के वर्षों में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुयी। विशेषकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के चरमोत्कर्ष में देश के हर शहर ने सक्रिय भूमिका निभायी। जो इस आंदोलन के सांगठनिक स्वरूप की देन ही थी। ▪️आंदोलन ने जुझारू राष्ट्रवादियों की एक नयी पीढ़ी को जन्म दिया। ▪️उसने भारतीय जनसमुदाय की राजनीति के गांधीवादी आदशों के प्रयोग हेतु प्रशिक्षित किया। ▪️अगस्त 1917 में मांटेग्यू की घोषणायें तथा मोन्टफोर्ड सुधार काफी हद तक होमरूल लीग आांदोलन से प्रभावित थे। ▪️तिलक एवं ऐनी बेसेंट के प्रयासों से कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1916) में नरमदल एवं गरमदल के राष्ट्रवादियों के मध्य समझौता होने में अत्यन्त सहायता मिली। लीग के नेताओं का यह योगदान राष्ट्रीय आंदोलन की प्रक्रिया में मील का पत्थर था। ▪️होमरूल लीग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नयी दिशा व नया आयाम प्रदान किया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #दिल्ली_दरबार_और_राजधानी_परिवर्तन दिल्ली दरबार भारत में औपनिवेशिक काल में राजसी दरबार होता था। यह इंग्लैण्ड के महाराजा या महारानी के राजतिलक की शोभा में सजाया जाता था। ब्रिटिश साम्राज्य के चरम काल में, सन 1877 से 1911 के बीच तीन दिल्ली दरबार लगे। सन 1911 का दरबार एकमात्र ऐसा था, जिसमें सम्राट जॉर्ज पंचम स्वयं पधारे थे। इसी तीसरे दरबार में दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान किया गया था। आइए जानते हैं तीनों दिल्ली दरबार के बारे में क्रमबद्ध तरीके से- #पहला_दिल्ली_दरबार (1877) : पहला दरबार लॉर्ड लिटन ने आयोजित किया था, जिसमें महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। इस दरबार की शान-शौक़त पर बेशुमार धन खर्च किया गया, जबकि 1876-1878 ई. तक दक्षिण के लोग अकाल से पीड़ित थे, जिसमें हज़ारों की संख्या में व्यक्तियों की जानें गईं। इस समय दरबार के आयोजन को जन-धन की बहुत बड़ी बरबादी समझा गया। #दूसरा_दिल्ली_दरबार (1903) : दूसरा दरबार लॉर्ड कर्ज़न ने 1903 ई. में आयोजित किया, जिसमें बादशाह एडवर्ड सप्तम की ता­ज़पोशी की घोषणा की गई। यह दरबार पहले से भी ज़्यादा ख़र्चीला सिद्ध हुआ। इसका कुछ नतीजा नहीं निकला। यह केवल ब्रिटिश सरकार का शक्ति प्रदर्शन ही था। #तीसरा_दिल्ली_दरबार (1911) : तीसरा दरबार लॉर्ड हार्डिंग के जमाने में 1911 में आयोजित हुआ। बादशाह जॉर्ज पंचम और उसकी महारानी इस अवसर पर भारत आये थे और उनकी ताज़पोशी का समारोह भी हुआ था। इसी दरबार में एक घोषणा के द्वारा बंगाल के विभाजन को भी रद्द कर दिया गया, साथ ही राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा भी की गई। #ब्रिटिश_सरकार_द्वारा_नई_दिल्ली_को_राजधानी #बनाने_का_मुख्य_कारण : कोलकाता की जगह नई दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने की एक बड़ी वजह यह थी कि दिल्ली कई साम्राज्यों की वित्तीय और राजनीतिक केंद्र थी। दिल्ली सल्तनत के साथ-साथ यहां 1649-1857 तक मुगलों का शासन भी रहा। भारत में अंग्रेजों के आने के बाद काफी बदलाव हुए थे। 1900 के शुरुआती दौर में ब्रिटिश प्रशासन ने नई दिल्ली को राजधानी का प्लान किया था।दिसंबर 1911 में दिल्ली को राजधानी बनाने की आधारशिला रखी गई थी ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली शहर को राजधानी बनाने के पीछे हवाला दिया था कि कोलकाता देश के पूर्वी तटीय भाग में और दिल्ली शहर उत्तरी भाग में है। इससे देश पर शासन करना आसान और अधिक सुविधाजनक होगा। ऐसे में दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में ऐलान किया गया कि बहुत जल्द दिल्ली शहर भारत की राजधानी होगा। इस दाैरान ही इसकी आधारशिला भी रखी गई थी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1931 तक पूरा निर्माण समाप्त हो गया। राजधानी के कोलकाता से नई दिल्ली स्थानांतरण में सरकारी काम में कोई परेशानी न हो इसका विशेष ध्यान भी रखा गया था।

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_में_अनुसूची

भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_में_अनुसूची #अनुसूची : भारतीय संविधान की अनुसूची में कुल 12 अनुसूचियां हैं, जो इस प्रकार हैं: #प्रथम_अनुसूची : इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों (29 राज्य) एवं संघ शासित (सात) क्षेत्रों का उल्लेख है. नोट: संविधान के 62वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है. नोट: 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश से पृथक तेलंगाना राज्‍य बनाया गया. इससे पहले राज्‍यों की संख्‍या 28 थी. #द्वितीय_अनुसूची : इसमें भारत राज-व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्य सभा के सभापति एवं उपसभापति, विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन का उल्लेख किया गया है. #तृतीय_अनुसूची : इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों) द्वारा पद-ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है. #चौथी_अनुसूची : इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्य सभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है. #पांचवीं_अनुसूची : इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उल्लेख है. #छठी_अनुसूची : इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है. #सांतवी_अनुसूची : इसमें केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारे के बारे में बताया गया है, इसके अन्तगर्त तीन सूचियाँ है- संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची: ▪️(1) संघ सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर केंद्र सरकार कानून बनाती है. संविधान के लागू होने के समय इसमें 97 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 98 विषय हैं. ▪️(2) राज्य सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर राज्य सरकार कानून बनाती है. राष्ट्रीय हित से संबंधित होने पर केंद्र सरकार भी कानून बना सकती है. संविधान के लागू होने के समय इसके अन्‍तर्गत 66 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 62 विषय हैं. ▪️(3) समवर्ती सूची: इसके अन्‍तर्गत दिए गए विषय पर केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं. परंतु कानून के विषय समान होने पर केंद्र सरकार केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है. राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून केंद्र सरकार के कानून बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है. संविधान के लागू होने के समय समवर्ती सूची में 47 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 52 विषय हैं. #आठवीं_अनुसूची : इसमें भारत की 22 भाषाओँ का उल्लेख किया गया है. मूल रूप से आंठवीं अनुसूची में 14 भाषाएं थीं, 1967 ई० में सिंधी को और 1992 ई० में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. 2004 ई० में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. #नौवीं_अनुसूची : संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गई. इसके अंतर्गत राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है. इन अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं. ▪️नोट: अब तक यह मान्यता थी कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. 11 जनवरी, 2007 के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा यह स्थापित किया गया कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उच्चतम न्यायालय इन कानूनों की समीक्षा कर सकता है. #दसवीं_अनुसूची : यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है. #ग्यारहवीं_अनुसूची : यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किए गए हैं. #बारहवीं_अनुसूची : यह अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिय 18 विषय प्रदान किए गए हैं. [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #मुस्लिम_लीग_की_स्थापना बंगाल के विभाजन ने सांप्रदायिक विभाजन को भी जन्म दे दिया। 30 दिसंबर,1906 को ढाका के नवाब आगा खां और नवाब मोहसिन-उल-मुल्क के नेतृत्व में भारतीय मुस्लिमों के अधिकारों की रक्षा के लिए मुस्लिम लीग का गठन किया गया। प्रारंभ में इसे ब्रिटिशों द्वारा काफी सहयोग मिला लेकिन जब इसने स्व-शासन के विचार को अपना लिया,तो ब्रिटिशों से मिलने वाला सहयोग समाप्त हो गया।1908 में लीग के अमृतसर अधिवेशन में सर सैय्यद अली इमाम की अध्यक्षता में मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की गयी जिसे ब्रिटिशों ने 1909 के मॉर्ले-मिन्टो सुधारों द्वारा पूरा कर दिया।मौलाना मुहम्मद अली ने अपने लीग विरोधी विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए अंग्रेजी जर्नल ‘कामरेड’ और उर्दू पत्र ‘हमदर्द’ को प्रारंभ किया। उन्होंने ‘अल-हिलाल’ की भी शुरुआत की जोकि उनके राष्ट्रवादी विचारों का मुखपत्र था। #मुस्लिम_लीग_को_प्रोत्साहित_करने_वाले_कारक : • #ब्रिटिश_योजना- ब्रिटिश भारतीयों को साम्प्रदायिक आधार पर बाँटना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने भारतीय राजनीति में विभाजनकारी प्रवृत्ति का समावेश किया,इसका प्रमाण पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था करना और ब्राह्मणों व गैर-ब्राह्मणों के बीच जातिगत राजनीति का खेल खेलना थे। • #शिक्षा_का_अभाव-मुस्लिम पश्चिमी व तकनीकी शिक्षा से अछूते थे। • #मुस्लिमों_की_संप्रभुता_का_पतन-1857 की क्रांति ने ब्रिटिशों को यह सोचने पर मजबूर किया कि मुस्लिम उनकी औपनिवेशिक नीतियों के लिए खतरा हो सकते है क्योकि मुग़ल सत्ता को हटाकर ही उन्होंने अपने शासन की नींव रखी थी। • #धार्मिक_भावनाओं_की_अभिव्यक्ति-अधिकतर इतिहासकारों और उग्र-राष्ट्रवादियों ने भारतीय सामासिक संस्कृति के एक पक्ष को ही महिमामंडित किया| उन्होंने शिवाजी,राणा प्रताप आदि की तो प्रशंसा की लेकिन अकबर,शेरशाह सूरी,अलाउद्दीन खिलजी,टीपू सुल्तान आदि के बारे में मौन बने रहे। • #भारत_का_आर्थिक_पिछड़ापन- औद्योगीकीकरण के अभाव में बेरोजगारी ने भीषण रूप धारण कर लिया था और घरेलु उद्योगों के प्रति ब्रिटिशों का रवैया दयनीय था। #लीग_के_गठन_के_उद्देश्य : • भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा को प्रोत्साहित करना। • भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारों की रक्षा करना और उनकी जरुरतों व उम्मीदों को सरकार के समक्ष प्रस्तुत करना। • मुस्लिमों में अन्य समुदायों के प्रति विरोध भाव को कम करना। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_में_भाग_ओर_अनुच्छेद भारतीय संविधान को 22 भागों में बंटा गया है, इसमे 395 अनुच्छेद तथा 22 अनुसूचियां हैं । जिस तरह एक पुस्तक के अलग अलग अध्याय होते हैं, उसी तरह संविधान को भी अलग अलग भागों में बंटा गया हैं, और हरेक भाग के आगे अनुच्छेद दिए गए हैं। आइए जानते हैं संविधान में दिए गए भाग और अनुच्छेद के बारे में - #भाग_और_अनुच्छेद [ 1 से 395 तक ] : #भाग_1: संघ और उसका राज्य क्षेत्र 1 संघ का नाम और राज्य क्षेत्र 2 नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना 2क [निरसन] 3 नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन 4 पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक, और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां ____________________________________________ #भाग_2: नागरिकता 5 संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता 6 पाकिस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 7 पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 8 भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 9 विदेशी राज्य की नागरिकता, स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों का नागरिक न होना 10 नागरिकता के अधिकारों को बना रहना 11 संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना. ____________________________________________ #भाग_3: मूल अधिकार 12 राज्य की परिभाषा 13 मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां असंगत या अल्पीकरण की सीमा तक विधि शून्य होगी. ▪️समता का अधिकार 14 विधि के समक्ष समानता 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता 17 अस्पृश्यता का अंत 18 उपाधियों का अंत. ▪️स्वतंत्रता का अधिकार 19 वाक-स्वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण 22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण शोषण के विरुद्ध अधिकार 23 मानव और दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध 24 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध. ▪️धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार 25 अंत:करण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता 26 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता 27 किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता 28 कुल शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता. ▪️संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार 29 अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण 30 शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार 31 [निरसन] 31क संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति 31ख कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण 31ग कुछ निदेशक तत्वों को प्रभाव करने वाली विधियों की व्यावृत्ति 31घ [निरसन]. ▪️सांविधानिक उपचारों का अधिकार 32 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार 32A [निरसन] 33 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति 34 जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन 35 इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने का विधान ऊपर. ____________________________________________ #भाग_4: राज्य की नीति के निदेशक तत्व 36 परिभाषा 37 इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना 38 राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा 39 राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व 39क समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता 40 ग्राम पंचायतों का संगठन 41 कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार 42 काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध 43 कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि 43क उद्योगों के प्रबंध में कार्मकारों का भाग लेना 44 नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता 45 बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध 46 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि 47 पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य को सुधार करने का राज्य का कर्तव्य 48 कृषि और पशुपालन का संगठन 48क पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा 49 राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण 50 कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण 51 अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि. #भाग_4क: मूल कर्तव्य 51A मूल कर्तव्य ____________________________________________ #भाग_5 : संघ ▪️अध्याय I. कार्यपालिका ▪️राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति 52 भारत के राष्ट्रपति 53 संघ की कार्यपालिका शक्ति 54 राष्टप्रति का निर्वाचन 55 राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति 56 राष्ट्रपति की पदावधि 57 पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता 58 राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं 59 राष्टप्रति के पद के लिए शर्तें 60 राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 61 राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रकिया 62 राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि 63 भारत का उप राष्ट्रपति 64 उप राष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना 65 राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उप राष्टप्रति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन 66 उप राष्ट्रपति का निर्वाचन 67 उप राष्ट्रपति की पदावधि 68 उप राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि 69 उप राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 70 अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन 71 राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषयत 72 क्षमता आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति 73 संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार. ▪️केन्द्रीय मंत्रि-परिषद 74 राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद 75 मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध. ▪️भारत का महान्यायवादी 76 भारत का महान्यायवादी 77 भारत सरकार के कार्य का संचालन 78 राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य. ▪️अध्याय 2. संसद 79 संसद का गठन 80 राज्य सभा की संरचना 81 लोक सभा की संरचना 82 प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुन: समायोजन 83 संसद के सदनों की अवधि 84 संसद की सदस्यता के लिए अर्हता 85 संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन 86 सदनों के अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्टप्रति का अधिकार 87 राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण 88 सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार. ▪️संसद के अधिकारी 89 राज्य सभा का सभापति और उप सभापति 90 उप सभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना 91सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति 92 जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना 93 लोक सभा और अध्यक्ष और उपाध्यक्ष 94 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया जाना 95अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों को पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति 96 जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना 97 सभापति और उप सभापति तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते 98 संसद का सचिवालय. 99 सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 100 सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति. 101 स्थानों का रिक्त होना 102 सदस्यता के लिए निरर्हताएं 103 सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय 104अनुच्छेद 99 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति संसद और उसके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां 105 संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि 106 सदस्यों के वेतन और भत्ते. ▪️विधायी प्रक्रिया 107 विधेयकों के पुर: स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपलबंध. 108 कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक 109 धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया 110 “धन विधेयक” की परिभाषा 111 विधेयकों पर अनुमति वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया 112 वार्षिक वित्तीय विवरण 113 संसद में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया 114 विनियोग विधेयक 115 अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान 116 लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान 117 वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध साधारणतया प्रक्रिया. 118 प्रक्रिया के नियम 119 संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन 120 संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा 121 संसद में चर्चा पर निर्बंधन 122 न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना. ▪️अध्याय 3. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां 123 संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति. ▪️अध्याय 4. संघ की न्यायपालिका 124 उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन 125 न्यायाधीशों के वेतन आदि 126 कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति 127 तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति 128 उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति 129 उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना 130 उच्चतम न्यायालय का स्थान 131 उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता 131क [निरसन] 132 कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता 133 उच्च न्यायालयों में सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता 134 दांडिक विषयों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता 134क उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र 135 विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना 136 अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत 137 निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पुनर्विलोकन 138 उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता की वृद्धि 139 कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना 139क कुछ मामलों का अंतरण 140 उच्चतम न्यायालय की आनुषंगिक शक्तिया 141 उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना 142 उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश 143 उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति 144 सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय 144क [निरसन] 145 न्यायालय के नियम आदि 146 उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्यय 147 निर्वचन. ▪️अध्याय 5. भारत के नियंत्रक–महा लेखापरीक्षक 148 भारत का नियंत्रक – महा लेखापरीक्षक 149 नियंत्रक महा लेखापरीक्षक के कर्तव्य और शक्तियां 150 संघ के और राज्यों के लेखाओं का प्ररूप 151 संपरीक्षा प्रतिवेदन ऊपर. ____________________________________________ #भाग_6 : राज्य ▪️अध्याय 1. साधारण 152 परिभाषा. ▪️अध्याय 2. कार्यपालिका ▪️राज्यपाल 153 राज्यों के राज्यपाल 154 राज्य की कार्यपालिका शक्ति 155 राज्यपाल की नियुक्ति 156 राज्य की पदावधि 157 राज्यपाल के पद के लिए शर्तें 158 राज्यपाल के पद के लिए शर्तें 159 राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 160 कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन 161 क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति 162 राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार मंत्रि परिषद. 163 राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि परिषद 164 मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध राज्य का महाविधवक्ता. 165 राज्य का महाधिवक्ता सरकारी कार्य का संचालन. 166 राज्य की सरकार के कार्य का संचालन 167 राज्यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में. ▪️मुख्यमंत्री के कर्तव्य ▪️अध्याय 3. राज्य का विधान मंडल साधारण 168 राज्यों के विधान – मंडलों का गठन 169 राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन 170 विधान सभाओं की संरचना 171 विधान परिषदों की संरचना 172 राज्यों के विधान-मंडलों की अवधि 173 राज्य के विधान-मंडल की सदस्यता के लिए अर्हता 174 राज्य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रावहसान और विघटन 175 सदन और सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार 176 राज्यपाल का विशेष अभिभाषण 177 सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार ▪️राज्य के विधान-मंडल के अधिकारी 178 विधान सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष 179 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना 180 अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शाक्ति 181 जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना 182 विधान परिषद का सभापति और उप सभापति 183 सभापति और उप सभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना 184 सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति 185 जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना 186 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथ सभापति और उप-सभापति के वेतन और भत्ते 187 राज्य के विधान मंडल का सचिवालय कार्य संचालन 188 सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 189 सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति सदस्यों की निरर्हताएं 190 स्थानों का रिक्त होना 191 सदस्यता के लिए निरर्हताएं 192 सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय 193 अनुच्छेद 188 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञा करने से पहले या अर्हित न होते हुए या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां 194 विधान-मंडलों के सदनों की तथा सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषधिकार आदि 195 सदस्यों के वेतन और भत्ते विधायी प्रक्रिया 196 विधेयकों के पुर: स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध 197 धन विधेयकों से भिन्न विधेयकों के बारे में विधान परिषद की शक्तियों पर निर्बंधन 198 धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया 199 “धन विधेयक” की परिभाषा 200 विधेयकों पर अनुमति 201 विचार के लिए आरक्षित विधे. ▪️वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया 202 वार्षिक वित्तीय विवरण 203 विधान-मंडल में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया 204 विनियोग विधेयक 205 अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान 206 लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान 207 वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध. ▪️साधारणतया प्रक्रिया 208 प्रक्रिया के नियम 209 राज्य के विधान-मंडल में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन 210 विधान मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा 211 विधान-मंडल में चर्चा पर निर्बंधन 212 न्यायालयों द्वारा विधन मंडल की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना. ▪️अध्याय 4. राज्यपाल की विधायी शाक्ति 213 विधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्याति करने की राज्यपाल की शक्ति. ▪️अध्याय 5. राज्यों के उच्च न्यायालय 214 राज्यों के लिए उच्च न्यायालय 215 उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना 216 उच्च न्यायालयों का गठन 217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें 218 उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्च न्यायालयों का लागू होना 219 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 220 स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात विधि-व्यवसाय पर निर्बंधन 221 न्यायाधीशों के वेतन आदि 222 किसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण 223 कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति 224 अपर और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति 224क उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति 225 विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता 226 कुछ रिट निकालने की उच्च न्यायालय की शक्ति 226क [निरसन] 227 सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति 228 कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण 228क [निरसन] 229 उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्यय 230 उच्च न्यायालयों की अधिकारिता का संघ राज्य क्षेत्रों पर विस्तार 231 दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना. ▪️अध्याय 6. अधीनस्थ न्यायालय 233 जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति 233क कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण 234 न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्तियों की भर्ती 235 अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण 236 निर्वचन 237 कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों पर इस अध्याय के उपबंधों का लागू होना. ___________________________________________ #भाग_7 : पहली अनुसूची के भाग ख के राज्य 238 [निरसन] ____________________________________________ #भाग_8 : संघ राज्य क्षेत्र 239 संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन 239क कुछ संघ राज्य क्षेत्रों के लिए स्थानीय विधान मंडलों या मंत्रि-परिषदों का या दोनों का सृजन 239क दिल्ली के संबंध में विशेष उपबंध 239कक सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध 239कख विधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की प्रशासक की शक्ति 240 कुछ संघ राज्य क्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति 241 संघ राज्य क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय 242 [निरसन]. ____________________________________________ #भाग_9 : पंचायत 243 परिभाषाएं 243क ग्राम सभा 243ख पंचायतों का गठन 243ग पंचायतों की संरचना 243घ स्थानों का आरक्षण 243ड पंचायतों की अवधि, आदि 243च सदस्यता के लिए निरर्हताएं 243छ पंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्व 243ज पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां 243-झ वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन 243ञ पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा 243ट पंचायतों के लिए निर्वाचन 243ठ संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना 243ड इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू नह होना 243ढ विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना 243ण निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन. #भाग_9क : नगरपालिकाएं 243त परिभाषाएं 243थ नगरपालिकाओं का गठन 243द नगरपालिकाओं की संरचना 243ध वार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना 243न स्थानों का आरक्षण 243प नगरपालिकाओं की अवधि, आदि 243फ सदस्यता के लिए निरर्हताएं 243ब नगरपालिकाओं, आदि की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्व 243भ नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियां 243म वित्त आयोग 243य नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा 243यक नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन 243यख संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना 243यग इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना 243यघ जिला योजना के लिए समिति 243यड महानगर योजना के लिए समिति 243यच विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना 243यछ निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन ___________________________________________ #भाग_10 : अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र 244 अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन. 244क असम के कुछ जनजाति क्षेत्रों को समाविष्ट करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाना और उसके लिए स्थानीय विधान मंडल या मंत्रि परिषद का या दोनों का सृजन. ___________________________________________ #भाग_11: संघ और राज्यों के बीच संबंध ▪️अध्याय I. विधायी संबंध विधायी शक्तियों का वितरण 245 संसद द्वारा राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार. 246 संसद द्वारा और राज्य के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषयवस्तु. 247 कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति. 248 अवशिष्ट विधायी शक्तियां. 249 राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति. 250 यदि आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची में के विषय के संबंध में विधि. 251 संसद द्वारा अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति. 252 दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार किया जाना. 253 अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान. 254 संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति. 255 सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना.. ▪️अध्याय 2. प्रशासनिक संबंध 256 राज्यों की ओर संघ की बाध्यता. 257 कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण. 257क [निरसन] 258 कुछ दशाओं में राज्यों को शक्ति प्रदान करने आदि की संघ की शक्ति. 258क संघ को कृत्य सौंपने की राज्यों की शक्ति. 259 [निरसन] 260 भारत के बाहर के राज्य क्षेत्रों के संबंध में संघ की अधिकारिता. 261 सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियां.. ▪️जल संबंधी विवाद 262 अंतरराज्यिक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन.. ▪️राज्यों के बीच समन्वय 263 अंतरराज्य परिषद के संबंध में उपबंध.. ___________________________________________ #भाग_12: वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद ▪️अध्याय 1. वित्त 264 विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना. 265 विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना. 266 भारत और राज्यों के संचित निधियां और लोक लेखे. 267 आकस्मिकता निधि.. ▪️संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण 268 संघ द्वारा उदगृहीत किए जाने वाले किन्तु राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क. 269 संघ द्वारा उदगृहीत और संगृहीत किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर. 270 उदगृहीत कर और उनका संघ तथा राज्यों के बीच वितरण. 271 कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार. 272 [निरसन] 273 जूट पर और जूट उत्पादों का निर्यात शुल्क के स्थान पर अनुदान. 274 ऐसे कराधान पर जिसमें राज्य हितबद्ध है, प्रभाव डालने वाले विधेयकों के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश की अपेक्षा. 275 कुछ राज्यों को संघ अनुदान. 276 वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर. 277 व्यावृत्ति. 278 [निरसन] 279 “शुद्ध आगम”, आदि की गणना. 280 वित्त आयोग. 281 वित्त आयोग की सिफारिशें.. ▪️प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध 282 संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व के लिए जाने वाले व्यय. 283 संचित निधियों, आकस्मिकता निधियों और लोक लेखाओं में जमा धनराशियों की अभिरक्षा आदि. 284 लोक सेवकों और न्यायालयों द्वारा प्राप्त वादकर्ताओं की जमा राशियों और अन्य धनराशियों की अभिरक्षा. 285 संघ और संपत्ति को राजय के कराधान से छूट. 286 माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधिरोपण के बारे में निर्बंधन. 287 विद्युत पर करों से छूट. 288 जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट. 289 राज्यों की संपत्ति और आय को संघ और कराधार से छूट. 290 कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन. 290क कुछ देवस्वम निधियों की वार्षिक संदाय. 291 [निरसन]. ▪️अध्याय 2. उधार लेना 292 भारत सरकार द्वारा उधार लेना. 293 राज्यों द्वारा उधार लेना.. ▪️अध्याय 3. संपत्ति संविदाएं, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद 294 कुछ दशाओं में संपत्ति, अास्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार. 295 अन्य दशाओं में संपत्ति, अास्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार. 296 राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोदभूत संपत्ति. 297 राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना. 298 व्यापार करने आदि की शक्ति. 299 संविदाएं. 300 वाद और कार्यवाहियां.. ▪️अध्याय 4. संपत्ति का अधिकार 300क विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना.. ____________________________________________ #भाग_13 : भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम ▪️भारत के संघ राज्य क्षेत्र 301 व्यापार, वाणज्यि और समागम की स्वतंत्रता. 302 व्यापार, वाणज्यि और समागम पर निर्बंधन अधिरोपित करने की संसद की शक्ति. 303 व्यापार और वाणिज्य के संबंध में संघ और राज्यों की विधायी शक्तियों पर निर्बंधन. 304 राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन. 305 विद्यमान विधियों और राज्य के एकाधिकार का उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति. 306 [निरसन] 307 अनुच्छेद 301 से अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति.. ____________________________________________ #भाग_14: संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं ▪️अध्याय 1. सेवाएं 308 निर्वचन. 309 संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तें. 310 संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि. 311 संघ या राज्य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्यक्तियों का पदच्युत किया जाना या पंक्ति में अवनत किया जाना. 312 अखिल भारतीय सेवाएं. 312क कुछ सेवाओं के अधिकारियों की सेवा की शर्तों में परिवर्तन करने या उन्हें प्रतिसंहृत करने की संसद की शक्ति. 313 संक्रमण कालीन उपबंध. 314 [निरसन]. ▪️अध्याय 2. लोक सेवा आयोग 315 संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग. 316 सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि. 317 लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना. 318 आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति. 319 आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के सबंध में प्रतिषेध. 320 लोक सेवा आयोगों के कृत्य. 321 लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति. 322 लोक सेवा आयोगों के व्यय. 323 लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन.. #भाग_14क : अभिकरण 323शासनिक अधिकरण. 323ख अन्य विषयों के लिए अधिकरण. ____________________________________________ #भाग_15 : निर्वाचन 324 निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना. 325 धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति का निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना और उसके द्वारा किसी विशेष निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए जाने का दावा न किया जाना. 326 लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का वयस्क मताधिकार के आधार पर होना. 327 विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति. 328 किसी राज्य के विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की उस विधान मंडल की शक्ति. 329 निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन. 329क [निरसन]. ___________________________________________ #भाग_16: कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध 330 लोक सभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण. 331 लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व. 332 राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण. 333 राज्यों की विधान सभाओं में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व. 334 स्थानों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व का साठ वर्ष के पश्चात न रहना. 335 सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे. 336 कुछ सेवाओं में आंग्ल भारतीय समुदाय के लिए विशेष उपबंध. 337 आंग्ल भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शैक्षिक अनुदान के लिए विशेष उपबंध. 338 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग. 338क राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग. 339 अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में संघ का नियंत्रण. 340 पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति. 341 अनुसूचित जातियां. 342 अनुसूचित जनजातियां.. ___________________________________________ #भाग_17: राजभाषा ▪️अध्याय 1. संघ की भाषा 343 संघ की राजभाषा. 344 राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति.. ▪️अध्याय 2. प्रादेशिक भाषाएं 345 राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं. 346 एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा. 347 एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा.. ▪️अध्याय 3. उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा 348 उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा. 349 भाषा से संबंधित कुछ विधियां अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया.. ▪️अध्याय 4. विशेष निदेश 350 व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा. 350क प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं. 350ख भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी. 351 हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश. ____________________________________________ #भाग_18 : आपात उपबंध 352 आपात की उदघोषणा. 353 आपात की उदघोषणा का प्रभाव. 354 जब आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में है तब राजस्वों के वितरण संबंधी उपबंधों का लागू होना. 355 बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्य की संरक्षा करने का संघ का कर्तव्य. 356 राज्यों सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध. 357 अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उदघोषणा के अधीन विधायी शाक्तियों का प्रयोग. 358 आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन. 359 आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन. 359क [निरसन] 360 वित्तीय आपात के बारे में उपबंध.. ____________________________________________ #भाग_19 : प्रकीर्ण 361 राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण. 361क संसद और राज्यों के विधान मंडलों की कार्यवाहियों की प्रकाशन का संरक्षण. 361ख लाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए निरर्हता. 362 [निरसन] 363 कुछ संधियों, करारों आदि से उत्पन्न विवादों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन 363क देशी राज्यों के शासकों को दी गई मान्यता की समाप्ति और निजी थौलियों का अंत 364 महापत्तनों और विमानक्षेत्रों के बारे में विशेष उपबंध 365 संघ द्वारा दिए गए निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव 366 परिभाषाएं 367 निर्वचन ____________________________________________ #भाग_20 : संविधान का संशोधन 368 संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया. ____________________________________________ #भाग_21: अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रावधान 369 राज्य सूची के कुछ विषयों के सबंध में विधि बनाने की संसद की इस प्रकार अस्थायी शक्ति मानो वे समवर्ती सूची के विषय हों. 370 जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध. 371 महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष उपबंध. 371क नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 371ख असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 371ग मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 371घ आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 371ड आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना. 371च सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 371छ मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 371ज अरुणाचल प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 371-झ गोवा राज्य के संबंध में विशेष उपबंध. 372 विद्यमान विधियों का प्रवृत्त बने रहना और उनका अनुकूलन. 372क विधियों का अनुकूलन करने की राष्ट्रपति की शक्ति. 373 निवारक निरोध में रखे गए व्यक्तियों के संबंध में कुछ दशाओं में आदेश करने की राष्ट्रपति की शाक्ति. 374 फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों और फेडरल न्यायालय में या सपरिषद हिज मेजेस्टी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के बारे में उपबंध. 375 संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायालयों, प्राधिकारियों और अधिकारियों का कृत्य करते रहना. 376 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध 377 भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध 378 लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध 378क आंध्र प्रदेश विधान सभा की अवधि के बारे में विशेष उपबंध 379-391 [निरसन] 392 कठिनाइयों को दूर करने की राष्ष्ट्रपति की शक्ति ___________________________________________ #भाग_22 : संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और निरसन हिंदी में प्राधिकृत पाठ 393 संक्षिप्त नाम 394 प्रारंभ 394क हिंदी भाषा में प्राधिकृत पाठ 395 निरसन [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #मार्ले_मिन्टो_सुधार_या_सांप्रदायिक_सुधार तत्कालीन भारत सचिव मार्ले एवं वायसराय लार्ड मिन्टो के नाम इस एक्ट को मार्ले मिन्टो सुधार या सांप्रदायिक सुधार अधिनियम 1909 के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि 1892 के भारत परिषद अधिनियम में गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में सदस्यों के मनोनयन पद्धति का समापन करके अप्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था कर दी गयी किन्तु यह उन भारतीयों को शांत करने में असफल रहा जो अब अपने अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक हो चुके थे। इस एक्ट या सुधार को लाने के पीछे अंग्रेजों का एक उद्देश्य सांप्रदायिक निर्वाचन प्रारंभ कर हिन्दू व मुस्लिमों के बीच मतभेद पैदा कर उनकी एकता को ख़त्म करना भी था। #भारत_परिषद_अधिनियम_1909_के_प्रमुख #प्रावधान : ▪️भारतीयों को बजट पर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया किन्तु गवर्नर जनरल उत्तर देने के लिए बाध्य नही थे। ▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में पहली बार एक भारतीय सदस्य सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा को शामिल किया गया। ▪️मुस्लिमों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया अर्थात सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति की शुरुवात हुई। ▪️केन्द्रीय काउंसिल में विधि सदस्यों की संख्या बढाकर 60 कर दी गई जिनमे 27 मनोनीत व 33 निर्वाचित होते थे। ▪️प्रांतीय विधायिकाओं में भी सदस्यों की संख्या बढाई गई और निर्वाचित सदस्यों का बहुमत स्थापित किया गया। #भारत_परिषद_अधिनियम_1909_के_प्रमुख_प्रभाव : 1909 के भारत परिषद् अधिनियम का प्रमुख प्रभाव यह देखने को मिला की भारत में पहली बार धर्म के आधार पर या सांप्रदायिक निर्वाचन (Communal Election) की शुरुवात हुई। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #बंगाल_विभाजन [ 1905 ] #तथा_स्वदेशी_आंदोलन भारत में अपनी हुकूमत कायम रखने के लिए अंग्रेजों की तो नीति ही ‘फूट डालो और राज करो’ की रही थी। साथ ही राष्ट्रवादी आंदोलनों के दमन के लिए भी उन्होंने विभाजन वाली नीति का सहारा लिया। वर्ष 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल विभाजन का कदम उठाना इसी दिशा में उठाया गया एक कदम था कि बंगाल जो भारतीय राष्ट्रवाद का तब प्रमुख केंद्र बनकर उभर चुका था, विभाजन करके उसे तितर-बितर कर दिया जाए। #बंगाल_का_विभाजन : ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम 3 दिसंबर, 1903 को बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव यह तर्क देकर लाया कि यहां कि विशाल आबादी के कारण प्रशासनिक व्यवस्था सुचारु तरीके से नहीं चल पा रही है और इसके कुशल संचालन के लिए बंगाल का विभाजन करना जरूरी है। हालांकि, सभी जानते थे कि इसका उद्देश्य तो दरअसल बंगाल में सिर उठा चुके राष्ट्रवादी आंदोलनों का दमन था, क्योंकि इसका प्रभाव देशव्यापी हो रहा था। #भाषा_के_आधार_पर_विभाजन ▪️बंगाली बोलने वालों की जनसंख्या 1 करोड़ 70 लाख की थी। ▪️हिंदी और उड़िया बोलने वाले 3 करोड़ 70 लाख की संख्या में थे। ▪️इस तरह से बंगाली भाषा वाले बंगाल में बंगाली ही अल्पसंख्यक बन गये। #धर्म_के_आधार_पर_विभाजन ▪️पश्चिमी बगाल की आबादी 5 करोड़ 40 लाख की थी, जिनमें हिंदुओं की संख्या 4 करोड़ 20 लाख की थी। ▪️पूर्वी बंगाल में मुस्लिम बहुसंख्यक थे। यहां 3 करोड़ 10 लाख की आबादी थी, जिनमें मुस्लिम 1 करोड़ 80 लाख की तादाद में थे। ▪️लॉर्ड कर्जन ने तो ढाका को पूर्वी बंगाल की राजधानी बनाने की भी बात कह दी थी। कर्जन ने कहा कि इससे मुगलों के शासन के दौरान जो मुस्लिमों के बीच एकता थी, वह फिर से कायम हो पायेगी। ▪️इस तरह से बंगाल विभाजन से यह साफ हो गया कि अंग्रेजों ने संप्रदायवाद को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करने के लिए ऐसा किया था। #ऐसे_हुआ_विरोध : ▪️बैठकों का दौर शुरू हो गया। ढाका, चटगांव और मेमनसिंह में अधिकतर बैठकें आयोजित हुईं। ▪️के.के. मित्रा, सुरेंद्रनाथ बनर्जी और पृथ्वीशचंद्र राय जैसे उदारवादी नेताओं ने विरोध-प्रदर्शन की अगुवाई की। ▪️बंगाली, संजीवनी व हितवादी जैसे अखबार निकालकर बंगाल विभाजन के प्रस्ताव की आलोचना की गई। #प्रभावी_हुआ_बंगाल_विभाजन : ▪️19 जुलाई, 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा हुई। ▪️16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल के विभाजन की औपचारिक घोषणा हो गई। ▪️इस दिन को आंदोलनकारियों की ओर से शोक दिवस के रूप में मनाया गया। ▪️वंदे मातरम गाते हुए नंगे पांव पदयात्रा भी निकाली गई। ▪️पूरे बंगाल में इस दिन को रविंद्र नाथ टैगोर की ओर से राखी दिवस मनाया गया और एक-दूसरे को राखी बांधी गई। #स्वदेशी_आंदोलन_का_आगाज : ▪️स्वदेशी आंदोलन को बंग-भंग आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। ▪️बंगाल विभाजन के अगले ही दिन सुरेंद्र नाथ बनर्जी और आनंद मोहन बोस के नेतृत्व में दो विशाल जनसभाएं हुईं। ▪️स्वदेशी आंदोलन और बहिष्कार आंदोलन का बिगूल फूंक दिया गया। ▪️एक ही दिन में 50 हजार रुपये भी जमा कर लिये गये। #स्वदेशी_आंदोलन_के_दौरान_गतिविधियां : ▪️उदारवादियों द्वारा चलाये गये आंदोलन का कोई परिणाम नहीं निकलने पर स्वदेशी आंदोलन पर वर्ष 1905 के बाद उग्र विचारधारा वाले नेताओं का कब्जा हो गया। ▪️सरकार की ओर से दमक की कार्रवाई शुरू हुई, जिसके तहत वंदे मातरम गाने पर रोक लगा दिया गया। ▪️सार्वजनिक सभाओं पर भी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिये। ▪️पूरे बंगाल में जनसभाएं शुरू हो गईं। लाला लाजपत राय, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल और अरविंद घोष ने सभाओं में स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की अपील करनी शुरू कर दी। ▪️जिन दुकानों में विदेशी वस्तुएं बेची जा रही थीं, उनके बाहर धरने दिये जाने लगे। ▪️विदेशी वस्तुओं की होली भी जलाई जाने लगी। ▪️सरकारी कार्यालय, स्कूल, काॅलेज और उपाधियों तक का बहिष्कार किया जाने लगा। ▪️अरविंद घोष ने साफ कह दिया कि राजनीतिक स्वतंत्रता ही राष्ट्र के जीवन की सांसें हैं। ▪️धोबियों ने विदेशी कपड़े धोने से मना कर दिया। ▪️ब्राह्मण विदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल वाले धार्मिक समारोहों का बहिष्कार करने लगे। ▪️बारीसल में अश्विनी कुमार दत्त के नेतृत्व में स्वदेशी बंधब समिति ने इस आंदोलन के दौरान लोगों में राजनीतिक जागरुकता फैलाई। #स्वदेशी_आंदोलन_के_आर्थिक_प्रभाव : ▪️विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के कारण स्वदेशी वस्तुओं की मांग बढ़ने से भारतीयों का व्यवसाय चल निकला और वे आर्थिक दृष्टि से मजबूत होने लगे। ▪️लघु और कुटीर उद्योगों को स्वदेशी आंदोलन की वजह से प्रोत्साहन मिलना शुरू हो गया। इससे इनकी संख्या तेजी से बढ़ने लगी। साबुन, स्वदेशी वस्त्र, घरेलू उपयोगी की वस्तुओं आदि का निर्माण अपने ही देश में होने लगा। ▪️भारतीय ने अपनी खुद के बैंक खोलने शुरू कर दिये। साथ ही बीमा कंपनियां भी खुलने लगीं। ▪️दुकान भी खुलने लगे और भारतीय इनमें पूंजी लगाकर आर्थिक तौर पर खुद को सबल बनाने में जुट गये। ▪️पार्ले जी विस्कुट का शुरू होना भी स्वदेशी आंदोलन की ही देन थी। दरअसल, 1929 में भारत में एक कंपनी की शुरुआत हुई थी, जिसने जर्मनी से बिस्कुट बनाने वाली एक मशीन खरीदी थी। पहले तो यह किसमी और ऑरेंज कैंडी नामक टाफियां बनाती थी। बाद में यह बिस्कुट भी बनाने लगी, जिसे वर्तमान में पार्ले जी बिस्कुट के नाम से सभी जानते हैं। ▪️इसी दौरान प्रफुल्ल चंद्र राय की ओर से लोकप्रिय बंगाल कैमिकल स्वदेशी स्टोर की भी शुरुआत की गयी। ▪️भारत से सस्ते दामों पर कच्चा माल अपने यहां ले जाकर और वापस भारत लाकर ऊंचे दामों पर बेचने के अंग्रेजों के खेल को भारतीय जनता ने समझ लिया और अपने देश में कच्चे मालों से उत्पाद करने लगे। ▪️कपड़ों की मिलें, फैक्ट्रियां, दुकान, बैंक व बीमा कंपनी आदि अपने देश में ही खुलने लगे, जिससे अपनी खुद की आर्थिक स्थिति में सुधार आने लगा। #स्वदेशी_आंदोलन_के_राजनीतिक_प्रभाव : ▪️स्वदेशी आंदोलन के तहत विभिन्न गतिविधियों जैसे कि लोकप्रिय उत्सवों का आयोजन, मेले व सभाओं आदि के जरिये राजनीतिक चेतना का प्रचार-प्रसार तेजी से होने लगा। ▪️परंपरागत लोक नाट्यशालाओं के जरिये बंगाल में स्वदेशी आंदोलन ने बड़े पैमाने पर लोगों में राजनीतिक चेतना जगाई। ▪️लोकमान्य तिलक की ओर से महाराष्ट्र में शुरू हुए गणपति व शिवाजी उत्सव ने भी स्वदेशी आंदोलन के तहत लोगों को राजनीतिक रूप से जागरुक बनाने का काम किया। ▪️स्वदेशी आंदोलन के फलस्वरुप लोगों को यह समझ होने लगी कि आखिर राष्ट्र की उनके लिए क्या महत्ता है और इसके प्रति निष्ठा क्यों जरूरी है। ▪️इस आंदोलन के कारण जो राजनीतिक चेतना फैली, उसके परिणामस्वरुप समाज में फैली जातिगत विसंगति के साथ बाल विवाह, दहेज प्रथा और शराब के सेवन जैसी सामाजिक बुराईयों से लड़ पाना आसान प्रतीत होने लगा। ▪️रविंद्रनाथ टैगोर ने जो शांति निकेतन की स्थापना की, उससे प्रेरित होकर कलकत्ता में नेशनल काॅलेज के साथ अन्य शैक्षणिक संस्थान भी खुले, जिसने राजनीतिक तौर पर देशवासियों में नई समझ पैदा की और उन्हें राजनीतिक तरीके से परिपक्व भी बनाया। ▪️रविंद्रनाथ टैगोर ने इसी दौरान प्रसिद्ध अमार सोनार बांग्ला नामक गीत लिखा, जो आज बांग्लादेश का राष्ट्रगान भी है। ▪️महिलाओं में भी राजनीतिक चेतना आई और उन्होंने भी बढ़-चढ़कर आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। #निष्कर्ष : बंगाल के विभाजन के परिणामस्वरुप जो स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ, उसके बारे में यदि यह कहा जाए कि इसने भारत की आज़ादी की घड़ी को और नजदीक ला दिया, तो यह अतिशयोक्ति बिल्कुल भी नहीं होगी, क्योंकि यह आंदोलन उस वक्त हर भारतीय यह एहसास दिलाने में सफल रहा कि देश को आजाद कराने में वे किस तरह से अपना योगदान दे सकते हैं। इससे लोगों ने स्वदेशी के महत्व को समझा और आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनकर गुलामी की दासता से मुक्त होकर आजाद भारत में सांस लेने का सपना भी देखने लगे। स्वदेशी आंदोलन में जनता की बढ़ती भागीदारी को देखकर स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे नेताओं में भी नई जान आ गई और अपना सर्वस्व न्योछावर करने की भावना के साथ वे और तन-मन से देश को आजाद कराने की लड़ाई में जुट गये। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #संविधान_पर_विदेशी_प्रभाव भारतीय संविधान पर प्रभाव डालने वाले देशी और विदेशी दोनों स्त्रोत हैं, लेकिन ‘भारतीय शासन अधिनियम 1935’ का संविधान पर गहरा प्रभाव है । भारतीय संविधान सबसे बड़ा लिखित संविधान है । भारत का संविधान 10 देशों के संविधान का मिश्रण है, जो कि उन देशों के संविधान से प्रमुख तथ्यों को लेकर बनाया गया है। जिसके कारण भारतीय संविधान को उधार का थैला भी कहा जाता है । आइये जानते हैं उन तथ्यों के बारे में जिनसे भारतीय संविधान का निर्माण हुआ। (A) #आतंरिक_स्त्रोत – #भारतीय_शासन_अधिनियम_1935 – ▪️संघीय तंत्र ▪️राज्यपाल का कार्यकाल ▪️न्यायपालिका ▪️लोक सेवा आयोग ▪️आपातकालीन उपबंध व प्रसानिक विवरण आदि प्रमुख तथ्य ▪️भारतीय शासन अधिनियम 1935 के अनुसार संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं,जो इस अधिनियम से कुछ जस के तस तथा कुछ में बदलाव करके लिया गया है. (B) #विदेशी_स्त्रोत – विदेशी स्त्रोत के अंतर्गत बहुत से देशों से लिए गए उपबंध सम्मिलित हैं। जो कि निम्नलिखित हैं – #ब्रिटेन_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️संसदीय शासन ▪️बहुल मत प्रणाली ▪️विधि के समक्ष समता ▪️विधि निर्माण प्रक्रिया ▪️रिट या आलेख ▪️राष्ट्रपति का अभिभाषण ▪️एकल नागरिकता ▪️नाभिनाद संभद #संयुक्त_राज्य_अमेरिका_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️मूल अधिकार ▪️न्यायिक पुनरावलोकन ▪️राष्ट्रपति पर महाभियोग ▪️निर्वाचित राष्ट्रपति ▪️उपराष्ट्रपति का पद ▪️विधि का सामान संरक्षण ▪️स्वतंत्र न्यायपालिका ▪️सामुदायिक विकास कार्यक्रम ▪️संविधान की सर्वोच्चता ▪️वित्तीय आपात ▪️उच्चतम न्यायलय या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया ▪️संविधान संशोधन में राज्य की विधायिकाओं द्वारा अनुमोदन ▪️“हम भारत के लोग” #सोवियत_संघ_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️मूल कर्तव्य ▪️पंचवर्षीय योजना #कनाडा_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️राज्यों क संघ ▪️संघीय व्यवस्था ▪️राजयपाल की नियुक्ति विषयक प्रक्रिया ▪️राजयपाल द्वारा विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखना ▪️प्रसादपर्यन्त और असमर्थ तथा सिद्ध कदाचार तदर्थ नियुक्ति #ऑस्ट्रेलिया_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️समवर्ती सूची का प्रावधान ▪️प्रस्तावना की भाषा ▪️संसदीय विशेषाधिकार ▪️व्यापारिक वाणिज्यिक और समागम की स्वतंत्रता ▪️केंद्र व राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन एवं संबंध ▪️प्रस्तावना में निहित भावना ( स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को छोड़कर ) #आयरलैंड_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️राज्य की नीति के निर्देशक तत्व ( DPSP ) ▪️आपातकालीन उपबंध ▪️राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली ▪️राज्यसभा में मनोनयन ( कला, विज्ञान, साहित्य, समाजसेवा इत्यादि क्षेत्र से ) #जापान_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️अनुच्छेद – 21 की शब्दाबली – विधि की स्थापित प्रक्रिया ( शब्द के स्थान पर भावनाओं को महत्त्व ) #दक्षिण_अफ्रीका_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान ▪️राज्य विधान मण्डलों द्वारा राज्य विधानसभा में आनुपातिक प्रतिनिधित्व #जर्मनी_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️आपात के दौरान राष्ट्रपति को मूल अधिकारों के निलंबन संबंधी शक्तियां #फ्रांस_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️गणतंत्र ▪️स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना ( सम्पूर्ण विश्व ने फ्रांस से ही ली ) #स्विटजरलैंड_से_लिए_गए_उपबंध – ▪️सामाजिक नीतियों के सन्दर्भ में DPSP का उपबंध [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #भारतीय_संविधान_सभा भारतीय संविधान सभा एक संप्रभु ढांचा था जिसका गठन कैबिनेट मिशन की सिफारिश पर किया गया था जिसने देश के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 1946 में भारत का दौरा किया था। भारत के लिए एक संवैधानिक मसौदा तैयार करने के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया गया था। हालांकि, बाद में संविधान सभा को अपने गठन के बाद कुछ आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था। #भारतीय_संविधान_सभा_का_संरचना : कैबिनेट मिशन द्वारा प्रदत्त ढांचे के आधार पर 9 दिसंबर, 1946 को एक संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान निर्माण संस्था का चुनाव 389 सदस्यों वाली प्रांतीय विधान सभा द्वारा किया गया था जिसमें रियासतों से 93 और ब्रिटिश भारत से 296 सदस्य शामिल थे। रियासतों और ब्रिटिश भारत प्रांतों को उनकी संबंधित आबादी और मुस्लिम, सिख तथा अन्य समुदायों के आधार पर अनुपात में विभाजित किया गया था। सीमित मताधिकार के बावजूद भी संविधान सभा में भारतीय समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिला था। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली में हुई थी। डॉ सच्चिदानंद को सभा के अंतरिम अस्थायी अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था। हालांकि, 11 दिसंबर, 1946 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष और एच. सी. मुखर्जी को संविधान सभा का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया गया। #संविधान_सभा_के_कार्य : ▪️संविधान तैयार करना। ▪️अधिनियमित कानूनों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया गया। ▪️22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया। ▪️इसने मई 1949 में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता को स्वीकार कर मंजूरी दे दी थी। ▪️24 जनवरी 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को चुना गया था । ▪️24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गान को अपनाया। ▪️24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गीत को अपनाया। #उद्देश्य_प्रस्ताव (ऑब्जेक्टिव रेजॉल्यूशन) : ▪️उद्देश्य प्रस्ताव को पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर, 1946 को स्थानांतरित कर दिया गया था जिसने संविधान तैयार करने के लिए दर्शन मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान किये थे और इसने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का रूप ले लिया था। हालांकि, इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से 22 जनवरी को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था। ▪️प्रस्ताव में कहा गया कि संविधान सभा सबसे पहले भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य के रूप में घोषित करेगी जिसमें सभी प्रदेशों, स्वायत्त इकाइयों को बनाए रखना और अवशिष्ट शक्तियों के अधिकारी; भारत के सभी लोगों को न्याय, स्थिति की समानता, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, पूजा, पेशे, संघ की स्वतंत्रता की गारंटी देना और कानून एवं सार्वजनिक नैतिकता के तहत अल्पसंख्यकों, पिछड़े, दलित वर्गों को पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करना; गणराज्य के क्षेत्र की अखंडता और भूमि, समुद्र और हवा पर अपना संप्रभु अधिकार तथा इस प्रकार भारत का विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए और मानव जाति के कल्याण के लिए योगदान देना शामिल है। #संविधान_सभा_की_समितियां : ▪️संविधान सभा ने संविधान बनाने के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन के लिए आठ प्रमुख समितियों का गठन किया था- केंद्रीय शक्तियों वाली समिति, केंद्रीय संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, मसौदा समिति, मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों के लिए सलाहकार समिति, प्रक्रिया समिति के नियम, राज्यों की समिति (राज्यों के साथ बातचीत के लिए समिति), जवाहर लाल नेहरू, संचालन समिति। ▪️इन आठ प्रमुख समितियों के अलावा, सबसे महत्वपूर्ण मसौदा समिति थी। 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए डॉ बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया था। #संविधान_सभा_की_आलोचना : जिन बिंदुओं के आधार पर संविधान सभा की आलोचना की गयी थी वो इस प्रकार हैं: ▪️एक लोकप्रिय ढांचा नहीं: आलोचकों का मानना है कि संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सीधे भारत की जनता द्वारा नहीं किया गया था। प्रस्तावना कहती है कि संविधान, भारत के लोगों द्वारा अपनाया गया है जबकि इसे कुछ व्यक्तियों द्वारा अपनाया गया था जो भारतीय लोगों द्वारा निर्वाचित तक नहीं थे। ▪️एक संप्रभु विहीन ढांचा: आलोचक इस बात को लेकर बहस करते हैं कि संविधान सभा का ढांचा संप्रभु नहीं है क्योंकि इसका निर्माण भारत के लोगों के द्वारा नहीं किया गया था। यह भारत की आजादी से पहले कार्यकारी कार्रवाई के माध्यम से ब्रिटिश शासकों के प्रस्तावों द्वारा बनाया गया था तथा इसकी संरचना का निर्धारण भी उन्हीं के द्वारा किया गया था। ▪️वक्त की बर्बादी: आलोचकों का हमेशा से यह मानना रहा है कि संविधान तैयार करने के लिए लिया गया समय दूसरे देशों की तुलना में बहुत ज्यादा था। अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने संविधान तैयार करने के लिए केवल चार महीने का समय लिया जो कि आधुनिक दुनिया में अग्रणी था। ▪️कांग्रेस का बोलबाला: आलोचक हमेशा इस बात को लेकर आलोचना करते हैं कि संविधान सभा में कांग्रेस का काफी दबदबा था और अपने द्वारा तैयार संविधान के मसौदे के माध्यम से उसने देश के लोगों पर अपनी सोच थोप दी थी। ▪️एक समुदाय का बोलबाला: कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में धार्मिक विविधता का अभाव था और केवल हिंदुओं का वर्चस्व था। ▪️वकीलों का बोलबाला: आलोचकों का यह भी मानना है कि संविधान संभा में वकीलों के प्रभुत्व की वजह से यह काफी भारी और बोझिल बन गया था उन्होंने एक आम आदमी को समझने के लिए संविधान की भाषा को मुश्किल बना दिया था। संविधान का मसौदा तैयार करने के दौरान समाज के अन्य वर्ग अपनी चिंताओं को जाहिर नहीं कर पाये और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग नहीं ले सके थे। इसलिए, संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गयी और महत्वपूर्ण रूप से भारत के ऐतिहासिक संविधान का मसौदा तैयार करने में अपना योगदान दिया और बाद में इसने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने में मदद की। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #भारत_में_क्रांतिकारी_आंदोलन भारत की राजनीति में क्रांतिकारी राष्ट्रवादी आंदोलन का उदय लगभग उसी समय हुआ जब कांग्रेस के अंदर गरम दल का उदय हुआ था। क्रांतिकारी अतिवाद के उदय और विकास के पीछे भी वही कारण और परिस्थितियां कार्य कर रही थीं जो गरमपंथ के उदय के लिए जिम्मेदार थीं। #विचारधारा_एवं_कार्यप्रणाली क्रांतिकारियों का विश्वास था कि विदेशी शासन भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ तत्वों को समाप्त कर देगा तथा पश्चिम की अच्छी बातों को भी यहां स्वेच्छा से या शांतिपूर्ण उपायों से कभी लागू नहीं करेगा। उनका यह भी मानना था कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद को केवल हिंसक लड़ाई के द्वारा जल्द से जल्द भारत से समाप्त किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने बम और पिस्तौल की राजनीति को वरीयता दी। कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी दल हुए जिनका कार्यक्रम अधिक व्यापक था। वे सेना में विद्रोह और किसानों में बगावत कराना चाहते थे। अपने उद्देश्यों​ की पूर्ति के लिए हत्या करना, डाका डालना, बैंक, पोस्ट आफिस, रेलगाड़ी, शस्त्रागार आदि लूटना सब कुछ जायज था। यद्यपि इन क्रांतिकारियों ने मैजिनी, गैरीबाल्डी आदि विदेशी राष्ट्रनायकों की क्रियाविधियों का अनुसरण किया; लेकिन देश हित में अपना सर्वस्व बलिदान करने की इनकी अंत: प्रेरणा विशुद्ध भारतीय थी। #क्रांतिकारी_आंदोलन_का_प्रथम_चरण : क्रांतिकारी आंदोलन का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था लेकिन कालांतर में इसका प्रधान केन्द्र बंगाल बन गया। भारत के अन्य प्रांतो तथा विदेशों में भी भारतीय क्रांतिकारी सक्रिय हुए। आइए जानते हैं इन महत्वपूर्ण क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में - #महाराष्ट्र_में_क्रान्तिकारी_आंदोलन : क्रांतिकारी आंदोलन की लहर सबसे पहले महाराष्ट्र से चली और शीघ्र ही इसने समूचे भारत को अपनी गिरफ्त में ले लिया. प्रथम क्रांतिकारी संगठन 1896-97 में पूना में दामोदर हरि चापेकर और बालकृष्ण हरि चापेकर द्वारा स्थापित किया गया. इसका नाम ‘व्यायाम मंडल’ था. इस गुट के द्वारा रैण्ड और एमहर्स्ट नामक दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की गयी. यह यूरोपीयों की प्रथम राजनीतिक हत्या थी. इस हत्या का निशाना तो पूना में प्लेग समिति के प्रधान श्री रैण्ड थे, परन्तु एमहर्स्ट भी अकस्मात् मारे गये. चापेकर बन्धु पकड़े गये तथाप फांसी पर लटका दिये गये. शासक वर्ग ने अंग्रजों के विरुद्ध टिप्पणी लिखने के लिए तिलक को उत्तरदायी ठहराकर 18 मास की सजा दी. 1918 की विद्रोह समिति की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का प्रथम आभास महाराष्ट्र में मिलता है, विशेषकर पूना जिले के चितपावन ब्राह्मणों में. ये ब्राह्मण महाराष्ट्र के शासक पेशवाओं के वंशज थे. उल्लेखनीय है कि चापेकर बन्धु तथा तिलक चितपावन ब्राह्मण ही थे. सावरकर ने 1904 में नासिक में ‘मित्रमेला’ नाम से एक संस्था आरंभ की थी जो शीघ्र ही मेजनी के ‘तरुण इटली’ की तर्ज पर एक गुप्त सभा ‘अभिनव भारत’ में परिवर्तित हो गयी. बंगाल के क्रांतिकारियों से भी इस संस्था का संबंध था. इस संस्था ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए विदेशों से अस्त्र-शस्त्र मंगवाया और बम बनाने का काम रूसियों के सहायता से किया. अनेक गुप्त संस्थाएं बम्बई, पूना, नासिक, नागपुर, कोल्हापुर आदि जगहों में सक्रिय थीं. शीघ्र ही सरकार इनकी कार्यवाहियों से पराजित हो गयी. गणेश दामोदर सावरकर को भारत से निर्वासित कर दिया गया. जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या के आरोप में दामोदर सावरकर सहित अनेक व्यक्तियों पर ‘नासिक षड्यंत्र’ केस चलाया गया. उन्हें भारत से आजीवन निर्वासित कर ‘कालापानी’ की सजा दी गयी. बाद में सरकार की दमनात्मक नीति एवं धन की कमी के कारण महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आन्दोलन ठंडा हो गया. #बंगाल_में_क्रांतिकारी_आन्दोलन : बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन का सूत्रापात भद्रलोक समाज से हुआ. पी. मित्रा ने एक गुप्त क्रांतिकारी सभा ‘अनुशीलन समिति’ का गठन किया. बंग-विभाजन की याजेना, इसके विरुद्ध जन आक्रोश की भावना एवं सरकारी दमनात्मक कार्रवाइयों ने क्रांतिकारी कार्रवाइयों का प्रसार किया. 1905 में बारीन्द्र वुफमार घोष ने ‘भवानी मंदिर’ नामक की पुस्तिका प्रकाशित कर क्रांतिकारी आन्दोलन को बढ़ावा दिया. इसके पश्चात् ‘वर्तमान रणनीति’ नामक पुस्तिका प्रकाशित की. ‘युगान्तर’ और ‘सांध्य’ नामक पत्रिकाओं द्वारा भी अंग्रेज विरोधी विचार फैलाये गये. इसी प्रकार एक अन्य पुस्तिका ‘मुक्ति कौन पथे’ में भारतीय सैनिकों से क्रांतिकारियों को हथियार देने को आग्रह किया गया. पूर्व बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर बैमफिल्ड फुलर की हत्या का काम प्रफुल्ल चाकी को सौंपा गया, किन्तु यह काम पूरा नहीं हो सका. 1907 में बंगाल के लेफ्टिनेंट गर्वनर की ट्रेन को मेदनीपुर के पास उड़ा देने का षड्यंत्र हुआ तथा 1908 ई. में चन्द्रनगर के मेयर को मारने की योजना बनायी गयी. 30 अप्रैल को प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने मुजफ्फरपुर के जिला जज किंग्सपफोर्ड की हत्या करने का प्रयास किया, परन्तु गलती से बम श्री केनेडी की गाड़ी पर गिरा जिससे दो महिलाओं की मृत्यु हो गयी. खुदीराम बोस पकड़े गये. जबकि प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली. बोस पर अभियोग चलकार उन्हें फाँसी दे दी गयी. सरकार ने अवैध हथियारों की तलाशी के संबंध में मानिकतला उद्यान तथा कलकत्ता में तलाशियां लीं और 34 व्यक्तियों को बन्दी बनाया, जिसमें दो घोष बन्धु – अरविंद घोष और बारीन्द्र घोष सम्मिलित थे. इन पर अलीपुर षड्यंत्र का मुकदमा बना. मुकदमे के दिनों में सरकारी गवाह नरेन्द्र गोसाईं की जेल में हत्या कर दी गयी. फरवरी 1909 में सरकारी वकील की हत्या कर दी गयी तथा 24 फरवरी, 1910 को उप-पुलिस अधीक्षक की कलकत्ता उच्च न्यायालय से बाहर आते समय हत्या कर दी गयी. इस षड्यंत्र में अनेक व्यक्तियों को फाँसी की सजा दी गयी. 1910 में हावड़ा षड्यंत्र एवं ढाका षड्यंत्र हुए. बारिसाल में भी क्रांतिकारी कार्य हुए. रॉलेट कमेटी की रिपोर्ट में 1906 से 1917 के बीच मध्य बंगाल में 110 डाकें तथा हत्या के 60 प्रयत्नों का उल्लेख है. इन क्रांति घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने विस्फोट पदार्थ अधिनियम, 1908 और समाचार पत्र (अपराध प्रेरक) अधिनियम, 1908 पास किये. इसके अलावा व्यापक दमन चक्र चलाया गया. अनेक क्रांतिकारी फाँसी पर चढ़ा दिये गये. कुछ को गिरफ्तार कर लिया गया और अनेक को निर्वासित कर दिया गया. इन दमनात्मक कार्यों से क्रांतिकारी संगठन टूटने लगे. #पंजाब_तथा_दिल्ली_में_क्रांतिकारी_आंदोलन : बंगाल की घटनाओं का प्रभाव लगभग समूचे देश पर पड़ा. पंजाब और दिल्ली भी क्रांति से बचे नहीं रहे. 1907 ई. के आस-पास पंजाब के किसानों में ‘औपनिवेशिक विधयेक’ था. इसका नेतृत्व अजीत सिंह कर नामक क्रांतिकारी संस्था बनायी. लाला क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त थे. सिंह को बन्दी बना लिया गया तथा से निर्वासित कर दिये गये. अजित और वे फ़्रांस चले गये. दिल्ली अमीरचंद ने किया. 1912 में दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया, जिसमें जख्मी हो गया और उसका एक सेवक मारा गया. सरकार ने संदिग्ध व्यक्तियों को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया. अमीरचंद और बम फेंकने वाले बसंत विश्वास को फांसी दे दी गयी. रास बिहारी बोस भागकर जापान चले गये और वहीं से क्रांतिकारी गतिविधियां संचालित करते रहे. #भारत_के_अन्य_भागों_में_क्रांतिकारी_आंदोलन : देश के अन्य भागों में भी क्रांतिकारी गतिविधियां चल रही थीं. मद्रास में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन विपिन चन्द्र पाल कर रहे थे. उनके विचारों से प्रभावित होकर अनेक लोग आन्दोलन में कूद पड़े. 1911 में तिनेवेली के जिला मजिस्ट्रेट मि. ऐश को रेलवे स्टेशन पर ही गोली मार दी गयी. नीलंकठ अय्यर और वी.पी.एस. अय्यर ने मद्रास में आन्दोलन को आगे बढ़ाया. राजस्थान में क्रांति फैलाने में मुख्य भूमिका अर्जुन लाल सेठी, केसरी सिंह बारहट और राव गोपाल सिंह ने निभायी, प्रताप सिंह ने अजमेर में क्रांति को जीवित रखा. मध्य प्रदेश के प्रमुख क्रांतिकारी अमरौती के गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे थे. संयुक्त प्रांत, आगरा एवं अवध के क्रांतिकारियों का प्रमुख केन्द्र बनारस बना. बिहार में पटना तथा झारखण्ड में देवघर, दुमका आदि जगहों पर भी घटनाएं हुईं. पटना में कामाख्या नाथ मित्रा, सुधीर कुमार सिंह, पुनीतलाल, बाबू मंगला चरण आदि ने क्रांतिकारी गतिविधियों को अपना सक्रिय सहयोग दिया. #विदेशों_में_क्रांतिकारी_संगठन_एवं_कार्य : अनके क्रांतिकारी सरकारी चंगुल से बचने के लिए विदेश चले गये और वहीं से अपना संघर्ष जारी रखा. विदेशों में क्रांतिकारी आन्दोलन के प्रसार का श्रेय श्यामजी कृष्ण वर्मा को जाता है. लंदन में इन्होंने 1905 में ‘इंडिया होमरूल सोसाइटी’ की स्थापना की. उन्होंने “इंडियन सोशियोलॉजिस्ट” नामक पत्र निकालकर भारत में स्वराज्य प्राप्ति को अपना उद्देश्य बताया. उन्होंने लंदन में ‘इंडिया हाउस’ की भी स्थापना की जो क्रांति गतिविधियों का केन्द्र था. बाद में उन्हें लंदन छोड़कर पेरिस भागना पड़ा. उनकी जगह नेतृत्व विनायक दामोदर सावरकर के हाथ में आ गया. उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘1857 ई. का भारतीय स्वतंत्रता का युद्ध’ लिखी. जुलाई 1909 ई. में लंदन में ही मदन लाल ढींगरा ने भारत सचिव के ए.डी.सी., कनर्ल सर विलियम कर्जन वाइली को गोली मार दी. ढ़ींगरा को फाँसी दे दी गयी और इस षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप में सावरकर को गिरफ्तार कर भारत भेजा गया, जहां उन पर मुकदमा चलाकर देश निकाला की सजा दी गयी. फ़्रांस में मैडम भीकाजी कामा क्रांतिकारी कार्रवाईयों का संचालन कर रही थी. साथियों ने 1931 ई. में सैन फ्रांसिस्को में की. संस्था ने एक साप्ताहिक पत्र ‘गदर’ आन्दोलन को बढ़ावा देती रहा. क्रांतिकारियों ने लंदन में कमाल पाशा से भेंट की. भारत और मिस्र के क्रांतिकारियों का सम्मिलित सम्मलेन ब्रुसेल्स में हुआ. बैंकोक और चीन के गुरुद्वारे क्रांतिकारी विचारों के केन्द्र बन गये. #क्रांतिकारी_आंदोलन_का_दूसरा_चरण - चौरा चौरी की हिंसक घटना के बाद असहयोग आंदोलन को महात्मा गांधी द्वारा रोक दिया गया। ऐसे में क्रांतिकारी आंदोलन में फिर से तेजी आ गई। बंगाल की पुरानी युगांतर और अनुशीलन समितियों को पुनर्जीवित किया गया। लेकिन राष्ट्रव्यापी तालमेल के लिए एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी संगठन की आवश्यकता को महसूस किया गया। इसलिए सभी भारतीय क्रांतिकारी समूहों का अक्टूबर 1924 में कानपुर में एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें सचिन्द्रनाथ सान्याल, जगदीश चन्द्र चटर्जी और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे पुराने क्रांतिकाियों के साथ साथ भगत सिंह, सुखदेव, शिव वर्मा, भगवतीचरण वोहरा तथा चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा क्रांतिकारियों ने भी हिस्सा लिया। इनके सम्मिलित प्रयासों से 1928 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन या आर्मी नामक एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी संगठन की स्थापना हुई। बंगाल, बिहार, संयुक्त प्रांत, दिल्ली, पंजाब मद्रास आदि प्रांतों में इसकी शाखाएं स्थापित की गईं। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने तीन मुख्य उद्देयों को लेकर काम शुरू किया। ▪️गांधी जी की अहिंसात्मक नीतियों के खिलाफ जनता में जागरूकता पैदा करना। ▪️पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु प्रत्यक्ष क्रांतिकारी कार्यवाही की आवश्यकता को प्रदर्शित करना। ▪️अंग्रेजी साम्राज्यवादी सरकार के स्थान पर अखिल भारतीय समाजवादी संघीय गणतंत्र की स्थापना करना। #काकोरी_रेल_डकैती : 9, अगस्त, 1925 को संयुक्त प्रांत (यू पी) के क्रांतिकारियों ने सहारनपुर लखनऊ रेल लाईन पर काकोरी जाने वाली रेलगाड़ी को सफलतापूर्वक लूटा। #साण्डर्स_हत्याकांड : सायमन कमीशन के विरोध में लाहौर में निकाले गए जुलूस का नेतृत्व करते समय लाला लाजपत राय पर पुलिस द्वारा भयंकर लाठी चार्ज किया गया था जिससे बाद में उनकी मृत्यु हो गई। पंजाब के क्रांतिकारियों ने भगतसिंह की अगुवाई में दोषी पुलिस अधिकारी साण्डर्स की 17 दिसंबर 1928 को गोली मारकर हत्या कर दी। #सेंट्रल_असेंबली_बम_काण्ड : 8, अप्रैल 1929 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के दो सदस्यों ने केंद्रीय विधानसभा के खाली बेंचों में बम फेंका। सरदार भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इस कार्य को अंजाम दिया। उनका उद्देश्य किसी हत्या करना नहीं था। बल्कि ऊंचा सुनने वाले बहरों को जनता की आवाज सुनाना उनका मकसद था। चूंकि सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने भर से उनको फांसी नहीं दी जा सकती थी इसलिए सरकार ने इस कांड को साण्डर्स हत्या कांड से जोड़ कर उन पर लाहौर षड्यंत्र केस चलाया गया तथा भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गयी। #चटगांव_शस्त्रागार_लूट : इसी प्रकार सूर्यसेन ने बंगाल के चटगांव शस्त्रागार को अप्रैल 1930 में लूटा। बाद में वे पकड़े गए और फांसी पर लटका दिए गए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1942 में देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया गया। गांधी जी तथा कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफतार कर लिया गया। इसके बाद भारत छोड़ो आन्दोलन जनता का स्वत: स्फूर्त आंदोलन बन गया जिसमें हिंसावादी-अहिंसावादी, समाजवादी और क्रांतिकारी सब ने एक साथ काम किया। जयप्रकाश नारायण आदि समाजवादियों ने आंतरिक तोड़फोड़ की नीति अपनाई तो सुभाषचन्द्र बोस ने जापान और जर्मनी की सहायता से पूर्वोत्तर से ब्रिटिश भारत पर आजाद हिन्द फौज के द्वारा आक्रमण किया। देश के अनेक हिस्सों में समानांतर सरकारों का गठन भी किया गया। उपरोक्त संक्षिप्त विवरण से स्पष्ट है कि पहले चरण के क्रांतिकारियों और दूसरे चरण के क्रांतिकारियों में कुछ मूलभूत अंतर था। पुराने क्रांतिकारी भारत के पारंपरिक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से प्रेरित थे उनके विपरीत दूसरे दौर के क्रांतिकारी समाजवादी सिद्धांतों​ से संचालित थे। बाद वाले क्रांतिकारी अपेक्षाकृत अधिक संगठित थे और वृहत्तर उद्देश्यों को लेकर चले। देश के लिए बलिदान और आत्मोसर्ग इनकी भावना से सम्पूर्ण राष्ट्र अनुप्राणित था। लेकिन गांधी जी के अहिंसात्मक सत्याग्रह की अपार सफलता के चलते क्रांतिकारी विचारधारा भारत में प्रमुखता नहीं पा सकी। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #कांग्रेस_में_गरम_दल_और_नरम_दल भारत में आजादी से पहले कांग्रेस ही मुख्य पार्टी या मुख्य संगठन था जो भारत की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता था। लेकिन जैसा की आप जानते है की हर संगठन में दो तरह के सोच वाले लोग होते है। उसी तरह से इस संगठन में भी दूसरी तरह के सोच वाले लोग निकल कर सामने आये। क्योंकि कुछ लोग समझौता करके भारत पर शासन चाहते थे तो कुछ लोगो को किसी भी तरह का समझौता स्वीकार नहीं था। #गरम_दल : गरम दल के लोग किसी भी कीमत पर आजादी चाहते थे और पूरी आजादी चाहते थे। क्योंकि इन्हे अंग्रेजो का हस्तक्षेप बिलकुल भी स्वीकार नहीं था। गरम दल वालों का मानना था कि ऐसी सरकार से तो गुलामी कई गुणा अच्छी है! यदि अंग्रेजों के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे तो ये भारत के साथ फिर धोखा होगा. नरम दल वाले वंदे मातरम के विरुद्ध थे क्योंकि उनके अनुसार वह गीत भारतीयों के मन में देशभक्ति की भावना को भरता था| पर लोग वंदे मातरम के दीवाने थे| कई सभाओं में तो यह स्थिति हो गई कि जहाँ वंदे मातरम गीत रात रात भर गाया जाता था। ये वही वन्दे मातरम् गीत है जिसने कभी हम सभी के आदर्श शहीद भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, क्षुदी राम बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद आदि कई क्रांतिकारियों को राष्ट्र हेतु मर मिटने के लिए प्रेरित किया| जिसे गाते गाते लाखो लोग फांसी पर झूल गए। जिनमे से सिर्फ कुछ को ही इतिहास अपने पन्नो में जगह दे पाया। #लाल_बाल_पाल : ये गरम दल को बनाने वाले नेता थे जिनके कारण भारत से अंग्रेजो को भागना पड़ा था, लाला लाजपत राय जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी थी। उन्हें भारत के राष्ट्रवादी लोग आज भी उन्हें लाल कह कर याद करते है। ठीक उसी तरह से बाल गंगाधर तिलक को बाल और विपिन पाल को पाल कहकर याद करते है। गरम दल स्वदेशी के पक्षधर थे और सभी आयातित वस्तुओं के बहिष्कार के समर्थक थे। 1905 के बंग भंग आन्दोलन में उन्होने जमकर भाग लिया। लाल-बाल-पाल की त्रिमूर्ति ने पूरे भारत में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध लोगों को आन्दोलित किया। बंगाल में शुरू हुआ धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार देश के अन्य भागों में भी फैल गया। #गरम_दल_के_नेताओ_के_नाम : ▪️लाला लाजपत राय ▪️बाल गंगाधर तिलक ▪️विपिनचंद्र पाल ▪️चंद्रशेखर आज़ाद ▪️सुभाषचंद्र बोस ▪️भगत सिंह ▪️राज गुरु ▪️सुखदेव #नरम_दल : नरम दल के नेता जो अंग्रेजों का समर्थन करते थे क्योंकि अंग्रेजो ने भारत में लूट के साथ साथ आधुनिक तकनीक लाने का भी काम किया जिसमे रेलवे इत्यादि का काम प्रमुख है। इनको लगा होगा की हम अग्रेंजो से समर्थन और तकनीक ले ले बदले में कुछ सोचा होगा। क्या पता। लेकिन इधर जब नरम दल वालों ने देखा कि वंदे मातरम की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, तो अंग्रेंजो ने इन पर ये सब बंद करवाने का दबाब बनाया क्योंकि इससे जनता में अंग्रेजो के प्रति क्रांति की भावना (खिलाफत या विरोध) पैदा हो रही थी। अगर समर्थन चाहिए तो अंग्रेजो की बात माननी ही पड़ती इसलिए नरम दल के कुछ नेताओ ने एक अफवाह फैलाई की ” वंदे मातरम मुसलमानों को नहीं गाना चाहिए क्योंकि इसमें बुत परस्ती है! (या वतन की पूजा है) ” नरम दल के लोग ये बात जानते थे कि “वंदे मातरम संस्कृत” में है जिसे अधिकांश भारत नहीं समझता, और वो वंदे मातरम के अंश लेकर उसका तोड़ मोड़कर अर्थ प्रस्तुत करने लगे| उन्होंने इस बहस की शकल ऐसी बना दी कि जैसे वंदे मातरम देशभक्ति का गीत न होकर कोई धार्मिक गान हो! इस मामले ने इतना तूल पकड़ा की मुस्लिम लोगो को लगा की अपना भी संगठन होना चाहिए. और नरम दल की सहायता से ही भारत में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुयी। अर्थात जो बातें मुसलमान भाइयों के मन में कभी नहीं आई, उसका बीज आखिर किसने बोया ये आप समझ सकते है। नरम दल धीरे धीरे औपनिवेशिक शासन से समन्वय करके स्वशासन के लक्ष्य को प्रप्त करना चाहता था,जिसके अन्तर्गत नरम दल (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) ने ब्रिटेन की द्वितीय विश्वयुद्ध में केवल इस शर्त पर सहायता दी की ब्रिटिश शासन हमें स्वशासन का अवसर देगा । #नरम_दल_के_नेताओ_के_नाम : ▪️महात्मा गांधी ▪️जवाहरलाल नेहरु ▪️सरदार वल्लभ भाई पटेल ▪️गोपाल कृष्णा गोखले #नरम_दल_और_गरम_दल_में_अंतर : ▪️दोनों ही कांग्रेस के विभाजन से बने दल थे, जिसमे एक का नाम नरम दल और दूसरे का नाम गरम दल था. ▪️नरम दल का नेतृत्व मोती लाल नेहरू करते थे और गरम दल का नेतृत्व लोकमान्य तिलक करते थे. ▪️गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक एक क्रन्तिकारी की तरह थे, जिन्होंने यातनाये सही, भूखे रहे, जंगलो में रहे, काला पानी सहा जो हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे वहीं दूसरी ओर नरम दल के नेता जो अंग्रेजों के नियम या अंग्रेजी संविधान का समर्थन करते थे. जिसे हमारे इतिहास में शान्ति से ली गयी आजादी, संविधान में रहकर ली गयी आजादी लिखा गया। [01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #भारतीय_राजव्यवस्था_एवं_शासन : #भारत_में_संवैधानिक_विकास भारत में संवैधानिक विकास की शुरुआत ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (1600 ई०) से माना जा सकता है। ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज व्यापारियों का एक समूह था। इसे ब्रिटिश सरकार ने भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया था। व्यापार की रक्षा के नाम पर यूरोपीय कंपनियों ने भारत में किलेबंदी करना और सेना रखना शुरू कर दिया। अपनी सैनिक शक्ति के दम पर ईस्ट इंडिया कंपनी जल्द ही भारतीय रियासतों के राजनीतिक एवं आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगी और भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई। 1757 की प्लासी की लड़ाई के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में एक मुख्य राजनीतिक ताकत बन गई। 1764 के बक्सर के युद्ध तथा 1765 की इलाहाबाद की संधि से तो कंपनी बंगाल, बिहार और उड़ीसा में सर्वेसर्वा हो गई। भारत में कंपनी की आर्थिक और राजनीतिक सफलताओं एवं कारगुजारियों की वजह से ब्रिटेन में यह जरूरी समझा गया कि भारत में उसके क्रियाकलापों नियंत्रित किया जाए। #रेग्युलेटिंग_एक्ट (1773) : ▪️रेग्ययुलेटिंग एक्ट जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार तथा संसद ने पहली बार कंपनी की गतिविधियों को रेग्युलेट करने या नियंत्रित करने के लिए नियम बनाकर हस्तक्षेप किया। ▪️रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में रखा गया। ▪️1773 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। इसका कार्य क्षेत्र बंगाल, बिहार और उड़ीसा तक था। सर एलीजा इम्पे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। ▪️कंपनी के कर्मचारियों निजी व्यापार नहीं कर सकते थे।. ▪️वे उपहार भी नहीं ले सकते थे। ▪️कोर्ट आफ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष कर दिया गया। #पिट्स_इंडिया_एक्ट (1784) : ▪️यह अधिनियम ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विलियम पिट जुनियर द्वारा लाया गया था। ▪️रेग्युलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया। ▪️पिट्स इंडिया एक्ट में कंपनी प्रशासित क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश राज्य क्षेत्र कहा गया। ▪️बंगाल के गवर्नर जनरल की नियुक्ति पहले की तरह बोर्ड आफ डायरेक्टर्स करता था परंतु इससे पहले बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति लेना जरूरी हो गया। और इस प्रकार नियुक्त गवर्नर जनरल को सम्राट जब चाहे वापस बुला सकता था। ▪️गवर्नर जनरल के कौंसिल के सदस्यों की संख्या चार​ से घटाकर तीन कर दिया गया। एक सदस्य प्रधान सेनापति होता था। ▪️सपरिषद् (कौंसिल सहित) गवर्नर जनरल को युद्ध, राजस्व तथा राजनीतिक मामलों में बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी पर अधिक नियंत्रण प्रदान किया गया। ▪️इसी प्रकार गवर्नर जनरल बिना बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति के देशी राज्यों के प्रति युद्ध या शांति या किसी अन्य विषय में किसी भी प्रकार की नीति नहीं अपना सकता था। ▪️बाद में एक्ट में संशोधन कर यह प्रावधान किया गया कि यदि गवर्नर जनरल जरूरी समझे तो अपनी परिषद के निर्णय को अस्वीकार कर दे। ▪️पिट के भारत अधिनियम के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों में ब्रिटिश सरकार का पहले से अधिक नियंत्रण स्थापित किया गया। ऐसा एक प्रकार का दोहरा शासन स्थापित करके किया गया। ▪️इंग्लैंड में एक नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड आफ कंट्रोल) की स्थापना की गई। इसमें छः सदस्य होते थे। इंग्लैंड का वित्त मंत्री तथा राज्य सचिव (सेकेट्री आफ स्टेट) इसके सदस्य होते थे। चार अन्य सदस्यों की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी। यह नियंत्रण बोर्ड कंपनी के संचालकों के बोर्ड (बोर्ड आफ डायरेक्टर्स) से ऊपर होता था। कंपनी के मालिकों का बोर्ड भी बोर्ड आफ कंट्रोल के नियंत्रण में होता था। बोर्ड आफ कंट्रोल को कंपनी के सैनिक, असैनिक तथा राजस्व संबंधी सभी मामलों की देखरेख तथा नियंत्रण-निर्देशन का अधिकार था। बोर्ड आफ कंट्रोल कंपनी के संचालकों के नाम आदेश भी जारी कर सकता था। इस प्रकार बोर्ड आफ कंट्रोल के माध्यम से ब्रिटेन की सरकार का कंपनी की गतिविधियों पर मजबूत नियंत्रण स्थापित हो गया। कंपनी के संचालक मंडल को भारत से प्राप्त तथा भारत भेजे जाने वाले सभी कागजात की प्रतिलिपि बोर्ड आफ कंट्रोल के समक्ष रखनी पड़ती थी, जिन्हें वह चाहे तो अस्वीकार भी सकती थी या उसमें परिवर्तन भी करके नया रूप भी दे सकती थी। इस प्रकार बोर्ड आफ कंट्रोल द्वारा स्वीकृत या संशोधित आदेश को संचालक मंडल को मानना ही पड़ता था। ▪️इस तरह संचालक मंडल (बोर्ड आफ डायरेक्टर्स​) को बोर्ड आफ कंट्रोल के आदेशों और निर्देशों को मानना ही होता था। ▪️इस अधिनियम के द्वारा संचालक मंडल को केवल कंपनी के व्यापारिक कार्यों के प्रबंधन​ की शक्ति प्रदान की गई। ▪️संचालक मंडल कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता था परंतु यदि सम्राट चाहे तो ऐसी किसी भी नियुक्ति को निरस्त भी कर सकता था। लेकिन गवर्नर जनरल की नियुक्ति के लिए बोर्ड आफ कंट्रोल की अनुमति लेना आवश्यक था। #1793_का_चार्टर_एक्ट : ▪️भारत के साथ व्यापार के कंपनी के अधिकार को 20 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया। ▪️मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी के गवर्नर भी अपने परिषदों के निर्णयों को निरस्त करने का अधीकार दिया गया। #1813_का_चार्टर_एक्ट : ▪️इस चार्टर एक्ट के द्वारा भारत के साथ कंपनी के व्यापार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। लेकिन चीन के साथ कंपनी के व्यापार और चाय के व्यापार पर एकाधिकार सुरक्षित रखा गया। ▪️भारतीयों की शिक्षा के लिए एक लाख रुपए वार्षिक की व्यवस्था की गई। ▪️ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गई। #1833_का_चार्टर_एक्ट : ▪️कंपनी के चाय के व्यापार के एकाधिकार और चीन के साथ व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा कंपनी को पूर्णता राजनीतिक और प्रशासनिक मशीनरी बना दिया गया । ▪️इस चार्टर एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा गया। लार्ड विलियम बैंटिक भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बना। ▪️एक विधि आयोग का गठन किया गया। लार्ड मैकाले विधि आयोग का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। ▪️दास प्रथा गैर कानूनी घोषित हुई। ▪️कंपनी के अधीन किसी पद पर नियुक्ति के मामले में भारतीयों से किसी भी प्रकार का भेदभाव निषिद्ध किया गया। ▪️संपूर्ण भारत के लिए अधिनियम बनाने का अधिकार सपरिषद् गवर्नर जनरल को दिया गया। #भारतीय_शासन_अधिनियम (1858) : ▪️इस अधिनियम के द्वारा कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और अब भारत का शासन सम्राट के नाम से किया जाने लगा। ▪️भारत का गवर्नर जनरल अब वायसराय कहा जाने लगा, जो सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में भारत का शासन चलाता था। ▪️लार्ड कैनिंग पहला वायसराय बना। ▪️भारत सचिव का एक नया पद बनाया गया। भारत सचिव ब्रिटिश मंत्रिमंडल का एक सदस्य होता था। 15 सदस्यों का एक भारत परिषद बनाया गया। यह परिषद भारत सचिव को उसके कार्य में सहायता देती थी। ▪️नियंत्रण बोर्ड और निदेशक मंडल को समाप्त कर दिया गया तथा इन दोनों का कार्य भारत सचिव को दे दिया गया। ▪️इस तरह 1858 के भारत शासन अधिनियम से द्वैध शासन समाप्त हुआ। #भारतीय_परिषद_अधिनियम (1861) : ▪️इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को अपनी परिषद में भारतीय सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार दिया गया। परंतु ये सदस्य न तो बजट पर बहस कर सकते थे और न ही प्रश्न कर सकते थे। ▪️अब सपरिषद प्रांतीय गवर्नर अर्थात् बंबई और मद्रास के गवर्नर भी कानून बना सकते थे। यह एक तरह से विकेंद्रीकरण की शुरुआत थी । #भारतीय_परिषद_अधिनियम (1892) : ▪️गवर्नर जनरल की परिषद में गैर सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। परंतु अभी सरकारी सदस्यों का बहुमत बना रहा। ▪️सीमित रूप में तथा अप्रत्यक्ष पद्धति से ही सही, अब परिषद के सदस्यों का चुनाव शुरू किया गया। अर्थात् भारत में निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत हो गई। ▪️सदस्य गण अब बजट पर बहस कर सकते थे परंतु आर्थिक मुद्दों पर मतदान नहीं कर सकते थे। वे प्रश्न भी कर सकते थे, परंतु पूरक प्रश्न नहीं कर सकते थे। उनके प्रश्नों का उत्तर दिया जाना भी जरूरी नहीं था। ▪️यह अधिनियम भारत के किसी भी राजनीतिक गुट को संतुष्ट नहीं कर सका। यहां तक कि नरम दल भी इस अधिनियम से असंतुष्ट रहा। #1909_का_भारतीय_परिषद_अधिनियम ▪️भारत सचिव जान मार्ले और वायसराय लॉर्ड मिंटो ने सुधार का एक मसौदा पेश किया जिसके आधार पर 1909 का भारतीय परिषद अधिनियम पारित हुआ इसलिए इसे मार्ले-मिंटो सुधार भी कहते हैं। ▪️1909 के भारतीय परिषद अधिनियम के केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। ▪️गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया। ▪️सदस्यों को प्रस्ताव रखने, बजट पर बहस करने, प्रश्न करने तथा मतदान का भी अधिकार दिया गया। लेकिन व्यावहारिक रूप में यह सब अधिकार नहीं थे। ▪️सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम की सबसे खराब बात थी। इसके द्वारा मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई, जहां मुस्लिम प्रतिनिधियों का चुनाव केवल मुस्लिम मतदाताओं को करना था। इस तरह अंग्रेजों ने भारत में बढ़ती हुई राष्ट्रवाद की भावना को कमजोर करने के लिए फूट डालो और राज करो की नीति के तहत साम्प्रदायिकता का जहर बो दिए। #मांटेग्यू_घोषणा : 20 अगस्त 1917 को भारत सचिव मांटेग्यू ने हाउस आफ कामन्स में एक महत्वपूर्ण घोषणा की। यह घोषणा में भारत में अंग्रेजी सरकार के उद्देश्य और नीतियों से संबंधित थी। इसमें मांटेग्यू ने कहा कि भारत में स्वशासी शासनिक संस्थानो का धीरे-धीरे क्रमशः इस प्रकार विकास किया जाएगा कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अभिन्न अंग के रूप में प्रगति करते हुए उत्तरदायी शासन प्रणाली की दिशा में आगे बढ़े तथा शासन के प्रत्येक विभाग में भारतीयों की भागीदारी बढ़े। और यह सब भारतीयों के सहयोग तथा जवाबदारी निभाने की क्षमता पर निर्भर करेगा। लेकिन इस दिशा में कब और किस मात्रा में प्रगति होगी इसका निर्धारण भारत सरकार और ब्रिटिश सरकार ही करेंगे। #मांटफोर्ड_रिपोर्ट (1918) : भारत सचिव एडविन मांटेग्यू और वायसराय चेम्सफोर्ड ने 1917 के 20,अगस्त की घोषणा​ को लागू करने के लिए एक मसौदा पेश किया। इसे ही मांटफोर्ड रिपोर्ट कहा गया। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित है- ▪️नगरपालिकाओं​, जिला बोर्डों आदि स्थानीय निकायों में पूर्ण लोकप्रिय नियंत्रण। ▪️प्रांतों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना।. ▪️केंद्रीय असेंबली का विस्तार तथा उसमें भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व देना। यही रिपोर्ट 1919 के भारत शासन अधिनियम का आधार बनी। इसे मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं। #भारत_सरकार_अधिनियम (1919) : (क) प्रांतों से संबंधित उपबंध: इस अधिनियम का सबसे महत्वपूर्ण भाग प्रांतों में दोहरा शासन या द्वैध शासन लागू करना था। इसके लिए शासन के विषयों को प्रांतीय और केंद्रीय सूचियों में बांट दिया गया- 1. केंद्रीय विषयों में रक्षा, विदेशी मामले, मुद्रा और टंकण, आयात-निर्यात कर इत्यादि थे। 2. शांति और व्यवस्था, स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, चिकित्सा प्रशासन और कृषि आदि को प्रांतीय विषयों की सूची में शामिल किया गया था। प्रांतीय विषयों को फिर दो भागों में बांटा गया- हस्तांतरित और आरक्षित। हस्तांतरित विषयों (जैसे, स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, अस्पताल, उद्योग, कृषि आदि) का प्रशासन लोकप्रिय मंत्रियों को सौंपा जाना था। जबकि शांति और व्यवस्था, पुलिस, वित्त, भूमि कर और श्रम जैसे कुछ अन्य विषय गवर्नर के लिए आरक्षित किए गए जिनका प्रशासन उसे सरकारी सदस्यों के सहयोग से चलाना था। प्रांतीय परिषदों का विस्तार भी किया गया तथा निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। मताधिकार का विस्तार किया गया। दुर्भाग्यवश सांप्रदायिक निर्वाचन मंडल को न केवल बनाए रखा गया बल्कि और बढ़ा दिया गया। अब मुसलमानों के साथ-साथ सिखों, यूरोपीयों, भारतीय ईसाइयों तथा एंग्लो इंडियन को भी पृथक प्रतिनिधित्व मिला। 1. प्रांतों के गवर्नर आरक्षित विषयों में गवर्नर जनरल या भारत सचिव के प्रति उत्तरदायी था। हस्तांतरित विषयों में भी वह सांवैधानिक मुखिया का कार्य न करके अक्सर मंत्रियों की सलाह के विरुद्ध काम करता था। वह किसी भी विधेयक को रोक सकता था तथा विधान मंडल द्वारा अस्वीकृत​ विधेयक को प्रमाणित कर सकता था। वह अध्यादेश जारी कर सकता था। विधान मंडल को भंग करके समस्त प्रशासन अपने हाथ में ले सकता था। वह विधानमंढल का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा भी सकता था। (ख) केंद्र में परिवर्तन : केंद्रीय स्तर पर पहले की तरह ही निरंकुश सरकार चलती रही और वह सैद्धांतिक रूप से केवल ब्रिटेन की संसद के प्रति उत्तरदायी थी। केंद्रीय विधान मंडल को द्विसदनात्मक बना दिया गया। मताधिकार अब भी सीमित था। यद्यपि दोनों सदनों में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत रखा गया परन्तु गवर्नर जनरल की शक्तियां बढ़ा दी गईं। वह कटौतियों का पुनः स्थापन कर सकता था, विधेयकों को प्रमाणित कर सकता था और अध्यादेश जारी कर सकता था। कमियां: भारत शासन अधिनियम 1919 के द्वारा प्रांतों में लागू किया गया दोहरा शासन बहुत ही भद्दा, भ्रममय और जटिल था। इसके द्वारा बहुत ही चालाकी से भारतीय राजनेताओं को आरक्षित और हस्तांतरित विषयों की चूहा-दौड़ में फंसा दिया गया। इसी तरह केंद्र में गवर्नर जनरल के अत्यधिक शक्तिशाली हो जाने से गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत भी छलावा मात्र था। कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत शासन अधिनियम 1919 भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकता था इसलिए शीघ्र ही असहयोग आंदोलन शुरू हो गया।. #भारत_शासन_अधिनियम (1935) : ▪️प्रांतीय स्वायत्तता भारत शासन अधिनियम 1935 की मुख्य विशेषता थी। अब प्रांतों का शासन लोकप्रिय मंत्रियों की सलाह से गवर्नर द्वारा चलाया जाना था। ▪️प्रांतीय और केंद्रीय विधान मंडलों की सदस्य संख्या बढ़ा दी गई। ▪️प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त कर दिया गया लेकिन इसे केंद्र में लागू कर दिया गया। ▪️केंद्र के प्रशासनिक विषयों को दो प्रकारों में संरक्षित और हस्तांतरित में बांटा गया। संरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल सरकारी सदस्यों की सहायता से करता था, जो विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। ▪️हस्तांतरित विषयों का प्रशासन लोकप्रिय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था तो विधानमंडल के सदस्यों में से होते थे और उसी के प्रति जवाबदार होते थे। ▪️भारत शासन अधिनियम 1935 में एक अखिल भारतीय संघ का प्रस्ताव था, जो ब्रिटिश भारत के प्रांतों, चीफ कमिश्नरों के क्षेत्रों और देशी रियासतों से मिलाकर बनाया जाना था। लेकिन देशी रियासतों के लिए इस प्रस्तावित संघ में शामिल होना अनिवार्य नहीं होकर वैकल्पिक था इसलिए यह व्यवस्था अमल में नहीं आ सकी। ▪️मताधिकार का विस्तार किया गया। ▪️पृथक निर्वाचन की व्यवस्था को और बढ़ाते हुए हरिजनों को भी इसमें शामिल किया गया। ▪️बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। ▪️सिंध प्रांत को बंबई से अलग कर दिया गया। ▪️‘बिहार और उड़ीसा’ प्रांत का विखंडन करके बिहार तथा उड़ीसा नाम से दो नए प्रांत बनाए गए। ▪️भारत मंत्री के अधिकारों में कटौती की गई तथा ‘भारत परिषद’ को समाप्त कर दिया गया। ▪️एक संघीय न्यायालय तथा रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना की गई। #संविधान_सभा_का_गठन : केबिनेट मिशन योजना (1946) के अंतर्गत एक संविधान निर्मात्री सभा के गठन का प्रावधान था। जुलाई 1946 में संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव हुआ। इसकी प्रथम बैठक 09, दिसंबर 1946 को हुई। संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह और 18 दिनों के अथक परिश्रम के बाद भारत का संविधान बनाया। इस संविधान पर 26 नवंबर 1949 को सदस्हयों हस्ताक्षर हुए। संविधान के नागरिकता आदि से संबंधित कुछ उपबंध तत्काल लागू हो गये। संविधान पूर्ण रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।