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Wednesday, February 24, 2021
आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #बक्सर_की_लड़ाई
आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#बक्सर_की_लड़ाई
बक्सर का युद्ध बंगाल के नवाब मीर कासिम,अवध के नवाब सुजाउद्दौला व मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजों के मध्य लड़ा गया था | यही वह निर्णायक युद्ध था जिसने अंग्रेजों को अगले दो सौ वर्षों के लिए भारत के शासक के रूप में स्थापित कर दिया| यह युद्ध अंग्रेजों द्वारा फरमान और दस्तक के दुरुपयोग और उनकी विस्तारवादी व्यापारिक आकांक्षाओं का परिणाम था|
22 अक्टूबर,1764 ई. को लड़े गए बक्सर के युद्ध में संयुक्त भारतीय सेना की पराजय हुई| बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास की युगांतरकारी घटना साबित हुई |1765 ई. में सुजाउद्दौला और शाह आलम ने इलाहाबाद में कंपनी गवर्नर क्लाइव के साथ संधि पर हस्ताक्षर किये| इस संधि के तहत,कंपनी को बंगाल,बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्रदान कर दिए गए, जिसने कंपनी को इन क्षेत्रों से राजस्व वसूली के लिए अधिकृत कर दिया|कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के क्षेत्र लेकर मुग़ल शासक को सौंप दिए,जोकि अब इलाहाबाद में अंग्रेजी सेना के संरक्षण में रहने लगा था|कंपनी ने मुगल शासक को प्रतिवर्ष 26 लाख रुपये के भुगतान का वादा किया लेकिन थोड़े समय बाद ही कंपनी द्वारा इसे बंद कर दिया गया|कंपनी ने नवाब को किसी भी आक्रमण के विरुद्ध सैन्य सहायता प्रदान करने का वादा किया लेकिन इसके लिए नवाब को भुगतान करना होगा|अतः अवध का नवाब कंपनी पर निर्भर हो गया| इसी बीच मीर जाफर को दोबारा बंगाल का नवाब बना दिया गया| उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र को नवाब की गद्दी पर बैठाया गया| कंपनी के अफसरों ने नवाब से धन ऐंठ कर व्यक्तिगत रूप से काफी लाभ कमाया|
#युद्ध_के_लिए_जिम्मेदार_घटनाएँ
ब्रिटिशों द्वारा दस्तक और फरमान का दुरुपयोग,जिसने मीर कासिम के प्राधिकार और प्रभुसत्ता को चुनौती दी
ब्रिटिशों के आतंरिक व्यापार पर सभी तरह के शुल्कों की समाप्ति
कंपनी के कर्मचारियों का दुर्व्यवहार : उन्होंने भारतीय दस्तकारों, किसानोंऔर व्यापारियों को अपना माल सस्ते में बेचने के लिए बाध्य किया और रिश्वत व उपहार लेने की परंपरा की भी शुरुआत कर दी|
ब्रिटिशों का लुटेरों जैसा व्यवहार जिसने न केवल व्यापार के नियमों का उल्लंघन किया बल्कि नवाब के प्राधिकार को भी चुनौती दी|
#निष्कर्ष
बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास की युगांतरकारी घटना साबित हुई | ब्रिटिशों की रूचि तीन तटीय क्षेत्रों कलकत्ता ,बम्बई और मद्रास में अधिक थी| अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के बीच लड़े गए कर्नाटक युद्ध ,प्लासी के युद्ध और बक्सर के युद्ध ने भारत में ब्रिटिश सफलता के दौर को प्रारंभ कर दिया|1765 ई. तक ब्रिटिश बंगाल,बिहार और उड़ीसा के वास्तविक शासक बन गए| अवध और कर्नाटक के नवाब(जिसे उन्होंने ही नवाब बनाया था) उन पर निर्भर हो गए|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#मौर्य_युग_के_पूर्व_विदेशी_आक्रमण
#ईरानी_फारसी_आक्रमण
पूर्वोत्तर भारत में धीरे-धीरे छोटे गणराज्यों और रियासतों का विलय मगध साम्राज्य के साथ कर दिया था। लेकिन उत्तर-पश्चिम भारत में विदेशी आक्रमण से क्षेत्र की रक्षा करने के लिए कोई भी मजबूत साम्राज्य नहीं था। यह क्षेत्र धनवान भी था और इसमें हिंदू कुश के माध्यम से आसानी से प्रवेश किया जा सकता था।
518 ई.पू. में ईरानी आक्रमण और 326 ई.पू. में मकदूनियाई आक्रमण के रूप में भारतीय उप-महाद्वीप के दो प्रमुख विदेशी आक्रमण हुए थे।
आर्कमेनियन शासक डारियस प्रथम ने 518 ईसा पूर्व में भारत के उत्तर-पश्चिम सीमांत पर आक्रमण किया और राजनीतिक एकता के अभाव का लाभ लेते हुए पंजाब पर आक्रमण कर दिया।
#ईरानी_आक्रमण_के_प्रभाव
आक्रमण से इंडो-ईरानी व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि हुई। ईरानियों ने भारतीयों के लिए एक नई लेखन लिपि की शुरूआत की जिस खरोष्ठी के रूप में जाना जाता था।
#मकदूनियाई_सिकंदर_के_आक्रमण
सिकंदर 20 साल की उम्र में अपने पिता की जगह लेते हुए मैसेडोनिया के सिंहासन आसीन हुआ। उसका सपना विश्व विजेता बनने का था और 326 ईसा पूर्व भारत पर आक्रमण करने से पहले उसने कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर ली थी। अम्भी (तक्षशिला के शासक) और अभिसार ने उसके आगे आत्मसमर्पण कर दिया था लेकिन पंजाब के शासक ने ऐसा करने से मना कर दिया था।
सिकंदर और पोरस की सेनाओं के बीच झेलम नदी के पास शुरू हुए युद्ध को हेडास्पेस के युद्ध के नाम से जाना जाता है। हांलाकि इस युद्ध में पोरस हार गया था लेकिन सिकन्दर ने उसका उदारतापूर्वक व्यवहार किया था।
हालांकि, यह जीत भारत में उसकी आखिरी बड़ी जीत साबित हुई क्योंकि उसकी सेना ने इसके बाद आगे जाने से इनकार कर दिया था। वे सिकंदर के अभियान के साथ जाने से काफी थक गए थे और वापस घर लौटना चाहते थे। इसके अलावा, मगधियन साम्राज्य (नंदा शासक) की ताकत से भी वो भयभीत थे।
विजय प्राप्त प्रदेशों के लिए आवश्यक प्रशासनिक व्यवस्था करने के बाद सिकंदर 325 ईसा पूर्व वापस चले गया। 33 वर्ष की आयु में जब वह बेबीलोन में था तब उसका निधन हो गया।
#आक्रमण_के_प्रभाव
इस आक्रमण से भारत में राजनीतिक एकता की जरूरत महसूस की गयी जिससे चंद्रगुप्त मौर्य और उसके वंश का उदय हुआ है जिन्होंनो अपने शासन के दौरान भारत को एकजुट किया।
सिकंदर के आक्रमण के परिणामस्वरूप, भारत में इंडो-बैक्टेरियन और इंडो-पर्थिनयन राज्य स्थापित किये गये जिसने भारतीय वास्तुकला, सिक्कों और खगोल विज्ञान को प्रभावित किया था।
#निष्कर्ष:
व्यापार, वाणिज्य, कला और संस्कृति के विकास साथ विदेशी आक्रमणों ने भारतीय उपमहाद्वीप के राजनीतिक एकीकरण में मदद की।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#मुगल_साम्राज्य
मुगलों के भारत आने के बाद भारत के इतिहास, संस्कृति, परंपरा, जातीयता और कलात्मकता में बड़ा बदलाव आया। मुगलों ने बाबर के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया। 1526 में पानीपत की लड़ाई हुई और बाबर ने भारत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोधी को हराया। उनके द्वारा स्थापित राजवंश तीन शताब्दियों से अधिक समय तक रहा। आईए जानते है मुगल वंश के शासकों के बारे में-
#मुगल_वंश_के_शासक :
#बाबर(1526–1530)
▪️बाबर का जन्म 1483 में फरगाना (अफ़गानिस्तान) में हुआ था।
▪️वह मुगल साम्राज्य के संस्थापक थे, जिन्होंने भारत में बारूद की शुरुआत की।
▪️पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को हराया (1526 ई.)।
▪️खानवा के युद्ध में राणा साँगा (संग्राम सिंह) को हराया (1527 ई.)।
▪️चंदेरी की लड़ाई में चंदेरी की मेदिनी राय को हराया (1528 ई.)।
▪️घाघरा की लड़ाई (1529 ई।) में महमूद लोदी को हराया। यह बाबर द्वारा लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी।
▪️उन्होंने तुज़ुक-ए-बबुरी (बाबर की आत्मकथा) तुर्की भाषा में लिखी थी।
▪️बाबर ने जेहाद की घोषणा की और गाजी (खानवा युद्ध के बाद) पदवी प्राप्त किया।
▪️तुज़ुक-ए-बबुरी के अनुसार, बाबर की मृत्यु 1530 में लाहौर में हुई और उसे अराम बाग (आगरा) में दफनाया गया। बाद में उनके पार्थिव शरीर को अफगानिस्तान (काबुल) ले जाया गया।
#हुमायूँ (1530-1556 ई.)
▪️हुमायूँ बाबर का सबसे बड़ा पुत्र था।
▪️दिल्ली में दीनपनाह को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
▪️शेरशाह सूरी ने धीरे-धीरे सत्ता हासिल की। उन्होंने हुमायूँ के साथ दो लड़ाइयाँ लड़ीं -एक चौसा की लड़ाई (1539 ई.) और दूसरी कन्नौज की लड़ाई (1540 ई.) जिसमें हुमायूँ की हार हुई।
▪️हुमायूँ को निर्वासन में 15 वर्ष बीत गए। उसने अपने अधिकारी बैरम खान की मदद से 1555 में फिर से भारत पर आक्रमण किया।
▪️हुमायूँ की मृत्यु 1556 ई. में उसके पुस्तकालय भवन की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुई।
▪️हुमायूँ की सौतेली बहन, गुलबदन बेगम, ने हुमायूँ-नामा लिखा।
#अकबर (1556-1605ई.)
▪️अबूल-फतह जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर को अकबर के नाम से जाना जाता है,
▪️हुमायूँ के बाद एक रेजिमेंट, बैरम खान ने भारत में युवा सम्राट मदद की और भारत में मुगल सम्राज्य को मजबूत बनाया।
▪️सबसे महान शासकों में से एक माना जाता है।
▪️बैरम खान की मदद से पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556 ई.) में हेमू को हराया।
▪️बाज बहादुर को हराकर मालवा (1561 ई.)विजय, इसके बाद गढ़-कटंगा (रानी दुर्गावती द्वारा शासित), चित्तौड़ (1568 ई.), रणथंभौर और कालिंजर (1569 ई.), गुजरात (1572 ई. ), मेवाड़ (हल्दीघाटी का युद्ध, 1576 अकबर और राणा प्रताप) कश्मीर (1586 ई.), सिंध (1593 ई.) और असीरगढ़ (1603 ई.)को हराया। ,
▪️1572 ई. में गुजरात पर विजय के बाद फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा का निर्माण किया गया।
▪️अकबर ने हरखा बाई (जोधा बाई के रूप में भी जाना जाता है) से निकाह किया, जो राजपूत शासक भारमल की बेटी थी।
▪️अकबर ने जज़ियाह (1564 ई।) को समाप्त कर दिया।
▪️उसे इबादत खाना (प्रार्थना की हॉल) में विश्वास था, इसलिए फतेहपुर सीकरी में , सुलह-ए-कुल (सभी के लिए शांति) का निर्माण किया,डिग्री ऑफ इनफिलिबिलिटी (1579 ई.) जारी किया; धार्मिक दीन-ए-इलाही (1582 ई.) का आदेश दिया। बीरबल ने सबसे पहले इसे गले लगाया था।
▪️महानता और सेना को संगठित करने के लिए भू-राजस्व प्रणाली जिसे टोडर माल बंदोबस्त या ज़बती कहा जाता था, भूमि का वर्गीकरण और किराए का निर्धारण; और मानसबाड़ी प्रथा (रैंक धारक) की शुरुआत की।
▪️इनके नवरत्नों में टोडर मल, अबुल फजल, फैजी, बीरबल, तानसेन, अब्दुर रहीम खाना-ए-खाना, मुल्ला-डो-प्याजा, राजा मान सिंह और फकीर अज़ीओ-दीन शामिल थे।
▪️27 अक्टूबर 1605 को पेचिश के कारण अकबर की मृत्यु हो गई। उनका शव आगरा के सिकंदरा स्थित उनके मकबरे में दफनाया गया था।
#जहाँगीर (1605-1627 ई.)
▪️पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जुन देव को मारा।
▪️1622 ई. में फारस से कंधार से की हार उसकी सबसे बड़ी विफलता थी।
▪️जहाँगीर ने 1611 ई. में मेहर-उन-निसा से शादी की और नूरजहाँ की उपाधि दी।
▪️उन्होंने शाही न्याय के चाहने वालों के लिए आगरा किले में जंजीर-ए-अदल की स्थापना की।
▪️कप्तान हॉकिन्स और सर थॉमस रो ने उनके दरबार का दौरा किया था।
#शाहजहाँ(1628-1658ई.)
▪️शाहजहाँ को निर्माण का एक अतुलनीय शौक था।
उनके शासन में आगरा के ताजमहल और दिल्ली के ▪️जामा मस्जिद, आदि अन्य स्मारकों का निर्माण हुआ।
▪️इसका शासनकाल ने मुगल शासन के सांस्कृतिक उत्थान का समय माना जाता है ।
▪️उनके सैन्य अभियानों ने साम्राज्य को दिवालियापन के कगार पर ला दिया।
▪️उनके पुत्रों ने विभिन्न मोर्चों पर बड़ी सेनाओं की कमान संभाली।
▪️उनके शासनकाल के दौरान मारवाड़ी घोड़े सामने आए।
▪️अनन्त प्रेम स्मारक ताजमहल, आगरा में स्थित है। ▪️शाहजहाँ ने 1631 में मुमताज महल के नाम से मशहूर अपनी पसंदीदा बेगम, अर्जुमांचल बानो बेगम के लिए यह मकबरा बनवाया।
▪️गुरु हरगोबिंद के नेतृत्व में सिखों का विद्रोह हुआ। ▪️शाहजहाँ ने लाहौर में सिख मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया।
#औरंगजेब (आलमगीर)(1658-1707 ई.)
▪️औरंगज़ेब मुमताज़ और शाहजहाँ के पुत्र था।
▪️औरंगजेब अपने भाई दारा, शुजा और मुराद के बीच उत्तराधिकार के क्रूर युद्ध के बाद विजयी हुआ।
▪️उनके शासन के दौरान – मथुरा में जाट किसान, पंजाब में सतनामी किसान और बुंदेलखंड में बुंदेलों का विद्रोह हुआ।
▪️1658 ई. में मारवाड़ का मेल, राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद राजपूत और मुगलों के बीच एक गंभीर दरार बन गया।
▪️नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर को उनके द्वारा 1675 ई. में मार दिया गया था।
▪️मुगल विजय उसके शासनकाल के दौरान चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई।
▪️यह उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में जिंजी तक, पश्चिम में हिंदुकुश से पूर्व में चटगाँव तक फैला हुआ था।
▪️उन्हें दरवेश या जिंदा पीर कहा जाता था। उसने सती को नही मानता था। बीजापुर (1686 ई.) और गोलकोंडा (1687 ई.) पर विजय प्राप्त की और 1679 ई. में जज़िया कर फिर से लगा दिया।
▪️इसने औरंगाबाद में अपनी रानी रबूद-दुर्रानी की कब्र पर बीवी का मकबरा दिल्ली के लाल किले के भीतर मोती मस्जिद; और लाहौर में यामी या बादशाही मस्जिद बनवाया।
▪️1707 में अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु हो गई।
#अन्य_मुग़ल_शासक :
#बहादुर_शाह I (1707-12)
▪️असली नाम मुअज्जम था।
▪️शाह-ए-बेखबर टाइटल था।
▪️मराठों और राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध को बढ़ावा दिया
#जहाँदार_शाह (1712-13)
▪️वह जुल्फिकार खान (वज़ीर) की मदद से गद्दी प्राप्त की।
▪️जजिया कर खत्म कर दिया।
▪️इसके दरबार में एक दासी लालकुमर थी।
फर्रुख्सियर(1713-19)
▪️उसके पास स्वतंत्र रूप से शासन करने की क्षमता और ज्ञान का अभाव था।
▪️उनके शासनकाल में सैय्यद ब्रदर्स (राजा निर्माता के रूप में जाना जाता है) का उदय हुआ।
▪️अब्दुल्ला खान-वज़ीर था
▪️हुसैन अली-सेनापति था।
▪️1717-मुक्त व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को गोल्डन फ़ार्मन जारी किया।
▪️फर्रुखसियर ने बंदा बहादुर(एक सिख नेता)को मारा।
#मुहम्मद_शाह (1719-48)
▪️सय्यद ब्रदर्स की मदद से बादशाह बना।
▪️नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और मयूर ▪️सिंहासन और कोहिनूर हीरा छीन लिया।
▪️टाइटल- रंगीला था।
▪️उनके काल में स्वतंत्र राज्य का उदय हुआ।
#अहमद_शाह (1748-54)
▪️अहमद शाह अब्दाली (नादिर शाह के जनरल) ने दिल्ली की ओर कूच किया और मुगलों ने पंजाब और मुल्तान पर कब्जा कर लिया।
▪️उन्होंने राजमाता “उमाद बाई” के मार्गदर्शन में काम किया।
#आलमगीर(1754-59)
▪️अहमद शाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया, बाद में, मराठों द्वारा दिल्ली को लूट लिया गया।
#शाह_आलम II (1759-1806)
▪️असली नाम: अलीगोहर
▪️पानीपत का युद्ध: (1761)
▪️बक्सर युद्ध (1764)
▪️इलाहाबाद की संधि (1765)
▪️12 साल तक दिल्ली में प्रवेश नहीं कर सका।
▪️1788: गुलाम कादिर ने उन्हें अंधा बना दिया।
#अकबर II (1806-37)
▪️ईस्ट इंडिया कंपनी के पेंशनर।
▪️राम मोहन राय को “राजा” की उपाधि दी।
#बहादुर_शाह II (1837-57)
▪️उपनाम: जाफ़र
▪️अंतिम मुगल सम्राट, जिसे 1857 के विद्रोह के दौरान प्रमुख बनाया गया था।
▪️1862-रंगून में मृत्यु (म्यांमार)
#मुगल_राजवंश_के_तहत_कला_और_आर्क_का
#चित्रण :
मुगलों के अधीन कला और वास्तुकला इस्लामी, फारसी और भारतीय वास्तुकला का मिश्रण था। बाबर के अधीन मुगल वास्तुकला ने भारत के चारों ओर काफी कुछ मस्जिदों के निर्माण को देखा, जो ज्यादातर हिंदू मंदिरों से लिया गया था। आगरा में एक भी खुदा हुआ मस्जिद के अपवाद के साथ, कोई अन्य जीवित संरचना निर्विवाद रूप से हुमायूँ के संरक्षण के परिणामस्वरूप नहीं थी। अकबर के दौरान मुगल वास्तुकला भारतीय शैली के साथ फारसी वास्तुकला के अद्वितीय सम्मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती है। अकबर से संबंधित प्रसिद्ध वास्तुकला के मैदान आगरा के किले-महल, आगरा में फतेहपुर सीकरी, इलाहाबाद में जहाँगीरी महल, अजमेर में किले, बीरबल के जोधाबाई महल, हाउस ऑफ बीरबल और उनकी अपनी शानदार कब्र हैं।
जहांगीर ने मुगल शासन में लघु चित्रकला के स्कूल में उत्साहपूर्वक संरक्षण किया। औरंगजेब के शासनकाल में पत्थर और संगमरमर ने प्लास्टर आभूषण के साथ ईंट या मलबे को रास्ता दिया। उन्होंने लाहौर के किले में अपना नाम जोड़ा। औरंगजेब के शासनकाल की सबसे प्रभावशाली इमारत, बादशाही मस्जिद है जिसका निर्माण 1674 में हुआ था।
#मुगल_प्रशासन :
मुगलों के राजत्व सिद्धान्त का मूलाधिकार ‘शरीअत’ (कुरान एवं हदीस का सम्मिलित नाम) था। बाबर ने ‘बादशाह’ की उपाधि धारण करके मुगल बादशाहों को खलीफा के नाममात्रा के अधिपत्य से भी मुक्त कर दिया। हुमायुˇ बादशाह को ‘पृथ्वी पर खुदा का प्रतिनिधि’ मानता था। अकबर राजतन्त्रा को धर्म एवं सम्प्रदाय से परे मानता था और उसने रूढ़िवादी इस्लामी सिद्धान्तों के स्थान पर ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति अपनायी। मुगल बादशाहों ने निःसन्देह बादशाह के दो कर्तव्य माने थे- ‘जहांबानी’(राज्य की रक्षा) और जहांगीरी (अन्य राज्यों पर अधिकार) अकबर के शासन काल के 11वे वर्ष में पहली बार मनसब प्रदान किये जाने का संकेत मिलता है। अकबर ने अपने अन्तिम वर्षों में मनसबदारी व्यवस्था में ‘जात एवं सवार’ नामक द्वैत मनसब प्रथा को प्रारम्भ किया। अकबर के समय में सबसे छोटा मनसब 10 का तथा सबसे बड़ा 10,000 तक हो गया। जहांगीर और शाहजहां के काल में सरकारों को 8000 तक के मनसब दिये जाने लगे।
जिसकी संख्या उत्तर मुगल काल में 50,000 तक पहुंच गयी। मनसबदारों का वेतन रुपयों के रूप में निश्चित किया जाता था किन्तु उसकी अदायगी ‘जागीर’ के रूप में की जाती थी।
#मुग़ल_सम्राज्य_का_पतन :
मुगल साम्राज्य के तेजी से पतन के लिए इतिहासकारों ने कई स्पष्टीकरण दिए हैं। सम्राटों ने साम्राज्य का अधिकार और नियंत्रण खो दिया, क्योंकि व्यापक रूप से बिखरे हुए शाही अधिकारियों ने केंद्रीय अधिकारियों में विश्वास खो दिया, और प्रभाव के स्थानीय लोगों के साथ अपने स्वयं के सौदे किए। उत्तराधिकारी कमजोर और अक्षम थे। एक अन्य कारण कई युद्धों है, जो त्वरित उत्तराधिकार में लड़े गए थे। इस कारण मराठा और अन्य क्षेत्रीय शक्तियाँ बढ़ने लगीं और मुगलों के लिए अपने साम्राज्य को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। मुगल साम्राज्य के पतन से कृषि उत्पादकता में गिरावट आई, जिससे खाद्य कीमतों में गिरावट आई।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#मगध_साम्राज्य
पुराणों के अनुसार छठी शताब्दी ईसा पूर्व में वृहद्रथ ने मगध साम्राज्य की स्थापना की। जिसकी राजधानी गिरिव्रज को बनाया और बार्हद्रथ वंश (वृहद्रथ वंश) की नींव रखी। कालांतर में वृहद्रथ को एक पुत्र हुआ जिसका नाम जरासंध रखा गया, जो एक प्रतापी राजा बना और जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। अथर्ववेद तथा ऋग्वेद में भी मगध का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार जरासंध की मृत्यु के पश्चात मगध पर शिशुनाग वंश का अधिपत्य हुआ।
परन्तु बौद्ध साहित्य के अनुसार शिशुनाग वंश का कोई अस्तित्व नहीं है और उसकी जगह हर्यक वंश की स्थापना हुई थी, क्यूंकि जब भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार हेतु मगध की यात्रा की थी तब वहां का राजा हर्यक वंश का बिम्बिसार था। आईए जानते हैं मगध पर शासन करने वाले प्रमुख वंशो के बारे में –
#हर्यक_वंश (545 ई. पू. से 412 ई. पू. तक) –
#बिंबसार_या_बिम्बिसार :
बिंबसार या बिम्बिसार ने हर्यक वंश की नींव रखी थी। बिंबसार हर्यक वंश का एक प्रतापी राजा था।बिंबिसार ने 52 साल तक 544 BC से 492 BC तक शासन किया |
वैवाहिक गठबंधन के माध्यम से इसने अपनी स्थिति और समृद्धि को मजबूत किया | इसका पहला विवाह कोशल देवी नामक महिला से कोशल परिवार में हुआ | बिंबिसार को दहेज में काशी प्रांत दिया गया |
बिंबिसार ने वैशाली के लिच्छवि परिवार की चेल्लाना नामक राजकुमारी से विवाह किया |अब इस वैवाहिक गठबंधन ने इसे उत्तरी सीमा में सुरक्षित कर दिया | बिंबिसार ने दुबारा एक और विवाह मध्य पंजाब के मद्रा के शाही परिवार की खेमा से किया |इसने अंग के ब्रहमदत्ता को पराजित कर उसके साम्राज्य पर कब्जा कर लिया | बिंबिसार के अवन्ती राज्य के साथ अच्छे तालुक थे |
#अजातशत्रु :
अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था जिसने बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात 491 ई० पू० मगध का सिंहासन संभाला। पुराणों के अनुसार ‘दर्शक’ अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना, परन्तु जैन और बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार ‘उदायिन’ को उत्तराधिकारी माना जाता है, जिसने ‘पाटलिपुत्र’ नगर की स्थापना की थी। अजातशत्रु को ‘कुणिक’ के नाम से भी जाना जाता है।
कई मत हैं कि अजातशत्रु जैन धर्म का अनुयायी था, परन्तु कुछ समय पश्चात बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। इसीलिए अजातशत्रु ने बुद्ध के निर्वाण (मृत्यु) के पश्चात उनके अवशेषों पर स्तूप का निर्माण किया, जिसे ‘राजगृह’ (वर्तमान में राजगीर, जिला-नालंदा, बिहार) में बनाया गया।
#उदयीन :
उदयीन, अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना | इसने पाटलीपुत्र की नींव राखी और राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र स्थानत्रित किया |
नागदशक हर्यंक राजवंश का अंतिम शासक था | इसे लोगों द्वारा शासन करने के लिए अयोग्य पाया गया और
उसे अपने मंत्री शिशुनाग के लिए राजगद्दी से हाथ पीछे खींचना पड़ा |
#शिशुनाग_वंश (412 ई. पू. से 344 ई. पू. तक) –
#शिशुनाग :
समय के साथ हर्यक वंश के राजाओं की शक्ति इतनी कमजोर हो चुकी थी कि शिशुनाग नामक राजा के सेवक ने सिहांसन पर कब्ज़ा कर लिया और मगध का सम्राट बना। तभी से शिशुनाग वंश का उदय हुआ। शिशुनाग ने भी गिरिव्रज को ही अपनी राजधानी बनाया था।
#कालाशोक :
शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात शिशुनाग के उत्तराधिकारी कालाशोक ने साम्राज्य संभाला। कालाशोक ने ‘पाटलिपुत्र’ को मगध की राजधानी बनाया। कालाशोक के कार्यकाल में ही बौद्ध धर्म की द्वितीय संगीति का आयोजन वैशाली में किया गया था।
#नन्दिवर्धन :
कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने शिशुनाग वंश के पतन तक मगध पर शासन किया, जिनमें से नन्दिवर्धन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था।
#नन्द_वंश (344 ई. पू. से 322 ई. पू. तक) –
#महापद्मनंद (उग्रसेन) :
महापद्म नंद ने शिशुनाग वंश का तख्तापलट कर मगध पर अधिकार किया और नंदवंश की नींव रखी। पाली ग्रंथों के अनुसार महापद्म को उग्रसेन के नाम से जाना गया है। विशाल सेना होने के कारण महापद्म को उग्रसेन कहा गया। जैन ग्रंथों के अनुसार महापद्म को वेश्या का पुत्र माना गया है, कई मतों के अनुसार माना जाता है कि महापद्म निम्न कुल का था।.
यही कारण है कि महापद्म को प्राचीन भारत का पहला शूद्र सम्राट भी माना जाता है।.
#नंदराज (धननंद या घनानंद) :
नन्दवंश का अंतिम उत्तराधिकारी नंदराज था, जिसे बौद्ध ग्रंथों में धननन्द (घनानंद) के नाम से जाना जाता है। 322-321 ई० पू० में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य के साथ मिलकर धननंद की हत्या कर मगध का तख्तापलट किया और मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
#निष्कर्ष
घनानंद का तख़्ता पलट चन्द्र गुप्त मौर्य द्वारा 322 BC में किया गया जिसने मगध के नए शासन की स्थापना की जिसे मौर्य राजवंश के नाम से जाना गया |
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#लोदी_वंश
सैयद वंश का अंत कर बहलोल लोदी ने 1451 ई. में लोदी वंश की दिल्ली सल्तनत में स्थापना की थी। यह वंश 1526 ई. तक सत्ता में रहा और सफलतापूर्वक शासन किया। यह राजवंश दिल्ली सल्तनत का अंतिम सत्तारूढ़ परिवार था, जो अफगान मूल से था।
#लोदी_वंश_के_शासक :-
▪️बहलोल लोदी (1451 – 1489 ई.)
▪️सिकंदर लोदी (1489 – 1517 ई.)
▪️इब्राहिम लोदी (1517 – 1526 ई.)
#बहलोल_लोदी (1451 – 1489 ई.)
बहलोल लोदी ने 1451 ई. में लोदी राजवंश की स्थापना की और 1489 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। सैयद वंश के अंतिम शासक आलम शाह ने बहलोल लोदी के पक्ष में दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर स्वेच्छा से त्याग दिया था। बहलोल लोदी अफगान मूल का था। वह एक पश्तून परिवार में पैदा हुआ था। बहलोल लोदी, सय्यद वंश के मुहम्मद शाह के शासनकाल के दौरान, सरहिंद का राज्यपाल था, जो वर्तमान पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित है। बहलोल लोदी ने दिल्ली सल्तनत में बैठने के बाद “बहलोल शाह्गाजी” की उपाधि ली। उसने सरहिन्द के एक हिंदू सुनार की बेटी से शादी की।
🔹मृत्यु
▪️बहलोल लोदी की 1489 ई. में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, उसका पुत्र सिकन्दर लोदी दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठा।
#सिकंदर_लोदी (1489 – 1517 ई.)
1489 ई. में बहलोल लोदी के मृत्यु के बाद सिकंदर लोदी दिल्ली सल्तनत का उत्तराधिकारी हो गए और लोदी राजवंश के दूसरे शासक बना। उसके बचपन का नाम निजाम खान था, लेकिन सत्ता सम्भालने के बाद उसने अपना नाम “सुल्तान सिकन्दर शाह” रख दिया जो बाद में सिकन्दर लोदी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने 1489 ई. से 1517 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। सिकंदर लोदी, बहलोल लोदी का दूसरा पुत्र था और बारबक शाह, बहलोल लोदी का सबसे बड़ा पुत्र था, जो जौनपुर का वायसराय था।
🔹सिकंदर लोदी के प्रमुख कार्य
▪️उसने बंगाल, बिहार, चंदैरी, अवध व बुदेलखंड के राजाओ पर नियंत्रण करके दिल्ली सल्तनत को दोबारा स्थापित करने का प्रयास किया।
▪️भूमि मापन के लिए प्रमाणिक पैमाना गजे सिकन्दरी का प्रचलन किया।
▪️उसने 1503 ई. मे आगरा शहर बसाया और 1506 ई. मे अपनी राजधानी दिल्ली से आगरा ले आया।
▪️उसने नगरकोट के ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्ति को तोडकर उसके टुकडो को कसाइयो को माँस तोलने के लिए दे दिया था और हिंदूओ पर जज़िया लगाया।
▪️मुसलमानों के ताजीया निकालने एवं मुसलमान स्त्रियों के पीरो एवं संतो के मजार पर जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
▪️उसने ग्वालियर के किले पर पांच बार आक्रमण किया लेकिन राजा मानसिंह ने हर बार उसे हरा दिया।
🔹मृत्यु
▪️सिकंदर लोदो की मृत्यु 1517 ई. में गले के बीमारी की वजह से हुई उसके बाद उसका बेटा इब्राहिम लोदी राजा बना।
#इब्राहिम_लोदी (1517 – 1526 ई.)
इब्राहिम लोदी, सिकंदर लोदी का सबसे छोटा बेटा था। सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद इब्राहिम लोदी 1517 ई. में राजगद्दी पर बैठा और 1526 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। वह लोदी राजवंश के अंतिम राजा और दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था।
🔹शासन काल में कार्य
▪️वह एक साहसी राजा था उसके शासनकाल में बहुत से विद्रोह हुए।
▪️जौनपुर और अवध मे विद्रोह का नेतृत्व दरिया खान ने किया ।
▪️दौलत खान ने पंजाब में विद्रोह किया।
▪️खतौली की लड़ाई 1518 ई. में राणा सांगा के हाथों पराजित होना पड़ा।
▪️उसके ज़मींदार व चाचा आलम खान काबुल भाग गया और बाबर को भारत पर हमला करने का न्यौता दिया।
▪️पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ और इसमें लोदी की हार हुई।
🔹मृत्यु
▪️बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में 21 अप्रैल 1526 को पराजित कर इसे मार डाला और आगरा तथा दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया।
1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर ने मुगल वंश की नींव रखी जिसने लगभग 500 साल तक भारत पर राज किया। इस तरह दिल्ली सल्तनत का अंत हुआ ।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#प्लासी_का_युद्ध
प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नवाब सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। किंतु इस युद्ध को कम्पनी की जीत नही मान सकते कयोंकि युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। नवाब की तो पूरी सेना ने युद्ध मे भाग भी नही लिया था युद्ध के फ़ौरन बाद मीर जाफ़र के पुत्र मीरन ने नवाब की हत्या कर दी थी। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है। आईए जानते हैं विस्तार से-
#शौकतगंज_नवाब_बनना_चाहता_था-
गद्दी पर बैठते ही सिराजुद्दौला को शौकतगंज के संघर्ष का सामना करना पड़ा क्योंकि शौकतगंज नवाब बनना चाहता था। इसमें छसीटी बेगम तथा उसके दिवान राजवल्लाव और मुगल सम्राट का समर्थन उसे प्राप्त था इस लिए सिराजुद्दौला ने सबसे पहले उस आन्तरिक संघर्ष को सुलझाने का प्रयास किया। क्योंकि इसी के चलते बंगाल की राजनीति में अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था नवाब ने शौकतगंज की हत्या कर दी। और इसके पश्चात उसने अंग्रेजों से मुकाबला करने का निश्चय किया।
#अंग्रेज_द्वारा_नवाब_के_विरुद्ध_षडयंत्र-
प्रारंभ से ही अंग्रेजों की आखें बंगाल पर लगी हुई थी। क्योंकि बंगाल एक उपजाऊ और धनी प्रांत था। अगर बंगाल पर कम्पनी का अधिकार हो जाता तो उसे अधिक से अधिक धन कमाने की आशा थी। इतना ही नहीं वे हिन्दु व्यापारियों को अपनी ओर मिलाकर उन्हें नवाब के विरुद्ध भड़काना शुरु किया नवाब इसे पसन्द नहीं करता था।
#व्यापारिक_सुविधाओं_का_उपयोग-
मुगल सम्राट के द्वारा अंग्रेजों को निशुल्क सामुद्रिक व्यापार करने की छूट मिलि थी लेकिन अंग्रेजों ने इसका दुरुपयोग करना शुरु किया। वे अपना व्यक्तिगत व्यापार भी नि:शुल्क करने लगे और देशी व्यापारियों को बिना चुंगी दिए व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। इससे नवाब को आर्थीक क्षति पहुँचती थी। नवाब इन्हें पसन्द नहीं करता था जब, उन्होने व्यापारिक सुविधाओं के दुरुपयोग को बन्द करने का निश्चय किया तो अंग्रेज संघर्ष पर उतर आए।
#अंग्रेजों_द्वारा_किले_बन्दी-
इस समय यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ने की आशंका थी। जिसमें इंगलैण्ड और फ्रांस एक दूसरे के विरुद्ध लड़ने वाले थे अत: दूसरे देश में भी जो अंग्रेज और फ्रांसीसी थे। उन्हे युद्ध की आशंका थी। इसलिए अपनी- 2 स्थिति को मजबूत करने के लिए उन्होनें किलेबन्दी करना शुरु किया। नवाब इसे बर्दास्त नहीं कर सकता था।
#अंग्रेज_द्वारा_सिराजुद्दौला_को_नवाब_की_मान्यता
#नहीं_देना-
बंगाल की प्राचीन परम्परा के अनुसार अगर कोई नया नवाब गद्दी पर बैठता था तो उस दिन दरवार लगती थी। और उसके अधीन निवास करने वाले राजाओं, अमीरों या विदेशी जातियों के प्रतिनिधियों को दरबार में उपस्थित हो कर उपहार भेट करना पड़ता था। कि वे नये नवाब को स्वीकार करते हैं। परन्तु सिराजुद्दौला के राज्यभिषेक के अवसर पर अंग्रेजों का कोई प्रतिनिधि दरबार में हाजिर नहीं हुआ। क्योंकि वे सिराजुद्दौला को नवाब नहीं मानते थे इसके चलते भी दोनों के बीच संघर्ष की संम्भावना बढ़ती गई।
#नवाब_बदलने_की_कोशिश-
अंग्रेज सिराजुद्दौला को हटा कर किसी ऐसे व्यक्ति को नवाब बनाना चाहते थे जो उसके इशारे पर चलने के लिए तैयार हो इसके लिए अंग्रेजों ने प्रयास करना शुरु किया। ऐसी परिस्थिति में संघर्ष टाला नहीं जा सकता था।
#कलकत्ता_पर_आक्रमण-
जब नवाब ने किले बंदी करने को रोकने का आदेश जारी किया तो अंग्रेजों ने उसपर कोई ध्यान नहीं दिया वो किले का निर्माण करते रहे। इसपर नवाब क्रोधित हो उठा और 4 जुन 1756 को कासिमबाजार की कोठी पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेज सैनिक इस आक्रमण से घबड़ा गए और अंग्रेजों की पराजय हुई और कासिम बाजार पर नवाब का अधिकार हो गया। इसके बाद नवाब ने शिघ्र ही कलकत्ता के फोर्ट विलिय पर आक्रमण किया यहाँ अंग्रेज सैनिक भी नवाब के समक्ष टीक नहीं पाया और इसपर भी नवाब का अधिकार हो गया। इस युद्ध में काफी अंग्रेज सैनिक गिरफ्तार किये गये।
#काली_कोठरी_की_दुर्घटना-
उपर्युक्त लड़ाई में नवाब ने 146 अंग्रेज सैनिकों को कैद कर लिया तो उसे एक छोटी सी अंधेरी कोठरी में बन्द कर दिया इसकी लम्बाई 18 फिट और चौड़ाई 14- 10 फिट थी। यह अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया था और इसमें भारतीय अपराधियों को बन्द किया जाता था। चुँकि गर्मी का दिन था और युद्ध के परिम थे 123 सैनिकों की मृत्यु दम घुटने के कारण हो गई और 23 सैनिक बचे जिसमें हाँवेल एक अंग्रेज सैनिक भी था। उसी के इस घटना की जानकारी मद्रास के अंग्रेजों को दी। इसी दुर्घटना को काली कोठरी की दुर्घटना के नाम से जाना जाता है। इसके चलते अंग्रेजों का क्रोध भड़क उठा और वे नवाब से युद्ध की तैयारी करने लगे।
#अंग्रेजों_द्वारा_कलकत्ता_पर_पुन_अधिकार-
अपनी पराजय का बदला लेने के लिए अंग्रेज ने शीघ्र ही कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। इस समय नवाब ने मानिकचन्द को कलकत्ता का राजा नियुक्त किया था। लेकिन वह अंग्रेजों का मित्र और शुभचिन्तक था। फलत: अंग्रेजों की विजय हुई कलकत्ता नवाब के चंगुल से मुक्त हो गया। 9 फरवरी 1757 को दोनों के बीच अली नगर की संधि हुई और अंग्रेजों को फिर से सभी तरह के व्यवहारिक अधिकार उपलब्ध हो गया।
#फ्रांसीसीयों_पर_अंग्रेजों_का_आक्रमण-
अंग्रेजों ने फ्रांसीसीयों की वस्ती चन्द नगर पर आक्रमण कर दिया। और उसे अपने अधिन कर लिया। फ्रांसिसी नवाब के मित्र थे इसलिए नवाब इस घटना से काफी क्षुब्ध थे।
#मीरजाफर_के_साथ_गुप्त_संधि –
इसी समय अंग्रेजों ने नवाब को पदच्युत करने के लिए एक षडयंत्र रचा। इसमें नवाब के भी कई लोग शामिल थे। जैसे- रायदुर्लभ प्रधान सेनापति मीरजाफर और धनी व्यापाकिर जगत सेवक आदि। अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने का प्रलोभन दिया और इसके साथ गुप्त संधि की इस संधि के पश्चात नवाब पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होने अली नगर की संधि का उलंघन किया है और उसी का बहाना बनाकर अंग्रेज ने नवाब पर 22 जुन 1757 को आक्रमण कर दिया। प्लासी युद्ध के मैदान में घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ मीरजाफर तो पहले ही अंग्रेजों से संधि कर चुका था फलत: नवाब की जबरदस्त पराजय हुई। अंग्रेजों की विजय हुई। नवाब की हत्या कर दी गई और मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया।
#प्लासी_युद्ध_के_परिणाम-
प्लासी युद्ध के द्वारा बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। अंग्रेजों को नवाब बनाया गया। प्लासी का युद्ध वास्तव में कोई युद्ध नहीं था यह एक षडयंत्र और विश्वासघाति का प्रदर्शन था प्रसिद्ध इतिहासकार ‘पानीवकर’ के अनुसार प्लासी का युद्ध नहीं, परन्तु इसका परिणाम काफी महत्वपूर्ण निकला। इसलिए इसे विश्व के निर्णायक युद्धों में स्थान उपलब्ध है। क्योंकि इसी के द्वारा बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। क्लाइव ने इस युद्ध को क्रांति की संज्ञा दी है। वास्तव में यह एक क्रांति थी क्योंकि इसके द्वारा भारतीय इतिहास की धारा में महान परिवर्तन आ गया और एक व्यापारिक संस्था ने बंगाल की राजनितिक बागडोर अपने हाथों में ले ली। इसके विभिन्न तरह के परिणाम दृष्टिगोचर होते हैं।
#आर्थिक_परिणाम-
इस युद्ध के द्वारा अंग्रेजों को काफी आर्थिक लाभ पहुँचा मीरजाफर ने कम्पनी को 1 करोड़ 17 लाख रुपये दिये जिससे कम्पनी की आर्थीक स्थिति काफी मजबूत हो गई बंगाल की लुट से बी उसे काफी धन हाथ लगा। कम्पनी के मठ कर्मचारीयों को साढ़े 12 लाख रुपए मिले। क्लाइव को दो लाख 24 हजार रुपए मिले। इस युद्ध के पश्चात कम्पनी धीरे- 2 जागीदार बाद में बंगाल की दीवान बन गई। इस प्रकार इसके द्वारा भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली गई। अंग्रेजों को पुन: व्यापार करने का अधिकार मिला मीरजाफर ने कम्पनी को घूस के रूप में 3 करोड़ रुपए प्रदान किए तथा व्यापार से भी अंग्रेजों ने 15 करोड़ का मुनाफा कमाया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#महाजनपद
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कुछ साम्राज्यों के विकास में वृद्धि हुयी थी जो बाद में प्रमुख साम्राज्य बन गये और इन्हें महाजनपद या महान देश के नाम से जाना जाने लगा था। इन्होंने उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी बिहार तक तथा हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों से दक्षिण में गोदावरी नदी तक अपना विस्तार किया। आर्य यहां की सबसे प्रभावशाली जनजाति थी जिन्हें 'जनस' कहा जाता था। इससे जनपद शब्द की उतपत्ति हुयी थी जहां जन का अर्थ "लोग" और पद का अर्थ "पैर" होता था। जनपद वैदिक भारत के प्रमुख साम्राज्य थे। महाजनपदों में एक नये प्रकार का सामाजिक-राजनीतिक विकास हुआ था। महाजनपद विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित थे। 600 ईसा पूर्व से 300 ईसा पूर्व के दौरान भारतीय उप-महाद्वीपों में सोलह महाजनपद थे।
#उनके_नाम_थे:-
1. अंग
2. अश्मक
3. अवंती
4. छेदी
5. गांधार
6. कम्बोज
7. काशी
8. कौशल
9. कुरु
10. मगध
11. मल्ल
12. मत्स्य
13. पंचाल
14. सुरसेन
15. वज्जि
16. वत्स
#मगध_साम्राज्य:
▪️मगध साम्राज्य ने 684 ईसा पूर्व से 320 ईसा पूर्व तक भारत में शासन किया।
▪️इसका उल्लेख महाभारत और रामायण में भी किया गया है।
▪️यह सोलह महाजनपदों में सबसे अधिक शक्तिशाली था।
▪️साम्राज्य की स्थापना राजा बृहदरथ द्वारा की गयी थी।
▪️राजगढ (राजगिर) मगध की राजधानी थी, लेकिन बाद में चौथी सदी ईसा पूर्व इसे पाटलिपुत्र में स्थानांतरित कर दिया गया था।
▪️यहां लोहे का इस्तेमाल उपकरणों और हथियारों का निर्माण करने के लिए किया जाता था।
▪️हाथी जंगल में पाये जाते थे जिनका इस्तेमाल सेना में किया जाता था।
▪️गंगा और उसकी सहायक नदियों के तटीय मार्गों ने संचार को सस्ता और सुविधाजनक बना दिया था।
▪️बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापदम नंद जैसे क्रूर और महत्वाकांक्षी राजाओं की कुशल नौकरशाही द्वारा नीतियों के कार्यान्वयन से मगध समृद्ध बन गया था।
▪️मगध का पहला राजा बिम्बिसार था जो हर्यंक वंश का था।
▪️अवंती मगध का मुख्य प्रतिद्वंदी था, लेकिन बाद में एक गठबंधन में शामिल हो गया था।
▪️शादियों ने राजनीतिक गठबंधनों के निर्माण में मदद की थी और राजा बिम्बिसार ने पड़ोसी राज्यों की कई राजकुमारियों से शादी की थी।
#हर्यंक_राजवंश:
▪️यह बृहदरथ राजवंश के बाद मगध पर शासन करने वाला यह दूसरा राजवंश था।
▪️शिशुनाग इसका उत्तराधिकारी था।
▪️राजवंश की स्थापना बिम्बिसार के पिता राजा भाट्य द्वारा की गयी थी।
▪️राजवंश ने 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 413 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया था।
▪️हर्यंक राजवंश के राजा इस प्रकार थे:
1. भाट्य
2. बिम्बिसार
3. अजातशत्रु
4. उदयभद्र
5. अनुरूद्ध
6. मुंडा
7. नागदशक
#बिम्बिसार:
▪️बिम्बिसार ने मगध पर 544 ईसा पूर्व से 492 ईसा पूर्व तक, 52 वर्ष शासन किया था।
▪️उसने विस्तार की आक्रामक नीति का पालन किया और काशी, कौशल और अंग के पड़ोसी राज्यों के साथ कई युद्ध लड़े।
▪️बिम्बिसार गौतम बुद्ध और वर्द्धमान महावीर का समकालीन था।
▪️उसका धर्म बहुत स्पष्ट नहीं है। बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख के अनुसार वह बुद्ध का एक शिष्य था, जबकि जैन शास्त्रों में उसका वर्णन महावीर के अनुयायी के रूप तथा राजगीर के राजा श्रेनीका के रूप में मिलता है।
▪️बाद में बिम्बिसार को उसके पुत्र अ़जातशत्रु द्वारा कैद कर लिया गया जिसने मगध के सिंहासन पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था। बाद में कारावास के दौरान बिम्बिसार की मृत्यु हो गई।
#अजातशत्रु
▪️अजातशत्रु ने 492- 460 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया था।
▪️उसने वैशाली के साथ 16 वर्षों तक युद्ध किया था और अंत में कैटापोल्ट्स की मदद से साम्राज्य को शिकस्त दी।
▪️उसने काशी और वैशाली पर आधिपत्य स्थापित करने के बाद मगध साम्राज्य का विस्तार किया था।
▪️उसने राजधानी राजगीर को मजबूत बनाया जो पाँच पहाड़ियों से घिरी हुई थी जिससे यह लगभग अभेद्य बन गयी थी।
#उदयन:
▪️उदयन या उदयभद्र अजातशत्रु का उत्तराधिकारी था।
उसका शासनकाल 460 ईसा पूर्व से 444 ईसा पूर्व तक चला था।
▪️उसने पटना (पाटलिपुत्र) के किले का निर्माण कराया था जो मगध साम्राज्य का केंद्र था
▪️उदयन का उत्तराधिकारी शिशुनाग था।
▪️शिशुनाग ने अवंती साम्राज्य का विलय मगध में कर दिया था।
▪️बाद में उसका उत्तराधिकारी नंद राजवंश बना।
#नंद_राजवंश:
▪️राजवंश का शासनकाल 345 ईसा पूर्व से 321 ईसा पूर्व तक चला था।
▪️महापदम नंद, नंद राजवंश का पहला राजा था जिसने कलिंग का विलय मगध साम्राज्य में कर दिया था।
▪️उसे सबसे शक्तिशाली और क्रूर माना जाता था यहां तक कि सिकंदर भी उसके खिलाफ युद्ध लड़ना नहीं चाहता था।
▪️नंद वंश बेहद अमीर बन गया था। उन्होंने अपने पूरे साम्राज्य में सिंचाई परियोजनाओं और मानकीकृत व्यापारिक उपायों की शुरूआत की थी।
▪️हर्ष और कठोर कराधान प्रणाली ने नंदों को अलोकप्रिय बना दिया था।
▪️अंतिम नंद राजा, घानानंद को चंद्रगुप्त मौर्य ने पराजित कर दिया था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#कर्नाटक_का_युद्ध
कर्नाटक का युद्ध – कर्नाटक का युद्ध अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य व्यापार को लेकर हुए संघर्ष थे। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच तीन कर्नाटक युद्ध हुए। 17वीं तथा 18वीं शताब्दियों में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य व्यापार को लेकर संघर्ष जारी था। ये दोनों ही व्यापार को बढ़ाने और अधिकाधिक लाभ उठाने हेतु अग्रसर थे।
इसी कारण अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों ने भारतीय राजनीति में भी दखल देना प्रारम्भ कर दिया। जिससे दोनों कम्पनियों के मध्य और कटुता आ गई। अब इनका मुख्य उद्देश्य व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर दूसरी कम्पनी को पूर्णतः मार्ग से हटाना हो गया था।
ये दोनों ही कम्पनियाँ यूरोपीय थीं और वहां भी इनके मध्य संघर्ष चलाता ही रहता था। जैसे ही यूरोप में संघर्ष शुरू होता, वैसे ही विश्व के अलग-अलग भाग में दोनों कम्पनियों के मध्य भी संघर्ष शुरू हो जाता था। भारत में आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष को कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है, ये युद्ध उस समय प्रारम्भ हुआ जब यूरोप में दोनों देशों के मध्य ऑस्ट्रिया पर अधिकार को लेकर संघर्ष शुरू हुआ। भारत में कुल 3 युद्ध लड़े गये जोकि वर्ष 1746-1763 के मध्य हुए। इसके परिणाम स्वरूप फ्रांसीसियों का भारत से पूर्णतः सफाया हो गया। महत्वपूर्ण युद्धों का वर्णन निम्नलिखित है.
#प्रथम_कर्नाटक_युद्ध (1746-1748)
▪️इस युद्ध के प्रारम्भ होने के समय फ्रांसीसियों का मुख्यालय पांडिचेरी में था तथा उनके अन्य कार्यालय जिंजी, मसूलीपट्टनम, करिकल, माही, सूरत और चन्द्रनगर में थे।
▪️अंग्रेजों के मुख्य कार्यालय मद्रास, बम्बई और कलकत्ता में थे।
▪️1740 में आस्ट्रिया पर उत्तराधिकार को लेकर यूरोप में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य संघर्ष शुरू हो गया।
▪️1746 में भारत में दोनों कम्पनियों में युद्ध शुरू हो गया।
▪️इस समय डूप्ले पांडिचेरी का फ्रैंच गवर्नर था और उसके नेतृत्व में फ्रेंच सेना ने अंग्रेजों को परास्त कर मद्रास को जीत लिया।
▪️प्रथम कर्नाटक युद्ध के दौरान लड़ा गया “सेंट टोमे का युद्ध” स्मरणीय है।
▪️सेंट टोमे का युद्ध- यह युद्ध फ्रांसीसी सेना तथा कर्नाटक के नवाब अनवरूद्दीन(1744-1749) के मध्य लड़ा गया। असल में जिस समय दोनों यूरोपीय कम्पनियाँ भारत में युद्ध कर रही थी, उस समय कर्नाटक के नवाब ने दोनों को ही युद्ध बन्द करने तथा देश की शांति व्यवस्था को भंग न करने के लिए आदेशित किया। डूप्ले ने अपनी कूटनीति से नवाब को मद्रास जीत कर देने का आश्वासन दिया। परन्तु बाद में वह अपनी इस शर्त से मुकर गया। ▪️जिस कारण नवाब ने अपनी सेना को फ्रांसीसियों से युद्ध हेतु भेजा। डूप्ले की महज 230 फ्रांसीसी और 700 भारतीयों की सेना ने नवाब की 10000 की सेना को परास्त कर अनुशासित यूरोपीय सेना की ढीली और असंगठित भारतीय सेना पर श्रेष्ठता को सिद्ध कर दिया।
▪️प्रथम कर्नाटक युद्ध यूरोप में 1748 में हुयी “एक्स-ला शापैल” की संधि से समाप्त हुआ। इस संधि से आस्ट्रिया का उत्तराधिकार का विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिया गया। इस संधि के अनुसार मद्रास अंग्रेजों को पुनः प्राप्त हुआ।
▪️इस युद्ध के दौरान दोनों ही दल बराबरी पर रहे परन्तु युद्धों में फ्रांसीसी श्रेष्ठता साफ थी।
#द्वितीय_कर्नाटक_युद्ध (1749-1754)
▪️कर्नाटक के प्रथम युद्ध में अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध कर चुके डूप्ले की राजनीतिक पिपासा जाग चुकी थी।
डूप्ले अब भारतीय राजनीति में भाग लेकर, अंग्रेजी कम्पनी को पूर्णतः भारत से विस्थापित करने की रणनीति बनाने लगा।
▪️उसे भारतीय राजनीति में दखल देने का अवसर हैदराबाद तथा कर्नाटक के उत्तराधिकार विवाद से मिला।
हैदराबाद- आसफजाह की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकार को लेकर नासिर जंग(पुत्र) और उसके भतीजे मुजफ्फरजंग (आसफजाह का पौत्र) के मध्य विवाद खड़ा हो गया था।
▪️कर्नाटक- कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा उसके बहनोई चन्दा साहिब के मध्य विवाद शुरू हुआ।
हैदराबाद और कर्नाटक में चल रहे इन विवादों से राजनीतिक बढ़त बनाने हेतु डूप्ले ने हैदराबाद में मुजफ्फरजंग और कर्नाटक में चंदा साहिब का सहयोग किया। अपरिहार्य रूप से अंग्रेजों को नासिर जंग और अनवरूद्दीन का सहयोग करना पड़ा।
▪️1749 में फ्रेंच सेना की सहायता से एक युद्ध में अनवरूद्दीन मारा गया तथा चंदा साहिब कर्नाटक का अगला नवाब बना।
▪️1750 में नासिर जंग भी फ्रेंच सेना से संघर्ष करता मारा गया और मुजफ्फरजंग हैदराबाद का नवाब बना दिया गया।
▪️डूप्ले इस समय तक अपनी शक्ति के चरम पर था। पर स्थिति परिवर्तित होने में देर नहीं लगी।
▪️अनवरूद्दीन का पुत्र मुहम्मद अली युद्ध में बचकर भाग गया था और उसने त्रिचनापल्ली में शरण ली। ▪️फ्रांसीसियों ने चन्दा साहिब की सेना के साथ मिलकर दुर्ग को घेर लिया। अंग्रेजों की तरफ से क्लाइव इस घेरे को तोड़ने में असफल रहा तो क्लाइव ने दबाव कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्कटा पर अधिकर कर लिया।
▪️1752 में स्ट्रिगर लारेन्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने त्रिचनापल्ली को बचा लिया और फ्रांसीसी सेना ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
▪️फ्रांसीसी अधिकारियों ने त्रिचनापल्ली में हुई हानि के लिए डूप्ले को जिम्मेदार ठहराया और उसे वापस फ्रांस बुला लिया गया।
▪️1754 में गोडाहू अगला फ्रांसीसी गवर्नर जनरल बनकर भारत आया।
▪️1755 में दोनों कम्पनियों के मध्य संधि हो गई।
#तृतीय_कर्नाटक_युद्ध (1756-1763)
▪️पूर्व की तरह ही यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही भाग था।
▪️इस युद्ध को सप्त वर्षीय युद्ध भी कहा जाता है।
▪️1756 में फ्रांसीसी सरकार ने काउन्ट डि लाली को अगला गवर्नर जनरल बना कर भारत भेजा।
▪️उसने भारत आते ही फोर्ड डेविड को जीत लिया और तंजौर पर 56 लाख रूपये बकाया के विवाद को लेकर युद्ध शुरू कर दिया, परन्तु वो इसमें असफल रहा जिससे फ्रांसीसी ख्याति को हानि पहुँची।
▪️उधर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को पराजित कर बंगाल पर अधिकार कर लिया था। इससे अंग्रेजों की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गयी थी।
▪️1760 में सर आयर कूट के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने फ्रांसीसियों को वांडिवाश के युद्ध में बुरी तरह पराजित किया।
▪️1761 में फ्रांसीसी पराजित होने के पश्चात पांडिचेरी लौट गए। मात्र 8 माह बाद ही अंग्रेजों ने इसे भी जीत लिया और शीघ्र ही माही तथा जिंजी भी अपने अधिकार में कर लिए।
▪️1763 में इस युद्ध के अंत में पांडिचेरी एवं कुछ अन्य प्रदेश किला बन्दी न करने की शर्त पर फ्रांसीसियों को लौटा दिए गए।
▪️इस तरह तृतीय कर्नाटक युद्ध एक निर्णायक युद्ध साबित हुआ और आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष का समापन हो गया, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुयी।
▪️अब अंग्रेजों को भारत पर पूरी तरह आधिपत्य स्थापित करने के लिए केवल भारतीय शासकों का ही सामना करना शेष था।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#सैयद_वंश
दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला चौथा वंश था। इस वंश ने दिल्ली सल्तनत में 1414 से 1451 ई. तक शासन किया। उन्होंने तुग़लक़ वंश के बाद राज्य की स्थापना की। यह वंश मुस्लिमों की तुर्क जाति का यह आख़री राजवंश था।
#सैयद_वंश_के_शासक :-
▪️सैयद ख़िज़्र खाँ (1414 – 1421 ई.)
▪️मुबारक़ शाह (1421 – 1434 ई.)
▪️मुहम्मद शाह (1434 – 1445 ई.)
▪️आलमशाह शाह (1445 – 1476 ई.)
#सैयद_ख़िज़्र_खाँ (1414 – 1421 ई.)
ख़िज़्र ख़ाँ ने य्यद वंश की स्थापना की । ख़िज़्र ख़ाँ ने 1414 ई. में दिल्ली की राजगद्दी पर अधिकार कर लिया। ख़िज़्र ख़ाँ ने सुल्तान की उपाधि न धारण कर अपने को ‘रैयत-ए-आला’ की उपाधि से ही खुश रखा। जब भारत को लूटकर तैमूर लंग वापस जा रहा था, उसने ख़िज़्र ख़ाँ को मुल्तान, लाहौर एवं दीपालपुर का शासक नियुक्त कर दिया था। ख़िज़्र ख़ाँ के शासन काल में पंजाब, मुल्तान एवं सिंध पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गये।
सुल्तान को राजस्व वसूलने के लिए भी प्रतिवर्ष सैनिक अभियान का सहारा लेना पड़ता था। उसने अपने सिक्कों पर तुग़लक़ सुल्तानों का नाम खुदवाया। फ़रिश्ता ने ख़िज़्र ख़ाँ को एक न्यायप्रिय एवं उदार शासक बताया है।
🔹मृत्यु
▪️20 मई, 1421 को ख़िज़्र ख़ाँ की मृत्यु हो गई।
▪️फ़रिश्ता के अनुसार ख़िज़्र ख़ाँ की मृत्यु पर युवा, वृद्ध दास और स्वतंत्र सभी ने काले वस्त्र पहनकर दुःख प्रकट किया।
#मुबारक़_शाह (1421 – 1434 ई.)
ख़िज़्र ख़ाँ की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनका पुत्र मुबारक शाह ने दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ली। अपने पिता के विपरीत उन्होंने अपने आप को सुल्तान के रूप में घोषित किया।
🔹मुबारक शाह के कार्य
▪️इसने यमुना नदी के किनारे 1434 ई0 में मुबारकबाद नामक नगर की स्थापना की।
▪️मुबारक शाह ने ‘शाह’ की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम के सिक्के जारी किये।
▪️उसने अपने नाम से ‘ख़ुतबा (प्रशंसात्मक रचना)’ पढ़वाया और इस प्रकार विदेशी स्वामित्व का अन्त किया।
▪️मुबारक शाह के समय में पहली बार दिल्ली सल्तनत में दो महत्त्वपूर्ण हिन्दू अमीरों का उल्लेख मिलता है।
▪️उसने विद्धान ‘याहिया बिन अहमद सरहिन्दी’ को अपना राज्याश्रय प्रदान किया था। उसके ग्रंथ ‘तारीख़-ए-मुबारकशाही’ से मुबारक शाह के शासन काल के विषय में जानकारी मिलती है।
🔹मृत्यु
▪️मुबारक शाह के वज़ीर सरवर-उल-मुल्क ने षड़यन्त्र द्वारा 19 फ़रवरी, 1434 ई. को मुबारक शाह की हत्या कर दी।
#मुहम्मद_शाह (1434 – 1445 ई.)
मुबारक शाह ले दत्तक पुत्र मुहम्मद शाह (मुहम्मद बिन खरीद खाँ) को वज़ीर सरवर-उल-मुल्क एवं अन्य अमीरों में मिलकर 19 फ़रवरी 1434 को दिल्ली का सुल्तान बना दिया। इसने मुल्तान के सुबेदार वहलोल को ‘खान-ए-खाना’ की उपाधि दी। मुहम्मद शाह नाममात्र का शासक था। शासन पर पूर्ण नियंत्रण वज़ीर सरवर-उल-मुल्क का था। मुहम्मद शाह के शासक बनते ही वजीर ने शस्त्रागार, राजकोष एवं हाथियों पर आधिपत्य कर लिया। मुहम्मद शाह को मरने के लिए वज़ीर सरवर-उल-मुल्क षडयंत्र कर रहा था। इससें पहले ही मुहम्मद शाह ने वजीर व उसके समर्थकों को मार दिया। मुहम्मद शाह ने कमाललमुल्क को नया वजीर बनाया।
1440 ई. में महमूद खिलजी ने मुहम्मद शाह पर आक्रमण किया, लेकिन युद्ध के बाद दोनों में संधि हो गई। बहलोल लोदी को मुहम्मद शाह ने अपने पुत्र की संज्ञा दी।
🔹मृत्यु
▪️बहलोल लोदी ने 1443 ई. में दिल्ली पर आक्रमण कर लिया। उसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई। लेकिन कुछ विद्वान् उसकी मृत्यु 1445 ई. में मानते है।
#आलमशाह_शाह (1445 – 1476 ई.)
आलमशाह शाह (अलाउद्दीन शाह), मुहम्मद शाह का पुत्र था। 1445 ई. में मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद सरदारों ने उसके पुत्र को अलाउद्दीन आलमशाह की उपाधि से इस विनिष्ट राज्य का शासक घोषित किया, जिसमें अब केवल दिल्ली शहर और अगल-बगल के गाँव बच गये थे। आलमशाह शाह बहुत कमजोर और अयोग्य था। उसने 1451 ई. में दिल्ली का राजसिंहासन बहलोल लोदी को दे दिया तथा निन्दनीय ढंग से 1447 ई. में दिल्ली छोड़कर अपने प्रिय स्थान बदायूँ चला गया।
🔹मृत्यु
▪️1476 ई. में अलाउद्दीन शाह (आलमशाह शाह) की मृत्यु हो गई।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#प्राचीन_धार्मिक_आन्दोलन
छठी सदी ई.पू. के उत्तरार्द्ध में मध्य गंगा के मैदानों में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ जिनमें जैन और बौद्ध सर्वाधिक महत्वपूर्ण सम्प्रदाय थे।
इस दौर में नए धर्मो के उदय के पीछे कई कारण विद्यमान थे किंतु ‘पूर्वोत्तर भारत में नई कृषिमूलक अर्थव्यवस्था का विस्तार’ सबसे प्रमुख कारण था। आईए जानते हैं इन महत्वपूर्ण धर्मो के बारे में-
#जैन_धर्म :
▪️जैन परम्परा के अनुसार उनके धर्म में 24 तीर्थकर हुए है जिनमें ऋषभदेव प्रथम, पार्श्वनाथ 23वें तथा महावीर 24वें तीर्थकर थे।
▪️पार्श्वनाथ के पूर्व के तीर्थकरों की ऐतिहासिकता संदिग्ध है हालाँकि ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद में है।
▪️वर्धमान महावीर का जन्म 540 ई.पू. मे वैशाली के कुण्डग्राम में हुआ उनके पिता ‘सिद्धार्थ’ क्षत्रिय कुल के प्रधान थे तो माता ‘त्रिशला’ लिच्छवी नरेश चेटक की बहन थी।
▪️महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग कर दिया तथा 12 वर्षो की कठिन तपस्या के के बाद जुम्भिकग्राम के समीप उन्हें ‘कैवल्य’ की प्राप्ति हुई।
▪️बौद्ध साहित्य में महावीर को निगण्ठ-नाथपुत्त कहा गया है।
▪️ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर केवलिन, जिन (विजेता), अर्ह (योग्य), निर्ग्रथ (बंधन रहित) कहलाए।
▪️जैन धर्म कर्मवाद पर आधारित था तथा कठिन तप पर विश्वास करता था।
▪️जैन धर्म के ‘आचरांग सूत्र’ में महावीर के कठिन तप का वर्णन किया गया है।
▪️जैन धर्म के पाँच व्रत हैं- अहिंसा (हिंसा न करना), अमृषा(झूठ न बोलना), अचौर्य(चोरी न करना), अपरिग्रह (सम्पति अर्जित नहीं करना) तथा ब्रम्हाचर्य (इंद्रिय निग्रह करना)। शुरूआत के चार व्रत पार्श्वनाथ के समय से चले आ रहे थे तथा पाँचवा व्रत महावीर ने जोड़ा।
▪️जैन भिक्षुओं के लिए पंच महाव्रत तथा गृहस्थों के लिए पाँच अणुव्रत की व्यवस्था हैं।
▪️जैन धर्म में देवताओं का अस्तित्व स्वीकार किया गया है किंतु उनका स्थान जिन से नीचे रखा गया है।
▪️महावीर के अनुसार पूर्वजन्म में अर्जित पुण्य या पाप के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है। साथ ही उनके अनुसार शुद्ध व अच्छे आचरण वाले निम्न जाति के लोग भी मोक्ष पा सकते हैं।
▪️जैन धर्म में मुख्यत: सांसरिक बंधनों से छुटकारा पाने के उपाय बताए गए हैं जो सम्यक् ज्ञान, सम्यक् ध्यान और सम्यक आचरण से प्राप्त किया जा सकता है। इसे ही जैन त्रिरत्न कहा गया है।
▪️जैन धर्म में युद्ध व कृषि दोनो वर्जित हैं क्योंकि इससे हिंसा होती है। हालाँकि जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था की उतनी कठोर निंदा नहीं है जितनी बौद्ध धर्म में है।
▪️जैन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता हे। उनके अनुसार पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है।
▪️जैन धर्म के अनुसार सृष्टि शाश्वत है तथा यह 6 तत्वों जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, काल तथा पुद्गल (सांसारिक कार्य) से मिलकर बनी है।
▪️जैन धर्म अनीश्वरवादी है तथा इसका विश्वास है कि ये संसार त्याज्य है। इस हिसाब से इसे निवृत्तिमूलक धर्म कहा जाता है।
▪️जैन धर्म मोक्ष से संबधित आस्रव (जीव का कर्म की ओर आकर्षण), संवर (जीव का कर्म से मोहभंग) तथ निर्जरा (विद्यमान कर्म का क्षय हो जाना) शब्दावलियाँ मिलती हैं। निर्जरा कें अंतर्गत ही संथारा या सल्लेखना पद्धिति आती है।
▪️स्यादवाद या सप्तीभंगनीय जैन धर्म का महत्वपूर्ण दर्शन है जो ‘ज्ञान की सापेक्षिकता’ की बात करता है।
▪️कालांतर मं जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बँट गया- श्वेताम्बर (सफेद वस्त्र धारण करने वाला) तथा दिगंबर (नग्न रहने वाला)।
▪️एक परंपरा के अनुसार महावीर के निर्वाण के 200 वर्षो बाद मगध में भारी अकाल पड़ा। फिर प्राण बचाने बहुत से जैन बाहुभद्र के नेतृत्व में दक्षिण चले गए। ये दक्षिणी जैन दिगंबर कहलाए तथा जो स्थलबाहु के नेतृत्व में मगध में ही रह गए जैन श्वेताम्बर कहलाएं।
▪️श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार 19वें तीर्थकर ‘मल्लिनाथ’ स्त्री हैं जबकि दिगंबर इन्हें पुरूष मानते है।
▪️यद्यपि जैन धर्म आरंभ में मर्तिपूजक नहीं था किंतु बाद मतें लोग महावीर और अन्य तीर्थकरों की पूजा करने लगे।
▪️प्रथम जैन संगीति गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर देवर्धि क्षमाश्रवण की अध्यक्षता में सम्पादित हुई। इसी सम्मेलन में प्राकृत भाषा में जैन में जैन ग्रंथो का संकलन हुआ।
▪️जैन धर्म का प्राचीनतम साहित्य ‘पूर्व’ कहलाता है जिसकी संख्या 14 थी। कालांतर में इसका संकलन ‘आगम’ के रूप में हुआ जिसकी संख्या 46 है।
▪️प्रमुख जैन ग्रंथोमें हेमचंद्र रचित परिशिष्ट पर्व तथा त्रिषष्ठिशलाकाचरित और हरिभद्र सूरी रचित अनेकांत विजय इत्यादि हैं।
▪️जैन धर्म को अनेक शासकों का संरक्षण प्राप्त था जिनमें चंद्रगुप्त मौर्य, महापद्मनंद, अमोघवर्ष तथा खारवेल इत्यादि महत्वपूर्ण शासक है।
▪️गंग शासकों के अधीन एक सामंत चामुण्ड राय ने कर्नाटक कें श्रवणबेलगाला में गोमतेश्वर की प्रतिमा बनवाई।
▪️468 ई.पू. मे महावीर का निर्वाण राजगीर के समीप पावापुरी में हुआ।
#बौद्ध_धर्म :
▪️गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में शाक्य क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ।
▪️गौतम के पिता शुद्धोधन गणतांत्रिक शाक्यों के प्रधान थे तथा उनकी माता महामाया कोसल राजवंश से संबद्ध थी। इस प्रकार महावीर की तरह बुद्ध भी उच्च कुल के थे।
▪️29 वर्ष की अवशस्था में बुद्ध ने महाभिनिष्क्रमण (गुह त्याग) कर दिया तथा 35 वर्ष की अवस्था में उन्हें निर्वाण (ज्ञान) प्राप्त हुआ।
▪️उन्होने अपना प्रथम उपदेश, जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहते है, सारनाथ में दिया।
▪️महात्मा बुद्ध के उपदेशों में व्यावहारिकता अधिक है। उन्होंने चार आर्य सत्यों का प्रतिपादन किया- (i) दु-ख (ii) दु:ख समुदाय (iii) दु:ख निरोध (iv) दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा। चौथे आर्य सत्य के अंतर्गत ही आष्टांगिक मार्ग की अवधारणा दी गई है। बुद्ध, धम्म तथा संघ बौद्ध त्रिरत्न है।
▪️बुद्ध के अनुसार लोग काम(इच्छा, लालसा) के कारण दु:ख पाते है। काम पर विजय पाई जाए तो निर्वाण प्राप्त हो जाएगा।
▪️बौद्ध धर्म ईश्वर और आत्मा में विश्वास नहीं करता है इसलिए इसे अनीश्वरवादी और अनात्मवादी कहा गया है।
बौद्ध धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है किंतु यहाँ पुनर्जन्म का संदर्भ चेतना से लिया जाता है।
▪️कई मायनों में बौद्ध धर्म को ‘आशावादी’ कहा जाता है।
▪️प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात् कारणता का सिद्धात का अर्थ है किसी वस्तु के होने पर किसी अन्य वस्तु की उत्पति होती है।
▪️बौद्ध सिद्धांत क्षण भंगवाद के अनुसार सृष्टि नश्वर है।
बौद्ध धर्म ‘प्रयोजनवादी’ है। अर्थात् यह पारलौकिक जीवन के बजाय ‘इहलौकिक’ जीवन पर अधिक बल देता है।
▪️बौद्ध धर्म में वर्ण व्यवस्था की कटु आलोचना की गई है तथा संघ में सभी वर्णा तथा स्त्रीयों का प्रवेश स्वीकार किया गया।
▪️हालाँकि संघ में प्रवेश के लिये बच्चों को अपने माता-पिता से, दासों को अपने स्वामी से, कर्जदारों को देनदारों से तथा स्त्री को अपने पति से अनुमति लेनी होती थी।
▪️बौद्ध भिक्षु वर्षा काल के दिनों में एक ही स्थान पर रहते थे जिसे वस्सस कहा जाता था। इसके बाद पवारना के तहत यह पूछा जाता था कि उन्होंने कोई पाप तो नहीं किया है।
#बौद्ध_संगीति :
▪️प्रथम बौद्ध संगीति अजातशत्रु के शासनकाल में 483 ई. पू. में राजगृह में सम्पादित हुई। इसके अध्यक्ष महाकस्सप थे तथा इसमें आनंद तथा उपालि ने क्रमश: सुत्त पिटक और विनय पिटक का संकलन किया।
▪️द्वितीय बौद्ध संगीति कालाशोक के शासन काल में 383 ई. पू. में वैशाली में सम्पादित हुई। इसकी अध्यक्षता साबकमीर ने की। इस संगीति में मठ संबंधी नियम को लेकर मतभेद हो गया तथा बौद्ध धर्म ‘स्थिरवादी/थेरवादी’ तथा महासंघिक में बँट गया।
▪️थेरवादी घूम-घूम कर भिक्षावृत्ति पर बल देते थे जबकि महासंघिक एक स्थान पर रहकर।
▪️तृतीय बौद्ध संगीति अशोक के समय 251 ई.पू. में पाटिलपुत्र में हुई। इसके अध्यक्ष मोग्गलिपुत्तस्स थे। इसमें अभिधम्मपिटक का संकलन हुआ।
हीनयान :
1. बुद्ध एक महापुरूष थे।
2. भाषा-पालि
3. प्रतीक-बंदर
4. सर्वोच्च आदर्श-अर्हत
महायान :
1. बुद्ध देवता थे।
2. भाषा-संस्कृत
3. प्रतीक-बिल्ली
4. बेधिसत्व की अवधारणा
▪️ चतुर्थ बौद्ध संगीति ईर्स्वी की प्रथम शाताब्दी में कश्मीर के कुण्डलवन में सम्पादित हुई इस समय कनिष्क का शासन था। इस सभा की अध्यक्षता वसुमित्र की तथा वश्वघोष उपाध्यक्ष थे। इस संगीति में बौद्ध धर्म महायान तथा हीनयान में विभाजन हो गया।
▪️सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेश, विनयपिटक में संघ के नियम तथा अभिधम्मपिटक में बौद्ध दर्शन हैं।
▪️जातकों में बुद्ध के पूर्व जन्म ककी काल्पनिक कथाएँ है तथा निकायों में बौद्ध सिद्धांत तथा कहानियाँ संकलित है।
▪️नागसेन द्वारा रचित मिलिन्दपण्हो ग्रंथ पालि भाषा में जबकि अश्वघोष रचित बुद्धचरित तथा सौन्दरानंद संस्कृत भाषा में।
▪️बुद्धघोष द्वारा रचित ‘विसुद्धमग्ग’ हीनयान शाखा का ग्रंथ है।
▪️483 ई.पू. में कुशीनगर नामक स्थान पर महात्मा बुद्ध की मृत्यु (महापरिनिर्वाण) हो गई।
आधुनिक_भारत_का_इतिहास : #अंग्रेज_उपनिवेश_की_स्थापना
आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#अंग्रेज_उपनिवेश_की_स्थापना
अंग्रेजों का भारत आगमन और ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना का प्रमुख कारण पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत में अपनी वस्तुओं को बेचने से होने वाला अत्यधिक लाभ था जिसने ब्रिटिश व्यापारियों को भारत के साथ व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया । अतः पुर्तगाली व्यापारियों की व्यापारिक सफलता से प्रेरित होकर अंग्रेज व्यापारियों के एक समूह –मर्चेंट एडवेंचरर्स ने 1599 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की । महारानी स्वयं भी ईस्ट इंडिया कंपनी की साझेदार/शेयरहोल्डर थीं|
#पश्चिम_और_दक्षिण_में_विस्तार
बाद में 1608 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने शाही संरक्षण प्राप्त करने के लिए कैप्टन हॉकिन्स को मुग़ल शासक जहाँगीर के दरबार में भेजा । वह भारत के पश्चिमी तट पर अपनी फैक्ट्रियां स्थापित करने हेतु शाही परमिट प्राप्त करने में सफल रहा। 1605 ई. में इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम ने सर थॉमस रो को कंपनी के लिए और अधिक छूटें प्राप्त करने के उद्देश्य से जहाँगीर के दरबार में भेजा। रो बहुत कुटनीतिज्ञ था और अपनी कूटनीति के बल पर वह पूरे मुग़ल क्षेत्र पर स्वन्त्रतापूर्वक व्यापार करने हेतु शाही चार्टर प्राप्त करने में सफल रहा । बाद के वर्षों में ईस्ट इंडिया कंपनी अपने आधार को विस्तृत करती गयी । कंपनी को पुर्तगाली, डच और फ़्रांसीसी व्यापारियों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। निर्णायक क्षण तब आया जब 1662 ई. में इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन से हुआ और इंग्लैंड को बम्बई. दहेज़ के रूप में प्राप्त हुआ । इंग्लैंड द्वारा 1668 ई. में बम्बई. को दस पौंड प्रतिवर्ष की दर पर ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया। कंपनी ने अपने पश्चिमी तट पर अपना व्यापारिक मुख्यालय सूरत से बम्बई. स्थानांतरित कर दिया। 1639 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थानीय राजा से मद्रास को पट्टे पर प्राप्त कर लिया और वहां पर अपनी फैक्ट्री की सुरक्षा हेतु फोर्ट सेंट जॉर्ज का निर्माण कराया । बाद में मद्रास कंपनी का दक्षिण भारतीय मुख्यालय बन गया।
#पूर्व_में_कंपनी_का_विस्तार
दक्षिण एवं पश्चिमी भारत में सफलतापूर्वक अपनी फैक्ट्रियां स्थापित करने के बाद कंपनी ने पूर्व की ओर ध्यान केन्द्रित किया । कम्पनी ने पूर्व में अपना ध्यान मुख्य रूप से मुग़ल प्रान्त बंगाल पर लगाया। बंगाल के गवर्नर सुजाउद्दीन ने 1651 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल में अपनी व्यापारिक गतिविधियां चलने हेतु अनुमति प्रदान कर दी। हुगली में एक फैक्ट्री स्थापित की गयी और 1668 ई. में फैक्ट्री स्थापित करने हेतु सुतानती,गोविंदपुर व कोलकाता नाम के तीन गावों को खरीद लिया गया। बाद में फैक्ट्री की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर फोर्ट विलियम का निर्माण कराया गया। इसी स्थान पर वर्त्तमान कोलकाता शहर का विकास हुआ|
#फर्रुख्सियर_द्वारा_जारी_शाही_फरमान
मुग़ल शासक फर्रुख्सियर ने 1717 ई. में शाही फरमान जारी कर कंपनी को बंगाल में कुछ व्यापारिक विशेषाधिकार प्रदान कर दिए ,जिसमे बगैर कर अदा किये बंगाल में ब्रिटिश वस्तुओं के आयात-निर्यात की अनुमति भी शामिल थी। इस फरमान द्वारा कंपनी को वस्तुओं की आवाजाही हेतु दस्तक (पास ) जारी करने का अधिकार भी प्रदान कर दिया गया।
व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्र में मजबूती से स्थापित होने के बाद कंपनी ने भारत में सत्ता प्राप्त करने के सपने देखना शुरू कर दिया|
#भारत_में_ब्रिटिश_सत्ता_के_उदय_में_सहायक_प्रमुख #कारक
प्रमुख कारण,जिन्होनें ब्रिटिशों को लगभग दो सौ वर्षों तक भारत पर शासन करने का अवसर प्रदान किया,निम्नलिखित है-
1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही भारत में मुग़ल साम्राज्य का पतन की ओर अग्रसर होना तथा भारत में मुगलों जैसी किसी केंद्रीय शक्ति का उपस्थित न होना |
तत्कालीन भारतीय शासकों में राजनीतिक एकजुटता का आभाव था और वे प्रायः अपनी सुरक्षा हेतु अंग्रेजों की मदद पर निर्भर थे । ऐसे में अंग्रेजों ने उनकी कमजोरी का फायदा उठाया और अपने हित के लिए राज्यों के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगे|
#यूरोपीय_शक्तियों_के_बीच_संघर्ष
#भारत_में_प्रमुख_यूरोपीय_शक्तियाँ:पुर्तगाली,डच ,
अंग्रेज और फ्रांसीसी चार प्रमुख यूरोपीय शक्तियां थी जो व्यापारिक संबंधों की स्थापना हेतु भारत आये लेकिन बाद में उन्होंने यहाँ अपने उपनिवेश स्थापित किये। इन यूरोपीय शक्तियों के बीच वाणिज्यिक और राजनीतिक प्रभुता हेतु छोटे-मोटे संघर्ष होते रहते थे लेकिन अंत में ब्रिटिश सबसे ताकतवर शक्ति के रूप में उभरे जिन्होंने अन्य तीनों शक्तियों को पीछे छोड़ लगभग दो सौ सालों तक भारत पर शासन किया। भारत में सबसे पहले पुर्तगाली आये जिन्होनें अपनी फैक्ट्रियां और औपनिवेशिक बस्तियां स्थापित की । डचों के साथ उन्हें कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा लेकिन डच उनके सामने कमजोर साबित हुए और पुर्तगाली व ब्रिटिशों की प्रतिस्पर्धा के सामने टिक न सकने के कारण डच वापस चले गए|
#मुख्य_प्रतिस्पर्धी: ब्रिटिशों को भारत में प्रवेश करने के समय से ही डच,पुर्तगाली और फ़्रांसीसी शक्तियों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी थी लेकिन पुर्तगाली व डच प्रतिस्पर्धी न तो अधिक गंभीर थे और न ही अधिक सक्षम । अतः ब्रिटिशों के सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी फ्रांसीसी थे,जो भारत में सबसे बाद में आये थे। ब्रिटिशों द्वारा भारत के व्यापार एवं वाणिज्य पर पूर्ण एकाधिकार प्राप्त करने के प्रयासों ने फ्रांसीसियों के साथ उनके संघर्ष को जन्म दिया|1744 ई. से लेकर 1763 ई. के मध्य के 20 वर्षों में वाणिज्यिक व क्षेत्रीय नियंत्रण के उद्देश्यों को लेकर ब्रिटिशों व फ्रांसीसियों के मध्य तीन बड़े युद्ध लड़ें गए। अंतिम और निर्णायक युद्ध 22 जनवरी, 1763 ई. को बांडीवाश में लड़ा गया था|
#कर्नाटक_युद्ध: कर्नाटक और हैदराबाद दोनों राज्यों में उत्तराधिकार को लेकर विवाद था जिसने ब्रिटिश और फ्रांसीसी शक्तियों के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने के द्वार खोल दिए । इन दोनों यूरोपीय शक्तियों अपनी आपसी शत्रुता की आड़ में कर्नाटक और हैदराबाद के उत्तराधिकार हेतु अलग-अलग भारतीय दावेदारों का समर्थन किया । उत्तराधिकार के इस संघर्ष में पोंडिचेरी के गवर्नर डूप्ले के नेतृत्व में फ्रांसीसियों की जीत हुई. और अपने दावेदारों को गद्दी पर बिठाने के एवज में उन्हें उत्तरी सरकार का क्षेत्र प्राप्त हुआ जिसे फ्रांसीसी अफसर बुस्सी ने सात सालों तक नियंत्रित किया। लेकिन फ्रांसीसियों की यह जीत बहुत कम समय की थी क्योकि 1751 ई. में रोबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश शक्ति ने युद्ध की परिस्थितियाँ बदल दी थी। रोबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश शक्ति ने एक साल बाद ही उत्तराधिकार हेतु फ्रांसीसी समर्थित दावेदारों को पराजित कर दिया|अंततः फ्रांसीसियों को ब्रिटिशों के साथ त्रिचुरापल्ली की संधि करनी पड़ी|
अगले सात वर्षीय युद्ध (1756-1763 ई.।) अर्थात तृतीय कर्नाटक युद्ध में दोनों यूरोपीय शक्तियों की शत्रुता फिर से सामने आ गयी । इस युद्ध की शुरुआत फ्रांसीसी सेनापति काउंट दे लाली द्वारा मद्रास पर आक्रमण के साथ हुई. थी |लाली को ब्रिटिश सेनापति सर आयरकूट द्वारा हरा दिया गया|1761 ई. में ब्रिटिशों ने पोंडिचेरी पर कब्ज़ा कर लिया और लाली को जिंजी और कराइकल के समर्पण हेतु बाध्य कर दिया|अतः फ्रांसीसी बांडीवाश में लडे गये तीसरे कर्नाटक युद्ध(1760 ई.) में हार गए और बाद में यूरोप में उन्हें ब्रिटेन के साथ पेरिस की संधि करनी पड़ी|
#ब्रिटिश_सर्वोच्चता_की_स्थापना
कर्नाटक के युद्ध में प्राप्त विजय ने भारत में ब्रिटिश सर्वोच्चता की स्थापना हेतु जमीन तैयार कर दी थी और साथ ही फ्रांसीसियों के भारतीय साम्राज्य के सपने को चकनाचूर कर दिया था। इस जीत के बाद भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कोई. यूरोपीय प्रतिद्वंदी नहीं बचा था। ब्रिटिशों को सर आयरकूट,मेजर स्ट्रिंगर लॉरेंस ,रोबर्ट क्लाइव जैसे कुशल नेतृत्वकर्ताओं के साथ साथ एक मजबूत नौसैनिक शक्ति होने का भी लाभ मिला। इन कारकों के कारण ही वे भारत के विश्वसनीय शासक बन सके|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#वैदिक_संस्कृति
वेद भारत के प्राचीन ग्रंथ हैं ! वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, अरण्यक आदि को वैदिक साहित्य कहते हैं ! वेद का अर्थ है ज्ञान अथवा पवित्र आध्यात्मिक ज्ञान ! विद्वान लोग वैदिक काल और वैदिक साहित्य को दो भागों में बाँटते हैं- प्रारंभिक दौर का प्रतिनिधित्व ऋग्वेद करता है ! इस काल को पूर्व वैदिककाल या ऋग्वैदिक काल भी कहा जाता है और बाद के दौर में शेष तीनों वेद (सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद), ब्राह्मण, अरण्यक और उपनिषद् आते हैं ! इस काल को उत्तर वैदिक काल भी कहा जाता है ! वैदिक साहित्य को समृद्ध होने में लंबा समय लगा ! वैदिक साहित्य से हम वैदिक काल के लोगों के निवास के क्षेत्र, उनके खान-पान व रहन-सहन के विषय में जान पाते हैं ! इस युग की संस्कृति को ही वैदिक संस्कृति कहते हैं !
इतिहासकारों का मत है कि इस काल में कुछ लोग उत्तर-पूर्वी ईरान, कैस्पियन सागर या मध्य एशिया से छोटे छोटे समूहों में आकर पश्चिमोत्तर भारत में बस गये ! ये अपने आप को आर्य कहते थे ! कतिपय इतिहासकार इस मत को स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि इसके पुरातात्विक व साहित्यिक प्रमाण नहीं हैं ! उनका मत है कि आर्य भारत के मूल निवासी थे ! सभ्यता और संस्कृतियों का विकास सदैव नदियों के किनारे हुआ है ! सिन्धु, सतलज, व्यास, सरस्वती नदियों के किनारे आर्यों ने ऋचाओं की रचना की, जिनका संग्रह ऋग्वेद है !
वर्तमान में विलुप्त, सरस्वती नदी का वर्णन वैदिक साहित्य में मिलता है ! पुरातत्ववेत्तओं तथा भूवैज्ञानिकों ने अपनी नवीन खोजों से सिद्ध किया है कि सरस्वती नदी 2000 ई.पू. तक पृथ्वी पर प्रवाहित होती रही होगी ! पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि हड़प्पा सभ्यता का उद्गम तथा विनाश सरस्वती नदी के किनारे हुआ होगा !
#सामाजिक_जीवन :
आर्य पहले छोटे-छोटे कबीलों में बसे था ! कबीले छोटी-छोटी इकाइयों में बँटे थे जिन्हे 'ग्राम' कहते थे ! प्रत्येक ग्राम में कई परिवार बसते थे ! इस समय संयुक्त परिवार हुआ करते थे एवं परिवार का सबसे वृद्ध व्यक्ति मुखिया हुआ करता था !
समाप मुख्यत: चार वर्णों में बंटा था ! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ओर शूद्र ! यह वर्गीकरण लोगों के कर्म (कार्यों) पर आधारित था न कि जन्म पर ! गुरूओं और शिक्षकों को ब्राह्मण, शासक और प्रशासकों का क्षत्रिय, किसानों, व्यापारियों और साहूकारों को वैश्य तथा दस्तकारों और मजदूरों को शूद्र कहा जाता था ! लेकिन बाद में व्यवसाय पैतृक होते चले गए और एक व्यवसाय से जुड़े लोगों को एक जाति के रूप में वर्ण-व्यवस्था कठोर बनती गई ! एक वर्ण से दूसरे में जाना कठिन हो गया !
समाज की आधारभूत इकाई परिवार थी ! बाल विवाह नहीं होते थे ! युवक एवं युवतियाँ अपनी पसंद से विवाह कर सकते थे ! सभी सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर पत्नी पति की सहभागिनी होती थी ! महिलाओं का सम्मान था और कुछ को तो ऋषि का दर्जा भी प्राप्त था ! पिता की संपत्त्िा में उसकी सभी संतानों का हिस्सा होता था ! भूमि पर व्यक्तियों तथा समाज का स्वामित्व था ! मुख्यत: चारे वाली भूमि, जंगल तथा जलाशयों जैसे तालाब और नदियों पर समाज का स्वामित्व होता था जिसका अभिप्राय था कि गाँव के सभी लोग उनका उपयोग कर सकें !
#खान_पान :
वैदिक काल में आजकल के सभी अनाजों की खेती की जाती थी ! इसी प्रकार आर्यों को सभी पशुओं की जानकारी भी थी ! लोग चावल, गेहूँ के आटे तथा दालों से बने पकवान खाते थे ! दूध, मक्खन और घी का प्रयोग आम था ! फल, सब्जियाँ, दालें और मांस भी भोजन में सम्मिलित थे ! वे मधु तथा नशीला पेय सुरा भी पीते थे ! धार्मिक उत्सवों पर मोम पान किया जाता था ! मोम और सुरा पीने को हतोत्साहित किया जाता था क्योंकि यह व्यक्ति के अशोभनीय व्यावहार का कारण बनते थे !
#आर्थिक_जीवन :
वैदिक काल के लोगों का आर्थिक जीवन कृषि, कला, हस्तशिल्प और व्यापार पर केंद्रित था ! बैलों और सांडों का खेती करने एवं गाडियाँ खींचने के लिए उपयोग किया जाता था ! रथ खींचने के लिए घोड़ों का उपयोग किया जाता था ! पशुओं में गाय को सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं पवित्र स्थान दिया जाता था !वैदिक काल में गाय को चोट पहुँचाना अथवा उसकी हत्या करना वर्जित था ! गाय को अघ्न्य (जिसे न तो मारा जा सकता है और न ही चोट पहुँचाई जा सकती है ) कहा जाता था ! कहा जाता था वेदों में गौहत्या अथवा गाय को चोट पहुँचाने पर परिस्थिति अनुसार देश निकाला अथवा मृत्यू-दण्ड देने का प्रावधान है !
प्रारंभिक काल में बर्तन बनाना, कपड़ा बुनना, धातु कर्म, बढ़ई का काम इत्यादि व्यवसाय थे ! प्रारंभिक काल में धातुओं में केवल ताँबा धातु की ही जानकारी थी ! दूर-दूर तक व्यापार होता था ! वेदों में समुद्री मार्ग से व्यापार कीर चर्चा आती है ! बाद के काल में हमें अन्य कई व्यवसायों, जैसे गहने बनाना, रंगरेजी, रथ बनाना, तीर-कमान बनाना तथा धातु पिघलाने आदि की जानकारी मिलती है ! हस्तशिल्पियों की श्रेणियाँ (संघ) भी बनीं और उनके मुखिया को श्रेष्ठी कहा जाता था ! बाद के काल में लोहे की जानकारी होने के बाद ताँबा लोहित अयस और लोहा श्याम अयस के नामों से जाना जाने लगा !
प्रारंभिक काल में लोग स्वेच्छा से राजा को उसकी सेवाओं के फलस्वरूप उपहार के रूप में बलि (ऐच्छिक उपहार) दिया करते थे जो बाद में एक नियमित कर बन गया जिसे शुल्क कहा जाता था ! उस समय उपयोग किए जाने वाले सिक्कों को निष्क कहा जाता था !
#धर्म_और_दर्शन :
ऋग्वेद काल के लोग प्रकृति की शक्ति दर्शाने वाले बहुत देवताओं की पूजा करते थे जैसे- अग्नि, सूर्य, वायु, आकाश और वृक्ष ! इनकी पूजा आज भी होती है ! हड़प्पा सभ्यता में हम कई वस्तुओं जैसे पीपल, सप्तमातृकाओं और शिवलिंगों का चित्रण पाते हैं जिन पर हिंदू आज भी श्रद्घा रखते हैं ! अग्नि, वात और सूर्य से समाज की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती थी ! इंद्र, अग्नि, और वरुण सबसे अधिक मान्य देवता थे ! यज्ञ एक जाना-माना धार्मिक कृत्य था ! कभी-कभी बड़े विशाल यज्ञों का आयोजन किया जाता था जिसमें बहुतसे पुरोहितों की आवश्कता होती थी !
उत्तर वैदिक काल में कर्मकांड और यज्ञ के साथ साथ ज्ञान मार्ग को महत्व दिया गया ! ज्ञान मार्गी चिंतकों (दर्शनिकों) द्वारा जिन प्रश्नों पर चर्चा की गई हे वे हैं- ईश्वर क्या है ? ईश्वर कौन है ? जीवन क्या है ? संसार क्या है ? मृत्यु के पश्चात मनुष्य कहाँ जाता है ? आत्मा क्या है ? इत्यादि ! दार्शनिकों के चिंतन को उनके निकट बैठने वाले शिष्यों ने कंठस्थ किया और बाद में उन्हें लिपिबद्ध किया गया ! ये ग्रंथ 'उपनिषद' कहलाये ! उपनिषद भारतीय दर्शनशास्त्र के प्रमुख ग्रंथ है ! इन्हें वेदों के अंग माना जाता है !
#विज्ञान :
वेद, ब्राह्मण और उपनिषद् इस समय के विज्ञान के विषय में पर्याप्त जानकारी देते हैं ! गणित की सभी शाखाओं को सामान्यत: गणित नाम से ही जाना जाता था जिसमें अंकगणित, रेखागणित, बीजगणित, खगोल विद्या और ज्योतिष सम्मिलित थे !
वैदिक काल के लोग त्रिभुज के बराबर क्षेत्रफल का वर्ग बनाना जानते थे ! वे वृत्त के क्षेत्रफलों के वर्गों के योग और अंतर के बराबर का वर्ग भी हबनाना जानते थे ! शून्य का ज्ञान था और इसी कारण बड़ी संख्याएँ दर्ज की जा सकीं ! इसके साथ ही प्रत्येक अंक के स्थानीयमान और मूल मान की जानकारी भी थी ! उन्हें घन, घनमूल, वर्ग और वर्गमूल की जानकारी थी और उनका उपयोग किया जाता था !
वैदिक काल में खगोल विद्या अत्यधिक विकसित थी ! वे आकाशीय पिंडों की गति के विषय में जानते थे और विभिन्न समय पर उनकी स्थिति की गणना भी करते थे ! इससे उन्हें सही पंचांग बनाने तथा सूर्य एवं चंद्रग्रहण का समय बताने में सहायता मिलती थी ! वे यह जानते थे कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ! चाँद, पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमता है ! उन्होंने पिंडों के घूर्णन का समय ज्ञात करने तथा आकाशिय पिंडों के बीच की दूरियाँ मापने के प्रयास भी किए !
वैदिक सभ्यता काफी उन्नत प्रतीत होती है ! लोग नगरों, प्राचीर से घिरे नगरों (पुरों) तथा गाँवों में रहते थे ! वे दूर-दराज तक व्यापार करते थे ! विज्ञान पढ़ा जाता था और विज्ञान की विभिन्न शाखाएँ अत्यधिक विकसित थीं ! उन्होंने सही पंचांग बनाए और चंद्र एवं सूर्य ग्रहणों के समय की पूर्व सूचना दी ! आज भी हम उनकी विधि से गणना कर ग्रहण का समय ज्ञात कर सकते हैं !
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#तुगलक_वंश
खिलज़ी वंश का अंत कर दिल्ली में एक नये वंश का उदय हुआ जिसे तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty) कहते है। तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty) ने दिल्ली पर 1320 से 1413 ई. तक राज किया। तुगलक वंश का पहला शासक गाज़ी मालिक था. जिसने खुद को गयासुद्दीन तुगलक के रूप में पेश किया।
#तुगलक_वंश_के_शासक :-
▪️गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)
▪️मोहम्मद तुगलक (1325-51 ई.)
▪️फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.)
▪️मोहम्मद खान (1388 ई.)
▪️गयासुद्दीन तुगलक शाह II (1388 ई.)
▪️अबू बाकर (1389-90 ई.)
▪️नसीरुद्दीन मोहम्मद (1390-94 ई.)
▪️हूंमायू (1394-95 ई.)
▪️नसीरुद्दीन महमूद (1395-1412 ई.)
#गयासुद्दीन_तुगलक (1320-25 ई.)
यह दिल्ली सल्तनत पर तुगलक वंश की स्थापना करने वाला प्रथम शासक था। इसका पूर्व नाम गाजी मलिक था, जिसने दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठने के बाद अपना नाम गयासुद्दीन कर लिया। गयासुद्दीन 8 सितंबर 1320 को यह दिल्ली की गद्दी पर बैठा और अगले पांच वर्ष तक शासन किया। वह पहला एेसा शासक था, जिसने अपने नाम के साथ गाजी शब्द (काफिरों का वध करने वाला) जोड़ा था। इसे तुगलक गाजी भी कहते थे। उसने मंगोलों के 23 आक्रमण विफल किए थे।
🔹गयासुद्दीन तुगलक के सुधार
▪️गयासुद्दीन तुग़लक़ ने आर्थिक सुधार के अन्तर्गत अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती एवं नरमी के मध्य संतुलन (रस्म-ए-मियान) को बनाया।
▪️उसने लगान के रूप में उपज का 1/10 या 1/12 हिस्सा ही लेने का आदेश जारी कराया।
▪️ग़यासुद्दीन ने मध्यवर्ती ज़मीदारों विशेष रूप से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए, जिससे उनको वही स्थिति प्राप्त हो गयी, जो बलबन के समय में प्राप्त थी।
▪️ग़यासुद्दीन ने अमीरों की भूमि पुनः लौटा दी।
उसने सिंचाई के लिए कुँए एवं नहरों का निर्माण करवाया। सम्भवतः नहर का निर्माण करवाने वाला ग़यासुद्दीन प्रथम सुल्तान था।
▪️सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय ग़यासुद्दीन तुग़लक़ को ही जाता है।
▪️अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर नीति के विरुद्ध उसने उदारता की नीति अपनायी, जिसे बरनी ने ‘रस्मेमियान’ अथवा ‘मध्यपंथी नीति’ कहा है।
▪️उसने अलाउद्दीन ख़िलजी द्वारा चलाई गयी दाग़ने तथा चेहरा प्रथा को प्रभावी तरीक़े से लागू किया।
🔹महत्त्वपूर्ण विजय
▪️वारंगल व तेलंगाना की विजय (1324 ई.)
▪️तिरहुती विजय, मंगोल विजय (1324 ई.)
🔹निर्माण कार्य
▪️तुग़लक़ाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी।
🔹मृत्यु
▪️जब ग़यासुद्दीन तुग़लक़ बंगाल अभियान से लौट रहा था, तब लौटते समय तुग़लक़ाबाद से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अफ़ग़ानपुर में एक महल में सुल्तान ग़यासुद्दीन के प्रवेश करते ही वह महल गिर गया, जिसमें दबकर उसकी मार्च, 1325 ई. को मुत्यृ हो गयी।
ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा तुग़लक़ाबाद में स्थित है।
#मोहम्मद_तुगलक (1325-51 ई.)
मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ‘जूना ख़ाँ’, मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351 ई.) के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम ‘उलूग ख़ाँ’ था। मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। इसके अलावा वह पर्सियन कविता का बहुत बड़ा प्रशंसक था। उसकी सोच उसके समय से बहुत आगे थी। उसने बहुत सारे विचारो पर मंथन किया लेकिन उन विचारो के क्रियान्वयन से जुड़े उसके पैमाने बहुत मजबूत और टिकाऊ नहीं थे इसीलिए वह असफल रहा। उसने अपने राज्य में मध्य राजधानी की स्थापना और टोकन करेंसी (प्रतीक मुद्रा) के रूप में विभिन्न प्रयोग किये लेकिन वह पूरी तरह से असफल रहा। अपनी सनक भरी योजनाओं के कारण इसे ‘स्वप्नशील’, ‘पागल’ एवं ‘रक्त-पिपासु’ कहा गया है।
🔹मुहम्मद बिन तुग़लक़ के कार्य
▪️दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि (1326-27 ई.) – मुहम्मद तुग़लक़ ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर की वृद्धि कर दी (संभवतः 50 प्रतिशत), परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई। तुग़लक़ के अधिकारियों द्वारा ज़बरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुग़लक़ की यह योजना असफल रही। मुहम्मद तुग़लक़ ने कृषि के विकास के लिए ‘दिवाण-ए- अमीर कोही’ नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता, भूमि का अच्छा न होना इत्यादि कारणों से कृषि उन्नति सम्बन्धी अपनी योजना को तीन वर्ष पश्चात् समाप्त कर दिया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने किसानों को बहुत कम ब्याज पर ऋण (सोनथर) उपलब्ध कराया।
▪️राजधानी परिवर्तन (1326-27 ई.) – तुग़लक़ ने अपनी योजना के अन्तर्गत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया। देवगिरि को “कुव्वतुल इस्लाम” भी कहा गया। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरि का नाम ‘कुतुबाबाद’ रखा था और मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया। सुल्तान की इस योजना के लिए सर्वाधिक आलोचना की गई। मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी पूर्णतः असफल रही और उसने 1335 ई. में दौलताबाद से लोगों को दिल्ली वापस आने की अनुमति दे दी। राजधानी परिवर्तन के परिणामस्वरूप दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ, जिसने अंततः बहमनी साम्राज्य के उदय का मार्ग खोला।
▪️सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (1329-30 ई.) – इस योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुग़लक़ ने सांकेतिक व प्रतीकात्मक सिक्कों का प्रचलन करवाया। मुहम्मद तुग़लक़ ने ‘दोकानी’ नामक सिक्के का प्रचलन करवाया। सांकेतिक मुद्रा के अन्तर्गत सुल्तान ने संभवतः पीतल (फ़रिश्ता के अनुसार) और तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलाये, जिसका मूल्य चांदी के रुपये टका के बराबर होता था। सिक्का ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रहने से अनेक जाली टकसाल बन गये। लगान जाली सिक्के से दिया जाने लगा, जिससे अर्थव्यवसथा ठप्प हो गई। सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली। वहाँ के शासकों ने इन योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाया, जबकि मुहम्मद तुग़लक़ का प्रयोग विफल रहा। सुल्तान को अपनी इस योजना की असफलता पर भयानक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा।
▪️खुरासन एवं काराचिल का अभियान
▪️चौथी योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुग़लक़ के खुरासान एवं कराचिल विजय अभियान का उल्लेख किया जाता है। खुरासन को जीतने के लिए मुहम्मद तुग़लक़ ने 3,70,000 सैनिकों की विशाल सेना को एक वर्ष का अग्रिम वेतन दे दिया, परन्तु राजनीतिक परिवर्तन के कारण दोनों देशों के मध्य समझौता हो गया, जिससे सुल्तान की यह योजना असफल रही और उसे आर्थिक रूप से हानि उठानी पड़ी।
▪️कराचिल अभियान के अन्तर्गत सुल्तान ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक विशाल सेना को पहाड़ी राज्यों को जीतने के लिए भेजा। उसकी पूरी सेना जंगली रास्तों में भटक गई, इब्न बतूता के अनुसार अन्ततः केवल दस अधिकारी ही बचकर वापस आ सके। इस प्रकार मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी असफल रही।
🔹मृत्यु
▪️अपने शासन काल के अन्तिम समय में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गुजरात में विद्रोह को कुचल कर तार्गी को समाप्त करने के लिए सिंध की ओर बढ़ा, तो मार्ग में थट्टा के निकट गोंडाल पहुँचकर वह गंभीर रूप से बीमार हो गया। यहाँ पर सुल्तान की 20 मार्च 1351 को मृत्यु हो गई।
#फिरोज_शाह_तुगलक (1351-88 ई.)
फ़िरोज़ शाह तुगलक 45 वर्ष की उम्र में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा। उसके पिता का नाम रज्ज़ब था जोकि गियासुद्दीन तुगलक का छोटा भाई था जबकि उसकी माता दीपालपुर की राजकुमारी थी। गद्दी पर बैठने के बाद उसने बहुत सारे उन निर्णयों को वापस ले लिया जोकि उसके पूर्व के शासक के द्वारा लिए गए थे। उसने शरियत के अनुसार शासन किया और शरियत में जिन करों का उल्लेख नहीं किया गया था उसे बंद कर दिया।
🔹फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के कार्य
▪️राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने अपने शासन काल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर दिया और केवल 4 कर ‘ख़राज’ (लगान), ‘खुम्स’ (युद्ध में लूट का माल), ‘जज़िया’, एवं ‘ज़कात’ (इस्लाम धर्म के अनुसार अढ़ाई प्रतिशत का दान, जो उन लोगों को देना पड़्ता है, जो मालदार हों और उन लोगों को दिया जाता है, जो अपाहिज या असहाय और साधनहीन हों) को वसूल करने का आदेश दिया।
▪️उलेमाओं के आदेश पर सुल्तान ने एक नया सिंचाई (हक ए शर्ब) कर भी लगाया, जो उपज का 1/10 भाग वसूला जाता था।
▪️सुल्तान ने सिंचाई की सुविधा के लिए 5 बड़ी नहरें यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लम्बी सतलुज नदी से घग्घर नदी तक 96 मील लम्बी सिरमौर की पहाड़ी से लेकर हांसी तक, घग्घर से फ़िरोज़ाबाद तक एवं यमुना से फ़िरोज़ाबाद तक का निर्माण करवाया।
▪️उसने फलो के लगभग 1200 बाग़ लगवाये।
▪️आन्तरिक व्यापार को बढ़ाने के लिए अनेक करों को समाप्त कर दिया।
▪️नगर एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के अन्तर्गत सुल्तान ने लगभग 300 नये नगरों की स्थापना की।
▪️जौनपुर नगर की नींव फ़िरोज़ ने अपने चचेरे भाई ‘फ़खरुद्दीन जौना’ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में डाली थी।
▪️उसके शासन काल में ख़िज्राबाद एवं मेरठ से अशोक के दो स्तम्भलेखों को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया।
▪️अपने कल्याणकारी कार्यों के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने एक रोज़गार का दफ्तर एवं मुस्लिम अनाथ स्त्रियों, विधवाओं एवं लड़कियों की सहायता हेतु एक नये ‘दीवान-ए-ख़ैरात’ नामक विभाग की स्थापना की।
▪️दारुल-शफ़ा’ (शफ़ा=जीवन का अंतिम किनारा, जीवन का अंतिम भाग) नामक एक राजकीय अस्पताल का निर्माण करवाया, जिसमें ग़रीबों का मुफ़्त इलाज होता था।
▪️फ़िरोज़ के शासनकाल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान दे ‘दीवान-ए-बंदग़ान’ की स्थापना की।
🔹संरक्षण
▪️शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में सुल्तान फ़िरोज़ ने अनेक मक़बरों एवं मदरसों की स्थापना करवायी। उसने ‘जियाउद्दीन बरनी’ एवं ‘शम्स-ए-सिराज अफीफ’ को अपना संरक्षण प्रदान किया।
▪️बरनी ने ‘फ़तवा-ए-जहाँदारी’ एवं ‘तारीख़-ए-फ़िरोज़शाही’ की रचना की।
▪️फ़िरोज़ ने अपनी आत्मकथा ‘फुतूहात-ए-फ़िरोज़शाही’ की रचना की।
🔹मृत्यु
▪️फ़िरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु सितम्बर 1388 ई. में हुई थी। हौज़खास परिसर, दिल्ली में उसे दफ़ना दिया गया।
#मोहम्मद_खान (1388 ई.)
फ़िरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु 1388 ई. में हुई थी। उसके बाद दिल्ली सल्तनत में कुछ दिनों के लिए मोहमद खान ने दिल्ली में शासन किया और कुछ दिनों के भीतर ही उनकी हत्या कर दी गई।
#गयासुद्दीन_तुगलक_शाह II (1388 ई.)
फ़िरोज़ शाह तुगलक और मोहमद खान के हत्या के बाद दिल्ली सल्तनत में फ़िरोज़ शाह तुगलक का पोता गियासुद्दीन अगला शासक बना लेकिन 5 महीने के अल्प शासन के बाद उसकी हत्या कर दी गयी।
#अबू_बाकर (1389-90 ई.)
गयासुद्दीन तुगलक शाह II की हत्या करके फ़रवरी 1389 ई. में जफ़र खां के पुत्र अबू बक्र स्वयं सुल्तान बन गया।
#नसीरुद्दीन_मोहम्मद_शाह (1390-94 ई.)
तुगलक शाह की हत्या कर अबू बक्र ने 1389 ई. में सल्तनत पर शासन का आरम्भ किया। दिल्ली के कोतवाल, मुलतान, समाना, लाहौर के अक्त्तादारों ने मुहमद शाह को सहयोग देकर 1390 ई. में अबू बक्र को शासन से हटा दिया और नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह स्वयं शासक बन गया। नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह ने 1390 से 1394 ई. तक शासन किया।
#हूंमायू (1394-95 ई.)
नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह के दिल्ली सल्तनत में उनका पुत्र हुंमायू ने लगभग 3 माह तक शासक किया और उसकी मृत्यु हो गई।
#नसीरुद्दीन_महमूद_शाह (1395-1412 ई.)
मार्च 1394 ई. में दिल्ली सल्तनत का शासक महमूद शाह बना। उसकी दुर्दशा को देखकर व्यंग्य से कहा जाता था – “विश्व के सम्राट तुगलकों का राज्य दिल्ली से पालम तक फैला हुआ था।” 17 दिसम्बर, 1398 ई. को तैमूर का आक्रमण दिल्ली पर हो गया तथा सुल्तान स्वयं गुजरात भाग गया। पुनः वजीर मल्लू खां ने सुल्तान को दिल्ली बुलाकर गद्दी पर बिठाया। सन 1412 ई. में महमूद शाह की मृत्यु हो गई, जिससे तुगलक वंश का अंत हो गया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास
#फ्रांसीसी_उपनिवेश_की_स्थापना
भारत आने वाले यूरोपीय व्यापारी फ्रांसीसी थे। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1664 ई में लुई सोलहवें के शासनकाल में भारत के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से की गयी थी। फ्रांसीसियों ने 1668 ई में सूरत में पहली फैक्ट्री स्थापित की और 1669 ई में मसुलिपत्तनम में एक और फैक्ट्री स्थापित की।1673 ई में बंगाल के मुग़ल सूबेदार ने फ्रांसीसियों को चन्द्रनगर में बस्ती बनाने की अनुमति प्रदान कर दी।
#पोंडिचेरी_और_फ्रांसीसी_वाणिज्यिक_वृद्धि: 1674 ई में फ्रांसीसियों ने बीजापुर के सुल्तान से पोंडिचेरी नाम का गाँव प्राप्त किया और एक सम्पन्न शहर की स्थापना की जो बाद में भारत में फ्रांसीसियों का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा। धीरे धीरे फ़्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने माहे,कराइकल, बालासोर और कासिम बाज़ार में अपनी व्यापारिक बस्तियां स्थापित कर लीं। फ्रांसीसियों का भारत आने का प्रमुख उद्देश्य व्यापर एवं वाणिज्य था। भारत आने से लेकर 1741 ई तक फ्रांसीसियों का प्रमुख उद्देश्य ,ब्रिटिशों के समान,पूर्णतः वाणिज्यिक ही था। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1723 ई में यनम, 1725 ई में मालाबार तट पर माहे और 1739 ई में कराइकल पर कब्ज़ा कर लिया।
#फ्रांसीसियों_के_राजनीतिक_उद्देश्य_और_महत्वाकांक्षा: समय के गुजरने के साथ साथ फ्रांसीसियों का उद्देश्यों में भी परिवर्तन होने लगा और भारत को अपने एक उपनिवेश के रूप में मानने लगे। 1741 ई में जोसफ फ़्रन्कोइस डूप्ले को फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी का गवर्नर बनाया जाना इस (उपनिवेश) वास्तविकता और उद्देश्य की तरफ उठाया गया पहला कदम था। उसके काल में कंपनी के राजनीतिक उद्देश्य स्पष्ट रूप से सामने आने लगे और कहीं कहीं तो उन्हें कंपनी के वाणिज्यिक उद्देश्यों से ज्यादा महत्व दिया जाने लगा। डूप्ले अत्यधिक बुद्धिमान था जिसने स्थानीय राजाओं की आपसी दुश्मनी का फायदा उठाया और इसे भारत में फ्रासीसी साम्राज्य की स्थापना हेतु भगवान द्वारा दिए गए मौके के रूप में स्वीकार किया। उसने अपनी चतुरता और कूटनीति के बल पर भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में सम्मानित स्थान प्राप्त किया। लेकिन ब्रिटिशों ने डूप्ले और फ्रांसीसियों के समक्ष चुनौती प्रस्तुत की जो बाद में दोनों शक्तियों के बीच संघर्ष का कारण बना। डूप्ले की सेना ने मार्क्विस दी बुस्सी के नेतृत्व में हैदराबाद और केप कोमोरिन के मध्य के क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। 1744 ई में ब्रिटिश अफसर रोबर्ट क्लाइव भारत आया जिसने डूप्ले को पराजित किया। इस पराजय के बाद 1754 ई में डूप्ले को वापस फ्रांस बुला लिया गया।
#कुछ_क्षेत्रों_पर_फ्रांसीसी_प्रतिबन्ध: लाली, जिसे फ्रांसीसी सरकार द्वारा भारत से ब्रिटिशों को बाहर करने लिए भेजा गया था, को प्रारंभ में कुछ सफलता जरुर मिली ,जैसे 1758 ईमें कुद्दलौर जिले के फोर्ट सेंट डेविड पर विजय प्राप्त करना। लेकिन ब्रिटिशों और फ्रांसीसियों के मध्य हुई बांदीवाश की लड़ाई में हैदराबाद क्षेत्र को खो देने के कारण फ्रांसीसियों की कमर टूट गयी और इसी का फायदा उठाकर 1760 ई में ब्रिटिशों ने पोंडिचेरी की घेराबंदी कर दी। 1761 ई में ब्रिटिशों ने पोंडिचेरी को नष्ट कर दिया और अंततः फ्रांसीसी दक्षिण भारत पर पकड़ खो बैठे । बाद में 1763 ई में ब्रिटिशों के साथ हुई शान्ति-संधि की शर्तों के अधीन 1765 ई में पोंडिचेरी को फ्रांसीसियों को लौटा दिया । 1962 ई में भारत और फ्रांस के मध्य हुई एक संधि के तहत भारत में स्थित फ्रांसीसी क्षेत्रों को वैधानिक रूप से पुनः भारत में मिला लिया गया
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#सिन्धु_घाटी_सभ्यता [ #हड़प्पा_सभ्यता ]
सिंधु घाटी सभ्यता दुनिया की चार प्रारम्भिक सभ्यताओं (मेसोपोटामिया या सुमेरियन सभ्यता, मिस्र सभ्यता और चीनी सभ्यता) में से एक है|
#संक्षिप्त_विवरण :
1. यह सभ्यता कांस्य युग (ताम्रपाषाण काल) के अंतर्गत आता है|
2. इस सभ्यता का विस्तार पश्चिम में बलूचिस्तान तक, पूर्व में आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक, दक्षिण में दाइमाबाद (महाराष्ट्र) तक और उत्तर में मंदा (जम्मू-कश्मीर) तक था|
3. इस सभ्यता में किसानों और व्यापारियों का प्रभुत्व था जिसके कारण इस सभ्यता को कृषि-वाणिज्यिक सभ्यता के रूप में जाना जाता है|
4. इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि 1921 में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थान पर ही दयाराम साहनी की देखरेख में खुदाई के माध्यम से इस सभ्यता की खोज की गई थी|
5. रेडियोकार्बन डेटिंग के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता का काल 2500-1750 ईसा पूर्व के आसपास निर्धारित किया गया है|
6. इस सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी “नगर योजना” थी| इस सभ्यता के दौरान शहरों को दो भागों दुर्ग (शासक वर्ग द्वारा अधिकृत) और निचले शहर (आम लोगों का निवास स्थान) में विभाजित किया गया था|
7. धौलावीरा इस सभ्यता का एकमात्र स्थल है जहाँ शहर को तीन भागों में विभाजित किया गया था|
8. चहुन्दरो एकमात्र ऐसा शहर था जहाँ दुर्ग नहीं थे|
9. इस सभ्यता में नगर योजना “ग्रिड प्रणाली” पर आधारित थी| इस सभ्यता के लोग भवन निर्माण के लिए पके हुए ईंटों को इस्तेमाल करते थे| इसके अलावा नालियों का उत्तम प्रबंध, किलाबन्द दुर्ग और लोहे के औजारों की अनुपस्थिति इस सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं थी|
10. सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों ने सर्वप्रथम कपास का उत्पादन किया था जिसे ग्रीक भाषा में “सिनडम” कहा जाता है और यह सिंध से प्राप्त हुआ था|
11. सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग बड़े पैमाने पर गेहूं और जौ का उत्पादन करते थे| उनके द्वारा उगाये जाने वाले अन्य फसल दाल, धान, कपास, खजूर, खरबूजे, मटर, तिल और सरसों थे।
12. इस काल के ज्ञात पशुओं में बैल, भेड़, भैंस, बकरी, सूअर, हाथी, कुत्ता, बिल्ली, गधा और ऊंट प्रमुख थे।
13. इस सभ्यता का सबसे महत्वपूर्ण पशु “बिना कूबड़ वाले बैल” या “एक सींग वाला गैंडा” था|
14. इस सभ्यता के दौरान बाह्य और आंतरिक व्यापार विकसित अवस्था में था, लेकिन भुगतान “वस्तु-विनिमय प्रणाली” द्वारा होता था|
15. इस सभ्यता के लोगों ने स्वतः ही वजन और माप प्रणाली विकसित की थी, जो 16 के अनुपात में थी|
16. शवों को दफनाने या जलाने का काम उत्तर-दक्षिण दिशा में किया जाता था|
17. हड़प्पा संस्कृति की सबसे कलात्मक कृति “शैलखड़ी की मुहरें” हैं| हड़प्पा कालीन लिपि चित्रात्मक थी लेकिन अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है| इस लिपि में पहली पंक्ति दाएं से बाएं ओर और दूसरी पंक्ति बाएं से दाएं ओर लिखी जाती थी| इस शैली को सर्पलेखन (Boustrophedon) कहा जाता है।
18. सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई से “स्वस्तिक” के निशान भी मिले हैं|
19. मूर्तियों के माध्यम से पता चलता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के दौरान देवी माँ (मातृदेवी या शक्ति) की पूजा होती थी| इसके अलावा “योनि” (महिला यौन अंग) के पूजा के सबूत भी मिले हैं|
20. इस काल के प्रमुख पुरुष देवता “पशुपति महादेव” अर्थात पशुओं के भगवान (आद्य-शिव) थे| जिनकी आकृति खुदाई से प्राप्त एक मुहर पर मिली है| इस आकृति में एक पुरुष योगमुद्रा में बैठे हुए हैं एवं चार जानवर (हाथी, बाघ, गैंडा और भैंस) से घिरे हुए हैं| इसके अलावा उनके पैरों के पास दो हिरण खड़े हैं| सिन्धु घाटी सभ्यता के दौरान “शिवलिंग” की पूजा भी व्यापक रूप से होती थी|
21. इस काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय “कताई”, “बुनाई”, “नाव बनाना”, “सोने के आभूषण बनाना”, “मिट्टी के बर्तन बनाना” और “मुहरें बनाना” था|
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#खिलजी_वंश
खिलजी द्वारा सत्ता स्थापित करने को क्रांति कहा जाता है। हलांकि इतिहासकारों में इस बात को लेकर मतभेद है कि खिलजी तुर्क थे या नही। खिलजी क्रांति इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह राज्य जातीय उच्चता या खलीफा की स्वीकृत पर आधारित नही थी, बल्कि शक्ति के बल पर आधारित थी। जलालुद्दीन ख़िलजी ने ख़िलजी वंश की स्थापना की थी। जलालुद्दीन ख़िलजी ने ग़ुलाम वंश के अंतिम सुल्तान की हत्या करके ख़िलजियों को दिल्ली का सुल्तान बनाया। ख़िलजी वंश ने 1290 से 1320 ई. तक राज्य किया। दिल्ली के ख़िलजी सुल्तानों में अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316 ई.) सबसे प्रसिद्ध और योग्य शासक था।
#इस_वंश_के_शासक_निम्नलिखित_थे : –
▪️जलालुद्दीन खिलजी (1290 – 1296)
▪️अलाउद्दीन खिलजी (1296 – 1316)
▪️शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी (1316)
▪️कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी (1316 – 1320)
▪️नासिरुद्दीन खुसरवशाह (1320)
#जलालुद्दीन_फ़िरोज_ख़िलजी –(1290 – 1296)
दिल्ली सल्तनत में ‘ख़िलजी वंश (Khilji Dynasty)’ का संस्थापक जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी (1290-1296 ई.) था।
🔹प्रारम्भिक जीवन
▪️सेनिक के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया।
▪️योग्यता के बल पर उन्नति करता हुआ जलालुद्दीन सेनानायक एवं सूबेदार बन गया था।
▪️केकुबाद के सुल्तान बनने के बाद वह आरिजे ममालिक बन गया एवं शाइस्ता खां की उपाधि धारण करने लगा था।
🔹राज्यारोहण
▪️तत्कालीन शासक केकुबाद एवं केमुर्स का हत्या कर 1290 ई. किलखूरी में स्वयं को सुल्तान घोषित किया। ▪️जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 70 वर्ष की उम्र में 13 जून 1290 ई. को दिल्ली की राज गद्दी ग्रहण की।
🔹राजधानी
▪️जलालुद्दीन खिलजी का राज्याभिषेक कैकुबाद द्वारा बनबाये गये किलोखरी के महल में हुआ इसने अपनी राजधानी किलोखरी को बनाया।
🔹प्रमुख घटनाएँ
▪️जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था, जिसने अपने विचारों को स्पष्ट रुप से सामने रखा कि राज्य का आधार प्रजा का समर्थन होना चाहिए खिलजी की नीति दूसरों को प्रसन्न रखना थी।
▪️जलालुद्दीन खिलजी ने सीदी मौला जो ईरान से आया हुआ फकीर था इसने उसके खिलाफ षड्यंत्र रचा और उसे हाथी पैरों के नीचे कुचलबा दिया।
▪️फिरोज खिलजी ने अपनी पुत्री की शादी उलूग खाँ से कर दी तथा नवीन मुसलमानो के रहने के लिए मुगलपुर नामक बस्ती बसाई।
▪️जलालुद्दीन के काल में ही मुसलमानों का दक्षिण भारत (देवगिरी) अलाउद्दीन के नेतृत्व में आक्रमण हुआ।
🔹प्रमुख कवि
▪️जलालुद्दीन के दरबार में अमीर खुसरो तथा हसन देहलवी जैसे प्रख्यात व्यक्ति रहते थे।
🔹मृत्यु
▪️जलालुद्दीन ख़िलजी की हत्या के षड़यंत्र में अलाउद्दीन ख़िलजी ने अपने भाई अलमास वेग की सहायता ली, जिसे बाद में ‘उलूग ख़ाँ’ की उपाधि से विभूषित किया गया। इस प्रकार अलाउद्दीन ख़िलजी ने उदार चाचा की हत्या कर दिल्ली के तख्त पर 22 अक्टूबर 1296 को बलबन के लाल महल में अपना राज्याभिषेक करवाया।
#अलाउद्दीन_खिलजी – (1296 – 1316 ई.)
अलाउद्दीन खिलजी का जन्म जुना मुहम्मद खिलजी के नाम से हुआ था। वे खिलजी साम्राज्य के दुसरे शासक थे जिन्होंने 1296 से 1316 तक शासन किया था। उस समय खिलजी साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली शासक अलाउद्दीन खिलजी ही थे। अपने साम्राज्य में उन्होंने खुले में मदिरा के सेवन करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
🔹राज्याभिषेक –
▪️उसने अपने चाचा को छल से मारकर 19 जुलाई 1296 ई. में स्वयं को सुल्तान घोषित किया।
12 अक्तूबर 1296 ई. को विधिवत राज्याभिषेक हुआ।
🔹प्रमुख घटनाएँ
▪️अपनी प्रारम्भिक सफलताओं से प्रोत्साहित होकर अलाउद्दीन ने ‘सिकन्दर द्वितीय’ (सानी) की उपाधि ग्रहण कर इसका उल्लेख अपने सिक्कों पर करवाया।
▪️उसने विश्व-विजय एवं एक नवीन धर्म को स्थापित करने के अपने विचार को अपने मित्र एवं दिल्ली के कोतवाल ‘अलाउल मुल्क’ के समझाने पर त्याग दिया।
▪️वे पहले मुस्लिम शासक थे, जिन्होंने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फैलाया था, और जीत हासिल की थी।
अलाउद्दीन खुद को “दूसरा एलेग्जेंडर” कहते थे।
▪️अपने साम्राज्य में उन्होंने खुले में मदिरा के सेवन करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
▪️1297 से 1305 ई. में खिलजी वंश ने सफलतापूर्वक कई मंगोल हमलों को नाकाम किया, लेकिन 1299 ईस्वी में जफर खान नामक एक समर्पित सेनानायक को खो दिया।
▪️कहा जाता है की चित्तोड़ की रानी पद्मिनी को पाने के लिए उन्होंने 1303 में चित्तोड़ पर आक्रमण किया था। ▪️इस युद्ध का लेखक मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में 1540 में अपनी कविता पद्मावत में उल्लेख किया है।
▪️अल्लाउद्दीन ने 1305 में मालवा और 1308 में राजस्थान के सिवाना किले सहित उत्तर में कई साम्राज्यों पर कब्ज़ा किया।
▪️प्रायद्वीपीय भारत गवाह रहा मदुरै के विनाश का, 1310 ई. में द्वारा समुद्र के होयसला साम्राज्य और 1311 ई. में पंड्या साम्राज्य पर आक्रमण का और साथ ही साथ 1313 ई. में दिल्ली के लिए देवगिरी अनुबंध का।
▪️अलाउद्दीन ख़िलजी के राज्य में कुछ विद्रोह भी हुए, जिनमें 1299 ई. में गुजरात के सफल अभियान में प्राप्त धन के बंटवारे को लेकर ‘नवी मुसलमानों’ द्वारा किये गये विद्रोह का दमन नुसरत ख़ाँ ने किया।
🔹निर्माण कार्य
▪️स्थापत्य कला के क्षेत्र में अलाउद्दीन ख़िलजी ने वृत्ताकार ‘अलाई दरवाजा’ अथवा ‘कुश्क-ए-शिकार’ का निर्माण करवाया। उसके द्वारा बनाया गया ‘अलाई दरवाजा’ प्रारम्भिक तुर्की कला का एक श्रेष्ठ नमूना माना जाता है।
🔹मृत्यु
▪️अलाउद्दीन खिलजी के जीवन के अंतिम दिन काफी दर्दभरे थे। उनकी अक्षमता का फायदा लेते हुए कमांडर मलिक काफूर ने पूरा साम्राज्य हथिया लिया। उस समय वे निराश और कमजोर हो गए थे और 1316 ई. में ही उनकी मृत्यु हो गयी थी।
#शिहाबुद्दीन_उमर_ख़िलजी- (1316 ई.)
शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी, अलाउद्दीन ख़िलजी का पुत्र था। मलिक काफ़ूर के कहने पर अलाउद्दीन ने अपने पुत्र ‘ख़िज़्र ख़ाँ’ को उत्तराधिकारी न बना कर अपने 5-6 वर्षीय पुत्र शिहाबुद्दीन उमर को उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद काफ़ूर ने शिहाबद्दीन को सुल्तान बना कर सारा अधिकार अपने हाथों में सुरक्षित कर लिया। लगभग 35 दिन के सत्ता उपभोग के बाद काफ़ूर की हत्या अलाउद्दीन के तीसरे पुत्र मुबारक ख़िलजी ने करवा दी। काफ़ूर की हत्या के बाद वह स्वयं सुल्तान का संरक्षक बन गया और कालान्तर में उसने शिहाबुद्दीन को अंधा करवा कर क़ैद करवा दिया।
#कुतुबुद्दीन_मुबारक_ख़िलजी – (1316 – 1320 ई.)
क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी (1316-1320 ई.) ख़िलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी का तृतीय पुत्र था। अलाउद्दीन के प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक मलिक काफ़ूर इसका संरक्षक था। कुछ समय बाद मलिक काफ़ूर स्वयं सुल्तान बनने का सपना देखने लगा और उसने षड़यंत्र रचकर मुबारक ख़िलजी की हत्या करने की योजना बनाई। किंतु मलिक काफ़ूर के षड़यंत्रों से बच निकलने के बाद मुबारक ख़िलजी ने चार वर्ष तक सफलतापूर्वक राज्य किया। इसके शासनकाल में राज्य में प्राय: शांति व्याप्त रही।
🔹सुधार कार्य
▪️उसने राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया।
▪️अपने सैनिकों को छः माह का अग्रिम वेतन देना प्रारम्भ किया।
▪️विद्धानों एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की छीनी गयीं सभी जागीरें उन्हें वापस कर दीं।
▪️अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर दण्ड व्यवस्था एवं ‘बाज़ार नियंत्रण प्रणाली’ आदि को भी समाप्त कर दिया और जो कठोर क़ानून बनाये गए थे, उन्हें समाप्त करवा दिया।
🔹उपाधियाँ
▪️क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने ‘अल इमाम’, ‘उल इमाम’ एवं ‘ख़िलाफ़त-उल्लाह’ की उपाधियाँ धारण की थीं।
▪️उसने ख़िलाफ़त के प्रति भक्ति को हटाकर अपने को ‘इस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान’ और ‘स्वर्ण तथा पृथ्वी के अधिपति का ख़लीफ़ा’ घोषित किया।
🔹मृत्यु
▪️देवगिरि तथा गुजरात की विजय से मुबारक ख़िलजी का दिमाग फिर गया और वह भोग-विलास में लिप्त रहने लगा। वह नग्न स्त्री-पुरुषों की संगत को पसन्द करता था। उसके प्रधानमंत्री ख़ुसरों ख़ाँ ने 1320 ई. में उसकी हत्या करवा दी।
#नासिरुद्दीन_खुसरवशाह – (1320 ई.)
नासिरुद्दीन खुसरवशाह हिन्दू से मुसलमान बना हुआ था और 15 अप्रैल से 27 अप्रैल, 1320 ई. तक दिल्ली सल्तनत में खिलज़ी वंश का अंतिम शासक था। इसकी हत्या कर के दिल्ली सल्तनत में ख़िलजी का अंत हो गया।
इस वंश के बाद दिल्ली सल्तनत में तुगलक़ वंश का उदय हुआ।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#डच_उपनिवेश_की_स्थापना
हॉलैंड (वर्त्तमान नीदरलैंड) के निवासी डच कहलाते है। पुर्तगालियो के बाद डचों ने भारत में अपने कदम रखे। ऐतिहासिक दृष्टि से डच समुद्री व्यापार में निपुण थे। 1602 ईमें नीदरलैंड की यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गयी और डच सरकार द्वारा उसे भारत सहित ईस्ट इंडिया के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान की गयी।
#डचों_का_उत्थान
1605 ई में डचों ने आंध्र प्रदेश के मुसलीपत्तनम में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की। बाद में उन्होंने भारत के अन्य भागों में भी अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित किये। डच सूरत और डच बंगाल की स्थापना क्रमशः 1616 और 1627 में की गयी थी। डचों ने 1656 ई में पुर्तगालियों से सीलोन जीत लिया और 1671 ई में पुर्तगालियों के मालाबार तट पर स्थित किलों पर भी कब्ज़ा कर लिया। पुर्तगालियों से नागापट्टिनम जीतने के बाद डच काफी सक्षम गए और दक्षिण भारत में अपने पैर जमा लिए। उन्होंने काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक लाभ कमाया। कपास, अफीम, नील, रेशम और चावल वे प्रमुख भारतीय वस्तुएं है जिनका व्यापार डचों द्वारा किया जाता था।
#डच_सिक्के
डचों ने भारत में रहने के दौरान सिक्कों की ढलाई पर भी हाथ आजमाए। जैसे जैसे उनके व्यापार में वृद्धि होती गयी उन्होंने कोचीन, मूसलीपत्तनम, नागापट्टिनम , पोंडिचेरी और पुलीकट में टकसालों की स्थापना की। पुलीकट स्थित टकसाल से भगवान वेंकटेश्वर (भगवान विष्णु) के चित्र वाले सोने के पैगोडा सिक्के जारी किये गए। डचों द्वारा जारी किये गए सभी सिक्के स्थानीय सिक्का ढलाई के नमूनों पर आधारित थे।
#डच_शक्ति_का_पतन
भारतीय उप-महाद्वीप पर डचों की उपस्थिति 1605 ई से लेकर 1825 ई तक रही थी। पूर्व के साथ व्यापार में ब्रिटिश शक्ति के उदय ने डचों के व्यापारिक हितों के प्रति एक चुनौती प्रस्तुत की जिसके परिणामस्वरूप दोनों के मध्य खूनी संघर्ष हुए। इन संघर्षों में स्पष्ट रूप से ब्रिटिशों की विजय हुई क्योकि उनके पास अधिक संसाधन थे। अम्बोयना में डचों द्वारा कुछ ब्रिटिश व्यापारियों की नृशंस हत्या ने परिस्थितियों को और बिगाड़ दिया। ब्रिटिशों द्वारा एक के बाद एक लगभग सभी डच क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले लिया गया।
#मालाबार_क्षेत्र_में_डच_शक्ति_की_घोर_पराजय
डच-अंग्रेज संघर्ष के मध्य त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा द्वारा 1741 ई में कोलाचेल के युद्ध में डच ईस्ट इंडिया कंपनी को पराजित करने के साथ ही मालाबार क्षेत्र में डच शक्ति का पूर्णतः पतन हो गया।
#ब्रिटिशों_के_साथ_संधियाँ_और_संघर्ष
हालाँकि 1814 ई की एंग्लो-डच संधि के तहत डच कोरोमंडल और डच बंगाल पुनः डच शासन के अधीन आ गए थे लेकिन 1824 ई में हस्ताक्षरित एंग्लो-डच संधि के प्रावधानों के तहत फिर से ब्रिटिश शासन के अधीन आ गए क्योकि इस संधि के तहत डचों के लिये 1 मार्च 1825 ई तक सारी संपत्ति और क्षेत्रों को हस्तांतरित करना बाध्यकारी बना दिया गया। 1825 ई के मध्य तक डच भारत में अपने सभी व्यापारिक क्षेत्रों से वंचित हो चुके थे। एक समझौते के तहत ब्रिटिशों ने आपसी अदला-बदली के तरीके के आधार पर खुद को इंडोनेशिया के साथ व्यापार से अलग कर लिया और बदले में डचों ने भारत के साथ अपना व्यापार बंद कर दिया।
#भारत_में_डेनिश_औपनिवेशिक_क्षेत्र
डेनमार्क से सम्बंधित किसी भी व्यक्ति या वस्तु को डेनिश कहा जाता है। डेनमार्क द्वारा लगभग 225 वर्षों तक भारत में अपने उपनिवेश बनाये रखे गए। भारत में स्थापित डेनिश बस्तियों मे त्रंकोबार (तमिलनाडु) ,सेरामपुर (पश्चिम बंगाल) और निकोबार द्वीप शामिल थे।
#डेनिश_व्यापारिक_एकाधिकार_की_स्थापना
एक डच साहसी मर्सलिस दे बोशौवेर ने भारतीय उप-महाद्वीप में डेनिश हस्तक्षेप के लिए प्रेरणा प्रदान की। वह सहयोगी दलों से सभी तरह के व्यापार पर एकाधिकार के वादे के साथ पुर्तगालियों के विरुद्ध सैन्य सहयोग चाहता था। उसकी अपील ने डेनमार्क-नॉर्वे के राजा क्रिस्चियन चतुर्थ को प्रभावित किया जिसने बाद में 1616 ई में एक चार्टर जारी किया जिसके तहत डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी को डेनमार्क और एशिया के मध्य होने वाले व्यापार पर बारह वर्षों के लिए एकाधिकार प्रदान कर दिया गया।
#डेनिश_चार्टर्ड_कंपनियां
दो डेनिश चार्टर्ड कंपनियां थी। प्रथम कंपनी डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी थी ,जिसका कार्यकाल 1616 ई से लेकर 1650 ई तक था। डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी और स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी मिलकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से ज्यादा चाय का आयात करती थीं और उसमे से अधिकांश को अत्यधिक लाभ पर अवैध तरीके से ब्रिटेन में बेचता था। इस कंपनी का 1650 ई में विलय कर दिया गया। दूसरी कंपनी 1670 ई से लेकर 1729 ई तक सक्रिय रही । 1730 ई में एशियाटिक कंपनी के रूप में इसकी पुनः स्थापना की गयी। 1732 ई में इसे शाही लाइसेंस प्रदान कर अगले चालीस वर्षों के लिए आशा अंतरीप के पूर्व से होने वाले डेनिश व्यापार पर एकाधिकार प्रदान कर दिया गया। 1750 ई तक भारत से 27 जहाज भेजे गए जिनमे से 22 जहाज सफलतापूर्वक यात्रा पूरी कर कोपेनहेगेन पहुचे। लेकिन 1722 ई में कंपनी ने अपना एकाधिकार खो दिया।
#सेरामपुर_मिशन_प्रेस
यहाँ यह उल्लेख करना जरुरी है कि सेरामपुर मिशन प्रेस की स्थापना ,जोकि एक ऐतिहासिक एवं युगांतरकारी कदम था, सेरामपुर में डेनिश मिशनरी द्वारा 1799 ई में की गयी थी। 1801 ई से लेकर 1832 ई तक सेरामपुर मिशन प्रेस ने 40 विभिन्न भाषाओं में किताबों की 212,000 प्रतियाँ छापीं।
#भारत_में_डेनिश_बस्तियों_की_समाप्ति
नेपोलियन युद्ध (1803-1815 ई।) के दौरान ब्रिटिशों ने डेनिश जहाजों पर हमला कर डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत के साथ होने वाले व्यापर को नष्ट कर दिया और अंततः डेनिश बस्तियों पर कब्ज़ा कर उन्हें ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना लिया। अंतिम डच बस्ती सेरामपुर को 1845 ई में डेनमार्क द्वारा ब्रिटेन को हस्तांतरित कर दिया गया।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #मध्यकालीन_भारत_का_इतिहास :
#मामलूक_या_गुलाम_वंश
कुतुबुदीन ऐबक, मुहम्मद गौरी का गुलाम था। उसने भारत में जिस राजवंश की स्थापना की उसे गुलाम वंश (Slave Dynasty) कहते है। इस वंश ने 1206 से 1290 ई. तक 84 साल तक राज किया। इस वंश के शासक या संस्थापक ग़ुलाम (दास) थे न कि राजा। इस लिए इसे राजवंश की बजाय सिर्फ़ वंश कहा जाता है।
#इस_वंश_के_शासक_निम्नलिखित_थे : –
▪️कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 – 1210)
▪️आरामशाह (1210)
▪️इल्तुतमिश (1210 – 1236)
▪️रूकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह (1236)
▪️रजिया सुल्तन (1236 – 1240)
▪️मुईज़ुद्दीन बहरामशाह (1240 – 1242)
▪️अलाऊद्दीन मसूदशाह (1242 – 1246)
▪️नासिरूद्दीन महमूद (1246 – 1266)
▪️गयासुद्दीन बलबन (1266 – 1286)
▪️कैकुबाद (1286 – 1290)
▪️शमशुद्दीन क्यूम़र्श (1290)
#कुतुबुद्दीन_ऐबक –(1206 – 1210 ई.)
कुतुबुदीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था। इसी को ही दिल्ली गुलाम वंश का संस्थापक कहा जाता है, कुतुबुदीन ऐबक मुहमंद गौरी का गुलाम था। जब मुहमंद गौरी ने भारत में लूटपाट कर के वापिस अफगान गया तो उसने भारत में अपने दासों को नियुक्त किया जो भारत में उसके नाम से शासन करे।
🔹शासनकाल – 1206 – 1210 ई.
🔹राज्यारोहण – मुहमंद गौरी की मृत्यु के बाद 25 जून 1206 ई. को कुतुबुदीन ऐबक का अनोपचारिक राज्यारोहण लाहोर में हुआ। उसने लाहोर को अपनी राजधानी बनाया था।
🔹गुरु – ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काका।
🔹प्रमुख_योगदान
▪️दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।
▪️दानवीर और उदार होने के कारण ‘लाखबख्श’ के नाम से भी जाना जाता था।
▪️साहित्य और कला का संरक्षक था।
▪️फर्रुखमुद्दार एवं हसन निजामी उसके दरवार के प्रसिद्ध विद्वान थे।
🔹निर्माण_कार्य
▪️दो प्रसिद्ध मस्जिद दिल्ली का कुबत-उल-इस्लाम और अजमेर का ढाई दिन का झोंपड़ा बनवाया।
▪️अपने गुरु ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काका के स्मृति में कुतुबमीनार का एक मंजिल का निर्माण कराया (इसके मृत्यु के कारण यह अधुरा ही बन पाया)। इसे इल्तुतमिश ने पूरा किया था।
🔹दामाद – इल्तुतमिश ।
🔹पुत्र – आरामशाह (कई इतिहासकार इसे कुतुबुदीन ऐबक का पुत्र नहीं मानते है)।
🔹मृत्यु – नवम्बर 1210 ई. में लाहोर में चोगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण मृत्यु हो गई।
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#आरामशाह – (1210 ई.)
कुतुबुदीन ऐबक के आकस्मिक मृत्यु के बाद तुर्की सरदारों ने उनके पुत्र आरामशाह को 1210 ई. में लाहौर ने सुल्तान बना दिया। उसी बीच कुबाचा और खिलजियों के आक्रमण को आरामशाह नियंत्रण नही कर सका। जिसके फलस्वरूप बदायूं के गवर्नर, इल्तुतमिश को, जो कुतुबुदीन ऐबक का दामाद था तुर्की सरदारों ने सुल्तान बनाना चाहा, जिसका विरोध आरामशाह ने किया। इल्तुतमिश ने आरामशाह को मारकर सत्ता पर अधिकार कर लिया।
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#इल्तुतमिश –(1210 – 1236 ई.)
इल्तुतमिश तुर्किस्तान की इल्बरी काबिले का था। इसका असली नाम ‘अलतमश’ था। खोखरों के विरुद्ध इल्तुतमिश की कार्य कुशलता से प्रभावित होकर मुहम्मद ग़ोरी ने उसे ‘अमीरूल उमरा’ नामक महत्त्वपूर्ण पद दिया था। इसने 1210 ई. से 1236 ई. तक शासन किया। राज्याभिषेक समय से ही अनेक तुर्क अमीरउसका विरोध कर रहे थे।
सुल्तान का पद प्राप्त करने के बाद इल्तुतमिश को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके अन्तर्गत इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम ‘कुल्बी’ अर्थात कुतुबद्दीन ऐबक के समय सरदार तथा ‘मुइज्जी’ अर्थात् मुहम्मद ग़ोरी के समय के सरदारों के विद्रोह का दमन किया। इल्तुमिश ने इन विद्रोही सरदारों पर विश्वास न करते हुए अपने 40 ग़ुलाम सरदारों का एक गुट या संगठन बनाया, जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहालगानी’ का नाम दिया गया। इस संगठन को ‘चरगान’ भी कहा जाता है।
🔹शासनकाल – 1210 – 1236 ई.
🔹राज्यारोहण – ऐबक ने सेनापति अमीद अली इस्माइल के अनुमति से आरामशाह को मारकर 1210 ई. में दिल्ली में ऐबक वंश की जगह इलबरी वंश की स्थापना की।
🔹गुरु – ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काका।
🔹पुत्री – रजिया सुल्तान।
🔹प्रमुख_योगदान
▪️लाहौर से अपनी राजधानी को दिल्ली ले आया।
▪️सल्तनत के तीन महत्वपूर्ण अंग इक्त्ता, सेना और मुद्रा प्रणाली का गठन किया।
▪️इक्ता – धन के स्थान पर वेतन के रूप में भूमि प्रदान करना।
▪️नए सिक्के चाँदी का टंका तथा तांबे के सिक्के जातल का प्रचलन इल्तुतमिश ने ही किया।
▪️इल्तुमिश ने विद्रोही सरदारों पर विश्वास न करते हुए अपने 40 ग़ुलाम सरदारों का एक गुट या संगठन बनाया, जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहालगानी’ का नाम दिया गया। इस संगठन को ‘चरगान’ भी कहा जाता है।
🔹निर्माण_कार्य
▪️ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काका की स्मृति में 1231 – 32 ई. में कुतुबमीनार को पूरा बनवाया था।
▪️भारत में सम्भवतः पहला मक़बरा निर्मित करवाने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जाता है। इल्तुतमिश का मक़बरा दिल्ली में स्थित है, जो एक कक्षीय मक़बरा है।
▪️इल्तुतमिश ने बदायूँ की जामा मस्जिद एवं नागौर में अतारकिन के दरवाज़ा का निर्माण करवाया।
▪️अजमेर की मस्जिद’ का निर्माण इल्तुतमिश ने ही करवाया था।
▪️उसने 1230 में महरौली के हौज-ए-शम्शी (शम्सी ईदगाह) जलाशय का निर्माण किया ।
🔹विद्वानों_का_संरक्षण
▪️तत्कालीन विद्वान दरबारी लेखक मिनहाज उस सिराज थे, जिसने प्रसिध्द ग्रंथ तबकाते-नासिरी की रचना की एवं मलिक ताजूद्दीन को संरक्षण प्रदान किया।
🔹महत्वपूर्ण_युद्ध
▪️इल्तुतमिश ने 1226 ई. में बंगाल पर विजय पाकर बंगाल को दिल्ली सल्तनत का इक्ता (सूबा) बनाया।
▪️इल्तुतमिश ने 1226 ई. में रणथम्भौर जीता तथा परमारों की राजधानी मंदौर पर अधिकार कर लिया।
▪️इल्तुतमिश के काल मे 1221 ई. मंगोलों ने चंगेज खाँ के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया।
🔹मृत्यु
▪️खोखरो के अभियान को दबाने के दौरान 1236 ई. में मृत्यु हो गई।
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#रूकुनुद्दीन_फ़ीरोज़शाह – (1236 ई.)
रूकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह दिल्ली सल्तनत में ग़ुलाम वंश का शासक था। सन् 1236 में इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद वो एक साल से भी कम समय के लिए सत्तासीन रहा। यह इल्तुतमिश का सबसे छोटा बेटा था।
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#रजिया_सुल्ताना – (1236 – 1240 ई.)
रज़िया अल-दिन, शाही नाम “जलॉलात उद-दिन रज़ियॉ” जिसे सामान्यतः “रज़िया सुल्तान” या “रज़िया सुल्ताना” के नाम से जाना जाता है, दिल्ली सल्तनत की सुल्तान थी। वह इल्तुतमिश की पुत्री थी। रज़िया सुल्ताना मुस्लिम एवं तुर्की इतिहास कि पहली महिला शासक थीं।
🔹शासनकाल – 1236 – 1240 ई.
🔹राज्यारोहण – जनता के समर्थन से नवंबर 1236 ई. में राज्यारोहण किया गया।
▪️रजिया सुलतान दिल्ली सल्तनत की पहली और अंतिम महिला सुल्तान थी।
▪️रजिया पुरुषों की तरह चोगा (काबा) कुलाह (टोपी) पहनकर राजदरबार में शासन करती थी।
▪️रज़िया अपनी राजनीतिक समझदारी और नीतियों से सेना तथा जनसाधारण का ध्यान रखती थी।
🔹मृत्यु
▪️रजिया ने लाहौर का विद्रोह सफलतापूर्वक दबा दिया। मगर जब भटिंडा के प्रशासन अल्तुनिया से युद्ध कर वह याकृत के साथ दिल्ली आ रही थी, तो 14 अक्तुबर, 1240 को मार्ग में उसका वध कर दिया गया।
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#मुईज़ुद्दीन_बहरामशाह –(1240 – 1242 ई.)
1240 ई. में रजिया सुल्तान के हत्या कर उसके भाई मुईज़ुद्दीन बहरामशाह (1240 ई.) ने सल्तनत पर अधिकार कर लिया। इसे तुर्की अमीरों ने नायब-ए-मुमलकत (संरक्षक) का पद बनाया था। वह नाममात्र का शासक था, वास्तव में चालीसा ही शासन संभाला रहे थे। तुर्क अमीरों ने 1242 ई. में बहरामशाह की हत्या कर दी।
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#अलाऊद्दीन_मसूदशाह – (1242 – 1246 ई.)
अलाउद्दीन मसूद शाह तुर्की शासक था, जो दिल्ली सल्तनत का सातवां सुल्तान बना। यह भी गुलाम वंश से था। वह रुकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह का पौत्र तथा मुइज़ुद्दीन बहरामशाह का पुत्र था। उसके समय में नाइब का पद ग़ैर तुर्की सरदारों के दल के नेता मलिक कुतुबुद्दीन हसन को मिला क्योंकि अन्य पदों पर तुर्की सरदारों के गुट के लोगों का प्रभुत्व था, इसलिए नाइब के पद का कोई विशेष महत्त्व नहीं रह गया था। शासन का वास्तविक अधिकार वज़ीर मुहाजबुद्दीन के पास था, जो जाति से ताजिक (ग़ैर तुर्क) था। तुर्की सरदारों के विरोध के परिणामस्वरूप यह पद नजुमुद्दीन अबू बक्र को प्राप्त हुआ। इसी के समय में बलबन को हाँसी का अक्ता प्राप्त हुआ। ‘अमीरे हाजिब’ का पद इल्तुतमिश के ‘चालीस तुर्कों के दल’ के सदस्य ग़यासुद्दीन बलबन को प्राप्त हुआ। 1245 में मंगोलों ने उच्छ पर अधिकार कर लिया, परन्तु बलबन ने मंगोलों को उच्छ से खदेड़ दिया, इससे बलबन की प्रतिष्ठा बढ़ गयी। अमीरे हाजिब के पद पर बने रह कर बलबन ने शासन का वास्तविक अधिकार अपने हाथ में ले लिया। अन्ततः बलबन ने नसीरूद्दीन महमूद एवं उसकी माँ से मिलकर अलाउद्दीन मसूद को सिंहासन से हटाने का षडयंत्र रचा। जून, 1246 में उसे इसमें सफलता मिली। बलबन ने अलाउद्दीन मसूद के स्थान पर इल्तुतमिश के प्रपौत्र नसीरूद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया।
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#नासिरूद्दीन_महमूद – (1246 – 1266 ई.)
नासिरूद्दीन महमूद तुर्की शासक था, जो दिल्ली सल्तनत का आठवां सुल्तान बना। यह भी गुलाम वंश से था। बलबन ने षड़यंत्र के द्वारा 1246 ई. में सुल्तान मसूद शाह को हटाकर नाशिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया। बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नाशिरुद्दीन महमूद से करवाया था। नसिरुद्दीन मधुर एवं धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था। शासक के रूप में नसिरुद्दीन में तत्कालीन पेचीदी परिस्थिति का सामना करने लायक आवश्यक गुणों का काफी अभाव था। नसिरुद्दीन की 12 फरवरी 1266 ई. को मृत्यु हो गई। उसके बाद उसका कोई भी पुरुष उत्तराधिकारी नहीं बचा। इस प्रकार इल्तुतमिश के वंश का अन्त हो गया। तब बलबन, जिसकी योग्यता सिद्ध हो चुकी थी तथा जो स्वर्गीय सुल्तान द्वारा उसका उत्तराधिकारी मनोनीत किया गया,कहा जाता है कि सरदारों एवं पदाधिकारियों की मौन स्वीकृति से सिंहासन पर बैठा।
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#गयासुद्दीन_बलबन – (1266 – 1286 ई.)
गयासुद्दीन बलबन इसका वास्तविक नाम बहाउदीन था। उसने सन् 1266 से 1286 तक राज्य किया। गयासुद्दीन बलबन, जाति से इलबारी तुर्क था। बाल्यकाल में ही मंगोलों ने उसे पकड़कर बगदाद के बाजार में दास के रूप में बेच दिया। ख्वाजा जमालुद्दीन अपने अन्य दासों के साथ उसे 1232 ई. में दिल्ली ले आया। इन सबको सुल्तान इल्तुतमिश ने खरीद लिया। इस प्रकार बलबन इल्तुतमिश के चेहलागान नामक तुर्की दासों के प्रसिद्ध दल का था।
🔹उपाधि – जिल्ला-इलाही।
🔹कार्य
▪️सुल्तान के पद पर बैठते ही चालीसा का परभाव समाप्त कर दिया।
▪️अपनी स्थिति को मजबूत करने के किये इल्तुतमिश के परिवार के शेष लोगो को मरवा दिया।
▪️बंगाल से सूबेदार तुगरिल खां ने 1276 ई. में विद्रोह किया, जिससे क्रुद्ध होकर मरवा दिया।
🔹बलवत का सिद्धांत
▪️बलबन सुल्तान को पृथ्वी पर अल्लाह का प्रतिनिधित्व मानता था।
▪️उसेक अनुसार सुल्तान जिल्ले अल्लाह है अर्थात ईश्वर की परछाई है।
🔹बलवत के द्वारा प्रचलित नियम
▪️सामान्य लोगो से सुल्तान नही मिल सकता था।
▪️सिक्को पर अपना नाम खुदवाया तथा खुतबा में खलीफा का नाम पढ़वाया था।
▪️उच्चवंशाय लोगों को पदाधिकारी बनाया जाता था।
▪️वह एकांत में रहता था, हर्ष या शोक से विचलित नही होता था। शराब पीना एवं मनोरंजन कार्य बंद कर दिए थे।
▪️उसने राजदरबार में सिजदा एवं पेबोस की प्रथा प्रारम्भ की।
▪️कोई भी होठो पर मुस्कुराहट नही ला सकता था।
🔹समकालीन कवि
▪️अमीर खुसरो (तुतिए-हिन्द)
▪️अमीर हसन
🔹मृत्यु
▪️1286 ई. में (मंगोली संघर्ष में अपने जेष्ठ पुत्र के मारे जाने के शोक में)
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#कैकुबाद – (1286 – 1290 ई.)
बलबन ने अपनी मृत्यु के पूर्व अपने जेष्ठ पुत्र के पुत्र अर्थात पौत्र कैखुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैखुसरो को मुल्तान की सूबेदारी देकर कैकुबाद को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। कैकुबाद अथवा ‘कैकोबाद’ (1286-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में दिल्ली की गद्दी पर बैठाया गया था। कैकुबाद ने ग़ैर तुर्क सरदार जलालुद्दीन ख़िलजी को अपना सेनापति बनाया, जिसका तुर्क सरदारों पर बुरा प्रभाव पड़ा। तुर्क सरदार बदला लेने की बात को सोच ही रहे थे कि, कैकुबाद को लकवा मार गया। लकवे का रोगी बन जाने के कारण कैकुबाद प्रशासन के कार्यों में अक्षम हो गया।
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#शमशुद्दीन_क्यूम़र्श – (1290 ई.)
शमशुद्दीन क्यूम़र्श भारत में गुलाम वंश का अतिम शासक था। कैकुबाद को लकवा मार जाने के कारण वह प्रशासन के कार्यों में पूरी तरह से अक्षम हो चुका था। प्रशासन के कार्यों में उसे अक्षम देखकर तुर्क सरदारों ने उसके तीन वर्षीय पुत्र शम्सुद्दीन क्यूम़र्श को सुल्तान घोषित कर दिया। कालान्तर में जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी ने उचित अवसर देखकर शम्सुद्दीन का वध कर दिया। शम्सुद्दीन की हत्या के बाद जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी ने दिल्ली के तख्त पर स्वंय अधिकार कर लिया। इस प्रकार से बाद में दिल्ली की राजगद्दी पर ख़िलजी वंश की स्थापना हुई।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#पुर्तगाली_उपनिवेश_की_स्थापना
पुर्तगाली पहले यूरोपीय थे जिन्होंने भारत तक सीधे समुद्री मार्ग की खोज की । 20 मई 1498 को पुर्तगाली नाविक वास्को-डी-गामा कालीकट पहुंचा, जो दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थित एक महत्वपूर्ण समुद्री बंदरगाह है। स्थानीय राजा जमोरिन ने उसका स्वागत किया और कुछ विशेषाधिकार प्रदान किये। भारत में तीन महीने रहने के बाद वास्को-डी-गामा सामान से लदे एक जहाज के साथ वापस लौट गया और उस सामान को उसने यूरोपीय बाज़ार में अपनी यात्रा की कुल लागत के साठ गुने दाम में बेचा।
1501 ई.में वास्को-डी-गामा दूसरी बार फिर भारत आया और उसने कन्नानौर में एक व्यापारिक फैक्ट्री स्थापित की। व्यापारिक संबंधों की स्थापना हो जाने के बाद भारत में कालीकट, कन्नानौर और कोचीन प्रमुख पुर्तगाली केन्द्रों के रूप में उभरे। अरब व्यापारी, पुर्तगालियो की सफलता और प्रगति से जलने लगे और इसी जलन ने स्थानीय राजा जमोरिन और पुर्तगालियो के बीच शत्रुता को जन्म दिया। यह शत्रुता इतनी बढ़ गयी कि उन दोनों के बीच सैन्य संघर्ष की स्थिति पैदा हो गयी। राजा जमोरिन को पुर्तगालियों ने हरा दिया और इसी जीत के साथ पुर्तगालियों की सैनिक सर्वोच्चता स्थापित हो गयी।
#भारत_में_पुर्तगाली_शक्ति_का_उदय
1505 ई में फ्रांसिस्को दे अल्मीडा को भारत का पहला पुर्तगाली गवर्नर बनाया गया। उसकी नीतियों को ब्लू वाटर पालिसी कहा जाता था क्योकि उनका मुख्य उद्देश्य हिन्द महासागर को नियंत्रित करना था। 1509 ई में फ्रांसिस्को दे अल्मीडा की जगह अल्बुकर्क भारत में पुर्तगाली गवर्नर बनकर आया जिसने 1510 ई.में बीजापुर के सुल्तान से गोवा को अपने कब्जे में ले लिया। उसे भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। बाद में गोवा भारत में पुर्तगाली बस्तियों का मुख्यालय बन गया। तटीय क्षेत्रों पर पकड़ और नौसेना की सर्वोच्चता ने भारत में पुर्तगालियों के स्थापित होने में काफी मदद की ।16 वीं सदी के अंत तक पुर्तगालियों ने न केवल गोवा,दमन,दीव और सालसेट पर कब्ज़ा कर लिया बल्कि भारतीय तट के सहारे विस्तृत बहुत बड़े क्षेत्र को भी अपने प्रभाव में ले लिया।
#पुर्तगाली_शक्ति_का_पतन
भारत में पुर्तगाली शक्ति अधिक समय तक टिक नहीं सकी क्योकि नए यूरोपीय व्यापारिक प्रतिद्वंदियों ने उनके सामने चुनौती पेश कर दी। विभिन्न व्यापारिक प्रतिद्वंदियों के मध्य हुए संघर्ष में पुर्तगालियों को अपने से शक्तिशाली और व्यापारिक दृष्टि से अधिक सक्षम प्रतिद्वंदी के समक्ष समर्पण करना पड़ा और धीरे धीरे वे सीमित क्षेत्रों तक सिमट कर रह गए।
#पुर्तगाली_शक्ति_के_पतन_के_मुख्य_कारण
भारत में पुर्तगाली शक्ति के पतन के प्रमुख कारणों में निम्नलिखित शामिल है-
पुर्तगाल एक देश के रूप में इतना छोटा था कि वह अपने देश से दूर स्थित व्यापारिक कॉलोनी के भार को वहन नही कर सकता था।
उनकी समुद्री डाकुओं के रूप में प्रसिद्धि ने स्थानीय शासकों के मन में उनके विरुद्ध शत्रुता का भाव पैदा कर दिया।
पुर्तगालियो की कठोर धार्मिक नीति ने उन्हें भारत के हिन्दू और मुसलमानों दोनों से दूर कर दिया।
इसके अतिरिक्त डच और ब्रिटिशो के भारत में आगमन ने भी पुर्तगालियो के पतन में योगदान दिया।
विडंबना यह है कि पुर्तगाली शक्ति, जो भारत में सबसे पहले आने वाली यूरोपीय शक्ति थी ,वही 1961 ई.में भारत से लौटने वाली अंतिम यूरोपीय शक्ति भी थी, जब भारत सरकार ने गोवा ,दमन और दीव को उनसे पुनः अपने कब्जे में ले लिया।
#भारत_को_पुर्तगालियो_की_देन
उन्होंने भारत में तंबाकू की कृषि आरंभ की।
उन्होंने भारत के पश्चिमी और पूर्वी तट पर कैथोलिक धर्म का प्रसार किया।
उन्होंने 1556 ई.में गोवा में भारत की पहली प्रिंटिग प्रेस की स्थापना की। द इंडियन मेडिसनल प्लांट्स पहला वैज्ञानिक कार्य था जिसका प्रकाशन 1563 ई.में गोवा से किया गया ।
सर्वप्रथम उन्होंने ही कार्टेज प्रणाली के माध्यम से यह बताया कि कैसे समुद्र और समुद्री व्यापार पर सर्वोच्चता स्थापित की जाए। इस प्रणाली के तहत कोई भी जहाज अगर पुर्तगाली क्षेत्रोँ से गुजरता है तो उसे पुर्तगालियों से परमिट लेना पडेगा अन्यथा उन्हें पकड़ा जा सकता है।
वे भारत और एशिया में ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले प्रथम यूरोपीय थे।
[01/12, 8:26 AM] Raj Kumar: #प्राचीन_भारत_का_इतिहास :
#ताम्रपाषाण_युग
ताम्रपाषाण युग या ताम्र पाषाण संस्कृति का आरम्भ नवपाषाण युग के बाद हुआ। ताम्रपाषाण युग या ताम्र पाषाण संस्कृति में उपकरण, औजार और हथियार के निर्माण में पत्थर के साथ ताँबें का भी प्रयोग बहुतायत में होने लगा, इसीलिए इस समय को ताम्रपाषाण युग या ताम्रपाषाणिक युग कहते हैं।
▪️नवपाषाण युग के अंत में धातुओं का प्रयोग बढ़ने लगा, सर्वप्रथम धातुओं में ताँबे का प्रयोग किया गया। तो जिस संस्कृति ने पत्थर के साथ-साथ ताँबे का भी प्रयोग किया उसी संस्कृति को ताम्रपाषाणिक कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘पत्थर और तांबे के उपयोग की अवस्था।’
▪️तकनिकी दृष्टिकोण से ताम्रपाषाण युग, हड़प्पा की कांस्यकालीन संस्कृति से पहले की है। लेकिन भारत में हड़प्पा की कांस्य संस्कृति पहले आती है और अधिकांश ताम्रपाषाण युग की संस्कृतियाँ बाद में।
▪️ताम्रपाषाण युग के लोग पशुपालन और कृषि किया करते थे। वे मुख्य अनाज गेहूँ, चावल के आलावा बाजरा, मसूर, उड़द और मूँग आदि दलहन फसलें भी उगाया करते थे।
▪️वे लोग भेड़, बकरी, गाय, भैंस और सूअर पाला करते थे। हिरन का शिकार करते थे। वह ऊँट से परिचित थे इस बात के भी साक्ष्य ऊँट के अवशेष के रूप में प्राप्त हुए हैं। सामान्यतः इस संस्कृति या युग के लोग घोड़े से परिचित नहीं थे।
▪️ताम्रपाषाण युग के लोग समुदाय बनाकर कर गांवों में रहते थे तथा देश के विशाल भागों में फैले थे जहाँ पहाड़ी जमींन और नदियाँ स्थित थीं। इतिहासकारों का मत है की ताम्रपाषाण युगीन लोग पक्की ईंटों का प्रयोग नहीं करते थे संभवतः वह पक्की ईंटों से परिचित नहीं थे।
▪️ताम्रपाषाण काल के लोग वस्त्र निर्माण करना जानते थे। साथ ही वह मिट्टी के खिलोने और मूर्ति (टेराकोटा की) के कारीगर थे। साथ ही कुंभकार, धातुकार, हाथी दाँत के शिल्पी और चुना बनाने के कारीगर थे।
▪️ताम्रपाषाण काल के अधिकतर मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) काले व लाल रंग के थे, जोकि चाक पर बनते थे कभी-कभार इन पर सफेद रंग की रेखिक आकृतियाँ बनी रहती थी।
▪️मिट्टी की स्त्री रूपी मूर्ति से ज्ञात होता है कि ताम्रपाषाण कालीन लोग मातृ-देवी की पूजा करते थे और संभवतः वृषभ (सांड) धार्मिक पंथ का प्रतीक था।
▪️भारत में ताम्रपाषाण काल की कई बस्तियाँ हैं तिथिक्रम की दृष्टि से कुछ प्राक् तथा हड़प्पीय हैं, कुछ हड़प्पा संस्कृति के समकालीन हैं तो कुछ हड़प्पोत्तर अर्थात हड्डपा संस्कृति के बाद की हैं।
#भारत_में_ताम्रपाषण_युगीन_बस्तियां :
▪️दक्षिण पूर्वी राजस्थान –
• अहार (उदयपुर),
• गिलुंद (राजसमंद)
▪️पश्चिमी महाराष्ट्र –
• जोखे,
• नेवासा, सोनगाँव और दैमाबाद (अहमदनगर),
• चंदौली (कोल्हापुर),
• इनामगाँव – इस युग की सबसे बडी बस्ती यहीं मिली है (पुणे)
▪️पश्चिमी मध्यप्रदेश –
• मालवा (मालवा),
• कयथा (मंडला),
• एरण (गुना)
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