Tuesday, June 9, 2020

आधुनिक_भारत_का_इतिहास

आधुनिक_भारत_का_इतिहास

#खिलाफ़त_और_असहयोग_आन्दोलन

ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ते क्रोध ने खिलाफत आन्दोलन और असहयोग आन्दोलन को जन्म दिया| तुर्की ने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन के विरुद्ध भाग लिया था| तुर्की,जोकि पराजित देशों में से एक था,के साथ ब्रिटेन ने अन्याय किया|1919 ई. में मोहम्मद अली और शौकत अली (अली बंधुओं के नाम से प्रसिद्ध), मौलाना अबुल कलाम आज़ाद,हसरत मोहानी व कुछ अन्य के नेतृत्व में तुर्की के साथ हुए अन्याय के विरोध में खिलाफत आन्दोलन चलाया गया| तुर्की के सुल्तान को खलीफा अर्थात मुस्लिमों का धर्मगुरु भी माना जाता था| अतः तुर्की के साथ हुए अन्याय के मुद्दे को लेकर जो आन्दोलन शुरू हुआ,उसे ही खिलाफत आन्दोलन कहा गया| इसने असहयोग का आह्वाहन किया| खिलाफत के मुद्दे को लेकर शुरू हुआ आन्दोलन जल्द ही स्वराज और पंजाब में दमन के विरोध में चलाये जा रहे आन्दोलन के साथ मिल गया| गाँधी जी नेतृत्व में 1920 ई. में कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में पहली बार और बाद में नागपुर के कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सरकार के विरुद्ध संघर्ष हेतु एक नए कार्यक्रम को स्वीकृत किया गया | नागपुर अधिवेशन,जिसमे 15000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था,में कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया और “वैधानिक व शांतिपूर्ण तरीकों से भारतीयों के द्वारा स्वराज्य की प्राप्ति” को कांग्रेस के संविधान का प्रथम प्रावधान बना दिया गया|

यह आन्दोलन तुर्की और पंजाब में हुए अन्याय के विरोध और स्वराज्य की प्राप्ति के लिए शुरू हुआ था| इसमें अपनाये गए तरीकों के कारण इसे असहयोग आन्दोलन कहा गया, इसकी शुरुआत ब्रिटिशों द्वारा भारतीयों को प्रदान की जाने वाली ‘सर’ की उपाधि की वापसी के साथ हुई| सुब्रमण्यम अय्यर और रबिन्द्रनाथ टैगोर पहले ही ऐसा कर चुके थे| अगस्त 1920 में गाँधी ने अपनी कैसर-ए-हिन्द की उपाधि लौटा दी | अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया| ब्रिटिश सरकार से इन उपाधियों का प्राप्त करना अब भारतीयों के लिए सम्मान का विषय नहीं रह गया अतः सरकार के साथ असहयोग किया गया| बाद में विधायिकाओं का भी बहिष्कार किया गया|

अनेक लोगों ने विधायिकाओं के चुनाव में अपना मत देने से इंकार कर दिया| हजारों छात्रों व शिक्षकों ने स्कूलों व कॉलेजों को छोड़ दिया| जामिया मिलिया इस्लामिया,अलीगढ (जो बाद में दिल्ली में स्थापित हो गया था) और कशी विद्यापीठ,बनारस जैसे नए शिक्षा संस्थानों की स्थापना राष्ट्रवादियों द्वारा की गयी| सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी छोड़ दी,वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार किया,विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गयी और पूरे देश में बंद व हड़तालों का आयोजन किया गया| आन्दोलन को अपार सफलता मिली और गोलीबारी व गिरफ्तारियां इसे रोक न सकीं|

वर्ष 1921 की समाप्ति से पूर्व तक लगभग 30,000 लोगों को जेल में डाल दिया गया था| इनमे कई प्रमुख नेता भी शामिल थे| गाँधी जी को किसी भी तरह से अभी गिरफ्तार नहीं किया जा सका था| केरल के कुछ हिस्सों में विद्रोह भड़क गया जिसमे ज्यादातर विद्रोही मोपला किसान थे,इसीलिए इसे मोपला विद्रोह कहा गया| विद्रोह को क्रूर तरीकों से दबा दिया गया | 2000 से ज्यादा मोपला विद्रोही मार दिए गए और 45,000 को गिरफ्तार कर लिया गया| एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले जाते समय 67 कैदियों की एक रेलवे वैगन में दम घुटने से हुई मृत्यु इस क्रूरता का ही जीता जागता उदाहरण था|

1921 का कांग्रेस अधिवेशन अहमदाबाद में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्षता हकीम अजमल खान  ने की थी| इस अधिवेशन में आन्दोलन को जारी रखने का निर्णय किया गया और असहयोग आन्दोलन के अंतिम चरण की शुरुआत करने का भी निर्णय किया गया|इस चरण की शुरुआत लोगों से कर अदा न करने की अपील के साथ होनी थी| इसकी शुरुआत गांधीजी ने गुजरात के बारदोली से की | यह चरण बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि जब लोग सरकार को कर अदा करना से मन कर देंगे तो सरकार की वैधानिकता पर ही प्रश्नचिह्न लग जायेगा| गाँधी जी हमेशा इस बात पर बल दिया कि पूरा आन्दोलन शंतिपूर्ण ढंग से होना चाहिए| लेकिन लोग स्वयं को संयमित नहीं रख सके |उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में 5 फरवरी ,1922 को पुलिस ने बगैर किसी पूर्व सूचना के प्रदर्शन कर रही भीड़ पर गोली चला दी | लोगों ने गुस्से में आकर पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया और उसमे आग लगा दी| पुलिस स्टेशन के अन्दर कैद 22 पुलिस वाले इस आग में मारे गए| चूँकि गाँधी जी ने यह शर्त रखी थी कि पूरा आन्दोलन शंतिपूर्ण होगा अतः इस घटना की खबर सुनने के बाद ही उन्होंने आन्दोलन को वापस ले लिया |

10 मार्च,1922 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और छह साल की सजा सुनाई गयी| इस आन्दोलन को वापस लेने के साथ ही राष्ट्रवादी आन्दोलन का एक और चरण समाप्त हो गया| इस आन्दोलन में पुरे देश से लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया था| यह गावों तक फ़ैल गया था|
[09/06, 8:55 AM] Raj Kumar: #आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#साइमन_कमीशन

भारत में 1922 के बाद से जो शांति छाई हुई थी वह 1927 में आकर टूटी|इस साल ब्रिटिश सरकार ने साइमन आयोग का गठन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में भारतीय शासन अधिनियम -1919 की कार्यप्रणाली की जांच करने और प्रशासन में  सुधार हेतु सुझाव देने के लिए किया|इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर इस आयोग को साइमन आयोग के नाम से जाना गया|इसकी नियुक्ति भारतीय लोगों के लिए एक झटके जैसी थी क्योकि इसके सारे सदस्य अंग्रेज थे और एक भी भारतीय सदस्य को इसमें शामिल नहीं किया गया था|सरकार ने स्वराज की मांग के प्रति कोई झुकाव प्रदर्शित नहीं किया|आयोग की संरचना ने भारतियों की शंका को सच साबित कर दिया|आयोग की नियुक्ति से पूरे भारत में विरोध प्रदर्शनों की लहर सी दौड़ गयी|

1927 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मद्रास में आयोजित किया गया जिसमे आयोग के बहिष्कार का निर्णय लिया गया|मुस्लिम लीग ने भी इसका बहिष्कार किया|आयोग 3 फरवरी 1928 को भारत पहुंचा और इस दिन विरोधस्वरूप पुरे भारत में हड़ताल का आयोजन किया गया|उस दिन दोपहर के बाद,आयोग के गठन की निंदा करने के लिए,पूरे भारत में सभाएं की गयीं और यह घोषित किया कि भारत के लोगों का इस आयोग से कोई लेना-देना नहीं है|मद्रास में इन प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलायीं गयीं और अनेक अन्य जगहों पर लाठी-चार्ज की गयीं|आयोग जहाँ भी गया उसे विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों का सामना करना पड़ा|केंद्रीय विधायिका ने बहुमत से यह निर्णय लिया कि उसे इस आयोग से कुछ लेना-देना नहीं है|पूरा भारत ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे से गूँज रहा था|

पुलिस ने दमनात्मक उपायों का सहारा लिया और हजारों लोगों की पिटायी की गयी |इन्हीं विरोध प्रदर्शनों के दौरान शेर-ए-पंजाब नाम से प्रसिद्ध महान नेता लाला लाजपत राय की पुलिस द्वारा बर्बरता से पिटाई की गयी| पुलिस द्वारा की पिटायी से लगीं चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गयी|लखनऊ में नेहरु और गोविन्द बल्लभ पन्त को भी पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं| इन लाठियों की मार ने गोविन्द बल्लभ पन्त को जीवन भर के लिए अपंग बना दिया था|

साइमन आयोग के विरोध के दौरान भारतियों ने एक बार फिर प्रदर्शित कर दिया कि वे स्वतंत्रता के एकजुट और द्रढ़प्रतिज्ञ हैं|उन्होंने स्वयं को अब एक बड़े संघर्ष के लिए तैयार कर लिया|डॉ. एम.ए.अंसारी की अध्यक्षता में मद्रास में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित किया गया और पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति को भारत के लोगों का लक्ष्य घोषित किया गया|यह प्रस्ताव नेहरु द्वारा प्रस्तुत किया गया था और एस.सत्यमूर्ति ने इसका समर्थन किया था|इसी दौरान पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को मजबूती से प्रस्तुत करने के लिए इन्डियन इंडिपेंडेंस लीग नाम के एक संगठन की स्थापना की गयी|लीग का नेतृत्व जवाहर लाल नेहरु,सुभाष चन्द्र बोस व उनके बड़े भाई शरत चन्द्र बोस,श्रीनिवास अयंगर,सत्यमूर्ति जैसे महत्वपूर्ण नेताओं ने किया|

दिसंबर 1928 में मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में कलकत्ता में कांग्रेस का सम्मलेन आयोजित हुआ|इस सम्मलेन में जवाहर लाल नेहरु,सुभाष चन्द्र बोस और कई एनी नेताओं ने कांग्रेस पर पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने के लिए दबाव डाला|लेकिन कांग्रेस ने डोमिनियन दर्जे की मांग से सम्बंधित प्रस्ताव पारित किया जोकि पूर्ण स्वतंत्रता की तुलना में कमतर थी| लेकिन यह घोषित किया गया कि अगर एक साल के भीतर डोमिनियन का दर्जा भारत को प्रदान नहीं किया गया तो कांग्रेस पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करेगी और उसकी प्राप्ति के लिए एक जन-आन्दोलन भी चलाएगी|1929 के पूरे साल के दौरान इन्डियन इंडिपेंडेंस लीग पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को लेकर लोगों को रैलियों के माध्यम से तैयार करती रही|जब तक कांग्रेस का अगला वार्षिक अधिवेशन आयोजित होता तब तक लोगों की सोच में परिवर्तन आ चुका था|

#निष्कर्ष

साइमन आयोग का गठन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संवैधानिक प्रणाली की कार्यप्रणाली की जांच करने और उसमे बदलाव हेतु सुझाव देने के लिए किया गया था|इसका औपचारिक नाम ‘भारतीय संविधायी आयोग’ था और इसमें ब्रिटिश संसद के दो कंजरवेटिव,दो लेबर और एक लिबरल सदस्य शामिल थे|आयोग का कोई भी सदस्य भारतीय नहीं था|इसीलिए उनके भारत आगमन का स्वागत ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे के साथ किया गया था|विरोध प्रदर्शन को शांत करने के लिए वायसराय लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत को ‘डोमिनियन’ का दर्जा देने की घोषणा की और भविष्य के संविधान पर विचार-विमर्श करने के लिए गोलमेज सम्मेलनों को आयोजित करने की भी घोषणा की गयी|


 #आंग्ल_मैसूर_युद्ध

मैसूर राज्य तथा अंग्रेजों के मध्य हुए संघर्ष को आंग्ल-मैसूर युद्ध के नाम से जाना जाता है। 1767-1799 के बीच कुल 4 युद्ध लड़े गए और इन आंग्ल-मैसूर युद्ध के पीछे कई कारण थे जिनमें से कुछ कारण निम्न हैं-

▪️हैदर अली के उत्कर्ष से अंग्रेज उसे अपने प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी के रूप में देखने लगे थे।
▪️अंग्रेजों और हैदर अली के मध्य संघर्ष होने का एक प्रमुख कारण यह भी था कि दोनों ही अपने क्षेत्र में वृद्धि करने को उत्सुक थे।
▪️अंग्रेजों का मराठों तथा हैदराबाद के निजाम के साथ साठ-गाँठ करना हैदर अली की आँखों में खटकता रहा।
▪️हैदर अली अंग्रेजों के कट्टर विरोधी फ्रांसीसियों की ओर अधिक आकर्षित था।
▪️हैदर अली अपनी नौ-सेना बनाना चाहता था, जिसके लिए उसने अपनी सीमाओं का विस्तार समुद्र तट तक करने का प्रयास किया। पर अंग्रेजों ने उसके हर प्रयास को असफल करा और गुन्टूर तथा माही पर अधिकार कर लिया।

#4_आंग्ल_मैसूर_युद्ध (1767-1799)

#प्रथम_आंग्ल_मैसूर_युद्ध (1767-1769)

▪️अंग्रेजों ने मराठों और हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर मैसूर पर हमला किया। अंग्रेजों का नेतृत्व जनरल जोसेफ स्मिथ ने किया।
▪️हैदर अली ने कूटनीति का प्रयोग कर मराठों और हैदराबाद के निजाम को अपनी तरफ मिला लिया और इस युद्ध में अंग्रेजों को बुरी तरह हराया।
▪️उसने मराठों और निजाम के साथ मिलकर मद्रास को घेर लिया। जिससे अंग्रेज बुरी तरह भयभीत हो गये और उन्होंने 4 अप्रैल, 1769 को मद्रास की संधि कर ली। संधि के तहत –
▪️अंग्रेज बंदियों को छोड़ दिया गया।
▪️दोनो एक दूसरे के क्षेत्र पर कब्जा छोड़ेंगे।
▪️अंग्रेज युद्ध के दौरान हुयी युद्ध हानि का जुर्माना भरेंगे।
▪️किसी भी विपत्ति के समय दोनों एक दूसरे का सहयोग करेंगे।

▪️परन्तु अंग्रेजों ने धोखा दिया और 1771 में जब तीसरी बार मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किया तब अंग्रेजों ने हैदर अली की मद्द करने से इनकार कर दिया। जिस कारण हैदर अली जब तक जिया तब तक अंग्रेजों से नफरत करता रहा।

#द्वितीय_आंग्ल_मैसूर_युद्ध (1780-1784)

▪️प्रथम युद्ध की संधि केवल नाम मात्र की थी। संधि होने के बावजूद भी अंग्रेजों तथा हैदर अली के मध्य संबंध अच्छे नहीं थे। अंग्रेजों को बस अपना काम निकालना था।
▪️1773 में गवर्नर जनरल का पद शुरू हो गया था। 1780 के दौरान बंगाल का गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था।
▪️इस युद्ध में हैदर अली ने मराठों और हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध किया। अंग्रेज कर्नल बेली को हराकर कर्नाटक की राजधानी अर्काट पर अधिकार कर लिया।
▪️परन्तु 7 दिसंबर 1782 में हैदर अली की मृत्यु हो गयी।
▪️इसका बेटा टीपू सुल्तान मैसूर का अलगा शासक बना, और उसने युद्ध को जारी रखा।
▪️मार्च 1784 में टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के साथ मंगलौर की संधि की और द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध का अंत हुआ।

#तृतीय_आंग्ल_मैसूर_युद्ध (1790-1792)

▪️अंग्रेजों की शासन नीति के अनुसार युद्ध के बाद होने वाली संधियाँ केवल अगले आक्रमण से पहले का आराम भर होती थी। अंग्रेजों ने इसी नियत से मंगलौर की संधि भी करी थी।
▪️1790 में लॉर्ड कॉर्नवालिस ने मराठों और निजाम के साथ मिलकर टीपू के विरूद्ध एक त्रिदलीय संगठन बना लिया।
▪️1792 को लार्ड कार्नवालिस के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने वैल्लौर, अम्बूर तथा बंगलौर को जीत लिया और श्रीरंगपट्टनम को घेर लिया। टीपू सुल्तान ने इसका विरोध करते हुए युद्ध जारी रखा पर अंततः जब उसने देखा कि इस युद्ध में जीत हासिल करना असंभव है तो उसने संधि कर ली। 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि से तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध समाप्त हुआ –
▪️श्रीरंगपट्टनम की संधि- 1792
▪️टीपू सुल्तान को अपने प्रदेश का लगभग आधा भाग अंग्रेजों तथा उसके साथियों को देना पड़ा।
▪️टीपू सुल्तान को 3 करोड़ रुपये युद्ध हानि के रूप में भरने पड़े।

▪️श्रीरंगपट्टनम वर्तमान कर्नाटक में है।
▪️इस समय बंगाल का गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस था। इसी के नेतृत्व में ये यद्ध भी लड़ा गया था। ▪️कार्नवालिस ने अपने शब्दों में इस युद्ध की विजय को कुछ इस तरह वर्णित किया “हमने अपने शत्रु को लगभग पंगु बना दिया है तथा इसके साथ ही अपने सहयोगियों को और शक्तिशाली नहीं बनने दिया”।
▪️1796 में टीपू सुल्तान ने नौसेना बोर्ड का गठन किया।
▪️इसी वर्ष टीपू सुल्तान ने नई राइफलों की फैक्ट्री तथा फ्रांसीसी दूतावास भी स्थापित किया।

#चतुर्थ_आंग्ल_मैसूर_युद्ध (1799)

▪️अंग्रेजों का ध्यान फिर से मैसूर की तरफ आकर्षित होने लगा।
▪️तृतीय मैसूर-युद्ध के उपरान्त टीपू की शक्ति काफी कम हो चुकी थी।
▪️अंग्रेजों तथा टीपू सुल्तान के मध्य संधि भी हो चुकी थी, परन्तु टीपू सुल्तान अपनी पराजय को भूला नहीं था तथा वो अग्रेंजो से बदला लेना चाहता था।
▪️इसके चलते ही उसने यूरोप में फ्रांस की सरकार से संपर्क स्थापित किया। उसने फ्रांसीसियों को अपनी सेना में भी भर्ती किया।
▪️वेलेजली ने भारत आते ही परिस्थिति का शीघ्र ही अध्ययन कर लिया और ये समझ गया कि युद्ध अवश्यम्भावी है।
▪️वेलेजली ने युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दी। मगर इससे पूर्व उसने निजाम तथा मराठों को अपनी तरफ मिला लिया।
▪️1799 में जब बंगाल के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली ने टीपू सुल्तान के पास सहायक संधि का प्रस्ताव भेजा, जिसे टीपू सुल्तान ने अस्वीकार कर दिया। यही चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध का मुख्य कारण बना।
▪️इसी के बाद लार्ड वेलेजली ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया और अंत में 4 मई, 1799 में चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध में लड़ते हुये ही टीपू सुल्तान की श्रीरंगपट्टनम के दुर्ग के पास मृत्यु हो गयी। और इसके साथ ही आंग्ल-मैसूर संघर्ष भी समाप्त हो गया।


#आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#स्वराज_दल

असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद कांग्रेस पार्टी दो भागों में बंट गयी| जब असहयोग आन्दोलन प्रारंभ हुआ था तो उस समय विधायिकाओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया था|चितरंजन दास,मोतीलाल नेहरु और विट्ठलभाई पटेल के नेतृत्व वाले एक गुट का मानना था की कांग्रेस को चुनाव में भाग लेना चाहिए और विधायिकाओं के अन्दर पहुँचकर उनके काम को बाधित जाना चाहिए| वल्लभभाई पटेल,सी.राजगोपालाचारी और राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व वाले गुट ने इसका विरोध किया| वे कांग्रेस को रचनात्मक कार्यों में लगाना चाहते थे|

1922 में गया में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन,जिसकी अध्यक्षता चितरंजन दास ने की थी,में विधायिकाओं में प्रवेश सम्बन्धी प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया |इस प्रस्ताव के समर्थकों ने 1923 में कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी,जो स्वराज पार्टी के नाम से प्रसिद्ध हुई,की स्थापना की|1923 में अबुल कलाम आज़ाद की अध्यक्षता में दिल्ली में आयोजित कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में कांग्रेस ने  स्वराजियों को चुनाव में भाग लेने की अनुमति प्रदान कर दी| स्वराजियों ने केंद्रीय व प्रांतीय विधायिकाओं में बड़ी संख्या में सीटें जीतीं| वृहद् स्तर की राजनीतिक गतिविधियों के अभाव के इस दौर में स्वाराजियों ने ब्रिटिश विरोधी प्रदर्शन व भावना को जीवित बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था| उन्होंने ब्रिटिश शासकों की नीतियों व प्रस्तावों का विधायिकाओं से पारित होना लगभग असंभव बना दिया |उदाहरण के लिए 1928 में एक बिल लाया गया जिसमें ब्रिटिश सरकार को यह शक्ति प्रदान करने का प्रावधान था कि वह किसी भी ऐसे गैर-भारतीय को भारत से बाहर निकाल सकती है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करता हो| स्वराजियों के विरोध के कारण यह बिल पारित न हो सका| जब सरकार ने इस बिल को दोबारा पेश किया तो विट्ठलभाई पटेल,जोकि सदन के अध्यक्ष थे, ने ऐसा करने की अनुमति प्रदान नहीं की| विधायिकाओं में होने वाली बहसों,जिनमें भारतीय सदस्य प्रायः अपनी दलीलों से सरकार को मत दे देते थे,को पूरे भारत में जोश और रूचि के साथ पढ़ा जाता था|

सन 1030 में जब जन राजनीतिक संघर्ष को पुनः प्रारंभ किया तो फिर से विधायिकाओं का बहिष्कार किया जाने लगा| गाँधी जी को फरवरी 1924 में जेल से रिहा कर दिया गया और रचनात्मक कार्यक्रम,जिन्हें कांग्रेस के दोनों गुटों ने स्वीकृत किया था,कांग्रेस की प्रमुख गतिविधियाँ बन गयीं| रचनात्मक कार्यक्रमों के सबसे महत्वपूर्ण घटक खादी का प्रसार,हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढावा और अस्पृश्यता की समाप्ति थे| किसी भी कांग्रेस समिति के सदस्य के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया की वह किसी राजनीतिक या कांग्रेस की गतिविधियों में भाग लेते समय हाथ से बुनी हुई खद्दर ही धारण करे और प्रति माह 2000 यार्ड सूत की बुनाई करे| अखिल भारतीय बुनकर संघ की स्थापना की गयी और पूरे देश में खद्दर भंडारों खोले गए| गाँधी जी खादी को गरीबों को उनकी निर्धनता से मुक्ति का और देश की आर्थिक समृद्धि का प्रमुख साधन मानते थे| इसने लाखों लोगों को आजीविका के अवसर प्रदान किये और स्वतंत्रता संघर्ष के सन्देश को देश के कोने-कोने तक पहुँचाया,विशेषकर ग्रामीण भागों में| इसने आम आदमी को कांग्रेस के साथ जोड़ा और आम जनता के उत्थान को कांग्रेस के कार्यों का अभिन्न अंग बना दिया| चरखा स्वतंत्रता संघर्ष का प्रतीक बन गया|

असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद देश के कुछ भागों में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए |स्वतंत्रता संघर्ष को जारी रखने और लोगों की एकता को बनाये रखने और मजबूत करने के लिए साम्प्रदायिकता के जहर से लड़ना जरुरी था| गाँधी जी का छुआछुत/अस्पृश्यता विरोधी कार्यक्रम भारतीय समाज की सबसे भयंकर बुराई को समाप्त करने और समाज के दलित वर्ग को स्वतंत्रता संघर्ष से जोड़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण था|


#हैदर_अली_का_उत्कर्ष

हैदर अली का जन्म 1721 में बुढ़ीकोटा (कर्नाटक) में हुआ था। हैदर अली के पिता का नाम फतेह महोम्मद था और वह मैसूर राज्य की सेना में फौजदार थे। मैसूर का वास्तविक संस्थापक हैदर अली को कहा जाता है। हैदर अली 1761 में वह मैसूर का शासक बना।

▪️जब मैसूर का राजा चिपका कृष्णराज था, तब उसके समय में सत्ता को धोखे से हथियाने की प्रथा चालू हो गयी।
▪️1732 में मैसूर पर 2 भाईयों देवराज और नंद राज का शासन था। जो पहले राजा चिपका कृष्णराज के मंत्री थे।
▪️हैदर अली इनकी ही सेना में सैनिक था।
▪️हैदर अली के पूर्वज दिल्ली प्रदेश के मूल निवासी थे। जोकि बाद में दक्षिण की ओर पलायन कर गए।
▪️सन 1728 ई० में पिता के देहांत के बाद हैदर अली को अनेक प्रारम्भिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ▪️यही एक प्रमुख कारण था कि हैदर की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया और वो आजीवन अशिक्षित ही रहा। परन्तु इन चुनौतियों ने उसे दृढ़ निश्चयी, उत्साही, प्रखर बुद्धी और वीर योद्धा बनाया।
▪️हैदर अली की बहादुरी से प्रसन्न होकर नंदराज ने उसे 1755 में डिंडीगुल (तमिलनाडू) का फौजदार (मिलट्री कमाण्डर) बना दिया गया।
▪️ड़िडीगुल में ही हैदर अली ने फ्रांसीसियों की सहायता से शस्त्रागार स्थापित किया। अपने सैनिकों को फ्रांसीसी सेनापतियों से प्रशिक्षण दिलवाया।
▪️1759 में मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किया तब हैदर अली ने ही मैसूर को सुरक्षित बचाया।
▪️इस विजय से खुश होकर नंदराज ने हैदर अली को मुख्य सेनापति नियुक्त कर दिया।
▪️कुछ समय उपरान्त उसे नंदराज के साथ त्रिचनापल्ली के घेरे में कार्य करने का अवसर मिला। इस अभियान में उसने अंग्रेजों की एक सैनिक टुकड़ी से बहुत सी बन्दूकें तथा भारी मात्रा में गोलाबारूद छीन लिया, इसके परिणामस्वरूप इसकी सैन्य शक्ति में असाधारण वृद्धि हो गई।
▪️1760 में सेनापति हैदर अली ने नंदराज की हत्या करके सारा शासन अपने कब्जे में कर लिया।
▪️तब जाकर 1761 में हैदर अली मैसूर का वास्तविक शासक बना।
▪️हैदर अली एक योग्य सुलतान था। सत्ता हाथ में आते ही अपने राज्य का विस्तार किया।
▪️उसने 1763 में बंदनूर पर अधिकर कर उसका नाम बदल कर हैदराबाद रखा। इसके अतिरिक्त सुण्डा, सेरा, कनारा, रायदुर्ग आदि पर भी अधिकार कर लिया।
▪️कालीकट, कोचीन तथा पालघाट के राजाओं को भी अपनी अधीनता स्वीकार करने पर विवश किया।
▪️हैदर अली ने श्रीरंगपटनम को अपनी राजधानी बनाया।
▪️उसके राज्य विस्तार से निकटवर्ती राज्य (ब्रिटिशर, निजाम और मराठे) भयभीत हो गये। ये सभी हैदरअली को अपना प्रबल प्रतिद्वंद्वी मानने लगे।
▪️मराठों ने माधव राव प्रथम के नेतृत्व में मैसूर पर 3 बार आक्रमण किया। तीनों ही युद्धों में हैदर अली को हार का सामना करना पड़ा। इन युद्धों में मराठों ने हैदर अली से धन और राज्य का कुछ भाग अपने अधिकार में कर लिया।

▪️पहला आक्रमण-1764
▪️दूसरा आक्रमण- 1766
▪️तीसरा आक्रमण- 1771

▪️1772 में माधवराव की मृत्यु उपरान्त हैदर अली ने 1774 से 1776 तक मराठों से संघर्ष कर अपने हारे हुए क्षेत्र को दुबारा प्राप्त कर लिया।
▪️अंग्रेजों ने भी मराठों की तरह ही मैसूर पर आक्रमण किया। इस संघर्ष में कुल 4 युद्ध लड़े गये थे। इन युद्धों को आंग्ल-मैसूर युद्ध के नाम से जाना जाता है तथा ये सभी युद्ध 1767 से 1799 के बीच में लड़े गये।

▪️प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769)
▪️द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784)
▪️तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-1792)
▪️चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799)

▪️द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान ही हैदर अली की मृत्यु हो गयी और अगला शासक उसका पुत्र टीपू सुल्तान बना।
▪️टीपू सुल्तान ने ही तृतीय और चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध लड़े और चतुर्थ संघर्ष के दौरान ही इसकी भी मृत्यु हो गयी। और इसके साथ ही मैसूर को ब्रिटिश शासन के अधीन ले लिया गया।


#आधुनिक_भारत_का_इतिहास :
#मुडीमैन_समिति_1924

भारतीय नेताओं की मांगों को पूरा करने और 1920 के दशक के आरंभिक वर्षों में स्वराज पार्टी द्वारा स्वीकृत किये गए प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने सर अलेक्जेंडर मुडीनमैन की अध्यक्षता में एक समिति,जिसे मुडीनमैन समिति के नाम से भी जाना जाता है,गठित की| समिति में ब्रिटिशों के अतिरिक्त चार भारतीय सदस्य भी शामिल थे| भारतीय सदस्यों में निम्नलिखित शामिल थे-

a. सर शिवास्वामी अय्यर,

b. डॉ.आर.पी.परांजपे,

c. सर तेज बहादुर सप्रे

d. मोहम्मद अली जिन्ना

इस समिति के गठन के पीछे का कारण भारतीय परिषद् अधिनियम,1919 के तहत 1921 में स्थापित संविधान और द्वैध शासन प्रणाली की कामकाज की समीक्षा करना था| इस समिति की रिपोर्ट को 1925 में प्रस्तुत किया गया जो दो भागों में विभाजित थी-अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक रिपोर्ट|

• बहुसंख्यक/बहुमत रिपोर्ट: इसमें सरकारी कर्मचारी और निष्ठावान लोग शामिल थे| इन्होने घोषित किया कि द्वैध शासन स्थापित नहीं हो सका है | उनका यह भी मानना था कि प्रणाली को सही तरह से मौका नहीं दिया गया है अतः केवल छोटे-मोटे बदलावों की अनुशंसा की|

• अल्पसंख्यक/अल्पमत रिपोर्ट: इसमें केवल गैर-सरकारी भारतीय शामिल थे | इसका मानना था कि 1919 का एक्ट असफल साबित हुआ है| इसमें यह भी बताया गया कि स्थायी और भविष्य की प्रगति को स्वयं प्रेरित करने वाले संविधान में क्या क्या शामिल होना चाहिए|

अतः इस समिति ने शाही आयोग/रॉयल कमीशन की नियुक्ति की सिफारिश की| भारत सचिव लॉर्ड बिर्केनहेड ने कहा कि बहुमत/बहुसंख्यक की रिपोर्ट के आधार पर कदम उठाये जायेंगे|

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